समय पूर्वाह्न 11 बजे, उजबक लोटे में अंगारे डाल कर अपनी धोती की सिलवटें दूर कर रहे हैं। उनका सफेद कुर्ता भी पास ही रखा है। धोती एक ही है, इसलिए स्वयं कच्छे में ही खड़े हैं। बनियान फटी हुई है जिसमें से उनकी तोंद पर लहराते यज्ञोपवीत के सफेद तंतु मुस्कुरा रहे हैं। उजबक स्वयं भी सदा की तरह बहुत प्रसन्नचित्त नजर आते हैं। कोई भी उन्हें देख कर जान सकता है कि इस अवस्था में खड़े रहने से उन्हें 🔔 कोई फर्क नहीं पड़ रहा। लोटा घुमाते घुमाते कुछ गुनगुनाते हुए कभी कभी अपनी कमर को हल्का सा झटका भी देते हैं। 'छलकत हमरी जवनिया ए राजा' ओ हो हो। ला ला ला।
अचानक अनूप बाहर से दौड़ते हुए आया बोला, 'गुरु...गुरु...'
उजबक एकदम पीछे की ओर पलटे तो उनके साथ उनका लोटा भी अंगारों समेत वहीं पलट गया। धोती की सिलवट तो दूर हुई ही न थी पर जहाँ जहाँ जलते हुए अंगारे गिरे वहाँ खूबसूरत से छेद बन गए।
'क्या यार अनूप, आपके चक्कर में हमारी धोती जल गई' उजबक थोड़ा मायूसी से बोले।
'और आप? आप तो आज फंसाए दिए थे। ई रखिए अपना क्रेडिट कार्ड। कुछो ना धरा इसमें। साला हम भी गधे हैं, ये लेके एटीएम से पैसे निकलवाने गए थे? इसमें कुछ होता तो प्रदीपवा इसे फेंक काहे देता? ब्लॉक्ड है साला कार्ड ही। हम चार बार ट्राई भी किए रहे, पर हर बार कार्ड ब्लॉक्ड का मैसेज मिला पैसों की जगह। उ साला गार्ड हमको तोड़ देता, बोला कि तुम चोर हो इतनी देर से मशीन में क्या खुचर-पुचर कर रहे हो। ई देखिए हमारे कुर्ते का भी कॉलर गया। फट गया उससे झपट में। वैसे हम उसे पेट में मुक्का मार के हिसाब बराबर किए हैं, पर आपने ठीक न किया गुरु। ब्लॉक्ड कार्ड देकर काहे भेजे थे?' अनूप अपनी शिकायतों के साथ एक सांस में बोल गया।
उजबक थोड़ा और मायूस हो गए, बोले, 'यार हमको कहाँ पता था कि कार्ड ब्लॉक है। चलचित्रों में नायक से झूठ ही कहलवाया गया कि अगर आप किसी से हृदय से प्रेम करें तो समस्त सृष्टि आपकी सहायता करने को तत्पर हो जाती है। हमारे साथ तो इससे विपरीत हो रहा है मित्र। अब हम नियति से कैसे मिलने जा सकेंगे ? पैसों तो न हों तब भी चलेगा किंतु बिना धोती के.... हे प्रभु अब आप ही सुझाइए हम क्या करें ? अरुण भाई भी लकड़ी काटने गए हैं न जाने कब लौटेंगे।' कहकर उजबक वहीं धप्प से बैठ गए।
'अरे फिक्र काहे करते हैं। हम हैं न। आपकी धोती में बस छेद हुए हैं वो भी एक साइड में ही हैं, पूरी जली थोड़े न है। आप खड़े होइए हम आपको पहनाते हैं।' कहकर अनूप ने धोती उठा ली और उजबक को पहनाने लगा। धोती को तेलगु स्टाइल के नाम पर गोल-गोल कमर के चारों ओर लपेट कर अंतिम सिरा भी कमर में खोंस दिया। यद्यपि उजबक को इस स्टाइल की धोती पहनना बिल्कुल अच्छा न लगता था पर मजबूरी क्या न करा दे। परिस्थिति की मांग के अनुसार उन्होंने इसे ही विधि समझ कर स्वीकार लिया। वैसे अनूप ने धोती को इस करीने से लपेटा था कि सारे छेद नाभि के ठीक नीचे दबाए सिलवटों में ही गुम होकर रह गए। सहज देखने पर ज्ञात न होता था कि ये धोती 'हवादार' है।
कुछ पैसे भी अनूप के पास थे, वो सब भी उजबक को सुपुर्द कर दिए। पर दोस्ती यारी अपनी जगह है अनूप भी गुरुकुल वालों की सबसे प्रिय कंडीशन अप्लाई करना नहीं भूला। बोला ,' गुरु हमहु तोहरा साथे चलब।'
उजबक के लिए ये नई दुविधा थी, मासूमियत से बोले 'आप वहाँ क्या करेंगे मित्र? देवी नियति भी आपसे अपरिचित हैं। आपकी उपस्थिति हमारे उनके साथ चलचित्र का सहज आनन्द लेने में बाधक बनेगी न?'
