👤👥👤👥👤 आप भला तो जग भला ♠♠♠♠♠ .


मेरे एक मित्र हुआ करते थे , जब देखो किसी न किसी की बुराई किया करते , जब भी उसके पास जाना होता या वो मेरे यहाँ आते तो उनके मुख से परनिंदा सुने बिना वार्ता ही पूर्ण न होती।
“अबे वो , वो तो महाघटिया बन्दा है ....”
“वो ? वो तो चोर है साला ...एक दिन तो .....”
“उसकी तो बात ही मत किया कर घिन्न आती है ...”
“छोड़ यार , मूड ही खराब हो गया , किस मनहूस का नाम ले लिया ...”
“उसका तो पूरा खानदान ही लुच्चों का है ....”
मैं शहर में रहता जरुर हूँ पर ज्यादातर समय घर पर बीतता है, बाज़ार में जाने से भी कोफ़्त होती है, यूँ की आप चाहें तो इसे भी मेरे संदर्भ में आलस्य का एक विशेष दशा की संज्ञा दे सकते है। अब जब घर से बाहर नहीं जाता तो जान पहचान का दायरा भी सीमित ही है, मित्र की बातें बड़ी विचित्र लगती कभी कभी सोचता भी कि क्या सब के सब बुरे या बेकार लोग ही हैं इस शहर में?
एक दिन एक अन्य मित्र ने डपटते हुए पूछा कि ,”अबे कोई और नहीं मिला दोस्ती के लिए ....? कोई उसके मुँह तक नही लगता, यहाँ तक कि पूरा परिवार बदनाम है इसका ? इसकी माँ को जानता है ? कभी सुना नहीं कि वो अपनी खुद की बेटियों को कितनी गन्दी गन्दी गालियाँ देती है , कोई दुश्मनों से भी ऐसे बात करता होगा? कभी देखा है जब बाज़ार में सामान लेने जाती है तो लोग लागत से भी कम पर सामान दे देते हैं उसको , जानते हो क्यूँ ? क्यूंकि अगर वो ज्यादा देर तक उनकी दुकान पर खड़ी रही तो कोई दूसरा ग्राहक उसकी दूकान में नहीं घुसेगा।”
ऐसा नहीं था कि ये सब मुझे बिल्कुल पता न था पर जाने क्यूँ इन सब बातों को कोई तवज्जो देना ठीक न लगा , वो या उसका परिवार आपस में या दूसरों से कैसा व्यवहार करता है इससे ज्यादा उनका मेरे साथ अच्छा व्यवहार महत्वपूर्ण लगा, शायद मुझे ऐसा अभी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।
कुछ समय गुजरा एक दिन मित्र के भाई बदहवास से दौड़ते हुए आए , पता लगा मित्र को मेरी सहायता चाहिए, मित्र किसी निजी संस्था में कम्प्यूटर अध्यापक था , दुनिया बहुत जालिम है वेतन स्थान पर कमरे में बंद कर के पिटाई की संस्था संचालकों ने, कितना गलत किया बेचारे के साथ। मित्र को देखा तो जाना सचमुच पिटाई तो हुई थी , पूछा तो फिर से वही ‘जालिम दुनिया गंदे लोग’ अध्याय शुरू हो गया. बोला वो उन सब से बदला जरुर लेगा ।
मैं वहाँ से वापस घर आया तो देखा एक सज्जन मेरी प्रतीक्षा में थे , पता लगा की ये उसी संचालक समिति के सदस्य है जिन्होंने मित्र को धोया था, क्रोध में जलती आँखों से मैंने उन्हें घूरा। पर घर आए अतिथि से अशिष्टता करना हमारी संस्कृति नहीं इसलिए शांत रहकर उनके आने का प्रयोजन पूछा तो वो कहने लगे की, ‘आपके मित्र ने एस सी / एस टी का केस किया है हम पर , आप को गवाह बनाया है , क्या आप ने हमे आपके मित्र को , उसे ही क्यूँ किसी को भी कोई गाली देते हुए देखा है ? ये भी छोडिए क्या आप आज से पहले मुझसे मिले भी हैं ?’
