🚶🚶🚶🚶🚶 ले चल मुझे भुलावा देकर ♠♠♠♠♠

बरसों बाद 'गाँव' जा रहा हूँ, अपने आप से मतलब रखने वाला शहरी जो हो गया हूँ, टाइम ही नहीं है किसी और के लिए, कई बार मन होता पर नही जा पाया, बहुत सी यादें जुडी हैं इस शब्द से, मेरे लिए गाँव का मतलब ढेर सारी मौसियों के घर, हाँ मेरी सभी चारों मौसियों की भी शादी मेरे ही गाँव में हुई है।  गाँव मतलब, बेरी के झाड़ वाली कांटेदार बाड़ वाली दीवारों वाले घर, खींप सीणीयाँ वाले वातानुकूलित झोंपड़े और ढूंडे, जिनमें जेठ की तपती दुपहरी में भी न जाने कैसे शीतल बयार बहा करती, तब भी जब बाहर हवा चलने का नामो निशान तक न हुआ करता। गाँव मतलब बालू मिट्टी के टीले, धोरे, जो कहते अभी अभी हज़ारों साँप यहाँ से गुज़रे हैं। कुछ धोरे तो इतने बड़े हो गए थे मानो खुद को पहाड़ कहलवाना चाहते हो,उन पर चढ़ कर पास के 3-4 दूसरे गाँव नज़र आते, गाँव मतलब होली, चंग की थाप पर थिरकते कदम, गींदड़ में लड़कों का लड़की बन होने वाला स्वांग, हंसी-ठिठोली। गाँव मतलब बरसात के पानी से बना अस्थायी तालाब 'नाडिया' और किनारे की बालू में लोट कर छलांग लगाओ नहा कर सब खुद को फेल्प्स की फीलिंग दे दो, सब कुछ वैरी सिम्पल। एंड फाइनली गाँव का मतलब जिंदगी, उससे जुड़े लोग, आत्मीयता, रीति-रिवाज और उन्हें निभाने की तन्मयता।  सब कुछ जैसे खो सा गया था, इसलिए इस बार जब मौसी जी के घर से बुलावा आया तो फटाफट प्रोग्राम बना डाला।

पूरे रास्ते गाड़ी चलाते वक्त गाँव की खुशबू को दूर से ही महसूस करने की चाहत के चलते बाहर तांक झांक करते आया, टीले अब उतने भूरे नहीं लग रहे, अकड़ कर खड़े रहने वाले धोरे भी अब सीधे हो रहे, जाने क्यूँ पर मेरा मन हरे भरे टीले स्वीकार नहीं कर पा रहा। मुख्य सड़क से गाँव की और घूमते ही मोहन चाचा नज़र आ गए, मोहन चाचा , इनकी गिनती गाँव के सबसे रईस लोगों में होती है , फूसकी (पुष्पा,चाचा की इकलौती बेटी) की शादी की धाक आज भी गांववालों के मन पर है,होती भी क्यूँ न  बेटी को तो इतना दिया की लड़के वालों को ले जाने में ही पसीने आ गए और तो और सभी बारातियों को भी चाँदी के बर्तन की यादगार भेंट दी गई थी। तब से बस अकड़ के चलते हैं , क्या मजाल जो किसी से सीधे मुँह बात कर लें। उनको देख मैंने गाड़ी से उतर उनके पांव छुए, बदले में आशीर्वाद रूप में 'हूँ' मिला, सीधे बोले कब आया?

'जी, बस अभी अभी चला आ रहा हूँ।'

चाचा एक और 'हूँ' में बात निपटा कर अपने रस्ते हो लिए। मैं उन्हें जाते देख रहा था। चाचा ऐसे तो न थे, बहुत मेहनती थे और ये शौहरत उन्होंने अपनी मेहनत से पाई थी विरासत में नहीं पर गाँव से बाहर शहर तक उन्हें ले जाने वाले पापा थे। आज उन्ही की संतान से अकारण ऐसी बेरुखी ? चलो जी कोई बात नहीं। सोचते सोचते गाड़ी बढ़ा दी।

गाँव में भी अब बाड़ की जगह ईंट की दीवारों ने ले ली है, कुछेक घरों में अब भी कांटेदार झाड़ की बाड़ है। दीवारें अच्छी नहीं लग रही मुझे, और कांटे खुशनुमा अहसास जगा रहे है, बड़ी हसरत से देखता आगे बढ़ा जा रहा हूँ। मौसी का घर झोंपड़ा नहीं रहा अब तो अच्छा खासा महल है , आज सज धज के और भी अच्छा लग रहा है पर झोपड़ी की चाह पूरी न होने से मन में कसक जैसा कुछ है। भीतर डीजे की कानफोड़ू ध्वनि गूँज रही। देखा कुछ बच्चे नाच रहे हैं 'भंडारे म् नाचे म्हारी बीनणी ए' गीत की धुन पर। डीजे है? पर ढोली क्यूँ नही ? स्वयं से प्रश्न करता मैं भीतर प्रविष्ट होने लगा। 'अरे रे रे रुक बेटा', मौसी जी अचानक एक थाली के साथ प्रकट हुई, 'टीका तो निकलवा ले, भाई की शादी में आया है इतना भी नही जानता? ' तप्त मन पर जैसे मरहम सी रख दी हो। गीला कुमकुम लगा भले ही माथे पर था पर शीतलता भीतर तक अनुभव हो रही थी। मौसी जी बहुत खुश नजर आ रही थी, स्वाभाविक भी था चार बेटे हैं उनके, सब के सब उम्र में मुझसे बड़े हैं, अच्छा खासा कमाते है, बिजनेस है रुपया पैसा भी है, और अब इकलौती बची हुई ख़ुशी भी उनकी होने जा रही थी, बेटे की शादी हो रही थी। अब तक शादी न हो पाने के कारण मौसी कुछ दुःखी से रहते थे पर अब सब ठीक होने जा रहा था।

सब शादी के कामों में लगे थे, मैं क्या करता, बोर होने लगा तो छत पर चला गया टहलने, सोचा देखूँ ऊपर से मेरा गाँव कैसा नज़र आता है। गाँव का शहरीकरण साफ नजर आ रहा था पक्के मकान, और उनकी छतों पर टंगे डी टी एच के छोटे छाते कुकुरमुते की तरह हर और दिख रहे थे। अचानक मदि भैया, मेरा मतलब मदन सिंह, मौसी जी के छोटे बेटे और हमारे बड़े भैया ने कंधे पर हाथ रखा।

'क्या यार, कब आए? और यहाँ क्या रहे हो अकेले में, खाना वाना कुछ हुआ के नही ?'

'हाँ भैया, खा लिया। नीचे कोई नहीं था बात करने को तो यहाँ आ गया।'

'अच्छा! चल अब नीचे चलते हैं। आजा।'

'हाँ भैया, पर एक बात बताइए। वो गोपाल काकोसा का घर है ना? ये उनके घर में साड़ी वाली औरत कौन है ?'

'हाहाहा, अरे भाई तू किस लोक से आया है, तुझे कुछ नहीं पता ? ये बहु है उनकी। रमेश की लुगाई'

'पर साड़ी? हमारी राजपूती ड्रेस क्यूँ नहीं पहनी इन्होंने ?'

'अरे भाई, वो हमारा पहनावा है इनका नही'

'मतलब?'

'मतलब ये भाई मेरे, कि हमारी जाति की है ही नहीं।'

'लव मैरिज है ?'

'हाहाहा तेरे यही समझ में आएगा शहरी बाबू। तू यही मान ले। चल अब आजा।'

नीचे आए, तो बहुत सारे परिचित और कुछ अपरिचित चेहरे घूम रहे थे। मैं वही भैया के साथ बैठ गया। सामने एक कमरा बाहर से बंद है, एक नज़र भर देखा फिर ध्यान हटा कर भैया से पूछा , अच्छा भैया बारात कहाँ जाएगी ?

भैया फिर से हंसने लगे। समझ नही आया की भैया किस पर हंस रहे, मेरी बात पर या मुझ ही पर :| और इसमें हंसने जैसा क्या था आखिर ? अपनी झेंप मिटाने को बोला की भैया मैं गाँव का चक्कर लगा के आता हूँ और बाहर निकल आया।
 ठाकुर जी का मंदिर आज भी वैसा ही है, सब पूजा-अर्चना करने जाएंगे पर पैसा-खर्चना कोई नहीं करता। चूने और पत्थर से बनी दीवारों तक को दीमक चाट गई हैं, प्रसाद पर मंडराते मकोडों के झुंड आज भी वैसे हैं जैसे पहले दिखाई देते थे। 'पीर जी के रोजे' के पास मेरी दूसरी मौसी का लड़का लक्ष्मण  नजर आया, शायद खेत से आ रहा था। सोशल मीडिया की चपेट में आकर ये भी लक्ष्मण से लकी हो गया है मुझे देखा तो भाग के करीब आया, गले लगाया बोला आप कब आए भैया, चलो घर।

सरोज मौसी ने खाट पकड़ रखी थी। मौसा जी तो अब रहे नहीं , उनके सिरहाने खड़ी लड़की ने घूँघट खींचा और अंदर चली गई। पूछा तो पता लगा लकी मियां ने शादी बना डाली किसी की लड़की भगा के, मौसी जी बताते वक़्त कुछ उदास नज़र आए फिर बोले 'चल भाग के ही सही आई तो अपनी जात वाली। आजकल तो जिसे देखो दूसरी जात में परणीज (विवाह) रहा है। और जात पात अब कौन देखता है सबको बीनणी चाहिए चाहे जैसे भी आए। पहले लड़के वालों की कदर होती थी अब लड़की वालों की है।' उनके शब्दों के सच के साथ परेशानी के निशानी उनकी पेशानी पर दिख गए, 2 लड़के और हैं अब उन्हें कौन अपनी लड़की देगा। मैं चलने को हुआ तो मौसी जी बोले, अपने भाइयों का ध्यान रखना, कोई लड़की हो तेरे ससुराल में तो बताना। 'जी मौसी जी, ये भी कोई कहने की बात है।' कहकर उनके पांव छुए और बाहर आ गया। लकी मेरे साथ ही हो लिया।

गांव के लोग अब भी कुएँ का ही पानी पीना पसंद करते हैं, लकी बता रहा था। सुना था कोई 'जर्मन योजना' से पालर पाणी घर घर पहुँचाने की स्कीम आई थी पर लोगों ने नकार दिया।

मुझे इन बातों में कोई रूचि नहीं बात बदलते हुए पूछा,' इस बार की होली कैसी रही ? '

'कैसी होली भैया, कोई होगा तभी तो रंग उड़ेगा।'

'मतलब?'

'अब किसके पास वक़्त है होली के लिए, सब बाहर रहते है पैसे कमाने का भूत सवार है सब पर, जिसके पास सब है उस पर भी, एक अजीब सी होड़ है सबसे आगे निकल जाने की, पर न जाने कहाँ'

'अच्छा छोड़ वो सब, प्रकाश भाईजी की बारात कहाँ जा रही है तुझे पता है ?'

'हाहाहा, क्या भैया आप भी, आपको नहीं पता ? बारात कहीं नहीं जा रही'

'हैं ? मतलब ? मैं समझा नहीं'

'अरे भैया, बीनणी पहले ही आ गई तो बारात की जरूरत क्या है ?'