'अच्छा ? और अरुण भैया जाते हैं तब ? उनके साथ तो सब सहज रहते हैं फिर हमारे साथ क्यों नहीं? भाभी परिचित साथ ले जाने से होंगी न कि न ले जाने से। देखिए हम कोई बहाना न सुनेंगे, अगर आप हमको न ले जाएंगे तो हम गुरुजी को सब बताने जा रहे हैं।' कहते कहते अनूप इमोशनल होने लगा।
उजबक पर अनूप के इमोशन्स का तो कोई प्रभाव भले ही न पड़ा था पर गुरुजी को सब बताने की धमकी ने तुरंत अपना प्रभाव दिखाया और वे उसे साथ ले चलने के लिए मन मार कर राजी हो गए।
***
इन्द्रविहार चित्रपट के बाहर नियति और संज्ञा दोनों उजबक के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। नियति पारंपरिक शुभ्र श्वेत वस्त्र धारण किए थे वहीं संज्ञा ने आज गुरुकुल के परिवेश के विपरीत ब्लैक जीन्स और मेहरून चेक वाली शर्ट पहनी थी। गुरुकुल में ये सब देखने का अवसर नहीं मिल पाता किंतु गुरूमाता की कुटिया में भोजन की तैयारियों में उनका हाथ बंटाते हुए रेडियो पर कई बार इस चलचित्र के गीत सुनकर इसे देखने की इच्छा होती थी इसीलिए उजबक से उसने 'प्रेम रतन धन पायो' दिखा लाने का आग्रह किया था। वही देखने आज दोनों सखियाँ एक बार फिर गुरूकुल की देहरी लांघ आई थी। उजबक को आने में देर हो रही थी, भीड़ बढ़ती देख नियति के कहने पर संज्ञा 4 टिकेट्स लेने चली गई। शायद उन्हें विश्वास था कि आज भी मैं उजबक के साथ जरूर आऊंगा।
उजबक आज भी हमेशा की तरह अपने तेल चुपड़े बालों और ढेर काजल से कजरारी की आँखों में खूबसूरत लग रहे थे। उन्हें आते देखा तो नियति का प्रतीक्षा से मुरझाया चेहरा खिल उठा। उजबक ने पास आते ही प्रणाम कहा।
'भक्क, भौजी को प्रणाम तो हम कहेंगे, आप काहे कह रहे हैं? आपके कहने के लिए बहुत कुछ होता है सभी भाषाओं में, कुछ याद न आ रहा हो तो भोजपुरी में कहिए 'हम तोहरा से प्रेम करिना', 'हमके ना मिलबु त जिनगी जहर हो जाई', 'करेजा मुरुक जाइ ए सुग्गा', 'ए खरखुन करेजा के दवाई तुहि बाड़ू', 'आपना अखियन के लोर से हमरा घाव पर मलहम लगा द'.... आप को तो कुछो नहीं आता भैया। और पाँय लागू भौजी, प्रणाम कर रहे हैं दिल से। भैया तो हमको साथे न ला रहे थे हम जबरी आए हैं।' कहकर अनूप ने नियति के चरण स्पर्श किए और खड़े होकर दांत चियार दिए।
नियति के लिए ये भोजपुरी हमला बिल्कुल नई चीज थी उसे कुछ समझ न आया। सिवाय इसके कि वो उसे भौजी यानि भाभी कह रहा है। उसने प्रश्नवाचक मुद्रा में उजबक की ओर देखा तो उजबक ने कहा कि 'ये भी हमारे सहपाठी, हमारे मित्र, हमारे अनुज और हमारे अतिप्रिय हैं। आज अरुण भाई तो गुरु आज्ञा से ईंधन की व्यवस्था करने जंगल गए थे इसलिए हम अनूप को साथ ले आए। आप आज अकेली ही आई हैं ?'
