🌛🌝🌙🌜🌚 मेरा चाँद मुझे आया है नज़र ♠♠♠♠♠


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'औरत होना ही गुनाह है और किसी की पत्नी होना उससे भी बड़ा गुनाह, सुबह से भूखी बैठी हूँ, इन्हें देखो कोई फ़िक्र नही। खुद को खाने का एक निवाला तक नसीब न हो तो पता लगे, खुद तो खा पी कर मौज उड़ा रहे होंगे सुबह से, यूँ नही की कम से कम आज तो जल्दी आ जाते। हुँह बैठे होंगे वही ऑफिस में दोस्तों के साथ गप्पे लड़ाते हुए, पता नही कौन दोस्त है, दोस्त है या दोस्तनियाँ किसे पता ? प्यार वयार सब ढकोसला है , सब झूठी बातें है, और मुझे देखो सुबह से एक बूंद पानी की भी नही पी। गला सूख रहा है, पर मेरी किसे परवाह ?'

' पहला करवा चौथ है मेरा, कितने अरमान होते है हर लड़की के,मेरे भी थे, सोचा था ससुराल में जा कर अपना हर वो ख्वाब पूरा करूँगी, जो मायके में रह कर पूरा नहीं कर पाई, हुँह किसे पता था नसीब ही खराब है मेरा। जन्म दिन पर भी सिर्फ एक टुच्चा सा केक काटा कोई गिफ्ट विफ्ट नही, गिफ्ट तो छोडो कोई मूवी तक नहीं दिखाई। हर चीज में रोना शुरू हो जाता है इनका। बोलेंगे 'गिफ्ट कहाँ से लाऊँ, घर की हालत तो तुम्हे पता ही है, समझा करो ना', 'सिनेमा यहाँ है कहाँ ,छोटा शहर है ना, कभी बड़े शहर चलेंगे तो जरूर ले चलूंगा बाबा, आई लव यू जान'।

'हुँह लव माय फुट, घर के लिए एक फ्री की नोकरानी चाहिए थी सो ले आए, शादी का नाम देकर। '

'फोन भी ऑफ , हद है, गुस्सा तो इतना आ रहा है ना कि क्या बताऊँ, ठीक है रखो फोन बंद, मुझे आपसे क्या करवाना है, आप तो चाहते ही यही हो मैं मर जाऊँ घुट घुट के। '

'चाँद भी नही दिख रहा अभी, कैसे दिखेगा ? अख़बार में भी तो आया था कि शाम 8:40 को चन्द्र दर्शन होंगे। 8:40 लिखा है तो 9 बजे ही मान के चलो, चाँद भी तो आज बहुत मनुहार के बाद निकलता है। पता नही ये कहाँ रह गए, आ जाओ न प्लीज, मुझे कोई गिफ्ट नही चाहिए, कुछ भी नही, बस आप आ जाओ। 😢😢'

ट्रिन ट्रिन , ट्रिन ट्रिन, ट्रिन ट्रिन

'हेल्लो, जी  नमस्ते भाभी जी, मैं अतुल बोल रहा हूँ , भैया का एक्सीडेंट हो गया है, आप जुबिन हॉस्पिटल आ जाओ जल्दी, प्लीज'

हड़बड़ाहट, बदहवासी, और प्रार्थना

'आइए भाभी, भैया यहां हैं, बेहोश हैं अभी'

'क्या हुआ इन्हें, कैसे हुआ'😢😢

' आपके लिए ये कान के बुँदे लाने गए थे, सुबह से रट लगा रखी थी इनके लिए, 2 महीने से ओवर टाइम भी कर रहे थे, भाभी भैया आपसे बहुत प्यार करते हैं ना ? वरना आजकल तो औरते भी अपने पति के लिए व्रत नही रखती, भैया तो सुबह से भूखे प्यासे थे, बोल भी रहे थे की चक्कर आ रहे हैं , जेवेलर्स शॉप के बाहर निकल कर जल्दी से आप तक पहुंचना चाह रहे थे , ऑटो में चढ़ते वक़्त एक कार की टक्कर लग गई।'
करुणा सन्न थी, आँसू अविरल बह रहे थे, उसके गर्म आँसू लगातार अनुज  के हाथ पर गिर रहे थे, सहसा अनुज ने दवा के नशे से भारी और बोझिल उनींदी आँखे खोल ली। तभी करुणा के फोन पर रिंग बज उठी
"मेरा चाँद मुझे आया है नज़र".
#जयश्रीकृष्ण
©अरुण

