🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️


एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते में आंध्रा के कुछ लोग मिले जो कह रहे थे कि तिरुपति बालाजी के दर्शनों के लिए बड़ी लम्बी वेटिंग चलती है और अगर आप वीआईपी दर्शनार्थी न हों तो कई दिनों तक नम्बर नहीं आता, यूँ की हौंसला ही तोड़ दिया था कम्बख्तों ने, लेकिन फिर सोचा कि जो भी हो ट्राई तो करेंगे ही। कोशिश करें तो क्या नहीं हो सकता वैसे भी मारवाड़ी हैं हम, क्या पता कोई जुगाड़ लग जाए।

तिरुपति पहुंचे तो एक थंगबली ने बताया कि बालाजी के दर्शनों के लिए पहाड़ी के ऊपर तिरुमाला जाना पड़ेगा जो वहाँ से लगभग 20 किमी की दूरी पर है। थंगबली ने ये बताते बताते वही खड़ी बसों की ओर इशारा भी कर दिया। थंगबली काला था पर मुझे देवदूत लग रहा था, मन ही मन उसे प्रणाम किया और बस में बैठ गया । अब मैं बैठ तो गया था पर साथ ही मुझे भोत सारा दुःख भी हुआ, इसलिए नहीं कि 20 किमी की यात्रा और करनी पड़ी बल्कि इसलिए क्योंकि 20 रुपए का अतिरिक्त खर्चा हो गया था। गोल-गोल घुमावदार मोड़ों वाले 20 किमी पार कर तिरुमाला पहुंचा तो एक बार फिर से भयंकर दुःख हुआ, यूँ कि पहले वाले से भी भोत ज्यादा वाला, जब पता लगा कि देवस्थान विभाग की बस से मैं यहाँ फोकट में भी आ सकता था। ख़ैर, मुझे उस देवदूत थंगबली की याद आई, इस बार उसकी शक्ल अलिफ लैला के जिन्न से मिलती जुलती लगी, मैंने मन ही मन उसे गाली के पुष्पों से श्रद्धाजंलि अर्पित की और फिर भूल गया।

कहते हैं कि तिरुमाला में लाखों लोग रोजाना भगवान के दर्शन करने आते हैं पर वहाँ की चाक चौबंद सफाई व्यवस्था देख कर मा बदौलत को बहुत प्रसन्नता हुई। मन हुआ कि गले से हीरों का हार तोड़ कर इन सफाई कर्मियों को दे दूँ, कहूँ की ले कर ऐश। पर गले पर हाथ फेरा तो केवल थोड़ी सी मैल ही उतरी। गर्दन झटक कर सोचा छोड़ यार आगे देखते हैं।

बड़े बड़े हॉल बनरे थे, भीतर हजारों की भीड़ वाली सर्पिल लाइन्स बनी थीं। शानदार व्यवस्था थी, भीड़ के लिए टीवी लगे थे लोग चुपचाप आराम से अपनी लाइन में लगे धीमे धीमे आगे बढ़ते जा रहे थे। किसी से पूछा तो उसने बोला कि भैये यही तो लाइन चलरी भगवान वेंकटेश्वर के दर्शनों के लिए। आयं अब ये भगवान वेंकटेश्वर कौन हैं ? बालाजी यहाँ से कब शिफ्ट हुए ? और इस भीड़ में तो 3-4 साल नम्बर नहीं आएगा और मेरा तो कल ही एग्जाम भी है। दैट्स रियली नॉट फेयर ब्रो। मैं सोच ही रहा था कि उसने बताया कि इन्हीं को बालाजी भी कहते हैं और ये उत्तर भारत के ब्रह्मचारी बजरंग बली नहीं हैं। इनकी तो दो-दो भार्याएँ हैं।

मैंने फिर सोचा, ओहो नाइस नाइस। लेकिन अब इन भगवान जी का दर्शन कैसे हो ? लाइन में घालमेल कैसे किया जा सकता है ? लूपहोल ढूंढे जाएं। इस कशमकश के साथ यहाँ वहाँ भटकना शुरू कर दिया। एक जगह देखा तो 100-150 लोग एक लाइन में लगे थे। वो मारा पापड़ वाले को, बन गई बात, आ गई ताबे। इस लाइन में लग जाऊँ तो शाम तक दर्शन पक्का हो जाएंगे। कौन कहता है आसमान में छेद नहीं होता, पत्थर वत्थर ढूंढ के फेंक के मारो यारो।

आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, जाकर फटाफट लाइन में लग गया मैं तो , थोड़ी देर में मेरे पीछे लाइन में 50-60 लोग और भी जुड़ गए। ये सब भी मेरी तरह जुगाड़ू होंगे। खीखीखी। शराफत की इंतेहा क्या होती है कोई मुझे देखकर सहजता से समझ सकता था। चुपचाप लाइन में अपनी डिग्निटी मेंटेन किए धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा। मेरे जस्ट पीछे एक अधेड़ महिला खड़ी थी। उसकी शक्ल से ही लगा कि पक्का उसे हिंदी नहीं आती होगी। थोड़ी-थोड़ी देर में जब मैं पीछे मुड़ कर देखता तो वो मुस्कुरा देती, और बदले में मैं भी अपनी कातिल मुस्कान फेंक के मारता। इस मुस्कुराहटों के व्यापारिक सम्बन्ध को और प्रगाढ़ बनाते हम आगे बढ़ते रहे, पता ही न चला कि लाइन में खड़े कब 4 घण्टे बीत गए। अब बस 20-25 लोग ही मेरे आगे शेष थे, मन में भगवान जी के दर्शनों का उत्साह बल्लियों उछलने लगा, प्रेमातुर आँखे बस मुहोब्बत बरसाने के इशारे का इंतज़ार कर रहे थे कि तभी अचानक आसमान फट गया, तूफान आ गया, धरती कांपने लगी, दिशाएँ डोलने लगी। मुझे लगा कि मैं लड़खड़ा कर गिर जाऊंगा, या शायद धरती फटेगी और मैं उसी में समा जाऊंगा या हो सकता है कि कहीं उड़ वुड जाऊँ। एक्चुअली ये सब तब हुआ जब मैंने देखा कि इस लाइन में सभी बालों वाले जा रहे हैं पर रिटर्न केवल टकला पार्टीज का ही हो रहा। इवन महिलाएँ भी अपना सर हथेली जैसा करवा कर निकल रही थी। घनघोर आशंकित मन से डरते डरते थोड़ा आगे बढ़कर देखा तो पता लगा ये लाइन टकला करने की ही है। अंदर कुछ नाई दे दना दन लोगों के सर छील रहे थे।

मैंने भगवान को थैंक्यू बोला, थोड़ा देर से ही सही पर टकला होने से पहले ही आँखें खोल दी मेरी। लाइन से निकल कर वापस जाने लगा तो वो खूसट फिर मुस्काई बोली मन्नत पूरी नहीं करोगे ?

ओ तेरा सत्यानाश जाए, खूसट कहीं की पहले नहीं बोल सकती थी ? मन ही मन मैंने सोचा, फिर बिना कुछ कहे वहाँ से चला आया। शायद उसे लगा होगा कि इस बेचारे को हिंदी नहीं आती।

भूख से अंतड़िया बैठी जा रही थी। पता लगा कि उसके लिए भी लाइन है। उस लाइन में घुसने की 2 रुपए की टिकट लगती है, पर अपन ठहरे मारवाड़ी जो सर फोड़ दे नोट न फोड़े। बिना पैसे दिए लाइन में लग कर हॉल में घुसे, पेटभर कर गर्मागर्म चावल और सांभर भकोसा। चावलों की खुशबू और उनकी सफेदी के साथ सांभर के स्वाद की भी मन ही मन खूब तारीफ की, जोरदार डकार के साथ वापसी का विचार बना लिया। फिर कभी बुलाओगे तो जरूर आएंगे प्रभु, अभी एग्जाम के लिए जाना पड़ेगा। तिरुपति बप्पा मोरया।

#जयश्रीकृष्ण

✍️ अरुण

Rajpurohit-arun.blogspot.com

1 टिप्पणी:

  1. आज से पांच छह वर्ष पूर्व प्राथमिक शिक्षक संघ के बंगलोर अधिवेशन के क्रम में मुझे भी तिरुपति बालाजी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. श्री नागेन्द्र नाथ शर्मा जो संप्रति बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के महासचिव हैं के सान्निध्य में मुझे दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो सका. पता नहीं फिर कभी जीवन में अवसर मिले या न मिले.
    आपके लेखन ने यादों की उन कडियों को स्मृति पटल पर ला दिया.
    बहुत बहुत बधाई और अशेष शुभकामनाएँ.

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एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...