🍬🍷🔪💅 कुमार साहब का पान ♠♠♠♠♠ .


'अबे बस कर यार, अब कितना और चूसेगा ? देखो तो पूरी जान निकाल दी बेचारी की।' प्रदीप से मैंने कहा।

'ओहो तू मारवाड़ी है न पर सुन तू डफर भी है, सच्ची कुछ नहीं जानता, इस बात पर एक लुच्ची सी कहावत सुनाता तुझे ठेठ मारवाड़ी में, पर क्या करूँ एन्टी सोशल नहीं हो सकता, सब ऑनलाइन है क्या पता कब कौन कमबख्त जा के सब हमारी लुगाई को सब बोल दे' इतना कह कर शूकुल ने बीड़ी का छोटा सा अंगारा नीचे फेंक दिया।

हाँ जी यही वो जबरदस्त चीज थी जिसे शुक्ला जी लगातार चूसे जा रहे थे। जब तक बीड़ी नाख़ून से भी न पकड़ी जाए तब तक नीचे फेंकने की बात प्रदीप्त माइंड सोचता भी नहीं, करें भी क्या मजबूरी थी घनघोर मुफलिसी के दौर से गुजर रहे थे हम दोनों , मेरा तो चलो फिर भी जैसे तैसे फाकाकशी से गुजारा हो भी जाता था पर शुकुल को बीड़ी के बिना सवेरे प्रेशर भी नही आता था, यूँ की ये समझ लो की मशीन ही चोक हो जाती थी.

मरता क्या न करता मजबूरी में डॉ आलोक के यहाँ कम्पाउंडर हो गये . डॉ साहब बड़े सज्जन आदमी है , इंसान तो छोडो जानवर का भी घाव देखे तो रो दें झट से.....ऐसा हम सोचते थे, एक गोधे के घाव को बिटाडीन लगाने के चक्कर में पूरी पोस्ट पेल दी थी , पोस्ट पढ़ के पूरा डेढ़ गिलास आँसू बहाए थे हमने...... हम तो इधर इस चक्कर में आए थे क्योंकी डॉ साहब ने हमसे फिलिम में गाना गवाने का प्रॉमिस किया है , और शुकुल अपनी मशीन का चोक खुलवाने की फ़िराक में थे , लेकिन डॉ साहब को इसकी क्या परवाह सवेरे झाड़ू लगाने से लेकर दिनभर काम में लगाए रहते , अजीब अजीब नमूने आते और डॉ साहब घावों के चक्कर में हमसे उनका क्या क्या साफ करवाते और तो और रात को क्लीनिक में ही सोने के आदेश थे, अब हम तो ठहरे ढीठ मारवाड़ी , थोड़ा सख्त जान है मजबूरी को झेल रहे थे पर शुकुल जल्दी ही उकता गए. बोले यार ये सब हमसे न होगा, कल रात सपने में हमारी अभियांत्रिकी वाली डिग्री ऐसी ऐसी गालियाँ देकर गई कि का बताएं. हम तो जा रहे, हमने बोला की यार कल डॉ साहब तुम्हारी कोलोनोस्कोपी करने वाले हैं न, चेकअप तो करवा लेते और मैं अकेला यहां क्या करूँगा अकेले तो बोर हो जाऊंगा, ज्यादा ही है तो शाम को क्लिनिक बन्द होने पर हम दोनों ही निकल लेंगे. ई. साहब को भी बात जम गई, शाम को क्लीनिक बन्द होते ही हम दोनों निकल लिए, जवाहर चौराहे पे जब हम दोनों बनारसी पान चाप रहे थे, तो देखा अपने कुमार साहब ड्यूटी से फ्री होकर अधा जेब में अटकाए क्वार्टर पर जा रहे थे, हमको देखते ही खुश हो गए, बोले ,'का रे इधर किधर? कोनो काम धाम पकड़े की अभी भी उ मटरगश्ती चालू है ?'

हम बोले, ' साहब आप बचपन से ही जहीन थे , आप जैसा राजयोग तो हमारे नसीब में कहाँ, हाँ हम बहुते बढ़िया कम्पाउंडर बन गए हैं, आप पान खाइएगा ?'
साहब सम्बोधन सुन कर कुमार साहब इतराए, अपनी बायीं कॉलर ठीक की, पान की मीठी खुशबु से मुँह में भर आई लार निगली, फिर आँखे तरेरते हुए बोले, 'अमा छोड़ो, ये टुच्चा पान वान नहीं खाता मैं, मैदे पर जोर पड़ता है '

शुकुल करीब आए, इसरार करते हुए कहा, ' अजी आप तो तक्कलुफ करने लगे, हमारे पान से मैदा मजबूत हो जाएगा कसम से,मैं तो केता हूँ पान खा  लो आप' कहते हुए पान कुमार साहब के मुंह में खोंस दिया. पनियाए मुँह को जैसे मुँह मांगी मुराद मिल गई , कुछ मिनट तक भाव विभोर होकर पान चबाने के बाद ठुड्डी पर आई लाली साफ करते हुए कुमार बोले, ' वैसे शुकुल आदमी तुम बुरे नहीं , सच बताएं तो हम बचपन में हमारा बलूचिस्तान लूटने के बाद तुमसे खार खाए बैठे थे , पर आज दिल जीत लिया तुमने , बेहतरीन इंसान हो तुम और उससे भी बेहतरीन तुम्हारा ये पान, यूँ की मजा आ गया.'

शुकुल मुस्कुराए, बोले , 'ये तो आप साहब लोगों की ज़र्रानवाज़ी है, वरना हम किस लायक हैं हुजूर .'

'अब से तुम दोनों हमारे खास पंटर, चलो हम बताते हैं कि ऐश किसे कहते हैं' कह कर उन्होंने शुकुल के कंधे पर हाथ रखा और साथ ले चले, और हम दोनों के पीछे पीछे , क्वार्टर में हमे बिठा कर कुमार साहब बोले मैं अभी आया. उनके जाते ही शुकुल मेरी और आँख मार कर बोले,' आज बिना लिपिस्टिक लगाए इसका सारा डिस्ट्रिक्ट हिलने वाला है, हमने इसके पान में जुलाब की गोली चेपी है'😂😂😂😜

थोड़ी देर बाद जब कुमार साहब आए तो बोले 'अरे तुम लोगों ने ग्लास नहीं लगाए।'

'हम गरीब हैं साहब, अमीरों वाले तो शौंक ही नहीं पाले कभी, दारू नहीं पीते हम लोग', मैंने कहा।

'अबे तुम लोग क्या जानो जिनगी कैसे जी जाती है, मजा इसे कहते है बेवकूफो' कहते कहते कुमार साहब सटासट आधा अधा गटक गए।

शुकुल बोले,' हुजूर पानी शौंक नहीं फरमाते ? मेरा मतलब पानी नहीं मिलाइएगा ?'

