'अबे बस कर यार, अब कितना और चूसेगा ? देखो तो पूरी जान निकाल दी बेचारी की।' प्रदीप से मैंने कहा।
'ओहो तू मारवाड़ी है न पर सुन तू डफर भी है, सच्ची कुछ नहीं जानता, इस बात पर एक लुच्ची सी कहावत सुनाता तुझे ठेठ मारवाड़ी में, पर क्या करूँ एन्टी सोशल नहीं हो सकता, सब ऑनलाइन है क्या पता कब कौन कमबख्त जा के सब हमारी लुगाई को सब बोल दे' इतना कह कर शूकुल ने बीड़ी का छोटा सा अंगारा नीचे फेंक दिया।
हाँ जी यही वो जबरदस्त चीज थी जिसे शुक्ला जी लगातार चूसे जा रहे थे। जब तक बीड़ी नाख़ून से भी न पकड़ी जाए तब तक नीचे फेंकने की बात प्रदीप्त माइंड सोचता भी नहीं, करें भी क्या मजबूरी थी घनघोर मुफलिसी के दौर से गुजर रहे थे हम दोनों , मेरा तो चलो फिर भी जैसे तैसे फाकाकशी से गुजारा हो भी जाता था पर शुकुल को बीड़ी के बिना सवेरे प्रेशर भी नही आता था, यूँ की ये समझ लो की मशीन ही चोक हो जाती थी.
मरता क्या न करता मजबूरी में डॉ आलोक के यहाँ कम्पाउंडर हो गये . डॉ साहब बड़े सज्जन आदमी है , इंसान तो छोडो जानवर का भी घाव देखे तो रो दें झट से.....ऐसा हम सोचते थे, एक गोधे के घाव को बिटाडीन लगाने के चक्कर में पूरी पोस्ट पेल दी थी , पोस्ट पढ़ के पूरा डेढ़ गिलास आँसू बहाए थे हमने...... हम तो इधर इस चक्कर में आए थे क्योंकी डॉ साहब ने हमसे फिलिम में गाना गवाने का प्रॉमिस किया है , और शुकुल अपनी मशीन का चोक खुलवाने की फ़िराक में थे , लेकिन डॉ साहब को इसकी क्या परवाह सवेरे झाड़ू लगाने से लेकर दिनभर काम में लगाए रहते , अजीब अजीब नमूने आते और डॉ साहब घावों के चक्कर में हमसे उनका क्या क्या साफ करवाते और तो और रात को क्लीनिक में ही सोने के आदेश थे, अब हम तो ठहरे ढीठ मारवाड़ी , थोड़ा सख्त जान है मजबूरी को झेल रहे थे पर शुकुल जल्दी ही उकता गए. बोले यार ये सब हमसे न होगा, कल रात सपने में हमारी अभियांत्रिकी वाली डिग्री ऐसी ऐसी गालियाँ देकर गई कि का बताएं. हम तो जा रहे, हमने बोला की यार कल डॉ साहब तुम्हारी कोलोनोस्कोपी करने वाले हैं न, चेकअप तो करवा लेते और मैं अकेला यहां क्या करूँगा अकेले तो बोर हो जाऊंगा, ज्यादा ही है तो शाम को क्लिनिक बन्द होने पर हम दोनों ही निकल लेंगे. ई. साहब को भी बात जम गई, शाम को क्लीनिक बन्द होते ही हम दोनों निकल लिए, जवाहर चौराहे पे जब हम दोनों बनारसी पान चाप रहे थे, तो देखा अपने कुमार साहब ड्यूटी से फ्री होकर अधा जेब में अटकाए क्वार्टर पर जा रहे थे, हमको देखते ही खुश हो गए, बोले ,'का रे इधर किधर? कोनो काम धाम पकड़े की अभी भी उ मटरगश्ती चालू है ?'
हम बोले, ' साहब आप बचपन से ही जहीन थे , आप जैसा राजयोग तो हमारे नसीब में कहाँ, हाँ हम बहुते बढ़िया कम्पाउंडर बन गए हैं, आप पान खाइएगा ?'
साहब सम्बोधन सुन कर कुमार साहब इतराए, अपनी बायीं कॉलर ठीक की, पान की मीठी खुशबु से मुँह में भर आई लार निगली, फिर आँखे तरेरते हुए बोले, 'अमा छोड़ो, ये टुच्चा पान वान नहीं खाता मैं, मैदे पर जोर पड़ता है '
शुकुल करीब आए, इसरार करते हुए कहा, ' अजी आप तो तक्कलुफ करने लगे, हमारे पान से मैदा मजबूत हो जाएगा कसम से,मैं तो केता हूँ पान खा लो आप' कहते हुए पान कुमार साहब के मुंह में खोंस दिया. पनियाए मुँह को जैसे मुँह मांगी मुराद मिल गई , कुछ मिनट तक भाव विभोर होकर पान चबाने के बाद ठुड्डी पर आई लाली साफ करते हुए कुमार बोले, ' वैसे शुकुल आदमी तुम बुरे नहीं , सच बताएं तो हम बचपन में हमारा बलूचिस्तान लूटने के बाद तुमसे खार खाए बैठे थे , पर आज दिल जीत लिया तुमने , बेहतरीन इंसान हो तुम और उससे भी बेहतरीन तुम्हारा ये पान, यूँ की मजा आ गया.'
शुकुल मुस्कुराए, बोले , 'ये तो आप साहब लोगों की ज़र्रानवाज़ी है, वरना हम किस लायक हैं हुजूर .'
