रेलवे में काम करना कभी मेरा सपना था, बहुत से एग्जाम दिए अनगिनत बार फैल हुआ और आखिरकार पास भी, असिस्टेंट स्टेशन मास्टर और गुड्स गार्ड के पदों पर सेलेक्ट भी हुआ, पर उससे पहले राजस्थान सरकार मेहरबान हो गई, घर से कुछ दूर चलते ही पोस्टिंग भी हो चुकी थी इसलिए पश्चिम रेलवे जोन के अहमदाबाद मंडल से नियुक्ति आदेश मिलने पर भी गया नहीं। इकलौता बेटा होने की दुहाई देकर कुछ मित्रों ने ही समझा दिया कि इससे आराम की नौकरी और क्या होगी , रेलवे में रहे तो परिवार के साथ लगभग हर दूसरे साल घरवालों के साथ सामान उठाए घूमोगे, बाकी सब से कट जाओगे सो अलग। मान ली उनकी बात, और नहीं गया।
खैर ये उन दिनों की बात है जब मैं लगातार फैलियर झेल कर निराशा के अथाह सागर में गोते लगा रहा था। बी. एड. करने के बारे में कभी सोचा नहीं था पर जब लगा कि अब बाकी विकल्पों ने साथ देने से मना कर दिया है तो सीधे कश्मीर यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया, राजस्थान में ही बीएड एंट्रेंस एग्जाम देता तो शायद हो भी जाता पर यू नो ना, फैल हो हो कर इतना दिमाग खराब हुआ पड़ा था कि सोचा नो रिक्स रे बाबा। बीएड को अपने कुछ तथाकथित शुभचिंतकों की पकाऊ बातों और घनघोर निराशा से उबरने के साधन के रूप में लिया था। हम 6 लोग थे तो सोचा हॉस्टल के प्रतिबन्धों के झेलने के बजाय बाहर स्वतंत्र रहा जाए। इसलिए मैं और मेरे एक मित्र ने सेशन शुरू होने से पहले कश्मीर का एक एक चक्कर लगा कर रेंट पर मकान की व्यवस्था कर आने का निश्चय किया। अभी मैंने जो भी राम कहानी हलफन बयान की ये उसी चक्कर मे कश्मीर जाते समय की यात्रा से सम्बंधित है। हो सकता है कि आप कहो कि इसके बिना भी काम चल सकता था, शायद हाँ, पर मेरी मर्जी, मैं आपको जबरदस्ती ये भी सुना कर ही रहूँगा। 🤣🤣🤣🤣🤣
बहरहाल खर्च की कोई चिंता नहीं थी, क्योंकि हमारी इस यात्रा को 6 लोगों द्वारा मिल कर स्पॉन्सर किया जा रहा था। श्रीगंगानगर से जम्मू के लिए बस में स्लीपर बुक करवा लिए। रास्ते के लिए सब कुछ लिया पर पानी भूल गए। रात में जब दोनों का गला सूखने लगा तो बस रुकने का बेसब्री से इंतज़ार होने लगा और जैसे ही मौका मिला मित्र दौड़ कर 2 लीटर स्प्राइट और 2 बोतल पानी ले आया। 'अबे कितने जन्म का प्यासा है' मैंने कहा तो वो दांत चियार कर बोला अब प्यास की ऐसी की तैसी। जब पानी की दोनों बोतल हम दोनों ने तुरंत खत्म कर दी तो लगा लौंडे ने काम तो सही ही किया है। लगा कि प्यास अब भी थोड़ी बाकी है तो स्प्राइट की बोतल की गर्दन मरोड़ कर शुरू हो गए। तुरंत तो नहीं पर कुछ देर बाद वो भी चरम को प्राप्त हो गई। अपने मित्र की समझदारी पर खीखी करते बतियाते कब नींद आ गई पता ही