📃📃📃📃✍✍✍✍ प्यार के कागज़ पे, दिल की कलम से ♠♠♠♠♠


सब याद है कुछ नहीं भूली मैं,जानते हो घर में सबसे छोटी थी, सबसे लाडली भी, सबने सदा प्यार बरसाया, इतना कि ये प्यार आदत या अधिकार ही बन गया, जिसका मैं अपनी मर्जी से इस्तेमाल करती, कुछ भी अनपेक्षित या नागवार लगता तो मेरे कुछ बोलने से पहले आँसू भरी आंखे सब कह देती। पर उस दिन मैं सच मे बहुत खुश थी जब माँ बोली कि अब हम यहाँ गाँव में नहीं शहर में रहेंगे, शहर, नाम सुनकर ही कितना अच्छा सा लगा था, नई जगह, नया घर, नया स्कूल , नई यूनिफार्म, नई नई सहेलियाँ और ढेर सारे नए सपने , जाने कितनी कल्पनाएँ लिए मैं भी चली आई थी, शहर में, वहाँ जहाँ तुम भी रहते थे, पहले से, सच कहूँ तुम  बिल्कुल अच्छे नहीं लगे थे मुझे जब पहली बार तुम्हे देखा था, भोंदू लगे थे, ऐसे भी कोई घूरता है भला 😊. बुद्धूराम जो थे। याद है मुझे कि तुम हमारे घर कभी भी आ धमकते थे, जैसे बस बहाना मिलने की ही देर थी। जाने क्यों तुम्हारी नजरों से नजर चुराने लगती थी मैं, पर जब तुम जा रहे होते तो चुपके से देख लेने को जी चाहता। हमारी बड़ी बहनें सहेलियाँ बनी, तुम्हारी दी को मैं भी दी ही कहती पर अच्छा लगता जब तुम मुझे मेरे नाम से पुकारते, और मेरे लिए तो तुम थे ही बुद्धू 😊। हम सब बच्चे गुड्डे गुड्डीयों से खेलते, मेरी गुड़िया को ब्याह कर अपने गुड्डे के साथ ले गए थे तुम, बहुत रोई थी मैं फिर माँ ने समझाया कि गुड़िया ही तो है अच्छा है वो तो अपने गुड्डे के साथ चली गई न, बोली वापस ले देंगी तुमसे, पर फिर मैंने ही कहा वो गंदी गुड़िया थी मैं नई लाऊंगी,मेरी गुड़िया बोल कर माँ ने मुझे अपने गले से लगा लिया था जाने वो क्या था पर उस दिन से हर गुड्डे के चेहरे में तुम्हारी सूरत नजर आने लगी थी।

तुम नहीं जानते होंगे पर बेटी के बड़े होने की खबर पड़ोसियों को पहले हो जाती है, बुरा लगता था जब कुछ लोग रिश्तेदार की शक्ल में ये कहते कि दी के साथ साथ मेरी भी शादी कर दें, ऐसा जताते जैसे उन्हें बड़ी चिंता हो रही, माँ हँस कर टाल जाती कहती ये अभी छोटी है, मुझे रोना सा आने लगता।  हर बार जब भी तुम मिलते लगता आज शायद वो कह दो जो तुम्हारे मन में है, वो जो मेरे मन मे है , जो हमारे मन मे हैं, पर तुम बस खामोशी से सब कहना जानते थे, कॉलेज जाते वक्त हर रोज तुम्हे देख कर अजीब सी खुशी मिलती, तुम्हारी समंदर सी आँखे मुझे देख सितारों की तरह चमक उठती। मन मे हूक सी उठती न जाने कब से यहाँ इंतज़ार में खड़े होंगे, कौन जाने कुछ खाया भी होगा या नहीं, तड़प उठती मैं, मन होता भूल जाऊं कि ऐसे मामलों में शुरुआत हमेशा लड़के करते हैं, भूल जाऊं कि लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे,सब भूल कर चली जाऊं तुम्हारे पास, कहूँ कि प्लीज मुझे अपना बना लो हमेशा हमेशा के लिए, मन होता कि ये कहूँ वो कहूँ पर सब मेरी मिथ्या कल्पना से आगे न बढ़ पाता, तुम सही कहते थे डरपोक हूँ मैं, तभी मुझे कॉकरोच की मूंछ पकड़ कर डराते थे तुम, हाँ डर जाती हूँ छोटी छोटी बातों से भी , छिपकली और कॉकरोच से, बिजली के कड़क कर चमकने से, किसी के अचानक आ धमकने से, तुमको पाया नहीं पर खोने का डर हमेशा लगा रहता था। तुम कल्पना भी नहीं कर सकते मैं कितनी खुश हुई थी जब तुम्हारा लिखा वो खत पढा था, यही तो था जो बरसों से सुनना चाहती थी।

            लिखना नहीं आता, पर तुम्हारे साथ रह कर तुकबन्दी करने लगी, मेरी कविताएँ तुम्हारा स्वर पाकर सजीव हो उठती, मेरी सखियाँ तुम्हे बहुत साधारण पाती कहा करती कि यही मिला तुम्हे, पर तुम्हारी असाधारण साधारणता ने ही मुझे मोह लिया था, बुद्धू कहते कहते बुद्धू बन गई। जब तुम साथ होते तो कुछ भी बुरा याद न रहता, सब खुशनुमा हो जाता, कितना हँसते हंसाते थे ......पर...

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कुछ भी मेरी मर्जी से नहीं हुआ यार, मुझसे किसी ने पूछा तक नहीं , बस बताया माँ ने एक दिन अचानक कि तुम्हें तुम्हारी दी कि शादी में देखते ही पसंद कर लिया था उन लोगों ने, पैसे वाले लोग है पर उन्हें कुछ नहीं चाहिए, तुम्हे रानी बना कर रखेंगे , बहुत खुश रहोगी , बिना कुछ कहे आँखे भर आईं थी , सब कह दिया था माँ से पर...... हो सके तो मेरी मजबूरी समझ लेना, मैं भाई की मार सह सकती हूँ पर खुद को जन्म देने वाली माँ का मरना कैसे देख लेती, न जाने कितने तरह से बांध दिया था मुझे, फड़फड़ा भी न सकी, तुम तो चले गए यार पर मैं हर रोज मरती हूँ तिल तिल कर के...., तुम्हारी गुनाहगार हूँ न,  हो सके तो मुझे माफ़ करना 😢😢!!

#ज्यश्रीकृष्ण

©अरुण

Rajpurohit-arun.blogspot.com

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