👀👀💌💌✍✍ आँखिन देखी, कागद लेखी ♠♠♠♠♠


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5 वीं कक्षा का छात्र मैं ,बहुत घबराया हुआ हूँ, बेड़ा गर्क हो बल्लू का, अरे बल्लू मेरा दोस्त, बलकरण, साला खुद तो कुछ न आने का बहाना कर के कन्नी काट गया, चलो खुद को बचाया सो बचाया पर मेरा नाम क्यों लिखवाया ? जीवन सर से बोला, 'सर सर अरुण को शर्म आती है, पर वो खुद गाना चाहता है'। 

चलो ठीक है, गाना गाने का मन होता है पर डर भी तो लगता है स्टेज से, इतनी सारे लोगों के सामने गाना तो छोडो सीधा भी खड़ा रह सकूँगा ये भी पक्का नहीं हैं। मैं तो उस घड़ी को कोस रहा हूँ जब इस मनहूस बल्लू के बच्चे को जोश जोश में गाना सुना दिया। कमबख्त तारीफ कर रहा था तब तो अच्छा लग रहा था, पर ये तारीफ ये सब रंग दिखाने वाली है ,पता न था।

स्वतन्त्रता दिवस है, सब बच्चे खुश हैं मुझे छोड़कर, यूँ दुःख जैसा तो मुझे भी कुछ नहीं पर आज स्टेज से मेरा नाम बोला जाएगा तो कैसे रियेक्ट करूँगा, अँगूर के सामने तरबूज जितना बड़ा सवाल था। सब बच्चे स्कूल ड्रेस में हैं सफेद शर्ट-ग्रे कलर की पेंट, लड़कियां सफेद सलवार कमीज पहने हैं, कौन किस स्कूल का पढ़ेसरी है आज पहचानना मुश्किल नही, ये 'मालवीय पब्लिक स्कूल' की  ड्रेस है सब जानते हैं, मैंने भी ड्रेस पहनी हैं पर पेंट की जगह हाफ पेंट पहनी है, पापा से बोला था फुल पेंट दिलवाने को पर पापा बोले अगले साल दिलवाएंगे, पता नही ये अगला साल कब आता है 😊,  खुश ही हूँ मैं भी पर बल्लू के बच्चे तुझे मैं छोड़ूंगा नहीं। 

जब सुबह 6:30 पर आने को बोला था सर ने तो लगा था इतनी जल्दी कौन उठ पाएगा पर नींद तो 5 बजे ही खुल गई 6 बजे स्कूल में आ गया, देखा तो मुझसे भी ज्यादा जल्दी बहुतों को थी, बहुत सारे बच्चे आए हुए थे, घनश्याम सर कितने अच्छे हैं न, कभी नही मारते, आज तो गुलाब का फूल भी दिया मुझे 😊। राजीव सर स्टेज लगवा रहे हैं, मन किया उनको बोलूँ कि सर आप मेरा नाम काट दो, पर क्या करूँ डर लगता है सर से कुछ भी कहने से। इस बार साउंड सिस्टम लगा है माइक में बोला जा रहा है, 'हेल्लो हेल्लो माइक चैक, हेल्लो वन टू थ्री', तो क्या मुझे भी इसी में बोलना पड़ेगा, यार मैं कौनसा लता मंगेशकर हूँ, आज बेज्जती होने वाली है पक्का, बल्लू तेरा बेडा गर्क हो।

अतिथि बैठ चुके हैं, आठवीं की लड़कियाँ जन गण मन बोल रही, सब सीधे खड़े हैं मैं भी,पता नही क्यूँ पर खड़ा हूँ सीधा। बस घबराहट बढ़ रही है पल पल । ओह ये क्या?  सर तो रवि स्टूडियो वाले को भी लाए हैं, मतलब आज इज्जत की नीलामी की खबर सिर्फ स्कूल तक नहीं उसकी दीवारों से बाहर तक जाएगी। बल्लू तेरा बेड़ा गर्क, तू तो मर ही जा कुत्ते।

