🛀🚽🎭👙💦 शरीफ ♠♠♠♠♠ .


वक़्त दिन के 1 बजे , शास्त्री बॉयज होस्टल के एक कमरे में जीन्स को खुद ही काट कर बनाई गई स्पेशल कैप्री और भूरे रंग की टी शर्ट पहने एक लड़का अपनी चारपाई पर औंधे मुँह लेट कर ऊंघ रहा है ,नींद आंखों से कोसों दूर है, ऊपर भूरे रंग का खेतान पंखा अपनी ब्रांड वेल्यू बचाने की जुगत में तेज चलने की कोशिश में हांफ रहा है, लगता है सालों से ग्रीस दिखाया भी नहीं बेचारे को, हर चक्कर के साथ बेयरिंग से छोटी पर तीखी 'कीं' की दर्दभरी ध्वनि निकलती है जो मोटर के दबाव में 'कीं कीं कीं कीं' का कर्णकटु शोर बन चुका है, पर इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा। जूठे बर्तन अब भी किसी धोने वाले की राह मुँह फाड़े ताक रहे हैं की जाने उन्हें धोने वाला उनका उद्धारक भागीरथ कब आएगा। चारपाई के पास बनी आलमारी में कुछ किताबें बेतरतीब बिखरी पड़ी है, वहीं पास पड़े रेडियो पर सूरतगढ़ के कॉटन सिटी चैनल से 'फौजी भाइयों के किसी फरमाइशी गीतों का कार्यक्रम' का प्रसारण हो रहा है, उद्घोषक गाने से पहले कई फौजियों के नाम गिना रहा है पर लड़के को वो सब जानने या सुनने में कोई इंटरस्ट नहीं , गर्मी बहुत है न, गाना शुरू हुआ 'धक धक करने लगा' गाने की उठती गिरती स्वर लहरियों के साथ ऊंघते ऊंघते लड़के के मन में कुछ काल्पनिक चित्र उभर रहे हैं, एकाग्रता बढ़ाने के लिए लड़के ने अपने ध्यान में आ रहे चित्रों को अपने मन से रंग देना शुरू कर दिया, अब ये चित्र उसे कुछ सहपाठी लड़कियों का आभास करवा रहे , धकधक गाने के साथ चित्रों के विशिष्ट उभार एक थिरकन पर नाच रहे लगते हैं, यहाँ तक कि लड़के के स्नायु में रक्त का प्रवाह भी उसी आरोह अवरोह से बह रहा है, लड़के की आंखे बंद है, कल्पनाएँ और जवां होने को है पर चित्रों का चीर हरण होने से बच गया , दरवाजा जो बस यूं ही दिखावटी बन्द था उसे खोल एक अन्य लड़का भीतर दाखिल हुआ।

दूसरा लड़का भी पहले लड़के की ही आयु वर्ग का है मने यही कोई 17-18 साल, कपड़ो के नाम पर सिर्फ बनियान और तौलिया लपेटे, सांस धौंकनी की तरह तेज़ चल रही है तो पसीने से चेहरा गीला और बनियान तर नजर आती है , आते ही बेफिक्री से अपनी अलग चारपाई पर पसर गया, उसके लेटते ही चारपाई के मुँह से चर्ररर वाली गाली निकली फिर उसने भी चद्दर के साथ खामोश गुफ्तगू शुरू कर दी,दूसरे लड़के के  हाथ मे पंजाब केसरी का रविवारीय चिकना रंगीन बॉलीवुड पृष्ठ है , उसी से कुछ पसीना सुखाने की कोशिश करने लगा, कुछ आराम की लंबी साँसे भीतर खींची, फूं-फूं, फूं-फूं, पहला लड़का अपनी कल्पनाओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर ही रहा था कि दूसरा बोला,'यार पिंटू ये माधुरी भी मस्त थी अपने टाइम में , हैं ना? पता है ये मेरा पहला प्यार थी 9 th क्लास वाला, धिक ताना धिक ताना धिक ताना' फिर पिंटू के जवाब की प्रतीक्षा किए बिना फिर कहने लगा,'पर उफ़्फ़ ये आयशा टाकिया, ये तो कयामत है कयामत, कलेजा निकाल लिया इसने तो'