अकेली शब्द सुनते ही नियति को संज्ञा का ख्याल आया जो इस वक़्त टिकट खिड़की के बाहर कुछ लफंगों से उलझ रही थी। जो लाइन में खड़ी संज्ञा से छेड़छाड़ करने की कोशिश कर रहे थे। उजबक और नियति की बातों और हावभाव से अनूप तुरन्त सब समझ गया। हीरो की एंट्री का टाइम हो गया था। उजबक से बोला ' भैया हम देखते हैं '। पर अनूप के कदम उधर बढाने की ही देर थी कि एक लड़का लगभग उड़ता हुआ धप्प से औंधे मुँह उसके कदमों में आ गिरा। अनूप ने आश्चर्य से प्रश्नवाचक मुद्रा से नजरें उठाई तो देखा संज्ञा रजनीकांत की तरह सब लफंगों को हवा में उड़ाते हुए टिकेट्स लेकर प्रसन्न मुद्रा में उनकी ओर ही आ रही थी। 'बाप रे' सहसा अनूप के मुँह से निकला।
उजबक के साथ मेरी यानि अरुण की जगह अनूप को आया देख संज्ञा को कुछ खास खुशी न हुई। लेकिन अनूप ने उसका हाथ पकड़ कर जबरदस्ती मिला लिया, बोला 'तू त बहुत सुग्घर बाड़ू हो,का मारेलु कसम से।'
'मतलब' संज्ञा ने कहा।
'मतलब आप बहुत खूबसूरत हैं और क्या गज्जब फाइट करते हो।' अनूप ने उसका हाथ पकड़े हुए ही कहा।
संज्ञा को ये व्यवहार थोड़ा असहज और अज़ीब करने वाला लगा। पर उजबक के मित्र के लिहाज से वो चुप रही। हाथ छुड़ाकर बोली, 'मुझे हर लफंगे से निपटना अच्छे से आता है।' फिर सबसे एक साथ कहा चलें, फ़िल्म का टाइम कब का हो चुका है।
अंदर फ़िल्म वाकई शुरू हो चुकी थी। पर बहुत भीड़ नहीं थी। मल्टीप्लेक्स सिनेमा में भीड़ किस थिएटर में घुसेगी जल्दी से पता नहीं लगता। उजबक को तेलगु धोती में चलना थोड़ा कठिन लग रहा था इसलिए नियति के साथ कॉर्नर सीट्स पर बैठे गए। जहाँ नियति फ़िल्म और उजबक बस नियति को देख रहे थे। उनसे कुछ सीट्स की दूरी पर संज्ञा और उससे एक सीट छोड़कर अनूप बैठे थे। आशा और अपेक्षा के विपरीत अनूप के चेहरे पर भयानक खामोशी पसरी हुई थी। थोड़ी देर बाद उजबक ने नियति से कहा, 'आप भूने हुए मक्कई के दाने खाएंगी ?'
