कहानी के लिहाज़ से इससे बेकार और नीरस शीर्षक भला और क्या मिलेगा, रोज पढ़ते हैं भई, पहले अख़बारों में कहानी पढ़ लेते थे पर अब कहानी के नाम पर अखबार के टुकड़े? छी छी छी, 'रद्दी' सा नाम है, क्यों यही कहना चाहते हैं न आप? अजी रुकिए तो जनाब, यूँ इतनी जल्दी राय न बनाइए, हो सकता है अंत तक आते आते यही आपको भी जम जाए, और अगर न भी जमे तो क्या, कभी कभी खड़ूस बन कर सबकी प्रतिक्रिया को दरकिनार कर देने का भी एक्सपीरियंस लेने में भी हर्ज़ नहीं। ले ही लेने दीजिए हमको भी 😊
बहरहाल हमारी इस कहानी की नायिका है, जाह्नवी, जी हाँ जी हाँ कभी कभी वुमन ओरिएंटेड भी लिखना चाहिए, इससे आपके भीतर के पुरुष को कितनी तुष्टि मिली इस पर ध्यान न भी दें तब भी कम से कम इस बहाने नारीवादियों को तो इनडायरेक्टली पुचकारा ही जा सकता है। हँस लीजिए, सिर्फ हँसने के लिए ही लिखा है। हँसना छोड़ कहानी पर लौटिए, वरना जाह्नवी बुरा मान जाएगी। जाह्नवी , २७ वर्षीय, दिल्ली की लड़की । अब कुछ लोगों को इसमें भी बुरा लगा होगा, मानता हूँ नाम से जो कमसिन छवि आपकी कल्पना में उपजी थी, ये उससे मेल नहीं खा रही। लेकिन आज मैं कुछ भी परम्परागत कहने, सुनाने या लिखने के मूड में बिल्कुल नहीं हूँ, इसलिए लड़की की उम्र इतनी ही रहेगी, कम नहीं होगी मतलब नहीं ही होगी। बेचारी जाह्नवी परेशान है और आपको अपनी एक्सपेक्टेशन की पड़ी है? क्या कहा, क्यूँ परेशान है? अमा कुछ कहने का मौका तो दीजिए हुजूर। कहानी सुनिए । तो हमारी जाह्नवी परेशान है, वाकई। माना बड़े शहर में रहती है, पर बड़े शहर में क्या मक्खियाँ नहीं होती? चली आई थी घर से खुद को प्रूव करने , वो घर जो हम जैसे बहुतेरे निम्नमध्यमवर्गीय परिवारों की तरह ही है। छोटे शहर में है। थोड़ी आमदनी वाला है। आगे बढ़ना था। इसलिए उन सारे बन्धनों को तोड़ ताड़ के निकल आई, ढेर सारे सपनों के गठ्ठर उठाए। मैंने थोड़ी देर पहले आपसे कहा था न कि जाह्नवी परेशान है, यूँ समझ लीजिए कि ये गठ्ठर ही उसे परेशान कर रहा है। सोच कर आई थी कि बड़े शहर में जाते ही बड़ी सी नौकरी होगी, लम्बा चौड़ा पैकेज, लेटेस्ट मोबाइल और तो और रहने को डुप्लेक्स और चलने को गाड़ी भी कम्पनी देगी। पर हकीकत में रोज जब डीटीसी की बस पकड़ के छोटे से अखबार के छोटे से ऑफिस में जाती है, और जब वहाँ बैठकर कम्प्यूटर टाइपराइटर की कीज तड़तड़ाती है तो लगता है काले अक्षर उसके सपनों पर क्रमशः कालिख पोतते जा रहे। अबकी बार का इंक्रीमेंट मिला कर 15k महीने के मिलेंगे, एक बार के लिए खुद को लगा कि जैसे अब ये तनख्वाह से बढ़ रही समस्याएं खत्म हो जाएंगी। पर आजकल समस्याएं तनख्वाह से जल्दी बड़ी होती हैं।
