💕💕💕💕💕 पहली-पहली बार बलिए ♠♠♠♠♠ .

माणी की शादी थी, माणी बोले तो जीजी की मोटकी और बेस्ट वाली दोस्त। तभी तो जीजी डाइरेक्ट लखनऊ से हियाँ आए थे अटेंडेंस लगाने, और कैसे नहीं आते चिठ्ठी पतरी के अलावा फोन पर धमकी देने की सारी कार्यवाही माणी ने कर डाली थी। यूँ तो क़ायदे से हमारा माणी को भी जीजी कहना बनता था पर सब उसके लिए यही नाम प्रयोग में लाते थे, यूँ की उसका हमसे भी छोटा भाई भी उसे 'माणी', 'माणो बिल्ली' जैसी संज्ञाओं से विभूषित करता था, तो हम भी माणी को माणी कहें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए, कभी कभी तो लगता कि माणी का दूल्हा भी उसे माणी या माणो बिल्ली ही कहेगा, बेस्ट लगता था पुकारने में। माणी को छोड़ मुद्दे की बात पर लौटते है, उसकी शादी, हाँ तो होने जा रही थी न भई। बनियों में एक खास बात होती है साफगोई और मैनेजमेंट, कुछ भी ऐसा जिससे चार पैसे बचने का जुगाड़ हो साफगोई से कह देने में कोई हर्ज नहीं रखते, राजू चाचा,फिल्म वाले नही माणी के अब्बा हुजूर, भी ठहरे ठेठ बनिए, ऊपर से पाक विस्थापित, एक एक चीज मैनेज कर डाली एडवांस में, कहाँ कब किस चीज पर कितना खर्च करना है सब तय था, उसी की एक कड़ी था, अपने होने वाले समधी से मिलकर प्रीतिभोज का संयुक्त आयोजन, खर्चा फिफ्टी फिफ्टी। ये मेरे या मेरे जैसे कइयों के लिए नया प्रयोग था उस समय में, वरना शादी के नाम पर फिजूल खर्ची ही देखते आए हम तो। मस्त आईडिया है न, तुम्हारी भी जय जय हमारी भी जय जय, न तुम हारे न हम हारे 😊, खैर जब इन्विटेशन में पढ़ा तो पता लगा, शादी के लिए होने वाली पार्टी मने खाना पीना गंगानगर में किसी 'मिलन मैरिज पैलेस' नामक स्थान पर होगा। पहली बार ये शब्द सुना , मैरिज के लिए कोई पैलेस भी होता होगा सोचा तक न था वरना अब तक तो जो शादियाँ देखी थीं उनमे तो गाँव के स्कूलों में और शहर की धर्मशाला में ही ठुसमठासी महायज्ञ का आयोजन होते देखा था। पर ये क्या होता है कैसा होता है इस बात पर ज्यादा मग्गज खपाई नहीं की, न तो इतना फालतू दिमाग ही है अपना ऐसी फालतू बातों पर विचार करने के लिए वैसे भी ऐसी कोई मग्गज खपाई वाली उम्र भी नहीं थी तब हमारी, 9 वीं में थे, समझ लो मूँछ की कोपलों ने उगने का विचार ही किया था बस, ढंग से उगी नहीं थी। लगभग पूरा मोहल्ला इंवाइटेड था, यहाँ तक की छोटे छोटे बच्चे भी जाने वाले थे, तो हम जैसे बूढ़े बच्चे कैसे पीछे रह जाते,माँ ने कहा तेरी दीदी और जीजाजी जा रहे है न , पूरा घर थोड़े न रवाना हो लेता है शादी का नाम सुनकर, पर कुछ भी हो, जैसे भी हो हमको भी जाना ही था, हम ही क्यूँ क़ुरबानी दें, तो स्कूल ड्रेस के अलावा जो इकलौती एक्स्ट्रा पार्टी वियर येल्लो चेक बुर्शट और भूरी पेंट वाली ड्रेस थी उसको अनीता आंटी के घर से प्रेस लाकर चकाचक तैयार कर चुके थे। शाम को जब जीजाजी और दीदी तैयार हो रहे थे तो हम भी पेंट में बुशर्ट ठूस कर खड़े हो गए, कुछ बचा भी रहा हो तो दी के पर्स से फेयर एंड लवली और जीजाजी का परफ्यूम रगड़ कर बाकि कमी भी पूरी कर ली। बारात बस से जाने वाली थी, जी बिलकुल गंगानगर 30 किमी पड़ता है इधर से तो, सब मेहमानों के लिए बस का इंतज़ाम किया हुआ था, जब शाम को बस में जीजाजी सवार हुए तो 3x2 बस में 3 वाली सीट पर खिड़की वाली सीट पर हमें ढिठाई से उनका इंतजार करते पाया, क्या करते, ले जाना ही पड़ा।

