💏💏🙇🙇💃💃🏃🏃 प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया ♠️♠️♠️♠️♠️

'दीवाना' मूवी के सभी गाने बहुत पसंद हैं मुझे, ओये नयी वाली नहीं रे, पुरानी वो ऋषि कपूर और दिव्या भारती वाली। वैसे उस मूवी में भी शाहरुख खान था पर तब तक मैं घनघोर टाइप राष्ट्रवादी नहीं बना था। सिर्फ इसीलिए नए वाली दीवाना बिल्कुल नहीं पसंद हमको, इवन गाने भी सुनना हो तो चुपके-चुपके ही सुनता हूँ और खुद गाने की चुल्ल लगे तो मुँह कम्बल में छुपा लेता हूँ। किसी को कुछ पता नहीं लगना चाहिए। आज तो बाइक से जाना हो रहा, मन हुआ कि एक बार के लिए मेरा राष्ट्रवाद किसी ओर की तरफ फेस कर ले तो मैं बाइक पर शाहरुख की तरह उछल उछल कर 'कोई न कोई चाहिए प्यार करने वाला' ही गा लूं। मस्त लगेगा न ? पर फिर लगा ये थोड़ा ओवर हो जाएगा। लोग मुझे पागल समझने लगेंगे। इसलिए शाहरुख को कस के तमाचा दिया, उधर ऋषि कपूर ने तुरन्त तान छेड़ दी। पायलिया हो हो हो, तेरी पायलिया हो हो हो। (अहा ये हुई न बात, बहोत सही काके, और जोर से गा।) और सच में अच्छे बच्चे की तरह ऋषि कपूर भीतर तेज़ आवाज़ में गाने लगा।

तेरी पायलिया शोर मचाये, नींद चुराए
होश उडाये, मुझको पास बुलाये, ओ रब्बा हो...

पायलिया से याद आया उस थिएटर का नाम भी तो पायल सिनेमा ही है जिधर मैं अभी जा रहा हूँ। यूँ तो मेरे पास टाइम वेस्ट करने का सबसे अच्छा साधन मोबाईल भी है पर सिनेमा की बड़ी स्क्रीन पर मूवी देखते हुए टाइम खराब करने का अपना अलग मजा है। पर मैं रोज मूवी देखने यहाँ नहीं जाता, हाँ कभी-कभी जाना अच्छा लगता है। इस बार वाला ये 'कभी' पूरे 6 साल बाद आया है। इतने सालों से कोई मूवी नहीं देखी। यही सोचता रहा कि अभी पैसे कमाने और जमा करने का वक़्त है, खर्च करने का नहीं, बुढ़ापे में ऐश करूँगा। आज अकाउंट में दीमक लगी देखकर सोचा ऐश करूँगा कैसे ? पैसा तो जमा हुआ नहीं और समय भी गंवाता जा रहा हूँ। यूँ की निकल आया जुगाड़ करके। 

सड़क सबके बाप की है इसलिए यहाँ से निकलना दूभर लग रहा। एक हल्की सी चूक और कोई रेहड़ी वाला कानों में जोर से चिल्लाएगा, 'बीस रुपये किलो, बीस रुपये किलो...सस्ता कर दिया...ले जाओ ले जाओ...लूट लो...।' मेरा फोकस सामने और नजरें हमेशा की तरह लक्ष्य पर टिकी हैं। कोई मुझे इससे डिगा नहीं सकता। पर इस कमबख्त लेडीज परफ्यूम की बात ही कुछ और है हेलमेट की दीवारें पार कर नथुनों में घुस गया। ये किसी पल्सर के वश की बात नहीं, कोई एक्टिवा ही मुझे इतना एक्टिव बना सकती है। तुरंत उसके पीछे दौड़ लगा देना चाहता था पर आजकल की लड़कीज बहुत फास्ट होती पार्टनर, निकल गई। हाँ, उसकी खुशबू अब भी मेरे आसपास है। बहुत भीड़ है, थिएटर तक पहुंचने से पहले बहुत बार बाइक के ब्रेक जांचने पड़े। हर बार ब्रेक लगने पर एक उपेक्षित उड़ती सी नजर बींध डालती है। स्टोरी के हिसाब से ये हीरो का अपमान है पर क्या करें। आजकल सब गड़बड़झाला चल रहा। पर तब भी कहीं मन में आवाज़ उठी कि शायद हीरोइन की एंट्री से सब ठीक हो जाए। 

