राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय सादुलशहर, बोले तो बड़ा स्कूल, इसे बड़ा क्यों कहते हैं पता नहीं, शायद इसलिए क्योंकि ये वाकई काफी बड़ा ही है आकार में, इसे देख कर सहसा किसी के मुँह निकला होगा," हम्म ...बड़ा तो है " और किसी ने सुन लिया होगा और बस भेड़चाल शुरू हो गई होगी, बड़ा स्कूल-बड़ा स्कूल पुकारने की और यूँ ही यही नाम भी पड़ गया होगा। या शायद शहर के बाकी स्कूलों से उम्र में सबसे बड़ा होने के चलते इसे ये नाम मिला हो , हाँ जी शहर का सबसे पुराना स्कूल खोजने निकले तो यहीं आना पड़ेगा , अपने जमाने मे इलाके का इकलौता उच्च माध्यमिक विद्यातय यही था तब शायद यहाँ पढ़कर गए किसी बुढऊ ने ज्ञान पेला हो कि बेटा हम तो बड़े स्कूल में पढ़ते थे एंड यू नो फिर से किसी ने कुत्ते की बॉल की तरह लपक कर नामकरण कर डाला हो, या फिर शायद किसी महान ज्योतिषी ने कोई भविष्यवाणी कर दी होगी कि एक समय वो भी आएगा जब मेरे कदम इस विद्यालय के धरातल को पवित्र करेंगे , और मैं किसी छोटे मोटे स्कूल में तो पढ़ने से रहा ? तो बस उसी भय से स्कूल को बड़ा घोषित करवा दिया गया हो।
बहरहाल, कारण चाहे जो हो पर जब मैंने इस विद्यालय के बारे में प्रथम बार सुना तो यही सुना कि कोई बड़ा स्कूल है जो मेरे आगमन की बेसब्री से बाट जोह रहा है और आखिर प्रभु कृपा हुई ,सृष्टि खिल उठी , कलियां मुस्कुराने लगी ,कोयल गाने लगी 8 वीं क्लास पार करके हम इस बड़े स्कूल में जो आ पहुंचे थे , अब चूंकि स्कूल बड़ा था चाहे जिस भी वजह से हो पर था और चाहे मैं खुद को वहम में डाल कर आपको भ्रमित करने के भी कितने ही प्रयास करूँ पर मुझ जैसे चूजे की कोई वैल्यू इच नहीं थी उधर , दाढ़ी मूंछ वाले मुस्टंडों की भरमार हो रखी थी जी , चूजा ही तो लगूँगा उनके सामने, हाँ नहीं तो , इतनी भीड़ कि 9 वीं के सेक्शन 'ए' से शुरू होकर कब 'ई' तक चले गए किसी को कोई पता न चला , मुझे मिला 'सी' हाँ जी 9 वीं सी, पता नहीं किस महान आत्मा ने इस क्लास में एडमिशन किए थे, पूरे शहर के लुच्चे ,बच्चे नहीं कहूँगा क्योंकि किसी भी एंगल से वो बच्चे तो नहीं ही काहे जा सकते, ठूस ठूस कर भर दिए (प्लीज मुझे लुच्चा समझने की भूल न करना, माता रानी पाप लगाएगी , बोल देता हूँ हाँ) धनिया, महेनदिया, प्रेमिया, देबीलाल, महाबलौ, कालिया और बाबू राम ढाई टांग वाला जैसी दिव्यात्माओं से प्रथम बार साक्षात होने का अवसर यहीं प्राप्त हुआ।
क्लास में अपने नाम को चरितार्थ करते हुए प्रायः 'सी' ग्रेड फिल्मों की तरह सी सी की आवाज़ें हुआ करती, इसी महान कक्षा में हमने ये जाना की अपने निजी अंगों का सावर्जनिक प्रदर्शन करने वाले आखिर कैसे दिखते हैं, कबहु न स्मरणीय नित्य दुत्कारणीय श्री कालिया जी अपनी इस सिद्धहस्तता का डेमो पब्लिक डिमांड के अनुसार दिया करते. श्री भोगीराम जी वर्मा हमारे कक्षाध्यापक नियुक्त हुए , अब इसे संयोग कहूँ या मेरा सौभाग्य कि ये भी अपने नामानुरूप गुणधारक थे, बच्चों से छाछ से लेकर कुछ भी मंगवाने या लेकर भोग करने में कोई संकोच करना उन्हें पाप प्रतीत होता । सामाजिक के अध्यापक थे और हमें सामाजिक नहीं पढ़ाते थे , अक्सर क्लास के मुच्छड़ छात्र हाजिरी की औपचारिकता होते ही क्लास की इकलौती खिड़की , जिस बेचारी अबला का सब लूट कर उसे सरिया विहीन, लज्जाहीन बना कर मुँह बाए पड़े रहने वाली बना दिया गया था, का सदुपयोग करते हुए क्लास से कल्टी मार लेते. प्रिंसिपल कभी कभी आते 11 बजे वाली ट्रेन से आकर 2 बजे लौट जाते , लेकिन स्टॉफ सदस्यों को विद्यालय में पूर्णतः शांति व्यवस्था बनाए रखने के 'गुड गुड' कह कर कॉम्प्लिमेंट देना न भूलते. अब स्कूल में कोई बच्चा हो तो ही तो शोर हो। बड़े स्कूल की बड़ी बड़ी बातें 😊
ज्यादातर अध्यापक स्टॉफ चैस और ताश खेलने में प्रवीण थे , विद्यालय समय में होने वाले सम्बंधित खेलों के आईपीएल सरीखे मैचों में अपनी इस कला का मुजाहिरा भी किया करते । बेचारी अध्यापिकाएं जो न जाने किस अज्ञात शर्म से उन सब का साथ न दे पाती अक्सर क्रोशिए या सलाई पर सलाई चढा कर दे दना दन टाइप अपना गुस्सा उतारती दिखाई पड़ती।
