😡😠😩😭😇😜 नियति ♠️♠️♠️♠️♠️

फ्रॉक सूट में लड़कियों की उम्र और भी कम लगती है न। और ये दोनों तो बहुत प्यारी सी चाबी वाली गुड़िया सी लग रही थी जो हमारी ओर बढ़ रही थी। एक गोरी थी, तो दूसरी थोड़ी सांवली, एक का कद 5'5" था, तो दूसरी का 5'3", एक की नाक बहुत तीखी सी थी तो दूसरी की छोटी पर क्यूट सी, एक की आँखे बड़ी बड़ी थी तो दूसरी चश्मिश, एक के चेहरे पर शर्म के साथ मुस्कान घुली थी तो दूसरी के चेहरे पर हल्का गुस्सा माथे की त्योरियों में अपनी जगह ढूंढ रहा था,  दोनों आकर हमारे डेस्क के पास खड़ी हो गई, उन्हें देख हम भी खड़े हो गए। चश्मिश ने गुस्से से भरी आँखों से हम दोनों को देख कर पूछा, 'उजबक कौन हैं आप मे से ?'

'ओहो आप तो आते ही रैगिंग पर उतर आई संज्ञा जी, थोड़ा बैठिए तो सही। कौन कौन है यही जानने तो आएं हैं सब।' मैंने मुस्कुराते हुए कहा। चश्मिश ने खा जाने वाले नेत्रों से मुझे देखा। बोली, ' नाम मत लो तुम मेरा, 😠 तो तुम हो उजबक ? कितने वाहियात लैटर लिखे हैं तुमने। वो भी सड़े हुए बदबूदार शेर ठूस ठूस के। आज के जमाने में कौन लेटर लिखता है? उस पर तुम्हारी राइटिंग भी माशाअल्लाह, बताया नहीं किसी ने ? टट्टी लिखते हो तुम , एकदम टट्टी, आक थू।' कहते कहते उसने सच में घास पर थोड़ा सा थूक दिया। दूसरी कन्या उसका हाथ दबा कर उसे शांत करने की कोशिश कर रही थी। उसने उसका हाथ झटका और फिर शुरू हो गई, 'तू चुप कर नियति, इन जैसों को हैंडल करना मुझे बखूबी आता है। हाँ तो सब बोलो, बड़ी चुल्ल मची थी न मिलने की, मिल कर बात करने की? अब करते क्यों नहीं? बोलो।'

मैं कुछ कहने ही वाला था कि उजबक बोले, 'देखिए देवी, कदाचित यहाँ कुछ मतिभ्रम हो रहा है। आप अकारण आवेशित हो रही हैं। कृपया शांत हो जाइए, आप भी विद्यार्थी हैं, धैर्यहीनता विद्यार्थी को शोभा नहीं देती। आप आक्रोश में उद्विग्न होकर गलत व्यक्ति से उलझ रही हैं। ये तो मेरे मित्र 'अरुण' हैं, और मेरा नाम उजबक है। किंतु क्षमा कीजिए हम यहाँ आपकी नहीं देवी चमेली की प्रतीक्षा कर रहे हैं। संभव है आप भी उनसे परिचित हों।' कह कर उजबक ने संज्ञा के फ्रॉक पर बने कन्या गुरुकुल के बैज की ओर देखा।

संज्ञा थोड़ी शांत हुई और बोली , 'देखिए भाई साहब, आप भले आदमी मालूम पड़ते हैं। पर ऐसी ओछी हरकतें भी किसी को शोभा नहीं देती। अगर आप उजबक हैं तो क्यों आपने मेरी सहेली को वे पत्र क्यों लिखे ? ये बहुत सीधी है, इसे लगा आप सच मे इससे प्यार करते हैं। और हाँ हमारे गुरुकुल में चमेली नाम की लड़की तो क्या कोई पौधा भी नहीं है।'

उजबक के चेहरे पर एक साथ कई भाव आए, पर अगले ही क्षण स्वयं को संयत किया और बहुत गम्भीरता से कहने लगे, 'आपको असुविधा हुई उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ संज्ञा जी। सत्य जानिए मैंने कभी किसी को कोई पत्र न लिखा। मुझे भी एक पत्र प्राप्त हुआ था, लगा कि कोई रमणी मुझ जैसे मूढ़मति को भी अपनाने , उससे प्रेम करने का साहस रखती है। ऐसा कभी कोई अनुभव भी तो न रहा है। असत्य नहीं कहूँगा, वह पत्र पाया तो उसी क्षण हृदयतल से उस अज्ञात नायिका के प्रति स्वयं को समर्पित कर दिया था। जो घटित हो चुका उसे लौटाना तो मेरे वश में नहीं किंतु आपकी मित्र की भावनाओं को मेरे कारण कष्ट हुआ है, मैं विधाता से प्रार्थना करूँगा की मुझे रौरव में भी स्थान न मिले। भले ही मैंने स्वप्न में भी कभी किसी के अनिष्ट की कामना नहीं की, किंतु यह भी तो सत्य ही है कि उजबक नाम इनके कष्ट का हेतु बना। हो सके तो मुझे क्षमा कर दीजिए।' उजबक ने भावुकता से नियति के सामने हाथ जोड़ दिए।

नियति जो अब तक नेत्रों को नीचे किए शांत बैठी थी, उसने पहली बार उजबक की ओर देखा। उसकी आँखें जलप्लावित हो रही थी। बोली,' आप ऐसा न कहिए। संज्ञा ने जो कहा उसके लिए मैं आपसे क्षमा चाहती हूँ। आप ही के समान प्रेम शब्द को अनुभूत करने का मेरा भी यह प्रथम ही अनुभव है। पहले पहल लगा कि कोई परिहास कर रहा होगा। पर फिर आपके नाम से एक के बाद एक पत्र आने लगे। लिखावट से अधिक कथ्य महत्त्वपूर्ण लगने लगा। उन पत्रों की प्रतीक्षा करते करते कब जीवन में आपके आने प्रतीक्षा करने लगी मुझे भी ज्ञात नहीं। किंतु चमेली का छद्म नाम मैंने ही आपको लिखा था, शायद इस भय से कि अगर पत्र किसी के हाथ लग जाता तो मैं कहीं की न रहती। अगर कोई दोषी है तो वो मैं हूँ। मुझे क्षमा कर दीजिए',  कह कर नियति वहीं घुटनों के बल बैठ कर जोर जोर से रोने लगी। चेहरा आँसुओं से भीग गया। उजबक भी भावुक हो रहे थे, और शायद संज्ञा भी। मुझे भी थोड़ा अज़ीब सा ही लग रहा था पर जैसे भी हो गाड़ी अब ट्रैक पर आती लगी।

संज्ञा कुछ बोलने को हुई तो मैंने उससे कहा, 'आप प्लीज इधर आइए, इन दोनों की समस्या ये ही सुलझाएं तो अधिक सही रहेगा। '
संज्ञा ने गुस्से से मुझे देखा पर फिर पार्क में एक ओर पग पटकती सी चल दी। मैं भी उसके पीछे पीछे हो लिया। 😜

'संज्ञा जी, आपका फेवरेट सब्जेक्ट क्या है?' चलते चलते उससे मैंने पूछा।

'देखो, मैं नियति नहीं हूँ, और मुझे अभी भी बहुत गुस्सा आया हुआ है, आपको बोल दिया न कि नाम मत लो मेरा। मुझे आप पर पहले भी गुस्सा नहीं करना चाहिए था, अब भी नहीं करना चाहती सो इट वुड बी बेटर फ़ॉर यू , प्लीज लीव मी अलोन।' संज्ञा ने अपने आप पर कंट्रोल करते हुए कहा।

'अरे सुनिए तो, अच्छा ठीक है आप कहती हैं तो मैं आपका नाम नहीं पुकारूंगा। पर किसी क्यूट सी लड़की को 'संज्ञाहीन' कर देना तो पाप हो जाएगा, नहीं?' मैंने हंसते हंसते कहा।

संज्ञा रुकी, अपना नजर का चश्मा थोड़ा नीचे कर मेरी ओर देखते हुए कहा, 'हो गया आपका? नाउ विल यू प्लीज शटअप?' मैंने पहली बार उसकी आँखें देखीं। बिना काजल के काली आँखें, लगा कि ज्यादा देर इन्हें देखा तो बींध डालेगी।

'ओके ओके, गुस्सा छोड़िए न प्लीज। अच्छा ये बताइए आपको स्विमिंग आती है? मुझे तो बिल्कुल नहीं आती। पर अभी लग रहा है कि आनी तो चाहिए, है ना?'