शाम को करीब 7 बजे सब वहां पहुँच गए, "मैरिज पैलेस" वाकई किसी महल से कम नहीं था, दरव्जे पे दोनों और 2 अधपकी खड़ूस युवतियाँ सफेदी पोते चेहरे पर नकली मुस्कान के साथ आगन्तुकों पर इत्र जैसा कुछ छिड़क रही थी। पहली बार ऐसा ताम झाम देख रहे थे, युवतियां भले ही खुबसूरत नही थी पर सुहावनी लग रही थी, सो इत्र का फव्वारा पड़ते ही " हम आपके हैं कौन " की निशा की तरह मन ही मन "अहा" बजाते हम आगे बढ़ गए। लम्बा चौड़ा शामियाना जिसमे ढेर सारी सफेद और लाल कुर्सियों की कतारें हमारे स्वागत में बिछी थी। एक वेटर आया कोल्ड ड्रिंक की ट्रे सज़ा कर, मुझसे बड़े प्यार और अदब से बोला,' लीजिए सर', सर सुनते ही दिल धिन चक धिंचक कर उठा, धीरे होले बहुत चुपके से एक गिलास जो किनारे तक भरा हुआ था उठा लिया और वेटर की और देखा, वेटर की आँखे कह रही थी, 'वाह सर वाह, आप तो महान हो, निहाल कर दिया आपने तो'। फिर एक और आया पनीर के भुने टुकड़े लिए जिनमे छोटी छोटी तीलियाँ लगी थी साथ ही सॉस भी था, पेंट की जेब में नेपकिन लटकाए आकर सामने खड़ा हो गया। उसे क्या पता की हम नेपकिन पहली बार देख रहे है, उसकी जेब में  लटकते नेपकिन से बिना उन्हें बाहर निकाले ही हाथ पोंछ डाले। 4 तीली विद पनीर उठा कर कहा अब तुम जाओ सॉस नहीं मांगता अपन को। वेटर को पता नही कैसा लगा होगा पर वो बस मुस्कुराया और आगे बढ़ गया। दीदी एंड जीजाजी मैरिज पैलेस के किसी अदर पार्ट में जिधर एक्चुअल शादी की रस्मे हो रही थी वहाँ गये थे पर अपना मन तो पूरी तरह इधर ही रमा हुआ था। सब कुछ तो है इधर खाना एंड गाना एंड भीड़ एंड भड़का। गाने से याद आया जब हमने मारी एंट्रीयाँ तो घण्टियाँ कहीं नहीं बजी पर सामने के स्टेज पर एक आर्केस्ट्रा जिसमे एक बैंड अपना बाज़ा बजाने को तैयार नज़र आया। कुछ देर तक वे सिर्फ इंस्ट्रूमेंट बजाते रहे, एंड लेट मी टेल यू देट मोगैम्बो खुश हुआ रियली। मज़ा आ रहा था, फिर एक लंबे बालों वाला आया और माइक संभाल लिया, वन टू थ्री फ़ॉर राँझा मियाँ छडो यारी चंगी नाईयो इश्क बीमारी, गाने लगा। भगवान भला करे उसका जिसने गाना बदलने को बोला, आवाज़ बुरी नहीं थी पर एकदम से जो धमधम होने लगी किसी को भी नही अच्छी लगी। हल्के हल्के इंस्ट्रुमेंटल म्यूजिक के साथ लम्बे बालों वाला 'गुलाबी आँखे जो तेरी देखी, शराबी ये दिल हो गया', इधर ये गाना शुरू हुआ उधर वो आई, वो कौन ? क्या बताऊँ, ल् ल् ल् ला, ला ल्ला ला ला ला ला, ला ल्ला ला ला ल्ला, मैं लुट गया मान के दिल का कहा मैं कहीं का ना रहा, बिलकुल दूध सी सफेद, रुई सी कोमल, स्काई ब्लू रंग की केप्री और झक सफेद टॉप पहने वो पैलेस में प्रविष्ठ हुई, ल् ल् ल् ला, ला ल्ला ला ला ला ला, ला ल्ला ला ला ल्ला, दिल में मेरे, ख्वाब तेरे, तस्वीरे जैसे दीवार पे, वो अपनी 2 सहेलियों के साथ थी, माँ कसम उन दोनों में से किसी की तरफ एक नज़र उठा कर नहीं देखा माँ बदौलत ने, वो तीनो आईं और मुझसे पीछे वाली 1 कतार छोड़ तीसरी कतार में कुर्सियों पर विराजमान हो गई। मेरी नज़र वाकई चिपक गई थी उससे, इसीलिए जब से वो भीतर दाखिल हुई तब से कुर्सी पर तशरीफ़ रखने तक हर दिशा में उसके साथ ही घूमती चली गई