👩👧👦👨👼 मातृ आलोचना ♠️♠️♠️♠️♠️

सब लोग अपनी माँ से प्यार करते हैं, मैं भी करता हूँ पर एक्चुअली मैं अपनी मम्मी का हमेशा से बहुत बड़ा आलोचक भी रहा हूँ, उनको मेरे गुणों की कभी पहचान न हुई। कभी कभी तो ये भी सोचता हूँ कि इतनी उच्च मेधा, त्वरित निर्णायक क्षमता और शारीरिक सौष्ठव का चातुर्य के साथ प्रयोग करने जैसी योग्यताओं के लिए उन्हें मेरा कायल हो जाना चाहिए, अपने भाग्य की सराहना करते हुए ईश्वर को बारम्बार धन्यवाद देते रहना चाहिए कि उन्होंने इतना विलक्षण बालक केवल 'उन्हें' प्रदान किया। यूँ कहने के लिए पड़ौस में रहने वाली सुमित्रा मौसी के दो बेटे भी मेरे जैसे ही कहे जा सकते हैं पर उन दोनों से जितना मिलकर न हुआ उतना मैं अकेला कर डालता। स्कूल में उन दोनों के कुल नम्बरों से मेरे ज्यादा रहते। वो दोनों भाई थे, पर भाईगिरी मैं करता। हालांकि मेरी याददाश्त आज भी बहुत अच्छी ही है पर उन दिनों में हमारा हमउम्र कोई भी लौंडा हमसे पिटने से बचा होगा ऐसा याद नहीं पड़ता। सुमित्रा मौसी बच्चों को पीटने में सिद्धहस्त थी, पर मम्मी से कम। मौसी जी के दोनों लड़के, ऊप्स मैंने आपको अब तक उनके नाम भी नहीं बताए न? नोट कीजिए अब फटाफट, पप्पी और राजू, हाँ तो पप्पी और राजू दोनों मिलकर मौसी से जितनी मार खाते थे, उससे अधिक मैं अकेला खाता था, इसलिए इस मामले में भी मेरी श्रेष्ठता निर्विवादित ही थी। अब मार तो मार होती है, दर्द होना ही होता था, और कुछ नहीं कर पाता था, तो आलोचना करना ही सही लगता, इसलिए बन गया आलोचक।

कदाचित आप ये सब झूठ समझ कर हजम करने में परेशानी अनुभव करें, पर फिर भी विश्वास कर लीजिए। क्योंकि हम थोड़ा नहीं बहुत फ़्लैश बैक में जाने वाले हैं। इतनी पुरानी बात को झूठ प्रमाणित करने की न तो आप जहमत उठा सकेंगे न ही कोई साक्ष्य ही जुटा पाएंगे, इसलिए मान लीजिए कि मैं सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ही हूँ। क्या कहा? कितना फ़्लैश बैक? अजी वो आप अंदाज़ा लगाते रहिए। देखिए वो देखिए ये जो तीन छोटे छोटे बच्चे हैं, इनमें सबसे गोरा वाला मैं ही हूँ। मम्मी कहती है कि मैं इतना प्यारा और गोरा था कि मौका देखते ही पड़ौस की अंजू दीदी मुझे नंग धड़ंग भी उठा ले जाती थी। हाऊ क्यूट ना ? यस आई नो। पर देखिए, अपनी क्यूटनेस को मेंटेन रखा है, 4 साल का हूँ तो कपड़े पहने बिना बाहर नहीं आता। एटलीस्ट चड्डी होना तो कम्पलसरी कर दिया है। देख लीजिए आज भी पहनी ही है, ब्लू कलर की। मुझे संडे से मुहब्बत होने लगी है, स्कूल से प्रॉब्लम नहीं है, वो तो मैं तब से जा रहा हूँ जब 2.5 साल का था। पर इस दिन होम वर्क नहीं करना पड़ता। एंड आई रियली लव देट। पर मुझे ये भी अच्छे से पता है कि ये संडे का दिन रोज नहीं आता, बहुत दिन बाद आता है, आज जब आया है तो अपुन फुल ऑन एन्जॉय करने को मांगता।