🚌🌚⛄🔥🍵🚌 वन्स इन ए कोल्ड नाईट ♠♠♠♠♠


जयपुर जाना है, अरे अपना वही एक काम और किसलिए , एग्जाम है यार। स्टूडेंट लाइफ में ज्यादा लगेज नही रखने का , ढोने का टँटा तो होता ही है एग्जाम सेंटर वाला मचमच करता है सो अलग, सब पता है मुझे, मैं तो बस से जा रहा हूँ ना तो लगेज वगेज का कोई झंझट ही नही। आज शाम की बस है , कल सुबह जयपुर , 9 से 10:30 एग्जाम, फिर शाम की बस से वापस, नेक्स्ट सुबह होम स्वीट होम, सब प्रोग्राम फिक्स है अपना। 😊 मारवाड़ी कभी रिस्क नही लेते।

शाम हो गई, बस अड्डे पर चहल पहल है काफी, सबको कोई न कोई सी ऑफ करने आया है मुझे कोई भी नही, अब अपना तो रोज का काम है कभी इधर -कभी उधर तो यूँ कि घरवाले भी सी ऑफ के पंगे से ऑफ हो गए मने पक गए हैं सो अब कोई नहीं आता छोड़ने । जेब में हाथ डाले टहल रहे हैं हम भी, 'आज मौसम बड़ा बेईमान है बड़ा' गाया जा रहा है मन ही मन धरमिंदर की माफ़िक, काश कोई हमें भी मजबूर कर देती तो मन में नहीं खुल कर गाते, मन ही मन में ट्रैक चेंज , 'मुझसे मुहब्बत का इजहार करती, काश कोई लड़की मुझे प्यार करती', ओहो पता है मुझे कि जनवरी है तो क्या हुआ, सब इंतेज़ाम कर लिए हैं, इधर आओ ये देखो अंदर 2 बनियान पहनी है उनके ऊपर 'रूपा' की इन्नर बोले तो गर्मा गर्म, फिर शर्ट देन ये रेग्जीन वाला कोट, सर्दी की माँ की आँख में सुरमा। अब बोलो क्या बोलते हो , हमेशा याद रखने का ,क्या, मारवाड़ी कभी रिस्क नही लेता। खी खी खी 😊😊

कल्पना ट्रेवल्स , 1X2 बस है , सिंगल सीट पर हम विराजमान हो चुके है, बाक़ी लोग भी अपनी अपनी गोमती धरने के लिए सीट/स्लीपर का रुख कर रहे हैं। बस अब चलने को है, भीतर स्नैक्स का दौर चल चुका है अंकल चिप्स के लिफाफों में हाथ घुसने का शोर बस के इंजन की आवाज़ में भी सुना जा रहा है, हम घर से रोटियाँ ठूस कर आएं है गले तक, नो रिस्क रे बाबा, रास्ते के भोजन का क्या भरोसा कैसा हो? मिले भी की नही? अपन आराम से सीट पर पसरे पड़े हैं। हुँह जनवरी, बस में लोग है इंजन है, सब गर्म गर्म हो जाता है, कोई ठंड वंड नही लगेगी।

