हर शाख पे उल्लू बैठा है,
हर शख्स से दिल घबराता है,
जाने क्या होता गोलमाल,
चक्कर पे चक्कर आता है।
.
घनघोर अंधेरा घूम रहा,
है कौन जो यूँ टकराता है,
बिन बादल बारिश बरस रही,
मेंढक भी कोई टर्राता है।
जाने क्या किसे ढुंढने फिर,
है कौन जो यूँ चिल्लाता है?
हर शाख पे उल्लू बैठा है..
.
बड़ा अजब खेल सा होता है,
बड़ा गज़ब जो मेला होता है,
है कोई दुःख मे चूर यहाँ,
कोई अपने पे रोता है।
नाहक कुछ शोर मचाते हैं,
कुछ शोर से लगते थके हुए,
कुछ हैं जो ठगने आए हैं,
और बैठे हैं कुछ ठगे हुए।
जाने किसको क्यूँ जानबूझ,
है कौन जो यूँ बिलमाता है,
हर शाख पे उल्लू बैठा है......
.
काँटों के भरे बँवडर में,
दिखते किसलय भी खिले हुए,
हैं डरे डरे ,सुरभित,सिमटे,
और आशंका से घिरे हुए।
देखो यहाँ पुष्प कुचलने को,
उल्लू की नज़रें गड़ी हुई।
कईयो को कच्चा खाने की,
भुखी आशाएं पड़ी हुई।
भगवान क्यूँ चुप चुप बैठा है,
जाने क्यूं देर लगाता है।
हर शाख पे उल्लू बैठा है,
हर शख्श से दिल घबराता है...!
हर शख्स से दिल घबराता है,
जाने क्या होता गोलमाल,
चक्कर पे चक्कर आता है।
.
घनघोर अंधेरा घूम रहा,
है कौन जो यूँ टकराता है,
बिन बादल बारिश बरस रही,
मेंढक भी कोई टर्राता है।
जाने क्या किसे ढुंढने फिर,
है कौन जो यूँ चिल्लाता है?
हर शाख पे उल्लू बैठा है..
.
बड़ा अजब खेल सा होता है,
बड़ा गज़ब जो मेला होता है,
है कोई दुःख मे चूर यहाँ,
कोई अपने पे रोता है।
नाहक कुछ शोर मचाते हैं,
कुछ शोर से लगते थके हुए,
कुछ हैं जो ठगने आए हैं,
और बैठे हैं कुछ ठगे हुए।
जाने किसको क्यूँ जानबूझ,
है कौन जो यूँ बिलमाता है,
हर शाख पे उल्लू बैठा है......
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काँटों के भरे बँवडर में,
दिखते किसलय भी खिले हुए,
हैं डरे डरे ,सुरभित,सिमटे,
और आशंका से घिरे हुए।
देखो यहाँ पुष्प कुचलने को,
उल्लू की नज़रें गड़ी हुई।
कईयो को कच्चा खाने की,
भुखी आशाएं पड़ी हुई।
भगवान क्यूँ चुप चुप बैठा है,
जाने क्यूं देर लगाता है।
हर शाख पे उल्लू बैठा है,
हर शख्श से दिल घबराता है...!
अरुण सर आपने बहुत अच्छा लिखा है लेकिन लोगों पर विश्वास करना सीख लीजिये तब सब कुछ अपने आप ही अच्छा लगने लगेगा और दिल भी नहीं घबराएगा....trust is the mantra for a happy life @life is always awesome
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