थिएटर में पहुंचकर बाइक स्टैंड पर लगाई, हेलमेट वहीं बाइक पर अटकाने के अलावा उसी पर सुतली से कस कर बांध दिया। क्यों? क्योंकि मारवाड़ी अब भी रिस्क नहीं लेते। रेड एंड येलो चेक बुशर्ट (शर्ट का मारवाड़ी संस्करण) और ब्लू जींस में, मुँह घुमा कर एक लंबे बालों वाली लड़की खड़ी है। मैंने भी अपने बाल हवा में लहराने के लिए खोपड़ी को यहाँ वहाँ झटक कर हिलाया। पर हेलमेट की वजह से बाल चिपक गए हैं। नारियल तेल इज नॉट गुड इन सर्दी। साला चंपू लग रहा हूंगा, मन ही मन मैंने सोचा पर दूसरे ही पल ये विचार हवा हो गए। एक लड़की Hiiiii को जोर से चबा- चबाकर बोलती हुई इधर ही आ रही थी। आईला मतलब मैं चंपू नहीं हैंडसम टाइप कुछ लग रहा हूँ ? वाह। पर लड़की उड़कर आई और उस चेक बुशर्ट वाली लड़की के गले लग गई। यहाँ तक तो चलो मैं फिर भी बर्दाश्त कर लेता पर उसने आते ही एक चुम्मा भी चिपका दिया। दिल ही में सही पर कहना ही पड़ा,  'छी छी छी क्या जमाना आ गया है। इन्हीं के कारण देश तरक्की नहीं कर रहा। लड़की होकर दूसरी लड़की पर ऐसा हमला?' मैं कुछ और कहता इतने में चेक बुशर्ट वाली ने भी चुम्में के बदले चुम्मा चिपका दिया। आई मीन कि ये हो क्या रहा है ?  आज तो जुम्मा भी नहीं है फिर ये चुम्मा दे, दे दे दे चुम्मा, क्यों खेला जा रहा ? अचानक बुशर्ट वाली ने सामने वाली लड़की के कमर में हाथ डाला और थिएटर की ओर चल 'दिया'। जाते हुए बुशर्ट वाली की दाढ़ी अब साफ दिख रही थी। कलयुग है भाई कुछ भी हो सकता है, कहकर मैंने अपना फोन निकाल लिया। 