'अबे छिलकों, तुम क्या जानो जिनगी कैसे जी जाती है, पानी तुम जैसे छुछुंदर लोग मिलाते हैं, हम सीधा जन्नत में पहुँचते हैं इससे, टाइम नहीं है अपने पास, फटाफट एक्शन चाहिए अपने को.....' वो बोलते जा रहे थे।

'पर हुजूर, अपनी फटाफट को ब्रेक लगाएं थोड़ा सा, आप लीक हो रहे हो...' कहते हुए मैंने उनकी गीली जंघा की और इशारा किया ।

हुजूर सकपकाए बोले , एं य्ये क् क्  क्य्या हो रहा है...' उनकी जबान लड़खड़ाने लगी थी और उठ कर भागने की कोशिश की पर फटाफट वाले नशे में धड़ाम से नीचे गिर कर बेहोश हो गए।

Er शुकुल ने उन्हें उठाया, नीचे गिरने से माथे पर चोट लगी थी, ढिमड़ा बन गया था. हमसे बोले अरुणवा हाथ लगाओ तनिक ऋषि कुमार को इलाज की सख्त जरूरत है. हमने भी फटाफट सहारा दिया और कुमार साहब को क्लिनिक ले आए , बेहोशी में भी कुमार साहब लगातार लीक होते जा रहे थे ऊपर से माथे पर चोट, ओटी में ला कर बेड पर उल्टा पटक दिया थोड़ी ड्रेसिंग शुकुल ने की थोड़ी हमने , सुबह के 4 बज रहे थे शुकुल बोले यार इसे देख कर तो उल्टी आ रही , मैं हाथ मुंह धो कर फ्रेश होकर आता हूँ ' मैंने कहा ठीक है तभी डोरबेल बजी, मैंने दरवाजा खोला तो सामने डॉ साहब खड़े थे. बिना कुछ बोले वो सीधे भीतर चले आए, अंदर मामला बदबूदार हो रखा था, मुझे डांटते हुए बोले, 'ये क्या हाल बना रखा है क्लीनिक का'

'जी..... वो......उसने......जुलाब.......लीक हो गया.....' हड़बड़ाते हुए मैंने अस्फुट से शब्दों में कहते हुए ओटी की और संकेत किया, डॉ साहब बोले,' यार ये तो शुकुल की हालत बहुत खराब है, तुम इधर आओ, अभी के अभी कोलोनोस्कोपी करते हैं'

'जी....पर...वो ....शुकुल तो.....'

'ये क्या जी जी लगा रखा है.....शुकुल का मुँह ढक दो, और इसकी पेंट नीचे खिसकाओ, उसे शर्म आएगी.......'

'ज ज जी...पर क्यूँ...'

'मारवाड़ी हो न, अक्ल तो होती नहीं .....अरे कैमरा डालना है ना'

'हैं...!!!?'

'अब तुम मुंह मत खोलो, तुम्हारे मुँह में नहीं उसके वहाँ अंदर कैमरा डालना है तभी तो बीमारी पकड़ में आएगी'

मैं अवाक् था, डॉ. साहब समझ गए की इससे कुछ न होगा, झट से एक तौलिया से मरीज का सर ढंक कर फट से एक पाइप जैसे दिखने वाले कैमरा के मुँह पर थोड़ी जेली डाली और मुझे कहा की इसके हाथ पकड़ लो , यंत्रवत आज्ञा पालन करते हुए मैंने कुमार साहब को काबू में कर लिया ,उधर डॉ साहब अपनी कार्यवाही को अंजाम देने में जुट चुके थे, थोड़ी ही देर में 'भीतर' का वीभत्स दृश्य कम्प्यूटर की स्क्रीन पर जीवन्त हो उठा जिसे देख देख कर डॉ. साहब कुछ एनालाइज कर रहे थे....तभी बाथरूम से निकल कर शुकुल डॉ. साहब के सामने आ खड़े हुए......अब अवाक् होने की बारी डॉ साहब की थी....कैमरा हाथों से छूट गया, हड़बड़ा गए, जैसे जीवित इंसान नहीं किसी भूत को देख लिया हो.....

*****

कुमार साहब हमारे बहुत आभारी हैं , क्योंकि हमने उन पर संकट आने पर भी उनका साथ न छोड़ा, और डॉ. साहब की तरफ से हम दोनों को एक निश्चित वेतन हर माह दिया जा रहा है, दरअसल शुकुल ने बंडल मारा था कि उनकी उस सज्जनता को उन्होंने अपने कैमरा में कैद कर लिया है, जिसे सार्वजनिक करने पर ये पुलिसिया न जाने क्या क्या करेगा.

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

Rajpurohit-arun.blogspot.com

🌹🌹🌹🌹🌹 अनुपम प्रेम ♠♠♠♠♠


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एक सुबह अनुप मेरे पास आया, बिखरे बाल , गालों पर आँसुओ के जमने से बनी रेखाएँ, सूज कर लाल हुई आँखे, कुछ न बोला आकर चुपचाप बैठ गया।

इतना क्लांत उसे इससे पहले न देखा था, पूछा हमने कि,'प्यारे ये क्या हाल बना रखा है, कुछ लेते क्यों नहीं?' इतना सुनना था कि अनुप की आँखों से नोबिता के समान दोनों और दो झरने झर झर बहने लगे, हम भी बह ही जाते अगर अनुप को ही कस के पकड़ न लिया होता पर सहम गए कि यार ऐसा तो कुछ बोला भी नहीं तो फिर ये हो का रिया है। झट से दो बाल्टी उसके दोनों और रखी, रुमाल के काम करने का सवाल ही पैदा नहीं होता था इसलिए बैडशीट से उसका चेहरा पोंछा, फिर दोबारा प्यार से पूछा ,'प्यारे हुआ क्या है ?' इतना सुनते ही अनुप ने मुँह उठाया और बुक्का फाड़ के शुरू हो गया, बहुत करुण दृश्य था पर मारवाड़ी लोग पकाना जानते है पकना नहीं इसलिए बेडशीट उसके खुले मुँह में ठूस दी, और कहा , 'अबे ओये, प्यार से पूछ रहे तो बताते काहे नहीं हो, वो डंडा देख लो, अब अगर एक भी आँसू गिरा तो खोपड़ी फोड़ देंगे, सवेरे सवेरे माथा खराब कर रखा है। अब बोलो ढंग से बताते हो कि सेवा करवाओगे पहले ?' अनूप के आँसू झरना झट से बंद हो गया जैसे किसी ने मोटर बन्द कर दी हो पीछे से, बेडशीट का आख़िरी कतरा मुँह से बाहर आते ही उसने कातर नज़रों से मुझे देखा और मैंने गुस्से के साथ डंडे को, थूक निगल कर अनूप तोते की तरह शुरू हो गया, 'का बताई अरुण भैया, ई दुनिया भोत जालिम है, यूँ की ये मेरे जैसे अच्छे लोगों के लिए तो बनी ही नहीं है।'

मैंने उसे टोका,' अबे सुन, ये 'अच्छे लोगों वाला' डायलॉग नहीं बोलने का, साला पहले भी ये चिपका के पोपट बना गया था हमको ',फिर दो गहरे सांस छोड़ें बी पॉज़िटिव यार बी पॉजिटिव मन्त्र उच्चारा और अनूप को कण्टीन्यू करने को कहा। वो शुरू हो गया,' भैया आपको पता है आज बीस साल के हो रहे हैं हम,कोनो गर्लफ्रैंड नहीं, इस्कूल में भी लड़कियाँ हमसे ऐसे दूर रहती थी जैसे हम साले टीबी के मरीज है, दिल दुखता था हमारा पर सह लिए हम , की कभी तो कोई कन्या होगी जो हमसे मुहब्बत का इजहार करेगी, साला घण्टा नहीं किया किसी ने भी , फिर एक दिन गौरव बोला कि  'आजकल फेसबुक का जमाना है, तुम साले उस माल से उम्मीद लगाए रहते हो जिसकी बिल्टी किसी और ने पहले ही कटवा रखी होती है', तो हमने भी प्रोफाइल बना लिया, पर क्या करें इधर देखा तो इधर भी वही हाल है , इतनी रोमांटिक शायरी चेपते है पोस्टवा में, की कोई पढ़ ले तो करेजा मुँह को आ जाए, पर कोई कम्बख्त आना तो दूर देखती तक नहीं. जैसे हमने पोस्ट पर लेंडमाइन्स बिछा रखी है 😢'

इतना बोल कर वो मेरा मुंह ताकने लगा, हम बोले ' हो गया तुम्हारा? अच्छा तो फिर सुनो अब आराम से , ' देखो प्यारे प्यासे को कुएँ के पास चल के जाना पड़ता है, कुआँ कभी चल के नहीं आता'

'मतलब'

'मतलब ई बिरादर, की पहले प्रोफाइल की प्राइवेसी हटाओ लड़की लोगन को ऐड करो और उसके बाद भी जिसे तुम पसंद करते हो उसके पास तुम्हे खुद जाना पड़ेगा.'