एक क्षण रुक कर विचार किया फिर मैंने कहा ,’ जी मानता हूँ कि मैं आज से पहले आप से कभी नहीं मिला , फिर कभी कुछ गलत कहते देखने का प्रश्न ही नहीं, यहाँ तक कि मुझे ये भी आप ही से पता लग रहा कि मैं कोई गवाही देने वाला हूँ , सरासर झूठी, पर जब आप किसी निरीह को इस प्रकार प्रताड़ित करेंगे तो वो बेचारा इससे अलग कुछ करेगा भी क्या , आपने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा पर मेरे मित्र का तो बिगाड़ा है, न्याय का तकाजा है कि आप भी अपनी करनी का दंड भुगतें।‘
वो सज्जन मुस्कुराए बोले , ‘आपके मित्र वेतन को लेकर जो आरोप गढ़ रहे हैं क्या आपको वो सत्य प्रतीत हो रहे हैं ? एकाउंट चेक कीजिए उनका कि हर महीने की पहली तारीख को वेतन जमा हुआ है या नहीं , आप कुछ नहीं जानते आपके मित्र की सज्जनता के विषय में , हम भी नहीं जानते थे वरना शायद सच में हम उसकी पिटाई करते ।’
‘मतलब आपने उसे नहीं मारा , तो वो निशान क्या उसने खुद बना लिए अपने चेहरे पर , पूरे शरीर पर घसीटने और लात घूसों के निशान हैं , कई जगह से शरीर नीला हो गया है , सब उसने खुद किया है ?’
‘अरे साहब, उसे हमने नहीं उन बच्चियों के परिजनों ने मारा जिनके साथ आपका मित्र अश्लील हरकतें करता था, कम्प्यूटर शिक्षण की आड़ लेकर बच्चियों को ‘नीला जहर’ परोस रहा था, शायद ४-५ साल की मासूम बच्चियां कुछ न भी कहती पर बड़ी बच्चियों पर भी हाथ आजमाना महंगा पड़ गया। आपसे पूछता हूँ आपके घर की कोई कन्या के साथ ऐसा होता तो आप क्या करते ? गुस्सा आता न , उनको भी आ गया। हर गलती कीमत मांगती है साहब , आपके मित्र ने वही चुकाई है, आपसे यही कहने आया हूँ कि गलत का साथ मत दीजिए. अगर आप को मेरी किसी बात पर अविश्वास हो तो मैं आपको उन बच्चियों से भी मिलवा दूंगा .’
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कुछ समय बाद एक मित्र घर पधारे तो बातों बातों में ‘उस’ मित्र का जिक्र आया , वो हंसते हुए बोले कि , ‘सुना है कि आजकल वो ये कहते घूम रहे हैं कि तुम बिक गए हो , तुमने स्कूल वालों से पैसे ले लिए , धोखेबाज़ हो, उसका फायदा उठाया वगैरह वगैरह ‘ कहते कहते जोर का ठहाका लगा दिया. मैं सोचने लगा शायद मुझे अभी बहुत सीखने की जरूरत है .
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जीवन ढेरों खट्टे मीठे अनुभव देने वाली अनूठी पाठशाला है , एक बार अजीत ने मुझसे कहा था कि इन्सान जैसा खुद होता है, दूसरों में भी वही सब नजर आता है, सब कहते हैं फेसबुक आभासी दुनिया हैं पर सौभाग्य से यहाँ वास्तविक दुनिया से अधिक वास्तविक लोग मिले हैं शायद इसलिए क्यूंकि यहाँ पर इन्सान की तलाश उसके स्वार्थ से जुडी होती है, शायद जिसे जो चाहिए वो उसी की और आकर्षित होता चला जाता है, एक बार कहा भी था कि ‘होगी ये आभासी दुनिया , पर कुछ लोग है जो अपनों से अधिक अपने लगते हैं।’ इसी आभासी दुनिया ने मुझे उस ‘गुरुकुल’ का अंग भी बनाया है जो अधिकांश के लिए कुतुहल की वस्तु है। सीखना तो आजीवन चलता ही रहेगा, पर ये आभासी अनुभव भी बहुत अद्भुत हैं, सच्ची ....
#जयश्रीकृष्ण
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अरुण

🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...