🤕🤒🍺🥂🥃👩 अनुपम व्यथा ♠️♠️♠️♠️♠️

अ..जी..त भै..या, ये ह..मारे सा..थ ई क्यों होता है? क्या ह..म  इत..ने बुरे हैं? अनूप लड़खड़ाती वाणी में बोल रहा था। अचानक उसने अपने हाथ से ताड़ी के आधे भरे कुल्हड़ को जमीन पर दे मारा और जोर से चिल्लाते हुए भावुक हो कर गाने लगा, 'क्या इत..ना  बु.. रा  हूँ मैं माँ? क्या इ..तना  बु...रआआ  मे..री  माँ !!!? पररर मैं क्क क्या कारूँ माँ? जब्ब जब्ब आ.वे य्याद जिया में, ई मनवा तड़पेला, केहू  स..जनी के देश, कस..हु  लेज्जा ई सन्देश, लौट के आवेला, जब्ब जब्ब आवे याद ....'

नशे में अनूप के कदम उसकी वाणी की ही तरह लड़खड़ा रहे थे और अजीत उसे संभालने की कोशिश कर रहा था। अनूप कभी कोई नशा नहीं करता पर आज इसने जीभर कर ताड़ी पी थी, अजीत के रोकने पर भी न रुका। अब अजीत को गुस्सा आ रहा था।

पर गुस्से को नियंत्रित करते हुए कहा, 'यार तुझे हुआ क्या है ? कब से पूछ रहे हैं । कुछ बताते भी नहीं हो। और ये सब क्या है, लोग देख रहे हैं यार ।' कहकर अजीत ने चारों ओर दृष्टि घुमा डाली।

गहरा नारंगी सूर्य दूर क्षितिज में दिन भर की गर्मी से त्रस्त होकर अब समंदर के पीछे कहीं छुपने का स्थान तलाशने लगा है। समंदर पर बिछी नारंगी किरणें किसी नायिका के आंचल का सा आभास दे रही है। कुछ अर्द्धनग्न लोग, जिनमें बहुत-सी कन्याएँ भी हैं, किनारे की गीली जमीन पर सीधी टांगे फैलाए हाथों को कमर से पीछे टिकाकर बैठे सूर्यास्त के इन दृश्यों में आनन्द खोज रहे हैं। तो कुछ इन दृश्यों को अपने महंगे कैमरे में सदा के लिए अमर कर देने की कवायद में जुटे हैं। कुछ मुग्धा नायिकाएँ एक अंगोछे जैसे वस्त्र को कमर पर तिरछा लपेटे समस्त जगत को भुला कर अन्य किसी की परवाह न करते हुए स्वयं अपने अपने प्रिय से लिपट चिपट कर यहाँ वहाँ घूम रही। वहीं पास में कुछ पावभाजी के ठेले लगे हैं। प्रत्येक ठेले पर बड़े-से तवे पर भाजी को बार-बार उलट-पलट कर लिटाया जा रहा था, उसकी सींसीं की कराहों से उठती खुशबू से बंधे कुछ लोग वही छोटे स्टूलों पर बैठ कर पावभाजी खाने का लुत्फ उठा रहे हैं। कुछ भिखमंगे बालक खाने वालों की प्लेट को कातर होकर ताक रहे हैं। सब बहुत व्यस्त नजर आते हैं।

 'लगता तो नहीं कि किसी को अनूप से विशेष फर्क पड़ेगा।' अजीत ने सोचा। पर तभी अनूप वही गिर कर बेहोश हो गया।  गुस्से में अजीत ने उसे कंधे पर बेताल की तरह लादा और समंदर के नमकीन ठंडे पानी मे ले जाकर गुस्से से पटक दिया। कुछ लोग दौड़ कर आए, पर अजीत ने हाथ के इशारे से उन्हें दूर रहने को कहा। पानी में गिरते ही अनूप को हड़बड़ाकर होश आ गया। अजीत ने फिर गर्दन से पकड़ कर पानी में घुसेड़ दिया। कुछेक सेकंड के बाद बाहर निकाला तो अनूप रोते हुए कहने लगा, 'हाँ भैया, म्मार ही डा..लिए हमको। हम मरना ही चाहते हैं।' मरने की बात सुनकर अजीत को और गुस्सा आ गया। उसने अनूप झिंझोड़ कर पानी से बाहर निकाला और कस्स के एक चांटा रसीद कर दिया। अनूप का नशा हवा हो गया। वहीं किनारे पर घुटनो के बल चुपचाप बैठ गया। आँखों से टपटप आँसू गिरने लगे। किंतु अजीत अब दया के मूड में बिल्कुल नहीं था, कॉलर पकड़ के उठाया और कहा, 'अब बोलते हो कि दूसरे कान पर भी धर दें ? देख मरदे ये लच्छन ठीक नहीं तुम्हारे। गुरुकुल के विद्यार्थी होकर ये सब शोभा देता है तुमको ?'

