पापा ने आज भी पैसे नही दिए, गंदे पापा। मैं कौनसा चॉकलेट के लिए मांग रहा, स्कूल में रोज कचरा होता है फीस को लेकर,रोज क्लास में मुझ अकेले को खड़ा होना पड़ता है,सब कितना हंसते होंगे मुझ पर, स्कूल की फीस ही तो मांगी कभी रानू की तरह जिद्द भी नहीं करता मैं तो कि मुझे भी अठन्नी दो । माँ कहती है मैं बड़ा हो गया, पर क्या सच में ? वैसे बड़ा तो हूँ ही, रानू से , एक बिलांग से थोड़ा सा कम। वो भी तो सात साल की है पता नही कब अक्ल आएगी। पापा पैसे दो दो दो की जिद्द एक बार शुरू की तो मानती ही कहाँ है। और हर बात में वो ही तो बराबरी करती है कि मुझे पेंसिल मिली तो उसे भी चाहिए, इरेजर भी चाहिए साथ में, वैसे दिमाग तो तेज़ है इसका, पर पढ़ने के बजाय बातों और खेलने में ज्यादा लगाती है। थोड़ा सा भी और गौर करें तो ये ही फर्स्ट आएगी पक्का। पर क्या होगा फर्स्ट आकर भी, माँ ने मुझे भी तो बोला था कि फर्स्ट आऊंगा तो साइकिल ला देंगे, ला दी क्या? हुंह कुछ नही होना फर्स्ट आकर . अरे पर मैं ये सब क्यों सोच रहा हूँ स्कूल भी तो जाना है और देर हो रही है, है ना.
"रानू, ओ रानू चल न जल्दी . रोज लेट हो जाते हैं तेरी वजह से "
"मेरी नहीं तुम्हारी वजह से, खुद तो नहाए नही थे आलसी"
"अरे पर तुम ही तो बाल्टी पर कब्ज़ा कर के बैठ जाती हो पहले, और अब कित्ती देर से खेल कौन रहा था?"
"मुझे नहीं पता, तुम ही करते हो लेट, मैं नहीं"
"गुस्सा मत दिला नही तो मैं चमाट लगाऊंगा"
"बड़े आए, जैसे मैं चुप चाप खा लेने वाली हूँ, ये दांत देखे हैं मेरे , कितने तीखे हैं...इतना जोर से काटूंगी ना की माँ के पास भागोगे सीधे शिकायत लगाने.....हीहीही"
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स्कूल के पास की दुकान में भीड़ लगी है, सब कुछ मिलता है यहाँ रंग बिरंगी मीठी गोलियां, चॉकलेट, आम पापड़ से लेकर चूरन तक, और तो इमली भी. पर मैं इमली नही खाता लड़कियां खाती हैं, पहले तो मैं भी खा ही लिया करता था पर आशु बोल रहा था की इमली खाने से मैं भी लड़की बन जाऊंगा, मुझे नही बनना लड़की वड़की, अच्छा किया जो बंद कर दिया क्या पता किसी सुबह मैं उठता और......... छी कितना लगता मैं...रिब्बन डाल कर चोटी बनाना पड़ता वो अलग. माँ रानू की चोटी भी कितना ज़ोर लगा कर बनाती हैं मानो गुस्सा निकाल रही हैं, फिर मैं भी इसी की तरह चिल्लाता .......... "उई माँ"
"क्या हुआ, चिल्लाए क्यूँ?"