वैसे तो आज के दौर में लड़की होना ही अपने आप मे खुद एक समस्या है। सबकी कॉमन समस्याएं भी लड़की के पास आते ही अधिक विकराल हो उठती हैं और लड़की अगर अकेली हो तो क्या कहने। 3 साल से द्वारका में है, पुरानी दिल्ली के दड़बों से निकल यहाँ आई थी तो लगा था शायद अब कोई उसे वैसे नहीं घूरेगा, कोई उसे ओपोर्चुनिटी नहीं समझ लेगा, साले जाहिल लोग किसी से हँस कर बोल भी लो तो क्या क्या बातें बनाने लगते हैं। जाने क्यों उन्हें हर लड़की में रात के जुगाड़ की जुगत दिखाई पड़ती है। और उस रात तो, उस अशरफ़ ने उसका हाथ ही पकड़ लिया था, जब वो अपने दड़बेनुमा कमरे कमरानुमा दड़बे में जाने के लिए सीढियां चढ़ रही थी। हर लड़की की तरह एक सपना ये भी तो था कि कोई उसे बहुत प्यार करने वाला हो, जिसके छूने से दिल की कलियाँ खिलखिलाने लगे। पर जिस तरह से उसका हाथ जबरदस्ती और वाहियात ढंग से पकड़ा गया था, लगा जैसे कलियाँ खिल नहीं रही मसल दी गई हैं, कुचल दी गई हैं, एक गहरी वितृष्णा भरी चीत्कार भी बस मुँह से फूटने की कोशिश ही कर पाई, झटके से अपना हाथ छुड़ा कर दड़बे का गेट भीतर से बंद कर लिया।
यहाँ वहाँ जैसा माहौल नहीं, घूरने क्या किसी के पास किसी को देखने की भी फुर्सत नहीं है। वहाँ से अलग यहाँ ये एक समस्या है। दूसरी समस्या ये भी है कि १००० की जगह ३००० देने पड़ेंगे कमरे के किराए के लिए। अपने कमरे में घुस कर चारों और नजर घुमाई। कुछ अखबार के फ़टे टुकड़े जिस पर उसी ने खाना रख कर खाया होगा, अब उठा लेने वाले हाथों की बाट जोह रहे हैं। डस्टबीन में समेटने को हाथ उठे, पर कोई विज्ञापन देख कर ठिठक गई। "वधु चाहिए, २५ वर्षीय खूबसूरत, अपना बिजनेस, आय ५ अंकों में, अग्रवाल लड़के के लिए, कोई जाति बंधन नहीं, सम्पर्क **********" एक दर्द सा फिर उठने लगा, सोच रही है कि मैं ये विज्ञापन क्यों देख रही हूँ? फिर सोचा कि क्यों न देखूँ? आखिर शादी की उम्र तो हो ही रही उसकी भी। और हो नहीं रही निकल रही है। पिता की मौत के बाद से हर महीने घर पर भी कुछ पैसे भिजवाने होते हैं, कभी कभी लगता है जैसे घरवालों ने शायद उसे उतने भर के लिए ही समझ लिया है। पर और करें भी तो क्या? और फिर शादी ब्याह के लिए क्या नहीं चाहिए। ख़ैर जो जब होना हो हो जाएगा।
सारी परेशानी झटक कर सो जाना चाहती है, पर मन के किसी कोने में , कोई है जो, २५ वर्षीय खूबसूरत, अपना बिजनेस, आय ५ अंकों में, दोहरा रहा है। उसे लगता है जैसे ये उसी लड़के के बारे में है, कौनसा लड़का ? अरे कहानी नायक प्रधान हो या नायिका प्रधान, लड़का लड़की तो एक दूसरे के पूरक ही हैं न। लड़का वही है, जिसका घर उसके ऑफिस के रास्ते मे पड़ता है, 'घर से निकलते ही कुछ दूर चलते ही' टाइप, वही जिस के घर के अहाते में कई गाड़ियाँ खड़ी हैं। वही जो कभी कभी अपने कुत्ते को घुमाने निकलता है, जाने कितने रंगों की टी शर्ट और कितने सारे लोअर हैं उसके पास, हर बार बदल जाते हैं। वो भी उतना ही होगा, मेरा मतलब लगभग २५ वर्षीय, खूबसूरत है, आय का पता नहीं पर उतने अंकों में तो होगी, वरना इतना तामझाम मेंटेन कैसे करेगा कोई। आते जाते चलते चलते चुपके कनखियों से देख लिया करती है वो, क्या वो भी उसे देखता होगा ? नोटिस किया होगा उसे ? क्यों नहीं देखेगा, आखिर क्या कमी है उसमें ? पता नहीं क्यों उसी पल उठ कर खुद को आईने में निहारने लगी, अच्छी भली तो हूँ। पर क्या वाकई ? आँखें बिना काजल के फीकी सी लग रही। अभी लगा लूँ, विचार किया पर इतनी रात को देखेगा भी कौन? चेहरे पर झुर्रियों ने जगह तलाशनी शुरू कर दी है, बाल भी कुछ पके पके लग रहे। खाक देखता होगा वो मुझे। नींद उड़ गई। जिंदगी की सारी परेशानियाँ अपने ही चेहरे पर केंद्रित हो गई, लगने लगा कि इसके सुधार में ही सब समस्याओं का भी समाधान छुपा है।
4 बजे ही तक जब नींद न आई तो उठकर बाल रंग डाले, नाखून खुरचे, ब्यूटी पार्लर गए भी तो मुद्दत हो चुकी। अब जो भी करना था खुद ही करना था हमेशा की तरह, जो भी मिला उसी से खूबसूरत बनने/ दिखने की कवायद की। क्या वो अब मुझे देखेगा? दर्पण में देखा, क्या वो आकर्षक है ? क्यों नहीं है, है न, तभी तो उस अशरफ़ ने उसका हाथ पकड़ा था। सहसा उस घटना पर, जिससे हमेशा उसे घिन्न आया करती थी, उसी पर उसे अजीब सी गर्वानुभूति होने लगी। वो सुंदर है, हाँ बहुत सुंदर। वो उसकी और वो उसकी तरफ जरूर देखेगा। कैसे नहीं देखेगा? देखना ही पड़ेगा। कैसी अजीब सी बातें कर रही हो, खुद से कहा। फिर पूछा क्या तुम उससे प्यार करने लगी हो? पता नहीं। वो क्यों तुमसे प्यार करेगा, तुमसे उम्र में भी कुछ छोटा ही होगा। तो, तो क्या हुआ? एक आध साल का ही फर्क होगा ज्यादा से ज्यादा, इतना कौन देखता होगा। और हो सकता है वो भी मुझसे प्यार....। न जाने क्यों एक लाज की लाली क्रीम पोते चेहरे की दमक में घुल गई।
ऑफिस 9 बजे से है और अभी तो सिर्फ 6:30 हुए हैं, डीटीसी बस से आधा घण्टा लगेगा, इस लिहाज से अभी पूरे 2 घण्टे एक्स्ट्रा बिताने शेष हैं। इंतज़ार हमेशा सबसे मुश्किल काम होता है। समय रबड़ की तरह लंबा होता सा प्रतीत होता है। समय बिताने के लिए जाह्नवी ने फोन निकाला। जी आप सही सोच रहे हैं, बहुत साधारण सा फोन। हैंग हो जाता है बार बार, इसलिए एहतियात के तौर पर उसने किसी से चैटियाने की आदत ही नहीं डाली। देखा है लड़कियों को कान से फोन चिपकाए इधर उधर आते जाते, ऑफिस में काम करते, किसी से बतियाते हुए। पता नहीं क्यों उसे इन सबके लिए वक़्त नहीं मिला, या शायद उसके किसी डर ने ही