अतिथियों का स्वागत हो रहा है, 'आप आए यहाँ किया है करम, स्वागतम् स्वागतम्, स्वागतम् स्वागतम्।' तालियाँ बज रही है, जब मैं जाऊंगा तो क्या होगा, तालियाँ बजेंगी ? नहीं सब चिढ़ाएंगे 😢, मेरा क्या होगा भगवान ? कहाँ फस गया मैं। अच्छा अगर मैं नाम बुलाने पर भी न जाऊँ तो ? नही नही राजीव सर बहुत मारते हैं, यहीं सबके सामने पीटेंगे, बेज्जती तब भी हो जाएगी, दर्द होगा सो अलग।

"और अब एक छोटा सा बच्चा, अपनी प्यारी सी आवाज़ में आपको एक गीत सुनाने आ रहा है, तालियों से स्वागत कीजिए, कक्षा 5 से 'अरुण' का"

ओह तेरी दिल धकधक कर रहा था पहले, लगा धक्क् से वहीं बैठ गया, चुपचाप खड़ा हो गया, डर से चेहरा पीला पड़ रहा था, रौशनी मैम, हमारी क्लास टीचर, बहुत अच्छी हैं साईन्स पढ़ाती हैं, बहुत प्यार करती हैं सबसे, हाँ हाँ सबसे तो मुझसे भी, हमारी पंक्ति के पास खड़ी थी मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरा, मन किया वहीं लिपट जाऊँ कहूँ मैम, मुझे नही गाना, मैम ने हाथ पकड़ा और स्टेज तक ले गई। स्टेज पर देखा सैंकड़ो जोड़ी आँखे सिर्फ मुझे देख रही थी, कई चेहरे मुस्कुरा रहे थे, सब मुझ पर हँस रहे हैं, बल्लू तेरा बेड़ा गर्क, तेरा खून मेरे ही हाथों से होगा कुत्ते। आँखे बंद कर ली, सब जोर से हँसने लगे, मैंने आँखे बंद किये किये ही शुरू किया।

'नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ,
बोलो मेरे संग, जय हिन्द जय हिन्द जय हिन्द,
जय हिन्द जय हिन्द।।'

सब आवाज़ें बंद हो गई, जैसे म्यूट कर दिया हो रिमोट से, अचानक कन्धे पर हाथ रखा किसी ने, देखा घनश्याम सर थे अपने मुस्कुराते चेहरे के साथ, बोले आँखें बंद मत करो, बहुत बहुत अच्छा गाते हो तुम, इन सब से अच्छा, आँखों में आँखें डाल के गाओ।

डरते डरते फिर से शुरू कर दिया, इस बार आँखें खुली थी, पर सर के शब्द कानों में गूंज रहे थे।

'नया है जमाना मेरी नई है डगर,
देश को बनाऊंगा मशीनों का नगर,
मंजिल से पहले न लूंगा कभी दम,
आगे ही आगे बढ़ाऊंगा कदम,
दाहिने बाएं दाहिने बाएं धम्म।'

सबके चेहरे 'धम्मम' बोलते ही खिल उठे, मैं गाए जा रहा था, 
जय हिन्द जय हिन्द जय हिन्द 
जय हिन्द जय हिन्द।।

घनश्याम सर ने उठा लिया गोद में, बहुत प्यार किया, अतिथि जी ने 100/- दिए, बहुत खुश था मैं,

'ओये सुन बल्लू, आई लव यू बे'

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'70 वें स्वतंत्रता दिवस ते आए सारे सज्जना नूं शाला परिवार तख्तहज़ारा वलो लख लख वधाइयां'

जसमेल सर मंच संचालन कर रहे हैं, स्टेज के सामने स्कूल के वर्तमान और भूतपूर्व छात्र बैठे हैं, हर बार मैं करता हूँ मंच संचालन पर आज नहीं, मैं ही क्यूँ करूँ आखिर मुझमे भी कितना ईगो है सबको पता तो चले। 
पर मंच पर जाने का कीड़ा काट रहा है उसका क्या करूँ,  बख्तावर सिंह सरपंच ने झंडारोहण किया, वही जन गण मन, वही स्वागत और वही झंडा गीत। सब न जाने क्यूँ खुश हो रहे हैं बेवजह। कुलदीप जी को भी यही लगता है फालतू का टँटा है बस, हुंह।