बुक माय शो, पर फ्री में दो टिकट बुक करवाई हैं। क्रेडिट कार्ड जिंदाबाद। मेरे पास नहीं है, पर जिसके पास है उसके पास वक़्त नहीं था। सो आई थॉट के मेरे समय के साथ मिलाकर उसकी इस ओपोर्चुनिटी को भी कैश करवा लिया जाय। 'वो' अभी आई नहीं है। उसने कहा था कि टाइम पर आ जाएगी, पर नहीं आई हमेशा की तरह। हर बार लेट आती है, लगता है बड़ी होकर नेता (नेत्री) बनेगी। ये इंतज़ार करने का ठेका हर बार बस मुझ ही को मिलता है। एक बोर्ड लगा है जिस पर मूवी के हाइलाइट्स की पिक्चर्स लगी हैं। कोई नहीं देख रहा, तो मैं पहुंच गया देखने, हाई शाबासे मस्त लग रही यार। बीच-बीच में गर्दन घुमा कर मेन एंट्री गेट को भी देख लेता हूँ। कुछ कन्याओं ने एंट्री ली है, सबके हाईलाइटर लगे अननेचुरल बाल बड़े प्यारे लग रहे, जिन्हें बार-बार झटक कर और हर 3 मिनट में संवारने का उद्यम कर और प्यारा बनाया जा रहा है। कपड़ों की डिटेलिंग दूंगा तो मेरी तरह आप भी मुझे कहोगे कि मैं इनको इतना गौर से क्यों देख रहा हूँ आखिर ? पर और देखूँ भी तो किसे ? जो भी आ रहा सीधे थिएटर में चला जाता है। कन्याएं भी हाथों में मोबाईल थामे कमर मटकाती हुई भीतर चली गईं। सबके पास बड़े से पर्स थे फिर भी मोबाईल हाथ में क्यों रखती हैं ? शायद कोई इम्पोर्टेन्ट कॉल आने वाला हो। पर तीनों का ? दुनिया बहुत तेज़ी से तरक्की कर रही है। उनके मोबाईल की सोच रहा तो अपना मोबाईल याद आया। जेब से बाहर निकालने लगा तो ढक्कन बाहर आ गया। टेप उतर गई शायद। बड़े धैर्य और जतन से बाकी मोबाईल को भी मना कर बाहर निकाला। बेचारे का पिछवाड़ा दिख रहा था, शर्म तो आएगी ही। देखा तो फोन चुप था, और इस चुप्पी में 'उसकी' आवाज़ भी दब गई। 5 मिनट पहले की 7 मिसकॉल थी। साइलेंट फोन में रिंगटोन नहीं बजी। फटाफट उसे कॉल लगाई , 'हेल्लो बच्चे...' बच्चे सुना तो उधर से वो फट पड़ी।

 'कोई बच्चा वच्चा नहीं, जब कॉल रिसीव ही नहीं करते तो ये खटारा क्यों उठाए घूमते हो?' 

कुछ नहीं कहा मैंने, एक्चुअली देयर वाज ए पॉइंट, वो सुनाने लगी और मैं सुनने लगा। थोड़ी रफ्तार कम हुई तो खिसिया कर पूछ ही लिया, कहाँ हो यार ?

'1 घण्टे से यहाँ गेट पर इंतजार कर रही हूँ, आधे घण्टे से कॉल कर रही हूँ तो उठा नहीं रहे। जाने वाली थी वापस, अगर तुम्हारा कॉल नहीं आता तो अब तक निकल गई होती।'

'चल झूटी'

'अच्छा, मतलब मैं झूठी हूँ?, मीन्स आई एम ए लायर ? ओके फाइन, आई एम गोइंग।' कहकर वो रोने लगी। 

'अरे मजाक कर रहा था यार। यू नो ना आई लव यू'

'सब झूठ है। तुम झूठे हो, तुम्हारा प्यार भी झूठा है। मुझे परेशान करने के लिए ही बुलाया था न ? (पर मैंने कब बुलाया, ये सब तो तुम्हारी प्लानिंग थी न?) अब जा रही हूँ तो रोक भी नहीं रहे। तुम कितना बदल गए हो। मुझे बिल्कुल प्यार नहीं करते।' वो फोन पर फिर से सुबकने लगी।

'अरे यार मैं तो खुद कबसे तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था, रुको मैं तुम्हें लेने आ रहा हूँ।' मैंने गेट तक पहुँच कर बाहर देखा तो वो ऑटो वाले को पैसे देकर दौड़ कर आ गई। मेरे चेहरे पर लगे क्वेश्चन मार्क को देखा तो बोली, 'देखा अभी चली जाती मैं।' फिर मुझे देखकर मुस्कुराई और चहककर बोली, 'चलो भी मूवी स्टार्ट हो जाएगी न।'

झूटी...मैंने मन ही मन कहा उसे और उसके पीछे पीछे थिएटर में प्रविष्ठ हो गया। 

मूवी शुरू हो चुकी थी और भीतर बहुत अंधेरा था। इसलिए वो मेरी छड़ी बनी हुई थी। एक कॉर्नर पर खुद बैठ कर मुझे भी पास बैठा लिया। थोड़ी देर अंधा रहने के बाद अब मेरी आँखें लौट आई हैं। सामने बड़े से स्क्रीन पर चल रही मूवी के अलावा भीतर भी सब देख पा रहा हूँ। आधी से ज्यादा सीटें खाली पड़ी हैं। मुझे अचानक देश की बिगड़ती हुई अर्थव्यवस्था और मंदी प्रत्यक्ष दिखाई देने लगी। किसी को देश की चिंता है ही नहीं, वरना क्या ये कुर्सियाँ इस तरह खाली रहती ?  