'तू ढंग से बताने का क्या लेगा'

'हाहाहा बताता हूँ बताता हूँ, देखो भैया बारात दुल्हन को लिवाने ही तो जाया करती है न, अब सिस्टम बदल गया है, दुल्हन पहले आ जाती है तो लिवाने का कोई झंझट ही नहीं'

मुझे कुछ समझ नही आया फिर से, लकी को गुस्से से घूरा तो वो फिर से कहने लगा,' भैया यहाँ लड़कियाँ बची ही कहाँ है शादी के लिए, इक्का दुक्का जिनके हैं वो सब चाहते हैं कि उनकी बेटी की शादी तो कलेक्टर से करेंगे, गलत नहीं हैं ऐसा सोचना पर फिर बाकि लड़को का क्या होगा ? आपको पता है गाँव में इतने कुँवारे है कि कान काटो तो कुआं भर जाए। अब इन्ही कुँवारों ने ये स्कीम चलाई है, दूर दराज से किसी गरीब की बेटी को ले आते हैं पैसा देकर, उनका भी फायदा और इनका भी, अपने प्रकाश भैया भी उनमें से एक है। '

लकी चुप हो गया पर मेरे कान में 'गरीब की बेटी' शब्द गूँजता रहा। सोचने लगा,अपने धन से किसी का आँगन आबाद करने वाला तो सबसे बड़ा धनवान हुआ, पर क्या स्त्री की यही नियति है ? उसे किसी चीज की तरह खरीदा और बेचा जाए? जो बिक कर आई होगी उसे तो पता भी न होगा की खरीददार कौन है, कैसा है ? सोचने लगा, क्या रमेश और प्रकाश भाईजी जैसे लोग गलत कर रहे हैं? मौसी जी के यहाँ डीजे अब भी पूरी आवाज़ के साथ दहाड़ रहा था, पर मुझे लग रहा था जैसे ये शोर किसी की मजबूरी की सिसकियाँ दबाने का प्रपंच मात्र है, घुटन-सी होने लगी, चुपचाप वहाँ से निकल कर वापस लौट चला। ये मेरा वो गाँव है ही नहीं 😢😢😢

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

👽👽👽👽👽 पवित्र पापी ♠♠♠♠♠

स्कूल ऑफिस में हंगामे का माहौल है, 9 वीं कक्षा का एक छात्र और एक छात्रा,दोनों की उम्र लगभग 15-16 वर्ष) को कक्षा में अश्लील हरक़तें करते पकड़ा गया था। कक्षा के विद्यार्थी खुद उनकी शिकायत ले कर आए थे इसलिए संदेह के लिए कोई स्थान नहीं।  लड़के को पहले भी 'सुधर जाने की' कई चेतावनियाँ दी जा चुकी है इसलिए विद्यालय हित में उसकी टी सी काटना ही बेस्ट ऑप्शन है, सबका यही मत है। लड़के के मामा आए हैं अंतिम प्रयास करने, शायद लड़का कुछ पढ़ जाए। पर लड़के की आँखों में से शर्म गायब है और अब स्टाफ की आँखों में दया नज़र नहीं आती। टी सी ऑनलाइन कटेगी, मुझसे कहा गया तो शुभ कार्य में देर करना उचित न समझा। लड़का और उसके मामा चले गए , शर्मिंदगी से लड़की ने स्कूल आना बंद कर दिया, येप्पी .....लम्बी अनुपस्थिति का बहाना मिल गया, उसका भी नाम कट गया। स्कूल अब पाप मुक्त हो रहा है भई!

***

कक्षा 8 का एक लड़का, उम्र 14-15 वर्ष , पढ़ाई में डब्बा, जब भी क्लास होती तो हमेशा चुपचाप रहने वाला, आज अपराधी की तरह हाथ बांधे खड़ा था। एक और छात्र उसकी शिकायत जो लाया था, बोला सर इसने पूरी क्लास के सामने मुझे उल्टा पटक लिया......और......सर ये बहुत बुरा है।

सच में बहुत गुस्सा आया, कस के 4-5 तमाचे लगाए उसके और कहा अभी निकलो यहाँ से, और अपने पापा को बोलो की आकर टी सी लेकर जाएं, उन्हें लिए बिना वापस मत आना। लड़का खिसिया हुआ, बोला बैग ले जाउँ, मैंने कहा नहीं।

थोड़ी देर तक स्कूल के गेट के पास खड़ा रह कर लड़का वापस आया बोला, 'म्हारे घर कोई कोनी' (हमारे घर पर कोई नहीं है)

मैंने उसी गुस्से के साथ उसे कहा, 'कोई बात नहीं जब आ जाए तब आना पर अकेले मत आना। अब निकल।'

'बैग ले जाऊँ जी ?'

'ले जा, दफा हो।'

और वो दफा हो गया सच में, वापस नहीं लौटा। न उसके घर से कोई आया न वो खुद। आर टी ई में भी 45 दिन की अनुपस्थिति के बाद नाम काट सकते है, ड्रॉप आउट हुआ न ? कोई बात नहीं। कचरा निकला अच्छा है न। स्कूल को पाप का अड्डा नहीं बनने देना है।

***

आज ऑफिस में कुलदीप सर क्लास ले रहे है, कक्षा 7 के 2 छात्र धर्मपाल और राकेश,दोनों की उम्र लगभग 10-11 वर्ष, पकड़े गए थे। स्कूल के गेट के पास जो सरदार जी की छोटी सी गोली-टॉफ़ी वाली दुकान है वहाँ से ये लोग टॉफ़ी का मर्तबान चुरा लाए थे। पहले खूब पिटाई की गई, फिर पुलिसिया पूछताछ हुई धर्मपाल गेंहू के साथ पीसने वाली घुन्न निकला, वो बस चुराई हुई टॉफ़ी खाने वालों में था, राकेश मुख्य अपराधी के रूप में उभर कर सामने आया। पूरी प्लानिंग और योजना को कार्यरूप में रूपांतरित करने में उसी की मेहनत थी। धर्मपाल को पहली गलती पर माफ़ कर दिया, पर राकेश को घर भिजवाया गया, अरे भई पाप मुक्ति अभियान चालू आहे!
विनोद जी बता रहे, यार ये लड़का क्रिमिनल माइंड है, पिछले साल इस अकेले ने पूरी क्लास के बच्चों की किताबें फाड़ डाली थी। और यही है जिसने भंडारी का सर स्लेट मार के फोड़ दिया था, कल ये 6 कक्षा की लड़की **** के बारे में बात कर रहे थे, ये कम्बख्त खुद उसके चक्कर में हैं, और कह रहे थे इसका इसके उसके साथ चक्कर और पता नहीं क्या क्या.........

***
आज स्कूल से आते वक्त 'उस लड़की' को अपने घर की बड़ी महिलाओं के साथ कपास चुगने जाते देखा। निम्न आय वर्ग के परिवारों की महिलाएँ यहाँ कपास चुगने जाया ही करती है पर....ये बेचारी !!!?  सोचा एक हरकत और सब गड़बड़ कर लिया न, बिना बाप की बच्ची मुझे तुमसे सहानुभूति थी पर.......।  मन भर आया पर खैर! बाइक आगे बढा दी, रेलवे क्रॉसिंग पर उस लड़के को भी देखा जो अपने पिता को स्कूल नहीं ला पाया , एक लड़के के साथ उसकी बाइक पर पीछे बैठा था, ये तो शहर का छंटा हुआ बदमाश है इसके साथ ? पहले ही बिगड़ा हुआ है, अब तो सुधरने की गुंजाईश ही न रहेगी। 😢😢😢

आज राकेश भी अपनी  दादी को स्कूल ले कर आया है, नाम जो कटने वाला है, डर सबको लगता है गला सबका सूखता है। उसकी दादी की और देखा , लगभग 75-80 वर्ष की बूढ़ी औरत जिसने लम्म्म्बा सा घूँघट निकाल रखा था। उसके कुछ भी कहने से पहले मैंने बोलना शुरू कर दिया, ये ये है वो है ये करता है वो करता है पढ़ाई में जीरो है होमवर्क नही करता कभी भी, और तो और चोरी की एंड कुछ बातें तो बताते हुए भी शर्म आती है, क्या कहें बोल भी नही सकते वगैरह वगैरह। आप इसकी टी सी ले जाओ बस। मैंने ढिठाई से कह दिया।

 बेचारी वृद्धा धम्म से नीचे बैठ गई, बोली बेटा क्या करूँ इस उम्र में काम करती हूँ लोगो के घर पर, बाप मर गया इसका , माँ इसे मेरे पास छोड़ कर किसी और के साथ चली गई, अनपढ़ हूँ कुछ पढ़ा लिखा भी नही सकती संस्कार देने का वक़्त नही मिलता। और अब इस उम्र में मुझ बुढ़िया की कौन सुनता है ये भी नहीं सुनता हो सके तो तुम सुन लो, इसे स्कूल से मत निकालना, मैं तुम्हारे पाँव....... कहकर वो मेरे पैरो की और झुकने को हुई। मैंने उनके हाथ पकड़ लिए, जाने क्यों और कैसे आँख से एक बूंद ढुलक कर उनके हाथ पर गिरी, बस इतना ही कह पाया कि माताजी आप जाओ, कोई टी सी नहीं काटेगा। हो सके तो इसका ध्यान रखिए, हम भी विशेष ध्यान देंगे। बूढी औरत चली गई, घण्टों तक मेरे भीतर कुछ कचोटता कुछ टूटता सा रहा। स्कूल  पाप मुक्त हुआ या नहीं पर लग रहा था जैसे सबसे बड़ा पापी तो मैं ही हूँ।  हे मेरे कृष्ण....😢😢😢😢😢

#जयश्रीकृष्ण
©अरुण

👽👽👽👽👽 उल्लू ♠♠♠♠♠

हर शाख पे उल्लू बैठा है,
हर शख्स से दिल घबराता है,
जाने क्या होता गोलमाल,
चक्कर पे चक्कर आता है।
.
घनघोर अंधेरा घूम रहा,
है कौन जो यूँ टकराता है,
बिन बादल बारिश बरस रही,
मेंढक भी कोई टर्राता है।
जाने क्या किसे ढुंढने फिर,
है कौन जो यूँ चिल्लाता है?
हर शाख पे उल्लू बैठा है..
.
बड़ा अजब खेल सा होता है,
बड़ा गज़ब जो मेला होता है,
है कोई दुःख मे चूर यहाँ,
कोई अपने पे रोता है।
नाहक कुछ शोर मचाते हैं,
कुछ शोर से लगते थके हुए,
कुछ हैं जो ठगने आए हैं,
और बैठे हैं कुछ ठगे हुए।
जाने किसको क्यूँ जानबूझ,
है कौन जो यूँ बिलमाता है,
हर शाख पे उल्लू बैठा है......
.
काँटों के भरे बँवडर में,
दिखते किसलय भी खिले हुए,
हैं डरे डरे ,सुरभित,सिमटे,
और आशंका से घिरे हुए।
देखो यहाँ पुष्प कुचलने को,
उल्लू की नज़रें गड़ी हुई।
कईयो को कच्चा खाने की,
भुखी आशाएं पड़ी हुई।
भगवान क्यूँ चुप चुप बैठा है,
जाने क्यूं देर लगाता है।
हर शाख पे उल्लू बैठा है,
हर शख्श से दिल घबराता है...!