'जी?' नियति ने उजबक की ओर आश्चर्य से देखा।
'मेरा मतलब पॉपकॉर्न' कहकर कुछ देर तक खुद उजबक और उनका पेट हंसते रहे। नियति भी मुस्कुरा दी।
उजबक उठ कर चलने को हुए अंधेरे में तेलगु धोती सम्भाल न सके लड़खड़ा गए, उन्हें गिरते देख नियति ने पकड़ने की कोशिश तो की पर वो खुद भी उनके साथ लिपटी लुढ़कती हुई नीचे कालीन पर आ गिरी।
नियति उजबक की बाहों में आलिंगनबद्ध थी, उधर सिनेमा में 'सुनते हैं जब प्यार हो तो दिए जल उठते हैं।' गीत की थाप डॉल्बी डिजिटल सराउंडसाउंड सिनेमा में चारों और गूंज रही थी।
****
#जयश्रीकृष्ण
#उजबक_कथा
#गुरुकुल_के_किस्से
#पार्ट7
✍️ अरुण
Rajpurohit-arun.blogspot.com
अचानक अनूप बाहर से दौड़ते हुए आया बोला, 'गुरु...गुरु...'
उजबक एकदम पीछे की ओर पलटे तो उनके साथ उनका लोटा भी अंगारों समेत वहीं पलट गया। धोती की सिलवट तो दूर हुई ही न थी पर जहाँ जहाँ जलते हुए अंगारे गिरे वहाँ खूबसूरत से छेद बन गए।
'क्या यार अनूप, आपके चक्कर में हमारी धोती जल गई' उजबक थोड़ा मायूसी से बोले।
'और आप? आप तो आज फंसाए दिए थे। ई रखिए अपना क्रेडिट कार्ड। कुछो ना धरा इसमें। साला हम भी गधे हैं, ये लेके एटीएम से पैसे निकलवाने गए थे? इसमें कुछ होता तो प्रदीपवा इसे फेंक काहे देता? ब्लॉक्ड है साला कार्ड ही। हम चार बार ट्राई भी किए रहे, पर हर बार कार्ड ब्लॉक्ड का मैसेज मिला पैसों की जगह। उ साला गार्ड हमको तोड़ देता, बोला कि तुम चोर हो इतनी देर से मशीन में क्या खुचर-पुचर कर रहे हो। ई देखिए हमारे कुर्ते का भी कॉलर गया। फट गया उससे झपट में। वैसे हम उसे पेट में मुक्का मार के हिसाब बराबर किए हैं, पर आपने ठीक न किया गुरु। ब्लॉक्ड कार्ड देकर काहे भेजे थे?' अनूप अपनी शिकायतों के साथ एक सांस में बोल गया।
उजबक थोड़ा और मायूस हो गए, बोले, 'यार हमको कहाँ पता था कि कार्ड ब्लॉक है। चलचित्रों में नायक से झूठ ही कहलवाया गया कि अगर आप किसी से हृदय से प्रेम करें तो समस्त सृष्टि आपकी सहायता करने को तत्पर हो जाती है। हमारे साथ तो इससे विपरीत हो रहा है मित्र। अब हम नियति से कैसे मिलने जा सकेंगे ? पैसों तो न हों तब भी चलेगा किंतु बिना धोती के.... हे प्रभु अब आप ही सुझाइए हम क्या करें ? अरुण भाई भी लकड़ी काटने गए हैं न जाने कब लौटेंगे।' कहकर उजबक वहीं धप्प से बैठ गए।
'अरे फिक्र काहे करते हैं। हम हैं न। आपकी धोती में बस छेद हुए हैं वो भी एक साइड में ही हैं, पूरी जली थोड़े न है। आप खड़े होइए हम आपको पहनाते हैं।' कहकर अनूप ने धोती उठा ली और उजबक को पहनाने लगा। धोती को तेलगु स्टाइल के नाम पर गोल-गोल कमर के चारों ओर लपेट कर अंतिम सिरा भी कमर में खोंस दिया। यद्यपि उजबक को इस स्टाइल की धोती पहनना बिल्कुल अच्छा न लगता था पर मजबूरी क्या न करा दे। परिस्थिति की मांग के अनुसार उन्होंने इसे ही विधि समझ कर स्वीकार लिया। वैसे अनूप ने धोती को इस करीने से लपेटा था कि सारे छेद नाभि के ठीक नीचे दबाए सिलवटों में ही गुम होकर रह गए। सहज देखने पर ज्ञात न होता था कि ये धोती 'हवादार' है।
कुछ पैसे भी अनूप के पास थे, वो सब भी उजबक को सुपुर्द कर दिए। पर दोस्ती यारी अपनी जगह है अनूप भी गुरुकुल वालों की सबसे प्रिय कंडीशन अप्लाई करना नहीं भूला। बोला ,' गुरु हमहु तोहरा साथे चलब।'
उजबक के लिए ये नई दुविधा थी, मासूमियत से बोले 'आप वहाँ क्या करेंगे मित्र? देवी नियति भी आपसे अपरिचित हैं। आपकी उपस्थिति हमारे उनके साथ चलचित्र का सहज आनन्द लेने में बाधक बनेगी न?'
