😡😠😩😭😇😜 नियति ♠️♠️♠️♠️♠️

फ्रॉक सूट में लड़कियों की उम्र और भी कम लगती है न। और ये दोनों तो बहुत प्यारी सी चाबी वाली गुड़िया सी लग रही थी जो हमारी ओर बढ़ रही थी। एक गोरी थी, तो दूसरी थोड़ी सांवली, एक का कद 5'5" था, तो दूसरी का 5'3", एक की नाक बहुत तीखी सी थी तो दूसरी की छोटी पर क्यूट सी, एक की आँखे बड़ी बड़ी थी तो दूसरी चश्मिश, एक के चेहरे पर शर्म के साथ मुस्कान घुली थी तो दूसरी के चेहरे पर हल्का गुस्सा माथे की त्योरियों में अपनी जगह ढूंढ रहा था,  दोनों आकर हमारे डेस्क के पास खड़ी हो गई, उन्हें देख हम भी खड़े हो गए। चश्मिश ने गुस्से से भरी आँखों से हम दोनों को देख कर पूछा, 'उजबक कौन हैं आप मे से ?'

'ओहो आप तो आते ही रैगिंग पर उतर आई संज्ञा जी, थोड़ा बैठिए तो सही। कौन कौन है यही जानने तो आएं हैं सब।' मैंने मुस्कुराते हुए कहा। चश्मिश ने खा जाने वाले नेत्रों से मुझे देखा। बोली, ' नाम मत लो तुम मेरा, 😠 तो तुम हो उजबक ? कितने वाहियात लैटर लिखे हैं तुमने। वो भी सड़े हुए बदबूदार शेर ठूस ठूस के। आज के जमाने में कौन लेटर लिखता है? उस पर तुम्हारी राइटिंग भी माशाअल्लाह, बताया नहीं किसी ने ? टट्टी लिखते हो तुम , एकदम टट्टी, आक थू।' कहते कहते उसने सच में घास पर थोड़ा सा थूक दिया। दूसरी कन्या उसका हाथ दबा कर उसे शांत करने की कोशिश कर रही थी। उसने उसका हाथ झटका और फिर शुरू हो गई, 'तू चुप कर नियति, इन जैसों को हैंडल करना मुझे बखूबी आता है। हाँ तो सब बोलो, बड़ी चुल्ल मची थी न मिलने की, मिल कर बात करने की? अब करते क्यों नहीं? बोलो।'

मैं कुछ कहने ही वाला था कि उजबक बोले, 'देखिए देवी, कदाचित यहाँ कुछ मतिभ्रम हो रहा है। आप अकारण आवेशित हो रही हैं। कृपया शांत हो जाइए, आप भी विद्यार्थी हैं, धैर्यहीनता विद्यार्थी को शोभा नहीं देती। आप आक्रोश में उद्विग्न होकर गलत व्यक्ति से उलझ रही हैं। ये तो मेरे मित्र 'अरुण' हैं, और मेरा नाम उजबक है। किंतु क्षमा कीजिए हम यहाँ आपकी नहीं देवी चमेली की प्रतीक्षा कर रहे हैं। संभव है आप भी उनसे परिचित हों।' कह कर उजबक ने संज्ञा के फ्रॉक पर बने कन्या गुरुकुल के बैज की ओर देखा।

संज्ञा थोड़ी शांत हुई और बोली , 'देखिए भाई साहब, आप भले आदमी मालूम पड़ते हैं। पर ऐसी ओछी हरकतें भी किसी को शोभा नहीं देती। अगर आप उजबक हैं तो क्यों आपने मेरी सहेली को वे पत्र क्यों लिखे ? ये बहुत सीधी है, इसे लगा आप सच मे इससे प्यार करते हैं। और हाँ हमारे गुरुकुल में चमेली नाम की लड़की तो क्या कोई पौधा भी नहीं है।'