पिंटू ने नजरें उठा कर देखा, और गुस्से से बोला,'साले शक्ति कपूर, कब से अखबार ढूंढ रहा था तो ये तू ले कर 1 घण्टे से  गुसलखाने में घुसा बैठा था न?  पढ़ तो लेने देता , किसी दिन वहीं हांफते हांफते मर जाएगा कुत्ते और मैं तुझे वहीं जला आऊंगा उस अखबार के साथ'

शक्ति कपूर आई मीन शरद ने पिंटू यानी पुलकित के गुस्से को बहुत कैजुअल सी हंसी में उड़ा दिया, हँसते हँसते ही बोला,'तुझे पता है आयशा आज फिर से किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रही खीखीखी राम तेरी गंगा मैली कर डाली' फिर अखबार में छपी एक सिने तारिका के चित्र को चूम लिया। फिर बोला,' यार सच में ये तो गार्डर है गार्डर, ओये आयशा ऐसे ना देखा करो यार , आई लव यू सच्ची मुची, तुम्हारे पापा की कसम'

अचानक किसी की फरमाइश से रेडियो पर कोई देशभक्ति गीत बज उठा है,'ए वतन वतन हमको तेरी कसम...' शरद ने मुँह फेर लिया और अपनी आयशा के बगल में लेट गया, चारपाई की एक और आह चरर्रर करके निकली , इधर गीत का मुखड़ा खत्म होने से पहले ही पुलकित ने रेडियो के जरिए मो. रफी का गला घोंट दिया, रफी साहब की आवाज बिना किसी तड़प के खामोश हो गई. बिखरी किताबों के ढेर के ठीक नीचे से एक विदेशी अंग्रेजी पत्रिका निकाल ली पुलकित ने ,जिस पर उकेरी विभिन्न मुद्राओं और भाव भंगिमाओं वाली विवस्त्र नायिकाओं के अंगों को निहारते हुए स्वयं को उनके नायक पद पर प्रतिष्ठित कर काल्पनिक रति के असीम सागर में गोते लगाने लगा.

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'अबे तुझे पता है तेरी टेंशन क्या है ? साले दिमाग में लड़कियाँ घूमती है तेरे भले ही तू किताबें उठा के बैठा रह, घण्टा सेलेक्शन होगा, ये पकड़ मेरा....., 2 साल हो गए पीएमटी के नाम पर झक मारते हुए क्या मिला बता......'

'यार तेरा दिमाग खराब है, बहुत लोगों का सेलेक्शन नहीं हुआ इसका मतलब सबके फेलियर की वजह लड़कियां है ?'

'सबका कौन कह रहा बे लो$, पर ज्यादातर की वजह यही है, भेंचो दिमाग में गर्मी चढ़ी है सबके, तो दिमाग ठिकाने पे कैसे होगा , पता है अंग्रेज लोग इत्ती तरक्की क्यों कर रहे ? क्योंकि साले वो गर्मी निकाल देते है तरीके से, फिर फुल्ल कन्सन्ट्रेशन से करते हैं हर काम , और रिजल्ट देख ले, हम लोग सोने की चिड़िया का झुनझुना बजाते रह गए और वो साले पता नहीं क्या क्या बना कर बैठे है, दुनिया भर के अविष्कार कर डाले, और हम लोग भेंचो बस लौ@ पकड़ के बैठे रहेंगे '

'यार दिमाग मत खा प्लीज, मुझे पढ़ने दे ....'

'अबे मेरी मान कोई लड़की मिले तो लड़की वो न मिले तो न सही तो फिर कोई आंटी ही पटा ले, अपणे को क्या है अपणे को तो बस पाणी निकालना है'

'तू जा न मेरे बाप'

'अच्छा जा रहा हूँ भाई, पढ़ पढ़ तू तो पढ़ जी भर के'  शरद ये कह कर हँसते हुए अनिकेत यानी अनु के कमरे से बाहर आ गया. जैसा इन दोनों की बातचीत से भी पता लग रहा है अनु मेधावी मेडिकल स्टूडेंट था पर साथ ही साथ जो प्री मेडिकल टेस्ट में दो साल से फैल भी हो रहा था , शरद इसे उसकी एकाग्रता में कमी का परिणाम मानते हुए उसे एकाग्रता प्राप्त करने का गुरु मन्त्र दे रहा था. और जिसे अनिकेत अस्वीकार कर रहा था.