'अच्छा ? और अरुण भैया जाते हैं तब ? उनके साथ तो सब सहज रहते हैं फिर हमारे साथ क्यों नहीं? भाभी परिचित साथ ले जाने से होंगी न कि न ले जाने से। देखिए हम कोई बहाना न सुनेंगे, अगर आप हमको न ले जाएंगे तो हम गुरुजी को सब बताने जा रहे हैं।' कहते कहते अनूप इमोशनल होने लगा।
उजबक पर अनूप के इमोशन्स का तो कोई प्रभाव भले ही न पड़ा था पर गुरुजी को सब बताने की धमकी ने तुरंत अपना प्रभाव दिखाया और वे उसे साथ ले चलने के लिए मन मार कर राजी हो गए।
***
इन्द्रविहार चित्रपट के बाहर नियति और संज्ञा दोनों उजबक के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। नियति पारंपरिक शुभ्र श्वेत वस्त्र धारण किए थे वहीं संज्ञा ने आज गुरुकुल के परिवेश के विपरीत ब्लैक जीन्स और मेहरून चेक वाली शर्ट पहनी थी। गुरुकुल में ये सब देखने का अवसर नहीं मिल पाता किंतु गुरूमाता की कुटिया में भोजन की तैयारियों में उनका हाथ बंटाते हुए रेडियो पर कई बार इस चलचित्र के गीत सुनकर इसे देखने की इच्छा होती थी इसीलिए उजबक से उसने 'प्रेम रतन धन पायो' दिखा लाने का आग्रह किया था। वही देखने आज दोनों सखियाँ एक बार फिर गुरूकुल की देहरी लांघ आई थी। उजबक को आने में देर हो रही थी, भीड़ बढ़ती देख नियति के कहने पर संज्ञा 4 टिकेट्स लेने चली गई। शायद उन्हें विश्वास था कि आज भी मैं उजबक के साथ जरूर आऊंगा।
उजबक आज भी हमेशा की तरह अपने तेल चुपड़े बालों और ढेर काजल से कजरारी की आँखों में खूबसूरत लग रहे थे। उन्हें आते देखा तो नियति का प्रतीक्षा से मुरझाया चेहरा खिल उठा। उजबक ने पास आते ही प्रणाम कहा।
'भक्क, भौजी को प्रणाम तो हम कहेंगे, आप काहे कह रहे हैं? आपके कहने के लिए बहुत कुछ होता है सभी भाषाओं में, कुछ याद न आ रहा हो तो भोजपुरी में कहिए 'हम तोहरा से प्रेम करिना', 'हमके ना मिलबु त जिनगी जहर हो जाई', 'करेजा मुरुक जाइ ए सुग्गा', 'ए खरखुन करेजा के दवाई तुहि बाड़ू', 'आपना अखियन के लोर से हमरा घाव पर मलहम लगा द'.... आप को तो कुछो नहीं आता भैया। और पाँय लागू भौजी, प्रणाम कर रहे हैं दिल से। भैया तो हमको साथे न ला रहे थे हम जबरी आए हैं।' कहकर अनूप ने नियति के चरण स्पर्श किए और खड़े होकर दांत चियार दिए।
नियति के लिए ये भोजपुरी हमला बिल्कुल नई चीज थी उसे कुछ समझ न आया। सिवाय इसके कि वो उसे भौजी यानि भाभी कह रहा है। उसने प्रश्नवाचक मुद्रा में उजबक की ओर देखा तो उजबक ने कहा कि 'ये भी हमारे सहपाठी, हमारे मित्र, हमारे अनुज और हमारे अतिप्रिय हैं। आज अरुण भाई तो गुरु आज्ञा से ईंधन की व्यवस्था करने जंगल गए थे इसलिए हम अनूप को साथ ले आए। आप आज अकेली ही आई हैं ?'