उजबक के चेहरे पर एक साथ कई भाव आए, पर अगले ही क्षण स्वयं को संयत किया और बहुत गम्भीरता से कहने लगे, 'आपको असुविधा हुई उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ संज्ञा जी। सत्य जानिए मैंने कभी किसी को कोई पत्र न लिखा। मुझे भी एक पत्र प्राप्त हुआ था, लगा कि कोई रमणी मुझ जैसे मूढ़मति को भी अपनाने , उससे प्रेम करने का साहस रखती है। ऐसा कभी कोई अनुभव भी तो न रहा है। असत्य नहीं कहूँगा, वह पत्र पाया तो उसी क्षण हृदयतल से उस अज्ञात नायिका के प्रति स्वयं को समर्पित कर दिया था। जो घटित हो चुका उसे लौटाना तो मेरे वश में नहीं किंतु आपकी मित्र की भावनाओं को मेरे कारण कष्ट हुआ है, मैं विधाता से प्रार्थना करूँगा की मुझे रौरव में भी स्थान न मिले। भले ही मैंने स्वप्न में भी कभी किसी के अनिष्ट की कामना नहीं की, किंतु यह भी तो सत्य ही है कि उजबक नाम इनके कष्ट का हेतु बना। हो सके तो मुझे क्षमा कर दीजिए।' उजबक ने भावुकता से नियति के सामने हाथ जोड़ दिए।

नियति जो अब तक नेत्रों को नीचे किए शांत बैठी थी, उसने पहली बार उजबक की ओर देखा। उसकी आँखें जलप्लावित हो रही थी। बोली,' आप ऐसा न कहिए। संज्ञा ने जो कहा उसके लिए मैं आपसे क्षमा चाहती हूँ। आप ही के समान प्रेम शब्द को अनुभूत करने का मेरा भी यह प्रथम ही अनुभव है। पहले पहल लगा कि कोई परिहास कर रहा होगा। पर फिर आपके नाम से एक के बाद एक पत्र आने लगे। लिखावट से अधिक कथ्य महत्त्वपूर्ण लगने लगा। उन पत्रों की प्रतीक्षा करते करते कब जीवन में आपके आने प्रतीक्षा करने लगी मुझे भी ज्ञात नहीं। किंतु चमेली का छद्म नाम मैंने ही आपको लिखा था, शायद इस भय से कि अगर पत्र किसी के हाथ लग जाता तो मैं कहीं की न रहती। अगर कोई दोषी है तो वो मैं हूँ। मुझे क्षमा कर दीजिए',  कह कर नियति वहीं घुटनों के बल बैठ कर जोर जोर से रोने लगी। चेहरा आँसुओं से भीग गया। उजबक भी भावुक हो रहे थे, और शायद संज्ञा भी। मुझे भी थोड़ा अज़ीब सा ही लग रहा था पर जैसे भी हो गाड़ी अब ट्रैक पर आती लगी।

संज्ञा कुछ बोलने को हुई तो मैंने उससे कहा, 'आप प्लीज इधर आइए, इन दोनों की समस्या ये ही सुलझाएं तो अधिक सही रहेगा। '
संज्ञा ने गुस्से से मुझे देखा पर फिर पार्क में एक ओर पग पटकती सी चल दी। मैं भी उसके पीछे पीछे हो लिया। 😜

'संज्ञा जी, आपका फेवरेट सब्जेक्ट क्या है?' चलते चलते उससे मैंने पूछा।

'देखो, मैं नियति नहीं हूँ, और मुझे अभी भी बहुत गुस्सा आया हुआ है, आपको बोल दिया न कि नाम मत लो मेरा। मुझे आप पर पहले भी गुस्सा नहीं करना चाहिए था, अब भी नहीं करना चाहती सो इट वुड बी बेटर फ़ॉर यू , प्लीज लीव मी अलोन।' संज्ञा ने अपने आप पर कंट्रोल करते हुए कहा।

'अरे सुनिए तो, अच्छा ठीक है आप कहती हैं तो मैं आपका नाम नहीं पुकारूंगा। पर किसी क्यूट सी लड़की को 'संज्ञाहीन' कर देना तो पाप हो जाएगा, नहीं?' मैंने हंसते हंसते कहा।

संज्ञा रुकी, अपना नजर का चश्मा थोड़ा नीचे कर मेरी ओर देखते हुए कहा, 'हो गया आपका? नाउ विल यू प्लीज शटअप?' मैंने पहली बार उसकी आँखें देखीं। बिना काजल के काली आँखें, लगा कि ज्यादा देर इन्हें देखा तो बींध डालेगी।

'ओके ओके, गुस्सा छोड़िए न प्लीज। अच्छा ये बताइए आपको स्विमिंग आती है? मुझे तो बिल्कुल नहीं आती। पर अभी लग रहा है कि आनी तो चाहिए, है ना?'

