💓💔💕💞❣💤 पार्टी ऑल नाईट ♠♠♠♠♠ .


'सुण सरदार अब भी सोच ले यार, गुरुजी ने ठा लाग गयो तो आपां दोनुआँ ने धोवेला'

"अबे कित्ती बार बोला है कि अपनी मारवाड़ी मत झाड़ा कर फ़ोकट में , सब ऊपर से गई मेरे😣"

'यार मैं तो बस इतना कह रहा हूँ कि गुरुजी को पता लग गया तो....'

"कुछ नहीं होगा, हम हैं तो क्या गम हैं...." कह कर सरदार , मेरा मतलब हमारे शुक्ल ने हमको गुरुकुल की दीवार से बाहर की और धक्का दे दिया ....धम्म से मैं बाहर गिरा वो तो किस्मत अच्छी थी कि मिट्टी थी उधर, उठ कर कपड़े झाड़े, तभी एक बैग भी बाहर की और फेंक दिया। पता नहीं ये संयोग था या साजिश की बैग भी मुझसे ही आकर टकराया, मन ही मन मैंने सरदार को अच्छी अच्छी गालियाँ दी, जी मन ही मन क्योंकि अगले ही पल सरदार की खोपड़ी ने दीवार के ऊपर से झाँका फिर होल बॉडी तुपुक करके इस और टपक गई।

आते ही बोला , "देखा बे, कित्ता आसान है सब.."

'यार पर गुरुजी को....'

वाक्य पूरा करने से पहले टोक देना सरदार को सबसे ज्यादा पसंद है, टोक कर बोले , "यार तुम इतने फट्टू काहे हो बे, बताया तो है कि गुरुजी सोय रहे टनाटन,  सुबह तक उनके उठने से पहले लौट आएंगे दोनों, डिस्को फिस्को देख लो प्यारे , गुरुकुल में सब गियान मिलेगा पर हम जो गियान देंगे वो किसी के पास नहीं मिलेगा"

मैं बस श्रद्धा से सुकुल को निहार रहा था।

"अबे ऐसे काए देखते हो बे?"

'यार गुरु, फिर ये बैग..?'

"गुरुजी ठीक कहते हो गंवार ही रहोगे तुम, अबे ये लुँगी लपेट के डिस्को में जाओगे ? कपड़ा लाए है बे, दोनों के लिए, एकदम टिपटॉप, पता भी है ड्रेसकोड चलता है उधर ...इस लुँगी में तो डिस्को के पास से न गुजरने देंगे अंदर घुसने की तो भूल जाओ, चल जल्दी रेडी हो जाओ"

'रेडी ? क्या यार कपड़ा पहनने में कितना वक्त लगेगा'

"नहीं लगेगा, पर लाली लिपस्टिक में तो लगेगा न, अब देख आँखे बड़ी मत कर, वरना मुक्का मार देंगे बताय रहे, इतनी मुश्किल से बाहर आए, अब नखरे मत करना, उधर लड़की के बिना नहीं जाने देते, काश अपने गुरुकुल में भी कन्याएँ होतीं।" कहकर सरदार सपने से देखने लगा।

