🚶🚶🚶🚶🚶 ले चल मुझे भुलावा देकर ♠♠♠♠♠

बरसों बाद 'गाँव' जा रहा हूँ, अपने आप से मतलब रखने वाला शहरी जो हो गया हूँ, टाइम ही नहीं है किसी और के लिए, कई बार मन होता पर नही जा पाया, बहुत सी यादें जुडी हैं इस शब्द से, मेरे लिए गाँव का मतलब ढेर सारी मौसियों के घर, हाँ मेरी सभी चारों मौसियों की भी शादी मेरे ही गाँव में हुई है।  गाँव मतलब, बेरी के झाड़ वाली कांटेदार बाड़ वाली दीवारों वाले घर, खींप सीणीयाँ वाले वातानुकूलित झोंपड़े और ढूंडे, जिनमें जेठ की तपती दुपहरी में भी न जाने कैसे शीतल बयार बहा करती, तब भी जब बाहर हवा चलने का नामो निशान तक न हुआ करता। गाँव मतलब बालू मिट्टी के टीले, धोरे, जो कहते अभी अभी हज़ारों साँप यहाँ से गुज़रे हैं। कुछ धोरे तो इतने बड़े हो गए थे मानो खुद को पहाड़ कहलवाना चाहते हो,उन पर चढ़ कर पास के 3-4 दूसरे गाँव नज़र आते, गाँव मतलब होली, चंग की थाप पर थिरकते कदम, गींदड़ में लड़कों का लड़की बन होने वाला स्वांग, हंसी-ठिठोली। गाँव मतलब बरसात के पानी से बना अस्थायी तालाब 'नाडिया' और किनारे की बालू में लोट कर छलांग लगाओ नहा कर सब खुद को फेल्प्स की फीलिंग दे दो, सब कुछ वैरी सिम्पल। एंड फाइनली गाँव का मतलब जिंदगी, उससे जुड़े लोग, आत्मीयता, रीति-रिवाज और उन्हें निभाने की तन्मयता।  सब कुछ जैसे खो सा गया था, इसलिए इस बार जब मौसी जी के घर से बुलावा आया तो फटाफट प्रोग्राम बना डाला।

पूरे रास्ते गाड़ी चलाते वक्त गाँव की खुशबू को दूर से ही महसूस करने की चाहत के चलते बाहर तांक झांक करते आया, टीले अब उतने भूरे नहीं लग रहे, अकड़ कर खड़े रहने वाले धोरे भी अब सीधे हो रहे, जाने क्यूँ पर मेरा मन हरे भरे टीले स्वीकार नहीं कर पा रहा। मुख्य सड़क से गाँव की और घूमते ही मोहन चाचा नज़र आ गए, मोहन चाचा , इनकी गिनती गाँव के सबसे रईस लोगों में होती है , फूसकी (पुष्पा,चाचा की इकलौती बेटी) की शादी की धाक आज भी गांववालों के मन पर है,होती भी क्यूँ न  बेटी को तो इतना दिया की लड़के वालों को ले जाने में ही पसीने आ गए और तो और सभी बारातियों को भी चाँदी के बर्तन की यादगार भेंट दी गई थी। तब से बस अकड़ के चलते हैं , क्या मजाल जो किसी से सीधे मुँह बात कर लें। उनको देख मैंने गाड़ी से उतर उनके पांव छुए, बदले में आशीर्वाद रूप में 'हूँ' मिला, सीधे बोले कब आया?

'जी, बस अभी अभी चला आ रहा हूँ।'

चाचा एक और 'हूँ' में बात निपटा कर अपने रस्ते हो लिए। मैं उन्हें जाते देख रहा था। चाचा ऐसे तो न थे, बहुत मेहनती थे और ये शौहरत उन्होंने अपनी मेहनत से पाई थी विरासत में नहीं पर गाँव से बाहर शहर तक उन्हें ले जाने वाले पापा थे। आज उन्ही की संतान से अकारण ऐसी बेरुखी ? चलो जी कोई बात नहीं। सोचते सोचते गाड़ी बढ़ा दी।