'क्यों घास में तैरने का मन हो रहा ? जाओ तैर लो, डरो मत, मैं नहीं डूबने दूंगी, आई एम ए गुड स्विमर, डोंट वरी।' संज्ञा ने हल्के व्यंग्य से कहा।

मैं जोर से हंसा। कहा , ' अरे, आप तो मुझे अभी डुबो देती, जानती भी हैं कितने समंदर आँखों में लिए घूम रही हैं आप ?' 😜

"देखिए जाइए ये सस्ते जोक किसी और को सुनाइए, मुझे इन पर हंसी नहीं आती।"  संज्ञा ने बेरुखी से कहा।

'गुरु जी ने बोला था कि अकेली लड़की खुली तिजोरी जैसी होती है, मैं नहीं चाहता कोई मेरा खजाना लूट...आई मीन मैं नहीं चाहता कोई आपको कोई नुकसान पहुंचा दे।' मैंने ढीठाई से कहा।

"मेरी चिंता छोड़ अपनी कीजिए, कलारिपट्टू चैंपियन हूँ, राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुकी हूँ।" संज्ञा थोड़ा हंस कर बोली। 😊

' वाह खेल खेल कर थक गई होंगी, हिमक्रीम मेरा मतलब आइसक्रीम खाएंगी ?'

"नहीं, आपको सच में अक्ल ही नहीं है, बूंदे बरस रही तो पकौड़े का मौसम हुआ न?"

'लाऊं?'

"ना कहूँगी तो ?"

'तो आइसक्रीम ले आऊंगा।'

"पागल 😊😊, अच्छा ठीक है, जाइए ले आइए।"

मैं दौड़ कर गया उद्यान के बाहर की रेहड़ी से पकौड़े लिए, पूछा पेमेंट कार्ड से कर दूं ? उसने मुझे ऐसे देखा जैसे मैंने उससे किडनी मांग ली हो। बोला, 'भाऊ कैसा बात करता तुमि, वो सब बड़े होटलां में होतां इदर नी, रोकड़ा देओ नाइ तो माल इदर ई रखो रे बाबा।'

'अरे बाबू भैया आप 😜, रुकिए देता हूँ' जेब से पर्स निकाला, देखा तो 100 रुपए का एक नोट बड़े सलीके से 'प्रदीप' की फोटो के पीछे छुप कर बैठा था। मैंने दोनों निकाले। नोट बाबू भैया को और फ़ोटो धरती मैया को दिए। पकौड़े उठाए और संज्ञा का सर्वनाम बन कर उसकी ओर उड़ चला। बूंदे बरसना थोड़ा तेज़ हो गया था। संज्ञा एक पेड़ की छाया में अकेली बैठी थी मुझे देखा तो बोली, ' सिर्फ हमारे लिए लाए हो, नियति के लिए ?' कह कर उसने उनकी दिशा में देखने का प्रयास किया। मैंने अपना एक हाथ उसकी आँखों के आगे कर दिया। उसने मेरा हाथ झटक कर फिर देखा। नियति और उजबक दोनों भीगते हुए आलिंगनबद्ध दिखाई पड़े। शर्मा कर वो बैठ गई। धीरे से पकौड़े उठा कर खाने लगी। मैं अपने दोनों हाथों से उसके सर पर छाता बना कर खड़ा था। उसने मुझे यूँ देखा तो मुस्कुरा दी।

अब इस बारिश से सब भीग रहे थे, उजबक-नियति, संज्ञा और शायद मैं भी ....😇

To be continued.......

#गुरुकुल_के_किस्से
#उजबक_कथा
#पार्ट5

#जयश्रीकृष्ण

✍️ अरुण

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👬🌧️💘🌻👯शुभागमन ♠️♠️♠️♠️♠️


प्रेम पथिक को हटा कर पहले हम और फिर उजबक खड़े हुए, हमको कुछ न हुआ था और उजबक भी मिट्टी में गिरे थे तो ज्यादा चोट नहीं लगी, पर उठते ही बजाय अपने वस्त्र झड़क कर साफ करने या अपने घुटनों पर लगी चोट की चिंता करने के वो तालियाँ बजा कर किलकारी मारने लगे, बोले, 'शुभ है, शुभ है, आहाहाहा आनन्द आ गया।'

यार ये आदमी पागल तो नहीं हो गया ? देखूं कहीं कोई चोट सर पर न लग गई हो। मन ही मन कहते हुए मैं उजबक की ओर लपका।

'अरे क्या कर रहे हैं आप, हमें कुछ न हुआ। इधर नहीं उधर देखिए।' कह कर उजबक ने उल्टी दिशा की मुँह करके देखने का संकेत किया। सामने कन्या गुरुकुल का प्रवेशद्वार था। बाहर कुछ छात्राएँ हमारे चेहरे की धूल से हास्य चुरा कर रक्तवृद्धि योग का अभ्यास कर रही थीं। 'सत्यानाश, बरसों से बनाई इज्जत पर धूल फेर दी। ऊपर से ये मूर्ख शुभ है शुभ है चिल्ला रहा है। मैं मन ही मन बोला।

' सत्य ही तो कह रहे हम अरुण भाई, कितना शुभ संकेत है, विद्या मन्दिर में शीश झुकाना तो 100 यज्ञ जितना फल देता है और हम तो साष्टांग नतमस्तक हो गए। ऐसा अद्भुत संयोग और सौभाग्य तो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। और तो और आप जानते हैं ? ये वही गुरुकुल है जिसमें देवी चमेली अध्ययनरत हैं, खैर आप कैसे न जानते होंगे, आप ही तो सूत्रधार बनेंगे हमारी परिणय गाथा के। अच्छा, छोड़िए वो सब, देवी चमेली से यहीं मिल लिया जाए ?

 कहिए क्या कहते हैं आप ? ' कह कर उजबक ने उसी मासूमियत से हमें देखा। मन तो किया कि कस्स के लपड़ मार दें, पर फिर सोचा अगर विमी का हाथ उठ गया तो क्या होगा?

आईडिया ड्राप कर उद्विग्न मन को शांत करते हुए मैंने कहा कि 'नहीं यह सही नहीं होगा, गुरुमाता को इसके बारे में भनक नहीं लगनी चाहिए, अन्यथा तुम्हारा और हमारा गुरुकुल से निष्काषित होना निश्चित है।'

'हूँ, आप सत्य कहते हैं। मैं ही भावावेग में मूर्खता करने जा रहा था। तो अब क्या करें?'

'अब आप वो करेंगे जो मैं कहूंगा, एक मिनट रुकिए मैं इस प्रेम पथिक को उसकी सही जगह पर छोड़ दूँ' कह कर मैं उजबक के दादा जी की साईकल के साथ कन्या गुरुकुल में प्रवेश कर गया। और कुछ ही क्षणों में वापस खाली हाथ लौट आया। उजबक के चेहरे पर मिश्रित भाव थे। इससे पहले वो कुछ पूछते मैंने खुद ही कहना प्रारंभ कर दिया, ' देखो प्यारे बुरा न मानना पर इतना अद्भुत वाहन चलाने में मैं स्वयं को असमर्थ पा रहा था, मैं नहीं चाहता कि पुष्पक विमान सरीखे प्रेम पथिक की गरिमा से किसी प्रकार का कोई खिलवाड़ हो, इसलिए उसे चमेली के लिए उपहार है कहकर कन्या गुरुकुल में दे आया हूँ।' मैं सब एक ही श्वांस में कह गया।

उजबक बहुत सम्मान से मेरी ओर निहार रहे थे, बोले , 'बाह अरुण भाई, कई बार अपनी शपथ भुला कर आपके गाल पर चुम्बन अंकित करने को मन हो जाता है, अगर देवी चमेली के प्रति एकनिष्ठ प्रेम का मन में विचार न आया होता तो हमनें अभी ये कर भी दिया होता।'