'तो तुम इसलिए मुझे साथ लाए, यार ये गलत है सच्ची....'😢

****

बड़ा ऑकवर्ड फील हो रहा था, अपनी ही लिपस्टिक की बास होंठो सेनथुनों में जा रही थी,पता नहीं लड़कियाँ रोज कैसे ये रगड़ती हैं होंठो पर,  मैं चुपचाप सकुचाई आई मीन सकुचाया सा एक टेबल पर बैठी अबे मेरा मतलब बैठा हूँ यार (कमबख्त वेश बदलते ही छोरियों वाली फीलिंग आने लगी है खुद से 😢)। चारों और जगमगाती लाइटिंग, दमकते चेहरे, धुआँ धुआँ जिंदगी, बहकते कदम, मचलती जवानी, उफनता शबाब और उठती गिरती स्वर लहरियों पर थिरकते बदन, सरदार मुझे छोड़ कर डिस्को कर रही कमसिन कन्याओं पर डोरे डाल रहा, हुँह सनम हरजाई... मुझ अबला को अकेला छोड़ कर जाते तनिक लाज भी न आई तुमको, न जाने क्यों एक अनजान हया चेहरे की लाली में घुल गई, हुरर्र हुर्रर ये मेरे अंदर महिला कैसे घुस गई, कंट्रोल अरुण कंट्रोल..... सहसा पीछे से एक हाथ कंधे पर रखा किसी ने, मैं घबरा कर मर ही जाती अगर पलटते ही वो न दिखाई दी होती। सामने एक 18-19 वर्षीय ज्ञातयौवना नशे में झूमते अपने समस्त उफान को थामे खड़ी थी। धीमे धीमे झपकती पलकों के बीच मुझे देख मुस्कुराई, बोली "हाई बेबी, अकेली क्यों बैठी हो हिच्च, कोई सआथ नहीं अआया"।

सच कहूँ आज पहली बार सुकुल को पीट देने का मन कर रहा था, कुछ बोला न गया बस डांस फ्लोर पर उछलते सुकुल की और देखा फिर बिना कुछ बोले नज़रें झुका ली।

"Awwwwwweee my babyyyy.." बोल कर वो मेरे पास आई aww के साथ गोल हुए होंठो की छाप मेरे गाल पर लगाते हुए बोली, "ये जओ बंदर की तरह कूद रहा वओ तुम-हारे सआथ है ?" मैंने बिना कुछ कहे यंत्रवत हाँ में सिर हिला दिया।

"कम ऑन लेट्स डांस डार्लिंग..." एक साथ कई भाव मेरे चेहरे पर आ-जा रहे थे, और विग के नीचे छुपे मारवाड़ी तरबूज से मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि आखिर माजरा क्या है? थोड़ा असहज हो रहा था, तब भी जब उसने पास आकर गले से लगा लिया, फिर अपनी बाहों की पकड़ मजबूत करते हुए बोली ,"प्लीज इट्स माय बर्थडे.." सोच रहा था कि लड़कियाँ गले लगती हैं तो कितनी मस्त वाली फीलिंग आती है न, सुकुल भगवान तेरा भला करे पर मैं तुझे छोडूंगा नहीं कमीने, ये न जाने क्या समझ के गले लग रही, अबे हाँ ये मेरे गले लग ही क्यों रही , लड़की लोग का आपस मे ये सब भी चलता है क्या ? सोच ही रहा था कि वो हाथ पकड़ कर मुझे भी डांस फ्लोर पर खींच लाई, बाय गॉड इतना कोई असली लड़की भी न शरमाई होगी जितना मैं शर्मा रहा था। लड़की के साथ लड़की डांस क्यों करे भला, अजीब लग रहा था, इधर उधर देखा, लगा सरदार को छोड़ हर कोई बस मुझे ही देख रहा, वाकई बंदर लग रहा था सरदार हाथ आगे पीछे कर कर के उछल रहा था। मुझे डिस्को में अंदर घुसने के टोकन की तरह यूज करके अब वो अपनी ही धुन में मग्न था। सबकी... बजाते रहो....सबकी ...बजाते रहो...

लड़की अपने हाथ मेरे कंधों पर टिकाए अपनी अलग मस्ती में थी, झूम रही थी,एक  बार टेंडर सरदारजी भी थे, जो न जाने क्यों इधर ही नजरें गड़ाए हुए थे, साले कभी खूबसूरत लड़की नहीं देखी क्या, गुस्सा आ रहा था, जलती आंखों से उसे देखा फिर मैंने सोचा अबे कुछ और दिख तो नहीं रहा, अपने कपड़े ठीक किए , फिर से सोचा कर क्या रहा हूँ मैं इधर, घण्टा नाचना आता है मुझे, ऊपर से बॉल उछलने का डर है सो अलग। वापस लौटने को हुआ तो लड़की ने पकड़ कर वापस खींच लिया अपनी तरफ। सोचा, यार ये किस तरह की लड़की है?