'तो और का क्या करें भैया? कोई हमसे प्रेम क्यों न करती भैया ? हमको तो जैसे नागफनी के कांटे लगे हैं। किसी भी लईकी से पूछिए उसे कैसा लड़का चाहिए, कहने को वो यही कहेगी की बस चरित्र..वान हो, गुण...वान हो, कहेंगी रंग रूप अस्थायी सुंदरता है, मन से सुंदर हो ऐसा वर चाहिए। हममें क्या कमी है ? क्या गुरुदेव ने हमारे रूप में किसी चरित्रहीन, गुणहीन और पापी का चयन किया है? मन की सुंदरता की बात करती हैं, पर कभी किसी ने हमारे भीतर झांक कर भी देखा ? नारी मन को तो कोमलता का पर्याय कहते हैं न भैया, पर ये बहुत कठोर होती हैं। भगवान कृष्ण कुब्जा में  सौंदर्य का दर्शन करते है, जानते हैं क्यों? क्योंकि वे पुरुष हैं। कभी देखा किसी रूपवती को किसी कुरूप से प्रेम करते देखा ? सुना भी न होगा। वो संज्ञा भी खुद को न जाने क्या समझती है। हमको अनूप भैया बोल दिहिस। बताइए। अरुण भैया को तो कभी भैया न बोली। क्या वो नहीं जानती कि हम उससे प्रेम.....' अनूप अपनी रौ में बस कहता जा रहा था कि अजीत ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया।

'चुप बे मरदे, कुछ भी बोल रहे हो ? किसने कहा कि तुम चरित्रवान या गुणवान नहीं ? पर उसके लिए जिस कन्या को तुम चाहो वो अपना हृदय तुम्हारे चरणों मे रख कर तुम्हें प्रेमार्पण कर ही दे ये किस शास्त्र में लिखा है ? प्रेम तो नितांत व्यक्तिगत अनुभूति है इस पर किस का वश ? कल को बहुत सी कन्याएँ तुमसे ऐसी ही अपेक्षा करे तो क्या कहोगे उन सब से ? क्या सबकी अपेक्षा पूर्ण करने का पाप कर सकोगे ?  स्त्री सौंदर्य के प्रति आकर्षण पुरुष मन का नैसर्गिक गुण है। स्त्रियों को ढ़ेरों प्रेम प्रस्ताव झेलने पड़ते हैं। यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारी इच्छा का सम्मान हो तो दूसरों की इच्छाओं का भी सम्मान करो न। तुम कृष्ण का उदाहरण दे रहे थे, वे तो युगपुरुष थे, साक्षात भगवान श्रीहरि विष्णु के अवतार। तुम कितने ऐसे पुरुषों को जानते हो जो स्वेच्छा से कुरूप कन्या का वरण करने को तैयार होंगे? अगर कोई ध्यान में न आ रहा तो किसी कन्या से ऐसी अपेक्षा क्यों करते हो ? तुम्हे पौराणिक बातें तो याद रहती हैं पर वर्तमान में ही नियति भाभीश्री का उदाहरण क्यों भूल जाते हो ?  क्या सौंदर्य की दृष्टि से उजबक उनकी किसी भी रूप में समता कर सकेंगे ? किंतु क्या तब भी वे उनसे असीम प्रेम नहीं करती ? और संज्ञा हो या कोई और, किसी से भी तुम अथाह प्रेम कर तो सकते हो किंतु बलात् किसी से प्रेम का कण भी पा नहीं सकते, समझे ?' अजीत ने थोड़ा रोष से कहा।

अनूप बस सुबक रहा था, नजरें नीची किए ही बोला 'हमें क्षमा कर दीजिए भैया, अपराधी जैसा अनुभव हो रहा है।'

'हूँ, पर तुम केवल एक ही अवस्था में क्षमादान पा सकते हो, बस चार प्लेट पावभाजी खिला दो। हाहाहा सच्ची बड़ी भूख लग रही यार।' अजीत ने चेहरे पर शरारती मुस्कान लाते हुए कहा।