गाँव में भी अब बाड़ की जगह ईंट की दीवारों ने ले ली है, कुछेक घरों में अब भी कांटेदार झाड़ की बाड़ है। दीवारें अच्छी नहीं लग रही मुझे, और कांटे खुशनुमा अहसास जगा रहे है, बड़ी हसरत से देखता आगे बढ़ा जा रहा हूँ। मौसी का घर झोंपड़ा नहीं रहा अब तो अच्छा खासा महल है , आज सज धज के और भी अच्छा लग रहा है पर झोपड़ी की चाह पूरी न होने से मन में कसक जैसा कुछ है। भीतर डीजे की कानफोड़ू ध्वनि गूँज रही। देखा कुछ बच्चे नाच रहे हैं 'भंडारे म् नाचे म्हारी बीनणी ए' गीत की धुन पर। डीजे है? पर ढोली क्यूँ नही ? स्वयं से प्रश्न करता मैं भीतर प्रविष्ट होने लगा। 'अरे रे रे रुक बेटा', मौसी जी अचानक एक थाली के साथ प्रकट हुई, 'टीका तो निकलवा ले, भाई की शादी में आया है इतना भी नही जानता? ' तप्त मन पर जैसे मरहम सी रख दी हो। गीला कुमकुम लगा भले ही माथे पर था पर शीतलता भीतर तक अनुभव हो रही थी। मौसी जी बहुत खुश नजर आ रही थी, स्वाभाविक भी था चार बेटे हैं उनके, सब के सब उम्र में मुझसे बड़े हैं, अच्छा खासा कमाते है, बिजनेस है रुपया पैसा भी है, और अब इकलौती बची हुई ख़ुशी भी उनकी होने जा रही थी, बेटे की शादी हो रही थी। अब तक शादी न हो पाने के कारण मौसी कुछ दुःखी से रहते थे पर अब सब ठीक होने जा रहा था।

सब शादी के कामों में लगे थे, मैं क्या करता, बोर होने लगा तो छत पर चला गया टहलने, सोचा देखूँ ऊपर से मेरा गाँव कैसा नज़र आता है। गाँव का शहरीकरण साफ नजर आ रहा था पक्के मकान, और उनकी छतों पर टंगे डी टी एच के छोटे छाते कुकुरमुते की तरह हर और दिख रहे थे। अचानक मदि भैया, मेरा मतलब मदन सिंह, मौसी जी के छोटे बेटे और हमारे बड़े भैया ने कंधे पर हाथ रखा।

'क्या यार, कब आए? और यहाँ क्या रहे हो अकेले में, खाना वाना कुछ हुआ के नही ?'

'हाँ भैया, खा लिया। नीचे कोई नहीं था बात करने को तो यहाँ आ गया।'

'अच्छा! चल अब नीचे चलते हैं। आजा।'

'हाँ भैया, पर एक बात बताइए। वो गोपाल काकोसा का घर है ना? ये उनके घर में साड़ी वाली औरत कौन है ?'

'हाहाहा, अरे भाई तू किस लोक से आया है, तुझे कुछ नहीं पता ? ये बहु है उनकी। रमेश की लुगाई'

'पर साड़ी? हमारी राजपूती ड्रेस क्यूँ नहीं पहनी इन्होंने ?'

'अरे भाई, वो हमारा पहनावा है इनका नही'

'मतलब?'

'मतलब ये भाई मेरे, कि हमारी जाति की है ही नहीं।'

'लव मैरिज है ?'

'हाहाहा तेरे यही समझ में आएगा शहरी बाबू। तू यही मान ले। चल अब आजा।'

नीचे आए, तो बहुत सारे परिचित और कुछ अपरिचित चेहरे घूम रहे थे। मैं वही भैया के साथ बैठ गया। सामने एक कमरा बाहर से बंद है, एक नज़र भर देखा फिर ध्यान हटा कर भैया से पूछा , अच्छा भैया बारात कहाँ जाएगी ?

भैया फिर से हंसने लगे। समझ नही आया की भैया किस पर हंस रहे, मेरी बात पर या मुझ ही पर :| और इसमें हंसने जैसा क्या था आखिर ? अपनी झेंप मिटाने को बोला की भैया मैं गाँव का चक्कर लगा के आता हूँ और बाहर निकल आया।
 ठाकुर जी का मंदिर आज भी वैसा ही है, सब पूजा-अर्चना करने जाएंगे पर पैसा-खर्चना कोई नहीं करता। चूने और पत्थर से बनी दीवारों तक को दीमक चाट गई हैं, प्रसाद पर मंडराते मकोडों के झुंड आज भी वैसे हैं जैसे पहले दिखाई देते थे। 'पीर जी के रोजे' के पास मेरी दूसरी मौसी का लड़का लक्ष्मण  नजर आया, शायद खेत से आ रहा था। सोशल मीडिया की चपेट में आकर ये भी लक्ष्मण से लकी हो गया है मुझे देखा तो भाग के करीब आया, गले लगाया बोला आप कब आए भैया, चलो घर।