सोच ही रह था कि वो बोल पड़ी फिर से, "यू डओंथ लाआइक डआंस..ओके चअल उधर बैठते हैं" मैं संकुचाते हुए आवाज़ को यथासम्भव पतला करके बोला, 'वो मेरा दोस्त....'  पर ये भी सरदार जैसी ही निकली मेरी बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ी, " तुम्हआरा बंदर उछल्ल रहा आरआम से, अआओ हम्म्म तुम्म्म बैठते है यआर"

'इतना क्यों पीती हो, बोला भी नहीं जा रहा ढंग से' मैंने कहा। उसने अपनी नशीली आँखे मेरी आँखों मे गड़ा दी, हालांकि मैंने फिर से लड़की की आवाज़ में ही बोलने की भरपूर कोशिश की थी, तो क्या उसे शक हो गया था ? क्या इसे पता लग गया था कि जिसे ये बार बार हनी बोल कर चिपक रही वो हनी नहीं वास्तव में हनुमान है? अचानक वो मुस्कुरा दी फिर गाने लगी, ओ मउझे पपीने का शोंक नहीईं पी ती हूँ गम भुलाने को, कह कर वो मेरी बाहों में झूल गई। झूलते झूलते कहने लगी, "यआर तुम्म्म भी अकेली मैं भी अकेली , हम्म तुम्म्म संग हैं तो फिर क्यआ गम्म , रआजा को रआनी से प्यार, नहीं प्यार नहीं , कोई रआजा भी नहीं, ओनली रआनी, रानी को रआनी से प्यार हओ गयआ हिच्च।"

'सम्भालो अपने आप को, कहीं गिर न जाओ'

"अरे हम्म तओ हैं गिरे हुए यआर,हैं हम्म,  पर प्लीज कम से कम्म तुम्म्म तो मअत बोलो, सबकी तरह"

'आओ उधर ही बैठते हैं अकेले में'

"नाईं मुझे जाआना है अब"

'घर?'

"गाआड़ी तक छओड़ दोगी प्लीज"

'ओके चलो छोड़ देती हूं'

वो अपने शरीर लगभग पूरा भार मुझ पर डाले, मेरी बाहों में झूलती सी साथ चल रही थी, बदन से महकते इत्र की खुशबू में मुँह से भभकती शराब की दुर्गंध मिल कर एक नई अजीब सी तीखी गंध बना रही थी। उसकी गाड़ी में उसे बिठा कर लौटने लगा तो फिर से हाथ पकड़ लिया, "बैठो न पलिज्ज ,यहाँ तो कओई नहीं , बआत करओ न मुझअसे पलिज्ज, कओइ नहीं करता , वओ भी नहीं"

मैं गाड़ी की अगली सीट पर उसके पास बैठ गया। पूछा ,'ड्राइव कर लोगी इस हालत में ?'

"कर लूंगी यआर, नहीं तो क्याआ हओगा, हिच्च, मर ई तओ जाऊंगी न ज्यादा से ज्यादा"

'दुखी हो इसलिए पी है इतनी ?'

"वओ साआला कुत्ता, उसको लगता है, मेरा चक्कर है कओई और के सआथ, साआला खुद के जैएसे समअझ रखा है क्याआ, कओइ नहीं चाहिए, भाआड़ में जा कुत्र्या, नहींइं चैये कोई तू भी नाईं। मेरी दऔसत है सआथ मेरे, हो न तउम मेरे साथ ?" कह कर उसने मेरी और डबडबाई आंखों से देखा, कार के भीतर मद्धिम प्रकाश के बीच पहली बार ढंग से उसका चेहरा देखा। भोले से चेहरे पर काजल की रेखाएँ दिख रही थी, वो मेरे करीब आई और मुझे इतनी जोर से गले से लगा लिया कि अपनी ही 'कोस्को' बॉल सीने पर चुभने जैसी लगने लगी। "मुउझे छोड़ कर मअत जाना कभी"

'पर तुम मुझे गलत समझ रही हो, मैं वो नहीं हूँ जो तुम समझ रही हो' वो मुझे विस्मय से बस घूर रही थी, मैंने आगे कहा,' मैं लड़का हूँ ' कहते हुए अपना विग उतार दिया।

"सआले सअब एक जैसे, तू भी धोखेबाज़ निकली..."