💭💫💭💫💭 तुझे याद हो के न याद हो ♠♠♠♠♠

मुझे याद है जब तुम हमारे पड़ोस में रहने आई थी, मैंने पहली बार किसी अनजान को देख अजीब सा अपनापन महसूस किया था। जब तुमने अपनी काली बड़ी विस्मित आँखों से मुझे घूरा था तो मैं झेंप गया था और तुम खिलखिला दी थी , तुम्हारा हँसना कितना अलग था जैसे घुघरुओं की खनक। तुम्हे पता है जब तुम्हारी और मेरी दीदी बहने बनी तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई थी। उनको मैं भी 'दी' कहता था, बहन वाला नही पागल 'वो' दूसरे वाला।😊

   तुमको हर बार बस इक झलक देख लेने की कोशिश हमेशा करता था कभी तुम्हारे घर के खुले दरवाजे में से, और कभी दरवाजे की ओट में झांकती परछाईनुमा आकृतियों में तुम्हारी परिकल्पना करता कि शायद ये तुम ही रही होगी। जब कभी दरवाजा बंद दिखता अच्छा सा नही लगता , गुस्सा सा आता था। बड़े हो रहे थे , तुम भी और मैं भी, और मेरे सपने भी, तुम उनसे अनजान रही होगी, शायद, पर तुम्हारी रहस्यमयी मुस्कान से लगता, जैसे जगती आँखों के सपनों की खबर तुमको भी थी।
एक दिन माँ, हाँ बाबा तुम्हारी माँ ने कहा था इसे थोड़ा पढ़ा दिया करो। ट्यूशन शुरू हो गई थी मैं तुमको पढ़ाता और पढ़ता भी था। कभी खो जाता तुम्ही को देखते देखते, फिर तुम झुंझला कर मुझे हिला देती, मैं तो पहले से हिला हुआ था, तुम्हारी छुअन से धुआं धुआं हो जाता। तुम मुझे देख कर मुस्कुराने लगती, कहती बुद्धू हो तुम तो सच में।

कॉलेज के उन मिट्ठू से दिनों की याद तो तुम्हे भी आती होगी, मैं हमेशा इंतज़ार करता था तुम्हारा और एक के बाद एक कई बसें गुजर जाती अनन्त पथ पर, तुम्हारा साथ जो चाहिए था , आधा घण्टा तो बहुत होता है आधा पल भी होता तब भी वही किया होता, कितनी हैरानी से देखा था तुमने जब संडे को भी वैसे ही इंतज़ार करते पाया था मुझे, और फिर से कहा था 'बुद्धू ही हो तुम'।

तुम्हे खुल कर कुछ भी कहने से न जाने क्यूँ एक डर से लगता था, डर सब कुछ खो देने का, सब दोस्त कहते बिना कहे क्या पाओगे, फिर उस दिन बड़ी घबराहट से,डरते डरते मैंने तुम्हे कॉलेज जाते वक्त किताब में 'सब-कुछ' लिखा एक खत रख कर दे दिया था। तुमने भी बड़ी चालाकी से आते वक्त किताब वापस कर दी थी, पर खत पढ़ा था तुमने, तुम ये भले न कहो पर किताब के बदले पन्ने गवाही दे रहे थे। तुम जन्मदिन भी नही मनाती थी अपना,और पता है वो मैं ही था जो तुम्हारे हर जन्मदिन पर कार्ड दे जाता था तुम्हारे घर चुपके से, तुम सोचती ये बिना नाम का कार्ड न जाने कौन बुद्धू लाया।

कौन जानता था तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, मैं तो अपने मन की जानता हूँ जहाँ बस तुम ही तुम थी। मुझे पता है जरूर उस दिन जब तुम अपनी सहेली के साथ मेरी और इशारा करके खिलखिला रही थी तो जरूर मेरा मज़ाक उड़ा रही थी। बहुत रोक लेना चाहा पर दिल भर आया, दो दिन तक घर से बाहर नही निकला था मैं। तुम आई थी फिर बहाने से, कि नोट्स चाहिए, और चुपके से आँखें बंद कर दी थी मेरी। पर तुम तो आँखे बंद रहे तब भी नज़र आ जाती हो, नज़र आ गई थी और पहचान लिया था तुम्हें। तुमने सॉरी बोला था पहली बार, फिर मुस्कुराई और मैं खो गया था उसी मुस्कुराहट में।

उस रोज अंताक्षरी चल रही थी, और तुम मेरी और थी (मैं तो हमेशा से तुम्हारी और था, आज भी हूँ), बहुत रात ही गई थी, सब हंसी मजाक कर रहे साथ साथ,और अचानक तुमने मेरा हाथ पकड़ा था। क्या कहूँ क्या करूँ कुछ समझ ही नही आया, बस दिल में हज़ारों घण्टियाँ एक साथ बज उठी थी, मैं हाथ पर तुम्हारे हाथ की गर्माहट महसूस कर पा रहा था, गला सूख गया था। फिर टेढ़ी नज़र से तुमने देखा और मुँह बिचकाते हुए धीमे से कहा था बुद्धू ही रहोगे तुम तो।

मैं छत पर पतंग उड़ाता तो तुम भी आ जाती थी अपनी छत पर,और तब पेच लड़ने लगते, आसमान में भी और जमीन पर भी। फर्क इतना था कि जमीन पर हर बार मेरी पतंग कट जाती और लूटने वाली हर बार तुम ही होती। तुम कविताएँ किया करती थी , गुड़िया पर, घर पर , परिवार पर, बड़े अच्छे बोल हुआ करते थे, मुझे कुछ समझ नही आते, अच्छे लगते तो बस इसलिए क्योंकि वो तुम कह रही थी। मैं क्रिकेट खेलता गली में तो तुम मेरे लिए बाहर से हूटिंग करती, और जोश जोश में उड़ा दिया करता बॉल, जो सीधी सुनारों के घर उनके खाली पड़े नोहरे की और दौड़ लगाती, सब कहते जिसने फेंकी है वही लाएगा, मैं थोड़ा गर्व और थोड़ी खिसियाहट लिए बॉल लाने जाता ।

 तुम्हारी दीदी की शादी में तुम परी लग रही थी, बारात में आए ज्यादातर सब बस तुम्हे ही ताक रहे थे टुकुर टुकुर, बहुत गुस्सा आ रहा था उन सब पर, एक बुढ़ा तुम्हारे पापा से कह रहा था की ये बेटी हमे दे दो। क्यों भई क्यों दे दो आखिर, और कोई नही मिली तो मेरी वाली पे ही डाका। सॉरी यार, मन ही मन बुढ़े को खूब गालियाँ दी थी मैंने,दी की शादी न होती तो पता नही क्या करता,  जानता हूँ बुरा हूँ मैं पर क्या करूँ यार कंट्रोल ही नही हो रहा था। तुमने कहा था फ़िक्र न करो कुछ बुरा न होगा और मैं मान गया था हर बार की तरह।

माँ कहा करती थी की तुम और मैं बराबर हैं उम्र में, फिर तुम्हारे घरवालों को क्या जल्दी पड़ी थी तुम्हारी शादी करने की। और तुमने तो कहा था कुछ बुरा न होगा,  तुमने तो कभी खुद से बताया भी नही, बस घर आना बंद कर दिया। इज्जतदार घर की शरीफ लड़की जो हो, रिश्ता हो गया तो जो रिश्ता जुड़ गया था उसे ठोकर मारने में कोई बुराई कैसे नज़र आती। पता है मैं बहुत रोया करता था, तुम्हे शायद कुछ भी याद न हो , पर मैं कुछ भी नही भूला। ठीक कहा था तुमने बहुत बुरा हूँ मैं अपना तो छोडो अपने घरवालों का भी ख्याल नही किया, बुद्धू हूँ ना, तुम्हारे बिन नही जी पाया यार 😢😢😢😢।

#जयश्रीकृष्ण
©अरुण

Rajpurohit-arun.blogspot.com

🌛🌝🌙🌜🌚 मेरा चाँद मुझे आया है नज़र ♠♠♠♠♠


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'औरत होना ही गुनाह है और किसी की पत्नी होना उससे भी बड़ा गुनाह, सुबह से भूखी बैठी हूँ, इन्हें देखो कोई फ़िक्र नही। खुद को खाने का एक निवाला तक नसीब न हो तो पता लगे, खुद तो खा पी कर मौज उड़ा रहे होंगे सुबह से, यूँ नही की कम से कम आज तो जल्दी आ जाते। हुँह बैठे होंगे वही ऑफिस में दोस्तों के साथ गप्पे लड़ाते हुए, पता नही कौन दोस्त है, दोस्त है या दोस्तनियाँ किसे पता ? प्यार वयार सब ढकोसला है , सब झूठी बातें है, और मुझे देखो सुबह से एक बूंद पानी की भी नही पी। गला सूख रहा है, पर मेरी किसे परवाह ?'

' पहला करवा चौथ है मेरा, कितने अरमान होते है हर लड़की के,मेरे भी थे, सोचा था ससुराल में जा कर अपना हर वो ख्वाब पूरा करूँगी, जो मायके में रह कर पूरा नहीं कर पाई, हुँह किसे पता था नसीब ही खराब है मेरा। जन्म दिन पर भी सिर्फ एक टुच्चा सा केक काटा कोई गिफ्ट विफ्ट नही, गिफ्ट तो छोडो कोई मूवी तक नहीं दिखाई। हर चीज में रोना शुरू हो जाता है इनका। बोलेंगे 'गिफ्ट कहाँ से लाऊँ, घर की हालत तो तुम्हे पता ही है, समझा करो ना', 'सिनेमा यहाँ है कहाँ ,छोटा शहर है ना, कभी बड़े शहर चलेंगे तो जरूर ले चलूंगा बाबा, आई लव यू जान'।

'हुँह लव माय फुट, घर के लिए एक फ्री की नोकरानी चाहिए थी सो ले आए, शादी का नाम देकर। '

'फोन भी ऑफ , हद है, गुस्सा तो इतना आ रहा है ना कि क्या बताऊँ, ठीक है रखो फोन बंद, मुझे आपसे क्या करवाना है, आप तो चाहते ही यही हो मैं मर जाऊँ घुट घुट के। '

'चाँद भी नही दिख रहा अभी, कैसे दिखेगा ? अख़बार में भी तो आया था कि शाम 8:40 को चन्द्र दर्शन होंगे। 8:40 लिखा है तो 9 बजे ही मान के चलो, चाँद भी तो आज बहुत मनुहार के बाद निकलता है। पता नही ये कहाँ रह गए, आ जाओ न प्लीज, मुझे कोई गिफ्ट नही चाहिए, कुछ भी नही, बस आप आ जाओ। 😢😢'

ट्रिन ट्रिन , ट्रिन ट्रिन, ट्रिन ट्रिन

'हेल्लो, जी  नमस्ते भाभी जी, मैं अतुल बोल रहा हूँ , भैया का एक्सीडेंट हो गया है, आप जुबिन हॉस्पिटल आ जाओ जल्दी, प्लीज'

हड़बड़ाहट, बदहवासी, और प्रार्थना

'आइए भाभी, भैया यहां हैं, बेहोश हैं अभी'