'पॉपकॉर्न तो ले आओ'

'हैं!!??' मुझे लगा किसी ने मेरी तन्द्रा में व्यवधान डाल दिया हो, देखा तो वो पॉपकॉर्न खाने पर अड़ी हुई थी। उठ कर जाने लगा तो उसने पॉपकॉर्न के साथ कोक और एक कैडबरी डेयरी मिल्क सिल्क भी ऐड कर डाली। पॉपकॉर्न और कोक तो सुने हैं पर कैडबरी का इससे क्या कनेक्शन ? मतलब कुछ भी ? अब इससे पहले कुछ और ऐड हो मैं तुरन्त वहाँ से निकल गया। 

250/- रुपए का पॉपकॉर्न पहली बार सुना और जब 190/- रुपए कोक के लिए सुने तो मेरी तो भूख प्यास दोनों मिट गई। लेकिन फिर सोचा कम से कम पानी तो ले ही लूं। उसने 500ml की बॉटल के 60 रुपए अलग से झटक लिए, सब लेकर लुटा पिटा सा उसके पास गया। वो बिना प्यार दिखाए या थैंक्यू बोले सीधे शुरू हो गई। ये भी नहीं कहा कि 'तुमने अपने लिए क्यों न लिया?' 
'बाहर 20 रुपए का मिल जाता, ये लोग लूट रहे हैं।' मैंने धीरे से कहा। तो उसने डपट दिया, 'अब ये सब मत शुरू करो ओके, मूवी देखो न, कितनी अच्छी है।'

मैंने आसपास देखा, सबको मूवी इतनी अच्छी लग रही थी कि सब उसी में खोए थे। वो 3 लड़कीज भी बैठी थी 6 बन के, साथ आई थी पर यहाँ अलग-अलग हो गई। शायद बाकी 3 उनके बॉयफ्रेंड होंगे। इधर उधर और नजर दौड़ाई तो सिर्फ कपल्स नजर आ रहे थे। उस चेक बुशर्ट और लंबे बालों वाले को खोजा पर कहीं नहीं दिखा। ख़ैर! वैसे वहाँ किसी को किसी के होने से 🔔 फर्क नहीं पड़ रहा था। मेरी वाली को देखा तो वो बेवकूफों की तरह बस मूवी देख रही थी। उसे हल्की सी कोहनी मार कर मैंने उन लड़कियों की तरफ देखने को कहा। सामने स्क्रीन पर नायक नायिका को चूम रहा था। उसी तर्ज़ पर यहाँ भी उसका रूपान्तरण प्रत्यक्ष हो उठा। उसने उन्हें देखा तो शरमा कर लाल हो गई। बोली कैसे बेशर्म लोग हैं ना ? 

मन में आया कि कहूँ , ' इसमें शर्म वाली क्या बात है ? प्यार में पुच्ची की मिठास न हो तो सब फीका नहीं हो जाएगा।' पर उसकी आँखों में देखते ही बोला, 'सही कहती हो।' 

वो बोली, 'हम्म, तुम इनको मत देखो, मूवी देखो चुपचाप।'