'पर मेरी बात तो सुनो.....'

उसने कस के लात मारी धड़ाम से मैं कार से बाहर आ गिरा।

उठा, देखा तो कार नहीं थी, सब कुछ गायब, पास में मेरी चारपाई उल्टी पड़ी थी, अजीत चिल्ला रहा था, "सुनते नहीं हो इसलिए चारपाई उलट दिए हैं, गुरुजी बुलाय रहे"

अजीत यार आज अच्छा नहीं किया तुमने, कम से कम लड़की को पूरी बात तो बताने देते, उठ कर कपड़े झाड़े, सुकुल कुवें के पास खड़ा ज़ोर ज़ोर से दांतों पर नीम का दातुन रगड़ रहा था। मुझे देख कर मुस्कुराया तो मैं भी हँस दिया, फिर मन ही मन कहा,'बंदर कहीं के ' 😊😊😊



#जयश्रीकृष्ण

अरुण

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🙏🙏🙏🙏🙏 नमस्तस्ये गुरवे नमः ♠♠♠♠♠ .


राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय सादुलशहर, बोले तो बड़ा स्कूल, इसे बड़ा क्यों कहते हैं पता नहीं, शायद इसलिए क्योंकि ये वाकई काफी बड़ा ही है आकार में, इसे देख कर सहसा किसी के मुँह निकला होगा," हम्म ...बड़ा तो है " और किसी ने सुन लिया होगा और बस भेड़चाल शुरू हो गई होगी, बड़ा स्कूल-बड़ा स्कूल पुकारने की और यूँ ही यही नाम भी पड़ गया होगा। या शायद शहर के बाकी स्कूलों से उम्र में सबसे बड़ा होने के चलते इसे ये नाम मिला हो , हाँ जी शहर का सबसे पुराना स्कूल खोजने निकले तो यहीं आना पड़ेगा , अपने जमाने मे इलाके का इकलौता उच्च माध्यमिक विद्यातय यही था तब शायद यहाँ पढ़कर गए किसी बुढऊ ने ज्ञान पेला हो कि बेटा हम तो बड़े स्कूल में पढ़ते थे एंड यू नो फिर से किसी ने कुत्ते की बॉल की तरह लपक कर नामकरण कर डाला हो, या फिर शायद किसी महान ज्योतिषी ने कोई भविष्यवाणी कर दी होगी कि एक समय वो भी आएगा जब मेरे कदम इस विद्यालय के धरातल को पवित्र करेंगे , और मैं किसी छोटे मोटे स्कूल में तो पढ़ने से रहा ? तो बस उसी भय से स्कूल को बड़ा घोषित करवा दिया गया हो।

  बहरहाल, कारण चाहे जो हो पर जब मैंने इस विद्यालय के बारे में प्रथम बार सुना तो यही सुना कि कोई बड़ा स्कूल है जो मेरे आगमन की बेसब्री से बाट जोह रहा है और आखिर प्रभु कृपा हुई ,सृष्टि खिल उठी , कलियां मुस्कुराने लगी ,कोयल गाने लगी 8 वीं क्लास पार करके हम इस बड़े स्कूल में जो आ पहुंचे थे , अब चूंकि स्कूल बड़ा था चाहे जिस भी वजह से हो पर था और चाहे मैं खुद को वहम में डाल कर आपको भ्रमित करने के भी कितने ही प्रयास करूँ पर मुझ जैसे चूजे की कोई वैल्यू इच नहीं थी उधर , दाढ़ी मूंछ वाले मुस्टंडों की भरमार हो रखी थी जी , चूजा ही तो लगूँगा उनके सामने, हाँ नहीं तो , इतनी भीड़ कि 9 वीं के सेक्शन 'ए' से शुरू होकर कब 'ई' तक चले गए किसी को कोई पता न चला , मुझे मिला 'सी' हाँ जी 9 वीं सी, पता नहीं किस महान आत्मा ने इस क्लास में एडमिशन किए थे, पूरे शहर के लुच्चे ,बच्चे नहीं कहूँगा क्योंकि किसी भी एंगल से वो बच्चे तो नहीं ही काहे जा सकते, ठूस ठूस कर भर दिए (प्लीज मुझे लुच्चा समझने की भूल न करना, माता रानी पाप लगाएगी , बोल देता हूँ हाँ) धनिया, महेनदिया, प्रेमिया, देबीलाल, महाबलौ, कालिया और बाबू राम ढाई टांग वाला जैसी दिव्यात्माओं से प्रथम बार साक्षात होने का अवसर यहीं प्राप्त हुआ।