"हेहेहे कुछ नही बस ऐसे ही कांटा लग गया था..... :)"
मेरी क्लास के कुछ बच्चे 'खरीददारी' कर स्कूल की और प्रस्थान कर रहे, बटड़ बटड़ की आवाजें आ रही इनके मुंह से, पता है नमूनों की कुछ खा रहे हो , इसमें इतना इतराने की क्या बात है ? जानबूझ के आवाजे निकाल रहे हो न? सब पता है मुझे . हंस तो ऐसे रहे जैसे पता नही कौनसा राजभोग खा लिया हो, और इस सिम्मी को तो देखो चूरन कैसे हाथ पर डाल के चाट चाट कर खा रही है, ऐसे तो गंदे बच्चे करते है, पर ये तो है ही गंदी बच्ची, मैंने न जाने कितनी बार इसका होमवर्क किया है तो इसका फर्ज नही बनता की मुझे भी थोड़ा चूर.... नही नही मुझे नही लेना इससे कुछ भी... मैं जब बड़ा हो जाऊंगा तो ढेर सारा चूरन लाऊँगा, इतना सारा की रोज कटोरा भर भर के मैं और रानू खाएंगे तब भी खत्म नही होगा, पर मैं इसकी तरह नहीं हूँ थोड़ा इसे भी दे दूंगा. हम्म तब इसे अपनी गलती का अहसास जरूर होगा, न भी हो पर मुझे तो अच्छा ही करना है न, माँ ने भी यही कहा था कुछ करना हो तो ऐसा करो कि लोग तुमसे प्रेरणा लें की हमे भी 'राजन' जैसा बनना है.
स्कूल आ गया, मैं दरवाजे पर झुक कर थोड़ी माटी उठा शीश पर लगाता हूँ, रानू सीधे चली आ रही मुँह उठाए, न जाने कब अक्ल आएगी, कुछ याद नहीं रहता इसको माँ ने कितना समझाया था स्कूल किसी मंदिर से कम नहीं होता, और गुरुजन भी देवता जैसे ही होते हैं, ये माटी ही हमे सोना बनाएगी देख लेना. गुरूजी खड़े है उनके चरण छूता हूँ पर वो कोई ध्यान नहीं देते, कैसे देंगे न जाने कितने बच्चे उनके चरण छूते रहते हैं सब पर ध्यान कोई कैसे देगा भला, और फिर वो बात भी तो कर रहे थे किसी से ,पता नहीं कौन है पहले कभी नहीं देखा इनको , खैर जो भी हो मुझे क्या, पर बड़े हैं ये भी इनके भी चरण छूने चाहिए थे मुझे, रानू कहाँ है? अरे वो गई अपनी सहेलियों के साथ जाते जाते वापस लौट आता हूँ, उनके भी पैर छुए, चौंक गए वो शायद, मेरी और देख कर मुस्कुराए क्या नाम है बेटा?
'जी राजन'
'राजन !? अरे वाह बड़ाप्यारा नाम है, कौनसी क्लास में हो राजन?'
'जी तीसरी क्लास में..'
गुरूजी बीच में ही बोल पड़े,' तुम क्लास में जाओ राजन '
'जी गुरु जी...'
मैं क्लास में आ गया. अपना यूरिया के थैले से बना स्कूल बैग सामने के डेस्क पर रख दिया, अब प्रार्थना होगी हमेशा की तरह, रोज मुझसे बुलवाते हैं गुरु जी, हाँ मुझी से, 8 वीं की लड़कियों ने उस एक दिन प्रार्थना बोली थी जब मुझे बुखार हुआ था, गुरूजी उन लड़कियों से कह रहे थे की अकेला राजन तुम सब से बुलंद स्वर में बोलता है और सुर में भी, वो चिढ कर मुझे ही सुना कर चली गई, पर मैंने किया क्या ? यही समझ नही पा रहा... प्रार्थना की घँटी बज उठी....टन टन टन.... पंक्तिया सजने लगी है, सब बच्चे कतारबद्ध कितने अच्छे लगते हैं न, जैसे दीवाली पर पंक्तियों में जगमगाते दिए , मुझे भी चलना चाहिए इससे पहले की सावधान विश्राम की प्रक्रिया शुरू हो...सरस्वती मैया की तस्वीर के आगे दीप जलाना शुरू करने के साथ ही मैं भी शुरू हो जाता हूँ
दीप ज्योति परम ज्योति ,दीप ज्योति जनार्दन:
दीपो हरतु मे पापं, दीप ज्योति नमोस्तुते !