न चला, सुबह 6 बजे जम्मू पहुंचने से पहले लगभग 5:30 पर ही हमें हमारे ब्लैडर ने उठा लिया जो चीख चीख कर कह रहा था कि जल्दी से खाली करो मुझे वरना अगर वो अपनी पर आया तो हमें पानी पानी कर देगा। कंडक्टर से पूछा तो बोला अभी बस पहुंचने ही वाले हैं। तनाव हमारे चेहरे से साफ झलक रहा था, धीरे धीरे जम्मू के नजदीक आने के साथ ही प्रेशर एकतरफा से दो तरफा होते जा रहा था। बार बार ,'भाई कितना टाइम और लगेगा' पूछते उसके 'बस पहुंच ही गए समझो' वाले आश्वासन से अपने प्रेशर को बहलाते आखिर जम्मू पहुँचे। हमारे एडमिशन वाले एजेंट ने बोला था कि जम्मू से श्रीनगर के लिए तुरन्त निकल लेना, जितना देर करोगे उतनी समस्या बढ़ती जाएगी, हो सकता है साधन न मिलें या रास्ते में फंस जाना पड़े। उसकी बातें सुनकर सोच रखा था कि हाँ सही है तुरन्त निकल लेंगे। पर फिर लगा फिलहाल सुलभ शौचालय पर 'कुछ चढ़ाना' सबसे ज्यादा इम्पोर्टेन्ट हैं। हालांकि वहाँ भी भीड़ ही थी सवेरे सवेरे, जहाँ विभिन्न धर्मों और जातियों के योद्धा हर तरह के जातिगत और साम्प्रदायिक द्वेष से परे अपने तनाव पर विजय पाने और फिर उससे मुक्ति प्राप्त करने हेतु प्रयासरत थे, अपने विशिष्ट मारवाड़ी कौशल का प्रयोग करते ही सबको छकाते हुए हमने वो जंग फतेह हासिल की। बाहर आए तो लगा जैसे कुछ प्रॉब्लम कभी थी ही नहीं और ये लोग पागल हैं क्या, क्यों खड़े हैं यहाँ, कुछ काम धाम तो है नहीं, हुँह। 😉
श्रीनगर के लिए जाने से पहले पानी की दो बोतल और 2 चिप्स के पैकेट ले लिया गया, अगेन नो रिक्स रे बाबा, क्या पता फिर प्यास लगे तो पानी तो साथ होने को मांगता है कि नहीं। किसी टाटा सूमो में 400/- प्रति व्यक्ति देने की बजाय बस में 300/- दोनों की टिकट के लिए देना हमारे मारवाड़ी मन को ज्यादा सही लगा, भले ही खर्च की कोई पाबंदी नहीं थी पर कंजूसी भी कोई चीज होती है, जिसे मितव्ययता के व्रेपर में लपेट कर हम एक दूसरे को बेवकूफ बना चुके थे। बस में चढ़े तो पता लगा सबसे लास्ट वाली सीट्स पर हम बैठेंगे। सही है गुरु, कौन क्या कर रहा है सब दिखेगा, एक्स्ट्रा झूले मिलेंगे सो अलग, सब हमारे कंट्रोल में है, ग्रेट। बस में बिल्कुल वैसा ही माहौल था जैसा बाकी बसों में होता है, फर्क बस इतना था कि यहाँ जालीदार टोपियाँ ज्यादा नजर आ रही थी। सब अपने आप मे 'मशगूल' थे तो हम भी खाने-पीने में व्यस्त होने का उपक्रम करने लगे।
