शामली बहुत खुश थी आज, आखिर उसके काका ने उसको भी नया फोन ला दिया। कब से कह रही थी काका से, आप मुझे अपनी बेटी मानते ही नहीं, सोनूड़े ने फोन लिया उसे तो मना नही किया कभी, तो क्या हुआ अगर वो कमाता है, उसे मौका मिले तो वो भी कमा सकती है, शायद सोनूड़े से भी ज्यादा, लड़का-लड़की एक समान है उसकी मैडम बता रही थी इस्कूल में, पढ़ा भी है उसने, तो भाई को चाहिए तो उसे क्यूँ नहीं चाहिए बताओ, उसके लिए तो काम की चीज और मेरी बारी आते ही बेकार? चाहिए तो चाहिए बोल दिया था काका से, मैं भी अपनी सहेलियों मीनूड़ी और रेखली से बातें करूँगी काम की। नया फोन हाथ में आया तो दौड़ पड़ी दिखाने अपनी सहेलियों को।
शामली, असल नाम श्यामा, उम्र 13 साल, शहर से 3 किमी दूर ढाणी में रहती है, उसके पिता जिन्हें वो काका कहती है खेती करते हैं। खुद के पास 4 बीघा जमीन है अब इतने से गुजर नहीं होती तो काम चलाने को कुछ जमीन ठेके पर ले लेते हैं। कुल मिलाकर हाड तोड़ मेहनत करने वाले श्रमजीवी हैं। माँ किस चिड़िया को कहते हैं नहीं पता, कुछ याद नही शायद 3 साल की रही होगी जब ये माँ नाम की चिड़िया उड़कर न जाने कहाँ किस दुनिया में चली गई, काका से पूछा था कई बार पर वो बस चुपचाप भाव और संज्ञाशून्य से हो जाते कभी कोई प्रत्युत्तर न देते, एक बड़ा भाई है सुरेंद्र उर्फ़ सोनू उर्फ़ सोनूड़ा, प्लम्बर है, 10 वीं में फेल हो गया तो काका ने काम पर लगा दिया, यूँ भी उसे पढ़ाई को लेकर विशेष उत्साह जैसी कोई बात नज़र नहीं आती थी। कौनसा सभी पढ़े लिखे कलेक्टर बन जाते है, आज वो ठीक ठाक कमा खा रहा है तो अच्छा ही है। एक छोटी बहन भी है, कहने को तो नाम सुनयना है पर वो उसे उसके भूरे रूखे बालों की वजह से भूरती कहा करती है। 10 साल की घोड़ी हो गई है पर अभी गुड्डे गुड्डियों के ब्याह रचाने और घरौंदे बनाने से भी नहीं उबर पाई है, तो पते की बात ये है कि उसकी जिससे गुड वाली जमे ऐसा घर में कोई भी नहीं। सारे घर का काम शामली अकेले करती है पर जब फोन की बात आई तो काका बस बहाने बनाए जा रहे थे। पर आज आखिर सत्य की यानि उसी की जीत हुई।
शामली अपना फोन मीनुड़ी को दिखा रही थी, मीनू, उम्र 14 वर्ष, घर की इकलौती बेटी थी, बहुत लाडली और थोड़ी नकचढ़ी, इकलौते होने से ज्यादातर उसकी हर मांग पूरी हो जाया करती, ये फोन वोन सबसे पहले उसी के पास आया था, उसे सब पता होगा इसलिए उसके पास आई थी।
'देख देख कितना अच्छा है ना, रेखली वाला फोन तो छोटा सा है, बोदा हो गया है ,पटक पटक के हालत खराब कर रखी है बेचारे की, गर्दन पर टेप लगा के जिन्दा रखा है, आवाज़ भी घर्र घर्र करती है उसमें, सोनूड़ा बोल रहा था ये एंड्रॉयड है, फिल्म भी चलती है इसमें, गाने भी चलते हैं।'
'अरे ये आजकल सभी नए फोन में होता है। चल तेरा व्हाट्सएप्प अकाउंट बनाती हूँ।'
'वो क्या होता है?'