उसे इन सब से दूर रखा हो। जब उसका 'प्यार' शुरू होगा तो वो भी ऐसे ही बात करेगी ? हाँ पर क्या, उसके पास क्या है ऐसा जिसे बता कर उसे और सुन कर सुनने वाले को खुशी होगी ? जो ये लड़के लड़कियाँ बतियाते हैं सबके पास कितनी बातें हैं। अपने बारे में, घर के बारे में, हॉबीज वगैरह का कोटा तो पहली बार में खत्म हो जाता होगा। बाद में तो यहाँ वहाँ की होती होगी। हाँ कर लेगी वो भी इधर उधर की कुछ भी।
घड़ी कह रही है कि कुछ ही देर में 8 बज जाएंगे, आज समय रोज से ज्यादा धीमा है। बैठे रहना मुश्किल हो गया तो बाहर आ गई, सड़क पर, अब वो भी आएगा सामने से, उसे देखेगा, देखता रहेगा, शायद कुछ कह दे, कह क्या दे पूछ ले ,'कि क्या आप भी मुझसे प्यार करती हैं?' धत्त ऐसे कौन कहेगा पहली बार बात करने पर किसी से। शायद बात नाम पूछने से शुरू होगी और.....। वो जो सामने आ रहा है वही तो नहीं? हाँ वही लग रहा है, पर उसका कुत्ता कहाँ गया? लेकिन मैं कुत्ते के बारे में सोचूँ भी क्यों? उसकी मर्जी, नहीं लाया न सही, क्या आज वो मुझे नोटिस करेगा ? करेगा जरूर करेगा आज तो कुत्ता भी नहीं है ध्यान बंटाने को। पर अगर नहीं किया तो, तो मैं ही बात कर लूँ? पर मैं क्या बात करूँगी? वही , नाम ही पूछ लूंगी, पर अगर उसने बोल दिया कि क्यों पूछ रही हो या आपसे मतलब , तो क्या कहूंगी? नहीं ये तो बैड मैनर्स हैं इतना बदतमीज तो कोई भी नहीं होता किसी लड़की से बात करते , फिर ये तो किसी भी एंगल से ऐसा वैसा नहीं लगता। वो नजदीक आ रहा था, नज़र न जाने कैसे खुद बा खुद झुक गई, मन मे यही उधेड़बुन चल रही थी कि कैसे बात करूँ, धड़कने तेज हो गई फिर एक जोर से धक्क हुई और सब नॉर्मल हो गया। ये वो था ही नहीं। पर वो मुझे उसके जैसा क्यों लगा? वो ही क्यों जो भी आ रहा था लग रहा था जैसे वही ही तो आ रहा है। क्या मैं पागल हो रही हूँ या सचमुच उससे प्यार...। चलते चलते उसका घर करीब आ रहा, आज गाड़ियाँ बाहर भी खड़ी हैं, कभी कभार वो जब बाहर नजर नहीं आता तो घर में नजर आ जाता है, शायद आज भी नजर आ जाए। घर पर विशेष सजावट है। एक फूलों से सजी गाड़ी अंदर से निकल करीब से गुजर गई, वो भीतर था, किसी दूल्हे जैसा दिख रहा था। एक अनजान आँसू गाल से ढुलक कर नीचे जा गिरा।
ऑफिस से लौट आई, जाह्नवी वाकई परेशान है, बहुत परेशान। पर खाना पीना तो नहीं छोड़ सकती न, साथ लाई है हमेशा की तरह, अखबार बिछाया, न चाहते हुए भी एक जगह नजर चली गई, "२७ वर्षीय, राजकीय कर्मी, संस्कारी परिवार, गोरी वधू चाहिए, सम्पर्क करें **********" , "हाँ गोरी ही तो हूँ मैं भी................।"
#जयश्रीकृष्ण
©अरुण
Rajpurohit-arun.blogspot.com
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