'अब से तुम दोनों हमारे खास पंटर, चलो हम बताते हैं कि ऐश किसे कहते हैं' कह कर उन्होंने शुकुल के कंधे पर हाथ रखा और साथ ले चले, और हम दोनों के पीछे पीछे , क्वार्टर में हमे बिठा कर कुमार साहब बोले मैं अभी आया. उनके जाते ही शुकुल मेरी और आँख मार कर बोले,' आज बिना लिपिस्टिक लगाए इसका सारा डिस्ट्रिक्ट हिलने वाला है, हमने इसके पान में जुलाब की गोली चेपी है'😂😂😂😜
थोड़ी देर बाद जब कुमार साहब आए तो बोले 'अरे तुम लोगों ने ग्लास नहीं लगाए।'
'हम गरीब हैं साहब, अमीरों वाले तो शौंक ही नहीं पाले कभी, दारू नहीं पीते हम लोग', मैंने कहा।
'अबे तुम लोग क्या जानो जिनगी कैसे जी जाती है, मजा इसे कहते है बेवकूफो' कहते कहते कुमार साहब सटासट आधा अधा गटक गए।
शुकुल बोले,' हुजूर पानी शौंक नहीं फरमाते ? मेरा मतलब पानी नहीं मिलाइएगा ?'
'अबे छिलकों, तुम क्या जानो जिनगी कैसे जी जाती है, पानी तुम जैसे छुछुंदर लोग मिलाते हैं, हम सीधा जन्नत में पहुँचते हैं इससे, टाइम नहीं है अपने पास, फटाफट एक्शन चाहिए अपने को.....' वो बोलते जा रहे थे।
'पर हुजूर, अपनी फटाफट को ब्रेक लगाएं थोड़ा सा, आप लीक हो रहे हो...' कहते हुए मैंने उनकी गीली जंघा की और इशारा किया ।
हुजूर सकपकाए बोले , एं य्ये क् क् क्य्या हो रहा है...' उनकी जबान लड़खड़ाने लगी थी और उठ कर भागने की कोशिश की पर फटाफट वाले नशे में धड़ाम से नीचे गिर कर बेहोश हो गए।
Er शुकुल ने उन्हें उठाया, नीचे गिरने से माथे पर चोट लगी थी, ढिमड़ा बन गया था. हमसे बोले अरुणवा हाथ लगाओ तनिक ऋषि कुमार को इलाज की सख्त जरूरत है. हमने भी फटाफट सहारा दिया और कुमार साहब को क्लिनिक ले आए , बेहोशी में भी कुमार साहब लगातार लीक होते जा रहे थे ऊपर से माथे पर चोट, ओटी में ला कर बेड पर उल्टा पटक दिया थोड़ी ड्रेसिंग शुकुल ने की थोड़ी हमने , सुबह के 4 बज रहे थे शुकुल बोले यार इसे देख कर तो उल्टी आ रही , मैं हाथ मुंह धो कर फ्रेश होकर आता हूँ ' मैंने कहा ठीक है तभी डोरबेल बजी, मैंने दरवाजा खोला तो सामने डॉ साहब खड़े थे. बिना कुछ बोले वो सीधे भीतर चले आए, अंदर मामला बदबूदार हो रखा था, मुझे डांटते हुए बोले, 'ये क्या हाल बना रखा है क्लीनिक का'
'जी..... वो......उसने......जुलाब.......लीक हो गया.....' हड़बड़ाते हुए मैंने अस्फुट से शब्दों में कहते हुए ओटी की और संकेत किया, डॉ साहब बोले,' यार ये तो शुकुल की हालत बहुत खराब है, तुम इधर आओ, अभी के अभी कोलोनोस्कोपी करते हैं'
'जी....पर...वो ....शुकुल तो.....'
'ये क्या जी जी लगा रखा है.....शुकुल का मुँह ढक दो, और इसकी पेंट नीचे खिसकाओ, उसे शर्म आएगी.......'
'ज ज जी...पर क्यूँ...'
'मारवाड़ी हो न, अक्ल तो होती नहीं .....अरे कैमरा डालना है ना'
'हैं...!!!?'
'अब तुम मुंह मत खोलो, तुम्हारे मुँह में नहीं उसके वहाँ अंदर कैमरा डालना है तभी तो बीमारी पकड़ में आएगी'
मैं अवाक् था, डॉ. साहब समझ गए की इससे कुछ न होगा, झट से एक तौलिया से मरीज का सर ढंक कर फट से एक पाइप जैसे दिखने वाले कैमरा के मुँह पर थोड़ी जेली डाली और मुझे कहा की इसके हाथ पकड़ लो , यंत्रवत आज्ञा पालन करते हुए मैंने कुमार साहब को काबू में कर लिया ,उधर डॉ साहब अपनी कार्यवाही को अंजाम देने में जुट चुके थे, थोड़ी ही देर में 'भीतर' का वीभत्स दृश्य कम्प्यूटर की स्क्रीन पर जीवन्त हो उठा जिसे देख देख कर डॉ. साहब कुछ एनालाइज कर रहे थे....तभी बाथरूम से निकल कर शुकुल डॉ. साहब के सामने आ खड़े हुए......अब अवाक् होने की बारी डॉ साहब की थी....कैमरा हाथों से छूट गया, हड़बड़ा गए, जैसे जीवित इंसान नहीं किसी भूत को देख लिया हो.....
*****
कुमार साहब हमारे बहुत आभारी हैं , क्योंकि हमने उन पर संकट आने पर भी उनका साथ न छोड़ा, और डॉ. साहब की तरफ से हम दोनों को एक निश्चित वेतन हर माह दिया जा रहा है, दरअसल शुकुल ने बंडल मारा था कि उनकी उस सज्जनता को उन्होंने अपने कैमरा में कैद कर लिया है, जिसे सार्वजनिक करने पर ये पुलिसिया न जाने क्या क्या करेगा.
#जयश्रीकृष्ण
©अरुण
Rajpurohit-arun.blogspot.com
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