बस चल पड़ी, सब यात्री दुबक कर बैठे है। चलने के साथ साथ बस भी ठंडी होती जा रही है। अभी तक हालात काबू में है, मुझे अपने रेग्जीन के कोट और रूपा की गर्म वाली इन्नर दोनों पर पूरा भरोसा है। शीशे पूरी तरह से कस के बंद कर लिए है मैंने भी, पर अगर गलती से भी हाथ शीशे से छू जाए तो सिरहन सी दौड़ रही है। मैंने हाथ पेंट की जेब से निकाल कर बगल में दबा लिए हैं, संगरिया अड्डा पहुँच गए, बस कोल्ड स्टोर वाली फीलिंग देगी सोचा न था। रूपा और रेग्जीन दोनों पर भरोसा बनाये रखना चाहता हूँ पर ठंड की ताकत उन दोनों की सम्मिलित शक्ति से कई गुना ज्यादा मालूम पड़ती है। ध्यान में बार बार ठंड ठंड और ठंड यही आ रहा है। भीतर नजर दौड़ाई सब के सब जुगाड़ साथ लाए हैं, कोई मोटा कम्बल तो कोई रजाई को अपने चारों और करीने से लपेट रहा है। सही है, वैसे थोड़ा बहुत तो लगेज लेकर ही आना चाहिए, नहीं लाए तो अब भुगतो। सर्दी सहन शक्ति की परीक्षा ले रही है और अभी तो पूरे 9 घण्टे और लगेंगे। 😱😱😱

लगता है बस तो जैसे बाहर भीतर एकात्म को प्राप्त कर चुकी, सर्दी अब सहना असम्भव हो रहा है, ऊपर तो फिर भी ठीक है पर शरीर का निचला हिस्सा तो सुन्न होने लगा है, 😨😨, बगल से हाथ निकाल कर पाँवो को रगड़ रगड़ कर गर्म कर रहा हूँ, अख़बार में बहुत सी खबरें होती है जिन पर कोई ध्यान नहीं देता, मैं भी नही, कल ऐसी ही एक और खबर छपेगी, "ठंड से एक मरा", 😢😢 राजियासर में बस हमेशा रूकती है ड्राइवर कंडक्टर और सवारियाँ सब चाय पानी पिया करते है, पहले जब भी ड्राइवर यहाँ रोक करता था तो गुस्सा आता था , क्या जरूरत है 2 घण्टे हुए है बस और इनको चाय चाहिए हुँह, पर आज ड्राइवर पर बड़ी श्रद्धा हो आई, मन ही मन उसे आशीर्वाद दिया, बस से बाहर निकलते ही देखा कुछ लोग थोड़ी सी आग जला कर ताप रहे है, वाह परमानन्द यही परम् सत्य है, जीवन का सर्वोत्तम सुख, मैं भी तापने में लगा हूँ, मर रहे पैरों में थोड़ी जान आने लगी है। पर ये क्या, बस ने पौं पौं बजा दिया, उफ़्फ़ इतनी जल्दी , ऐसी भी क्या जल्दी है इनको जयपुर जाने की 😬😬😬। एग्जाम तो 9 बजे है पहुँच जाएंगे आराम से, गधा कहीं का।

बस में घुसते ही अपनी लाचारी पर रोना और गुस्सा दोनों आ रहे हैं ,मन तो कर रहा है किसी का कम्बल छीन लूँ पर सुना है सर्दी में पिटाई हो तो दर्द लम्बे समय तक रहता है। सब नींद में घूक हो रहे है बेशर्म, देखो दुष्टों तुम्हारी ही प्रजाति का एक मासूम नर अकाल मृत्यु की और बढ़ रहा है, दाँत जबर्दस्ती किटकिटाने लगे है, पैरों के साथ साथ अब तो  हाथ भी काँप रहे , और हाथ ही क्या होल बॉडी काम्पिंग 😢, अब इससे पहले की दिमाग सुन्न होकर काम करना बंद कर दे कुछ कर, कुछ कर "हिरन", अब ये मत पूछना कि हिरन कौन, अरे मैं ही हूँ जिसकी दास्ताँ सुनते सुनते आप यहाँ तक आ गए, आप भी सोचिए कि क्या करूँ, कुछ नही सूझा मुझे तो कोट की जिप खोली, अच्छा खासा खुला खुला सा है ये , पैर मोड़ लिए कोट ऊपर से बंद, छोटा सा बैग लग रहा हूँ, थोडी सी राहत, अपने शरीर से गर्मी बाहर नही जाने दूंगा, बाहर की नश्तर जैसी हवा अब कम छू पा रही है, सीट पर बैठने में बहुत असुविधा हो रही पर मैं खुश जैसा ही हूँ। पर कब तक, ठंडी हवा ने हार थोड़े न मानी है, भीतर भीतर मेरी कँपकँपी जोर शोर से जारी है। बेहोशी सी छा रही उफ़्फ़।