शरद अपने कमरे में आया तो देखा तो खेतान की किलकारी चालू थी और पुलकित बत्ती वाला स्टोव जला कर दाल को तड़का लगाने के लिए घी गर्म कर रहा था, उसे देखते ही चिल्लाया ,'भोपडी के ,प्याज काट फटाफट,और लहसुन भी छील जल्दी से, मुझे तेरा टकला बाप तनख़्वाह नहीं देता तुझे बना बना के खिलाने की, कहाँ मुँह मार के आ रहा है ?'

'कहीं नहीं बे, अनु के पास ही तो था, समझा रहा था उसे , सेलेक्शन प्रॉसिजर स्टेप बाय स्टेप'

'तू रहने दे बे क्यों बेचारे शरीफ लौंडे को बिगाड़ रहा है, बेचारे पर तरस आता है मुझे तो, उस दिन का याद हैं ना ये रोज किताब हाथ में ले के सो जाता था, जब भी बोलो तो कहता मन मन में पढ़ रहा था उस दिन मानना ही पड़ा इसे'

'हाँ तो , उससे क्या हुआ..?'

'ओहो, घण्टा, साले सब्र कर लिया कर ....बता तो रहा हूँ, तो उस दिन इसी ने बोला की अब अगर मैं सो जाऊं तो एक मुक्का मार देना, तब से इसे दस मुक्के मार चुका हूँ ,आज भी ये सो गया था, क्या कस्स के मुक्का मारा मैंने,  मजा ही आ गया, पर बाद में अफसोस भी हुआ फिर से'

'चल चल तू दाल को तड़का लगा, ज्यादा चगल मत मार'

*****

'अबे इसका पहली बार है, शरीफ लौंडा है, कोई ढंग का माल हो तो ही बता'

'अरे आप चलो तो सही , ए वन पीस मिलेगा, धंधे की कसम मजा न आए तो एक पैसा मत देना आप'

'देख कोई देख ना ले, साला पुलिस का टँटा नहीं होना चाहिए, ये सब झंझट से बहुत डर लगता है हम लोग को,भेंचो इज्जत का फालूदा हुआ तो साले मार मार के भुर्ता बना दूंगा मैं तेरा'

'अरे आप चिंता न करो, आप को मरवा के कहाँ जाएंगे, धंधा थोड़े न चौपट करना है'

शरद किसी कुर्ते पायजामे वाले मरियल से दढ़ियल से बात कर रहा था, अनिकेत चुपचाप दूर खड़ा उन्हें देख रहा था. बात करने के बाद दढ़ियल ने एक बार अनिकेत की तरफ देखा थोड़ा सा मुस्कुराया,फिर सर को थोड़ा से झुका कर दूर से ही उसका अभिवादन किया, अनिकेत ने इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, दढ़ियल ने इसका बिल्कुल बुरा नहीं माना, चुपचाप उसने  अपनी साईकिल की सीट को शान से हाथ की थपकी  मार साफ किया और आगे चल दिया ,शरद ने बाइक स्टार्ट कर उसके पीछे लगा दी, अनिकेत ने टोपी लगाकर मुँह रुमाल से ढांप रखा था आंखों पर गहरे काले रंग का चश्मा था, अजीब सी संकरी तंग गलियों से होते होते एक अच्छे खासे मध्यमवर्गीय से दिखने वाले घर के सामने दढ़ियल की खटारा रुकी ,शरद उससे कुछ पहले बाइक रोक कर खड़ा हो गया,दढ़ियल भीतर गया फिर बाहर मुंडी निकाल के शरद को लाइन क्लीयर का इशारा किया, शरद ने बाइक को वहीं स्टैंड पर लगाया, और उस घर में दाखिल हो गया, अनिकेत के मन में उथल पुथल मची थी,'ये क्या कर रहा है? क्यों कर रहा है? गलत है , गलत है?किसी ने देख लिया तो क्या होगा ? क्या मैं ये सब करने ही आया हूँ? नहीं, इतना भी बुरा कुछ नहीं होता, आज देख ही लेते हैं....'

भीतर एक लगभग पचास वर्षीय खूसट बैठी थी, उसे देखते ही अनिकेत के तोते उड़ गए,

"ये है?"