और अब पूरा 180° घूम कर ढिठाई, बेशर्मी एंड प्यार से उसे निहार रही थी। ल् ल् ल् ला, ला ल्ला ला ला ला ला, ला ल्ला ला ला ल्ला, गाना लगातार चल रहा था, हालाँकि उसकी आँखे काली थी पर, हुआ ये जादू तेरी आँखों का, ये मेरा कातिल हो गया, संभालो मुझको ओ मेरे यारों, सम्भलना मुश्किल हो गया। आखिर , फाइनली लम्बे इंतज़ार के बाद ही सही पर कृपा हुई, उसने भी देखा, गाना चेंज, "तुमने मुझको देखा, मैंने तुमको देखा ऐसे, हम तुम सनम, सातों जन्म, मिलते रहे हो जैसे", गाना पूरा नहीं हुआ पर उसने नज़रें घुमा ली। मैं चाहे जितना मर्जी लोगों से कहता फिरूँ की मैं देखने की चीज हूँ आहाँ, पर सच्चाई वही थी जो अब सामने आ रही थी, ऐसा कुछ खास नहीं है इस थोबड़े में, मुँह उतर गया, पर " हम तेरे बिन कहीं रह नहीं पाते, तुम नहीं आते तो हम मर जाते" , नज़र अब भी उसी की और थी बिना ये विचार किए की पैलेस में और लोग भी हैं न जाने वो क्या क्या सोच रहे होंगे। अचानक नज़रे उठी फिर से मिली, दिल की कलियां खिल गई, अटलीस्ट फ्रॉम माय साइड, उसने हैरानी से मुझे देखा, ये पागल तो नहीं, ऐसे क्यों देख रहा है, अपनी सहेली से आइस क्रीम चेपते चेपते मेरी और इशारा कर कुछ कहा। सबने देखा फिर हंस दी। वो भुने पनीर वाला वेटर आया और लड़कियों के सामने खड़ा हो गया, नेटवर्क प्रॉब्लम, उफ्फ्फ , अरे भाई ऐसे भी कोई करता है क्या, तेरे 4 टुकड़े के पैसे ले लियो पर गुरु सामने से हट जा, तुझे खुदा का वास्ता। पर गरीब की कोई कब सुनता है वो खड़ा रहा तब तक जब तक उन्हें सर्व न कर दिया, मेरे वाली की सहेली ने एक नेपकिन धीरे से निकाला खोला फिर उस पर आहिस्ता आहिस्ता 2-2 तीलियाँ सबके हिस्से की उठाई उस पर आराम से सॉस डाला, अब क्या नहलाओगी इनको मन ही मन मैंने कहा। वेटर के जाते ही वो आराम से अपने खाने में मशगूल हो गई। तो हेल्लो हेल्लो माइक चेक, ऐसे थोड़े न होता है, ओ हेल्लो इधर इधर, देखो न यार प्लीज। अचानक खाते खाते उसकी नज़र फिर से उठी,और वो हँस दी, ल् ल् ल् ला, ला ल्ला ला ला ला ला, ला ल्ला ला ला ल्ला, जरा सा हंस के जो तूने देखा मैं तेरा बिस्मिल हो गया, गुलाबी आँखे जो तेरी देखी.... शरआबी ये दिल हो गया, वो उठी फिर उसकी सहेलियाँ भी उठी और उठकर चल दी, इधर उधर के भ्रमण के लिए, अरे तो मैं बैठा क्या कर रहा हूँ, हियर आई कम बेबे, उठने को हुआ की अचानक जीजाजी का हाथ कंधे पे, क्या हो रहा है? " अ आ कु कुछ नही जीजाजी", कैसे बताऊँ की जीजाजी प्यार की कश्ती में, लहरों की मस्ती में, पवन के शोर शोर में, चले हम जोर जोर में, गगन से दूर, दूर से याद आया,अरे वो चली जाएगी, कहाँ है वो, आँखे उसे ढूंढ रही थी, जीजाजी बोले किसे देख रहे हो? मैंने कहा मैं अभी आया जीजाजी, पूरा पैलेस छान मारा पर वो कहीं नहीं मिली😢, कहीं वो चली तो नही गई ? नहींईईई, फिर दौड़ कर पैलेस के दरव्जे तक आया, देखा सच में वो जा रही थी मारुती ओमनी वेन पर सवार होकर, मुझे देखा तो फिर से मुस्कुराई, पर किसी ने भीतर से दरवाजा खींच कर बंद कर दिया। वैन चल दी, न जाने किस ओर, जाती हुई वैन का शीशा खुला एक सफेद हाथ बाय बाय करता सा लहरा रहा था।
#जयश्रीकृष्ण
©अरुण