जब भी जम्मू का नाम सुना कश्मीर के साथ ही सुना, इसलिए ये वहम था कि उसका ये जुड़वां भाई उसी के आसपास ही होगा। पर हमारे सारे अनुमान मुँह में कचड़ कचड़ करती चिप्स से भी कमजोर निकले, सब बिना आवाज़ किए ध्वस्त हो गए जब एक सहयात्री से पूछने पर उसने बताया कि कम से कम 10-12 घण्टे लेगी ये बस😱😱। अबे मरवा दिया बे, 12 घण्टे लगेंगे 😱😱😱😣😣😣 मित्र की और देखा वो भी परेशान नजर आया पर उसकी परेशानी का कारण अलग था, बोला यार मुझे नम्बर वन वाला प्रेशर फिर से आ रहा। देखा जाए तो इस सिचुएशन में मुझे उससे ये डायलॉग खम चाहिए था कि अभी थोड़ी देर पहले ही तो फ्रेश हो कर आए हो पर नहीं बोला। क्यों? क्योंकि भविष्य के अकाल की कल्पना करते हम दोनों ने इतना पानी उदरस्थ कर लिया था कि अब ब्लेडर "एक बार से दिल नहीं भरता, मुड़ के देख मुझे दोबारा" गा रहा था। मित्र से थोड़ा कम ही सही पर मुझे भी अपना ब्लैडर फिर से भरता सा मालूम हुआ। पर सोचा बस ही है, रुक रुक कर जाएगी, जैसे ही ड्राइवर ब्रेक लगाएगा हम उतर कर ब्रेक हटा देंगे, हां नहीं तो 😂।
थोड़ी देर मुस्कुराने की कोशिश जरूर की, पर ऐसे तनाव में मुस्कुराते रहना सबके बस का नहीं होता, हमारे भी नहीं था। बाहर के दृश्य लुभावने तो छोड़ो डरावने भी नहीं लग रहे थे। बाहर सड़क के एक और पहाड़ थे, और दूसरी और गहरी घाटी, ड्राइवर लगातार बस को किसी रॉलर कोस्टर की तरह भगा रहा था। आसपास दूर दूर तक कोई गाँव या शहर नजर न आता था। चिप्स अच्छी लगनी बन्द हो गई। मन में आ रहा था बस एक बार बस रुक जाए तो घाटी में सैलाब ला दूंगा। आखिरी सीट वाले झूले भी सुहाने न लग रहे थे, हर हिलोर के साथ लगता जैसे थोड़ा भी ध्यान हटा तो बस ही में प्रलय आ सकती है। आखिर कंडक्टर को बोला गया कि बस 2 मिनट ही के लिए पर प्लीज बस रोक दो। उसने हमें ऐसे देखा जैसे हम एलियंस हैं, फिर आगे देखने लगा। उसकी ये उदासीनता देख हमारी टेंशन हमारे सर चढ़ कर बोलने लगी, मर्यादा वर्यादा भूल सीधे जोर से कह दिया, अबे बस रोक नहीं तो बस ही में निकल जाएगा। बस की बाकी सवारियों ने पीछे सर घुमाया , एक ज़ोरदर सम्मिलित ठहाका बस में बड़ी देर तक प्रतिध्वनित होता रहा। कंडक्टर शायद बुद्धत्व प्राप्त मनई था, चेहरे पर स्थायी विषाद की छाया लिए उसके चेहरे पर कोई भाव न था, सिर्फ इतना बोला बारिश हुई थी रात में लैंडस्लाइड में फंस गए तो मुश्किल हो जाएगी। थोड़ी देर में खाने के लिए रुकेंगे तब कर लेना। 'खाना? खाने से ज्यादा निकालना जरूरी है। और अभी तो 9 बजे हैं , इतनी जल्दी कौन खाना खाता है? यार अंकल, प्लीज रोक दो।' हमने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा। कंडक्टर बस इतना बोला कि 'अभी नहीं 12 बजे तक रुकेंगे खाने के लिए' और फिर मुँह फेर लिया। मन तो किया कि सब तमीज साइड में रख के घुमा के दे दूँ अंकल के थोबड़े पर, मुँह घुमाना भूल जाएगा। जाहिल, गधा, उल्लू, पाज़ी। पर आईडिया ड्राप कर दिया। एक तो अंकल मस्क्युलर थे और ऊपर से हम दोनों डेढ़ पसली, क्योंकि अगर दोनों पंगा ले भी ले लेते और एक भी चांटा लग जाता तो तुरन्त गर्म झरनों का बहना भी तय था।
