🚲🚲🚲🚲🚲 मैं और प्रेम पथिक ♠️♠️♠️♠️♠️

'अरे यार, ये तुमने क्या पहना है! धोती कुर्ता !? वो भी सफेद ? लड़की से मिलने जा रहे हो या किसी की मैय्यत में अफसोस जताने ? कम से कलरफुल ही पहन लो न यार। और ऊपर से ये तिलक भी? लोग समझेंगे पंडिज्जी किसी के श्राद्ध में जीमने निकले हैं 😩'

मेरे कथन पर उजबक ने कोई विशेष ध्यान न दिया। तिलक लगा चुकने के बाद अपनी शिखा  संवारने लगे। शिखा में कंघी घुमाते घुमाते ही बोले, ' आप जानते हैं अरुण भाई शास्त्र कहता है कि शिखाविहीन मनुष्य चांडाल के समान होता है? जिस प्रकार पृथ्वी के दो ध्रुव होते हैं उसी प्रकार मानव शरीर में भी ध्रुवीय आकर्षण/प्रतिकर्षण पाया जाता है। हमें लगता है देवी चमेली भी इस चुटिया के पाश से मुक्त नहीं हो पाई होंगी। आपका क्या विचार है?"

'ओ महाराज, तुम्हें तुम्हारी इसी चुटिया की कसम। लड़की के सामने चुटिया पुराण मत बाँचने लग जाना कहीं और तुम्हारे इस टॉवर में गांठ लगा लो। लड़की को रेडिएशन न हो जाए कहीं 😂'

'परिहास न करें मित्र, हम अपने प्रथम प्रेम का प्रत्येक क्षण जीना चाहते हैं, उसका आनन्द उठाना चाहते हैं। अब आप अगर व्यवधान न डालें तो थोड़ा काजल लगा लें हम?' उजबक के चेहरे पर मात्र प्रेम था पर जाने क्यों इस क्षण मुझे c लिखा दिखाई दिया।

 'अज़ीब है यार, काजल कौन लड़का लगाता है और वो भी लड़की से मिलने जाते वक्त ? हद ही हो गई।' मन ही मन मैंने कहा।

'हम लगाते हैं कोनो दिक्कत ?' कह कर विमी ने कृत्रिम क्रोध से मुझे देखा। जाने कैसे ये आदमी मन की बात भी सुन लेता है। मैं बस सोच ही रहा था कि उजबक ने अपने तैयार होने की घोषणा करते हुए मुझसे पूछा ,'आप धोती नहीं पहनेंगे ?'

'पहनेंगे' शब्द पर इतना ज्यादा जोर दिया गया था कि मुझे झुक कर नीचे देख कर आश्वस्त हो लेना पड़ा कि वाकई मुझे कुछ पहनने की आवश्यकता तो नहीं ? नहीं नहीं पेंट पहन तो रखी है। इसलिए तुनक कर कहा, 'कैसी बातें करते हो? धोती नहीं पहनेंगे हम, ये जीन्स टी शर्ट ही ठीक है।'

'हम समझ गए, आप नहीं चाहते कि आप हमसे अधिक सुंदर दिखे। बाह अरुण भाई बाह, आपकी दूरदर्शिता को प्रणाम करने का मन होता है हमारा, अभी कर भी देते पर विलम्ब हो रहा है हम नहीं चाहते कि देवी चमेली को हमारे कारण प्रतीक्षा करनी पड़े।' कह कर उजबक मुस्कुराए। मैंने उनकी तरफ अब ध्यान से देखा श्वेतांबर धारी ये गेहुँआँ गुलाब अपने सरसों के तेल से लबालब भरे बालों, काजल से काली की आँखों मे बच्चों सी मुस्कान बिखेरता बहुत अज़ीब पर क्यूट लग रहा था।

'अरुण भाई अब आप ऐसे मत देखिए हमको नजर लग जाएगी, हमारी अम्मा भी कहती हैं उनके लल्ला को यानि हमको नजर तो बस लगने का बहाना ढूंढती है। कोई भी थोड़ा ध्यान से देख ले तो उसी पल हम उसको अच्छे लगने लगते हैं और अगले ही पल हमको नजर हो जाती है। अम्मा कहती हैं कि नजर तभी लगती है जब किसी को कोई बहुत प्यारा लगता है, हमको तो अम्मा की भी नजर लग जाती थी लेकिन वो तो बेचारी सारा दिन थुथकार कर, उतारा करती थी तब कोई दिक्कत नहीं होती थी, वरना जानते हैं नजर लग जाए तो दस्त हो जाते थे हमको। आप नजर मत लगाओ धोती सफेद है न, दिक्कत हो सकती है समझिए।' विमी ने इतनी मासूमियत से कहा कि सचमुच वो बहुत प्यारा लगा मुझे, इसलिए उसका मन रखने के लिए दो बार हल्का थू थू कर के थुथकार दिया।