👧👩👱👰👵 शामली ♠♠♠♠♠ .

शामली बहुत खुश थी आज, आखिर उसके काका ने उसको भी नया फोन ला दिया। कब से कह रही थी काका से, आप मुझे अपनी बेटी मानते ही नहीं, सोनूड़े ने फोन लिया उसे तो मना नही किया कभी, तो क्या हुआ अगर वो कमाता है, उसे मौका मिले तो वो भी कमा सकती है, शायद सोनूड़े से भी ज्यादा, लड़का-लड़की एक समान है उसकी मैडम बता रही थी इस्कूल में, पढ़ा भी है उसने, तो भाई को चाहिए तो उसे क्यूँ नहीं चाहिए बताओ, उसके लिए तो काम की चीज और मेरी बारी आते ही बेकार? चाहिए तो चाहिए बोल दिया था काका से, मैं भी अपनी सहेलियों मीनूड़ी और रेखली से बातें करूँगी काम की। नया फोन हाथ में आया तो दौड़ पड़ी दिखाने अपनी सहेलियों को।

शामली, असल नाम श्यामा, उम्र 13 साल, शहर से 3 किमी दूर ढाणी में रहती है, उसके पिता जिन्हें वो काका कहती है खेती करते हैं। खुद के पास 4 बीघा जमीन है अब इतने से गुजर नहीं होती तो काम चलाने को कुछ जमीन ठेके पर ले लेते हैं। कुल मिलाकर हाड तोड़ मेहनत करने वाले श्रमजीवी हैं। माँ किस चिड़िया को कहते हैं नहीं पता, कुछ याद नही शायद 3 साल की रही होगी जब ये माँ नाम की चिड़िया उड़कर न जाने कहाँ किस दुनिया में चली गई, काका से पूछा था कई बार पर वो बस चुपचाप भाव और संज्ञाशून्य से हो जाते कभी कोई प्रत्युत्तर न देते, एक बड़ा भाई है सुरेंद्र उर्फ़ सोनू उर्फ़ सोनूड़ा, प्लम्बर है, 10 वीं में फेल हो गया तो काका ने काम पर लगा दिया, यूँ भी उसे पढ़ाई को लेकर विशेष उत्साह जैसी कोई बात नज़र नहीं आती थी। कौनसा सभी पढ़े लिखे कलेक्टर बन जाते है, आज वो ठीक ठाक कमा खा रहा है तो अच्छा ही है। एक छोटी बहन भी है, कहने को तो नाम सुनयना है पर वो उसे उसके भूरे रूखे बालों की वजह से भूरती कहा करती है। 10 साल की घोड़ी हो गई है पर अभी गुड्डे गुड्डियों के ब्याह रचाने और घरौंदे बनाने से भी नहीं उबर पाई है, तो पते की बात ये है कि उसकी जिससे गुड वाली जमे ऐसा घर में कोई भी नहीं। सारे घर का काम शामली अकेले करती है पर जब फोन की बात आई तो काका बस बहाने बनाए जा रहे थे। पर आज आखिर सत्य की यानि उसी की जीत हुई।