'अबे हुर्रर हुर्रर, बदतमीज आदमी,  खबरदार जो ऐसा सोचा भी। ' सुनते ही उजबक जोर से तीन बार हा हा हा बोले फिर कुछ क्षण उनका पेट हंसता रहा। थोड़ी देर में रुक कर बोले ' पर आपको द्वारपाल ने रोका क्यों नहीं?' मैंने कहा 'मुझे कभी नहीं रोकेंगे, हमनें बता रखा है कि गुरुमाता हमारी आंटी हैं। 😎😂'  ये सुनकर उजबक का पेट बिना आवाज़ किए देर तक अकेला ही हँसता रहा।

***

गार्गी उद्यान की आभा अनुपम है, अनेकों विलक्षण पुष्प प्रजातियाँ यहाँ सहज उपलब्ध हैं। बहुत से युगल समस्त जगत से परे, सभी चिंताओं से विमुक्ति पाकर अपने पर्सनल लोक में विचरण कर रहे हैं। आलिंगनबद्ध, चुम्बनरत या प्रेम वार्ताओं में लीन जोड़ों को देख उजबक के ही नहीं मेरे भी स्नायुओं में रक्त प्रवाह की गति तीव्रतर हो रही है। तिस पर प्रकृति भी आज प्रेमानुकूल प्रतीत होती है। चारों ओर पसरी हुई हरी हरी दूर्वा नन्हीं नन्हीं बरसती बूंदों की गुदगुदी से प्रफुल्लित जान पड़ती है। वातावरण इतना मनोहर है कि पर्यावरण में घुली सुगंध पुष्पों की मीठी मीठी भीनी बातें मालूम होती है जिसे हर कोई चुपचाप धीरे से बस सुन लेना चाह रहा है।

उद्यान के एक ओर बने डेस्क पर हम दोनों बैठे हैं। उजबक थोड़ी थोड़ी देर में व्यग्रता से कसमसा रहे हैं। हाथ में पीला गुलाब है। आश्चर्य मत कीजिए, उजबक तो श्वेत गुलाब ले रहे थे, बोले , 'श्वेत रंग शांति का परिचायक है बंधु। प्रेम में कोलाहल नहीं शांति हो तो जीवन उत्सव बन जाता है।' पर मैंने समझाया कि , ' तुम्हारा भाभी से (उजबक ने भी आप ही तरह ये शब्द सुनकर गुदगुदी वाले एक्सप्रेशन दिए थे) युद्ध थोड़े न हुआ जो सफेद फूल देकर संधि प्रस्ताव दोगे। लाल गुलाब दो। प्रेम का रंग है, सौभाग्य का प्रतीक, तभी तो सुहागिनें भी अपने अधिकांश वस्त्र रक्तिम ही पहनती हैं।'

उजबक मेरे तर्क से प्रसन्न हुए पर फिर मुस्कुराते हुए गम्भीर वाणी में कहने लगे, 'आप सत्य कह रहे हैं मित्र, किंतु अभी हमारे प्रेम का विधिवत प्रारंभ होना भी तो शेष है। अच्छा आप कहते हैं तो मैं ये पीतवर्णी गुलाब लिए लेता हूँ। मैत्री सूचक है। अगर देवी चमेली ने हमें अपने मित्ररूप में भी अपना लिया तब भी हम विश्वास दिलाते हैं कि उनके अंतर में अपने लिए प्रेमांकुर अवश्य बो देंगे।'

'अजीब प्राणी है यार, कोई भी विषय हो इसे उसमें अपनी टांग अड़ानी ही है, हुँह मुझे क्या।' मन ही मन मैंने विचार किया।

 उजबक बोले, 'देखिए हमारा प्रेम है उसमें उजबक प्रभाव न रहे तो भी ठीक न रहेगा न।' मैंने थूक निगला, यार इसे सब कैसे पता लग जाता है, और ये लड़कियाँ भी नहीं आईं अब तक।' मैंने सोचा।

 उजबक बोले, 'प्रतीक्षा तो हम भी कर ही रहे हैं, किंतु ऐसा भान हो रहा कि कदाचित हम ही समय से पूर्व आ गए हैं। ये प्रतीक्षा भी अद्भुत होती हैं न अरुण भाई ? हम ये चाह तो रहे हैं कि वो अभी इसी क्षण हमारे पास आ जाएं पर साथ ही साथ इस प्रतीक्षा के दर्द का भी भरपूर आस्वादन कर लेना चाहते हैं। यद्यपि हमारे लिए प्रत्येक क्षण कल्प के समान है, पर साथ ही मन यह भी कहता है कि अगर हमें अनन्त कोटि वर्षों तक देवी चमेली की इसी प्रकार प्रतीक्षा करनी पड़े तब भी हम अवश्य करेंगे। यह प्रेम का कैसा अनूठा रूप है मित्र ?

मैं बोर हो रहा था, पर उजबक प्रेम की ये बातें आज मुझे भी मोहित कर रही थी। जाने कैसे एक अज्ञात ग्लानि से मन भर आया। लगा कि मैं रो दूँगा। कुछ कहना ही चाहता था कि उजबक उछलते हुए से बोल पड़े, 'वो देखो वो ही है, वही हैं न मित्र, मैंने उन्हें कभी नहीं देखा किंतु मेरा मन मुझे पुकार पुकार कर कहता है कि ये वही हैं। कहिए तो वही हैं न मित्र ?'

मैंने गर्दन घुमा कर देखा, दो श्वेत वस्त्रधारिणी ऋषि कन्याएँ हमारी ही दिशा में बढ़ रही थी।

To be continued

#गुरुकुल_पार्ट4

#जयश्रीकृष्ण

✍️ अरुण

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🚲🚲🚲🚲🚲 मैं और प्रेम पथिक ♠️♠️♠️♠️♠️

'अरे यार, ये तुमने क्या पहना है! धोती कुर्ता !? वो भी सफेद ? लड़की से मिलने जा रहे हो या किसी की मैय्यत में अफसोस जताने ? कम से कलरफुल ही पहन लो न यार। और ऊपर से ये तिलक भी? लोग समझेंगे पंडिज्जी किसी के श्राद्ध में जीमने निकले हैं 😩'

मेरे कथन पर उजबक ने कोई विशेष ध्यान न दिया। तिलक लगा चुकने के बाद अपनी शिखा  संवारने लगे। शिखा में कंघी घुमाते घुमाते ही बोले, ' आप जानते हैं अरुण भाई शास्त्र कहता है कि शिखाविहीन मनुष्य चांडाल के समान होता है? जिस प्रकार पृथ्वी के दो ध्रुव होते हैं उसी प्रकार मानव शरीर में भी ध्रुवीय आकर्षण/प्रतिकर्षण पाया जाता है। हमें लगता है देवी चमेली भी इस चुटिया के पाश से मुक्त नहीं हो पाई होंगी। आपका क्या विचार है?"

'ओ महाराज, तुम्हें तुम्हारी इसी चुटिया की कसम। लड़की के सामने चुटिया पुराण मत बाँचने लग जाना कहीं और तुम्हारे इस टॉवर में गांठ लगा लो। लड़की को रेडिएशन न हो जाए कहीं 😂'

'परिहास न करें मित्र, हम अपने प्रथम प्रेम का प्रत्येक क्षण जीना चाहते हैं, उसका आनन्द उठाना चाहते हैं। अब आप अगर व्यवधान न डालें तो थोड़ा काजल लगा लें हम?' उजबक के चेहरे पर मात्र प्रेम था पर जाने क्यों इस क्षण मुझे c लिखा दिखाई दिया।

 'अज़ीब है यार, काजल कौन लड़का लगाता है और वो भी लड़की से मिलने जाते वक्त ? हद ही हो गई।' मन ही मन मैंने कहा।

'हम लगाते हैं कोनो दिक्कत ?' कह कर विमी ने कृत्रिम क्रोध से मुझे देखा। जाने कैसे ये आदमी मन की बात भी सुन लेता है। मैं बस सोच ही रहा था कि उजबक ने अपने तैयार होने की घोषणा करते हुए मुझसे पूछा ,'आप धोती नहीं पहनेंगे ?'