'अरे भाई उठ, जयपुर आ गया।'

हैं!!?, सुबह के 5:30 हुए हैं, समझ नही आ रहा, सब सपना था या हकीकत। नहीं नहीं सपना नहीं, अब भी कोट में घुस के जो बैठा हूँ, ज़िप खोल खुद बाहर आया पर ठंडी हवा के झोंके ने अंदर तक हिला डाला, बस से उतरते ही गेट के पास ही पोलो विक्ट्री सिनेमा के पास कुछ लोग आग से ताप रहे , मैं भी वहीं जिन्दा रहने की जुगत लगा रहा हूँ। एक अंकल आए पीछे से, शायद मेरी ही बस में थे, और मुझे अंदर घूर भी रहे थे, उन्होंने अपना कम्बल दिया मुझे,मैंने एक बार भी औपचारिकता निभाने के चक्कर में ना नही बोला, फटाफट कम्बल लेकर ओढ़ लिया, ये भी नही पूछा की अंकल पहले क्यूँ नही दिया, अंकल ने चाय ला कर दी, जमे और रुद्ध गले से आखिर फूट पड़ा ".थैंक्यू अंकल"। अंकल कुछ देर बतियाए, बोले ऐसे फिर कभी 'रिस्क नही लेना'। 'जी अंकल', लग रहा था अंकल कोई फरिश्ता हैं। कुछ देर में वो अपना कम्बल समेट कर चले गए, पर अब दिक्कत नही, सुबह होने को है, आग भी है, जिन्दा बच जाऊंगा अब मैं, डोंट वरी।

एग्जाम दिया, फिर तुरन्त मोटा सा कम्बल खरीदा,क्यूँ? अरे ये भी बताना पड़ेगा ?  वापस भी तो उसी बस से जाना है। और हाँ अब तो पक्का है पक्का, मारवाड़ी सच में रिस्क नहीं लेंगे, हाँ नही तो। 😊😊😊