कम ऑन अब आप कहीं ये तो नही सोच रहे न कि मैं बस सबकी बुराई ही किए जा रहा हूँ ? ना जी , बड़ाई किए देता हूँ, अबी के अबी, एक हमारे अंग्रेजी के अध्यापक थे एक्सप्रेस सर, एक्सप्रेस इसलिए क्योंकि चलने से लेकर पढ़ाने तक , सबकी गति में किसी एक्सप्रेस ट्रेन की सी तेज़ी थी, वो चलते हुए आते हमे लगता दौड़ते हुए आ रहे हैं , आते ही बिना कुछ कहे ब्लैक बोर्ड पर एक साथ 3-4 प्रार्थना पत्र, 2-3 लेख, 5-6 कहानियाँ अंग्रेजी में छाप देते , अवाक से हम उनकी गति पर आश्चर्य करते हुए बोर्ड के पास जाकर कुछ समझ के साथ लिख लेने का प्रयास करते, गुरुजी जाने क्यों इससे चिढ़ जाते, अबे अंधे हो क्या कह कर ऐसा हाथ घुमाते उसके बाद अगले 10 मिनट चेतना शून्यता में गुजरते, फिर जब संवेदना लौटती तो आँखों को दूरदर्शी बनाकर पढ़ने की विद्या न जाने कहाँ से प्राप्त हो जाती . गुरुजी की जय हो।
जाने कैसे सब कल्लू कल्लन कालिया को पीछे छोड़ 11 वीं कक्षा में पहुंच गए तो श्री संजय शर्मा जी से परिचय हुआ , हमारे हिंदी सेक्शन के कक्षा और विषयाध्यापक , सब पर स्नेह बरसाने वाला मुस्कुराता चेहरा और अलौकिक व्यक्तित्व, विषय पर पकड़ इतनी की अपनी पहली ही कक्षा में रट कर याद करने वाले हम जैसो को समझ कर समझना समझा दिया, कभी याद नहीं पड़ता कि कभी किसी को मारा होगा। काव्य हो या गद्य उसे पढ़ते समय वैसा ही रसमय हो जाना उनसे सीखा, हर पेज पर डेढ़ दर्जन गलतियों पर गोले देख मुँह उतर जाता पर जब वो गोले धीरे धीरे एक एक कर कम होते गए तो सब असंतोष जाता रहा। स्व. श्री वंशीधर जी जब इतिहास पढ़ाया करते तो लगता मानो समय रुक ही नहीं बल्कि पीछे चला गया है और हम इतिहास को प्रत्यक्ष अपनी आंखों के सामने घटता देख पा रहे हो,वेद, उपनिषद, ब्राह्मण, आरण्यक लिखे जाने लगते, बुद्ध जीवित हो उठते, कलिंग युद्ध में अशोक के मन की पीड़ा पीड़ितों का चीत्कार जो शब्दों से प्रत्यक्ष कर दे वो गुरु सच मे विलक्षण ही थे। इतिहास को मात्र घटनाओं के विवरण की तरह न पढ़कर उन से सीख लेकर पढ़ने की सीख उनसे मिली। 12 वीं का जब रिजल्ट आया तो हिंदी वर्ग में मैं तहसील टॉपर था , अपने इन्हीं महान गुरुजनों के कारण , जब अंक तालिका लेने गया तो बंशीधर सर ने प्यार से सर पर हाथ रखा था, उनकी वो आँखें आज भी याद है मुझे।
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कहीं पढ़ा था ,थॉमस अल्वा एडिसन जब बल्ब बना रहा था तो निन्यानवे बार उसका प्रयोग असफल रहा, पर वो निराश नहीं हुआ, जब उससे पूछा गया तो उसने कहा कि मैंने 99 ऐसे तरीके खोज निकाले हैं जिनसे आप चाहो तब भी बल्ब नहीं बना सकते, आज बल्ब सहित अनेकों अविष्कार करने वाले एडिसन को सब सम्मान से याद करते हैं।
मित्रो, शिक्षण तो जीवन भर अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है, हम एक शिशु के रूप में जन्म से लेकर अब तक लगातार कुछ न कुछ सीखते ही आए हैं, माता पिता, मित्र, बन्धुजनों से लेकर जीवन के प्रत्येक अच्छे व बुरे अनुभव हमें कुछ न कुछ सिखाते हैं , ऊपर कुछ ऐसा विवरण लिखा है जो शायद मुझे किसी गुरु के लिए नहीं लिखना चाहिए (इसलिए सादर नाम परिवर्तित कर दिए हैं), पर जीवन में सिर्फ अच्छा ही नहीं होता, मैं किसी को सर्टिफिकेट देने वाला कोई नहीं पर बुराई को बुराई के रूप में स्वीकार करना हमें आना ही नहीं चाहिए, वरना अच्छाई मूल्यहीन हो जाएगी। मेरे जीवन में आकर अच्छा बुरा प्रत्येक, कुछ भी मुझे सिखाने वाले हर गुरुजन को हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। शिक्षक दिवस की अनेकानेक शुभकामनाएँ। नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नमः .......
#जयश्रीकृष्ण
अरुण
Rajpurohit-arun.blogspot.com
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