शामली अपना फोन मीनुड़ी को दिखा रही थी, मीनू, उम्र 14 वर्ष, घर की इकलौती बेटी थी, बहुत लाडली और थोड़ी नकचढ़ी, इकलौते होने से ज्यादातर उसकी हर मांग पूरी हो जाया करती, ये फोन वोन सबसे पहले उसी के पास आया था, उसे सब पता होगा इसलिए उसके पास आई थी।

 'देख देख कितना अच्छा है ना, रेखली वाला फोन तो छोटा सा है, बोदा हो गया है ,पटक पटक के हालत खराब कर रखी है बेचारे की, गर्दन पर टेप लगा के जिन्दा रखा है, आवाज़ भी घर्र घर्र करती है उसमें, सोनूड़ा बोल रहा था ये एंड्रॉयड है, फिल्म भी चलती है इसमें, गाने भी चलते हैं।'

'अरे ये आजकल सभी नए फोन में होता है। चल तेरा व्हाट्सएप्प अकाउंट बनाती हूँ।'

'वो क्या होता है?'

'अरे बड़ी मजेदार चीज है, बातें कर सकते हैं, अपनी फोटो और वीडियो कुछ भी शेयर कर सकते हैं।'

'अच्छा !? तब ठीक है, अब खूब बातें करेंगे।😊😊'

और वाकई शुरू हो गई कभी न खत्म होने वाली बातें, साथ ही सूत्र की तरह जुड़ते ग्रुप्स से सहेलियों का कारवां भी बढ़ता गया, और जुड़ गया आरुष, आरुष उसके भाई का दोस्त था उस के साथ कई बार घर आया करता था। न जाने कहाँ से और कैसे नम्बर लिया उसका, खूब बातें बनानी आती थी उसको शामली के बालमन को बहलाना तो और भी आसान लगा उसे। शामली को उसका नाम बहुत पसंद था, अनजान नम्बर के लुभावने मैसेज का रिप्लाई तभी किया था जब ये पता लगा की मैसेज भेजने वाला आरुष है। शामली अपनी उम्र के अनुसार ही मन से भी बच्ची थी पर आरुष नहीं, वो उसे लगातार बातें करता कभी घर परिवार के बारे में, कभी स्कूल के बारे में तो कभी उसकी सहेलियों के बारे में, फिर एक दिन आखिर उसने अपना प्रेम प्रस्ताव  भी शामली के सामने रख दिया। कच्ची उम्र के कल्पनाशील मन को लगा जैसे वो इसी का तो इंतज़ार कर रही थी। आरुष धीरे धीरे और खुलता जा रहा था, मैसेज की शृंखला में अब कुछ मैसेज 'वैसे वाले' भी होते, अजीब लगता श्यामा को पर वो उन पर ध्यान न देने की कोशिश करती। फिर 'वैसे वाले' वीडियो भी आने लगे, यक्क् गन्दी, मन कसैला हो गया, क्या है ये ? उसने पूछा था। आरुष बोला, पगली इसे ही तो प्यार कहते है। सब प्यार करने वाले करते हैं,  बिना इसके हमारा प्यार भी गहरा नहीं होगा। शामली अजीब सी उधेड़ बुन में थी, बस चुप हो रही।