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

‘बाल’-कथा ♠♠♠♠♠



जब मैं कॉलेज में था उन दिनों मेरे कुछ विनोदी मित्र चुहल करते हुए मुझसे कहा करते थे कि यार तेरा ये सरनेम बड़ा मस्त है  ‘राज-पुरोहित’ तुझे तो राजाओं वाली फीलिंग आती होगीनहीं ?। वे ये कह कर मुस्कुराते तो उनके साथ मैं भी हंस लिया करता। वो लोग मुझे प्राउड फील करवाने के लिए ऐसा कहते थे या टांग खींचने के लिए अपन ने कभी इस की टेंशन नहीं लीकबीर दास के दोहेऊँचे कुल का जनमिया जे करनी ऊंच न् होईसुबरन कलस सुरा भरासाधु निंदा सोई‘, ने मुझ पर कुछ ज्यादा ही असर किया है तो मात्र नाम के साथ किसी जाति विशेष का परिचायक शब्द का जुड़ना किसी गर्व का कारक कभी अनुभव ही नही हुआ। पर अपनी इसी जाति में जन्म लेने से लाभ जैसी स्थिति बहुत सी प्रथाओं जैसे विवाहों में कई बार अनुभव हुई 
विवाह को वाकई उत्सव का रूप दे दिया जाता है और कई दिनों तक लगातार छोटी छोटी रस्मों और उन में छिपे आनन्द का रसपान चलता रहता है। संभव है आप मेरी उपरोक्त बात से जुड़ न् पाए होबहरहाल ऐसा होना स्वाभाविक भी है,  ढोली के गीत  ‘तालरिया मगरिया रे मोरू बाई लारे रियाके शब्दों में छुपे आनन्द को इन शब्दों के अर्थ को जीने वाला कोई राजस्थानी ही ज्यादा सहजता से चख सकेगा।
खैर वो सब छोड़िए वैसे भी ऐसा बिलकुल नही है कि मुझे भी इस जाति का सब अच्छा ही लगता है चलिए अब जो नहीं पसंद उसी की बात करते हैं। जब मैं छोटा था यही कोई ३-४ साल का तो मेरे दादा जी का देहांत हो गयाज्यादा नहीं बस धुंधला सा याद है। मृत्युभोज का कार्यक्रम १२ दिन तक चलता है हमारे यहाँहम बच्चे भी बड़ो के रोने धोने के बीच गाँव में वही सेलिब्रेट कर रहे थे। अचानक देखा एक नाई भी आया हुआ है।
फिर पता लगा कि ये बाल काटेगा
पर किसके ?
किसके क्या, सब के भई
सब के ?
अरे मेरा मतलब सब पुरुषों के यार
आईंऐसा क्यूँ?
रिवाज है भई
ये क्या बात हुई, हैं ?
किसी ने इस सवाल का जवाब नहीं दियादेखते ही देखते एक के बाद एक सर सफाचट होने लगा । छोटे दादा जीताऊ जी पापा सब की शक्लें अजीब लग रही थीखूब हंसी आ रही थी पर चाचाओं के बाद आखिर बच्चों की भी बारी आ गई। हंसी की जगह खौफ ने ले लीबड़े ताऊ जी के दोनों बेटों के बाल मेरे सामने देखते देखते शहीद कर दिए गए लग रहा था सर की जगह उलटे तरबूज ही रखे होंछोटे ताऊ के एम पी रिटर्न  बेटे उन दिनों कुछ ज्यादा फैशनेबुल हुआ करते थे, हम लोग उन्हें कनाडा रिटर्न से कम महत्व नहीं देते थे, उनकी बारी आई तो वो बोले मैं तपला नही करवाऊंगा।बस एक ही डायलोग और सब पस्त , किसी कि फिर बहस करने कि हिम्मत न हुई . उनके बाद लडकों में मेरा ही नंबर था , यूँ कहने को तो मैं भी गाँव से नहीं शहर से आया था पर राजस्थान के किसी भी शहर से आना उनके लिए कोई विशेष बात न थी . मुझे (जबरदस्ती) लिवाने के लिए बन्दर टोली रवाना हुईऔर जैसा की उनसे अपेक्षित भी था ढेर सारी चिल्लम चिल्ली के बीच में मुझे नाई के सामने हाजिर कर दिया गया। मेरा आखिरी हथियार मतलब रोनातो निष्फल हो चुका था। अब और कोई उपाय न् देख खतरनाक रोना रोते हुए सर हिलाते हुए इधर उधर हाथ पैर मारने शुरू कर दिएनाई देव का हजामत का सारा पिटारा ठोकर लगने से अस्त व्यस्त हो गया,तिस भी आगे बढ़ कर उन्होंने अपने कर्तव्य की पूर्ति करनी चाही न् जाने एक लात उन्हें कहाँ और कैसे लगी कि वहीं पेट पकड़ कर उकड़ू होकर बैठ गएचाचा जी अब तक सब देख रहे थे ने बदतमीज बोलते हुए मेरे एक चांटा मारारोने के स्वर को और बल मिल गया,भय के साथ अब दर्द से मेरा भोम्पू सुपर से ऊपर वाला साउंड इफ़ेक्ट दे रहा था। पापा ने आकर मुझे चुप कराने की चेष्टा कीउनके प्रयास काम न् आए तो मुझे भीतर माँ के पास भेज दिया गया। सब बहला रहे थेदादा के लिए रोना छोड़ मेरे रोने की चिंता सब पर हावी थीफिर पता लगा नाई देव को वापस दान दक्षिणा देकर विदा कर दिया गया था। जान में जान आईझापड़ खाई तो क्या हुआ बाल तो बच गए।
हरिद्वार में फूल बहानेपापा के साथ मैं भी गया थाउनके कंधे पर सवारगंजे सर पर हाथ फेरने से छोटे छोटे काँटों वाला बड़ा ओव्सम अहसास आता है ये उसी रोज पता लग गया था। घर वापस आए तो मामला पहले की अपेक्षा कुछ शांत लगाघर टकलिस्तान लग रहा था पर मेरा छोटा सा संसार मानो उन 1000-1000 वाट के बल्बो से जगमगा उठा। जब तक वहाँ रहे तबला बजाने का अभ्यास निरन्तर जारी रहातबला बदल बदल कर।

#जयश्रीकृष्ण
©अरुण


🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...