क्लास में अपने नाम को चरितार्थ करते हुए प्रायः  'सी' ग्रेड फिल्मों की तरह सी सी की आवाज़ें हुआ करती, इसी महान कक्षा में हमने ये जाना की अपने निजी अंगों का सावर्जनिक प्रदर्शन करने वाले आखिर कैसे दिखते हैं, कबहु न स्मरणीय नित्य दुत्कारणीय श्री कालिया जी अपनी इस सिद्धहस्तता का डेमो पब्लिक डिमांड के अनुसार दिया करते. श्री भोगीराम जी वर्मा हमारे कक्षाध्यापक नियुक्त हुए , अब इसे संयोग कहूँ या मेरा सौभाग्य कि ये भी अपने नामानुरूप गुणधारक थे, बच्चों से छाछ से लेकर कुछ भी मंगवाने या लेकर भोग करने में कोई संकोच करना उन्हें पाप प्रतीत होता । सामाजिक के अध्यापक थे और हमें सामाजिक नहीं पढ़ाते थे , अक्सर क्लास के मुच्छड़ छात्र हाजिरी की औपचारिकता होते ही क्लास की इकलौती खिड़की , जिस बेचारी अबला का सब लूट कर उसे सरिया विहीन, लज्जाहीन बना कर मुँह बाए पड़े रहने वाली बना दिया गया था, का सदुपयोग करते हुए क्लास से कल्टी मार लेते. प्रिंसिपल कभी कभी आते 11 बजे वाली ट्रेन से आकर 2 बजे लौट जाते , लेकिन स्टॉफ सदस्यों को विद्यालय में पूर्णतः शांति व्यवस्था बनाए रखने के 'गुड गुड' कह कर कॉम्प्लिमेंट देना न भूलते. अब स्कूल में कोई बच्चा हो तो ही तो शोर हो। बड़े स्कूल की बड़ी बड़ी बातें 😊

ज्यादातर अध्यापक स्टॉफ चैस और ताश  खेलने में प्रवीण थे , विद्यालय समय में होने वाले सम्बंधित खेलों के आईपीएल सरीखे मैचों में अपनी इस कला का मुजाहिरा भी किया करते । बेचारी अध्यापिकाएं जो न जाने किस अज्ञात शर्म से उन सब का साथ न दे पाती अक्सर क्रोशिए या  सलाई पर सलाई चढा कर दे दना दन टाइप अपना गुस्सा उतारती दिखाई पड़ती।

 कम ऑन अब आप कहीं ये तो नही सोच रहे न कि मैं बस सबकी बुराई ही किए जा रहा हूँ ? ना जी , बड़ाई किए देता हूँ, अबी के अबी, एक हमारे अंग्रेजी के अध्यापक थे एक्सप्रेस सर, एक्सप्रेस इसलिए क्योंकि चलने से लेकर पढ़ाने तक , सबकी गति में किसी एक्सप्रेस ट्रेन की सी तेज़ी थी,  वो चलते हुए आते हमे लगता दौड़ते हुए आ रहे हैं , आते ही बिना कुछ कहे ब्लैक बोर्ड पर एक साथ 3-4 प्रार्थना पत्र, 2-3 लेख, 5-6 कहानियाँ अंग्रेजी में छाप देते , अवाक से हम उनकी गति पर आश्चर्य करते हुए बोर्ड के पास जाकर कुछ समझ के साथ लिख लेने का प्रयास करते, गुरुजी जाने क्यों इससे चिढ़ जाते, अबे अंधे हो क्या कह कर ऐसा हाथ घुमाते उसके बाद अगले 10 मिनट चेतना शून्यता में गुजरते, फिर जब संवेदना लौटती तो आँखों को दूरदर्शी बनाकर पढ़ने की विद्या न जाने कहाँ से प्राप्त हो जाती . गुरुजी की जय हो।