उजबक की बाँछे खिल गई। पहले वो फिर उनका पेट अलग अलग हंसते रहे फिर चहक कर बोले, 'चलें अरुण भाई?' मैंने कहा चलो तो बाहर की और चलने की जगह भीतर की और दौड़ लगा दी। 5 मिनट बाद वापस आए तो डकार लेते हुए बोले, ' दही चीनी खाकर आए हैं दो कटोरा, हमारी अम्मा कहती हैं कि शुभ होता है।' समझ में नहीं आ रहा था कि इस 85 किलो के बच्चे को कोई कैसे समझाए बस इतना कह, 'अब चलें?' उजबक ने कुछ कहने की बजाय सिर्फ स्वीकारोक्ति में सर हिला कर 'हूँ' कहा।

छात्रावास के बाहर एक साईकल खड़ी थी, जो प्रागैतिहासिक मालूम पड़ती थी। जो इतनी पुरानी थी कि इतना रगड़ रगड़ के धोए जाने के उपरांत भी अपनी जननी का नाम बता सकने में असमर्थ थी। उजबक ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, और कहा , 'देखिए हमने वाहन की व्यवस्था तो कर दी है पर हमें इसे चलाना नहीं आता, यद्यपि हम आपके लिहाज से थोड़ा भारी हैं किंतु हमें आपकी मैत्री की शक्ति पर पूर्ण विश्वास है, आप बखूबी इसका संचालन करेंगे। आप जानते हैं हमारे दादा श्री गंगादीन जी जब हमारी दादी माँ को इस पर घुमाने निकलते थे तो बच्चे, बूढ़े, जवान, पुरुष, स्त्री सब का हुजूम उन्हें देखने को उमड़ आया करता था। वो भी क्या दिन थे...। अब चलाइए भी कह कर वो पिछली सीट पर दोनों और टांगे निकाल कर बैठ गए। 'आइए आइए' उजबक ने फिर से कहा तो मैंने कहा कि , 'ऑटो से चल पड़ते ......'

मेरी बात पूरी नहीं होने नहीं दी उजबक ने, बोले , ' कैसी बातें करते हैं आप? प्रेम में तो भावनाओं का ही प्राधान्य होता है,  पहली बार मिलने जा रहे हैं, तो किराए के साधन पर बैठेंगे ? न न न , अपना वाहन तो अपना ही होता है, और ये वाहन तो अनन्त काल से प्रेम पथिकों का अवलंब बना है, हम चाहते हैं कि हमारे प्रेम का साक्षी भी यही बनें, कोई ऑटो नहीं। चलिए भी आपको बहुत आनन्द आने वाला है इस पर बैठ कर ,कह कर उजबक ने जोर से ड्राइवर सीट पर हाथ मारा। सीट उछल कर नीचे जा गिरी। उजबक मुस्कुरा कर बोले, 'आज समय बहुत शुभ है। माँ वसुधा को प्रणाम करना हम और आप भूल रहे थे तो इस ने याद दिला दिया।' कहते हुए उजबक ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पायलट सीट पर बिठा दिया। मुझे लगा कि धरती जोरों से हिल रही है, लगा कि अगर इसे चलाया नहीं ये प्रेम पथिक हमें लेकर धरती में समा जाएगा। पांव से जोर लगाया पर कोई असर न हुआ, वैसे भी ट्रक में मोटरसाइकिल का ईंजन लगा हो तो दिक्कत आती ही है। मेरी सहायता के लिए विमी ने अपने पाँवों का बूस्टर लगाया, साईकल मचमचाती नाचती सी चलने लगी। हैंडल भी थोड़ा ढीला था इसलिए अपनी मर्जी से घूम रहा था पर जैसे तैसे मैं उस पर नियंत्रण बनाए हुए था। उजबक के पाँव भी लगातार पतवार की तरह गति बढ़ रहे थे मैं सीधे सीट से उठ कर पैडल पर सवार होकर फटाफट साईकल चलाने लगा। 8-10 बार जोर से पैडल लगा कर जब पैर सुस्त पड़ने लगे तो मैं उछल कर सीट पर वापस बैठ गया। दादाजी की साईकल को ये गुस्ताखी जैसा लगा , उसकी सीट की स्प्रिंग ने पिछवाड़े पर जोर से काट लिया। मैं फिर से उछल पड़ा, सीट नीचे गिर कर माँ वसुधा को पुनः प्रणाम करने लगी। ब्रेक लगाए पर लगे नहीं, इसलिए अगले पहिए में टाँग अड़ा कर रोकने की कोशिश की। बैलेंस बिगड़ा, पहले उजबक , फिर हम और हमारे ऊपर प्रेम पथिक आ कर गिरे। पर गनीमत ये रही कि मैं सीट गिरने के बाद वापस बैठा नहीं, अगर मैं जरा भी असावधान होता तो फिर कभी किसी सीट पर सीधे बैठने की हालत में न रहता।

To be continue....

#गुरुकुल पार्ट 3

#जयश्रीकृष्ण

✍️ अरुण

Rajpurohit-arun.blogspot.com

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