'पर अरुण भाई हमें तो सब की सब पसंद है'

'बस यही गधापन कंट्रोल करना है प्यारे, अबे हर किसी से हो जाए वो दीवानापन नहीं कमीनापन होता है.'

'अच्छा और आप जो हर लड़की के कमेन्ट पर लार चुआते हो उसका क्या...?"

'अबे वो तो हठयोग है हमारा, और वैसे भी सब कन्याओं को एक ही नजर से देखते हैं हम 😉 सब को पता रहता है की मजे ले रए फोकट में बकैती कर के '

'तो मैं भी वही करूँ ?'

'वैसे ऐसी बातें बच्चों को 'शोभा' नहीं देती पर ...तुम कर सकते हो तो जरूर करो, अगर नहीं तो वो कन्या चुनो जिसे देख के जिगर का तानपुरा अपने आप बज उठे'

'अच्छा, फिर..'

'फिर क्या, बतियाओ उससे , हँसी और फंसी का डायलॉग नही सुने हो ? खुश रखो उसे , कुछ भी मांगना नहीं उससे, वो खुद बा खुद दे देगी'

'क्या...?'

'अबे ठरकशिरोमणि , उसके नम्बर की बात कर रहा हूँ मैं '

'अच्छा अगर कोई बात ही न करे तो....?'

'ओहो दुःखी आत्मा , तो कौनसा भूचाल आ जाएगा, वो नहीं तो उसकी कोई और बहन करेगी...टीराइ टीराइ अगेन सुने हो की नहीं  :), और सुनो चौखटा जरूर सुधार लो पहले, आजकल जो दिखता है वही बिकता है, पुराना डायलॉग है पर मौके की नजाकत देख के फिर चिपका रहे हैं कि 'थोबड़ा तबेले जैसा बनाए रखोगे तो गोबर ही मिलेगा' थोड़ा पिच्चर विच्चर देख के हीरोगिरी सीखो मियाँ'

'ओके.....' इतने आत्मविश्वास से अनूप ने कहा की लगा कि बात समझ गया पठ्ठा, तुरन्त उठा और लपक के निकल गया.

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विवेक मिश्र की अंग्रेजी क्लास चल रेई, इं. शुकुल बाबू आज के आज चौथी बार पिटे हैं अपनी भेरी स्टाइलिश अंग्रेजी उवाचने के चक्कर में, पर इन्हें मार से कोई दिक्कत नहीं , ढीठपन का गुण यूँ भी इन्हीं से बाकी दुनिया को प्रसाद रूप में वितरित हुआ है , पिटने के बाद वापस दरी पर बैठते बैठते ही खुन्नस में अजीत के मुक्का धर देने से बाज़ नही आते , हमारे पास भी नहीं बैठे आज तो ....जाकर अफ़जलवा से गलबहियाँ डाल रहे हैं, सिचुएशन के हिसाब से ' दोस्त दोस्त ना रहा' गाने का मन हुआ था पर सोचा पहले 'उदास' बोला था अब ना जाने किस मरियल की उपमा चेप दे, इसलिए चुप हो रहे। अचानक अजीत खड़ा हुआ.....शायद कुछ पूछना होगा।

'विमी गुरु, एक ठो बात बताइए....'

गुरु जी ने धर देई कंटाप फट से, बोले 'इस्पीक इन इंग्लिश ओनली..'

कान सहलाते अजीत बोला कि, 'गुरु अंग्रेजी नहीं आती एही लाने तो यहाँ आए रये, आप तो जे बताओ बच्ची की पोट्टी  को इंग्लिश में कैसन साफ़ करें'

'व्हाट रिडिक्यूल्स, आई एम् हियर टू टीच यू इंग्लिश लैंगुएज, नॉट टू टेल अबाउट द् प्रॉसेस हाऊ टू क्लीन द शिट ' गुस्से में तमतमाए विमी गुरु बोले।

हमने ज़बरन अजीत का हाथ पकड़ के बैठाय लियो, 'अबे देख नहीं रए गुरु गुस्सा हो रो, अब जे एक कंटाप और धर देइहें तो का इज्जत रह जाई ससुर।'

'बात तो तुम भी ठीक ई के रे, पन वो पोट्टी...?'

'अबे वो शुकुल से सीख के साफ कर लेइयो, वो ख़ुशी ख़ुशी सीखा देगो '

'घण्टा वो देखो शुकुल तो अफ़जलवा की गांव में घुसरो, बात करन की तो फुरसत ना मिलरी'

'हाँ दया मेरो मतलब, कुछ तो गड़बड़ है अजीत'

क्लास से छूटे तो शुकुल जी अफ़जलवा को अपनी खटारा के इकलौते डंडे पे बैठाए झट से निकल लिए, अजीत और हम भी फट से अपनी फटफटी दौड़ाये , पूछे, 'शुकुल प्यारे बोलते थे की मौसम नहीं है जो बदल जाएंगे आज साले इस फ़टे ट्यूब के लिए दोस्तों को छोड़ आए।'

शुकुल अपना गुस्सा पैडल पर चलाते चलाते ही बोले,' अबे तुम दोनों को कुछ ना पता, उ जो अफ़जलवा की बहिन सलमा है ना, (सलमा का नाम एक्स्ट्रा मक्खन मार के बोले थे)  सबेरे से गायब हैं, उसी को ढूंढने जा रहे, ना जाने कहाँ होगी बेचारी ' शुकुल का एक आंसू तुपुक कर के अफ़जलवा के टकले पर गिरा।

'ओह अच्छा अच्छा, मिल जाए तो बताना हमें भी', कहने के साथ हम फटफटी दौड़ा के निकल गए, अजीत बोला , शुकुल तो अच्छा आदमी है यार पर तुम भी टुच्चे निकले बे, अफ़जलवा की मदद हम लोग भी करते, रुके काहे नहीं ?

'अबे, इसलिए क्योंकि हम जानते हैं की सलमा कहाँ है.."

'कहाँ?'

'वो ससुर अनुपवा के साथ बसंत मेंगो बार में कुल्फी चूस रही है बे.......'