10 वीं की लड़की सरस्वती ने 'वंदे मातरम्' गाया। क्या खूब गाया है जी, कुलदीप जी और मैं दोनों उसी की तारीफों के पुल बांध रहे हैं, चारो और तालियाँ बज रही हैं, पीछे से कुछ सीटियों की आवाज़ें, हिकारत भरी नजरों से पीछे देख कुलदीप जी बोले ये गाँव वाले बस......., आप समझ जाओ क्यूँ आते हैं।

प्रिंस, अच्छा नाचता है, बिल्कुल प्रोफेशनलस् की तरह, पर इसे अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देना चाहिए, एक बार तो लटक चुका दूसरी बार ब्रेक न लग जाए बेचारे के। 

एक के बाद एक डांस, आए ही जा रहे, कितना लम्बा प्रोग्राम है न, कुलदीप जी कह रहे। मैं स्टेज पर जसमेल जी की लिस्ट देख के आता हूँ।

अरे बाप रे, इतने सारे, इन सबमे तो अभी 2 घण्टे और लगेंगे। बहुत गर्मी है हवा भी नही चल रही, उमस हो रही, सब पसीने से तरबतर बैठे हैं, मेरे हाथो में लिस्ट थमा जसमेल जी नीचे टहल रहे हैं, दानदाताओं का नाम और आभार प्रकट कर रहा हूँ,

पंजाबी गिद्दा, छोटी छोटी बच्चियाँ कितनी क्यूट लगती है न नाचते हुए, पंजाबी भाषी गाँव के लोग चहक रहे हैं,

गतका पार्टी, अच्छा मार्शल आर्ट दिखाते हैं, स्टेज पर जगह थोड़ी कम है, वरना और अच्छा हो जाता।

7 वीं का सिद्धार्थ, पढ़ता नहीं बिल्कुल भी, पर नाच तो देखो, छोटी सी डांस मशीन है ये।

पिछले साल के टॉपर्स को इनाम वितरण हो गया।

यार ये जसमेल जी किधर गए, मोबाइल में स्क्रोल किया, एक गीत तो मैं भी गाऊंगा अब, किसी से नही पूछा, सीधे गाना शुरू

'भारत हमारी माँ है, माता का रूप प्यारा,
करना इसी की रक्षा, कर्त्तव्य है हमारा।'

सब मुझे आश्चर्य पर मुस्कुराते से देख रहे हैं, ये आज अरुण सर को क्या हुआ। 

रामस्वरूप सर ने 100/- प्रोत्साहन राशि दी, जसमेल सर ने अनाउंस किया, 

मिष्टान्न वितरित हुआ, सब ख़ुशी ख़ुशी घर जा रहे हैं।

चौथी क्लास के 2 बच्चे गाते जा रहे हैं, जय हिन्द जय हिन्द की सेना, मुझे मुस्कुरा कर देखते हैं,

"बल्लू, पता नही तू कहाँ है, पर वाकई आई लव यू बे"