सरोज मौसी ने खाट पकड़ रखी थी। मौसा जी तो अब रहे नहीं , उनके सिरहाने खड़ी लड़की ने घूँघट खींचा और अंदर चली गई। पूछा तो पता लगा लकी मियां ने शादी बना डाली किसी की लड़की भगा के, मौसी जी बताते वक़्त कुछ उदास नज़र आए फिर बोले 'चल भाग के ही सही आई तो अपनी जात वाली। आजकल तो जिसे देखो दूसरी जात में परणीज (विवाह) रहा है। और जात पात अब कौन देखता है सबको बीनणी चाहिए चाहे जैसे भी आए। पहले लड़के वालों की कदर होती थी अब लड़की वालों की है।' उनके शब्दों के सच के साथ परेशानी के निशानी उनकी पेशानी पर दिख गए, 2 लड़के और हैं अब उन्हें कौन अपनी लड़की देगा। मैं चलने को हुआ तो मौसी जी बोले, अपने भाइयों का ध्यान रखना, कोई लड़की हो तेरे ससुराल में तो बताना। 'जी मौसी जी, ये भी कोई कहने की बात है।' कहकर उनके पांव छुए और बाहर आ गया। लकी मेरे साथ ही हो लिया।

गांव के लोग अब भी कुएँ का ही पानी पीना पसंद करते हैं, लकी बता रहा था। सुना था कोई 'जर्मन योजना' से पालर पाणी घर घर पहुँचाने की स्कीम आई थी पर लोगों ने नकार दिया।

मुझे इन बातों में कोई रूचि नहीं बात बदलते हुए पूछा,' इस बार की होली कैसी रही ? '

'कैसी होली भैया, कोई होगा तभी तो रंग उड़ेगा।'

'मतलब?'

'अब किसके पास वक़्त है होली के लिए, सब बाहर रहते है पैसे कमाने का भूत सवार है सब पर, जिसके पास सब है उस पर भी, एक अजीब सी होड़ है सबसे आगे निकल जाने की, पर न जाने कहाँ'

'अच्छा छोड़ वो सब, प्रकाश भाईजी की बारात कहाँ जा रही है तुझे पता है ?'

'हाहाहा, क्या भैया आप भी, आपको नहीं पता ? बारात कहीं नहीं जा रही'

'हैं ? मतलब ? मैं समझा नहीं'

'अरे भैया, बीनणी पहले ही आ गई तो बारात की जरूरत क्या है ?'

'तू ढंग से बताने का क्या लेगा'

'हाहाहा बताता हूँ बताता हूँ, देखो भैया बारात दुल्हन को लिवाने ही तो जाया करती है न, अब सिस्टम बदल गया है, दुल्हन पहले आ जाती है तो लिवाने का कोई झंझट ही नहीं'

मुझे कुछ समझ नही आया फिर से, लकी को गुस्से से घूरा तो वो फिर से कहने लगा,' भैया यहाँ लड़कियाँ बची ही कहाँ है शादी के लिए, इक्का दुक्का जिनके हैं वो सब चाहते हैं कि उनकी बेटी की शादी तो कलेक्टर से करेंगे, गलत नहीं हैं ऐसा सोचना पर फिर बाकि लड़को का क्या होगा ? आपको पता है गाँव में इतने कुँवारे है कि कान काटो तो कुआं भर जाए। अब इन्ही कुँवारों ने ये स्कीम चलाई है, दूर दराज से किसी गरीब की बेटी को ले आते हैं पैसा देकर, उनका भी फायदा और इनका भी, अपने प्रकाश भैया भी उनमें से एक है। '

लकी चुप हो गया पर मेरे कान में 'गरीब की बेटी' शब्द गूँजता रहा। सोचने लगा,अपने धन से किसी का आँगन आबाद करने वाला तो सबसे बड़ा धनवान हुआ, पर क्या स्त्री की यही नियति है ? उसे किसी चीज की तरह खरीदा और बेचा जाए? जो बिक कर आई होगी उसे तो पता भी न होगा की खरीददार कौन है, कैसा है ? सोचने लगा, क्या रमेश और प्रकाश भाईजी जैसे लोग गलत कर रहे हैं? मौसी जी के यहाँ डीजे अब भी पूरी आवाज़ के साथ दहाड़ रहा था, पर मुझे लग रहा था जैसे ये शोर किसी की मजबूरी की सिसकियाँ दबाने का प्रपंच मात्र है, घुटन-सी होने लगी, चुपचाप वहाँ से निकल कर वापस लौट चला। ये मेरा वो गाँव है ही नहीं 😢😢😢