©अरुण

#जयश्रीकृष्ण

💏💏💏💏💏 उधार ♠♠♠♠♠


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दोपहर के 3 बजे हैं, और गर्मी के बाकी दिनों की तरह आज भी बहुत गर्मी है। तपन को देखते हुए भीड़ कम नही है बाजार में, गांधी चौक के पास की एक दुकान पर लगे टिन शेड की छाया में आसरा तो मिल गया है, पर चैन नहीं, न न वजह गर्मी बिल्कुल नहीं है। किताबों की दुकानों की कतार लगी है पास ही, आती जाती पदाति, स्कूटी सवार और कार धारी भिन्न भिन्न प्रजाति की कन्याएँ ताड़ रहा हूँ , जी हाँ जी हाँ बिल्कुल, ओनली कन्याओं को, कसम लगे जो किसी लड़के को देखा हो तो, सब अपने काम मे लगे हैं, सामने पान वाला अपनी गर्मी पान के पत्तो पर दना दन कत्था रगड़ के निकाल रहा है, मुँह में कुछ ठूँस भी रखा है, जिसकी तस्दीक सामान्य से थोड़ा अधिक उठा उसका नीचे का होंठ कर रहा है, माथे पर पसीने की कुछ बूंदे चमक उठी है , पसीना पोंछते वक़्त एक उपेक्षित सी नज़र उसने मुझ पर डाली, मुँह बिचकाया जो मुँह में है वो बिलोया फिर एक सधी हुई पिचकारी दुकान के बाहर की तरफ दे मारी, पहले से आधा लाल हुआ खम्बा और लाल नजर आने लगा। ओहो तो ये भी पान पराग के शौकीन हैं ? एक छोटी सी मुस्कान ने मेरे चेहरे पर आने की गुस्ताखी की, पान वाले ने भौंहे ऊपर हिला कर कुछ प्रश्नवाचक मुद्रा में मुझ पर आक्रामक दृष्टिपात किया तो मैंने झट से इनकार की मुद्रा में सर हिला दिया। पता नही इस तरह भौंहे नचाकर ये बाबू मोशाय मुस्कान की वजह पूछ रहे थे या मेरे वहाँ खड़े होने का प्रयोजन,  खैर ! नजरें फिर से किताबो की दुकानों पर किताबे टटोलती कन्याओं पर है , दूर हूँ आवाज़ नहीं सुनाई पड़ रही , लेट मी इमेजिन वट दे आर टॉकिंग अबाउट , अरे वा लगता है गर्मी से इंग्लिश दिमाग मे चढ़ गई है मेरे 😜  लेट कम टू लड़कियों की बातें, अरे अरे अब वो जो मर्जी बात करें मुझे क्या, आपको बड़ा चस्का है लड़कियों की बातें सुनने का हाँ, मैं तो उधर देखता हूँ तो बेचैनी और बढ़ जाती है, याद आ रही है ओ तेरी याद आ रही है, कब से इंतज़ार कर रहा हूँ जाने मेरे वाली कब आएगी, जानेमन लिख के रख लो कोई पूछे तो बता देना , न भी पूछे तो भी याद रखना लाइफ टाइम काम आने वाली बात है, दुनिया का सबसे मुश्किल काम 'इंतज़ार' है डेढ़ घण्टे से खड़ा हूँ। दिन , समय , जगह सब उसी ने तय किया पर ......।

कर भी क्या सकते हैं जैसे घर के बुजुर्ग सब पर गुस्सा हो सकते हैं उन पर गुस्सा करने का हक किसी को नहीं वैसे ही छोरियाँ कुछ भी करे उनको कुछ बोल नही सकते क्या समझे,उनका बस एक आँसू और बाज़ी पलटनी तय मानो, कमबख्त फ़िल्म वालों ने ज्यादातर जितने भी गाने बनाए हैं सबमे लड़की इंतज़ार कर रही होती है, आजा वे माही तेरा रस्ता उडीक दियाँ, हुँह कब से उडीक तो मैं कर रहा हूँ, मैं पिक्चर बनाऊंगा तो सारे स्थापित कांसेप्ट चेंज करूँगा हाँ नहीं तो। आजा रे छोरी तेरा रस्ता उडीक दां हाँ, हाँ ये वाला सही है, खीखीखीखी ।

अचानक आँखे बंद कर दी किसी ने पीछे से, उफ्फ ये छोरियों की नौटंकी, देखो तो आँखे बंद तो ऐसे की है जैसे मैं पहचान ही नहीं पाउँगा की कौन हो, अरे मेरे प्यारे से,  खुबसूरत, कुची पुची , गुगली बूगली मैं ही नहीं बच्चा बच्चा समझ गया है कि तुम ही हो, बस तुम ही हो, ये नोटंकी, बस तुम ही हो। बन्द आँखों पर हाथों से टटोल कर  अनु... अश्मी...श्वेता... रूही....शीतल....परी.... आरोही....एक एक कर नाम पुकारने लगा अचानक मुक्का मार दिया पीछे से उसने।

बोली ," हाँ हाँ इन्ही सब का इंतज़ार हो रहा था, मैं ही पागल हूँ जो भाग के चली आई हूँ तुमसे मिलने के लिए....."

मन किया की कहूँ, भगवान से डर छोरी भगवान से डर, पर खिसियाई हंसी ला कर जीभ को थोड़ा दांतो तले दबाया, दोनों कानों को पकड़ते हुए, सॉरी सॉरी सॉरी का उद्घोष करते हुए दांत चियारते हुए कहा, 'अरे मैं तो बस मजाक कर रहा यार, अच्छे बच्चे गुच्छा नहीं करते, कान पकड़ लिए ना, माफ कर दो न प्लीज प्लीज प्लीज प्लीज प्लीज'

लड़की हँसी समझो पक्का फँसी..... वो भी मुस्कुरा दी। मैंने नजर घुमाई पानवाला मुँह में नया माल ठूस कर अपनी व्यस्त चर्या से समय निकाल हम दोनों को निहारने का उपक्रम कर रहा है। एक उपेक्षित सी नजर उस पर डाली, हमारे नयन आपस मे टकराते ही उसके चक्षु अपूर्व दिव्य भाव से हृदय की प्रसन्नता की उद्घोषणा करते विस्तारित होते चले गए, उसकी तोंद थिरकी जैसे हल्का हंसी का भूकंप आया हो बस उसी के लिए, इस थिरकन से उसका पूरा शरीर कुछ सेकण्ड्स तक ऊपर नीचे होता रहा, उसने फिर से भौंहे ऊपर की और नचाकर मुझे घूरा, उसे उसके सभी अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर प्राप्त हो चुका था। अब मेरी बारी थी, गर्दन को उपेक्षा से झटक फोकस अपने वाली पर किया। उसके साथ उसकी स्कूटी पर सवार हो लिए। कंधे के पास से पकड़ रखा है हाथों को, गर्दन आगे ले जाकर उसके कानों के पास मुँह ले जाकर कहता हूँ, ढुर्रर्रर ढुर्रर्रर ढुर्रर्रर ......बिल्कुल वैसे जैसे छोटे बच्चे अपने मुँह से आवाज निकालते हुए अपनी काल्पनिक 'पीं' चलाते हुए निकाला करते हैं, वो हंस दी फिर से। बोली,"ये क्या है, सीधे हो कर बैठो न।"

'बाजार है, इसलिए शराफत का तकाजा है, वरना तो चिपक के बैठने का मन था हमरा, क्या समझी'

"ए हेहे, बड़े आए" वो मुँह बना कर बनावटी हँसी हंसी और स्कूटी आगे बढ़ा दी, सिर्फ चार कदम जितनी ही दूरी पर बसंत मेंगो बार पर रोक कर मुझे उतरने को कहा।