'अबे नहीं रे, तू जा उस रूम में बैठ'

"देख अगर मुझे सही नहीं लगी तो मैं कुछ नहीं करूँगा , पहले ही बता रहा हूँ"

'हाँ हाँ हाँ, मेरे बाप फकीरचंद, सुन सुन के कान पक गए मेरे, तू बैठ उस रूम में..' कह कर अनिकेत को सामने एक रूम में भिजवा दिया, वहां एक बेड लगा था, शायद किसी को शादी में मिला होगा, किसी की सेज सजी होगी, सुहागरात भी मनी होगी, और आज.....सुहागदिन...... अजीब से लगने लगा सोच कर ही अनिकेत को, थोड़ी देर हुई होगी की शरद किसी महिला के साथ भीतर प्रविष्ट हुआ, महिला लगभग 30-35 वर्ष की रही होगी, आँखे भूरी जिन्हें काजल मल कर कजरारी बनाने की नाकाम कोशिश की गई थी, उसे देखते ही शरद अपनी जगह से खड़ा हो गया. सिर्फ इतना ही बोला , 'मैने तुझे क्या कहा था? मैं जा रहा हूँ...'

'अबे तेरे कौनसे पैसे लग रहे, पैसे तो मैं दे रहा हूँ ना, एक्सपीरियंसड है बेटा कोई दिक्कत नहीं होगी'

'मैं जा रहा हूँ' कहते कहते अनिकेत बाहर आ गया...पीछे पीछे शरद ..उसके पीछे दढ़ियल और सबसे पीछे खड़ूस बुढ़िया, शरद दढ़ियल को गालियाँ दे रहा था, भो@ड़ी के म@रचो@, जब तुझे पहले ही सब कंडीशन बताई थी मैने तो यहाँ क्या अपनी ## चु@@@ लाया था..? बुढ़िया पंजाबी में अपना अलग ही पुराण बांच रही थी, कुछेक शब्द अनिकेत के भी कानों में पड़े जिसका अभिप्राय ये था की अगर वो लोग ऐसे करेंगे तो उन पर भरोसा कौन करेगा.. अनिकेत ने उस ओर से अपनी नजरें व कान हटा लिए....

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आज शरद और पुलकित का बीकानेर में एसएससी का एग्जाम था इसलिए  मेडिकल कॉलेज भी चले आए हैं, अनिकेत से मिलने, इसमे कुछ भी अजीब नहीं है, पर अजीब ये है कि अचानक ये लोग शरीफों वाली भाषा सीख गए हैं, अनिकेत अपने रैगिंग के किस्से सुनाते सुनाते अब धीरे धीरे 'शिकार' की खबरें भी सुना रहा है. रेडियो पर एफएम के गाने बजने लगे हैं.

#जयश्रीकृष्ण

अरुण

🗿🗿🗿🗿🗿 आई हेट यू ♠♠♠♠♠ .


वो रोज मुझे मिल जाया करती थी कहीं न कहीं, कभी तब जब माँ मुझे बाजार से कुछ समान लिवाने भिजवाती तो कभी स्कूल से आते जाते, मुझसे 4-5 साल बड़ी ही होगी,पर जाने क्यों मुझे वो बहुत आकर्षक लगा करती, बहुत भोली बड़ी प्यारी मासूम सी, तब भी जबकि वो हमेशा एक ही फ्रॉक पहने रहती , मैली कुचैली सी , घने काले बिखरे बाल, मुझे देख कर मुस्कुरा देती मेरा मन होता की उसके पास चला जाऊँ पूछूँ कि वो अपने घर क्यों नहीं जाती? नहाती क्यों नहीं? अच्छे कपड़े क्यों नहीं पहनती ? क्यों अकेले में घूमती है ? क्या उसके घरवाले गुस्सा नहीं होते ?  पर जब भी कोशिश सी करता तो कोई न कोई रोक देता,'अरे वो पगली है, काट लेगी, पत्थर मार देगी' . और वो ऐसा करती भी तो थी जब भी कोई उसे चिढ़ाता, उसके पीछे दौड़ पड़ती मारने को, पर मैं उसे चिढ़ाता थोड़े न हूँ जो मुझे मारेगी ..