'पहनेंगे' शब्द पर इतना ज्यादा जोर दिया गया था कि मुझे झुक कर नीचे देख कर आश्वस्त हो लेना पड़ा कि वाकई मुझे कुछ पहनने की आवश्यकता तो नहीं ? नहीं नहीं पेंट पहन तो रखी है। इसलिए तुनक कर कहा, 'कैसी बातें करते हो? धोती नहीं पहनेंगे हम, ये जीन्स टी शर्ट ही ठीक है।'

'हम समझ गए, आप नहीं चाहते कि आप हमसे अधिक सुंदर दिखे। बाह अरुण भाई बाह, आपकी दूरदर्शिता को प्रणाम करने का मन होता है हमारा, अभी कर भी देते पर विलम्ब हो रहा है हम नहीं चाहते कि देवी चमेली को हमारे कारण प्रतीक्षा करनी पड़े।' कह कर उजबक मुस्कुराए। मैंने उनकी तरफ अब ध्यान से देखा श्वेतांबर धारी ये गेहुँआँ गुलाब अपने सरसों के तेल से लबालब भरे बालों, काजल से काली की आँखों मे बच्चों सी मुस्कान बिखेरता बहुत अज़ीब पर क्यूट लग रहा था।

'अरुण भाई अब आप ऐसे मत देखिए हमको नजर लग जाएगी, हमारी अम्मा भी कहती हैं उनके लल्ला को यानि हमको नजर तो बस लगने का बहाना ढूंढती है। कोई भी थोड़ा ध्यान से देख ले तो उसी पल हम उसको अच्छे लगने लगते हैं और अगले ही पल हमको नजर हो जाती है। अम्मा कहती हैं कि नजर तभी लगती है जब किसी को कोई बहुत प्यारा लगता है, हमको तो अम्मा की भी नजर लग जाती थी लेकिन वो तो बेचारी सारा दिन थुथकार कर, उतारा करती थी तब कोई दिक्कत नहीं होती थी, वरना जानते हैं नजर लग जाए तो दस्त हो जाते थे हमको। आप नजर मत लगाओ धोती सफेद है न, दिक्कत हो सकती है समझिए।' विमी ने इतनी मासूमियत से कहा कि सचमुच वो बहुत प्यारा लगा मुझे, इसलिए उसका मन रखने के लिए दो बार हल्का थू थू कर के थुथकार दिया।

उजबक की बाँछे खिल गई। पहले वो फिर उनका पेट अलग अलग हंसते रहे फिर चहक कर बोले, 'चलें अरुण भाई?' मैंने कहा चलो तो बाहर की और चलने की जगह भीतर की और दौड़ लगा दी। 5 मिनट बाद वापस आए तो डकार लेते हुए बोले, ' दही चीनी खाकर आए हैं दो कटोरा, हमारी अम्मा कहती हैं कि शुभ होता है।' समझ में नहीं आ रहा था कि इस 85 किलो के बच्चे को कोई कैसे समझाए बस इतना कह, 'अब चलें?' उजबक ने कुछ कहने की बजाय सिर्फ स्वीकारोक्ति में सर हिला कर 'हूँ' कहा।

छात्रावास के बाहर एक साईकल खड़ी थी, जो प्रागैतिहासिक मालूम पड़ती थी। जो इतनी पुरानी थी कि इतना रगड़ रगड़ के धोए जाने के उपरांत भी अपनी जननी का नाम बता सकने में असमर्थ थी। उजबक ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, और कहा , 'देखिए हमने वाहन की व्यवस्था तो कर दी है पर हमें इसे चलाना नहीं आता, यद्यपि हम आपके लिहाज से थोड़ा भारी हैं किंतु हमें आपकी मैत्री की शक्ति पर पूर्ण विश्वास है, आप बखूबी इसका संचालन करेंगे। आप जानते हैं हमारे दादा श्री गंगादीन जी जब हमारी दादी माँ को इस पर घुमाने निकलते थे तो बच्चे, बूढ़े, जवान, पुरुष, स्त्री सब का हुजूम उन्हें देखने को उमड़ आया करता था। वो भी क्या दिन थे...। अब चलाइए भी कह कर वो पिछली सीट पर दोनों और टांगे निकाल कर बैठ गए। 'आइए आइए' उजबक ने फिर से कहा तो मैंने कहा कि , 'ऑटो से चल पड़ते ......'

मेरी बात पूरी नहीं होने नहीं दी उजबक ने, बोले , ' कैसी बातें करते हैं आप? प्रेम में तो भावनाओं का ही प्राधान्य होता है,  पहली बार मिलने जा रहे हैं, तो किराए के साधन पर बैठेंगे ? न न न , अपना वाहन तो अपना ही होता है, और ये वाहन तो अनन्त काल से प्रेम पथिकों का अवलंब बना है, हम चाहते हैं कि हमारे प्रेम का साक्षी भी यही बनें, कोई ऑटो नहीं। चलिए भी आपको बहुत आनन्द आने वाला है इस पर बैठ कर ,कह कर उजबक ने जोर से ड्राइवर सीट पर हाथ मारा। सीट उछल कर नीचे जा गिरी। उजबक मुस्कुरा कर बोले, 'आज समय बहुत शुभ है। माँ वसुधा को प्रणाम करना हम और आप भूल रहे थे तो इस ने याद दिला दिया।' कहते हुए उजबक ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पायलट सीट पर बिठा दिया। मुझे लगा कि धरती जोरों से हिल रही है, लगा कि अगर इसे चलाया नहीं ये प्रेम पथिक हमें लेकर धरती में समा जाएगा। पांव से जोर लगाया पर कोई असर न हुआ, वैसे भी ट्रक में मोटरसाइकिल का ईंजन लगा हो तो दिक्कत आती ही है। मेरी सहायता के लिए विमी ने अपने पाँवों का बूस्टर लगाया, साईकल मचमचाती नाचती सी चलने लगी। हैंडल भी थोड़ा ढीला था इसलिए अपनी मर्जी से घूम रहा था पर जैसे तैसे मैं उस पर नियंत्रण बनाए हुए था। उजबक के पाँव भी लगातार पतवार की तरह गति बढ़ रहे थे मैं सीधे सीट से उठ कर पैडल पर सवार होकर फटाफट साईकल चलाने लगा। 8-10 बार जोर से पैडल लगा कर जब पैर सुस्त पड़ने लगे तो मैं उछल कर सीट पर वापस बैठ गया। दादाजी की साईकल को ये गुस्ताखी जैसा लगा , उसकी सीट की स्प्रिंग ने पिछवाड़े पर जोर से काट लिया। मैं फिर से उछल पड़ा, सीट नीचे गिर कर माँ वसुधा को पुनः प्रणाम करने लगी। ब्रेक लगाए पर लगे नहीं, इसलिए अगले पहिए में टाँग अड़ा कर रोकने की कोशिश की। बैलेंस बिगड़ा, पहले उजबक , फिर हम और हमारे ऊपर प्रेम पथिक आ कर गिरे। पर गनीमत ये रही कि मैं सीट गिरने के बाद वापस बैठा नहीं, अगर मैं जरा भी असावधान होता तो फिर कभी किसी सीट पर सीधे बैठने की हालत में न रहता।

To be continue....

#गुरुकुल पार्ट 3

#जयश्रीकृष्ण

✍️ अरुण

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👶🤔🤓😍😘 हृदय परिवर्तन ♠️♠️♠️♠️♠️ .

प्रातः 6 बज रहे हैं, उजबक अपनी दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर आकाश में अनन्त, असीम लालिमा को निहार रहे हैं। चेहरे पर सदैव के समान तेज़ है पर आज यूँ भावशून्यता देखना मुझे अच्छा नहीं लगा। कल ही विमी के पैसों से गुरुकुल के विद्यार्थियों ने गुलछर्रे उड़ाए थे, लगा कि कहीं इस भावशून्यता के पीछे जो कारण है कहीं उसकी जड़ें कल रात से ही तो नहीं जुड़ी हैं। मुँह में नीम का दातुन खोंसे मैं उजबक के पास चला आया, और कहा ,'क्या भाई आज बेचारे सूर्य देव को उदय होने दोगे या नहीं। कब से घूरे जा रहे हो, बेचारे डर कर निकल ही न रहे। 😜 ऐसा जुल्म मत करो प्यारे, इस अरुण का बदला उस अरुण से लोगे?'

