🎑🎑🎑🎑🎑 दीप ज्योति परम ज्योति ♠♠♠♠♠ .


आसमान में बादल हैं, दो छोटे छोटे बच्चे धीमे धीमे बरस रही हल्की बूंदों और बाहरी दुनिया से बेखबर अपनी ही धुन में न जाने किस लोक में खोए व्यस्त से नजर आते हैं। बारिश का पानी इकट्ठा होने से बने पानी के छोटे से गड्डे को तालाब की मौन अघोषित आकस्मिक उपाधि प्रदान कर दी गई है। उन बच्चों में से एक कागज की नाव बना कर उसी में बहाने में लगा है बारिश की आहट पाकर भाग रहे किसी मकौड़े को जबरदस्ती पकड़ 'सिन्धबाज़ जहाजी' का ख़िताब देकर अज्ञात की खोज में भेज दिया है। वहीं दूसरा तालाब के किनारे की गीली जमीन पर ऊँगली से कुछ उकेर रहा है, शायद कोई रंगोली बनाई जा रही है।

पहले ने दूसरे को अपने जहाज को निहारने का न्यौता देते हुए आवाज़ लगाई पर दूसरा दत्तचित्त और पूर्ण एकाग्र मन से रंगोली की गोलाइयों को साधने, संवारने  और उस पर नक्काशी में व्यस्त है। पहले को अपनी ये उपेक्षा अच्छी नहीं लगी शायद , हुँह ! भला उसके जहाज से बेहतर क्या होगा इस दुनिया में ? विचार आया कि जब 'उसका सिन्धबाज़' दूसरी दुनिया से ढेरों खजाने ले आएगा तो वो किसी को एक धेला भी न देगा, हुँह कह कर एक बारगी मुँह उधर किया भी पर दूसरा अब भी उसकी उपेक्षा और अपेक्षा दोनों से निरपेक्ष अपनी ही तन्द्रा में लीन था। उसने पुकारा भी नहीं पर शायद वो पुकार दूसरे की एकाग्रता को भेद नहीं पाई, सहज जिज्ञासा पहले को दूसरे की ओर खींच लाई। आकर देखने लगा कि आखिर वहाँ ऐसा है क्या जिसके लिए उसकी उपेक्षा की जा रही थी?

आड़ी तिरछी रेखाएं अधिक देर तक उसके कुतुहल का कारक बनने में सफल न हो सकी, जाने उसे क्या सूझी कि गीली गीली रंगोली पर दनादन लातें जमा कर सब तहस नहस कर दिया, जो रेखाएं बच भी गई उन पर भी कुछ छलांगे लगा कर रही सही कसर पूरी कर दी गई। चित्रकार अपनी कृति की दुर्दशा देख क्रोध में आपा खो बैठा, उठते ही जहाज के मालिक को जोर से धक्का दिया।  जिससे वो सीधा उसी गड्डे में जा गिरा। कीचड़ सने मित्र को देख चित्रकार के क्रोध का स्थान सहज हास्य ने ले लिया, पर हँसते हँसते हाथ आगे बढ़ा कर पहले को गड्डे से बाहर खींचने की भी चेष्टा की पर खुद भी फिसल कर उसी में जा गिरा। दोनों एक दूसरे पर पानी गिराते हुए कहकहे लगा रहे हैं। अचानक देखा कि उनसे कुछ कदम की दूरी पर एक पेड़ के नीचे से एक जोड़ी आँखें उन्हीं को निहार रही है, हास्य संकोच और संकोच झेंप में कब बदला और कब इस झेंप ने पलायन का रूप लिया , ये थोड़ी ही देर में तब स्पष्ट हो गया जब ये दोनों एक दूसरे के पीछे हाथों से स्कूटर बना कर हुर्रररर की आवाजें निकालते हुए दौड़ लगा गए।

मैं देख रही हूँ उन्हें दौड़ते, खिलखिलाते, मुस्कुराते हुए, हल्की सी अज्ञात मुस्कान मेरे चेहरे पर आते आते वापस अज्ञात ही में विलीन हो गई, जाने क्यूँ पर बरसों हुए 'सच में' मुस्कुराए हुए। मैं भी तो ऐसी ही थी शैतान, मासूम और निश्छल, वो सब बचपना बचपन खत्म होने से पहले ही खत्म हो गया। पर क्या कहूँ? किसे कहूँ? किस मुँह से कहूँ ? सब मुझे ही दोषी कहेंगे। उस दोष की दोषी जो मैंने नहीं किसी और ने किया। बारिश फिर टपकने लगी है। भगवान कभी कभी तो सहायता करते ही हैं। बारिश की बूँदों में बरसती आँख के आँसू अब नजर नहीं आ रहे। पर आप तब कहाँ थे भगवान जी, जब रोज आपसे प्रार्थना करती थी कि प्लीज मुझे अपने मम्मी पापा के पास भिजवा दो? दीदी ने बताया था कि 'मेरी मम्मी' मम्मी नहीं है,'हमारी बुआ जी' हैं, बस तब से मैं अपनी माँ अपने पापा तलाश ही तो करती आई हूँ। किसकी बेटी हूँ जन्म देने वालों की या पालने वालों की, उनकी जो मुझे जन्म से पहले ही मार डालना चाहते थे या उनकी जो इस बात का रोज अहसास दिला कर तंज कसते हैं कि मेरी जान बचाने वाले वे ही हैं, समझ नहीं आता कि मुझे 'जिंदा' होने के लिए आखिर किस किस का अहसानमंद होना चाहिए। पता नहीं क्यूँ मेरे इन माता-पिता को लगता है कि मेरी निष्ठा इनके प्रति नहीं 'अपने मम्मी पापा' के प्रति ही है।