एक दिन जब स्कूल से लौट रही थी, तो उसकी ढाणी से कुछ पहले उसे आरुष मिला। अच्छा लगा था उसे मिलकर, प्यार जो करती थी उससे। संकोच हुआ पर आरुष की प्यार भरी नजरों में खो कर सरसों की फसल में बैठ बातें करने लगी। आरुष कितना अच्छा है, कितना सुन्दर, मुझे कितना प्यार भी करता है, हे भगवान ये पल यहीं थम जाए, ये बस यूँ ही चलता रहे, मैं यूँ ही खोई रहूँ आरुष की आँखों में। इसी स्वप्न के बीच आरुष ने उसे पहली बार चूम लिया था, बहुत लाज आ रही थी, अपने ही हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया, और आरुष ने खींच लिया था अपने पास और वो किसी गुड़िया की तरह उसके आगोश में समा गई, फिर जो हुआ वो किसी 'वैसे वाले' वीडियो जैसा था यक्क , गंदा और दर्दनाक भी, बस आरुष को वही अच्छा लगता है यही सोच पड़ी रही। आरुष वाकई उससे बहुत खुश था,ये सब इतना इजी हो जाएगा उसे भी कहाँ पता था। तभी तो अब ये उसका नित्य कर्म हो गया, रोज उसे वहीं मिलता, वही करता जिसे वो प्यार कहा करता था, और चला जाता। पर एक दिन उन दोनों को सोनूड़े ने देख लिया, खूब झगड़ा हुआ आरुष के साथ उसका, शामली ने तब भी आरुष का ही साथ दिया था। क्या गलत किया ? प्यार किया न तो क्या हुआ? प्यार करना कोई जुर्म है क्या? आरुष सोनूड़े से छूट कर भाग गया। शामली की खूब पिटाई हुई, स्कूल जाना बंद हो गया। सिर्फ उसका ही नहीं सुनयना का भी। एक रोज मौका पाकर शामली भी उड़ गई चिड़िया की तरह, ठीक वैसे जैसे कभी उसकी माँ भी उड़ कर चली गई थी, जिसकी वजह से उसके पिता आजतक एक चुप्पी को झेलने को विवश थे। बदनामी झेल पाना हर किसी के बस का कहाँ होता है, शामली ने सुना की काका ने अपने आप को टांग दिया था पंखे से, फिर सुना सोनुड़ा न जाने कहाँ चला गया किसी को कुछ भी नहीं पता। भूरती की चिंता होने लगी थी पर किसी ने बताया कि काका ने खुद ही उसका गला घोंट के मार डाला था। बहुत रोना आया था उसे, बहुत रोना, पर कुछ भी हो उसके साथ उसका प्यार उसका आरुष तो था ही, उड़कर उसी के पास तो आ गई थी।

एक दिन आरुष बोला, अब हम यहाँ नहीं रहेंगे, मेरी तो सिर्फ तुम हो, और  तुम्हारा भी अब कोई नहीं यहाँ। उसे लेकर हरियाणा चला गया अनवर चचा के पास, जी हाँ वो भी चौंकी थी ये नाम सुन कर, तो आरुष ने बताया था कि वो बहुत अच्छे लोग हैं, जब तक हमे रहने का कोई और ठिकाना नही मिलता यही रहेंगे फिर अपनी छोटी सी प्यारी सी दुनिया बसाएंगे जहाँ बस खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी, गम एक भी नही।

'अच्छा सुनो मैं अभी खाने पीने का सामान लेकर वापस आता हूँ। '  आरुष ने कहा था।

वो चला गया, फिर कभी न लौट कर आने के लिए। वो आरुष का इंतज़ार कर रही थी तभी अनवर चचा आए उससे मार पीट की और वो किया जो उन्हें बिलकुल नही करना चाहिए था। वो रोइ गिड़गिड़ाई धमकी भी दी की आरुष को बताएगी सब, और तब उसे पता लगा था कि उसका आरुष उसका अपना आरुष उसे यहाँ छोड़ कर नहीं बेच कर गया है , बस नाम के लिए अनवर चचा ने अपने सबसे छोटे और पागल बेटे आसिफ से साथ उसका निकाह पढ़वा दिया, पर हकीकत में घर के सभी पुरुष मौका मिलने पर शामली से सलमा बनी जिन्दा लाश को नोच नोच खाते हैं। शामली रोज वहाँ जी तोड़ काम करती है, भाग कर जाए भी तो कहाँ जाए , किसके पास, जानती है कि कोई लौट कर नहीं आएगा उसके लिए इसलिए किसी का कोई इंतज़ार नहीं उसकी भावशून्य आँखों में।