कमाल है इत्ती सी दूर ले जाने के लिए स्कूटी पर बिठाया था ? पर आप इस 'मैंगो बार"  के नाम से धोखा मत खाना, ये सोचने की गलती बिल्कुल मत करना कि हम किसी आम रस या मैंगो शेक बेचने वाले की रेहड़ी पर आए हैं, लड़की कोई भी हो कहीं की भी हो कैसी भी हो ऐसे मामलों में घोर अनुदारवादी हो जाया करती हैं, बोले तो मारवाड़ी की तरह, नो रिक्स लेने का। अच्छा खासा रेस्टोरेंट है ये मैंगो बार भी, बहुमंजिला इमारत, वर्दी वाला साफ सुथरा स्टाफ, भीतर बैठने की शानदार व्यवस्था है, प्राइवेट चैम्बर भी बने हैं, पर सब के सब बुक्ड नजर आते हैं, नीचे भीड़ काफी है, दूसरी मंजिल पर आ गए हम, 8-10 टेबल लगे हैं यहाँ भी, सरसरी नजर दौड़ाई , सब भरे हुए नहीं है 3-4 फैमिलीज बैठी है, एक टेबल पर 3 लड़के बैठे है, एक कॉर्नर की टेबल पर 2 टीन कन्याएँ बैठी हैं उनके ग्लैमर से खिंच कर हम और हमारी 'बलिए' उन्हीं के बगल के एक टेबल पर तशरीफ़ रख चुके हैं। न जाने म्युज़िक सिस्टम कहाँ लगा है पर हल्के हल्के संगीत की ध्वनि सुनाई दे रही, शायद ....शायद क्या पक्का कोई अंग्रेजी गाना है, सम्भ्रांत दिखाने का ये भी कोई चोंचला होगा (शायद), सुनने कम समझने की थोड़ी सी कोशिश हुई मेरी तरफ से पर कुछ ही पल में हार मान कर ध्यान वापस बलिए पर कंसन्ट्रेट कर लिया। वो टेबल पर बैठते ही सीधे पॉइंट पर आ गई, व्हाट ए स्ट्रेट गर्ल मैन, सीधा मेन्यू कार्ड उठा लिया 😂😂😂 । सोचा एक नज़र मैं भी डाल के देखूँ क्या क्या मिलता है इधर, 25-30 तरह के सैंडविच के नाम लिखे थे, फिर कुछ चायनीज, इटेलियन के सैक्शन बने हैं, नाम समझ ही नहीं आए तो दाम की तरफ देखा, थूक निगला, अबे ऐसा क्या डालोगे इसमे, मुझे तो दाम पढ़ कर शर्म आने लगी थी, तुमको लिखते हुए भी नहीं आई। मेन्यू कार्ड पटक दिया, देखा सब फैमिलीज वाले अपने में मस्त हैं लड़को ने नींबू पानी विद पनीर पकौड़ा आर्डर किया है, 2 पकौड़ो को 6 टुकड़ों में काट कर प्राउडली खाया जा रहा है, कोई इधर उधर नही देख रहा, जैसे बस फटाफट खा पीकर निकल जाना चाह रहे, लड़कियों ने रंग बिरंगी आइसक्रीम ले रखी है, एक लड़की उस पर रखी चैरी को ही आधे घण्टे से चूस रही है। 'तेरी फीलिंग मैं समझ रहा हूँ छोटी..."।

पता ही नहीं लगा पास में वेटर जैसा दिखने वाला बंदा कब आ के खड़ा हुआ, हमारी टेबल का आर्डर सर्व करने आया था। पर आर्डर दिया कब, कुछ पता न लगा। मेरी ओर उसने देखा तक नहीं, ' दिस इज योर चायनीज प्लेटर, योर पनीर मन्चूरियन ड्राई, बेबी कॉर्न चिल्ली ड्राई, स्पेनिश मशरूम रॉल, योर चीज़ चायना टाउन,.....'

'अबे इत्ता कौन खाएगा" वेटर प्लेट्स रख ही रहा था कि मैंने बोला।

"मैं खाऊँगी, एनी प्रॉब्लम" उसने थोड़े गुस्से से मेरी तरफ देखा।

यार पता नहीं मिलने के लिए बुलाया है या पुराना कोई बदला लेने, वेटर फिर शुरू हो गया,"योर मिजो सूप मैम, एन दिस वन इज योर कैपेचीनो, ....एनीथिंग एल्स मैम ? एनीथिंग इन स्वीट डिश ओर इन आइसक्रीम ?"

"नो नो, इनफ फ़ॉर नाउ,आई विल कॉल यू इफ नीडेड..."

'फाइन थैंक्स मैम'

वो चला गया, पूरा टेबल सजा पड़ा है, पर इत्ता सच मे खाएगा कौन, कितने जन्म से भूखी हो यार। उसकी और देखा वो एक प्लेट उठा कर शुरू भी हो चुकी, मुझसे नजर मिली तो ठूसते ठूसते ही बोली, "फुम फी फो फ़ा..." जानता हूँ सीधा समझ आना थोड़ा मुश्किल है कि उसने क्या कहा, पर एक्सप्रेशन से आईडिया लगा लिया कि ये मुझे भी खाने को कह रही है (तुम भी लो ना),एक हाथ का पंजा दिखाया दूसरा पेट पर लगाया, बोला पेट गड़बड़ है यार तुम खाओ। फिर सोचा ये इतना खाती है तो वो जाता कहाँ है? इल्ली है इल्ली आई मीन घुन्न है घुन्न जितना मर्जी आटा खा ले रहेगी सुकड़ी की सुकड़ी ही। टेबल का कोई कोना खाली नहीं था, पर वो मुँह का माल निगल कर बोली तुम अपने लिए पाइन एप्पल जूस आर्डर कर लो, मैं कुछ न बोला फिर से मेन्यू कार्ड उठा कर देखने लगा, चायनीज प्लेटर= 350/- ?? हाए तेरा सत्यानाश जाए, पनीर मन्चूरियन ड्राई = 575/- ओ तेरा बेड़ा गर्क, बेबी कॉर्न चिल्ली ड्राई = 660/- ओ तेरी भेण...., स्पेनिश मशरूम रॉल= 256/- 😣😣😣  चीज़ चायना टाउन = √£¢¥ कमबख्त मारो ने खुद का दाम साथ मे जोड़ के लिख रखा था। बलिए खाने में फुल ऑन कंसन्ट्रेट किए हुए थी, धीरे से जेब से पर्स निकाल कर चैक किया , चिल्लर समेत 146/- रुपए थे। हाए ओ रब्बा हुण की होसें।

कई फिल्मों में देखा है पैसे न देने पर होटल वाले बर्तन धुलवाया करते हैं, इनका बर्तन धोने का डिपार्टमेंट किधर है पता नही, और क्या पता ये बर्तन धुलवाएँगे या मुझे ही धोएंगे। मारे गए गुलफ़ाम अजी हाँ मारे गए गुलफ़ाम, इसने तो बैठे बैठे 2500-3000 की माता धोक दी, अब भरेगा कौन? इसी को बोल देता हूँ कि तू ही भर तूने ही खाया है, पर तब इज्जत का फालूदा हो जाएगा, ऐसा कौन करता है यार, इससे तो अच्छा चाँद तारे तुड़वा लेती, सहम गया हूँ, डरते डरते फिर नजर घुमाई किशोरियाँ अभी भी आइसक्रीम टूँग रही थी, अब क्या इज्जत रह जाएगी मेरी इनके सामने 😢, फैमिली वाले वैसे ही गुलछर्रे उड़ा रहे, लड़के उठ कर चल दिए है, उनका नींबू पानी सीक्रेट अब रिवील हो चुका है, समझदार थे बेइज्जती के पिज़्ज़ा से इज्जत का नींबू पानी भला। एक किशोरी ने आइसक्रीम खाते खाते मेरी और देखा, मुस्कुराई, देखना ये खूब ज़ोर से हंसेगी जब ये वर्दीधारी वेटर मुझे उठा उठा के पटकेंगे। बलिए का ठूसना अनवरत जारी है, ये जरूर बदहज़मी से मरेगी कभी न कभी, लिख के रख लो। पर ये तो जब मरेगी तब मरेगी मेरा तो बेमौत मरना तय समझो, उस मनहूस घड़ी को कोस रहा हूँ जब इससे मिलने का विचार मन में आया था। किसी ने म्यूजिक चेंज कर दिया, हिंदी गाना चल रहा है, धीमे धीमे,

" ज़िंदा रहने के लिए, तेरी कसम,
इक मुलाकात जरूरी है सनम"