'अरे बड़ी मजेदार चीज है, बातें कर सकते हैं, अपनी फोटो और वीडियो कुछ भी शेयर कर सकते हैं।'
'अच्छा !? तब ठीक है, अब खूब बातें करेंगे।😊😊'
और वाकई शुरू हो गई कभी न खत्म होने वाली बातें, साथ ही सूत्र की तरह जुड़ते ग्रुप्स से सहेलियों का कारवां भी बढ़ता गया, और जुड़ गया आरुष, आरुष उसके भाई का दोस्त था उस के साथ कई बार घर आया करता था। न जाने कहाँ से और कैसे नम्बर लिया उसका, खूब बातें बनानी आती थी उसको शामली के बालमन को बहलाना तो और भी आसान लगा उसे। शामली को उसका नाम बहुत पसंद था, अनजान नम्बर के लुभावने मैसेज का रिप्लाई तभी किया था जब ये पता लगा की मैसेज भेजने वाला आरुष है। शामली अपनी उम्र के अनुसार ही मन से भी बच्ची थी पर आरुष नहीं, वो उसे लगातार बातें करता कभी घर परिवार के बारे में, कभी स्कूल के बारे में तो कभी उसकी सहेलियों के बारे में, फिर एक दिन आखिर उसने अपना प्रेम प्रस्ताव भी शामली के सामने रख दिया। कच्ची उम्र के कल्पनाशील मन को लगा जैसे वो इसी का तो इंतज़ार कर रही थी। आरुष धीरे धीरे और खुलता जा रहा था, मैसेज की शृंखला में अब कुछ मैसेज 'वैसे वाले' भी होते, अजीब लगता श्यामा को पर वो उन पर ध्यान न देने की कोशिश करती। फिर 'वैसे वाले' वीडियो भी आने लगे, यक्क् गन्दी, मन कसैला हो गया, क्या है ये ? उसने पूछा था। आरुष बोला, पगली इसे ही तो प्यार कहते है। सब प्यार करने वाले करते हैं, बिना इसके हमारा प्यार भी गहरा नहीं होगा। शामली अजीब सी उधेड़ बुन में थी, बस चुप हो रही।
एक दिन जब स्कूल से लौट रही थी, तो उसकी ढाणी से कुछ पहले उसे आरुष मिला। अच्छा लगा था उसे मिलकर, प्यार जो करती थी उससे। संकोच हुआ पर आरुष की प्यार भरी नजरों में खो कर सरसों की फसल में बैठ बातें करने लगी। आरुष कितना अच्छा है, कितना सुन्दर, मुझे कितना प्यार भी करता है, हे भगवान ये पल यहीं थम जाए, ये बस यूँ ही चलता रहे, मैं यूँ ही खोई रहूँ आरुष की आँखों में। इसी स्वप्न के बीच आरुष ने उसे पहली बार चूम लिया था, बहुत लाज आ रही थी, अपने ही हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया, और आरुष ने खींच लिया था अपने पास और वो किसी गुड़िया की तरह उसके आगोश में समा गई, फिर जो हुआ वो किसी 'वैसे वाले' वीडियो जैसा था यक्क , गंदा और दर्दनाक भी, बस आरुष को वही अच्छा लगता है यही सोच पड़ी रही। आरुष वाकई उससे बहुत खुश था,ये सब इतना इजी हो जाएगा उसे भी कहाँ पता था। तभी तो अब ये उसका नित्य कर्म हो गया, रोज उसे वहीं मिलता, वही करता जिसे वो प्यार कहा करता था, और चला जाता। पर एक दिन उन दोनों को सोनूड़े ने देख लिया, खूब झगड़ा हुआ आरुष के साथ उसका, शामली ने तब भी आरुष का ही साथ दिया था। क्या गलत किया ? प्यार किया न तो क्या हुआ? प्यार करना कोई जुर्म है क्या? आरुष सोनूड़े से छूट कर भाग गया। शामली की खूब पिटाई हुई, स्कूल जाना बंद हो गया। सिर्फ उसका ही नहीं सुनयना का भी। एक रोज मौका पाकर शामली भी उड़ गई चिड़िया की तरह, ठीक वैसे जैसे कभी उसकी माँ भी उड़ कर चली गई थी, जिसकी वजह से