एक रोज जब स्कूल से लौट रहा था तो देखा वो शिव पार्क के पास लंगड़ाती सी चली जा रही थी पैर पर जख्म हो रखे थे, चेहरे पर रोने क वजह से आंसुओं की गहरी स्याह लकीरें जमी थी,  एक मेज पर बैठ फिर से रोने लगी, रोक नहीं पाया में खुद को उसके पास चले जाने से, मुझे डबडबाई आंखों से देखा फिर हाथ के इशारे से अपने पास बुलाया , पूछा तुम्हारे पास खाना है ? मैंने कहा नहीं तो रुआंसी हो गई , उसे भूख लगी थी घर से दौड़ कर उसके लिए खाने को चार रोटी और अचार चुरा लाया चुपके से, वो टूट पड़ी खाने पर फटाफट रोटियां निगल गई बोली और नहीं है ? मैंने कहा नहीं इतनी ही थी बाद में और ला दूंगा. उसने प्यार से मेरे सर पर हाथ रख दिया, बोली..... भैया... सहसा उसकी आंखों के आंसुओं के कुछ कतरे मेरी आंखों में भी उतर आये थे.

माँ मुझसे बहुत खुश थी, राजा बेटा रोज टिफ़िन खत्म कर के लाता है, और अब तो ज्यादा खाना ले जाता है, मैं रोज उसे खिला आता, वो मुझसे बात करती बताती की उसका भी घर है ....बहुत दूर दूर........., माँ है....... पापा है .....बहुत सारी बहने हैं.....सब काम करते हैं...... पापा भी...., माँ भी....., बहने भी......., सब बहुत अच्छे हैं...... बस कभी कभी मारते थे, वो तो मैं थोड़ी भोली हूँ ना ........तो पापा डॉ के पास गए हैं दवाई लेने .......वो आएंगे .......आते ही होंगे .....आने वाले हैं.....वो बोलती चली जाती रोजाना...पर कभी कोई लेने नहीं आया ,उसके पैर पर चोट कैसे लगी पूछा तो बोली...वो टकला है ना ...मैं उसे मार दूंगी तुम देखना .... डबल रोटी उठाई थी.....मुझे मारा........तुम भी मारना....भैया...और मेरा मन सच में उस टकले का खून करने का हो जाता....पर वो बहुत बड़ा है...मेरे पापा जितना बड़ा......तो क्या हुआ...किसी दिन पत्थर से सर फोड़ दूंगा मैं भी.

एक दिन रोजाना की तरह पार्क में आया तो देखा सोनी, हाँ यही तो नाम बताया था उसने अपना, सोनी वहां कहीं नहीं थी, किसी ने बताया की सोसाइटी वालों ने भगा दिया उसे, उनके बच्चे डर जाते हैं उससे, बहुत दिन तक बहुत जगह ढूंढा आखिर बस स्टैंड के पास सोनी मिली...मुझे देख कर रोने लगी...मुझसे लिपट गई....कुछ लोग आए दौड़ कर...अरे रे बच्चे को मार देगी ये....... सहसा चिल्ला उठा मैं... हट जाओ.......दूर हो जाइए आप लोग....वो मेरी बहन है.

 "अच्छा तेरी बहन है तो तेरे बाप को बोल की घर ले के जाए इसको, कहाँ कहाँ मुं मारती फिरती है ...हुँह..'

'कल तेरी बहन को कुछ दारूखोर उठा कर ले गए थे, घर पर रखो इसे'

कई आवाजे आई भीड़ में से, पर फिर सब चले गए , पीछे बस रोते हुए सोनी और मैं बचे थे

*****

मुझे पापा से बहुत डर लगता है, वो बहुत गुस्सैल हैं, आज पक्का पापा को बोल दूंगा कि पापा मैं कभी और कुछ भी नहीं मांगूगा,पॉकेट मनी भी नहीं, कभी घूमने ले जाने को नहीं कहूँगा, आपकी सब बाते मानूँगा, खूब मन लगा कर पढूंगा कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा बस आप मेरी बहन को ले आओ , रोज सोचता हूँ की आज कह दूंगा पर कैसे कहूँ, उधर सोनी की तबियत भी खराब है जब देखो तब उल्टियां करती रहती है, उसे इलाज की जरूरत है,आखिर मां को बोल ही दिया....माँ मुझे मेरी बहन ला दो प्लीज....और रोने लगा....माँ ने चुप कराया... पापा के पास ले कर गई....बोली सुन लो अपने लाडले की बातें, रो रहा है, पता है क्यों, क्योंकि इसे इसकी बहन चाहिए, आप ला दो....पापा हंसने लगे...बोले '.हाँ बेटा ला देंगे बहुत जल्द ला देंगे, तुम रोओ मत, मेरा अच्छा बेटा......' मेरे पापा कितने अच्छे हैं ना , अब मेरी बहन यहां आ जाएगी फिर कोई चिंता नहीं हम खुशी खुशी साथ रहेंगे, खाना चुरा कर ले जाने की कोई जरूरत न रहेगी, कोई मेरी बहन को नहीं पिटेगा, कोई दारूबाज उसे हाथ नहीं लगाएगा, उसका इलाज अच्छे से हॉस्पिटल में होगा.