पप्पी राजू, मेरे साथ बैठे हैं। मनन हो रहा कि आखिर समय का सदुपयोग कैसे सुनिश्चित हो? पप्पी ने अन्त्याक्षरी का सड़ा सा आईडिया दिया, जिसे सदन पटल पर रखने से पहले ही निंदा प्रस्ताव झेलना पड़ा। राजू ने बोला कि कॉलोनी चलें? मैंने सराहना के नेत्रों से उसे निहारा, पप्पी राजू दोनो की आंखों में चमक आ गई। दरअसल राजू पप्पी के पापा वहीं काम करते हैं। बेलदार हैं। और इस कॉलोनी को नहरी कॉलोनी भी कहते हैं। सिंचाई विभाग का ऑफिस है यहाँ। पप्पी यहाँ पहले भी आ चुका है। इसलिए गाइड की भूमिका उसे मिली। बिना अन्य किसी विशेष चर्चा में समय गवाएं, बिना किसी को भी कोई सूचना दिए हमनें सीधे प्रस्थान करना उचित समझा। शुभस्य शीघ्रं। रास्ते के दृश्यों में समय न गंवाते हुए आप भी वहीं पहुंचिए। हमको उस कॉलोनी में घुसने से किसी ने न रोका। शायद पप्पी को जानते होंगे सब। पप्पी पेड़ पर चढ़ने में बहुत फ़ास्ट है। शहतूत के पेड़ पर सरपट यूँ चढ़ गया जैसे बंदर हो। खूब कच्चे पक्के शहतूत ऊपर से तोड़ कर गिराने लगा। धूल के साथ शहतूत वाकई टेस्टी लगते हैं। हम दोनों नीचे गिरे शहतूत बीन कर भुक्खड़ों की तरह ठूंसने में लगे थे। थोड़ा स्टॉक कर लेने की इच्छा हुई, पप्पी से कहा तो वो डाली को हिलाने के चक्कर में खुद धम्म से नीचे आ गिरा। पता नहीं क्यों और कैसे पर उसके जरा भी चोट लगी नहीं, नीचे गिरते ही थोड़ी सी रोनी शक्ल बनाई पर हमको देख कर मुस्कुराने लगा। कमर सीधी कर कपड़े झाड़ने लगा। पर नीचे गिरने की आवाज़ सुन एक आंटी आ गई कहीं से, डांटने लगी। बोली अगर चोट लग जाती तो ? निकलो भागो यहाँ से। अगर मैं कोई ज्वालामुखी होता तो अपने क्रोध के लावे से उनको वहीं जला कर भस्म कर दिया होता। पर अपने और उनके साइज में इतना महान अंतर देख क्रोध को दबा देना ही उचित लगा।

कॉलोनी से निकल कर पास आ रही नहर के पास चले गए हम सब। ये नहर बहुत बड़ी नहीं है। छोटा नाला टाइप ही समझिए। कुछ बड़े लड़के नहा रहे हैं बीच मे खड़े खड़े ही, पानी उनकी कमर तक भी न आ रहा। कुछ इसी में तैर भी रहे। बड़ा मजा आ रहा, देख कर ही, सोचा कि क्यों न हम भी उन्हीं की तरह किनारे की बालू मिट्टी में लोट पोट होकर नहर में कूद कर देखें। कितना मजा आ रहा इनको , हमको भी आएगा। पर जैसे ही कपड़े उतार कर नंगे हुए, एक अंकल खामखाँ चिल्लाने लगे। बोले खबरदार जो पानी में कूदे तो। अमा सब को हम ही से दुश्मनी क्यों है? इन लड़कों को तो कोई कुछ न कहता। क्या कहें, समरथ को नहीं दोष गुसाईं। मूड खराब हो गया। घर वापसी का विचार भी मन में आया, पहले ही काफी देर हो चुकी थी। बट हू केयर्स। घरवालों ने हमारी खोज खबर लेना शुरू कर दी थी। और हमें आसपास यहाँ वहाँ न पाकर उनकी हालत खराब हो रही थी। स्टुपिड पीपल, हमें कहीं कुछ हो सकता है भला, देखो भले चंगे हैं, अपना ध्यान खुद रख सकते हैं। लौटते वक्त ट्रेन की आवाज़ कानों में पड़ी तो कदम स्टेशन की ओर मुड़ गए। मीटर गेज पटरी पर कोई माल गाड़ी आई हुई थी। खाली गाड़ी में जितना उछल कूद हो सकती थी हमनें की, आश्चर्य की यहाँ किसी ने हमें न रोका। रेल वाकई सार्वजनिक संपत्ति है, और रेल कर्मी साक्षात भगवान, जो जल्दी से किसी पर ध्यान नहीं देते। माल गाड़ी हमें अपना माल समझ कर ले उड़े तो ले उड़े उनकी बला से, खैर जब खेल खेल कर मन भर गया तो घर के भोजन की याद आने लगी। लगा कि घरवालों को छोड़ो पर भोजन को ज्यादा इंतज़ार करवाना तो पाप होगा।

मोहल्ले में घुसते ही सूचनाएं विद्युत गति से प्रसारित होती हुई घर वालों तक पहुंची। मेरी बहनों के साथ आसपास के लोग हितैषी होने का नाटक करते हुए हमारे चारों ओर घेरा बंदी बनाने लगे। यूँ की हमनें खतरे को सूंघ तो लिया पर थोड़ा देरी से, वापस मुड़ने की कोशिश भी की, पर पकड़े गए। घर पहुंचाए गए तो देखा मम्मी और मौसी भन्नाए बैठी हैं। ओ हो हो हो क्या मारा है भाई साहब। यादें लिखते लिखते भी दर्द से आँसू आ रहे। अपने बच्चे पर इतना अत्याचार ? टैलेंट की कद्र ही नहीं है। कोई समझाओ इनको कि आप लोग ही कद्र न करोगे तो दूसरे क्या घण्टा करेंगे? पप्पी राजू ने अपनी तोतली वाणी में बहुत झूठ बोले कि हम चिल्लेदार और पटारी (जिलेदार और पटवारी) के घर गए थे, लेकिन मैंने तो सब सच बताया। पीटना तो नहीं ही चाहिए था। 😢

#जयश्रीकृष्ण

#बचपन_के_दिन

✍️ अरुण

Rajpurohit-arun.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...