उसके पिता आजतक एक चुप्पी को झेलने को विवश थे। बदनामी झेल पाना हर किसी के बस का कहाँ होता है, शामली ने सुना की काका ने अपने आप को टांग दिया था पंखे से, फिर सुना सोनुड़ा न जाने कहाँ चला गया किसी को कुछ भी नहीं पता। भूरती की चिंता होने लगी थी पर किसी ने बताया कि काका ने खुद ही उसका गला घोंट के मार डाला था। बहुत रोना आया था उसे, बहुत रोना, पर कुछ भी हो उसके साथ उसका प्यार उसका आरुष तो था ही, उड़कर उसी के पास तो आ गई थी।
एक दिन आरुष बोला, अब हम यहाँ नहीं रहेंगे, मेरी तो सिर्फ तुम हो, और तुम्हारा भी अब कोई नहीं यहाँ। उसे लेकर हरियाणा चला गया अनवर चचा के पास, जी हाँ वो भी चौंकी थी ये नाम सुन कर, तो आरुष ने बताया था कि वो बहुत अच्छे लोग हैं, जब तक हमे रहने का कोई और ठिकाना नही मिलता यही रहेंगे फिर अपनी छोटी सी प्यारी सी दुनिया बसाएंगे जहाँ बस खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी, गम एक भी नही।
'अच्छा सुनो मैं अभी खाने पीने का सामान लेकर वापस आता हूँ। ' आरुष ने कहा था।
वो चला गया, फिर कभी न लौट कर आने के लिए। वो आरुष का इंतज़ार कर रही थी तभी अनवर चचा आए उससे मार पीट की और वो किया जो उन्हें बिलकुल नही करना चाहिए था। वो रोइ गिड़गिड़ाई धमकी भी दी की आरुष को बताएगी सब, और तब उसे पता लगा था कि उसका आरुष उसका अपना आरुष उसे यहाँ छोड़ कर नहीं बेच कर गया है , बस नाम के लिए अनवर चचा ने अपने सबसे छोटे और पागल बेटे आसिफ से साथ उसका निकाह पढ़वा दिया, पर हकीकत में घर के सभी पुरुष मौका मिलने पर शामली से सलमा बनी जिन्दा लाश को नोच नोच खाते हैं। शामली रोज वहाँ जी तोड़ काम करती है, भाग कर जाए भी तो कहाँ जाए , किसके पास, जानती है कि कोई लौट कर नहीं आएगा उसके लिए इसलिए किसी का कोई इंतज़ार नहीं उसकी भावशून्य आँखों में।
और सावधान , क्योंकि आरुष खान अब किसी और शामली की तलाश में है।
#जयश्रीकृष्ण
©अरुण
Rajpurohit-arun.blogspot.com
शामली, असल नाम श्यामा, उम्र 13 साल, शहर से 3 किमी दूर ढाणी में रहती है, उसके पिता जिन्हें वो काका कहती है खेती करते हैं। खुद के पास 4 बीघा जमीन है अब इतने से गुजर नहीं होती तो काम चलाने को कुछ जमीन ठेके पर ले लेते हैं। कुल मिलाकर हाड तोड़ मेहनत करने वाले श्रमजीवी हैं। माँ किस चिड़िया को कहते हैं नहीं पता, कुछ याद नही शायद 3 साल की रही होगी जब ये माँ नाम की चिड़िया उड़कर न जाने कहाँ किस दुनिया में चली गई, काका से पूछा था कई बार पर वो बस चुपचाप भाव और संज्ञाशून्य से हो जाते कभी कोई प्रत्युत्तर न देते, एक बड़ा भाई है सुरेंद्र उर्फ़ सोनू उर्फ़ सोनूड़ा, प्लम्बर है, 10 वीं में फेल हो गया तो काका ने काम पर लगा दिया, यूँ भी उसे पढ़ाई को लेकर विशेष उत्साह जैसी कोई बात नज़र नहीं आती थी। कौनसा सभी पढ़े लिखे कलेक्टर बन जाते है, आज वो ठीक ठाक कमा खा रहा है तो अच्छा ही है। एक छोटी बहन भी है, कहने को तो नाम सुनयना है पर वो उसे उसके भूरे रूखे बालों की वजह से भूरती कहा करती है। 10 साल की घोड़ी हो गई है पर अभी गुड्डे गुड्डियों के ब्याह रचाने और घरौंदे बनाने से भी नहीं उबर पाई है, तो पते की बात ये है कि उसकी जिससे गुड वाली जमे ऐसा घर में कोई भी नहीं। सारे घर का काम शामली अकेले करती है पर जब फोन की बात आई तो काका बस बहाने बनाए जा रहे थे। पर आज आखिर सत्य की यानि उसी की जीत हुई।