अपनी किस्मत और मूढ़मति को कोसते वापस वहीं अपनी सीट पर आकर बैठ गए। टाइम पास करने और ध्यान भटकाने को मोबाईल निकाला तो देखा इसमें भी नेटवर्क नहीं, किसी ने बताया कि शेष भारत के प्रीपेड कश्मीर में बंद हो जाते हैं, नोकिया 1110 था और सांप वाला गेम कितनी देर तक खेलेगा कोई, हाय री किस्मत, ऊपर देखा, मन से आवाज़ आई भगवान तुझे एक्सपेरिमेंट करने को या परीक्षा लेने को मैं ही मिलता हूँ? और ये भी कोई परीक्षा है भला? चीटिंग करते हो, चीटिंग चीटिंग चीटिंग 😣😢। मोबाईल में भले ही नेटवर्क नहीं था, पर अचानक लगा जैसे भगवान ने सुन ली हो, अचानक हल्की हल्की बारिश होने लगी। पहाड़ से पत्थर गिरने लगे, तो ट्रैफिक जाम सा होने लगा। बस के ब्रेक लगे तो हम दोनों तुरन्त बिना कुछ भी किसी से कहे सीधे झटपट बस से उतर गए। पत्थर हम पर गिर सकते थे, हम मर सकते थे, बस चली जाती तो वही पहाड़ों में फंस भी सकते थे, पर हु केयर्स , दौड़ कर गए, स्वच्छता अभियान से मुँह घुमा कर घाटी की और कर लिया,अचानक ब्रह्मज्ञान हो गया, अहा परमोसुखम् , बस यही सत्य है शेष समस्त जगत मिथ्या है।
#जयश्रीकृष्ण
✍️ अरुण
Rajpurohit-arun.blogspot.com
खैर ये उन दिनों की बात है जब मैं लगातार फैलियर झेल कर निराशा के अथाह सागर में गोते लगा रहा था। बी. एड. करने के बारे में कभी सोचा नहीं था पर जब लगा कि अब बाकी विकल्पों ने साथ देने से मना कर दिया है तो सीधे कश्मीर यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया, राजस्थान में ही बीएड एंट्रेंस एग्जाम देता तो शायद हो भी जाता पर यू नो ना, फैल हो हो कर इतना दिमाग खराब हुआ पड़ा था कि सोचा नो रिक्स रे बाबा। बीएड को अपने कुछ तथाकथित शुभचिंतकों की पकाऊ बातों और घनघोर निराशा से उबरने के साधन के रूप में लिया था। हम 6 लोग थे तो सोचा हॉस्टल के प्रतिबन्धों के झेलने के बजाय बाहर स्वतंत्र रहा जाए। इसलिए मैं और मेरे एक मित्र ने सेशन शुरू होने से पहले कश्मीर का एक एक चक्कर लगा कर रेंट पर मकान की व्यवस्था कर आने का निश्चय किया। अभी मैंने जो भी राम कहानी हलफन बयान की ये उसी चक्कर मे कश्मीर जाते समय की यात्रा से सम्बंधित है। हो सकता है कि आप कहो कि इसके बिना भी काम चल सकता था, शायद हाँ, पर मेरी मर्जी, मैं आपको जबरदस्ती ये भी सुना कर ही रहूँगा। 🤣🤣🤣🤣🤣
