👧👧👧👧👧 सही की हीरोइन ♠♠♠♠♠


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लक्ष्मी , बिहार के पटना के पास एक छोटे से गाँव की 14 वर्षीय लड़की, दो बहने और भी थी, पिता दारुखोर था शराब गटक कर बेसुध हो पड़ा रहता सो घर की हालत बिल्कुल वैसी ही थी जैसी ऐसी स्थितियों में हो जाया करती है, माँ लोगो के घर छोटा मोटा काम करती खाने का जुगाड़ हो जाता, पर इन सब विपरीत परिस्थितियों में लक्ष्मी पूरे घर का सारा काम करती , पिता और बहनों की देखभाल करती उनके साथ खेलती खिलखिलाती , जैसी भी थी खुश थी कभी किसी से कोई शिकवा कोई शिकायत नही, भगवान से भी नहीं।
एक दिन पिता उसे अपने साथ पटना के किसी बड़े से घर में ले गया, उसे बाहर लॉन में रुकने को बोला फिर कहा की वो अभी वापस आ रहा है। वो इंतज़ार करती रही पर वो नही आया, आया तो चिन्ना, बहुत मारा उसे चिन्ना ने, बहुत गालियाँ दी गन्दी गन्दी बोला उसने खरीदा है उसे 50 हजार में वो बड़े घर वाली औरत से, जिसके हाथ उसका बाप उसे 30 हजार में बेच गया था।
छोटी सी लड़की जिसने घर से बाहर कदम भी नही रखा अब बेचे जाने का मतलब खुद बिकने के बाद जान रही थी, चिन्ना उसे और बहुत सी लड़कियों को जंगलों के रास्ते हैदराबाद ले आया, पर हैदराबाद के रास्ते में ही रंगारेड्डी नाम के मोटे काले भद्दे आदमी ने उसकी गाड़ी रोकी, चिन्ना को बहुत डाँटा इतनी छोटी सी बच्ची को क्यूँ लाया बे, ये कोई धंधा करने लायक है? लक्ष्मी से बोला उसके साथ उसके घर रहे, रंगारेड्डी का घर बहुत बड़ा था, खूब खाने को मिला सोने को भी, कई बार डॉक्टर आता उसे इंजेक्शन देता, रंगारेड्डी उसे कुछ नही कहता। लक्ष्मी को लगा ये शक्ल से चाहे जैसा हो पर दिल का बुरा नहीं, अच्छा आदमी है।
एक शाम रंगारेड्डी जब घर आया, वो हाथ में मेहँदी लगा रही थी, अजीब सी शक्ल हो गई रंगारेड्डी की, लक्ष्मी को लगा शायद उसे उसका मेहँदी लगाना पसन्द नही आया, उसने माफ़ी मांगी कहा फिर नही लगाएगी, पर रंगारेड्डी उसे जबरदस्ती कमरे में ले गया। उसे पीटा, वो गिड़गिड़ाती रही ,माफ़ी मांगती रही। पर...............!!!