शामली अपना फोन मीनुड़ी को दिखा रही थी, मीनू, उम्र 14 वर्ष, घर की इकलौती बेटी थी, बहुत लाडली और थोड़ी नकचढ़ी, इकलौते होने से ज्यादातर उसकी हर मांग पूरी हो जाया करती, ये फोन वोन सबसे पहले उसी के पास आया था, उसे सब पता होगा इसलिए उसके पास आई थी।
'देख देख कितना अच्छा है ना, रेखली वाला फोन तो छोटा सा है, बोदा हो गया है ,पटक पटक के हालत खराब कर रखी है बेचारे की, गर्दन पर टेप लगा के जिन्दा रखा है, आवाज़ भी घर्र घर्र करती है उसमें, सोनूड़ा बोल रहा था ये एंड्रॉयड है, फिल्म भी चलती है इसमें, गाने भी चलते हैं।'
'अरे ये आजकल सभी नए फोन में होता है। चल तेरा व्हाट्सएप्प अकाउंट बनाती हूँ।'
'वो क्या होता है?'
'अरे बड़ी मजेदार चीज है, बातें कर सकते हैं, अपनी फोटो और वीडियो कुछ भी शेयर कर सकते हैं।'
'अच्छा !? तब ठीक है, अब खूब बातें करेंगे।😊😊'
और वाकई शुरू हो गई कभी न खत्म होने वाली बातें, साथ ही सूत्र की तरह जुड़ते ग्रुप्स से सहेलियों का कारवां भी बढ़ता गया, और जुड़ गया आरुष, आरुष उसके भाई का दोस्त था उस के साथ कई बार घर आया करता था। न जाने कहाँ से और कैसे नम्बर लिया उसका, खूब बातें बनानी आती थी उसको शामली के बालमन को बहलाना तो और भी आसान लगा उसे। शामली को उसका नाम बहुत पसंद था, अनजान नम्बर के लुभावने मैसेज का रिप्लाई तभी किया था जब ये पता लगा की मैसेज भेजने वाला आरुष है। शामली अपनी उम्र के अनुसार ही मन से भी बच्ची थी पर आरुष नहीं, वो उसे लगातार बातें करता कभी घर परिवार के बारे में, कभी स्कूल के बारे में तो कभी उसकी सहेलियों के बारे में, फिर एक दिन आखिर उसने अपना प्रेम प्रस्ताव भी शामली के सामने रख दिया। कच्ची उम्र के कल्पनाशील मन को लगा जैसे वो इसी का तो इंतज़ार कर रही थी। आरुष धीरे धीरे और खुलता जा रहा था, मैसेज की शृंखला में अब कुछ मैसेज 'वैसे वाले' भी होते, अजीब लगता श्यामा को पर वो उन पर ध्यान न देने की कोशिश करती। फिर 'वैसे वाले' वीडियो भी आने लगे, यक्क् गन्दी, मन कसैला हो गया, क्या है ये ? उसने पूछा था। आरुष बोला, पगली इसे ही तो प्यार कहते है। सब प्यार करने वाले करते हैं, बिना इसके हमारा प्यार भी गहरा नहीं होगा। शामली अजीब सी उधेड़ बुन में थी, बस चुप हो रही।
एक दिन जब स्कूल से लौट रही थी, तो उसकी ढाणी से कुछ पहले उसे आरुष मिला। अच्छा लगा था उसे मिलकर, प्यार जो करती थी उससे। संकोच हुआ पर आरुष की प्यार भरी नजरों में खो कर सरसों की फसल में बैठ बातें करने लगी। आरुष कितना अच्छा है, कितना सुन्दर, मुझे कितना प्यार भी करता है, हे भगवान ये पल यहीं थम जाए, ये बस यूँ ही चलता रहे, मैं यूँ ही खोई रहूँ आरुष की आँखों में। इसी स्वप्न के बीच आरुष ने उसे पहली बार चूम लिया था, बहुत लाज आ रही थी, अपने ही हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया, और आरुष ने खींच लिया था अपने पास और वो किसी गुड़िया की तरह उसके आगोश में समा गई, फिर जो हुआ वो किसी 'वैसे वाले' वीडियो जैसा था यक्क , गंदा और दर्दनाक भी, बस आरुष को वही अच्छा लगता है यही सोच पड़ी रही। आरुष वाकई उससे बहुत खुश था,ये सब इतना इजी हो जाएगा उसे भी कहाँ पता था। तभी तो अब ये उसका नित्य कर्म हो गया, रोज उसे वहीं मिलता, वही करता जिसे वो प्यार कहा करता था, और चला जाता। पर एक दिन उन दोनों को सोनूड़े ने देख लिया, खूब झगड़ा हुआ आरुष के साथ उसका, शामली ने तब भी आरुष का ही साथ दिया था। क्या गलत किया ? प्यार किया न तो क्या हुआ? प्यार करना कोई जुर्म है क्या? आरुष सोनूड़े से छूट कर भाग गया। शामली की खूब पिटाई हुई, स्कूल जाना बंद हो गया। सिर्फ उसका ही नहीं सुनयना का भी। एक रोज मौका पाकर शामली भी उड़ गई चिड़िया की तरह, ठीक वैसे जैसे कभी उसकी माँ भी उड़ कर चली गई थी, जिसकी वजह से उसके पिता आजतक एक चुप्पी को झेलने को विवश थे। बदनामी झेल पाना हर किसी के बस का कहाँ होता है, शामली ने सुना की काका ने अपने आप को टांग दिया था पंखे से, फिर सुना सोनुड़ा न जाने कहाँ चला गया किसी को कुछ भी नहीं पता। भूरती की चिंता होने लगी थी पर किसी ने बताया कि काका ने खुद ही उसका गला घोंट के मार डाला था। बहुत रोना आया था उसे, बहुत रोना, पर कुछ भी हो उसके साथ उसका प्यार उसका आरुष तो था ही, उड़कर उसी के पास तो आ गई थी।
एक दिन आरुष बोला, अब हम यहाँ नहीं रहेंगे, मेरी तो सिर्फ तुम हो, और तुम्हारा भी अब कोई नहीं यहाँ। उसे लेकर हरियाणा चला गया अनवर चचा के पास, जी हाँ वो भी चौंकी थी ये नाम सुन कर, तो आरुष ने बताया था कि वो बहुत अच्छे लोग हैं, जब तक हमे रहने का कोई और ठिकाना नही मिलता यही रहेंगे फिर अपनी छोटी सी प्यारी सी दुनिया बसाएंगे जहाँ बस खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी, गम एक भी नही।
'अच्छा सुनो मैं अभी खाने पीने का सामान लेकर वापस आता हूँ। ' आरुष ने कहा था।
वो चला गया, फिर कभी न लौट कर आने के लिए। वो आरुष का इंतज़ार कर रही थी तभी अनवर चचा आए उससे मार पीट की और वो किया जो उन्हें बिलकुल नही करना चाहिए था। वो रोइ गिड़गिड़ाई धमकी भी दी की आरुष को बताएगी सब, और तब उसे पता लगा था कि उसका आरुष उसका अपना आरुष उसे यहाँ छोड़ कर नहीं बेच कर गया है , बस नाम के लिए अनवर चचा ने अपने सबसे छोटे और पागल बेटे आसिफ से साथ उसका निकाह पढ़वा दिया, पर हकीकत में घर के सभी पुरुष मौका मिलने पर शामली से सलमा बनी जिन्दा लाश को नोच नोच खाते हैं। शामली रोज वहाँ जी तोड़ काम करती है, भाग कर जाए भी तो कहाँ जाए , किसके पास, जानती है कि कोई लौट कर नहीं आएगा उसके लिए इसलिए किसी का कोई इंतज़ार नहीं उसकी भावशून्य आँखों में।
और सावधान , क्योंकि आरुष खान अब किसी और शामली की तलाश में है।
#जयश्रीकृष्ण
©अरुण
Rajpurohit-arun.blogspot.com
👍👍👍
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