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

👽👽👽👽👽 पवित्र पापी ♠♠♠♠♠

स्कूल ऑफिस में हंगामे का माहौल है, 9 वीं कक्षा का एक छात्र और एक छात्रा,दोनों की उम्र लगभग 15-16 वर्ष) को कक्षा में अश्लील हरक़तें करते पकड़ा गया था। कक्षा के विद्यार्थी खुद उनकी शिकायत ले कर आए थे इसलिए संदेह के लिए कोई स्थान नहीं।  लड़के को पहले भी 'सुधर जाने की' कई चेतावनियाँ दी जा चुकी है इसलिए विद्यालय हित में उसकी टी सी काटना ही बेस्ट ऑप्शन है, सबका यही मत है। लड़के के मामा आए हैं अंतिम प्रयास करने, शायद लड़का कुछ पढ़ जाए। पर लड़के की आँखों में से शर्म गायब है और अब स्टाफ की आँखों में दया नज़र नहीं आती। टी सी ऑनलाइन कटेगी, मुझसे कहा गया तो शुभ कार्य में देर करना उचित न समझा। लड़का और उसके मामा चले गए , शर्मिंदगी से लड़की ने स्कूल आना बंद कर दिया, येप्पी .....लम्बी अनुपस्थिति का बहाना मिल गया, उसका भी नाम कट गया। स्कूल अब पाप मुक्त हो रहा है भई!

***

कक्षा 8 का एक लड़का, उम्र 14-15 वर्ष , पढ़ाई में डब्बा, जब भी क्लास होती तो हमेशा चुपचाप रहने वाला, आज अपराधी की तरह हाथ बांधे खड़ा था। एक और छात्र उसकी शिकायत जो लाया था, बोला सर इसने पूरी क्लास के सामने मुझे उल्टा पटक लिया......और......सर ये बहुत बुरा है।

सच में बहुत गुस्सा आया, कस के 4-5 तमाचे लगाए उसके और कहा अभी निकलो यहाँ से, और अपने पापा को बोलो की आकर टी सी लेकर जाएं, उन्हें लिए बिना वापस मत आना। लड़का खिसिया हुआ, बोला बैग ले जाउँ, मैंने कहा नहीं।

थोड़ी देर तक स्कूल के गेट के पास खड़ा रह कर लड़का वापस आया बोला, 'म्हारे घर कोई कोनी' (हमारे घर पर कोई नहीं है)

मैंने उसी गुस्से के साथ उसे कहा, 'कोई बात नहीं जब आ जाए तब आना पर अकेले मत आना। अब निकल।'

'बैग ले जाऊँ जी ?'

'ले जा, दफा हो।'

और वो दफा हो गया सच में, वापस नहीं लौटा। न उसके घर से कोई आया न वो खुद। आर टी ई में भी 45 दिन की अनुपस्थिति के बाद नाम काट सकते है, ड्रॉप आउट हुआ न ? कोई बात नहीं। कचरा निकला अच्छा है न। स्कूल को पाप का अड्डा नहीं बनने देना है।

***

आज ऑफिस में कुलदीप सर क्लास ले रहे है, कक्षा 7 के 2 छात्र धर्मपाल और राकेश,दोनों की उम्र लगभग 10-11 वर्ष, पकड़े गए थे। स्कूल के गेट के पास जो सरदार जी की छोटी सी गोली-टॉफ़ी वाली दुकान है वहाँ से ये लोग टॉफ़ी का मर्तबान चुरा लाए थे। पहले खूब पिटाई की गई, फिर पुलिसिया पूछताछ हुई धर्मपाल गेंहू के साथ पीसने वाली घुन्न निकला, वो बस चुराई हुई टॉफ़ी खाने वालों में था, राकेश मुख्य अपराधी के रूप में उभर कर सामने आया। पूरी प्लानिंग और योजना को कार्यरूप में रूपांतरित करने में उसी की मेहनत थी। धर्मपाल को पहली गलती पर माफ़ कर दिया, पर राकेश को घर भिजवाया गया, अरे भई पाप मुक्ति अभियान चालू आहे!
विनोद जी बता रहे, यार ये लड़का क्रिमिनल माइंड है, पिछले साल इस अकेले ने पूरी क्लास के बच्चों की किताबें फाड़ डाली थी। और यही है जिसने भंडारी का सर स्लेट मार के फोड़ दिया था, कल ये 6 कक्षा की लड़की **** के बारे में बात कर रहे थे, ये कम्बख्त खुद उसके चक्कर में हैं, और कह रहे थे इसका इसके उसके साथ चक्कर और पता नहीं क्या क्या.........

***
आज स्कूल से आते वक्त 'उस लड़की' को अपने घर की बड़ी महिलाओं के साथ कपास चुगने जाते देखा। निम्न आय वर्ग के परिवारों की महिलाएँ यहाँ कपास चुगने जाया ही करती है पर....ये बेचारी !!!?  सोचा एक हरकत और सब गड़बड़ कर लिया न, बिना बाप की बच्ची मुझे तुमसे सहानुभूति थी पर.......।  मन भर आया पर खैर! बाइक आगे बढा दी, रेलवे क्रॉसिंग पर उस लड़के को भी देखा जो अपने पिता को स्कूल नहीं ला पाया , एक लड़के के साथ उसकी बाइक पर पीछे बैठा था, ये तो शहर का छंटा हुआ बदमाश है इसके साथ ? पहले ही बिगड़ा हुआ है, अब तो सुधरने की गुंजाईश ही न रहेगी। 😢😢😢

आज राकेश भी अपनी  दादी को स्कूल ले कर आया है, नाम जो कटने वाला है, डर सबको लगता है गला सबका सूखता है। उसकी दादी की और देखा , लगभग 75-80 वर्ष की बूढ़ी औरत जिसने लम्म्म्बा सा घूँघट निकाल रखा था। उसके कुछ भी कहने से पहले मैंने बोलना शुरू कर दिया, ये ये है वो है ये करता है वो करता है पढ़ाई में जीरो है होमवर्क नही करता कभी भी, और तो और चोरी की एंड कुछ बातें तो बताते हुए भी शर्म आती है, क्या कहें बोल भी नही सकते वगैरह वगैरह। आप इसकी टी सी ले जाओ बस। मैंने ढिठाई से कह दिया।

 बेचारी वृद्धा धम्म से नीचे बैठ गई, बोली बेटा क्या करूँ इस उम्र में काम करती हूँ लोगो के घर पर, बाप मर गया इसका , माँ इसे मेरे पास छोड़ कर किसी और के साथ चली गई, अनपढ़ हूँ कुछ पढ़ा लिखा भी नही सकती संस्कार देने का वक़्त नही मिलता। और अब इस उम्र में मुझ बुढ़िया की कौन सुनता है ये भी नहीं सुनता हो सके तो तुम सुन लो, इसे स्कूल से मत निकालना, मैं तुम्हारे पाँव....... कहकर वो मेरे पैरो की और झुकने को हुई। मैंने उनके हाथ पकड़ लिए, जाने क्यों और कैसे आँख से एक बूंद ढुलक कर उनके हाथ पर गिरी, बस इतना ही कह पाया कि माताजी आप जाओ, कोई टी सी नहीं काटेगा। हो सके तो इसका ध्यान रखिए, हम भी विशेष ध्यान देंगे। बूढी औरत चली गई, घण्टों तक मेरे भीतर कुछ कचोटता कुछ टूटता सा रहा। स्कूल  पाप मुक्त हुआ या नहीं पर लग रहा था जैसे सबसे बड़ा पापी तो मैं ही हूँ।  हे मेरे कृष्ण....😢😢😢😢😢

#जयश्रीकृष्ण
©अरुण

👽👽👽👽👽 उल्लू ♠♠♠♠♠

हर शाख पे उल्लू बैठा है,
हर शख्स से दिल घबराता है,
जाने क्या होता गोलमाल,
चक्कर पे चक्कर आता है।
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घनघोर अंधेरा घूम रहा,
है कौन जो यूँ टकराता है,
बिन बादल बारिश बरस रही,
मेंढक भी कोई टर्राता है।
जाने क्या किसे ढुंढने फिर,
है कौन जो यूँ चिल्लाता है?
हर शाख पे उल्लू बैठा है..
.
बड़ा अजब खेल सा होता है,
बड़ा गज़ब जो मेला होता है,
है कोई दुःख मे चूर यहाँ,
कोई अपने पे रोता है।
नाहक कुछ शोर मचाते हैं,
कुछ शोर से लगते थके हुए,
कुछ हैं जो ठगने आए हैं,
और बैठे हैं कुछ ठगे हुए।
जाने किसको क्यूँ जानबूझ,
है कौन जो यूँ बिलमाता है,
हर शाख पे उल्लू बैठा है......
.
काँटों के भरे बँवडर में,
दिखते किसलय भी खिले हुए,
हैं डरे डरे ,सुरभित,सिमटे,
और आशंका से घिरे हुए।
देखो यहाँ पुष्प कुचलने को,
उल्लू की नज़रें गड़ी हुई।
कईयो को कच्चा खाने की,
भुखी आशाएं पड़ी हुई।
भगवान क्यूँ चुप चुप बैठा है,
जाने क्यूं देर लगाता है।
हर शाख पे उल्लू बैठा है,
हर शख्श से दिल घबराता है...!

🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...