और सावधान , क्योंकि आरुष खान अब किसी और शामली की तलाश में है।

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💢💢💢💢💢 हैप्पी न्यू ईयर ♠♠♠♠♠

कॉलेज का प्रथम वर्ष, घर से दूर रहने का पहला अनुभव, और इस अनुभव से साक्षात् हो रहे हम तीन भेरी मच एक्साइटेड फेल्लोज, हम यानि मैं ,अजय और 'माही'। ओ हेल्लो भाई साहब, 'माही' नाम पर एक्स्ट्रा ध्यान लगाने से कोई फायदा नहीं, 'माही' मने कोई षोडसी कन्या नहीं है, माही बोले तो महेंद्र, आपकी और हमारी तरह एक खड़ूस मुस्टंडा। हाँ तो ये मुस्टंडा टोली घर से निकलते ही, बहुत दूर चलते ही गंगानगर के पाल हॉस्पिटल के पिछु वाली गली में अपना टेम्परेरी आशियाना मने खोली तलाशने आ पहुँची। गुलशन ने बोला था, अपना डॉ. गुलशन, बोले तो गुल्लू डार्लिंग ने। गेट पर आकर मन ही मन जोर से पढ़ा ह्म्म्म 'नरेश निवास', हाँ लग तो यही रहा है, फिर एक दूसरे को एक विजेता वाली मुस्कान गिफ्ट कर भीतर दाखिल हुए। नरेश निवास, किसी बनिए नरेश का घर था। खुद फर्स्ट फ्लोर पर विराजित इस फैमिली ने नीचे 8 छोटे छोटे कमरे बना कर होस्टल का साइड बिजनेस भी जमा रखा था। बनियाज आर ऑलवेज भेरी कलेवर इन मनी मैटर 😊। वैल, गुल्लू ने सब सेटिंग कर रखी थी हमे बस उसमे फिट होना था। यूँ की हो गए हम भी।

आठ कमरों के भांति भांति के विचित्र प्राणियो में अकेला गुल्लू हमारी ऐज का था बाकि सब सीनियर सिटिज़न , वो खुसट वाले नहीं, समझा करो न स्वीटी, बस 4-5 साल या उससे ज्यादा वाले सीनियर थे। ज्यादातर पंजाब से यहाँ लॉ पढ़ने आए थे, कुछ एम एससी करने। सब बड़ा प्यार करते हम लोग, और अपना ये प्यार विभिन्न प्रकार से यदा कदा जताते भी रहते थे। वन्स देयर वाज़ जब माही टाइप सेंटर पर एक गुटखा छाप गुंडे को पीट आया और नेक्स्ट डे जब सेंटर पर जाते हुए उसकी फट कर होद हो रही थी बिकॉज़ गुटखा मियाँ ने भी कल देख लेने का पूरा पूरा भरोसा दिया था, उस दिन भी हमारी होस्टल पार्टी ने गुटखा और उसकी बाकि की उधार की सुपारियों की चिंदी बिखेर दी थी। 😊😊 एंड रिजल्ट माही बीकेम सेल्फ डिक्लेअरड़ दादा ऑफ़ द सेंटर।

बड़ा मस्ती मज़ाक का माहौल रहता, पर हमारे ये बड़े ..बड़े वो थे, खुद कभी किताब को छुएं भी नहीं पर उनके आने पर हमारी पढ़ाई शुरू मिलनी चाहिए। कुछ भी खाने पीने को घर से लाते या बनाते इन देवताओं को भोग लगाए बिना नसीब न होता। और कोई कितना बनाएगा या लाएगा ? जो भी होता 16 लोगो के चखने में ही चला जाता। और हम बेचारे समय के मारे मासूम करते भी तो क्या करते, बहुत बार भूखे रह जाना पड़ता, क्योंकि थोड़ा बोलने का ढीठ लोगो पर असर होता नहीं और ज्यादा बोल के अपनी हड्डियां तुड़वाने में हम भी यकीन नहीं करते ।