पर कितने दिन हो गए पापा उसे नहीं ले कर क्यों नहीं आते, सोनी की तबियत खराब होती जा रही है, उसका पेट भी खराब है फूलता जा रहा है,मैन  बोला था उसे भी कि पापा तुम्हे हमारे घर ले चलेंगे, वो कितना खुश हो गई थी , वैसे पापा ले जाएं या में एक ही तो बात है ना, पापा भी खुश ही होंगे मुझे शाबासी देंगे, राजा बेटा अच्छा किया जो अपनी बहन को ले आया, फिर हम सब खुशी से रहेंगे. डोरबेल बजाई पर माँ दरवाजा खोलते ही चौंक गई, ये कौन है और तुम इसके साथ क्या कर रहे हो? 'यही तो मेरी बहन है माँ, पापा इसे ही तो लाने वाले थे देखो मैं ले आया, इसकी तबियत खराब है इसका इलाज करवाना है माँ' पर ये क्या माँ ने मुझे भीतर खींच सोनी को जोर से धक्का दे दिया बाहर, कई तमाचे मारे मुझको, 'किस कुलच्छनी को उठा लाया है, घर गंगाजल से धोकर साफ करना पड़ेगा,  बेवकूफ, जाने किसका पाप उठाए घूम रही है,' सोनी बाहर खड़ी मुझे पिटता देख रही थी, उसकी आंखों में आँसू देख मैं भी रो पड़ा. शाम को पापा से शिकायत करूँगा सोचा था, पर मुझसे पहले मेरी ही शिकायत हो चुकी थी , पापा ने भी मारा मुझे, बोले आइंदा उस पागल के आसपास भी दिखे तो हड्डियाँ तोड़ दूंगा.

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आज मौका मिला है सोनी से मिलने का, ना जाने वो कैसी होगी, कितने महीनों गुजर गए पापा ने रोज स्कूल आने जाने के लिए वैन लगवा दी है  उसी से आता जाता हूँ, खड़ूस है वो वैन वाला भी स्कूल पर ही उतारता है, आज मौका मिला तो निकल आया हूँ चुपके से , पर पार्क बस स्टैंड सब घूम लिया सोनी कहीं नहीं मिली, पता नहीं कहाँ चली गई, बेचारी उसकी तो तबियत भी खराब है , खाना भी कौन देता होगा, क्या पता वो टकले ने उसे फिर मारा हो, अगर मारा होगा तो इस बार मैं सर फोड़ दूंगा उसका चाहे कुछ भी हो जाए, उसी से पूछता हूँ जाकर.....हाँ.... लेक़िन ये कौन चला जा रहा...अरे ये तो वही है जो मुझे कह रहा था की अपनी बहन को घर ले जाओ, कहाँ कहाँ मुं मारती फिरती है..........अरे अंकल जी...सुनिए....सुनिए तो....हाँ आप...आपने मेरी बहन को कहीं देखा क्या ?

"कौन बहन? अच्छा तुम तो उस पगली के भाई हो न....अब आए हो बहन को ढूंढने, घर क्यों नहीं लेकर गए. वो वहाँ बस स्टैंड के पीछे की झाड़ियों में बच्चा जना था उसने, बच्चे को कुत्ते खा गए ,ले गए घसीट कर, छीन कर, वो भागती रही उसके पीछे फिर गिर गई और मर गई....खून बहुत बह गया था ना...."

'क्या....कहा....मर गई...? मुझसे बोला भी नहीं जा रहा...आँखों पर जोर नही चल रहा...अपने गाल भीगने से गीले गीले लग रहे हैं.'

अंकल बोले, 'अब क्यों रोते हो, दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं हैं, हमने उसका संस्कार करवा दिया था'

कुछ समझ नहीं आ रहा, किसे क्या कहूँ, लौट पड़ा उल्टे कदमों से, मन कर रहा है जोर से चिल्ला कर रो दूँ, कहूँ की "आई हेट यू माँ, आई हेट यू पापा"

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

rajpurohit-arun.blogspot.com

🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...