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©अरुणिम यादें

#जयश्रीकृष्ण

Rajpurohit-arun.blogspot.com

👧👧👧👧👧 सही की हीरोइन ♠♠♠♠♠


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लक्ष्मी , बिहार के पटना के पास एक छोटे से गाँव की 14 वर्षीय लड़की, दो बहने और भी थी, पिता दारुखोर था शराब गटक कर बेसुध हो पड़ा रहता सो घर की हालत बिल्कुल वैसी ही थी जैसी ऐसी स्थितियों में हो जाया करती है, माँ लोगो के घर छोटा मोटा काम करती खाने का जुगाड़ हो जाता, पर इन सब विपरीत परिस्थितियों में लक्ष्मी पूरे घर का सारा काम करती , पिता और बहनों की देखभाल करती उनके साथ खेलती खिलखिलाती , जैसी भी थी खुश थी कभी किसी से कोई शिकवा कोई शिकायत नही, भगवान से भी नहीं।
एक दिन पिता उसे अपने साथ पटना के किसी बड़े से घर में ले गया, उसे बाहर लॉन में रुकने को बोला फिर कहा की वो अभी वापस आ रहा है। वो इंतज़ार करती रही पर वो नही आया, आया तो चिन्ना, बहुत मारा उसे चिन्ना ने, बहुत गालियाँ दी गन्दी गन्दी बोला उसने खरीदा है उसे 50 हजार में वो बड़े घर वाली औरत से, जिसके हाथ उसका बाप उसे 30 हजार में बेच गया था।
छोटी सी लड़की जिसने घर से बाहर कदम भी नही रखा अब बेचे जाने का मतलब खुद बिकने के बाद जान रही थी, चिन्ना उसे और बहुत सी लड़कियों को जंगलों के रास्ते हैदराबाद ले आया, पर हैदराबाद के रास्ते में ही रंगारेड्डी नाम के मोटे काले भद्दे आदमी ने उसकी गाड़ी रोकी, चिन्ना को बहुत डाँटा इतनी छोटी सी बच्ची को क्यूँ लाया बे, ये कोई धंधा करने लायक है? लक्ष्मी से बोला उसके साथ उसके घर रहे, रंगारेड्डी का घर बहुत बड़ा था, खूब खाने को मिला सोने को भी, कई बार डॉक्टर आता उसे इंजेक्शन देता, रंगारेड्डी उसे कुछ नही कहता। लक्ष्मी को लगा ये शक्ल से चाहे जैसा हो पर दिल का बुरा नहीं, अच्छा आदमी है।
एक शाम रंगारेड्डी जब घर आया, वो हाथ में मेहँदी लगा रही थी, अजीब सी शक्ल हो गई रंगारेड्डी की, लक्ष्मी को लगा शायद उसे उसका मेहँदी लगाना पसन्द नही आया, उसने माफ़ी मांगी कहा फिर नही लगाएगी, पर रंगारेड्डी उसे जबरदस्ती कमरे में ले गया। उसे पीटा, वो गिड़गिड़ाती रही ,माफ़ी मांगती रही। पर...............!!!
थोड़ी देर में निढाल हो थक कर रंगारेड्डी सो गया , लक्ष्मी जब बाहर आई उससे चला भी नही जा रहा था, रंगारेड्डी अच्छा आदमी नहीं, सब दर्द कर रहा था, खून बहकर पाँव तक आ गया था, उसका दुःख उसका दर्द समझने वाला कोई था भी तो नहीं बस रोते रोते सो गई।
अगले दिन चिन्ना आया, उसे धर्म विलास होस्टल ले गया, होस्टल जेल जैसा था चारो और लोहे की मजबूत जालियां लगी थी, अंदर एक और सरिता मिली, चिन्ना उसे वही छोड़ गया, थकान और दर्द से बुरा हाल था, जो खाने को दिया चुपचाप खा लिया, सो गई, जब उठी तो उसे एक जोड़ी कपड़े दिए सरिता ने ,बोली तैयार हो जा 'काम' करना है। वो अब काम का मतलब समझ रही थी, सरिता से कहा उसे छोड़ दो अब तक दर्द हो रहा कल से, सरिता बोली दिखाओ फिर देख कर बोली अरे कुछ नहीं है सूजन है बस, ये क्रीम लगा लो फिर कुछ नहीं होगा, लक्ष्मी रोई तो चुप कराने के लिए कसके तमाचे का प्रसाद मिला। नर्क मिलेगा तुमको सुनकर सरिता बोली अब भी हम लोग कहाँ हैं? 10 मिनट बाद एक आदमी को लिए उसके कोठरीनुमा कमरे के सामने सरिता थी, वो अब भी गिड़गिड़ा रही थी सरिता ने उसके कान में धीरे से कहा , 'तू जितना रोएगी चिल्लाएगी, इस हलकट को उतना ज्यादा मजा आएगा, क्यूँ इसे फोकट का मजा दे रही' , कमरा बंद हो गया सिसकियाँ खामोश।
एक दिन लक्ष्मी भाग गई वहाँ से , भाग कर सीधा पुलिस चौकी गई, रो रो कर अपना दर्द बताया, कहा चिन्ना को रंगारेड्डी को सरिता को, सबको पकड़ो, पर थोड़ी देर में चिन्ना वही आ गया, उसे अपने साथ उसी नरक में ले जाने के लिए। बोला मेरी पहुँच का अंदाज़ा हुआ, कोई चिड़िया नही उड़ सकती। पर लक्ष्मी बोली किसी दिन मैं जरूर भाग जाउंगी। स्वर्णा, उसकी रूम पार्टनर बोली, मत भागना यार अब से, जब भी कोई लड़की भागती है चिन्ना सरिता और उसकी रूम पार्टनर को जानवरों की तरह मारता है, कहकर अपने पेट और पीठ के निशान दिखाए। लक्ष्मी भी अब पसीज गई।