अनूप अपनी आँखें पोंछ रहा था, अजीत की बात सुनकर उसके चेहरे पर भी मुस्कान तैर गई। अजीत ने अनूप को कंधे से पकड़ा और कहा, 'चल न यार। देख वो पावभाजी कब से पुकार रही। आओ खा लो हमको, आओ खा लो हमको। मुझसे उसकी करुण पुकार अब और नहीं सुनी जाती। हाहाहा।'

लगभग सभी स्टूल बुक थे, एक ओर कुछ स्टूल खाली दिखे। अजीत और अनूप वहाँ बैठ कर पावभाजी खाने लगे। उनके खाते-खाते अच्छी खासी भीड़ हो गई। कुछ लोग खड़े भी थे। दो यज्ञोपवीत और चंदन तिलकधारी विद्यार्थियों को इस तरह पावभाजी खाते देख कर कुछ कन्याएँ वहीं कुछ दूर खड़ी पावभाजी खाते हुए उन दोनों की ओर संकेत करते हुए आपस में ठिठोली कर रही थी। अजीत गुस्से में खड़ा हुआ उनके पास जाकर तुनक कर बोला, 'कहिए क्या समस्या है?' अनूप दौड़ कर उसके पीछे चला आया। बोला, 'छोड़िए न भैया, चलिए आप...'

'ल सानु की समस्या होनी आ महाराज, तुस्सी थोड़ा हिसाब नाळ खायो, तिखा बोत है एस्च कित्थे धोती ना खराब कर लवो' एक कन्या अजीत की आवाज सुनकर पलटी और हंसते हंसते बोली।

'देखिए हमको पंजाबी बोलना नहीं आता पर समझ मे सब आता है। हम तो बिना डकार लिए लकड़ी का बुरादा भी पचा जाएं, आप अपने काम से मतलब रखिए। ' अजीत ने क्रोधित स्वर में कहा।

'ल महाराज, तुस्सी तां बुरा मन्नगे। एदां थोड़ी ना हुँदा आ। खैर एक गल्ल पूछणी सी। पर की पूछिए तुस्सी तां बोत गुस्से च हों ' कन्या ने हंसते-हंसते कहा फिर अनूप की ओर मुखातिब होकर बोली, 'चलो तुस्सी ही दस दओ, केड़े सीरियल चों भज्ज के आए हों महाराज ?' फिर जोर से अपनी सखी के हाथों पर ताली देकर हंसने लगी।

अनूप ने देखा तो लगा साक्षात अप्सरा जमीन पर उतर आई है। पाँव में जड़ाऊ मोजड़ी, हल्के हरे रंग की सलवार और गहरे पीले रंग के कुर्ते में, जिसमें बड़ी-बड़ी आसमानी लहरें उसके यौवन को लपेटे हुए थी, वो कमाल लग रही थी। तिस पर उसका बार बार महाराज कहना अनूप को अवाक कर रहा था। अजीत अभी भी क्रोधित था। क्योंकि उसे समझ आ रहा था कि ये उनका मजाक बना रही। वो उन्हें डांटने के लिए कुछ कहने ही वाला था कि अनूप बोला, 'जाए देइ भैया ! अब अपन होखे वाली पतोह पर कइसन खीस ? अजीत सुनते ही क्रोध भुला कर हंसने लगा। पंजाबी कन्या खिसिया गई। अनूप पुनः बोला, 'तोहरा के केहू बतवलस ना का? तू त बड़ी कमाल के बाड़ू 😉'

कन्या बोली , 'ये बाड़ू बाड़ू क्या होता है? हिंदी नहीं आती क्या महाराज ?'

'अच्छा आप अभी जो पंजाबी अत्याचार कर रही थी, उसका क्या महारानी ? वैसे हम आपकी तरह किसी का मजाक न बना रहे थे। समझे।' कह कर अनूप और अजीत वापस पलटे पर उनके स्टूलों पर अब दो पहलवाननुमा आदमियों का कब्ज़ा हो चुका था।

#जयश्रीकृष्ण

#उजबक_कथा
#गुरुकुल_के_किस्से
#पार्ट9

✍️ अरुण
Rajpurohit-arun.blogspot.com

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही बेहतरीन कहानी, ये गुरुकुल की कहानी तो अगर 500-600 पेज की भी हो जाय तो मैं एक बैठक में ही पढ़ सकता हूँ। कृपया आगे का भाग आने पर आप मुझे सूचित करने का कष्ट करें

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