'क्या हुआ इन्हें, कैसे हुआ'😢😢

' आपके लिए ये कान के बुँदे लाने गए थे, सुबह से रट लगा रखी थी इनके लिए, 2 महीने से ओवर टाइम भी कर रहे थे, भाभी भैया आपसे बहुत प्यार करते हैं ना ? वरना आजकल तो औरते भी अपने पति के लिए व्रत नही रखती, भैया तो सुबह से भूखे प्यासे थे, बोल भी रहे थे की चक्कर आ रहे हैं , जेवेलर्स शॉप के बाहर निकल कर जल्दी से आप तक पहुंचना चाह रहे थे , ऑटो में चढ़ते वक़्त एक कार की टक्कर लग गई।'
करुणा सन्न थी, आँसू अविरल बह रहे थे, उसके गर्म आँसू लगातार अनुज  के हाथ पर गिर रहे थे, सहसा अनुज ने दवा के नशे से भारी और बोझिल उनींदी आँखे खोल ली। तभी करुणा के फोन पर रिंग बज उठी
"मेरा चाँद मुझे आया है नज़र".
#जयश्रीकृष्ण
©अरुण

🚌🌚⛄🔥🍵🚌 वन्स इन ए कोल्ड नाईट ♠♠♠♠♠


जयपुर जाना है, अरे अपना वही एक काम और किसलिए , एग्जाम है यार। स्टूडेंट लाइफ में ज्यादा लगेज नही रखने का , ढोने का टँटा तो होता ही है एग्जाम सेंटर वाला मचमच करता है सो अलग, सब पता है मुझे, मैं तो बस से जा रहा हूँ ना तो लगेज वगेज का कोई झंझट ही नही। आज शाम की बस है , कल सुबह जयपुर , 9 से 10:30 एग्जाम, फिर शाम की बस से वापस, नेक्स्ट सुबह होम स्वीट होम, सब प्रोग्राम फिक्स है अपना। 😊 मारवाड़ी कभी रिस्क नही लेते।

शाम हो गई, बस अड्डे पर चहल पहल है काफी, सबको कोई न कोई सी ऑफ करने आया है मुझे कोई भी नही, अब अपना तो रोज का काम है कभी इधर -कभी उधर तो यूँ कि घरवाले भी सी ऑफ के पंगे से ऑफ हो गए मने पक गए हैं सो अब कोई नहीं आता छोड़ने । जेब में हाथ डाले टहल रहे हैं हम भी, 'आज मौसम बड़ा बेईमान है बड़ा' गाया जा रहा है मन ही मन धरमिंदर की माफ़िक, काश कोई हमें भी मजबूर कर देती तो मन में नहीं खुल कर गाते, मन ही मन में ट्रैक चेंज , 'मुझसे मुहब्बत का इजहार करती, काश कोई लड़की मुझे प्यार करती', ओहो पता है मुझे कि जनवरी है तो क्या हुआ, सब इंतेज़ाम कर लिए हैं, इधर आओ ये देखो अंदर 2 बनियान पहनी है उनके ऊपर 'रूपा' की इन्नर बोले तो गर्मा गर्म, फिर शर्ट देन ये रेग्जीन वाला कोट, सर्दी की माँ की आँख में सुरमा। अब बोलो क्या बोलते हो , हमेशा याद रखने का ,क्या, मारवाड़ी कभी रिस्क नही लेता। खी खी खी 😊😊

कल्पना ट्रेवल्स , 1X2 बस है , सिंगल सीट पर हम विराजमान हो चुके है, बाक़ी लोग भी अपनी अपनी गोमती धरने के लिए सीट/स्लीपर का रुख कर रहे हैं। बस अब चलने को है, भीतर स्नैक्स का दौर चल चुका है अंकल चिप्स के लिफाफों में हाथ घुसने का शोर बस के इंजन की आवाज़ में भी सुना जा रहा है, हम घर से रोटियाँ ठूस कर आएं है गले तक, नो रिस्क रे बाबा, रास्ते के भोजन का क्या भरोसा कैसा हो? मिले भी की नही? अपन आराम से सीट पर पसरे पड़े हैं। हुँह जनवरी, बस में लोग है इंजन है, सब गर्म गर्म हो जाता है, कोई ठंड वंड नही लगेगी।

बस चल पड़ी, सब यात्री दुबक कर बैठे है। चलने के साथ साथ बस भी ठंडी होती जा रही है। अभी तक हालात काबू में है, मुझे अपने रेग्जीन के कोट और रूपा की गर्म वाली इन्नर दोनों पर पूरा भरोसा है। शीशे पूरी तरह से कस के बंद कर लिए है मैंने भी, पर अगर गलती से भी हाथ शीशे से छू जाए तो सिरहन सी दौड़ रही है। मैंने हाथ पेंट की जेब से निकाल कर बगल में दबा लिए हैं, संगरिया अड्डा पहुँच गए, बस कोल्ड स्टोर वाली फीलिंग देगी सोचा न था। रूपा और रेग्जीन दोनों पर भरोसा बनाये रखना चाहता हूँ पर ठंड की ताकत उन दोनों की सम्मिलित शक्ति से कई गुना ज्यादा मालूम पड़ती है। ध्यान में बार बार ठंड ठंड और ठंड यही आ रहा है। भीतर नजर दौड़ाई सब के सब जुगाड़ साथ लाए हैं, कोई मोटा कम्बल तो कोई रजाई को अपने चारों और करीने से लपेट रहा है। सही है, वैसे थोड़ा बहुत तो लगेज लेकर ही आना चाहिए, नहीं लाए तो अब भुगतो। सर्दी सहन शक्ति की परीक्षा ले रही है और अभी तो पूरे 9 घण्टे और लगेंगे। 😱😱😱

लगता है बस तो जैसे बाहर भीतर एकात्म को प्राप्त कर चुकी, सर्दी अब सहना असम्भव हो रहा है, ऊपर तो फिर भी ठीक है पर शरीर का निचला हिस्सा तो सुन्न होने लगा है, 😨😨, बगल से हाथ निकाल कर पाँवो को रगड़ रगड़ कर गर्म कर रहा हूँ, अख़बार में बहुत सी खबरें होती है जिन पर कोई ध्यान नहीं देता, मैं भी नही, कल ऐसी ही एक और खबर छपेगी, "ठंड से एक मरा", 😢😢 राजियासर में बस हमेशा रूकती है ड्राइवर कंडक्टर और सवारियाँ सब चाय पानी पिया करते है, पहले जब भी ड्राइवर यहाँ रोक करता था तो गुस्सा आता था , क्या जरूरत है 2 घण्टे हुए है बस और इनको चाय चाहिए हुँह, पर आज ड्राइवर पर बड़ी श्रद्धा हो आई, मन ही मन उसे आशीर्वाद दिया, बस से बाहर निकलते ही देखा कुछ लोग थोड़ी सी आग जला कर ताप रहे है, वाह परमानन्द यही परम् सत्य है, जीवन का सर्वोत्तम सुख, मैं भी तापने में लगा हूँ, मर रहे पैरों में थोड़ी जान आने लगी है। पर ये क्या, बस ने पौं पौं बजा दिया, उफ़्फ़ इतनी जल्दी , ऐसी भी क्या जल्दी है इनको जयपुर जाने की 😬😬😬। एग्जाम तो 9 बजे है पहुँच जाएंगे आराम से, गधा कहीं का।

बस में घुसते ही अपनी लाचारी पर रोना और गुस्सा दोनों आ रहे हैं ,मन तो कर रहा है किसी का कम्बल छीन लूँ पर सुना है सर्दी में पिटाई हो तो दर्द लम्बे समय तक रहता है। सब नींद में घूक हो रहे है बेशर्म, देखो दुष्टों तुम्हारी ही प्रजाति का एक मासूम नर अकाल मृत्यु की और बढ़ रहा है, दाँत जबर्दस्ती किटकिटाने लगे है, पैरों के साथ साथ अब तो  हाथ भी काँप रहे , और हाथ ही क्या होल बॉडी काम्पिंग 😢, अब इससे पहले की दिमाग सुन्न होकर काम करना बंद कर दे कुछ कर, कुछ कर "हिरन", अब ये मत पूछना कि हिरन कौन, अरे मैं ही हूँ जिसकी दास्ताँ सुनते सुनते आप यहाँ तक आ गए, आप भी सोचिए कि क्या करूँ, कुछ नही सूझा मुझे तो कोट की जिप खोली, अच्छा खासा खुला खुला सा है ये , पैर मोड़ लिए कोट ऊपर से बंद, छोटा सा बैग लग रहा हूँ, थोडी सी राहत, अपने शरीर से गर्मी बाहर नही जाने दूंगा, बाहर की नश्तर जैसी हवा अब कम छू पा रही है, सीट पर बैठने में बहुत असुविधा हो रही पर मैं खुश जैसा ही हूँ। पर कब तक, ठंडी हवा ने हार थोड़े न मानी है, भीतर भीतर मेरी कँपकँपी जोर शोर से जारी है। बेहोशी सी छा रही उफ़्फ़।

'अरे भाई उठ, जयपुर आ गया।'

हैं!!?, सुबह के 5:30 हुए हैं, समझ नही आ रहा, सब सपना था या हकीकत। नहीं नहीं सपना नहीं, अब भी कोट में घुस के जो बैठा हूँ, ज़िप खोल खुद बाहर आया पर ठंडी हवा के झोंके ने अंदर तक हिला डाला, बस से उतरते ही गेट के पास ही पोलो विक्ट्री सिनेमा के पास कुछ लोग आग से ताप रहे , मैं भी वहीं जिन्दा रहने की जुगत लगा रहा हूँ। एक अंकल आए पीछे से, शायद मेरी ही बस में थे, और मुझे अंदर घूर भी रहे थे, उन्होंने अपना कम्बल दिया मुझे,मैंने एक बार भी औपचारिकता निभाने के चक्कर में ना नही बोला, फटाफट कम्बल लेकर ओढ़ लिया, ये भी नही पूछा की अंकल पहले क्यूँ नही दिया, अंकल ने चाय ला कर दी, जमे और रुद्ध गले से आखिर फूट पड़ा ".थैंक्यू अंकल"। अंकल कुछ देर बतियाए, बोले ऐसे फिर कभी 'रिस्क नही लेना'। 'जी अंकल', लग रहा था अंकल कोई फरिश्ता हैं। कुछ देर में वो अपना कम्बल समेट कर चले गए, पर अब दिक्कत नही, सुबह होने को है, आग भी है, जिन्दा बच जाऊंगा अब मैं, डोंट वरी।

एग्जाम दिया, फिर तुरन्त मोटा सा कम्बल खरीदा,क्यूँ? अरे ये भी बताना पड़ेगा ?  वापस भी तो उसी बस से जाना है। और हाँ अब तो पक्का है पक्का, मारवाड़ी सच में रिस्क नहीं लेंगे, हाँ नही तो। 😊😊😊