कभी एक कभी दो से लेकर 6-7 तक प्यासे लोग आते छोटे से कुँए से प्यास बुझा कर चले जाते। लक्ष्मी का शरीर उसकी आत्मा चीत्कार उठती पर सब आवाज़ें हमेशा उन गुमनाम अँधेरी कोठरियों में दब कर रह जाती। एक दिन चिन्ना उसे, स्वर्णा और कुछ और लड़कियों को किसी बूढ़े ठरकी सेठ के यहाँ ले गया, वो स्वर्णा के कहने पर चली आई थी, चिन्ना गेट के पास रुक गया, सब ठरकी को बहला रही थी, नाच कर गा कर और........! लक्ष्मी बाथरूम का बहाना बना कर फिर से भाग गई पर चिन्ना उसे फिर से पकड़ लाया। लोहे की कीलों वाले डंडे से उसके पैर लहूलुहान कर दिए, लक्ष्मी मरणासन्न थी। चिन्ना बोला इसे कोई दवा नही देनी, 10-15 जितने कस्टमर आएं इस पर चढ़ाओ 😢
स्वर्णा और सरिता दोनों ने उसकी देखभाल की। पर चिन्ना नही माना उठने की हालत भी नहीं थी, पर रोज उसे नोचने के लिए भूखे भेड़िए ढूंढ लाता, और ढूंढ भी क्या लाता , खुद ब खुद आ जाते , कमसिन रोती गिड़गिड़ाती लड़की से एक्स्ट्रा सुख पाने। एक दिन एक और आया 'मोहन', कच्ची कली चाहिए थी उसको भी, हर कीमत पर, तुरन्त, लक्ष्मी के कमरे में गया थोड़ी देर रुका और वापस चला आया बिना कुछ कहे। लक्ष्मी ने क्या और क्यूँ पर विचार करना बहुत पहले छोड़ दिया था, सो अब भी नही किया। फिर दो दिन बाद धर्म विलास पर पुलिस रेड पड़ गई, रंगारेड्डी बिलकुल कॉन्फिडेंट था और चिन्ना बेफिक्र, हमेशा की तरह, कि कोई कुछ नहीं उखाड़ सकता, ये आत्मविश्वास ये बेफिक्री अपने अनुभव से कमाई थी । मोहन ने लक्ष्मी के कमरे से पेन कैमरा निकाल लिया। चिन्ना रंगारेड्डी को गिरफ्तार किया पर जमानत हो गई जेल जाने से पहले ही, लक्ष्मी स्वर्णा सरिता और बाकि लड़कियों को मोहन जी अपने एनजीओ ले आए, लक्ष्मी का इलाज़ होने लगा।
पर धीरे धीरे सब लड़कियां, हाँ स्वर्णा और सरिता भी खुद अपनी मर्जी से उसी गटर के गर्त में लौट गई, कारण? क्योंकी उन्हें न समाज स्वीकार कर रहा था और न उनका कोई परिवार, न उनसे दोस्ती रखना चाहता था न कोई और सम्बन्ध, बेचारी करें भी तो क्या करें सिर्फ टोकरी बनाते रहने से तो पेट भी नही भरता। लेकिन लक्ष्मी नहीं लौटी उसे सज़ा दिलवानी थी हर एक उस शक्श को जो उसका गुनहगार था। मोहन जी की सहायता से कोर्ट गई, गंदे गंदे सवालों की जिल्लत झेली पर डटी रही, कोर्ट में खुद उसी के चरित्र पर उँगलियाँ उठाते रहे लोग पर वो घबराई नहीं, मोहन जी ने कहा अंतिम विकल्प वो वीडियो ही है, वीडियो प्ले हुआ, कोर्ट में उपस्थित हर एक जिसने न जाने कितनी बार ऐसे वीडियो चटखारे ले कर देखे होंगे, आज उन में से हर एक की आँख नम थी, जज की भी। एक जिन्दा लड़की को मुर्दा जैसी बना कर को गिद्धों की तरह नोचे जाते देख कौन खुश होता भला ?
पीटा एक्ट के तहत बहुत कम कार्यवाही हुई है इस देश में, लक्ष्मी पहली थी जिसके मामले में आँध्रप्रदेश में पहली बार कार्यवाही हुई, 10-10 साल कैद और 2 लाख का जुर्माना, लक्ष्मी का पिता भी 2012 से जेल में है, और लक्ष्मी अब मोहन जी जैसे समाजसेवियों की मदद अपनी बहनों का सहारा बनी है, उन्हें किसी चिन्ना से बचाने के लिए।
‪#‎नागेश_कुकुनूर‬ द्वारा सत्य घटना पर बनी फ़िल्म ‪#‎लक्ष्मी‬ पर आधारित
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मित्रों, जब ये फ़िल्म मैंने देखी तो न जाने क्यूँ एक अज्ञात अपराधबोध से भर गया। क्यूँ हम लोग स्त्री के साथ ऐसा घृणित व्यवहार करते हैं ? 'काम' भले ही संसार और उसकी विविध सृजनाओं की धुरी रहा हो पर वासना के वशीभूत होकर हम स्वयं का मानव होना क्यों भूल जाते हैं। लक्ष्मी के शरीर पर लगे हर घाव का दर्द अपने अन्तस् की गहराई तक अनुभव हुआ, न जाने कितनी बार आँसू बहे पर लगा उस गुड़िया के दर्द के आगे तो ये सब कुछ भी नहीं, जिसने बस मासूम होने की इतनी कड़ी सज़ा झेली।
'वैश्या' बहुत घृणित अर्थों में इस शब्द का प्रयोग करते हैं ना हम लोग ? आइंदा कभी ये शब्द बोलें तो कृपया विचार कर लेवें की कहीं किसी वैश्या को बनाने में हम या हमारी मानसिकता तो दोषी नही ?
©अरुण