गलत है जी, गाना ही गलत है, बिल्कुल गलत है, एक्चुअली इसे तो यूँ होना चाहिए

"ज़िंदा मरने के लिए, तेरी कसम,
इक मुलाकात ही काफ़ी है सनम।"😢😢😢

खाना हो चुका उसका, अब मेरा जनाज़ा निकलेगा 😢, डर लग रहा है बुहु बुहु, पर रोने से भी क्या फायदा, वो खड़ूस मैनेजर आँसू देख के नही पैसे ले के मानेगा, जो मुझ गरीब के पास है ही नहीं। बलिए हाथ धो रही है, इसके बाद मेरे धुलने की कार्यवाही होने वाली है 😢 भगवान बचा लो, 11/- रुपए का प्रसाद चढ़ाऊँगा, लेकिन यहाँ कौनसी महाभारत चल रही जो भगवान श्री कृष्ण द्रौपदी की तरह मेरी इज्जत बचाने आ जाएंगे, मेरी ही गलती है, खुद ओखली में सर दिया है अब धमीड़ तो पड़ेंगे ही। पीछे पीछे हो लेता हूँ क्या पता ये खुद ही काउंटर पर पे कर दे, पे करते ही बोल दूंगा की यार तुमने क्यों पे किया मैं दे देता न ऐसा थोड़े न होता है, हाँ यही सही रहेगा। इज्ज़त भी बच जाएगी और धुलाई भी नहीं होगी।

"चलें" उसने पूछा तो मैंने सहमे सहमे ही हाँ में सर हिला दिया, उसने अपना छोटा सा पर्स उठाया। मैं उठ कर मुँह धोने का उपक्रम करने लगा हूँ, ताकि ये थोड़ी आगे चली जाए, पैसे दे दे। पर ये क्या वो तो सीधे निकल गई स्कूटी के पास जाकर खड़ी हो गई। ओ तेरा भला हो, अब क्या होगा, मैं काउंटर के पास आकर मुजरिमों की तरह खड़ा हो गया, वो बाहर से ही चिल्लाई, आई हेव टू गो अरुण, ममा वेट कर रहे होंगे, हम शाम को बात करते हैं, स्कूटी का सेल्फ हुर्ररर किया और फुर्ररर हो गई, चलो अब बेज्जती कम से कम इसके सामने तो नही ही होगी, मैंने मैनेजर की तरफ कातर दृष्टि से देखा। उसने बिल मेरी और बढ़ा दिया , 2868.89 Rs. ओनली... वैट मार के।

' पर मेरे पास अभी पैसे नहीं है सर....'

"कोई बात नहीं, हमें वसूलने आते हैं" मैनेजर बोला।

दो पहलवान टाइप पट्ठे मेरी और आ रहे हैं, देख के ही मुक्कों के डर से चक्कर आ रहे है, गिर पड़ा मैं धम्म से जैसे किसी ने लात मार कर गिराया हो। पलट कर देखा अजीत चिल्ला रहा है मुझ पर , " कब से आवाज लगा रहे हैं उठते ही नहीं हो, बहरे हो का।"

इधर उधर देखा, न गांधी चौक नजर आ रहा था न बसन्त मैंगो बार या उसके वो मोटे बाउंसर, यूँ की मजा आ गया ज़िन्दगी का। उठ कर कपड़े झाड़े, अजीत को गले से लगा लिया, भाई तुझे 7 खून माफ़, तेरी ये लात मुझ पर उधार रही, कभी तेरा ये अहसान ऐसे ही जरूर उतार दूंगा। ऊपर देखा , भगवान मसखरी में कम तो तुम भी नहीं हाँ, बच्चे की जान ले लेते आज तो। 😂😂😂😂😂😂😂

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

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👦👦👦👦👦 फिल्मी चक्कर ♠♠♠♠♠ .


वन्स देयर वाज क्यूट सा मैं, वन डे माँ बोली कि जाओ बहन का एग्जाम फॉर्म सबमिट कर के आओ,बड़ी खुशी खुशी तैयार हो गया, गर्ल्स कॉलेज में जाने का बहाना जो मिल गया, कॉलेज गंगानगर में था, बस पकड़ी और पहुँच गए, गेट पर देखा बड़े बड़े अक्षरों वाला साइन बोर्ड लगा था

"चौधरी बल्लू राम गोदारा राजकीय कन्या महाविद्यालय श्रीगंगानगर"

हम्म तो यही है कॉलेज ? खुद से पूछा 'क्या ख्याल है भीतर चलें' जवाब मिला 'नेकी और पूछ पूछ', तो यूँ की भीतर दाखिल भी हो लिए , पर पहले ही कदम से घिग्गी बंध गई हमरी, एक साथ इत्ती सारी छोरिया 😍😍😍😍😍 टीवी के अलावा पहली बार देख रहे थे, साक्षात आमने सामने, मन किया कि छू के देखूं कहीं असली है भी के नहीं, पर थप्पड़ खाने का भी मन नहीं था सो चुपचाप चल पड़े अंदर की ओर, अचानक एक करंट फ्राइड मिश्री जैसी आवाज़ कानो में पड़ी,

 'ओ हेल्लो, हाँ ! किधर चल दिए, मुँह उठा के'

नजर इधर उधर घुमाई , दिमाग फटाफट केलकुलेशन में जुटा था कि इन ढेर सारे खूबसूरत चेहरों में मेरे वाला, आई मीन वो आवाज़ से मैचिंग फेस कौनसा है? तभी फिर से आकाशवाणी हुई, दिल पर बिजली सी गिराती आवाज़ फिर से गूंज उठी, 'लगता है दिखता भी कम ही है तुमको', अब की बार आंखों ने टारगेट तलाशने में कोई भूल नहीं की, लेकिन टारगेट ने पहली ही नजर में मुझे टारगेट बना लिया।

बैकग्राउंड म्यूजिक स्टार्ट, "नजरें मिली.... दिल धड़का मेरी....धड़कन में समा.... किस मी... आजा"।

पर अचानक से म्युझिक स्टॉप हो गया जब वो गुस्से से बोली.

 "ओ हेल्लो, लड़की नहीं देखी क्या कभी,और कहाँ घुसे जा रहे हो मुँह उठा के, पता नहीं गर्ल्स कॉलेज है ?"

मन तो किया कि उसके हर क्वेश्चन का जवाब डिटेल में दूँ, कि" हे मृग नयनी, हे रम्भे , हे उन सभी अप्सराओं के, प्यारे से कॉकटेल, जिनका नाम भी मैं नहीं जानता, लड़कियाँ देखी हैं खूब देखी है पर तुम तो तुम ही हो", म्यूजिक फिर से स्टार्ट, " तुमसा कोई प्यारा, कोई मासूम नहीं हैं, क्या चीज हो तुम खुद तुम्हे मालूम नहीं है, टिडिंग टिडिंग तड़ाड़ा टिन टीडीडिंग" दोबारा से टिडिंग टिडिंग बजने से पहले ही वो बोल पड़ी," अरे इसे तो सुनाई भी कम देता है शायद हाहाहा" एक साथ कई छोरियों के हँसने का सम्मिलित स्वर, हमारी अघोषित तन्द्रा टूटी, मेरे वाली के चेहरे से नजर हटी, तो देखा वो किसी व्हीकल स्टैंड जैसी जगह पर एक स्कूटी जैसे दिखने वाले दोपहिया वाहन के स्टैंड की ताकत आजमाने के लिए उस पर चढ़ी बैठी थी, मैंने पहली बार उसे अब गौर से देखा, उसका एक पैर स्कूटी पर तो दूसरा जमीं पर था ,'उफ्फ ये कदम जमीं पे न रखो, मैले हो जाएंगे', बोलने का मन किया पर देखा छोरी ने जूते पहन रखे थे विदाउट जुराब, हाए रे फैशन, गुलाबी रंग की कैप्री और काले रंग की टी शर्ट, जिस पर सामने की और बड़ी सी दो आँखे बनी थी, पता नही गुस्से से या प्यार से मेरी और देख भी रही थी,