उजबक  मेरी ओर स्मित नेत्रों से देख मुस्कुराते हुए बोले, 'ऐसा नहीं है मित्र, आप से मैं तो क्या गुरुकुल का कोई भी सदस्य रुष्ट हो ही नहीं सकता। वस्तुतः हमारे चिंतन का विषय वो नहीं है। कल आप सब जब आनन्दित हो रहे थे तो मैं बहुत उहापोह में था। मुझे स्वयं भी ये भान हुआ कि आप जो कह रहे हैं, उसे सिरे से नकारा नहीं जा सकता। मैं युवा हूँ, एक युवा के रूप में किसी संगिनी की कामना करना कोई चारित्रिक दोष नहीं, वरन अलंकरण ही कहा जाना चाहिए। भगवान भास्कर जब उदित होते हैं तो उनके साथ उनकी भार्या, ये अनुपम अरुणिमा उनकी कांति को द्विगुणित कर सृष्टि को उनके आगमन की सूचना देती है, क्या कोई चंद्र की कल्पना उनकी शीतल किरणों के बिना भी कर सकता है? आप सही हैं, प्रेम कोई बंधन नहीं, वह तो आह्लाद की विषयवस्तु है। मुझे भी किसी से प्रेम करना है, ऐसा प्रेम जैसा मीन जल से करती है, जिस संयोजन में पृथकता के लिए कोई स्थान न हो, आपने कल चमेली का जो पत्र मुझे हस्तांतरित किया, यद्यपि उसके कुछ अंशों को समझ पाने में मैं स्वयं को अक्षम पाता हूँ तथापि मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि आपने उसे मेरी ओर से हाँ कह ही दिया है तो अवश्य ही वे ही मेरी सहधर्मिणी बनने योग्य हैं। मैं इसे विधाता के विधान के रूप में स्वीकार कर अत्यंत हर्षित अनुभव कर रहा हूँ।'

मैं उजबक के भाषण, आई मीन उदबोधन को ध्यान लगा कर सुनने की कोशिश कर रहा था, कुछ समझ में आया कुछ नहीं, सुनकर दांत फिर से दातुन से खुरचना चालू करते हुए मैंने कहा,' भाई तुम हिंदी में बात किया करो न प्लीज, अच्छा सुनो न वो तुम्हारे वाली मिलने को बोली है तो कब मिलने जाओगे ? और हाँ ये न समझना कि तुमको १००० रुपल्ली का फ़टका लगा दिया। देखो यार, पार्टी जरूरी थी तो कर दी, वैसे हमको ये भी पता है कि तुम्हारे पास पैसे नहीं है। चिंता नको रे, तुम्हारी सब बीमारियों का इलाज अरुण मलहम तुम्हारे पास खड़ा है। पैसे का इंतज़ाम हमने कर लिया है, बस एक शर्त है हमको भी साथ ले जाना पड़ेगा। '

'देखिए हमें तो कोई आपत्ति नहीं मित्र, पर क्या यह उचित होगा ? मेरा अभिप्राय है कि आपकी उपस्थिति कहीं हम दोनों को असहज तो न कर देगी? कल्पनाओं की बात ओर है बन्धु किंतु यथार्थ में हमें इस संदर्भ में कोई अनुभव प्राप्त नहीं है, शेष आप ज्यादा जानते हैं, जैसा कहेंगे वैसा ही करेंगे।' उजबक बोले।

उजबक का मुझ पर अटूट विश्वास देख कर मैं फूल कर कुप्पा हुआ जा रहा था, इसलिए चौड़ियाते हुए खम शुरू किया, 'देखो मुन्ना, अब जब तुमने सब मुझ पर ही छोड़ दिया है तो टेंशन फ्री हो जाओ, कोई दिक्कत न होगी। सब पिलान रेडी है।' उजबक के कंधे पर हाथ रख कर बेतकल्लुफी से कहना जारी रखा ,'लड़की लड़के से मिलने जा रही, वो भी पहली बार, अकेली तो जाने से रही, कोई न कोई उसके साथ भी आएगी। उस कबाब की हड्डी को चबाने आई मीन हैंडल करने के लिए भी मेरा आपके साथ चलना बहुत जरूरी है। 😉😜 '

'वाह' सहसा उजबक के मुँह से निकला, फिर बोले 'आपकी दृष्टि बहुत व्यापक और दूरगामी है मित्र। आप निःसन्देह मेरे सर्वोत्तम मित्रों में से भी सर्वश्रेष्ठ कहे जाने योग्य हैं। पर धन की व्यवस्था कहाँ से हुई? क्योंकि जहाँ तक मुझे ज्ञात है आपके पास भी कोई संचित निधि होना असंभव है।'

मैं हंसा और कहा, 'टेंशन नको रे, बोला तो। जानते हो न, मारवाड़ी कभी रिक्स नहीं लेते। अच्छा ठीक है, ये देखो हमारा जुगाड़। ' कह कर मैंने एक कार्ड उजबक के हाथ में रख दिया। कार्ड देखते ही उजबक के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी, बोले 'पर ये तो सरदार का क्रेडिट कार्ड है, आपने चोरी की ? मुझे आपसे ऐसी आशा न थी मित्र, नजरों से गिर गए आप...'

'ओ हेलो, कोई चोरी बोरी नहीं करी मैंने, कल रात को सरदार खेत गन्दा करने गया था पॉटी करके, कार्ड वहीं छूट गया। जब वापस आया तो ढूंढा उसने, नहीं मिला। पर वो तो बेफिक्र हो गया, बोला हमको घण्टा फर्क नहीं पड़ता। हमने मोमबत्ती जला के पौना घण्टा खर्च किया तो कार्ड पाए हैं। हमारे मेहनत की कमाई है समझे। उ सरदार का कोनो हक नहीं इस पर, मांगे भी मुक्का मार देंगे हम। उ देखो वहाँ गेहूँ की बोरियों पर नींद में पड़े पड़े न जाने किसे सोच कर चुम्मियां उड़ा रहा अश्लील आदमी।' मैंने थोड़े आक्रोश से कहा।

'हम्म आप सही हो, आप गलत हो ही नहीं सकते, मुझे आप पर गर्व है मित्र' कहकर उजबक पुनः पूर्व दिशा निहारने लगे, उदित होते सूर्य की किरणें उनके भाल पर पड़ने लगी थी, मैं साफ देख पा रहा था कि इस साधु पुरुष के जीवन में निकट भविष्य में अवश्य कुछ क्रांतिकारी घटित होने वाला है।

To be continued.....

#गुरुकुल_पार्ट2

 #जयश्रीकृष्ण

✍️ अरुण

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👶👶👶👶👶 वन्स अपॉन ए टाइम इन गुरुकुल ♠️♠️♠️♠️♠️

'अच्छा अरुण भाई , जानते हैं हमको क्या लगता है ? हमको लगता है साहित्य में स्तरीय या लुगदी साहित्य जैसे भेद नहीं होने चाहिए। विधा चाहे जो हो हर साहित्यकार अपने अनुभव और ज्ञान के कोष से शब्द चुन कर अपनी कृति को अलंकृत करता है, किसी की अभिव्यक्ति के लिए 'लुगदी' जैसे विशेषणों का प्रयोग मुझे नितांत अनुचित प्रतीत होता है।'

अरे , अरुण भाई, कहाँ गए, अभी तो यहीं थे।? ' कहकर उजबक इधर उधर देखने लगे।

'अरे भाई, नीचे देखो तनिक, गर्मी लग रही थी, आप ही की छाया में बैठे हैं। खीखीखी

उजबक ने जोर से हंसने का उपक्रम करके बड़ी गम्भीर आवाज़ में तीन बार हा हा हा बोला। फिर बोले, 'आप बाज नहीं आएंगे कभी, उठिए देखिए न कितना गम्भीर विषय है। '

'हम्म गम्भीर तो मुझे भी लगता है। एक बात बोलें, यूँ तो आप काफी छायादार हैं हमारे लिए पर हम गारण्टी के साथ कह सकते हैं कि आप मोटे नहीं हो। आई थिंक आपको गैस हुई है, अमा कभी खुल कर भी हंस लो यार। 😜'

जवाब में उजबक ने चेहरे पर क्वेश्चन मार्क उकेरा, मुझे सहसा याद आया कि जो इंसान जब गले लगाता है तो हड्डियाँ अचानक तड़तड़ा कर बेडरेस्ट मांगने लगती हैं, अगर वही हमको मुक्का मार देगा तो शायद पीठ का हाल वैसा ही होगा जैसा बड़ा सा उल्कापिंड गिरने से पृथ्वी का होता है। इससे पहले की उस क्वेश्चन मार्क की जगह क्रोध ले मैंने तुरंत उनका ध्यान किसी दूसरी और आकर्षित किया, ये कहकर कि ,'गुरु आपने कभी प्रेम किया है?'