अकेली शब्द सुनते ही नियति को संज्ञा का ख्याल आया जो इस वक़्त टिकट खिड़की के बाहर कुछ लफंगों से उलझ रही थी। जो लाइन में खड़ी संज्ञा से छेड़छाड़ करने की कोशिश कर रहे थे। उजबक और नियति की बातों और हावभाव से अनूप तुरन्त सब समझ गया। हीरो की एंट्री का टाइम हो गया था। उजबक से बोला ' भैया हम देखते हैं '। पर अनूप के कदम उधर बढाने की ही देर थी कि एक लड़का लगभग उड़ता हुआ धप्प से औंधे मुँह उसके कदमों में आ गिरा। अनूप ने आश्चर्य से प्रश्नवाचक मुद्रा से नजरें उठाई तो देखा संज्ञा रजनीकांत की तरह सब लफंगों को हवा में उड़ाते हुए टिकेट्स लेकर प्रसन्न मुद्रा में उनकी ओर ही आ रही थी। 'बाप रे' सहसा अनूप के मुँह से निकला।
उजबक के साथ मेरी यानि अरुण की जगह अनूप को आया देख संज्ञा को कुछ खास खुशी न हुई। लेकिन अनूप ने उसका हाथ पकड़ कर जबरदस्ती मिला लिया, बोला 'तू त बहुत सुग्घर बाड़ू हो,का मारेलु कसम से।'
'मतलब' संज्ञा ने कहा।
'मतलब आप बहुत खूबसूरत हैं और क्या गज्जब फाइट करते हो।' अनूप ने उसका हाथ पकड़े हुए ही कहा।
संज्ञा को ये व्यवहार थोड़ा असहज और अज़ीब करने वाला लगा। पर उजबक के मित्र के लिहाज से वो चुप रही। हाथ छुड़ाकर बोली, 'मुझे हर लफंगे से निपटना अच्छे से आता है।' फिर सबसे एक साथ कहा चलें, फ़िल्म का टाइम कब का हो चुका है।
अंदर फ़िल्म वाकई शुरू हो चुकी थी। पर बहुत भीड़ नहीं थी। मल्टीप्लेक्स सिनेमा में भीड़ किस थिएटर में घुसेगी जल्दी से पता नहीं लगता। उजबक को तेलगु धोती में चलना थोड़ा कठिन लग रहा था इसलिए नियति के साथ कॉर्नर सीट्स पर बैठे गए। जहाँ नियति फ़िल्म और उजबक बस नियति को देख रहे थे। उनसे कुछ सीट्स की दूरी पर संज्ञा और उससे एक सीट छोड़कर अनूप बैठे थे। आशा और अपेक्षा के विपरीत अनूप के चेहरे पर भयानक खामोशी पसरी हुई थी। थोड़ी देर बाद उजबक ने नियति से कहा, 'आप भूने हुए मक्कई के दाने खाएंगी ?'
'जी?' नियति ने उजबक की ओर आश्चर्य से देखा।
'मेरा मतलब पॉपकॉर्न' कहकर कुछ देर तक खुद उजबक और उनका पेट हंसते रहे। नियति भी मुस्कुरा दी।
उजबक उठ कर चलने को हुए अंधेरे में तेलगु धोती सम्भाल न सके लड़खड़ा गए, उन्हें गिरते देख नियति ने पकड़ने की कोशिश तो की पर वो खुद भी उनके साथ लिपटी लुढ़कती हुई नीचे कालीन पर आ गिरी।
नियति उजबक की बाहों में आलिंगनबद्ध थी, उधर सिनेमा में 'सुनते हैं जब प्यार हो तो दिए जल उठते हैं।' गीत की थाप डॉल्बी डिजिटल सराउंडसाउंड सिनेमा में चारों और गूंज रही थी।
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#जयश्रीकृष्ण
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#गुरुकुल_के_किस्से
#पार्ट7
✍️ अरुण
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