🍪🍪🍪🍪🍪 मीठा लड्डू ♠♠♠♠♠

मैं एक मीठा लड्डू हूँ, शादी का,
सब कहते है पछताऐंगे, तो खाकर,
आप खाओगे मुझे ?
बोलो ना कब खाओगे ?
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भावनाओं के मावे से बनाया गया हूँ,
परंपराओं की आँच पर पकाया गया हूँ,
किसी के प्यार की मिठास भी है मुझमें,
आप खाओगे
मुझे?
बोलो ना कब खाओगे ?
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अंतरंग साथ के ड्राईफ्रूट से भरा हूँ,
सोंधी सी नोक-झोंक की महक मी घुली है,
अगाध विश्वास का
जायका भी है मुझमें,
आप खाओगे मुझे ?
बोलो ना कब खाओगे ?
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पर ठहरिये ! मुझे चबाने के लिए समर्पण के दांत चाहिए,
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मुझे पचाने के लिए
साफ दिल का हाजमोला चाहिए,
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अगर नहीं हैं,तो क्या खाकर थूक दोगे?
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पचा पाओगे मुझे?
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मैं एक मीठा लड्डू हूँ
,शादी का,
सब कहते हैं पछताऐंगे, तो खाकर,
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आप क्या करोगे ? खाओगे या पछताओगे ?

#जयश्रीकृष्ण 

🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...