31 दिसंबर का सर्द दिन, हम लोग चुपचाप कमरे में पढ़ाई कर रहे थे। बाकी सब एक एक करके विजिट कर गए, देखा बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं , ह्म्म्म गुड गुड बहुत अच्छे, वैरी नाइस वैरी नाइस, लगे रहो लगे रहो, पर किसी ने नहीं पुछा कि खाना क्यों नही बना रहे। एक्चुअली हमने प्लान बना लिया था कि आज कुछ स्पेशल बनाते है, दूध लेकर दही जमा दिया, आलू उबाल कर और थोड़े प्याज़ काट कर रख दिए। किसी को कानो कान खबर नही होनी चाहिए, सब कुछ मस्त प्लान के अकॉर्डिंग चल रहा था। आज की रात हम आलू के परांठे बना के गुल छर्रे उड़ाने वाले थे, बोला था न ? बेचारे मासूम, तो वैसे ही मासूम गुल छर्रे 😊। पेट में ताबड़तोड़ चूहे अपना अलग आईपीएल चला रहे थे पर सब सह कर रात होने वाली पार्टी का इंतज़ार कर रहे थे। इंतज़ार हमेशा मुश्किल होता है पर भूखे रहकर खाने के लिए इंतज़ार करना पड़े तो वो और भी डेंजर होवे है। देर से ही सही पर आखिर रात हुई, माही सब कमरों के बाहर हल्के कदमो से जाकर रेकी कर आया, कहीं कोई जाग तो नही रहा, और ये फैसला सुनाया की 12 बजे से पहले किया तो रिस्क है। बहुत भूख लग रही थी पर फिर भी थोड़ा और इंतज़ार किया , आखिर 11 बजे के आसपास सब्र का पैमाना छलका, और तवा स्टोव पर जमा कर हम तीनों उसके चारों और बैठ गए, माही ने मसाला तैयार किया, मैं परांठा बेल रहा था तो अजय उसे तवे पर पटक कर आगे पीछे से घी की मालिश कर रहा था। कि 'हो जा तैयार पट्ठे, आज छोंड़ेंगे नहीं, खीखीखीखी', लगभग आधी रात 10x10 का छोटा सा कमरा भीतर से बंद कर हम अपना सीक्रेट मिशन अंजाम तक पहुंचाने में जुटे थे।

घी के जलने से कमरा पूरा सफेद धुएँ से भर गया था, जो हमे बिना बताए कमरे के रोशनदान से बाहर निकलने लगा। उसी समय एम एससी फाइनल ईयर के स्टूडेंट कुलजिंद्र भाईजी का लघुशंका निवारण के लिए अपने कमरे से बाहर आना हुआ, कमरे के रोशनदान से बाहर आते धुएँ से उन्हें लगा की कहीं लौंडे अंदर सोते हुए जल तो नही गए। फटाफट भाग कर दरवाजा खटखटाया हमे आवाज़ लगाई, हम हड़बड़ा गए, ये क्या हुआ, अब क्या होगा, पर खुद को संयत कर वापस कहा सब ठीक है भाईजी। पर चूक हो चुकी थी, दरवाजा खोलने का हुक्म हुआ, पर हमने ना खोलने का निश्चय कर लिया था, बोले आप जाओ भाईजी कुछ नही हुआ है सोने दो आप। कुलजिंद्र भाईजी को संतोष न हुआ रोशनदान में गर्दन घुसा कर भीतर झाँका।

'ओये ए की है? प्रोण्ठे, बुआ खोल हुणे, नई ता म् होरा नू वी सद के ल्योना' (अरे ये क्या है? पराँठे, दरवाजा खोलो अभी, नहीं तो मैं अभी बाकी लोगों को भी बुला के लाता हूँ)
हालाँकि उनके इस डायलॉग का भरपूर असर हुआ था हम पर , पर अजय के दरवाजे खोलने से पहले ही कुलजिंद्र भाईजी की लात दरवाजे की चिटकनी ले उड़ी।
आराम से भीतर दाखिल होकर बिना किसी से पूछे पराँठे ठुसना शुरू कर दिया। अपनी मेहनत पर यूँ पानी फिरते देख बहुत सैड वाली फीलिंग आ रही थी, पर चुप थे। कुलजिंद्र भाईजी ने जी भर कर खाने के बाद प्रस्थान किया पर थोड़ी देर में एक के बाद एक बाकि होस्टल मेंबर आने लगे और जब सब चले गए तो पीछे लुटे पिटे से हम थे।

उसी वक़्त बाहर भड़ भड़ भड़ पटाखे फूटने का शोर होने लगा, पता लगा नया साल लग गया, हमने एक दूसरे की और देखा बोले 'हैप्पी न्यू ईयर', आटा और तैयार कर लो, पराँठा तो हमारे भाग में वैसे भी था नहीं। 😊☺😢

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

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🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...