थोड़ी देर में निढाल हो थक कर रंगारेड्डी सो गया , लक्ष्मी जब बाहर आई उससे चला भी नही जा रहा था, रंगारेड्डी अच्छा आदमी नहीं, सब दर्द कर रहा था, खून बहकर पाँव तक आ गया था, उसका दुःख उसका दर्द समझने वाला कोई था भी तो नहीं बस रोते रोते सो गई।
अगले दिन चिन्ना आया, उसे धर्म विलास होस्टल ले गया, होस्टल जेल जैसा था चारो और लोहे की मजबूत जालियां लगी थी, अंदर एक और सरिता मिली, चिन्ना उसे वही छोड़ गया, थकान और दर्द से बुरा हाल था, जो खाने को दिया चुपचाप खा लिया, सो गई, जब उठी तो उसे एक जोड़ी कपड़े दिए सरिता ने ,बोली तैयार हो जा 'काम' करना है। वो अब काम का मतलब समझ रही थी, सरिता से कहा उसे छोड़ दो अब तक दर्द हो रहा कल से, सरिता बोली दिखाओ फिर देख कर बोली अरे कुछ नहीं है सूजन है बस, ये क्रीम लगा लो फिर कुछ नहीं होगा, लक्ष्मी रोई तो चुप कराने के लिए कसके तमाचे का प्रसाद मिला। नर्क मिलेगा तुमको सुनकर सरिता बोली अब भी हम लोग कहाँ हैं? 10 मिनट बाद एक आदमी को लिए उसके कोठरीनुमा कमरे के सामने सरिता थी, वो अब भी गिड़गिड़ा रही थी सरिता ने उसके कान में धीरे से कहा , 'तू जितना रोएगी चिल्लाएगी, इस हलकट को उतना ज्यादा मजा आएगा, क्यूँ इसे फोकट का मजा दे रही' , कमरा बंद हो गया सिसकियाँ खामोश।
एक दिन लक्ष्मी भाग गई वहाँ से , भाग कर सीधा पुलिस चौकी गई, रो रो कर अपना दर्द बताया, कहा चिन्ना को रंगारेड्डी को सरिता को, सबको पकड़ो, पर थोड़ी देर में चिन्ना वही आ गया, उसे अपने साथ उसी नरक में ले जाने के लिए। बोला मेरी पहुँच का अंदाज़ा हुआ, कोई चिड़िया नही उड़ सकती। पर लक्ष्मी बोली किसी दिन मैं जरूर भाग जाउंगी। स्वर्णा, उसकी रूम पार्टनर बोली, मत भागना यार अब से, जब भी कोई लड़की भागती है चिन्ना सरिता और उसकी रूम पार्टनर को जानवरों की तरह मारता है, कहकर अपने पेट और पीठ के निशान दिखाए। लक्ष्मी भी अब पसीज गई।
कभी एक कभी दो से लेकर 6-7 तक प्यासे लोग आते छोटे से कुँए से प्यास बुझा कर चले जाते। लक्ष्मी का शरीर उसकी आत्मा चीत्कार उठती पर सब आवाज़ें हमेशा उन गुमनाम अँधेरी कोठरियों में दब कर रह जाती। एक दिन चिन्ना उसे, स्वर्णा और कुछ और लड़कियों को किसी बूढ़े ठरकी सेठ के यहाँ ले गया, वो स्वर्णा के कहने पर चली आई थी, चिन्ना गेट के पास रुक गया, सब ठरकी को बहला रही थी, नाच कर गा कर और........! लक्ष्मी बाथरूम का बहाना बना कर फिर से भाग गई पर चिन्ना उसे फिर से पकड़ लाया। लोहे की कीलों वाले डंडे से उसके पैर लहूलुहान कर दिए, लक्ष्मी मरणासन्न थी। चिन्ना बोला इसे कोई दवा नही देनी, 10-15 जितने कस्टमर आएं इस पर चढ़ाओ 😢