उधर कोई डांस नम्बर आ रहा था। नायक नायिका फ्लोर पर धूम मचा रहे। धूम-2-3-4-5...... थिएटर के भीतर अलग-अलग कोनों में चल रही। यहाँ मैं अकेला ऐसा एलियन हूँ जिसके पास पॉपकॉर्न है पर उसे खा नहीं सकता। सोचा व्रेपर ही छू लो तो, और धीरे से उसके बाएं हाथ पर अपना दायाँ हाथ रख दिया। उसे लगा मैं उसके पॉपकॉर्न छीनने वाला हूँ, कस के मुक्का मार दिया। कोक की डकार मार कर बोली ये सब शादी के बाद। इधर मैं, लाइक सीरियसली ? सोचने लगा, हाथ छूने के लिए भी शादी का इंतज़ार करना पड़ेगा ? तब तो पुच्ची के लिए 4-5 जन्म लेने को बोलेगी? और उसके लिए.... ? खैर जाने दो मैं भी न, यहाँ आया ही क्यूँ ? नेक्स्ट टाइम कभी जाना पड़ा तो भगवान वाली मूवी देखने जाऊंगा। यहाँ तो सब मुझे जलाने की तैयारी कर के आए हैं। 

अचानक लाइट्स जल उठी। इंटरवल हो गया था। उसने मेरा हाथ पकड़ा। (!!??) बोली, 'चलो न मुझे भूख लगी है।' मैंने ध्यान से उसका चेहरा देखा। सोचा, हे नारी तू वाकई धन्य है। वो मुस्कुरा दी। बाहर वेंडर के पास जाकर अपने लिए 'कुछ' खरीदा और 1869/- रुपए का बिल मुझे थमा दिया। वो फिर से अपनी सीट पर जाकर चपड़-चपड़ करते हुए मूवी देखने लगी। बाकी मूवीज भी आगे बढ़ रही थी। मन उचट रहा था तो फिर अपना मोबाईल निकाला। इस बार ढक्कन जेब में रह गया, बाहर जो फोन आया वो मेरे जैसा लग रहा था। ये भी बेशर्मी से अपने काम में लगा रहता है। जब तक मूवी चल रही थी, मैं सोशल मीडिया पर देश को बचाने में जुटा रहा। सच्ची अब सब बोर लग रहा था। देर से ही सही पर आखिर फ़िल्म खत्म हुई। उसने भी 'सब' खा-पीकर खत्म कर लिया था। सब को अचानक बुद्धत्व प्राप्त हो गया। ढेर सारे काम याद आने लगे, इसलिए जल्दी-जल्दी बाहर निकलने की होड़ मच गई। बाहर की ओर भागती भीड़ में वो लंबे बालों वाला भी था, जो बाहर निकलते हुए अपने अस्त-व्यस्त कपड़े ठीक कर रहा था। 

#जयश्रीकृष्ण

✍️ अरुण

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👧👧👧👧👧 ओ माँ, प्यारी माँ, ओ माँ, मम्मा ♠️♠️♠️♠️♠️