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

‘बाल’-कथा ♠♠♠♠♠



जब मैं कॉलेज में था उन दिनों मेरे कुछ विनोदी मित्र चुहल करते हुए मुझसे कहा करते थे कि यार तेरा ये सरनेम बड़ा मस्त है  ‘राज-पुरोहित’ तुझे तो राजाओं वाली फीलिंग आती होगीनहीं ?। वे ये कह कर मुस्कुराते तो उनके साथ मैं भी हंस लिया करता। वो लोग मुझे प्राउड फील करवाने के लिए ऐसा कहते थे या टांग खींचने के लिए अपन ने कभी इस की टेंशन नहीं लीकबीर दास के दोहेऊँचे कुल का जनमिया जे करनी ऊंच न् होईसुबरन कलस सुरा भरासाधु निंदा सोई‘, ने मुझ पर कुछ ज्यादा ही असर किया है तो मात्र नाम के साथ किसी जाति विशेष का परिचायक शब्द का जुड़ना किसी गर्व का कारक कभी अनुभव ही नही हुआ। पर अपनी इसी जाति में जन्म लेने से लाभ जैसी स्थिति बहुत सी प्रथाओं जैसे विवाहों में कई बार अनुभव हुई 
विवाह को वाकई उत्सव का रूप दे दिया जाता है और कई दिनों तक लगातार छोटी छोटी रस्मों और उन में छिपे आनन्द का रसपान चलता रहता है। संभव है आप मेरी उपरोक्त बात से जुड़ न् पाए होबहरहाल ऐसा होना स्वाभाविक भी है,  ढोली के गीत  ‘तालरिया मगरिया रे मोरू बाई लारे रियाके शब्दों में छुपे आनन्द को इन शब्दों के अर्थ को जीने वाला कोई राजस्थानी ही ज्यादा सहजता से चख सकेगा।
खैर वो सब छोड़िए वैसे भी ऐसा बिलकुल नही है कि मुझे भी इस जाति का सब अच्छा ही लगता है चलिए अब जो नहीं पसंद उसी की बात करते हैं। जब मैं छोटा था यही कोई ३-४ साल का तो मेरे दादा जी का देहांत हो गयाज्यादा नहीं बस धुंधला सा याद है। मृत्युभोज का कार्यक्रम १२ दिन तक चलता है हमारे यहाँहम बच्चे भी बड़ो के रोने धोने के बीच गाँव में वही सेलिब्रेट कर रहे थे। अचानक देखा एक नाई भी आया हुआ है।
फिर पता लगा कि ये बाल काटेगा
पर किसके ?
किसके क्या, सब के भई
सब के ?
अरे मेरा मतलब सब पुरुषों के यार
आईंऐसा क्यूँ?
रिवाज है भई
ये क्या बात हुई, हैं ?
किसी ने इस सवाल का जवाब नहीं दियादेखते ही देखते एक के बाद एक सर सफाचट होने लगा । छोटे दादा जीताऊ जी पापा सब की शक्लें अजीब लग रही थीखूब हंसी आ रही थी पर चाचाओं के बाद आखिर बच्चों की भी बारी आ गई। हंसी की जगह खौफ ने ले लीबड़े ताऊ जी के दोनों बेटों के बाल मेरे सामने देखते देखते शहीद कर दिए गए लग रहा था सर की जगह उलटे तरबूज ही रखे होंछोटे ताऊ के एम पी रिटर्न  बेटे उन दिनों कुछ ज्यादा फैशनेबुल हुआ करते थे, हम लोग उन्हें कनाडा रिटर्न से कम महत्व नहीं देते थे, उनकी बारी आई तो वो बोले मैं तपला नही करवाऊंगा।बस एक ही डायलोग और सब पस्त , किसी कि फिर बहस करने कि हिम्मत न हुई . उनके बाद लडकों में मेरा ही नंबर था , यूँ कहने को तो मैं भी गाँव से नहीं शहर से आया था पर राजस्थान के किसी भी शहर से आना उनके लिए कोई विशेष बात न थी . मुझे (जबरदस्ती) लिवाने के लिए बन्दर टोली रवाना हुईऔर जैसा की उनसे अपेक्षित भी था ढेर सारी चिल्लम चिल्ली के बीच में मुझे नाई के सामने हाजिर कर दिया गया। मेरा आखिरी हथियार मतलब रोनातो निष्फल हो चुका था। अब और कोई उपाय न् देख खतरनाक रोना रोते हुए सर हिलाते हुए इधर उधर हाथ पैर मारने शुरू कर दिएनाई देव का हजामत का सारा पिटारा ठोकर लगने से अस्त व्यस्त हो गया,तिस भी आगे बढ़ कर उन्होंने अपने कर्तव्य की पूर्ति करनी चाही न् जाने एक लात उन्हें कहाँ और कैसे लगी कि वहीं पेट पकड़ कर उकड़ू होकर बैठ गएचाचा जी अब तक सब देख रहे थे ने बदतमीज बोलते हुए मेरे एक चांटा मारारोने के स्वर को और बल मिल गया,भय के साथ अब दर्द से मेरा भोम्पू सुपर से ऊपर वाला साउंड इफ़ेक्ट दे रहा था। पापा ने आकर मुझे चुप कराने की चेष्टा कीउनके प्रयास काम न् आए तो मुझे भीतर माँ के पास भेज दिया गया। सब बहला रहे थेदादा के लिए रोना छोड़ मेरे रोने की चिंता सब पर हावी थीफिर पता लगा नाई देव को वापस दान दक्षिणा देकर विदा कर दिया गया था। जान में जान आईझापड़ खाई तो क्या हुआ बाल तो बच गए।
हरिद्वार में फूल बहानेपापा के साथ मैं भी गया थाउनके कंधे पर सवारगंजे सर पर हाथ फेरने से छोटे छोटे काँटों वाला बड़ा ओव्सम अहसास आता है ये उसी रोज पता लग गया था। घर वापस आए तो मामला पहले की अपेक्षा कुछ शांत लगाघर टकलिस्तान लग रहा था पर मेरा छोटा सा संसार मानो उन 1000-1000 वाट के बल्बो से जगमगा उठा। जब तक वहाँ रहे तबला बजाने का अभ्यास निरन्तर जारी रहातबला बदल बदल कर।

#जयश्रीकृष्ण
©अरुण


👀👀💌💌✍✍ आँखिन देखी, कागद लेखी ♠♠♠♠♠


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5 वीं कक्षा का छात्र मैं ,बहुत घबराया हुआ हूँ, बेड़ा गर्क हो बल्लू का, अरे बल्लू मेरा दोस्त, बलकरण, साला खुद तो कुछ न आने का बहाना कर के कन्नी काट गया, चलो खुद को बचाया सो बचाया पर मेरा नाम क्यों लिखवाया ? जीवन सर से बोला, 'सर सर अरुण को शर्म आती है, पर वो खुद गाना चाहता है'। 

चलो ठीक है, गाना गाने का मन होता है पर डर भी तो लगता है स्टेज से, इतनी सारे लोगों के सामने गाना तो छोडो सीधा भी खड़ा रह सकूँगा ये भी पक्का नहीं हैं। मैं तो उस घड़ी को कोस रहा हूँ जब इस मनहूस बल्लू के बच्चे को जोश जोश में गाना सुना दिया। कमबख्त तारीफ कर रहा था तब तो अच्छा लग रहा था, पर ये तारीफ ये सब रंग दिखाने वाली है ,पता न था।

स्वतन्त्रता दिवस है, सब बच्चे खुश हैं मुझे छोड़कर, यूँ दुःख जैसा तो मुझे भी कुछ नहीं पर आज स्टेज से मेरा नाम बोला जाएगा तो कैसे रियेक्ट करूँगा, अँगूर के सामने तरबूज जितना बड़ा सवाल था। सब बच्चे स्कूल ड्रेस में हैं सफेद शर्ट-ग्रे कलर की पेंट, लड़कियां सफेद सलवार कमीज पहने हैं, कौन किस स्कूल का पढ़ेसरी है आज पहचानना मुश्किल नही, ये 'मालवीय पब्लिक स्कूल' की  ड्रेस है सब जानते हैं, मैंने भी ड्रेस पहनी हैं पर पेंट की जगह हाफ पेंट पहनी है, पापा से बोला था फुल पेंट दिलवाने को पर पापा बोले अगले साल दिलवाएंगे, पता नही ये अगला साल कब आता है 😊,  खुश ही हूँ मैं भी पर बल्लू के बच्चे तुझे मैं छोड़ूंगा नहीं। 

जब सुबह 6:30 पर आने को बोला था सर ने तो लगा था इतनी जल्दी कौन उठ पाएगा पर नींद तो 5 बजे ही खुल गई 6 बजे स्कूल में आ गया, देखा तो मुझसे भी ज्यादा जल्दी बहुतों को थी, बहुत सारे बच्चे आए हुए थे, घनश्याम सर कितने अच्छे हैं न, कभी नही मारते, आज तो गुलाब का फूल भी दिया मुझे 😊। राजीव सर स्टेज लगवा रहे हैं, मन किया उनको बोलूँ कि सर आप मेरा नाम काट दो, पर क्या करूँ डर लगता है सर से कुछ भी कहने से। इस बार साउंड सिस्टम लगा है माइक में बोला जा रहा है, 'हेल्लो हेल्लो माइक चैक, हेल्लो वन टू थ्री', तो क्या मुझे भी इसी में बोलना पड़ेगा, यार मैं कौनसा लता मंगेशकर हूँ, आज बेज्जती होने वाली है पक्का, बल्लू तेरा बेडा गर्क हो।

अतिथि बैठ चुके हैं, आठवीं की लड़कियाँ जन गण मन बोल रही, सब सीधे खड़े हैं मैं भी,पता नही क्यूँ पर खड़ा हूँ सीधा। बस घबराहट बढ़ रही है पल पल । ओह ये क्या?  सर तो रवि स्टूडियो वाले को भी लाए हैं, मतलब आज इज्जत की नीलामी की खबर सिर्फ स्कूल तक नहीं उसकी दीवारों से बाहर तक जाएगी। बल्लू तेरा बेड़ा गर्क, तू तो मर ही जा कुत्ते।

अतिथियों का स्वागत हो रहा है, 'आप आए यहाँ किया है करम, स्वागतम् स्वागतम्, स्वागतम् स्वागतम्।' तालियाँ बज रही है, जब मैं जाऊंगा तो क्या होगा, तालियाँ बजेंगी ? नहीं सब चिढ़ाएंगे 😢, मेरा क्या होगा भगवान ? कहाँ फस गया मैं। अच्छा अगर मैं नाम बुलाने पर भी न जाऊँ तो ? नही नही राजीव सर बहुत मारते हैं, यहीं सबके सामने पीटेंगे, बेज्जती तब भी हो जाएगी, दर्द होगा सो अलग।

"और अब एक छोटा सा बच्चा, अपनी प्यारी सी आवाज़ में आपको एक गीत सुनाने आ रहा है, तालियों से स्वागत कीजिए, कक्षा 5 से 'अरुण' का"

ओह तेरी दिल धकधक कर रहा था पहले, लगा धक्क् से वहीं बैठ गया, चुपचाप खड़ा हो गया, डर से चेहरा पीला पड़ रहा था, रौशनी मैम, हमारी क्लास टीचर, बहुत अच्छी हैं साईन्स पढ़ाती हैं, बहुत प्यार करती हैं सबसे, हाँ हाँ सबसे तो मुझसे भी, हमारी पंक्ति के पास खड़ी थी मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरा, मन किया वहीं लिपट जाऊँ कहूँ मैम, मुझे नही गाना, मैम ने हाथ पकड़ा और स्टेज तक ले गई। स्टेज पर देखा सैंकड़ो जोड़ी आँखे सिर्फ मुझे देख रही थी, कई चेहरे मुस्कुरा रहे थे, सब मुझ पर हँस रहे हैं, बल्लू तेरा बेड़ा गर्क, तेरा खून मेरे ही हाथों से होगा कुत्ते। आँखे बंद कर ली, सब जोर से हँसने लगे, मैंने आँखे बंद किये किये ही शुरू किया।

'नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ,
बोलो मेरे संग, जय हिन्द जय हिन्द जय हिन्द,
जय हिन्द जय हिन्द।।'

सब आवाज़ें बंद हो गई, जैसे म्यूट कर दिया हो रिमोट से, अचानक कन्धे पर हाथ रखा किसी ने, देखा घनश्याम सर थे अपने मुस्कुराते चेहरे के साथ, बोले आँखें बंद मत करो, बहुत बहुत अच्छा गाते हो तुम, इन सब से अच्छा, आँखों में आँखें डाल के गाओ।

डरते डरते फिर से शुरू कर दिया, इस बार आँखें खुली थी, पर सर के शब्द कानों में गूंज रहे थे।

'नया है जमाना मेरी नई है डगर,
देश को बनाऊंगा मशीनों का नगर,
मंजिल से पहले न लूंगा कभी दम,
आगे ही आगे बढ़ाऊंगा कदम,
दाहिने बाएं दाहिने बाएं धम्म।'

सबके चेहरे 'धम्मम' बोलते ही खिल उठे, मैं गाए जा रहा था, 
जय हिन्द जय हिन्द जय हिन्द 
जय हिन्द जय हिन्द।।

घनश्याम सर ने उठा लिया गोद में, बहुत प्यार किया, अतिथि जी ने 100/- दिए, बहुत खुश था मैं,

'ओये सुन बल्लू, आई लव यू बे'

***

'70 वें स्वतंत्रता दिवस ते आए सारे सज्जना नूं शाला परिवार तख्तहज़ारा वलो लख लख वधाइयां'

जसमेल सर मंच संचालन कर रहे हैं, स्टेज के सामने स्कूल के वर्तमान और भूतपूर्व छात्र बैठे हैं, हर बार मैं करता हूँ मंच संचालन पर आज नहीं, मैं ही क्यूँ करूँ आखिर मुझमे भी कितना ईगो है सबको पता तो चले। 
पर मंच पर जाने का कीड़ा काट रहा है उसका क्या करूँ,  बख्तावर सिंह सरपंच ने झंडारोहण किया, वही जन गण मन, वही स्वागत और वही झंडा गीत। सब न जाने क्यूँ खुश हो रहे हैं बेवजह। कुलदीप जी को भी यही लगता है फालतू का टँटा है बस, हुंह।

10 वीं की लड़की सरस्वती ने 'वंदे मातरम्' गाया। क्या खूब गाया है जी, कुलदीप जी और मैं दोनों उसी की तारीफों के पुल बांध रहे हैं, चारो और तालियाँ बज रही हैं, पीछे से कुछ सीटियों की आवाज़ें, हिकारत भरी नजरों से पीछे देख कुलदीप जी बोले ये गाँव वाले बस......., आप समझ जाओ क्यूँ आते हैं।

प्रिंस, अच्छा नाचता है, बिल्कुल प्रोफेशनलस् की तरह, पर इसे अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देना चाहिए, एक बार तो लटक चुका दूसरी बार ब्रेक न लग जाए बेचारे के। 

एक के बाद एक डांस, आए ही जा रहे, कितना लम्बा प्रोग्राम है न, कुलदीप जी कह रहे। मैं स्टेज पर जसमेल जी की लिस्ट देख के आता हूँ।

अरे बाप रे, इतने सारे, इन सबमे तो अभी 2 घण्टे और लगेंगे। बहुत गर्मी है हवा भी नही चल रही, उमस हो रही, सब पसीने से तरबतर बैठे हैं, मेरे हाथो में लिस्ट थमा जसमेल जी नीचे टहल रहे हैं, दानदाताओं का नाम और आभार प्रकट कर रहा हूँ,

पंजाबी गिद्दा, छोटी छोटी बच्चियाँ कितनी क्यूट लगती है न नाचते हुए, पंजाबी भाषी गाँव के लोग चहक रहे हैं,

गतका पार्टी, अच्छा मार्शल आर्ट दिखाते हैं, स्टेज पर जगह थोड़ी कम है, वरना और अच्छा हो जाता।

7 वीं का सिद्धार्थ, पढ़ता नहीं बिल्कुल भी, पर नाच तो देखो, छोटी सी डांस मशीन है ये।

पिछले साल के टॉपर्स को इनाम वितरण हो गया।

यार ये जसमेल जी किधर गए, मोबाइल में स्क्रोल किया, एक गीत तो मैं भी गाऊंगा अब, किसी से नही पूछा, सीधे गाना शुरू

'भारत हमारी माँ है, माता का रूप प्यारा,
करना इसी की रक्षा, कर्त्तव्य है हमारा।'

सब मुझे आश्चर्य पर मुस्कुराते से देख रहे हैं, ये आज अरुण सर को क्या हुआ। 

रामस्वरूप सर ने 100/- प्रोत्साहन राशि दी, जसमेल सर ने अनाउंस किया, 

मिष्टान्न वितरित हुआ, सब ख़ुशी ख़ुशी घर जा रहे हैं।

चौथी क्लास के 2 बच्चे गाते जा रहे हैं, जय हिन्द जय हिन्द की सेना, मुझे मुस्कुरा कर देखते हैं,

"बल्लू, पता नही तू कहाँ है, पर वाकई आई लव यू बे"

***

©अरुणिम यादें

#जयश्रीकृष्ण

Rajpurohit-arun.blogspot.com

👧👧👧👧👧 सही की हीरोइन ♠♠♠♠♠


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लक्ष्मी , बिहार के पटना के पास एक छोटे से गाँव की 14 वर्षीय लड़की, दो बहने और भी थी, पिता दारुखोर था शराब गटक कर बेसुध हो पड़ा रहता सो घर की हालत बिल्कुल वैसी ही थी जैसी ऐसी स्थितियों में हो जाया करती है, माँ लोगो के घर छोटा मोटा काम करती खाने का जुगाड़ हो जाता, पर इन सब विपरीत परिस्थितियों में लक्ष्मी पूरे घर का सारा काम करती , पिता और बहनों की देखभाल करती उनके साथ खेलती खिलखिलाती , जैसी भी थी खुश थी कभी किसी से कोई शिकवा कोई शिकायत नही, भगवान से भी नहीं।
एक दिन पिता उसे अपने साथ पटना के किसी बड़े से घर में ले गया, उसे बाहर लॉन में रुकने को बोला फिर कहा की वो अभी वापस आ रहा है। वो इंतज़ार करती रही पर वो नही आया, आया तो चिन्ना, बहुत मारा उसे चिन्ना ने, बहुत गालियाँ दी गन्दी गन्दी बोला उसने खरीदा है उसे 50 हजार में वो बड़े घर वाली औरत से, जिसके हाथ उसका बाप उसे 30 हजार में बेच गया था।
छोटी सी लड़की जिसने घर से बाहर कदम भी नही रखा अब बेचे जाने का मतलब खुद बिकने के बाद जान रही थी, चिन्ना उसे और बहुत सी लड़कियों को जंगलों के रास्ते हैदराबाद ले आया, पर हैदराबाद के रास्ते में ही रंगारेड्डी नाम के मोटे काले भद्दे आदमी ने उसकी गाड़ी रोकी, चिन्ना को बहुत डाँटा इतनी छोटी सी बच्ची को क्यूँ लाया बे, ये कोई धंधा करने लायक है? लक्ष्मी से बोला उसके साथ उसके घर रहे, रंगारेड्डी का घर बहुत बड़ा था, खूब खाने को मिला सोने को भी, कई बार डॉक्टर आता उसे इंजेक्शन देता, रंगारेड्डी उसे कुछ नही कहता। लक्ष्मी को लगा ये शक्ल से चाहे जैसा हो पर दिल का बुरा नहीं, अच्छा आदमी है।
एक शाम रंगारेड्डी जब घर आया, वो हाथ में मेहँदी लगा रही थी, अजीब सी शक्ल हो गई रंगारेड्डी की, लक्ष्मी को लगा शायद उसे उसका मेहँदी लगाना पसन्द नही आया, उसने माफ़ी मांगी कहा फिर नही लगाएगी, पर रंगारेड्डी उसे जबरदस्ती कमरे में ले गया। उसे पीटा, वो गिड़गिड़ाती रही ,माफ़ी मांगती रही। पर...............!!!
थोड़ी देर में निढाल हो थक कर रंगारेड्डी सो गया , लक्ष्मी जब बाहर आई उससे चला भी नही जा रहा था, रंगारेड्डी अच्छा आदमी नहीं, सब दर्द कर रहा था, खून बहकर पाँव तक आ गया था, उसका दुःख उसका दर्द समझने वाला कोई था भी तो नहीं बस रोते रोते सो गई।
अगले दिन चिन्ना आया, उसे धर्म विलास होस्टल ले गया, होस्टल जेल जैसा था चारो और लोहे की मजबूत जालियां लगी थी, अंदर एक और सरिता मिली, चिन्ना उसे वही छोड़ गया, थकान और दर्द से बुरा हाल था, जो खाने को दिया चुपचाप खा लिया, सो गई, जब उठी तो उसे एक जोड़ी कपड़े दिए सरिता ने ,बोली तैयार हो जा 'काम' करना है। वो अब काम का मतलब समझ रही थी, सरिता से कहा उसे छोड़ दो अब तक दर्द हो रहा कल से, सरिता बोली दिखाओ फिर देख कर बोली अरे कुछ नहीं है सूजन है बस, ये क्रीम लगा लो फिर कुछ नहीं होगा, लक्ष्मी रोई तो चुप कराने के लिए कसके तमाचे का प्रसाद मिला। नर्क मिलेगा तुमको सुनकर सरिता बोली अब भी हम लोग कहाँ हैं? 10 मिनट बाद एक आदमी को लिए उसके कोठरीनुमा कमरे के सामने सरिता थी, वो अब भी गिड़गिड़ा रही थी सरिता ने उसके कान में धीरे से कहा , 'तू जितना रोएगी चिल्लाएगी, इस हलकट को उतना ज्यादा मजा आएगा, क्यूँ इसे फोकट का मजा दे रही' , कमरा बंद हो गया सिसकियाँ खामोश।
एक दिन लक्ष्मी भाग गई वहाँ से , भाग कर सीधा पुलिस चौकी गई, रो रो कर अपना दर्द बताया, कहा चिन्ना को रंगारेड्डी को सरिता को, सबको पकड़ो, पर थोड़ी देर में चिन्ना वही आ गया, उसे अपने साथ उसी नरक में ले जाने के लिए। बोला मेरी पहुँच का अंदाज़ा हुआ, कोई चिड़िया नही उड़ सकती। पर लक्ष्मी बोली किसी दिन मैं जरूर भाग जाउंगी। स्वर्णा, उसकी रूम पार्टनर बोली, मत भागना यार अब से, जब भी कोई लड़की भागती है चिन्ना सरिता और उसकी रूम पार्टनर को जानवरों की तरह मारता है, कहकर अपने पेट और पीठ के निशान दिखाए। लक्ष्मी भी अब पसीज गई।
कभी एक कभी दो से लेकर 6-7 तक प्यासे लोग आते छोटे से कुँए से प्यास बुझा कर चले जाते। लक्ष्मी का शरीर उसकी आत्मा चीत्कार उठती पर सब आवाज़ें हमेशा उन गुमनाम अँधेरी कोठरियों में दब कर रह जाती। एक दिन चिन्ना उसे, स्वर्णा और कुछ और लड़कियों को किसी बूढ़े ठरकी सेठ के यहाँ ले गया, वो स्वर्णा के कहने पर चली आई थी, चिन्ना गेट के पास रुक गया, सब ठरकी को बहला रही थी, नाच कर गा कर और........! लक्ष्मी बाथरूम का बहाना बना कर फिर से भाग गई पर चिन्ना उसे फिर से पकड़ लाया। लोहे की कीलों वाले डंडे से उसके पैर लहूलुहान कर दिए, लक्ष्मी मरणासन्न थी। चिन्ना बोला इसे कोई दवा नही देनी, 10-15 जितने कस्टमर आएं इस पर चढ़ाओ 😢
स्वर्णा और सरिता दोनों ने उसकी देखभाल की। पर चिन्ना नही माना उठने की हालत भी नहीं थी, पर रोज उसे नोचने के लिए भूखे भेड़िए ढूंढ लाता, और ढूंढ भी क्या लाता , खुद ब खुद आ जाते , कमसिन रोती गिड़गिड़ाती लड़की से एक्स्ट्रा सुख पाने। एक दिन एक और आया 'मोहन', कच्ची कली चाहिए थी उसको भी, हर कीमत पर, तुरन्त, लक्ष्मी के कमरे में गया थोड़ी देर रुका और वापस चला आया बिना कुछ कहे। लक्ष्मी ने क्या और क्यूँ पर विचार करना बहुत पहले छोड़ दिया था, सो अब भी नही किया। फिर दो दिन बाद धर्म विलास पर पुलिस रेड पड़ गई, रंगारेड्डी बिलकुल कॉन्फिडेंट था और चिन्ना बेफिक्र, हमेशा की तरह, कि कोई कुछ नहीं उखाड़ सकता, ये आत्मविश्वास ये बेफिक्री अपने अनुभव से कमाई थी । मोहन ने लक्ष्मी के कमरे से पेन कैमरा निकाल लिया। चिन्ना रंगारेड्डी को गिरफ्तार किया पर जमानत हो गई जेल जाने से पहले ही, लक्ष्मी स्वर्णा सरिता और बाकि लड़कियों को मोहन जी अपने एनजीओ ले आए, लक्ष्मी का इलाज़ होने लगा।
पर धीरे धीरे सब लड़कियां, हाँ स्वर्णा और सरिता भी खुद अपनी मर्जी से उसी गटर के गर्त में लौट गई, कारण? क्योंकी उन्हें न समाज स्वीकार कर रहा था और न उनका कोई परिवार, न उनसे दोस्ती रखना चाहता था न कोई और सम्बन्ध, बेचारी करें भी तो क्या करें सिर्फ टोकरी बनाते रहने से तो पेट भी नही भरता। लेकिन लक्ष्मी नहीं लौटी उसे सज़ा दिलवानी थी हर एक उस शक्श को जो उसका गुनहगार था। मोहन जी की सहायता से कोर्ट गई, गंदे गंदे सवालों की जिल्लत झेली पर डटी रही, कोर्ट में खुद उसी के चरित्र पर उँगलियाँ उठाते रहे लोग पर वो घबराई नहीं, मोहन जी ने कहा अंतिम विकल्प वो वीडियो ही है, वीडियो प्ले हुआ, कोर्ट में उपस्थित हर एक जिसने न जाने कितनी बार ऐसे वीडियो चटखारे ले कर देखे होंगे, आज उन में से हर एक की आँख नम थी, जज की भी। एक जिन्दा लड़की को मुर्दा जैसी बना कर को गिद्धों की तरह नोचे जाते देख कौन खुश होता भला ?
पीटा एक्ट के तहत बहुत कम कार्यवाही हुई है इस देश में, लक्ष्मी पहली थी जिसके मामले में आँध्रप्रदेश में पहली बार कार्यवाही हुई, 10-10 साल कैद और 2 लाख का जुर्माना, लक्ष्मी का पिता भी 2012 से जेल में है, और लक्ष्मी अब मोहन जी जैसे समाजसेवियों की मदद अपनी बहनों का सहारा बनी है, उन्हें किसी चिन्ना से बचाने के लिए।
‪#‎नागेश_कुकुनूर‬ द्वारा सत्य घटना पर बनी फ़िल्म ‪#‎लक्ष्मी‬ पर आधारित
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मित्रों, जब ये फ़िल्म मैंने देखी तो न जाने क्यूँ एक अज्ञात अपराधबोध से भर गया। क्यूँ हम लोग स्त्री के साथ ऐसा घृणित व्यवहार करते हैं ? 'काम' भले ही संसार और उसकी विविध सृजनाओं की धुरी रहा हो पर वासना के वशीभूत होकर हम स्वयं का मानव होना क्यों भूल जाते हैं। लक्ष्मी के शरीर पर लगे हर घाव का दर्द अपने अन्तस् की गहराई तक अनुभव हुआ, न जाने कितनी बार आँसू बहे पर लगा उस गुड़िया के दर्द के आगे तो ये सब कुछ भी नहीं, जिसने बस मासूम होने की इतनी कड़ी सज़ा झेली।
'वैश्या' बहुत घृणित अर्थों में इस शब्द का प्रयोग करते हैं ना हम लोग ? आइंदा कभी ये शब्द बोलें तो कृपया विचार कर लेवें की कहीं किसी वैश्या को बनाने में हम या हमारी मानसिकता तो दोषी नही ?
©अरुण