स्वर्णा और सरिता दोनों ने उसकी देखभाल की। पर चिन्ना नही माना उठने की हालत भी नहीं थी, पर रोज उसे नोचने के लिए भूखे भेड़िए ढूंढ लाता, और ढूंढ भी क्या लाता , खुद ब खुद आ जाते , कमसिन रोती गिड़गिड़ाती लड़की से एक्स्ट्रा सुख पाने। एक दिन एक और आया 'मोहन', कच्ची कली चाहिए थी उसको भी, हर कीमत पर, तुरन्त, लक्ष्मी के कमरे में गया थोड़ी देर रुका और वापस चला आया बिना कुछ कहे। लक्ष्मी ने क्या और क्यूँ पर विचार करना बहुत पहले छोड़ दिया था, सो अब भी नही किया। फिर दो दिन बाद धर्म विलास पर पुलिस रेड पड़ गई, रंगारेड्डी बिलकुल कॉन्फिडेंट था और चिन्ना बेफिक्र, हमेशा की तरह, कि कोई कुछ नहीं उखाड़ सकता, ये आत्मविश्वास ये बेफिक्री अपने अनुभव से कमाई थी । मोहन ने लक्ष्मी के कमरे से पेन कैमरा निकाल लिया। चिन्ना रंगारेड्डी को गिरफ्तार किया पर जमानत हो गई जेल जाने से पहले ही, लक्ष्मी स्वर्णा सरिता और बाकि लड़कियों को मोहन जी अपने एनजीओ ले आए, लक्ष्मी का इलाज़ होने लगा।
पर धीरे धीरे सब लड़कियां, हाँ स्वर्णा और सरिता भी खुद अपनी मर्जी से उसी गटर के गर्त में लौट गई, कारण? क्योंकी उन्हें न समाज स्वीकार कर रहा था और न उनका कोई परिवार, न उनसे दोस्ती रखना चाहता था न कोई और सम्बन्ध, बेचारी करें भी तो क्या करें सिर्फ टोकरी बनाते रहने से तो पेट भी नही भरता। लेकिन लक्ष्मी नहीं लौटी उसे सज़ा दिलवानी थी हर एक उस शक्श को जो उसका गुनहगार था। मोहन जी की सहायता से कोर्ट गई, गंदे गंदे सवालों की जिल्लत झेली पर डटी रही, कोर्ट में खुद उसी के चरित्र पर उँगलियाँ उठाते रहे लोग पर वो घबराई नहीं, मोहन जी ने कहा अंतिम विकल्प वो वीडियो ही है, वीडियो प्ले हुआ, कोर्ट में उपस्थित हर एक जिसने न जाने कितनी बार ऐसे वीडियो चटखारे ले कर देखे होंगे, आज उन में से हर एक की आँख नम थी, जज की भी। एक जिन्दा लड़की को मुर्दा जैसी बना कर को गिद्धों की तरह नोचे जाते देख कौन खुश होता भला ?
पीटा एक्ट के तहत बहुत कम कार्यवाही हुई है इस देश में, लक्ष्मी पहली थी जिसके मामले में आँध्रप्रदेश में पहली बार कार्यवाही हुई, 10-10 साल कैद और 2 लाख का जुर्माना, लक्ष्मी का पिता भी 2012 से जेल में है, और लक्ष्मी अब मोहन जी जैसे समाजसेवियों की मदद अपनी बहनों का सहारा बनी है, उन्हें किसी चिन्ना से बचाने के लिए।
‪#‎नागेश_कुकुनूर‬ द्वारा सत्य घटना पर बनी फ़िल्म ‪#‎लक्ष्मी‬ पर आधारित
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मित्रों, जब ये फ़िल्म मैंने देखी तो न जाने क्यूँ एक अज्ञात अपराधबोध से भर गया। क्यूँ हम लोग स्त्री के साथ ऐसा घृणित व्यवहार करते हैं ? 'काम' भले ही संसार और उसकी विविध सृजनाओं की धुरी रहा हो पर वासना के वशीभूत होकर हम स्वयं का मानव होना क्यों भूल जाते हैं। लक्ष्मी के शरीर पर लगे हर घाव का दर्द अपने अन्तस् की गहराई तक अनुभव हुआ, न जाने कितनी बार आँसू बहे पर लगा उस गुड़िया के दर्द के आगे तो ये सब कुछ भी नहीं, जिसने बस मासूम होने की इतनी कड़ी सज़ा झेली।
'वैश्या' बहुत घृणित अर्थों में इस शब्द का प्रयोग करते हैं ना हम लोग ? आइंदा कभी ये शब्द बोलें तो कृपया विचार कर लेवें की कहीं किसी वैश्या को बनाने में हम या हमारी मानसिकता तो दोषी नही ?
©अरुण

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