क्वेश्चन मार्क की जगह अब गर्व साफ दिखाई पड़ता था, अपने भाल को उन्नत कर उजबक बोले ,' हाँ बिल्कुल किया है, मैं अपनी जननी इस मातृभूमि से, इसके कण कण से, समस्त चराचर जगत से, अपने गुरुजनों, परिजनों यहाँ तक कि तुमसे भी प्रेम.....'

'ओ हेलो, रुको महाराज, ये सब ठीक है, पर आपने सादुलशहर की जगह सादुलपुर की बस पकड़ ली। ये नहीं वो दूजे टाइप के प्रेम का बताइए हमको, किए हैं कभी ?' हमने बीच में रोक कर कहा। उनके चेहरे पर एक भोला, मासूम और क्यूट सा क्वेश्चन मार्क फिर से उभर आया। तो हमने सीधे कहा, 'अरे गुरु, कोनो लड़की से प्रेम नहीं हुआ? और हाँ खबरदार जो माँ या बहन को इस प्रश्न के उत्तर में आसपास भी फटकने दिया तो, लड़की बोले तो लड़की , अब क्या बोले यार, एक तो आपसे सवाल पूछना ही महाभारत हो जाता है। यूँ कि ये बताइए, किसी कन्या को देखकर आपके मन का 'घनानन्द' जागा हो? कोई ऐसी कन्या जिसके लिए पूर्ण तन्मयता से ढेर सारा शृंगार लिखने या सुनाने का मन हो ? कोई ऐसी कन्या जिसके पदार्पण से आपका मनमयूर स्वतः नर्तन कर उठता हो? कोई है ऐसी ?'

उजबक गुरुकुल में सबसे अच्छे विद्यार्थी माने जाते हैं, और माने क्या जाते हैं वो हर क्षेत्र में सबसे अच्छे हैं भी। आज पहली बार उनसे किसी ने ऐसा प्रश्न पूछा था। मैं उनके चेहरे पर विभिन्न भावों का प्रवाह देख रहा था। उनकी आँखें उनकी मुस्कान के साथ विस्तारित होती चली गई, गाल भी सुर्ख होकर किसी षोडसी से समता करने का आग्रह करने लगे। सुना था लज्जा नारी का आभूषण है, ये आभूषण उजबक ने कब खरीदा मालूम नहीं पर आज पहने हुए मैं देख पा रहा था। गर्दन झुका कर सर नीचे किया, फिर धीरे से आँखे ऊपर की और मेरी ओर देखा। 'हाय मेरी जान, काश तुम ललकी होते' लगा कि जैसे मेरे ही मन में किसी ने पुकारा।

'अब नखरे ही करोगे या कुछ बताओगे भी', मैंने कहा।

उजबक ने सलज्ज होकर धीमे स्वर में कहना शुरू किया,' यद्यपि मेरे विचार में प्रेम नितांत निजी अनुभूति है तथापि आपसे मैत्री की सघनता मुझे आपके लिए अंतर के इस रहस्य को अनावृत्त करने का आग्रह कर रही है।'

अचानक मेरे मुँह से निकला 'हैं??' , मुझे खुले मुँह और अवाक देखकर उजबक बोले, 'मेरा आशय है कि मैं आपके इस प्रश्न का उत्तर अवश्य दूँगा मित्र।'

'प्रेम तो पारस है मित्र, कौन इसका स्पर्श पाकर कंचन न हो जाना चाहेगा? किंतु शैशवकाल से लेकर वर्तमान तक हमनें अपने लक्ष्य ही से प्रेम किया है। आपको याद है न विवेकानंद जी ने क्या कहा था,'उठो , जागो और तब तक न रुको जब तक.....'

'देवता जी , विवेकानंद ने चाहे जो कहा हो, पर आप अभी अपनी जीभ को ब्रेक लगाओ, और हाँ ये लो तुम्हारे नाम से पास वाले कन्या गुरुकुल की चमेली ने ये लैटर आई मीन पत्र आपके लिए भेजा है। यूँ की आप चाहो न चाहो पर छोरी आपसे पट गई है, जबरदस्ती। एक बार और, ना कहने का सवाल ही नहीं क्योंकि आपकी और से हाँ वाला लेटर हम खुद अपने पर्सनल कर कमलों से लिख कर दे चुके हैं, तुम्हारे बैग से १००० रुपए निकाले थे शाम को पार्टी है, मन हो तो आ जाना।

अब उजबक के चेहरे पर जो भाव थे उन्हें वर्णित करना मेरे लिए सम्भव न था।

#जयश्रीकृष्ण

✍️ अरुण

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😜😜😜😜😜 लव 2 बी फट्टू ♠️♠️♠️♠️♠️

 एक दोस्त हैं, बड़े दिलेर टाइप, बोले तो हर काम को मर्दानगी से करने वाले। बोलने से लेकर चलने तक सबमें माचो लुक कम्पलसरी है और ये वो कैसे घुसेडते हैं ये कोई उनसे ही सीखे। हम लोग कॉलेज में थे, एक दिन हमारे रूम पर पधारे तो देखा हेयर स्टाइल चेंज कर रखा पठ्ठे ने, पूछा तो बोले, 'अबे तुम न समझोगे, लड़कियाँ मरती हैं ये सब स्टाइल पर'। हम अवाक होकर सुनते रहे, उनकी कुछ ज्ञात अज्ञात कहानियों पर वृह्द चर्चा, उनके डेयरिंगनेस के किस्से, खुद की उन्हीं की जुबानी। चेहरे पर हल्की चोट के निशान देखकर पूछा तो बोले अरे वो झगड़ा हो गया था किसी गैंग से, वो 7 थे हम अकेले, लेकिन एक एक को तबियत से कूट के आए हैं, पर 7 लोगों से एक साथ भिड़ोगे तो एक आध खरोंच खुद को भी लग ही जाया करती है। ये कह कर गर्व से मेरी और देखा। मैं खिसिया कर किताब में मुँह छुपाने लगा। फिर जब वो चले गए तो मेरा दोस्त बोला, 'फेंकता है साला। पता है श्याम बता रहा था कि उसके अकॉउंट से केंटीन में रोज कुछ न कुछ खा जाता था ये बिना बताए, पूछा तो अकड़ने लगा, श्याम ने घसीट घसीट के पीटा है। मैं बस मुस्कुरा भर दिया। शायद कुछ कहने को था भी नहीं।

****

कॉलेज में राजनीति की क्लास चल रही थी, हम सबसे पीछे बैठे थे। माचो बाबू सपना का सपना रोज देखते थे इसलिए उस दिन उसी के पास वाली सीट पर हकीकत में जा बैठे। शायद कुछ कहने की कोशिश भी हो रही थी, सपना ने हिकारत भरी नजरों से उन्हें देखा फिर वापस क्लास में कॉन्सन्ट्रेट करने लगी। अचानक माचो बाबू ने उसकी जांघ पर हाथ रख दिया। सपना उठी, हाथ को 270° पीछे घुमाया और प्रकाश की गति से वापस छोड़ दिया। एक जोरदार आवाज़ ने बाकी क्लास का भी ध्यान आकर्षित किया, किसी ने कुछ न पूछा। माचो बाबू के चेहरे पर छपी पतली पतली धारदार उंगलियों की लालिमा सब हलफन बयान कर रही थी। बाद में ये भी सुना कि प्रिंसिपल के सामने छोरी ने तब माफ किया जब इसने 51 बार नाक से जमीन पर सॉरी लिख कर माफी न मांग ली। शाम को जब रूम आए तो बोले अरे यार गिर गए थे नाक पर घसीट लगी है ये भी बोले कि लड़कियों को सच्चे प्यार की कद्र नहीं होती, इसलिए अब वो भी सपना से प्यार नहीं करते। जा बेवफा जा तुझे प्यार नहीं करना टाइप। फिर मेरी और देख कर मुस्कुराए बोले साले फट्टू किताबों में घुसे रह जाओगे कुछ न होना तुमसे।