🍪🍪🍪🍪🍪 मीठा लड्डू ♠♠♠♠♠

मैं एक मीठा लड्डू हूँ, शादी का,
सब कहते है पछताऐंगे, तो खाकर,
आप खाओगे मुझे ?
बोलो ना कब खाओगे ?
.
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भावनाओं के मावे से बनाया गया हूँ,
परंपराओं की आँच पर पकाया गया हूँ,
किसी के प्यार की मिठास भी है मुझमें,
आप खाओगे
मुझे?
बोलो ना कब खाओगे ?
.
अंतरंग साथ के ड्राईफ्रूट से भरा हूँ,
सोंधी सी नोक-झोंक की महक मी घुली है,
अगाध विश्वास का
जायका भी है मुझमें,
आप खाओगे मुझे ?
बोलो ना कब खाओगे ?
.
पर ठहरिये ! मुझे चबाने के लिए समर्पण के दांत चाहिए,
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मुझे पचाने के लिए
साफ दिल का हाजमोला चाहिए,
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अगर नहीं हैं,तो क्या खाकर थूक दोगे?
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पचा पाओगे मुझे?
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मैं एक मीठा लड्डू हूँ
,शादी का,
सब कहते हैं पछताऐंगे, तो खाकर,
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आप क्या करोगे ? खाओगे या पछताओगे ?

