गुरु माँ का स्नेह

हमारी गुरु माँ भी बहुत कमाल हैं, सबके खाने पीने और स्वास्थ्य की देखभाल ऐसे करती हैं जैसे सच में हमारी जननी ही हों। पर कुछ दिनों से बहुत भुलक्कड़ सी हो गई हैं। हम लोगों के नाम तक याद न रहते। आज सुबह आदरणीय गुरुजी ही उनके कोपभाजन बन गए। दरअसल हुआ यूँ की प्रातः सब को कलेवा करवाने के बाद उन्हें ये तो स्मरण पड़ रहा था कि कोई है जिसने अल्पाहार नहीं लिया ये भी कि किसने नहीं लिया पर 'उस किसने' का नाम भूल गए। गुरुजी ध्यान-योग सत्र समाप्त कर जब स्वयं अल्पाहार करने पहुंचे तो गुरुमाता उन्हीं पर बिफर पड़ी। बोलीं 'आपको अपनी क्षुधापूर्ति की पड़ी है, उस बेचारे ने भी सुबह से कुछ न खाया, आपको उसकी लेशमात्र भी चिंता हुई?'

तिवारी जी मुस्कुराए, बोले, ' अच्छी बात है पहले अपने उस पुत्र को ही खिला दो प्रिय, मुझे बताओ मैं अभी उसे यहीं बुलवा लेता हूँ।'

गुरु माता ने याद करने का बहुत प्रयास किया पर नाम याद नहीं आया। रुआंसी होकर बोली, 'अरे वो है न मेढ़क सी आँखों वाला।'

गुरु जी हमें काव्य में अलंकार विषय पर बहुत बार व्याख्यान देते रहते हैं, पर निजी जीवन की वार्ताओं में ये सुख उन्हें गुरुमाता के श्रीमुख से ही प्राप्त होता है। इतनी विलक्षण उपमा सुनकर सोचने लगे कि इसका उपमेय कौन हो सकता है? एक एक कर भिन्न भिन्न चित्र उनके स्मृति पटल पर उभरने लगे।

गुरुमाता अधीर हो रही थी, बोलीं 'आप इतना समय क्यों लगा रहे हैं, बुलवा दीजिए न'

'हूँ, पर किसे? मानव चरित्रों पर पशु गुणों का आरोप कर तुमने मुझे दुविधा में डाल दिया प्रिय। इतने शिष्यों में से नेत्रों में मेढ़क से समता रखने वाला ढूंढने में समस्या आएगी ही, नाम याद करो या कोई अन्य चिह्न बताओ' गुरु जी बोले।

'ओहो, आप भी न, 7 ही तो शिष्य हैं। मैं उसकी बात कर रही हूँ जिसके सिर पर टिंडे जैसे रोएँ ही बचे हैं, बाल झड़ रहे धड़ाधड़।' गुरुमाता ने उलाहने के स्वर में कहा।

कदाचित गुरुजी ने इस बार चीन्ह लिया कि किसकी बात हो रही, इसलिए जोर जोर से हँसने लगे।

गुरु माँ को लगा कि ये अभी भी नहीं समझे। फिर कहने लगी, 'अरे वही जिसके खरगोश जैसे कान हैं। चलते समय बंदर की तरह उछलता है।'

गुरुजी पेट पकड़ कर और जोर से हंसने लगे।

गुरुमाता सौम्यता से बोली, 'आप हंस क्यों रहे हैं, अरे उसे बुलवा दीजिए न जिसके कान मंजीरे जैसे है, और जिसका पेट गजानन गणेश जी जैसा है।'

गुरु जी ने एक हाथ मुँह पर रखा दूसरे से पेट को दबाते हुए बोले, अरे बस बस, और फिर जोर से हंसने लगे।

गुरुमाता को खीज आ रही थी, झल्ला कर बोली, 'आप यहाँ हीही कर रहे वहाँ मेरा कद्दू जैसे गालों वाला बच्चा सुबह से भूखा बैठा होगा। आप रहने दीजिए मैं स्वयं ही बुला लाती हूँ। कह कर वे पाक कुटीर से बाहर आईं।

वटवृक्ष के नीचे शुक्ला जी क्लास चल रही थी। हम सब नीचे बैठे उन्हें बस सुन रहे थे। गुरुमाता की उपस्थिति से पूर्णतया अनभिज्ञ सरदार अत्यंत गम्भीर होकर डींगें हांकने में व्यस्त थे। बोले,'तुम सब के सब ढक्कन ही रहोगे, लिखवा लियो हमसे। अबे बोर नहीं होते रोज रोज यही सब पकाऊ खाना खा के ? हम तो आज अमृत चख कर आ रहे। कन्या गुरुकुल के पिछवाड़े एक बेर का वृक्ष है।'
विमी बोले, ' हाँ हाँ, हमनें भी सुना है उसके बारे में...!'

सबकी दृष्टि विमी की ओर घूम गई, तो सरदार चिल्लाते हुए बोले, 'अबे चुप बे, घण्टा पता है तुमको, आज हम उसी बेरी के बेर खा कर आए हैं, वो भी पेटभर कर। ये लो तुम लोगों के लिए भी लाए हैं, कह कर अपनी धोती के साइड में बंधी पोटली खोल दी। चारों ओर बेर ही बेर बिखर गए। भगदड़ और लूट मच गई। अचानक एक हाथ से किसी ने शुक्ला की गुद्दी पकड़ ली। शुक्ला ने गर्दन घुमाई तो देखा गुरु माता ने अपने एक हाथ मे खड़ाऊ थाम रखा था। क्रोध से तमतमाते हुए बोली, ' मैं इस लंगूर के खाने के लिए कब से चिंतित हो रही हो और ये बिना आज्ञा दीवारें फांदता घूम रहा।'

हम नहीं समझ पाए कि शुक्ला को इतना पीटने की क्या जरूरत थी? चलो पीटा सो पीटा पर पूरे हफ्ते के लिए गुरुकुल वालों के कच्छे और धौतियाँ धोने का दंड ? ये तो ज्यादती ही हो गई बेचारे के साथ।

वैसे बेर वाकई मीठे थे, इस बात की पुष्टि किसी से भी की जा सकती है।

#जयश्रीकृष्ण

#गुरुकुल_के_किस्से

✍️ अरुण

Rajpurohit-arun.blogspot.com

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