 बहुत रोका पर म्यूजिक फिर से स्लो स्लो बजने लगा,"काले लिबास में बदन, गोरा यूँ लगे ईमान से,जैसे हीरा निकल रहा हो, कोयले की खान से",

म्यूजिक अपने आप बन्द हो गया जब देखा छोरी अब भी मुझ पर हँस ही रही थी, नजर इधर उधर घुमाई तो देखा उसके पास खड़ी कन्याएँ भी सौंदर्य की प्रतिमूर्ति बनी अपने अलौकिक हास्य से स्वयं की रूपाभा को द्विगुणित करते हुए मुझ पर दामिनी गिराने का अवसर नहीं चूक रही थी। अचानक मुझे बुद्धत्व प्राप्त हुआ, आइला अबे ये तो बेज्जती हो रेली रे बावा, सोचा पहली बार किसी कन्या से बतियाने का अवसर है, कुछ स्टाइल मार के बात करते हैं पर न जाने क्या हुआ कमबख्त आवाज़ ही नहीं निकली 😢, जैसे गले की पाइप आपस मे चिपक गई हो, बोलने के नाम पर बस थूक निगलना भर हो पाया।

सामने स्कूटी पर बैठी कम लटकी षोडसी फट पड़ी, "अबे बोलते हो कि पकड़ के बाहर निकाल दे कॉलेज से?"

 साथी अप्सराएँ उसके द्वारा की जा रही मेरी इस वाक धुलाई से पुनः बहुत प्रफुल्लित जान पड़ी। पर इस बार हमने भी हिम्मत की खूब जोर से सांस भीतर खींचा और ज़ोर लगा कर बोलने की चेष्टा की, पर भर्राए गले से " मममममममममम" ही निःसृत हुआ, सब अप्सराएँ हंसी से दोहरी हुई जा रही थी, ढेर सारी बेज्जती का दुःख झेलते हुए फिर से कोशिश की और फाइनली कह दिया," ममममैडम एड एड एडमिन ब ब ब ब्लॉक का रा रा रास्ता किधर ह ह है, फ़ फ़ फ़ फॉर्म जज्ज्मा कराना है।"

 हाहाहाहा ठहाके के साथ उसने मेरी एक और कमी पर से भी पर्दा उठा दिया,"लो, कल्लो बात, ये तो हकले भी हैं"।

ढेरो ठहाकों की बिजलियाँ एक साथ मुझ पर गिरी, अब तो यूँ की हद ही हो गई, ऐसे भी कोई बेज्जती खराब करता है भला, रोने जैसी शक्ल हो गई मेरी, आँसू उछल के गिरने ही वाला था कि मुग्धा नायिका को तरस आ गया, अपनी सखियों को झिड़क के बोली,"अरे चुप चुप, देखो बेचारा रोने वाला है।" कन्याओं ने एक साथ गर्दनें झुका कर मेरी आँखों मे झाँका, फिर मुँह बंद कर हंसी रोकने का यत्न कर खीखी करती हुई इधर उधर हो गई, मेरे वाली बोली, "हाँ तो जानेमन, किस फार्म की बात कर रहे थे तुम?"

जानेमन सुनते ही धीमे पड़ चुका म्यूजिक फिर से लाउड बजने लगा,
'जानेमन, जानेमन, तेरे दो नयन, ले के गए,
चोरी चोरी देखो हमारा मन, जानेमन , जानेमन , जानेमन।'

"ओ हेल्लो , कहाँ गुम हो जाते हो बार बार, आदत है मेरी, जानेमन"

'एग्जाम फ़ फॉर्म है, बहन का, यही जमा करवाना है'

 जानेमन सुन के काफी जोश आ गया था, पहले से काफी सही सुर में बोला अपुन ने।

"आजा जानेमन, चल मैं ले के चलती हूँ तुमको"

वो आगे आगे, मैं पीछे पीछे, मानो फेरों की रिहर्सल चल रही हो, ट्रैक चेंज गाना शुरू

"तारे हैं बाराती, चांदनी है ये बारात,
सातों फेरे, होंगे, अब हाथो में ले के हाथ,
सातों फेरे, होंगे, अब हाथो में ले के हाथ,
जीवन साथी हम, दिया और बाती हम"

अचानक वो घूमी , गाने को ब्रेक लग गया, बोली,"जानेमन ये लाइन देख रहे हो (ना जी मैं तो लाइन मार रहा हूँ चुपचाप), इधर ही जमा होगा फॉर्म, अच्छा मैं चलती हूँ, अरे हाँ....... अच्छा सुनो...... अच्छे बच्चे रोते नहीं हैं, इसलिए अब रोना नहीं ओके" 😊😊😊

वो पलट कर जाने लगी, सोचा कि कहूँ,
'रुक जा ओ जाने वाली रुक जा, मैं तो राही तेरी मंजिल का,
नजरों में तेरी मैं बुरा सही, आदमी बुरा नहीं मैं दिल का।'

वो बिना रुके चलती रही, मैं मन ही मन उसे पुकारता रहा, मत जाओ, ऐसे अकेला छोड़ के, अच्छा कम से कम नाम, पता फोन नम्बर कुछ तो बता के जाओ, सुनो ना, हद है, सुनो न प्लीज। वो चली जा रही थी, अचानक मेरे दिल का शाहरुख जाग गया, ना जाने क्यों पर ये विश्वास हो गया कि अगर ये तुमसे प्यार करती है तो पलट के जरूर देखेगी। वो सीधे चलती जा रही थी, मैं मन ही मन पलट मन्त्र का लगातार उच्चारण कर रहा था, अरे वा ये देखो वो सचमुच रुकी, जैसे कुछ याद आया हो, हाँ हाँ पीछे पीछे देखो मैंने ही तुम्हे पुकारा है, उसने अपनी साइड पॉकेट से फोन निकाला कोई नम्बर डायल किया फोन कान पर लगाया और मुड़ गई, ओये पीछे नहीं रे, अपने रस्ते पे ही, कोई मोड़ आया था न। मन किया जोर से चीखूं, ऐसे थोड़े न होता है, सारी स्टोरी का सत्यानाश हो गया ये तो, सैड सांग बनता है इस सिचुएशन में तो, इसलिए शुरू, " दिल मेरा तोड़ दिया उसने, बुरा क्यों मानूं, उसको हक है वो मुझे प्यार करे या न करे"😢

अपनी रोंदू शक्ल ले कर उधर रवाना हो लिए जिधर उसने कहा था कि लाइन लगी है, पन आइला, इत्ती बड़ी लाइन, यहाँ तो 3-4 हफ़्ते भी नम्बर नहीं आएगा, खुद से कहा मैंने, जवाब मिला, कोई और इलाज है तेरे पास ? नहीं न , तो चुपचाप लाइन में लग जा के, पता नहीं कहाँ से आ जाते हैं मुँह उठा के, हुंह। मुँह उठा के तो उसका डायलॉग है यार, सेम गाना फिर से "दिल मेरा तोड़ दिया उसने, बुरा क्यों मानूं, उसको हक है वो मुझे प्यार करे या न करे"😢

लाइन में जा कर खड़ा हुआ, तो एक सलवार कमीज वाली सांवली सलोनी भली सी लड़की बोली , आप लाइन में मत लगो, सीधे खिड़की में फॉर्म जमा कर दो।
'अरे वा, अभी समझा, इधर तो मेको रिजर्वेशन है, अल्पसंख्यक हूँ ना, एक इकलौता अबला नर, सबल कन्याओं की लाइन में दब कर, कुचल कर , पिस कर मर नहीं जाएगा? वैरी गुड वेरी गुड, सीधे खिड़की पर जा के फॉर्म पकड़ाया, भीतर से लेडी क्लर्क ने कजरारे कजरारे अपने कारे कारे नैना से पलक भर देखा, फिर ठप्पा लगा के चालान की मेरी प्रति बाहर खिसका दी। 'हो भी गया ?' उसने मुस्कुरा हाँ कहा।