अपने घरवालों के जुल्मों का शिकार कमोबेश सभी बच्चे बनते हैं, मैं ज्यादा वाली कैटेगरी में आता हूँ। 5 भाई-बहनों में सबसे बीच में मेरा नम्बर आता था। मतलब की 2 बड़ी बहनें और एक छोटी बहन, और एक छोटा भाई। सोच कर एकबारगी भ्रम होता है कि 5 बच्चों में आखिर किसी के हिस्से कितनी कुटाई आती होगी ? पर यकीन जानिए मेरे हिस्से में इतनी आती थी कि शायद पूरी लिखने से पहले मुझे यादों के पहाड़ चढ़ कर आँसुओं के समंदर लांघने पड़ेंगे। बहनों को कन्या वर्ग से होने की वजह से प्रिविलेज प्राप्त था तो छोटा भाई छोटे होने का जन्मजात अमोघ कवच लेकर ही पैदा हुआ था , नतीजतन हर बार बस मैं बच जाता जिसे ऐसी कोई प्रोटेक्शन हासिल नहीं थी सो मुझे कूट कर हाथों के बट निकाले जाते। ऐसा कई बार हुआ जब भाई-बहनों के कुसुर पर भी मुझे शानदार तरीके से धोया गया, पर मैं उस बारे में अब कोई बात नहीं करके केवल अपने बारे में बात करूंगा। हमारे पड़ोस में एक मौसी रहती थी वो भी काफी खूंखार थी, उनके दो बेटे थे पप्पी और राजू, वे दोनों भी कूटे जाते। मौसी की संगति से मम्मी जो पहले से ही काफी खूंखार थी, और भी प्रचंड हो उठती, और उस जुल्म की ज्वाला से दुनिया को बचाने वाले मसीहा के रूप में मुझे सामने आना ही पड़ता। कभी-कभी लगता जैसे मैंने इसी के लिए अवतार लिया होगा।
बचपन में खेल से लेकर छोटी-छोटी बातों पर घनघोर पिटाई हुआ करती। घर के नाम पर बस एक कच्चा कमरा था, जिसमें माताश्री हर दोपहर को खर्राटेदार विश्राम किया करती। पता नहीं क्यूँ पर बिना 'शनिवार राति' का विचार किए, यहाँ तक कि बिना किसी से प्यार किए, हमें रोजाना नींद नहीं आती थी। जब कभी हमारी महफ़िल सजने का दुस्साहस करने को होती हम कूट दिए जाते। चुपचाप खेलने के लिए चोर, सिपाही, राजा, मंत्री जैसी पर्ची छाप ली जाती पर न जाने किसी की एक हंसी हमें अनेक आँसू दे जाती। लग रहा है जैसे स्टोरी में करुण रस अधिक घुल रहा है। चलिए कुछ और सुनिए। एक बार पड़ोस के बनियों के घर पर एक कन्या पधारी। आई थिंक कन्या का प्रसंग आते ही आप सब की बांछे खिल गई होंगी ? और कइयों की मुस्कान तो शिल्पा शेट्टी की तरह कानों तक भी जा पहुंची होगी?  हैं जी ? बिल्कुल उसी तरह पप्पी-राजू की भी खिल गई थी, मेरी भी खिली थी पर उन सब से कम। एक्चुअली जो मुझे वास्तव में जानते हैं वो ये भी जानते हैं कि भले ही यहाँ मेरी छवि एक मुँहफट, बहिर्मुखी, किसी से कुछ भी कह देने वाले इंसान की हो, जो कन्याओं से भी कुछ भी कहने में संकोच नहीं करता पर हकीकत में कन्याओं से बात करते हुए मेरी फटती है। अब भी फटती तो तब न फटने के सवाल ही नहीं था। आखिर 10-12 साल में कोई इतना भी तोप नहीं हो जाता।
राजू मेरा हमउम्र है तो पप्पी मुझसे 2 साल बड़ा। मैं बताना भूल गया कि उनके ताया जी का एक बेटा 'छोटू' भी आया हुआ था। कन्या के पधारने की सूचना पप्पी लाया था, वही सबसे अधिक उद्विग्न भी हो रहा था। बनियों की लड़की हमारे साथ रोज खेलती थी। उस दिन वो किसी ओर खेल की भी योजना बनाने लगे। मैं बहुत डर रहा था, 'पर न जाने क्यों जानबूझकर भी चुप था'। धीरे-धीरे शाम गहराने लगी। बनियों की लड़की आज अपनी 'उस' कजिन को साथ लेकर खेलने आई थी। सब बच्चे यहाँ वहाँ गली में खेल रहे थे,जब काफी अंधेरा हो गया तो पप्पी ने छुप्पम-छुपाई का प्रस्ताव रखा जिसे सबने खुशी-खुशी मान लिया। मैंने कहा कि मैं बारी दूँगा, आप सब छुपो। घर के पास एक रेहड़ी खड़ी थी एक कन्या, राजू और छोटू उसके पीछे छुप गए। पप्पी दूसरी कन्या के साथ पास के खंडहर घर के कमरे में छुप गया। मैं गिन रहा था 1, 2, 3, 4.......20,21, आवाज़ दे रहा था ...