...........और फिर प्रार्थना
' हमको मन की शक्ति देना मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले खुद को जय करें .'
हाँ माँ यही तो सिखाती है, मन को जीतना करना सीखो , पर आज प्रार्थना में मन नही लग रहा, कुछ रोना जैसा आ रहा, भगवान जी रोज आपको प्रार्थना करता हूँ न फिर ऐसा क्यों है ? मेरे पापा फीस क्यों नही दे पाते ? अब थोड़ी देर में फिर से वही सब होगा....फिर से सब हंसेंगे मन ही मन...
'भेदभाव अपने मन से साफ कर सकें,
दूसरों से भूल हो तो माफ़ कर सकें.'
भगवान जी मुझसे क्या गलती हुई है ? अगर हुई भी हो तो प्लीज माफ़ कर दो , मैं तो आपका अच्छा बेटा हूँ न....
'झूठ से बचे रहें, सच का दम भरें,
दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें'
हाँ भगवान जी आप सही कहते हो, मैं भी जब बड़ा हो जाऊंगा तब खूब सारे पैसे कमाऊंगा, सारे साल की फीस एक साथ भर दूंगा...
प्रार्थना समाप्त हुई, मैं भी एक लाइन में खड़ा हूँ सबसे पीछे, मुझे आगे कौन खड़ा होने देगा भला, अरे ये तो वही हैं सुबह जो गुरूजी के पास खड़े थे, अरे.... चुप..... चुप.... सुनो गुरूजी कुछ बोल रहे हैं ,' प्यारे बच्चों, हर गुरु का ये सपना होता है की उसके सभी शिष्य आगे बढ़े कुछ ऐसा करें जिन पर हम ही नही पूरा राष्ट्र गर्व कर सके, पर एक निजी संस्था की कुछ अपनी आर्थिक मजबूरियाँ होती हैं कई बार हम चाहे तब भी हमारी ये मजबूरियाँ हमें वो करने से रोक देती हैं, खैर....पिछले महीने एक प्रतियोगिता का आयोजन हुआ जिनके आयोजक श्री आशुतोष हमारे साथ हैं, मुझे ये बताते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है की इस प्रतियोगिता के प्राथमिक वर्ग में हमारे विद्यालय के उस होनहार बालक का चयन हुआ है जिसे इसकी सर्वाधिक आवश्यकता भी थी, जब मैंने श्री आशुतोष से उक्त छात्र के विषय में चर्चा की तो उन्होंने बड़ी सदाशयता का परिचय देते हुए इस छात्र के लिए शिक्षा की सम्पूर्ण व्यवस्था का दायित्व बड़े आग्रह से ले लिया, आप सबको उस छात्र का नाम जानने की उत्सुकता हो रही होगी, आप सब की तालियों के बीच मैं मंच पर आमंत्रित करता हूँ कक्षा 3 से 'राजन' को.....
तालियाँ गूंज उठी हैं चारो और, मैं जड़वत बैठा हूँ, गुरूजी ने फिर से पुकारा उठो राजन...उठो..तुम्हारा ही नाम पुकारा है मैंने....जाने क्यों मेरी आँखों में आँसू बह चले हैं....मंच पर खड़े सज्जन से कहा सर मैं जब बड़ा हो जाऊंगा मैं भी ऐसा ही कुछ जरूर करूँगा.....श्री आशुतोष मुस्कुरा रहे हैं मुझे प्यार से निहारते हुए , मैं ऊपर देखता हूँ भगवान... माँ सच कहती है तुम बच्चों की प्रार्थना सबसे पहले सुनते हो.... माँ सच कहती है माँ सब सच कहती हैं.
#जयश्रीकृष्ण
©अरुण
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