वाह भई वाह, 'नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में, पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में ।'

लाइन के पास से गुजरते हुए देखा वो सांवली सलोनी अब भी खड़ी थी लाइन में, उसके पास जा के उसका फॉर्म लिया, खिड़की पर दिया, रसीद ले कर उसे दी, सारा काम ओनली 5 मिनट में, लगा अब वो आई लव यू नहीं तो कम से कम थैंक्यू जरूर बोलेगी। रसीद ले कर वो मुस्कुराई, आंखों में चमक आ गई, फिर पलट कर चुपचाप पतली गली से खिसक गई। नामुराद अहसानफरामोश छोरी, जा तेरी सेटिंग मेरे जैसे किसी पागल से ही हो।😉

वापसी में आते वक्त व्हीकल स्टैंड की तरफ देखा, स्कूटी थी पर उस पर बैठने वाली वो गायब थी। हम्म मालूम है, दिल मेरा तोड़ दिया उसने, बुरा क्यों मानूं, उसको हक है वो मुझे प्यार करे या न करे"😢 गाना बजाते हम वापस घर आ गए

#ज्यश्रीकृष्ण

©अरुण

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📃📃📃📃✍✍✍✍ प्यार के कागज़ पे, दिल की कलम से ♠♠♠♠♠


सब याद है कुछ नहीं भूली मैं,जानते हो घर में सबसे छोटी थी, सबसे लाडली भी, सबने सदा प्यार बरसाया, इतना कि ये प्यार आदत या अधिकार ही बन गया, जिसका मैं अपनी मर्जी से इस्तेमाल करती, कुछ भी अनपेक्षित या नागवार लगता तो मेरे कुछ बोलने से पहले आँसू भरी आंखे सब कह देती। पर उस दिन मैं सच मे बहुत खुश थी जब माँ बोली कि अब हम यहाँ गाँव में नहीं शहर में रहेंगे, शहर, नाम सुनकर ही कितना अच्छा सा लगा था, नई जगह, नया घर, नया स्कूल , नई यूनिफार्म, नई नई सहेलियाँ और ढेर सारे नए सपने , जाने कितनी कल्पनाएँ लिए मैं भी चली आई थी, शहर में, वहाँ जहाँ तुम भी रहते थे, पहले से, सच कहूँ तुम  बिल्कुल अच्छे नहीं लगे थे मुझे जब पहली बार तुम्हे देखा था, भोंदू लगे थे, ऐसे भी कोई घूरता है भला 😊. बुद्धूराम जो थे। याद है मुझे कि तुम हमारे घर कभी भी आ धमकते थे, जैसे बस बहाना मिलने की ही देर थी। जाने क्यों तुम्हारी नजरों से नजर चुराने लगती थी मैं, पर जब तुम जा रहे होते तो चुपके से देख लेने को जी चाहता। हमारी बड़ी बहनें सहेलियाँ बनी, तुम्हारी दी को मैं भी दी ही कहती पर अच्छा लगता जब तुम मुझे मेरे नाम से पुकारते, और मेरे लिए तो तुम थे ही बुद्धू 😊। हम सब बच्चे गुड्डे गुड्डीयों से खेलते, मेरी गुड़िया को ब्याह कर अपने गुड्डे के साथ ले गए थे तुम, बहुत रोई थी मैं फिर माँ ने समझाया कि गुड़िया ही तो है अच्छा है वो तो अपने गुड्डे के साथ चली गई न, बोली वापस ले देंगी तुमसे, पर फिर मैंने ही कहा वो गंदी गुड़िया थी मैं नई लाऊंगी,मेरी गुड़िया बोल कर माँ ने मुझे अपने गले से लगा लिया था जाने वो क्या था पर उस दिन से हर गुड्डे के चेहरे में तुम्हारी सूरत नजर आने लगी थी।

तुम नहीं जानते होंगे पर बेटी के बड़े होने की खबर पड़ोसियों को पहले हो जाती है, बुरा लगता था जब कुछ लोग रिश्तेदार की शक्ल में ये कहते कि दी के साथ साथ मेरी भी शादी कर दें, ऐसा जताते जैसे उन्हें बड़ी चिंता हो रही, माँ हँस कर टाल जाती कहती ये अभी छोटी है, मुझे रोना सा आने लगता।  हर बार जब भी तुम मिलते लगता आज शायद वो कह दो जो तुम्हारे मन में है, वो जो मेरे मन मे है , जो हमारे मन मे हैं, पर तुम बस खामोशी से सब कहना जानते थे, कॉलेज जाते वक्त हर रोज तुम्हे देख कर अजीब सी खुशी मिलती, तुम्हारी समंदर सी आँखे मुझे देख सितारों की तरह चमक उठती। मन मे हूक सी उठती न जाने कब से यहाँ इंतज़ार में खड़े होंगे, कौन जाने कुछ खाया भी होगा या नहीं, तड़प उठती मैं, मन होता भूल जाऊं कि ऐसे मामलों में शुरुआत हमेशा लड़के करते हैं, भूल जाऊं कि लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे,सब भूल कर चली जाऊं तुम्हारे पास, कहूँ कि प्लीज मुझे अपना बना लो हमेशा हमेशा के लिए, मन होता कि ये कहूँ वो कहूँ पर सब मेरी मिथ्या कल्पना से आगे न बढ़ पाता, तुम सही कहते थे डरपोक हूँ मैं, तभी मुझे कॉकरोच की मूंछ पकड़ कर डराते थे तुम, हाँ डर जाती हूँ छोटी छोटी बातों से भी , छिपकली और कॉकरोच से, बिजली के कड़क कर चमकने से, किसी के अचानक आ धमकने से, तुमको पाया नहीं पर खोने का डर हमेशा लगा रहता था। तुम कल्पना भी नहीं कर सकते मैं कितनी खुश हुई थी जब तुम्हारा लिखा वो खत पढा था, यही तो था जो बरसों से सुनना चाहती थी।

            लिखना नहीं आता, पर तुम्हारे साथ रह कर तुकबन्दी करने लगी, मेरी कविताएँ तुम्हारा स्वर पाकर सजीव हो उठती, मेरी सखियाँ तुम्हे बहुत साधारण पाती कहा करती कि यही मिला तुम्हे, पर तुम्हारी असाधारण साधारणता ने ही मुझे मोह लिया था, बुद्धू कहते कहते बुद्धू बन गई। जब तुम साथ होते तो कुछ भी बुरा याद न रहता, सब खुशनुमा हो जाता, कितना हँसते हंसाते थे ......पर...

***

कुछ भी मेरी मर्जी से नहीं हुआ यार, मुझसे किसी ने पूछा तक नहीं , बस बताया माँ ने एक दिन अचानक कि तुम्हें तुम्हारी दी कि शादी में देखते ही पसंद कर लिया था उन लोगों ने, पैसे वाले लोग है पर उन्हें कुछ नहीं चाहिए, तुम्हे रानी बना कर रखेंगे , बहुत खुश रहोगी , बिना कुछ कहे आँखे भर आईं थी , सब कह दिया था माँ से पर...... हो सके तो मेरी मजबूरी समझ लेना, मैं भाई की मार सह सकती हूँ पर खुद को जन्म देने वाली माँ का मरना कैसे देख लेती, न जाने कितने तरह से बांध दिया था मुझे, फड़फड़ा भी न सकी, तुम तो चले गए यार पर मैं हर रोज मरती हूँ तिल तिल कर के...., तुम्हारी गुनाहगार हूँ न,  हो सके तो मुझे माफ़ करना 😢😢!!

#ज्यश्रीकृष्ण

©अरुण

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🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...