 जाने कैसे सब कल्लू कल्लन कालिया को पीछे छोड़ 11 वीं कक्षा में पहुंच गए तो श्री संजय शर्मा जी से परिचय हुआ , हमारे हिंदी सेक्शन के कक्षा और विषयाध्यापक , सब पर स्नेह बरसाने वाला मुस्कुराता चेहरा और अलौकिक व्यक्तित्व, विषय पर पकड़ इतनी की अपनी पहली ही कक्षा में रट कर याद करने वाले हम जैसो को समझ कर समझना समझा दिया, कभी याद नहीं पड़ता कि कभी किसी को मारा होगा। काव्य हो या गद्य उसे पढ़ते समय वैसा ही रसमय हो जाना उनसे सीखा, हर पेज पर डेढ़ दर्जन गलतियों पर गोले देख मुँह उतर जाता पर जब वो गोले धीरे धीरे एक एक कर कम होते गए तो सब असंतोष जाता रहा। स्व. श्री वंशीधर जी जब इतिहास पढ़ाया करते तो लगता मानो समय रुक ही नहीं बल्कि पीछे चला गया है और हम इतिहास को प्रत्यक्ष अपनी आंखों के सामने घटता देख पा रहे हो,वेद, उपनिषद, ब्राह्मण, आरण्यक लिखे जाने लगते, बुद्ध जीवित हो उठते, कलिंग युद्ध में अशोक के मन की पीड़ा पीड़ितों का चीत्कार जो शब्दों से प्रत्यक्ष कर दे वो गुरु सच मे विलक्षण ही थे। इतिहास को मात्र घटनाओं के विवरण की तरह न पढ़कर उन से सीख लेकर पढ़ने की सीख उनसे मिली।  12 वीं का जब रिजल्ट आया तो हिंदी वर्ग में मैं तहसील टॉपर था , अपने इन्हीं महान गुरुजनों के कारण , जब अंक तालिका लेने गया तो बंशीधर सर ने प्यार से सर पर हाथ रखा था, उनकी वो आँखें आज भी याद है मुझे।

***

कहीं पढ़ा था ,थॉमस अल्वा एडिसन जब बल्ब बना रहा था तो निन्यानवे बार उसका प्रयोग असफल रहा, पर वो निराश नहीं हुआ, जब उससे पूछा गया तो उसने कहा कि मैंने 99 ऐसे तरीके खोज निकाले हैं जिनसे आप चाहो तब भी बल्ब नहीं बना सकते, आज बल्ब सहित अनेकों अविष्कार करने वाले एडिसन को सब सम्मान से याद करते हैं।

मित्रो, शिक्षण तो जीवन भर अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है, हम एक शिशु के रूप में जन्म से लेकर अब तक लगातार कुछ न कुछ सीखते ही आए हैं, माता पिता, मित्र, बन्धुजनों से लेकर जीवन के प्रत्येक अच्छे व बुरे अनुभव हमें कुछ न कुछ सिखाते हैं , ऊपर कुछ ऐसा विवरण लिखा है जो शायद मुझे किसी गुरु के लिए नहीं लिखना चाहिए (इसलिए सादर नाम परिवर्तित कर दिए हैं), पर जीवन में सिर्फ अच्छा ही नहीं होता, मैं किसी को सर्टिफिकेट देने वाला कोई नहीं पर बुराई को बुराई के रूप में स्वीकार करना हमें आना ही नहीं चाहिए, वरना अच्छाई मूल्यहीन हो जाएगी। मेरे जीवन में आकर अच्छा बुरा प्रत्येक, कुछ भी मुझे सिखाने वाले हर गुरुजन को हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। शिक्षक दिवस की अनेकानेक शुभकामनाएँ। नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नमः .......

#जयश्रीकृष्ण

अरुण

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🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...