#जयश्रीकृष्ण 

🚋🚋🚋🚋🚋 रेल-मटेल ♠♠♠♠♠


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(कृपया ध्यान देवें : यह पोस्ट मेरी पूर्व पोस्ट 'डर्टी पीपल' का ही विस्तार है, इसे पढ़ने से पहले वो पढ़ लेंगे तो सन्दर्भ जानने में आसानी रहेगी, शेष जिसकी जैसी इच्छा)
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मूड बड़ा फिलोसॉफियाना सा होने लगा था, बुद्ध के दुःख को जीवन का पर्याय कहे जाने पर अचानक श्रद्धा हो आई फिर सोचा, 'अजी छोड़ो फिलिम वाले भी तो बता बता के थक गए कि लड़की बस और ट्रेन एक जाती है तो दूसरी आती है, वैसे भी जो परी हो उसका तो उड़ना तय ही मानो :), जा परी जा जी ले अपनी जिंदगी' मयंक के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैर गई।
फिर मुन्ना भाई बन 'आइला क्या सूरत थी वो क्या कहते हैं' गुनगुनाने लगा।
अब ट्रेन में तांक झांक करने का मन नहीं हो रहा था, टाइम पास के लिए मयंक बाहर के नजारे देखने लगा। मन में गाना बजने लगा 'एम पी गज़ब है, सबसे गज़ब है' वाकई खूबसूरत है, पर अकेले में ये नजारे भी खोखले से लगते हैं, काश रवि, तनय, अतुल, जीत आए होते तो कहता की सालो देखो इसे कहते है कुदरत के नज़ारे।
अचानक नेतराम का ख्याल आया देखा वो उसकी सीट पर पड़ा ऊँघ रहा था। साला पोस्ती, पता नहीं कितने जन्म की नींद पूरी करेगा ट्रेन में 18 घँटे से सो ही रहा है।
'ओये, आजा बाहर के नजारे देख, मस्त हैं भाई।'
'मन्ने ना देखणे भाई, तू देख ले।'
'अबे क्या आदमी है यार तू भी,आ ना'
'मन्ने ना देखणे भाई, तू देख आराम त'
कया अजीब आदमी है यार। देखा तो ट्रेन के अधिकतर चेहरे बदल चुके थे, मोटा फैमिली भी नही थी, चलो दफ़ा हुए अच्छा हुआ। परी वाली सीट अब भी खाली ही थी, वही बैठ खिड़की से सर टकरा कर बाहर ताकने लगा, विंध्याचल की पहाड़ियाँ, हरियाली, पहाड़ों को काट कर बनाए रस्तों से जा रही रेल उसे किसी खिलौना गाड़ी की याद दिल रही थी, ठंडी ठंडी हवाओं के साथ आती नन्ही नन्ही बूँदो के बीच न जाने कब पलकें मूँद गई पता ही न चला।
करीब 4 घँटे बाद किसी ने उसके कंधे को पकड़ हल्का सा हिलाया
'हेल्लो मिस्टर, टिकट दिखाओ अपना', देखा टीटीई था। बेमन से खड़ा होकर ऊपर रखे अपने बैग से टिकट और पास निकाल कर दिखाया, 16 नम्बर, ये बर्थ पर कौन लेटा है ?
'मेरे साथ है, उसके पास भी एग्जाम पास है, इसका रिजर्वेशन नहीं था, इसलिए एडजस्ट करके जा रहे हैं।'
'ओके ओके' टीटी इतना कह आगे बढ़ गया।
मयंक ने भीतर का नजर देखा, कुछ भी दिलचस्प न लगा तो बाहर देखने लगा, अजीब अजीब नामों वाले स्टेशन आने लगे थे पेदमपल्ली, ये पल्ली वो पल्ली, ये पेट वो पेट, तो आंध्रा शुरू हाँ ? 😊😊 तभी तो, चल अच्छा है। लग तो यूँ रहा था की ये सफर कभी खत्म ही नही होगा, मगर अब लगता है होगा तो सही। मयंक ने सोचा।
शाम को ठीक 7:45 बजे ट्रेन पुरे 28 घँटे की यात्रा पूरी करने की घोषणा कर रुकी तो जान में जान आई।
नेतराम को उठाया, 'अब तो उठ जा यार, सिकन्दराबाद आ गया अब तो'
'हैं हाँ' आलस मरोड़ अंगड़ाई लेकर उबासी की बरसात करता नेतराम उठ कर उसके साथ बाहर आ गया। फिर बोला, 'हाँ भाई इब बता कित जावांगे?'
'अरे तू तो बड़ा कॉन्फिडेंट था न यार, टोह लयां गए टिकाणा, मुझसे क्या पूछ रहे हो , चल टोह अब' मयंक हँसता हुआ बोला।
'अर वा तो यूँ ही लिकड़गी थी, बोल न कित जावांगे ?'
'जाना कहाँ हैं, कहीं नही, सुबह एग्जाम है यहीं से निकल लेंगे।'
स्टेशन के बाहर निकल कर थोडा इधर उधर घूमे फिर वापस आकर स्टेशन की पार्किंग के फुटपाथ पर बैठकर खाना खाया। समय देखा 10 बज रहे थे।
'यहाँ तो मच्छर उठा ले जाएंगे, अंदर वेटिंग हॉल में चलते हैं।' मयंक ने कहा।
वेटिंग हॉल उनके जैसे अभ्यर्थियों की भीड़ से अटा पड़ा था। वहीं थोड़ी जगह बना कर चद्दर बिछाई और दोनों सेट हो गए, थोड़ी देर में निंदिया रानी का आशीर्वाद मिल गया और दोनों सुंदर भविष्य के मीठे सपनों में खो गए।
मयंक के सपने में :
"प्रियंका अगेन, ,,,,,,,,,,,बातचीत, ,,,,,,,,,,इजहार, ,,,,,,,,,इंकार, ,,,,,,,,,,,,फिर इकरार, ,,,,,,,,,,,ढेर सारा प्यार, ,,,,,,,,,,,मीठी बाते, ,,,,,,,,,,गाने, ,,,,,,,,,,,,,ताने ,,,,,,,,,,तकरार, ,,,,,,,,,पुनर्मिलन, ,,,,,,,,,,,,खड़ूस बाप, ,,,,,,,,,,,,,पैसे वाला,,,,,,,,,,,, उसका इंकार, ,,,,,,,,,,,गुंडे, ,,,,,,,,,,,,,,,,,मारने आ रहे हैं,,,,,,,,,,ऐसी की तैसी इनकी,,,,,, ,,,,,,,,,"
अचानक लगा जैसे सपना नहीं हकीकत है, नींद में बाहर का शोर चीख़ पुकार सुनाई दे रही थी। एक तेज डंडा उसकी पीठ पर पड़ा, दर्द से बिलबिलाता वो फौरन जाग गया। गन्दे वाली गाली देना चाहता था पर देखा सामने आरपीएफ का जवान डंडे के साथ खड़ा था, वेटिंग हॉल को यात्रियों की सुविधा के लिए छात्रों के कब्ज़े से छुड़ाया जा रहा था, चुपचाप सो रहे छात्रों पर डंडे भांजे गए तो थोड़ी ही देर में वेटिंग हॉल बिलकुल खाली हो गया, बाहर आकर सोचा, 'अरे यार वो बेचारा नेतराम कहाँ गया, डंडा वंडा पड़ गया तो मर भी सकता है साला।' इधर उधर देखा तो वो कहीं नजर न आया पर थोड़ी देर बाद उसकी कंधे पर हाथ रखे वो मुस्कुरा रहा था, मयंक भी मुस्कुराया।
'अरे यार कहाँ थे, तेरे पड़ी तो नही '
'ना भाई , मन्ने तो नींद ई ना आ री थी, डंडा देखतां पाण हाम तो भाज लिए थे, तन आवाज़ मारी पर तू सुणी कोन्या, ना जाणे कुणसी के सपना म खो रया था'
'क्या यार जगा लेता तो मैं भी बच जाता न डंडे से' बोल कर अपनी पीठ पर हाथ लगाया , आआआआह दर्द से तड़प कर कहा, साले न जाने किस जन्म का बैर निकालने आए थे।'
टाइम देखा तो सुबह के 4 बज रहे थे, अब न तो सोने की जगह बची थी न वक़्त।
'आजा नहा धो के फ्रेश होकर आते हैं'
'तन्ने सुलभ कॉम्पलेक्स का पता है कठे ह'
'तू चल मेरे साथ'
रेलवे वाशिंग लाइन पर खड़ी गाड़ी के एक डिब्बे का सदुपयोग करने के बाद वाशिंग लाइन के पानी से स्नान क्रिया पूर्ण की। शर्ट पहनते महसूस हुआ की डंडे का निशान उभर आया था, कपड़ा साथ लगते ही उसमे जलन हो रही थी, दर्द पीकर बोला,
'देख भाई, भारतीय रेल दुनिया का सबसे बड़ा शौचालय मने सुलभ कॉम्पलेक्स है, कभी भूलना नही अब से।'
नेतराम मुस्कुराने लगा।
6 बज रहे थे, एक दूसरे से स्टेशन पर ही मिलने का कह कर विदा ली, एग्जाम देने निकल गए। चोर चोरी से जाए पर हेरा फेरी से न जाए, डंडे का दर्द तो था पर जानबूझ कर बार बार आंध्रा की अलग अलग स्कूल गर्ल्स से पता पूछ मजे लेता मयंक सेंटर पर पैदल ही पहुँच गया। एग्जाम ठीक ठाक हुआ, घूमते घूमते स्टेशन पर पहुँचा तो देखा नेतराम पहले से वही था।
बोला ,' वापसी की टिकट कुण सी ट्रेन की है'
'कोई सी भी नही, और सब की है'
'मतलब'
'अरे यार कोई भी ट्रेन पकड़ के निकल लेंगे, रिजर्वेशन नही है पर जाएंगे रिजर्वेशन बोगी में ही, पास है हमारे पास तो जुर्माना नहीं लगता कोई, समझे'
'ठीक ह भाई'
शाम को 4:30, छात्रों की खतरनाक भीड़ ने ट्रेन की जनरल बोगियों को घेर रखा था, वहाँ जगह न मिलते देख स्लीपर पर धावा हो गया, मकोड़ों की तरह जिधर देखो स्टूडेंट ही स्टूडेंट। मयंक नेतराम के साथ एक छात्र से समझौता कर बेफिक्र उसकी बर्थ पर आसीन था, शर्त के मुताबिक उन्हें रात में अपनी तशरीफ़ को नीचे जमीन पर रख लेना था, नो प्रॉब्लम यार। भीड़ इतनी ज्यादा थी की लगा ट्रेन शायद इतना भर एक साथ लेकर अपनी जगह से खिसक ही नही पाएगी। अपने निर्धारित समय से 30 मिनट की देरी से ही सही पर ट्रेन चली , बड़ी गर्मी हो रही थी, ट्रेन चलते ही हवा लगने लगी। पहले भीड़ बहुत ज्यादा लग रही थी पर अब धीरे धीरे सब न जाने कैसे सेट हो गए। 2 घण्टे बाद अचानक काजीपेट के पास ट्रेन रोक दी गई, मालूम हुआ मजिस्ट्रेट चैकिंग है ट्रेन के दोनों तरफ rpf के कुछ जवान नजर आ रहे थे, मयंक और नेतराम दोनों कुतूहल से ये सब देख रहे थे, प्रथम अनुभव था। सहसा देखा एक काले मोटे थंगबलि टाइप टीटीई और दो rpf जवानो ने उनकी बोगी में प्रवेश किया, एक लड़के से पूछा, 'टिकीट', उत्तर मिला, 'पास है जी' धम्म से झन्नाटेदार थप्पड़ से टीटीई ने उसका मुंह लाल कर दिया।
'अबे भाग नही तो अपनी भी ठुकाई पक्की है' बैग उठाया तो देखा नेतराम उसे बिना कुछ कहे पहले ही आगे दौड़ लगा चुका था। मयंक भी डिब्बों के बीच के पासेज से होता हुआ जनरल बोगी में आ गया पर जनरल बोगी में घुसने का रास्ता नहीं मिला, नेतराम नही दिखा शायद भीतर प्रविष्ठ हो गया था। बेचारे मयंक को वही दोनों बोगीयों के बीच बने अस्थाई पुल जैसी संरचना पर खड़े रहना पड़ा, कुछ ही देर में पैर दुखने लगे तो वही बैठ गया।
लड़कों की भीड़ स्लीपर से धकेले जाने के बाद लगातार वहाँ प्रेशर बढ़ा रही थी । मयंक को डर लग रहा था, दरअसल अस्थाई पास के चारो और बना रबड़ का आवरण मयंक की साइड में फटा हुआ था, ट्रेन चल चुकी थी और मयंक को वहाँ बैठे तेजी से पीछे की और जाती पटरियाँ साफ नज़र आ रही थी, बड़ी मजबूती से उसने अपने आप को थामा हुआ था, पर एक चुक और उसके घर में चित्रहार शुरू हो जाता।
थोड़ी थोड़ी देर बाद इन सब दुःखों से अनजान अपने भीतर के दबाव को मुक्त करने कोई न कोई आ जाता, पैर रखने को जगह न थी पर वो कंधो पे, सर पे पैर रख शौचालय में दाखिल हो ही जाता। हाथों से झरती पानी की बुँदे टपकाता वापस जाता, कभी कोई चाय वाला चाय की बूंदे गिरा त्रस्त मन को और उद्विग्न कर जाता।
'सुना था स्वर्ग यहाँ, नर्क यहाँ , आज देख भी लिया" मयंक बुदबुदाया। लगातार 14 घण्टे वहीं एक करवट बैठ यातना झेली, नींद , थकान और भूख से बुरा हाल था, शरीर का रोम रोम दर्द करने लगा था। खुद को गालियाँ निकालते पक्का निश्चय कर लिया, आइंदा बिना रिजर्वेशन के कभी नही आऊंगा, और इतनी दूर तो रिजर्वेशन हो तब भी नही आऊंगा।'
भोपाल स्टेशन आने वाला था, अपनी बची खुची ताकत और हिम्मत बटोर मयंक वहाँ से उठा और फिर से स्लीपर क्लास की और चल पड़ा, एक बूढे अंकल साइड लोअर बर्थ पर सो रहे थे उनके पैरो के पास थोड़ी सी जगह बना कर बैठ गया, जान में जान आई। बड़ी मुश्किल से 10 मिनट ही हुए होंगे एक टीटीई उसी बोगी में टिकट चेक करता दिखाई दिया, दिल धक्क से बैठ गया। अब क्या होगा, वापस उसी नर्क में जाना पड़ेगा ?
'ओ भगवान जी, हेल्लो, मैं ही मिलता हूँ क्या आपको ?' पर देखा तो टीटीई अकेला था, अब चाहे लड़ाई करनी पड़े इससे जनरल बोगी में तो नही जाऊँगा। पर टीटीई के पास आने के साथ उसकी धड़कने तेज और साँसे मन्द हो रही थी। टीटीई करीब आया तो बहुत से पैसेंजरों ने उसे घेर लिया सब के सब वेटिंग टिकट वाले थे सीट कन्फर्म हुई या नही जाना चाहते थे, टीटीई ने पता नही कैसे पर सबके टिकट कन्फर्म कर सीट नम्बर दे दिया, मयंक से टिकट मांगा, उसने पास दिया तो अपने चार्ट में पास का रोल नम्बर लिख पास के पीछे लिखा S3-24 ,और कहा इस सीट पर जाओ।
'वाह भगवान जी, बिना मांगे रिजर्वेशन आपने ही करवाया न ? थैंक्यू हाँ सच्चीमुची 😊' ऊपर देखकर मयंक बोला, और S3 में सीट नम्बर 24 के पास आया, वहाँ एक लड़का लेटा था उसे खड़ा किया , 'मेरा रिजर्वेशन है भाई' और फिर खुद वहीं लुढ़क गया, आँख मूँद गई जब नींद से जागा तो बाहर न्यू डेल्ही का बोर्ड दिखाई दे रहा था।
***
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬
©अरुणिम कथा

🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...