बारिश बढ़ गई थोड़ी, मैं यहीं पेड़ के नीचे थोड़ा और सिकुड़ गई हूँ। वो बच्चे हुर्ररर करते लौट आए हैं। कीचड़ में लोट पोट हो रहे, खुशी से। उछल रहे। मुझे देखा फिर से, मुस्कुरा दिए, फिर ध्यान अपने खेल में लगा दिया। कीचड़ के गोले बना कर थपाक से एक दूसरे पर निशाना लगाया जा रहा। मुझे लग रहा जैसे मैं भी कीचड़ से सन गई हूँ, हाँ सच में सन गई हूँ बाहर से ही नहीं भीतर से भी, शायद मेरे आँसू उसी कीचड़ से मुक्त होने की मेरी कोशिशों के हिस्सा है। बच्चे कीचड़ में खेल कर भी खुश हैं, मैं खुश क्यों नहीं रह पाती? इस प्रश्न का उत्तर पूछूँ भी तो किससे? खुद से प्रश्न किया तो मन से खामोश चीत्कार सी निकलती है। बच्चे खुश हैं, मैं भी होती थी पहले पहल जब अपने मम्मी पापा के यहाँ जाती थी। भरा-पूरा परिवार, 2 बहने 1 भाई, सबसे छोटी मैं। सब बहुत प्यार करते। मम्मी लाड़ लडाती, पापा मेरे लिए खिलौने लाते, दोनों बहनें मेरा कितना ध्यान रखती, पर भैया तुम....😢 माँ कहती ये भी बहन है तुम्हारी, आशीष खिलखिला कर हँसने लगा था, कितनी अजीब थी वो हँसी। मैं 5 साल की थी और वो 9 साल का , उस हँसी की गूँज अब भी जब रह रह कर गूँज उठती है तो सिहर जाती हूँ। नहीं .....क्यों याद कर रही हूँ मैं वो सब, एक बच्चा फिसल कर गिर गया है। अरे रे, कितनी चोट लग गई खेल खेल में, पूरा घुटना छिल गया, खून बह रहा है, अब आँसू बह रहे बच्चे के भी, दूसरा स्तब्ध होकर टुकुर टुकुर ताक रहा। अपने रुमाल को उसके घुटने पर बांध दूँ शायद खून बहना रुक जाए। थेंक्यू दीदी, बच्चे ने बोला, उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा, जाने क्यों बेवजह आँखे बही जा रही, दूसरा पहले को साथ ले कर जा रहा है। कितने अच्छे हैं दोनों, एकदम सच्चे, बच्चे सच्चे ही तो होते हैं, पर तुम्हे क्या हुआ था आशीष, बच्चे ही तो थे तुम भी, मैं भी, कमीने भाई थे तुम मेरे, मेरे अपने सगे भाई, सहोदर, पर कभी बहन मान भी पाए? तुम्हारा यूँ अजीब तरह से छुना अजीब लगता था, मन करता है जीभर कर गालियाँ दूँ तुमको, पर क्या उससे वो सब लौट आएगा जो तुमने छीन लिया मुझसे राक्षस? उस रात के बाद से तो इतना डर गई हूँ कि रह रह कर चौंक जाती हूँ। किसी पर भी पागलों की तरह चिल्लाती हूँ। सहम गई थी माँ से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं थी। 5 साल की बच्ची कैसे कह दे। दीदी को कहा तो वो भी कुछ नहीं बोली। बस उसके बाद से अपने पास रखती , सबसे बचाकर, मेरा सब कुछ खा गए तुम। सच भाई नाम से नफरत हो गई है मुझे।

अरे ये बाइक पर कौन चले आ रहे? ओह पापा हैं, मेरे पालक पिता, वही जो सुबह बिना वजह मुझे डांट रहे थे, वही डांट सुन कर ही तो चली आई हूँ घर से यहाँ चुपचाप, आगे कहाँ जाऊं कुछ समझ नहीं आया, पापा आते ही शुरू हो गए।

'अरे बेटा, तू यहाँ क्यों आई अकेले? मैं कब से ढूंढ रहा था तुम्हें, तुम्हारी माँ ने रो रो कर आसमान सर पर उठा रखा है। चलो, ऐसा नहीं करते कभी, पता भी है सुबह से कुछ नहीं खाया किसी ने। सब तुझे ढूंढने में लगे थे।'

चुपचाप पापा के साथ घर आ गई, माँ ने गले से लगा लिया, बोली 'अब से ऐसा कभी न करना बेटा, जान सूख गई थी मेरी तो।' सोच रही हूँ ,क्या ये मेरी वही माँ रोज वाली? नहीं ये वो है जो सचमुच मेरी माँ है, सुबह से किश्तों में रोए जा रही, आखिर रुलाई फूट ही पड़ी। माँ, आई एम सॉरी माँ, अब मैं हर बात मानूंगी आपकी, आई एम सॉरी मेरी वजह से आपको भूखा रहना पड़ा, देखना एक दिन कुछ बन कर दिखाउंगी तुम्हे अपनी बेटी पर, आई प्रॉमिस आपको अपनी ज्योति पर गर्व होगा। और माँ अब कभी मुझे 'मम्मी' के पास मत ले जाना।

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

Rajpurohit-arun.blogspot.com

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