****

एक दिन हम सब मेला देखने जा रहे थे सुखाड़िया सर्किल, जाने किधर से माचो बाबू भी आकर साथ हो लिए। मैंने श्याम से धीरे से कहा ये खुद भी पिटेगा और हमें भी पिटवाएगा। कान बहुत तेज़ थे कमबख्त के, सुन लिया शायद, बोला अबे डर मत छिलके, मेरे होते कोई हाथ नहीं लगा सकता तुमको। मैं मन ही मन बोला कि साले यूँ तो कोई न लगाएगा तेरी वजह से ठोक दे तो बात अलग है। उसने फिर से मेरी और घूर के देखा।

मुझे उस गोल झूले से बहुत डर लगता है जो ऊपर से नीचे गोल गोल घूमता है। खासकर तब जब वो नीचे से ऊपर आने लगता है, उस वक़्त जो हिलोर आती है तो सच्ची कलेजा बैठ जाता है। माचो बोले कि झूलेंगे हम बोले नहीं झूलेंगे, पर इस हाँ ना के बीच वो श्याम को लेकर झूले पर सवार हो गए। झूले पर लड़कियाँ भी सवार थी। झूला चलने से पहले ही लाइन मारना शुरू कर दिया, मानो झूले नहीं फेरे लेने जा रहे उनके साथ, और अब जब उतरेंगे तो बस घर बसा कर ही उतरेंगे। हर चक्कर के साथ माचो जोर जोर से चिल्लाते हुर्रर हुर्रर , पहले तो लगा वो एक्साइटेड होकर चिल्ला रहे, पर थोड़ी ही देर में उनका हुर्रर अबे साले रोक में बदल गया। झूला तेज़ गति पकड़ चुका था। अचानक रोकना शायद सम्भव भी नहीं था। जब किसी ने उनकी आवाज़ न सुनी तो रोने लगे। लड़कियाँ हँस रही थी, मैं भी। पर थोड़ी ही देर में लड़कियाँ हंसना छोड़ माचो की साइड लेकर झूला रोकने को चिल्लाने लगी। ना ना, वो डरी नहीं, दरअसल माचो साहब डर के मारे लीक हो गए थे और उनका लीकेज लड़कियों पर छींटों की शक्ल में गिर रहा था। जब झूला रुका तो हांफते हुए माचो दोनों गालों को छुपाने के यत्न कर रहे थे जिस में लड़कियों ने बदतमीज बोल कर फिर से रंग भर दिए थे। मुझे देखा तो बोला पता नहीं किस साले ने पानी गिरा दिया, सब कपड़े भीग गए।

***

कॉलेज के साथ ही माचो का भी साथ छूट गया। कभी कभी सोचता भी कि अपनी कमजोरी से उबरने की कोशिश करना तो ठीक है पर कमज़ोरी को छुपाने का उस तरह दिखावा कितना जरूरी होता होगा? खैर आज मार्किट गया था, तो फिर से माचो मैन मिल गए, उनकी भैंस के पीछे सब्ज़ी का थैला उठाए चल रहे थे। मैंने आवाज़ दी तो मेरी और देखा पर फिर बिना कुछ कहे आगे बढ़ गए।

#जयश्रीकृष्ण

✍️ अरुण

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🚌👬🥛💦🌧️💦💫 ब्रह्मज्ञान ♠️♠️♠️♠️♠️ .

रेलवे में काम करना कभी मेरा सपना था, बहुत से एग्जाम दिए अनगिनत बार फैल हुआ और आखिरकार पास भी, असिस्टेंट स्टेशन मास्टर और गुड्स गार्ड के पदों पर सेलेक्ट भी हुआ, पर उससे पहले राजस्थान सरकार मेहरबान हो गई, घर से कुछ दूर चलते ही पोस्टिंग भी हो चुकी थी इसलिए पश्चिम रेलवे जोन के अहमदाबाद मंडल से नियुक्ति आदेश मिलने पर भी गया नहीं। इकलौता बेटा होने की दुहाई देकर कुछ मित्रों ने ही समझा दिया कि इससे आराम की नौकरी और क्या होगी , रेलवे में रहे तो परिवार के साथ लगभग हर दूसरे साल घरवालों के साथ सामान उठाए घूमोगे, बाकी सब से कट जाओगे सो अलग। मान ली उनकी बात, और नहीं गया। 

खैर ये उन दिनों की बात है जब मैं लगातार फैलियर झेल कर निराशा के अथाह सागर में गोते लगा रहा था। बी. एड. करने के बारे में कभी सोचा नहीं था पर जब लगा कि अब बाकी विकल्पों ने साथ देने से मना कर दिया है तो सीधे कश्मीर यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया, राजस्थान में ही बीएड एंट्रेंस एग्जाम देता तो शायद हो भी जाता पर यू नो ना, फैल हो हो कर इतना दिमाग खराब हुआ पड़ा था कि सोचा नो रिक्स रे बाबा। बीएड को अपने कुछ तथाकथित शुभचिंतकों की पकाऊ बातों और घनघोर निराशा से उबरने के साधन के रूप में लिया था। हम 6 लोग थे तो सोचा हॉस्टल के प्रतिबन्धों के झेलने के बजाय बाहर स्वतंत्र रहा जाए। इसलिए मैं और मेरे एक मित्र ने सेशन शुरू होने से पहले कश्मीर का एक एक चक्कर लगा कर रेंट पर मकान की व्यवस्था कर आने का निश्चय किया। अभी मैंने जो भी राम कहानी हलफन बयान की ये उसी चक्कर मे कश्मीर जाते समय की यात्रा से सम्बंधित है। हो सकता है कि आप कहो कि इसके बिना भी काम चल सकता था, शायद हाँ, पर मेरी मर्जी, मैं आपको जबरदस्ती ये भी सुना कर ही रहूँगा। 🤣🤣🤣🤣🤣

बहरहाल खर्च की कोई चिंता नहीं थी, क्योंकि हमारी इस यात्रा को 6 लोगों द्वारा मिल कर स्पॉन्सर किया जा रहा था। श्रीगंगानगर से जम्मू के लिए बस में स्लीपर बुक करवा लिए। रास्ते के लिए सब कुछ लिया पर पानी भूल गए। रात में जब दोनों का गला सूखने लगा तो बस रुकने का बेसब्री से इंतज़ार होने लगा और जैसे ही मौका मिला मित्र दौड़ कर 2 लीटर स्प्राइट और 2 बोतल पानी ले आया। 'अबे कितने जन्म का प्यासा है' मैंने कहा तो वो दांत चियार कर बोला अब प्यास की ऐसी की तैसी। जब पानी की दोनों बोतल हम दोनों ने तुरंत खत्म कर दी तो लगा लौंडे ने काम तो सही ही किया है। लगा कि प्यास अब भी थोड़ी बाकी है तो स्प्राइट की बोतल की गर्दन मरोड़ कर शुरू हो गए। तुरंत तो नहीं पर कुछ देर बाद वो भी चरम को प्राप्त हो गई। अपने मित्र की समझदारी पर खीखी करते बतियाते कब नींद आ गई पता ही न चला, सुबह 6 बजे जम्मू पहुंचने से पहले लगभग 5:30 पर ही हमें हमारे ब्लैडर ने उठा लिया जो चीख चीख कर कह रहा था कि जल्दी से खाली करो मुझे वरना अगर वो अपनी पर आया तो हमें पानी पानी कर देगा। कंडक्टर से पूछा तो बोला अभी बस पहुंचने ही वाले हैं। तनाव हमारे चेहरे से साफ झलक रहा था, धीरे धीरे जम्मू के नजदीक आने के साथ ही प्रेशर एकतरफा से दो तरफा होते जा रहा था। बार बार ,'भाई कितना टाइम और लगेगा' पूछते उसके 'बस पहुंच ही गए समझो' वाले आश्वासन से अपने प्रेशर को बहलाते आखिर जम्मू पहुँचे। हमारे एडमिशन वाले एजेंट ने बोला था कि जम्मू से श्रीनगर के लिए तुरन्त निकल लेना, जितना देर करोगे उतनी समस्या बढ़ती जाएगी, हो सकता है साधन न मिलें या रास्ते में फंस जाना पड़े। उसकी बातें सुनकर सोच रखा था कि हाँ सही है तुरन्त निकल लेंगे। पर फिर लगा फिलहाल सुलभ शौचालय पर 'कुछ चढ़ाना' सबसे ज्यादा इम्पोर्टेन्ट हैं। हालांकि वहाँ भी भीड़ ही थी सवेरे सवेरे, जहाँ विभिन्न धर्मों और जातियों के योद्धा हर तरह के जातिगत और साम्प्रदायिक द्वेष से परे अपने तनाव पर विजय पाने और फिर उससे मुक्ति प्राप्त करने हेतु प्रयासरत थे, अपने विशिष्ट मारवाड़ी कौशल का प्रयोग करते ही सबको छकाते हुए हमने वो जंग फतेह हासिल की। बाहर आए तो लगा जैसे कुछ प्रॉब्लम कभी थी ही नहीं और ये लोग पागल हैं क्या, क्यों खड़े हैं यहाँ, कुछ काम धाम तो है नहीं, हुँह। 😉

