जयपुर जाना है, अरे अपना वही एक काम और किसलिए , एग्जाम है यार। स्टूडेंट लाइफ में ज्यादा लगेज नही रखने का , ढोने का टँटा तो होता ही है एग्जाम सेंटर वाला मचमच करता है सो अलग, सब पता है मुझे, मैं तो बस से जा रहा हूँ ना तो लगेज वगेज का कोई झंझट ही नही। आज शाम की बस है , कल सुबह जयपुर , 9 से 10:30 एग्जाम, फिर शाम की बस से वापस, नेक्स्ट सुबह होम स्वीट होम, सब प्रोग्राम फिक्स है अपना। 😊 मारवाड़ी कभी रिस्क नही लेते।
शाम हो गई, बस अड्डे पर चहल पहल है काफी, सबको कोई न कोई सी ऑफ करने आया है मुझे कोई भी नही, अब अपना तो रोज का काम है कभी इधर -कभी उधर तो यूँ कि घरवाले भी सी ऑफ के पंगे से ऑफ हो गए मने पक गए हैं सो अब कोई नहीं आता छोड़ने । जेब में हाथ डाले टहल रहे हैं हम भी, 'आज मौसम बड़ा बेईमान है बड़ा' गाया जा रहा है मन ही मन धरमिंदर की माफ़िक, काश कोई हमें भी मजबूर कर देती तो मन में नहीं खुल कर गाते, मन ही मन में ट्रैक चेंज , 'मुझसे मुहब्बत का इजहार करती, काश कोई लड़की मुझे प्यार करती', ओहो पता है मुझे कि जनवरी है तो क्या हुआ, सब इंतेज़ाम कर लिए हैं, इधर आओ ये देखो अंदर 2 बनियान पहनी है उनके ऊपर 'रूपा' की इन्नर बोले तो गर्मा गर्म, फिर शर्ट देन ये रेग्जीन वाला कोट, सर्दी की माँ की आँख में सुरमा। अब बोलो क्या बोलते हो , हमेशा याद रखने का ,क्या, मारवाड़ी कभी रिस्क नही लेता। खी खी खी 😊😊
कल्पना ट्रेवल्स , 1X2 बस है , सिंगल सीट पर हम विराजमान हो चुके है, बाक़ी लोग भी अपनी अपनी गोमती धरने के लिए सीट/स्लीपर का रुख कर रहे हैं। बस अब चलने को है, भीतर स्नैक्स का दौर चल चुका है अंकल चिप्स के लिफाफों में हाथ घुसने का शोर बस के इंजन की आवाज़ में भी सुना जा रहा है, हम घर से रोटियाँ ठूस कर आएं है गले तक, नो रिस्क रे बाबा, रास्ते के भोजन का क्या भरोसा कैसा हो? मिले भी की नही? अपन आराम से सीट पर पसरे पड़े हैं। हुँह जनवरी, बस में लोग है इंजन है, सब गर्म गर्म हो जाता है, कोई ठंड वंड नही लगेगी।
बस चल पड़ी, सब यात्री दुबक कर बैठे है। चलने के साथ साथ बस भी ठंडी होती जा रही है। अभी तक हालात काबू में है, मुझे अपने रेग्जीन के कोट और रूपा की गर्म वाली इन्नर दोनों पर पूरा भरोसा है। शीशे पूरी तरह से कस के बंद कर लिए है मैंने भी, पर अगर गलती से भी हाथ शीशे से छू जाए तो सिरहन सी दौड़ रही है। मैंने हाथ पेंट की जेब से निकाल कर बगल में दबा लिए हैं, संगरिया अड्डा पहुँच गए, बस कोल्ड स्टोर वाली फीलिंग देगी सोचा न था। रूपा और रेग्जीन दोनों पर भरोसा बनाये रखना चाहता हूँ पर ठंड की ताकत उन दोनों की सम्मिलित शक्ति से कई गुना ज्यादा मालूम पड़ती है। ध्यान में बार बार ठंड ठंड और ठंड यही आ रहा है। भीतर नजर दौड़ाई सब के सब जुगाड़ साथ लाए हैं, कोई मोटा कम्बल तो कोई रजाई को अपने चारों और करीने से लपेट रहा है। सही है, वैसे थोड़ा बहुत तो लगेज लेकर ही आना चाहिए, नहीं लाए तो अब भुगतो। सर्दी सहन शक्ति की परीक्षा ले रही है और अभी तो पूरे 9 घण्टे और लगेंगे। 😱😱😱