आ जाऊं...पर जा नहीं रहा था, अब याद नहीं आ रहा, शायद ये भी किसी 'योजना' का भाग ही हो,.....50, 51, 52,.....आ जाऊं ? मैं आ जाऊँ कहते कहते उन्हें ढूंढने के लिए आगे बढ़ा ही था कि लड़कियों ने हंगामा कर दिया। जोर-जोर से रोने लगी, मैं और भी डर गया। लड़कियों ने अपने घर की ओर दौड़ लगा दी और हमनें अपने घरों की ओर, पर दिल बुरी तरह अपराधबोध से भरा था। अनिष्ट की आशंका मन को घेरे हुए थी।
जो होना था, वही हुआ थोड़ी देर में पड़ोस की आंटी और वो दो रोती हुई कन्याएँ बाहर खड़ी थी। जोर शोर से चिल्लाने की आवाज़ें सुन कर गला बैठ गया। कन्याओं ने घर पर शिकायत कर दी थी कि खेल के बहाने उन्हें गलत तरीके से छुआ गया है। जैसे ही मम्मी को पता लगा कि 'उस' खेल का एक प्रतिभागी मैं भी था तो उन्होनें 'नरमे की एक गीली लकड़ी' से वहीं मुझे पीटना शुरू कर दिया। मैं रो रहा था, कह रहा था कि मैंने कुछ नहीं किया, पर पिटाई करना बंद नहीं हुआ। मौसी ने भी राजू-पप्पी को उसी लकड़ी से बहुत मारा, शायद 'छोटू' को भी 2-4 डंडे रसीद किए थे, हालांकि बाद में पप्पी ने बताया था कि असली मुजरिम ही वही था। मम्मी मुझे बेतहाशा पीट ही रही थी कि 'उस' लड़की ने कहा कि आंटी जी ये उनमें नहीं था। इसने कुछ नहीं किया। पर तब तक नरमे की गीली लकड़ी भी टूट चुकी थी। मम्मी दनदनाती हुई अंदर चली गई, मैं जब लड़खड़ाते हुए घर में गया तो देखा पता नहीं क्यूँ वो खुद रो रही थी। मैंने फिर से कहा कि मैंने सच में कुछ नहीं किया मम्मी, जवाब में उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और रोती रही। पीठ पर दिल्ली वाले सरदार जी की तरह कई लकीरें उभर आई थी जिनसे खून रिस रहा था, उन पर हल्दी का लेप भी उन्होंने ही लगाया। थोड़ी देर में वो आंटी जी भी हमारे घर आईं तो कहने लगी इस तरह नहीं मारना चाहिए था बच्चे को, दो-चार थप्पड़ लगा देते बस, और ये तो बेचारा उनमें से था भी नहीं। मम्मी ने रोते-रोते ही कहा कि अगर ये उनमें से होता तो आज इसे मार ही डालती मैं।
आज मैं उस घटना को याद करता हूँ तो सोचता हूँ कि क्या मैं वाकई उनमें से नहीं था ? शायद था। कई बार खुद से प्रश्न करता हूँ कि अगर बारी देने की जगह उनके साथ छुपा होता तो मैंने क्या किया होता ? उत्तर में ब्लेंक हो जाता हूँ। मैं क्या करता क्या नहीं ईश्वर जाने पर मम्मी ने कुछ गलत नहीं किया। वो सज़ा शायद बहुत जरूरी थी। हमारे अध्यापक हों,  माता-पिता हो, या बड़े-बुजुर्ग हों, मुझे नहीं लगता कि किसी को अपने बच्चे को पीट कर आनन्द आता होगा। उनके प्यार की तरह उनकी मार भी बहुत जरूरी है। वो हमें गलत होने से, गलतियाँ करने से रोक लेना चाहते हैं। उनके अनुभवों का प्रसाद अगर तमाचे खाकर भी मिले तो खाते रहिए।

#जयश्रीकृष्ण

✍️ अरुण

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🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...