श्रीनगर के लिए जाने से पहले पानी की दो बोतल और 2 चिप्स के पैकेट ले लिया गया, अगेन नो रिक्स रे बाबा, क्या पता फिर प्यास लगे तो पानी तो साथ होने को मांगता है कि नहीं। किसी टाटा सूमो में 400/- प्रति व्यक्ति देने की बजाय बस में 300/- दोनों की टिकट के लिए देना हमारे मारवाड़ी मन को ज्यादा सही लगा, भले ही खर्च की कोई पाबंदी नहीं थी पर कंजूसी भी कोई चीज होती है, जिसे मितव्ययता के व्रेपर में लपेट कर हम एक दूसरे को बेवकूफ बना चुके थे। बस में चढ़े तो पता लगा सबसे लास्ट वाली सीट्स पर हम बैठेंगे। सही है गुरु, कौन क्या कर रहा है सब दिखेगा, एक्स्ट्रा झूले मिलेंगे सो अलग, सब हमारे कंट्रोल में है, ग्रेट। बस में बिल्कुल वैसा ही माहौल था जैसा बाकी बसों में होता है, फर्क बस इतना था कि यहाँ जालीदार टोपियाँ ज्यादा नजर आ रही थी। सब अपने आप मे 'मशगूल' थे तो हम भी खाने-पीने में व्यस्त होने का उपक्रम करने लगे।

जब भी जम्मू का नाम सुना कश्मीर के साथ ही सुना, इसलिए ये वहम था कि उसका ये जुड़वां भाई उसी के आसपास ही होगा। पर हमारे सारे अनुमान मुँह में कचड़ कचड़ करती चिप्स से भी कमजोर निकले, सब बिना आवाज़ किए ध्वस्त हो गए जब एक सहयात्री से पूछने पर उसने बताया कि कम से कम 10-12 घण्टे लेगी ये बस😱😱। अबे मरवा दिया बे, 12 घण्टे लगेंगे 😱😱😱😣😣😣 मित्र की और देखा वो भी परेशान नजर आया पर उसकी परेशानी का कारण अलग था, बोला यार मुझे नम्बर वन वाला प्रेशर फिर से आ रहा। देखा जाए तो इस सिचुएशन में मुझे उससे ये डायलॉग खम चाहिए था कि अभी थोड़ी देर पहले ही तो फ्रेश हो कर आए हो पर नहीं बोला। क्यों? क्योंकि भविष्य के अकाल की कल्पना करते हम दोनों ने इतना पानी उदरस्थ कर लिया था कि अब ब्लेडर "एक बार से दिल नहीं भरता, मुड़ के देख मुझे दोबारा" गा रहा था। मित्र से थोड़ा कम ही सही पर मुझे भी अपना ब्लैडर फिर से भरता सा मालूम हुआ। पर सोचा बस ही है, रुक रुक कर जाएगी, जैसे ही ड्राइवर ब्रेक लगाएगा हम उतर कर ब्रेक हटा देंगे, हां नहीं तो 😂।

थोड़ी देर मुस्कुराने की कोशिश जरूर की, पर ऐसे तनाव में मुस्कुराते रहना सबके बस का नहीं होता, हमारे भी नहीं था। बाहर के दृश्य लुभावने तो छोड़ो डरावने भी नहीं लग रहे थे। बाहर सड़क के एक और पहाड़ थे, और दूसरी और गहरी घाटी, ड्राइवर लगातार बस को किसी रॉलर कोस्टर की तरह भगा रहा था। आसपास दूर दूर तक कोई गाँव या शहर नजर न आता था। चिप्स अच्छी लगनी बन्द हो गई। मन में आ रहा था बस एक बार बस रुक जाए तो घाटी में सैलाब ला दूंगा। आखिरी सीट वाले झूले भी सुहाने न लग रहे थे, हर हिलोर के साथ लगता जैसे थोड़ा भी ध्यान हटा तो बस ही में प्रलय आ सकती है। आखिर कंडक्टर को बोला गया कि बस 2 मिनट ही के लिए पर प्लीज बस रोक दो। उसने हमें ऐसे देखा जैसे हम एलियंस हैं, फिर आगे देखने लगा। उसकी ये उदासीनता देख हमारी टेंशन हमारे सर चढ़ कर बोलने लगी, मर्यादा वर्यादा भूल सीधे जोर से कह दिया, अबे बस रोक नहीं तो बस ही में निकल जाएगा। बस की बाकी सवारियों ने पीछे सर घुमाया , एक ज़ोरदर सम्मिलित ठहाका बस में बड़ी देर तक प्रतिध्वनित होता रहा। कंडक्टर शायद बुद्धत्व प्राप्त मनई था, चेहरे पर स्थायी विषाद की छाया लिए उसके चेहरे पर कोई भाव न था, सिर्फ इतना बोला बारिश हुई थी रात में लैंडस्लाइड में फंस गए तो मुश्किल हो जाएगी। थोड़ी देर में खाने के लिए रुकेंगे तब कर लेना। 'खाना? खाने से ज्यादा निकालना जरूरी है। और अभी तो 9 बजे हैं , इतनी जल्दी कौन खाना खाता है? यार अंकल, प्लीज रोक दो।' हमने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा। कंडक्टर बस इतना बोला कि 'अभी नहीं 12 बजे तक रुकेंगे खाने के लिए' और फिर मुँह फेर लिया। मन तो किया कि सब तमीज साइड में रख के घुमा के दे दूँ अंकल के थोबड़े पर, मुँह घुमाना भूल जाएगा। जाहिल, गधा, उल्लू, पाज़ी। पर आईडिया ड्राप कर दिया। एक तो अंकल मस्क्युलर थे और ऊपर से हम दोनों डेढ़ पसली, क्योंकि अगर दोनों पंगा ले भी ले लेते और एक भी चांटा लग जाता तो तुरन्त गर्म झरनों का बहना भी तय था।
अपनी किस्मत और मूढ़मति को कोसते वापस वहीं अपनी सीट पर आकर बैठ गए। टाइम पास करने और ध्यान भटकाने को मोबाईल निकाला तो देखा इसमें भी नेटवर्क नहीं, किसी ने बताया कि शेष भारत के प्रीपेड कश्मीर में बंद हो जाते हैं, नोकिया 1110 था और सांप वाला गेम कितनी देर तक खेलेगा कोई, हाय री किस्मत, ऊपर देखा, मन से आवाज़ आई भगवान तुझे एक्सपेरिमेंट करने को या परीक्षा लेने को मैं ही मिलता हूँ? और ये भी कोई परीक्षा है भला? चीटिंग करते हो, चीटिंग चीटिंग चीटिंग 😣😢। मोबाईल में भले ही नेटवर्क नहीं था, पर अचानक लगा जैसे भगवान ने सुन ली हो, अचानक हल्की हल्की बारिश होने लगी। पहाड़ से पत्थर गिरने लगे, तो ट्रैफिक जाम सा होने लगा। बस के ब्रेक लगे तो हम दोनों तुरन्त बिना कुछ भी किसी से कहे सीधे झटपट बस से उतर गए। पत्थर हम पर गिर सकते थे, हम मर सकते थे, बस चली जाती तो वही पहाड़ों में फंस भी सकते थे, पर हु केयर्स , दौड़ कर गए, स्वच्छता अभियान से मुँह घुमा कर घाटी की और कर लिया,अचानक ब्रह्मज्ञान हो गया, अहा परमोसुखम् , बस यही सत्य है शेष समस्त जगत मिथ्या है।

#जयश्रीकृष्ण

✍️ अरुण

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🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...