लगता है बस तो जैसे बाहर भीतर एकात्म को प्राप्त कर चुकी, सर्दी अब सहना असम्भव हो रहा है, ऊपर तो फिर भी ठीक है पर शरीर का निचला हिस्सा तो सुन्न होने लगा है, 😨😨, बगल से हाथ निकाल कर पाँवो को रगड़ रगड़ कर गर्म कर रहा हूँ, अख़बार में बहुत सी खबरें होती है जिन पर कोई ध्यान नहीं देता, मैं भी नही, कल ऐसी ही एक और खबर छपेगी, "ठंड से एक मरा", 😢😢 राजियासर में बस हमेशा रूकती है ड्राइवर कंडक्टर और सवारियाँ सब चाय पानी पिया करते है, पहले जब भी ड्राइवर यहाँ रोक करता था तो गुस्सा आता था , क्या जरूरत है 2 घण्टे हुए है बस और इनको चाय चाहिए हुँह, पर आज ड्राइवर पर बड़ी श्रद्धा हो आई, मन ही मन उसे आशीर्वाद दिया, बस से बाहर निकलते ही देखा कुछ लोग थोड़ी सी आग जला कर ताप रहे है, वाह परमानन्द यही परम् सत्य है, जीवन का सर्वोत्तम सुख, मैं भी तापने में लगा हूँ, मर रहे पैरों में थोड़ी जान आने लगी है। पर ये क्या, बस ने पौं पौं बजा दिया, उफ़्फ़ इतनी जल्दी , ऐसी भी क्या जल्दी है इनको जयपुर जाने की 😬😬😬। एग्जाम तो 9 बजे है पहुँच जाएंगे आराम से, गधा कहीं का।
बस में घुसते ही अपनी लाचारी पर रोना और गुस्सा दोनों आ रहे हैं ,मन तो कर रहा है किसी का कम्बल छीन लूँ पर सुना है सर्दी में पिटाई हो तो दर्द लम्बे समय तक रहता है। सब नींद में घूक हो रहे है बेशर्म, देखो दुष्टों तुम्हारी ही प्रजाति का एक मासूम नर अकाल मृत्यु की और बढ़ रहा है, दाँत जबर्दस्ती किटकिटाने लगे है, पैरों के साथ साथ अब तो हाथ भी काँप रहे , और हाथ ही क्या होल बॉडी काम्पिंग 😢, अब इससे पहले की दिमाग सुन्न होकर काम करना बंद कर दे कुछ कर, कुछ कर "हिरन", अब ये मत पूछना कि हिरन कौन, अरे मैं ही हूँ जिसकी दास्ताँ सुनते सुनते आप यहाँ तक आ गए, आप भी सोचिए कि क्या करूँ, कुछ नही सूझा मुझे तो कोट की जिप खोली, अच्छा खासा खुला खुला सा है ये , पैर मोड़ लिए कोट ऊपर से बंद, छोटा सा बैग लग रहा हूँ, थोडी सी राहत, अपने शरीर से गर्मी बाहर नही जाने दूंगा, बाहर की नश्तर जैसी हवा अब कम छू पा रही है, सीट पर बैठने में बहुत असुविधा हो रही पर मैं खुश जैसा ही हूँ। पर कब तक, ठंडी हवा ने हार थोड़े न मानी है, भीतर भीतर मेरी कँपकँपी जोर शोर से जारी है। बेहोशी सी छा रही उफ़्फ़।
'अरे भाई उठ, जयपुर आ गया।'
हैं!!?, सुबह के 5:30 हुए हैं, समझ नही आ रहा, सब सपना था या हकीकत। नहीं नहीं सपना नहीं, अब भी कोट में घुस के जो बैठा हूँ, ज़िप खोल खुद बाहर आया पर ठंडी हवा के झोंके ने अंदर तक हिला डाला, बस से उतरते ही गेट के पास ही पोलो विक्ट्री सिनेमा के पास कुछ लोग आग से ताप रहे , मैं भी वहीं जिन्दा रहने की जुगत लगा रहा हूँ। एक अंकल आए पीछे से, शायद मेरी ही बस में थे, और मुझे अंदर घूर भी रहे थे, उन्होंने अपना कम्बल दिया मुझे,मैंने एक बार भी औपचारिकता निभाने के चक्कर में ना नही बोला, फटाफट कम्बल लेकर ओढ़ लिया, ये भी नही पूछा की अंकल पहले क्यूँ नही दिया, अंकल ने चाय ला कर दी, जमे और रुद्ध गले से आखिर फूट पड़ा ".थैंक्यू अंकल"। अंकल कुछ देर बतियाए, बोले ऐसे फिर कभी 'रिस्क नही लेना'। 'जी अंकल', लग रहा था अंकल कोई फरिश्ता हैं। कुछ देर में वो अपना कम्बल समेट कर चले गए, पर अब दिक्कत नही, सुबह होने को है, आग भी है, जिन्दा बच जाऊंगा अब मैं, डोंट वरी।
एग्जाम दिया, फिर तुरन्त मोटा सा कम्बल खरीदा,क्यूँ? अरे ये भी बताना पड़ेगा ? वापस भी तो उसी बस से जाना है। और हाँ अब तो पक्का है पक्का, मारवाड़ी सच में रिस्क नहीं लेंगे, हाँ नही तो। 😊😊😊
#जयश्रीकृष्ण
©अरुण
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