'क्यों घास में तैरने का मन हो रहा ? जाओ तैर लो, डरो मत, मैं नहीं डूबने दूंगी, आई एम ए गुड स्विमर, डोंट वरी।' संज्ञा ने हल्के व्यंग्य से कहा।

मैं जोर से हंसा। कहा , ' अरे, आप तो मुझे अभी डुबो देती, जानती भी हैं कितने समंदर आँखों में लिए घूम रही हैं आप ?' 😜

"देखिए जाइए ये सस्ते जोक किसी और को सुनाइए, मुझे इन पर हंसी नहीं आती।"  संज्ञा ने बेरुखी से कहा।

'गुरु जी ने बोला था कि अकेली लड़की खुली तिजोरी जैसी होती है, मैं नहीं चाहता कोई मेरा खजाना लूट...आई मीन मैं नहीं चाहता कोई आपको कोई नुकसान पहुंचा दे।' मैंने ढीठाई से कहा।

"मेरी चिंता छोड़ अपनी कीजिए, कलारिपट्टू चैंपियन हूँ, राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुकी हूँ।" संज्ञा थोड़ा हंस कर बोली। 😊

' वाह खेल खेल कर थक गई होंगी, हिमक्रीम मेरा मतलब आइसक्रीम खाएंगी ?'

"नहीं, आपको सच में अक्ल ही नहीं है, बूंदे बरस रही तो पकौड़े का मौसम हुआ न?"

'लाऊं?'

"ना कहूँगी तो ?"

'तो आइसक्रीम ले आऊंगा।'

"पागल 😊😊, अच्छा ठीक है, जाइए ले आइए।"

मैं दौड़ कर गया उद्यान के बाहर की रेहड़ी से पकौड़े लिए, पूछा पेमेंट कार्ड से कर दूं ? उसने मुझे ऐसे देखा जैसे मैंने उससे किडनी मांग ली हो। बोला, 'भाऊ कैसा बात करता तुमि, वो सब बड़े होटलां में होतां इदर नी, रोकड़ा देओ नाइ तो माल इदर ई रखो रे बाबा।'

'अरे बाबू भैया आप 😜, रुकिए देता हूँ' जेब से पर्स निकाला, देखा तो 100 रुपए का एक नोट बड़े सलीके से 'प्रदीप' की फोटो के पीछे छुप कर बैठा था। मैंने दोनों निकाले। नोट बाबू भैया को और फ़ोटो धरती मैया को दिए। पकौड़े उठाए और संज्ञा का सर्वनाम बन कर उसकी ओर उड़ चला। बूंदे बरसना थोड़ा तेज़ हो गया था। संज्ञा एक पेड़ की छाया में अकेली बैठी थी मुझे देखा तो बोली, ' सिर्फ हमारे लिए लाए हो, नियति के लिए ?' कह कर उसने उनकी दिशा में देखने का प्रयास किया। मैंने अपना एक हाथ उसकी आँखों के आगे कर दिया। उसने मेरा हाथ झटक कर फिर देखा। नियति और उजबक दोनों भीगते हुए आलिंगनबद्ध दिखाई पड़े। शर्मा कर वो बैठ गई। धीरे से पकौड़े उठा कर खाने लगी। मैं अपने दोनों हाथों से उसके सर पर छाता बना कर खड़ा था। उसने मुझे यूँ देखा तो मुस्कुरा दी।

अब इस बारिश से सब भीग रहे थे, उजबक-नियति, संज्ञा और शायद मैं भी ....😇

To be continued.......

#गुरुकुल_के_किस्से
#उजबक_कथा
#पार्ट5

#जयश्रीकृष्ण

✍️ अरुण

Rajpurohit-arun.blogspot.com

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