‘बाल’-कथा ♠♠♠♠♠



जब मैं कॉलेज में था उन दिनों मेरे कुछ विनोदी मित्र चुहल करते हुए मुझसे कहा करते थे कि यार तेरा ये सरनेम बड़ा मस्त है  ‘राज-पुरोहित’ तुझे तो राजाओं वाली फीलिंग आती होगीनहीं ?। वे ये कह कर मुस्कुराते तो उनके साथ मैं भी हंस लिया करता। वो लोग मुझे प्राउड फील करवाने के लिए ऐसा कहते थे या टांग खींचने के लिए अपन ने कभी इस की टेंशन नहीं लीकबीर दास के दोहेऊँचे कुल का जनमिया जे करनी ऊंच न् होईसुबरन कलस सुरा भरासाधु निंदा सोई‘, ने मुझ पर कुछ ज्यादा ही असर किया है तो मात्र नाम के साथ किसी जाति विशेष का परिचायक शब्द का जुड़ना किसी गर्व का कारक कभी अनुभव ही नही हुआ। पर अपनी इसी जाति में जन्म लेने से लाभ जैसी स्थिति बहुत सी प्रथाओं जैसे विवाहों में कई बार अनुभव हुई 
विवाह को वाकई उत्सव का रूप दे दिया जाता है और कई दिनों तक लगातार छोटी छोटी रस्मों और उन में छिपे आनन्द का रसपान चलता रहता है। संभव है आप मेरी उपरोक्त बात से जुड़ न् पाए होबहरहाल ऐसा होना स्वाभाविक भी है,  ढोली के गीत  ‘तालरिया मगरिया रे मोरू बाई लारे रियाके शब्दों में छुपे आनन्द को इन शब्दों के अर्थ को जीने वाला कोई राजस्थानी ही ज्यादा सहजता से चख सकेगा।
खैर वो सब छोड़िए वैसे भी ऐसा बिलकुल नही है कि मुझे भी इस जाति का सब अच्छा ही लगता है चलिए अब जो नहीं पसंद उसी की बात करते हैं। जब मैं छोटा था यही कोई ३-४ साल का तो मेरे दादा जी का देहांत हो गयाज्यादा नहीं बस धुंधला सा याद है। मृत्युभोज का कार्यक्रम १२ दिन तक चलता है हमारे यहाँहम बच्चे भी बड़ो के रोने धोने के बीच गाँव में वही सेलिब्रेट कर रहे थे। अचानक देखा एक नाई भी आया हुआ है।
फिर पता लगा कि ये बाल काटेगा
पर किसके ?
किसके क्या, सब के भई
सब के ?
अरे मेरा मतलब सब पुरुषों के यार
आईंऐसा क्यूँ?
रिवाज है भई
ये क्या बात हुई, हैं ?
किसी ने इस सवाल का जवाब नहीं दियादेखते ही देखते एक के बाद एक सर सफाचट होने लगा । छोटे दादा जीताऊ जी पापा सब की शक्लें अजीब लग रही थीखूब हंसी आ रही थी पर चाचाओं के बाद आखिर बच्चों की भी बारी आ गई। हंसी की जगह खौफ ने ले लीबड़े ताऊ जी के दोनों बेटों के बाल मेरे सामने देखते देखते शहीद कर दिए गए लग रहा था सर की जगह उलटे तरबूज ही रखे होंछोटे ताऊ के एम पी रिटर्न  बेटे उन दिनों कुछ ज्यादा फैशनेबुल हुआ करते थे, हम लोग उन्हें कनाडा रिटर्न से कम महत्व नहीं देते थे, उनकी बारी आई तो वो बोले मैं तपला नही करवाऊंगा।बस एक ही डायलोग और सब पस्त , किसी कि फिर बहस करने कि हिम्मत न हुई . उनके बाद लडकों में मेरा ही नंबर था , यूँ कहने को तो मैं भी गाँव से नहीं शहर से आया था पर राजस्थान के किसी भी शहर से आना उनके लिए कोई विशेष बात न थी . मुझे (जबरदस्ती) लिवाने के लिए बन्दर टोली रवाना हुईऔर जैसा की उनसे अपेक्षित भी था ढेर सारी चिल्लम चिल्ली के बीच में मुझे नाई के सामने हाजिर कर दिया गया। मेरा आखिरी हथियार मतलब रोनातो निष्फल हो चुका था। अब और कोई उपाय न् देख खतरनाक रोना रोते हुए सर हिलाते हुए इधर उधर हाथ पैर मारने शुरू कर दिएनाई देव का हजामत का सारा पिटारा ठोकर लगने से अस्त व्यस्त हो गया,तिस भी आगे बढ़ कर उन्होंने अपने कर्तव्य की पूर्ति करनी चाही न् जाने एक लात उन्हें कहाँ और कैसे लगी कि वहीं पेट पकड़ कर उकड़ू होकर बैठ गएचाचा जी अब तक सब देख रहे थे ने बदतमीज बोलते हुए मेरे एक चांटा मारारोने के स्वर को और बल मिल गया,भय के साथ अब दर्द से मेरा भोम्पू सुपर से ऊपर वाला साउंड इफ़ेक्ट दे रहा था। पापा ने आकर मुझे चुप कराने की चेष्टा कीउनके प्रयास काम न् आए तो मुझे भीतर माँ के पास भेज दिया गया। सब बहला रहे थेदादा के लिए रोना छोड़ मेरे रोने की चिंता सब पर हावी थीफिर पता लगा नाई देव को वापस दान दक्षिणा देकर विदा कर दिया गया था। जान में जान आईझापड़ खाई तो क्या हुआ बाल तो बच गए।
हरिद्वार में फूल बहानेपापा के साथ मैं भी गया थाउनके कंधे पर सवारगंजे सर पर हाथ फेरने से छोटे छोटे काँटों वाला बड़ा ओव्सम अहसास आता है ये उसी रोज पता लग गया था। घर वापस आए तो मामला पहले की अपेक्षा कुछ शांत लगाघर टकलिस्तान लग रहा था पर मेरा छोटा सा संसार मानो उन 1000-1000 वाट के बल्बो से जगमगा उठा। जब तक वहाँ रहे तबला बजाने का अभ्यास निरन्तर जारी रहातबला बदल बदल कर।

#जयश्रीकृष्ण
©अरुण


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