बहरहाल खर्च की कोई चिंता नहीं थी, क्योंकि हमारी इस यात्रा को 6 लोगों द्वारा मिल कर स्पॉन्सर किया जा रहा था। श्रीगंगानगर से जम्मू के लिए बस में स्लीपर बुक करवा लिए। रास्ते के लिए सब कुछ लिया पर पानी भूल गए। रात में जब दोनों का गला सूखने लगा तो बस रुकने का बेसब्री से इंतज़ार होने लगा और जैसे ही मौका मिला मित्र दौड़ कर 2 लीटर स्प्राइट और 2 बोतल पानी ले आया। 'अबे कितने जन्म का प्यासा है' मैंने कहा तो वो दांत चियार कर बोला अब प्यास की ऐसी की तैसी। जब पानी की दोनों बोतल हम दोनों ने तुरंत खत्म कर दी तो लगा लौंडे ने काम तो सही ही किया है। लगा कि प्यास अब भी थोड़ी बाकी है तो स्प्राइट की बोतल की गर्दन मरोड़ कर शुरू हो गए। तुरंत तो नहीं पर कुछ देर बाद वो भी चरम को प्राप्त हो गई। अपने मित्र की समझदारी पर खीखी करते बतियाते कब नींद आ गई पता ही न चला, सुबह 6 बजे जम्मू पहुंचने से पहले लगभग 5:30 पर ही हमें हमारे ब्लैडर ने उठा लिया जो चीख चीख कर कह रहा था कि जल्दी से खाली करो मुझे वरना अगर वो अपनी पर आया तो हमें पानी पानी कर देगा। कंडक्टर से पूछा तो बोला अभी बस पहुंचने ही वाले हैं। तनाव हमारे चेहरे से साफ झलक रहा था, धीरे धीरे जम्मू के नजदीक आने के साथ ही प्रेशर एकतरफा से दो तरफा होते जा रहा था। बार बार ,'भाई कितना टाइम और लगेगा' पूछते उसके 'बस पहुंच ही गए समझो' वाले आश्वासन से अपने प्रेशर को बहलाते आखिर जम्मू पहुँचे। हमारे एडमिशन वाले एजेंट ने बोला था कि जम्मू से श्रीनगर के लिए तुरन्त निकल लेना, जितना देर करोगे उतनी समस्या बढ़ती जाएगी, हो सकता है साधन न मिलें या रास्ते में फंस जाना पड़े। उसकी बातें सुनकर सोच रखा था कि हाँ सही है तुरन्त निकल लेंगे। पर फिर लगा फिलहाल सुलभ शौचालय पर 'कुछ चढ़ाना' सबसे ज्यादा इम्पोर्टेन्ट हैं। हालांकि वहाँ भी भीड़ ही थी सवेरे सवेरे, जहाँ विभिन्न धर्मों और जातियों के योद्धा हर तरह के जातिगत और साम्प्रदायिक द्वेष से परे अपने तनाव पर विजय पाने और फिर उससे मुक्ति प्राप्त करने हेतु प्रयासरत थे, अपने विशिष्ट मारवाड़ी कौशल का प्रयोग करते ही सबको छकाते हुए हमने वो जंग फतेह हासिल की। बाहर आए तो लगा जैसे कुछ प्रॉब्लम कभी थी ही नहीं और ये लोग पागल हैं क्या, क्यों खड़े हैं यहाँ, कुछ काम धाम तो है नहीं, हुँह। 😉
श्रीनगर के लिए जाने से पहले पानी की दो बोतल और 2 चिप्स के पैकेट ले लिया गया, अगेन नो रिक्स रे बाबा, क्या पता फिर प्यास लगे तो पानी तो साथ होने को मांगता है कि नहीं। किसी टाटा सूमो में 400/- प्रति व्यक्ति देने की बजाय बस में 300/- दोनों की टिकट के लिए देना हमारे मारवाड़ी मन को ज्यादा सही लगा, भले ही खर्च की कोई पाबंदी नहीं थी पर कंजूसी भी कोई चीज होती है, जिसे मितव्ययता के व्रेपर में लपेट कर हम एक दूसरे को बेवकूफ बना चुके थे। बस में चढ़े तो पता लगा सबसे लास्ट वाली सीट्स पर हम बैठेंगे। सही है गुरु, कौन क्या कर रहा है सब दिखेगा, एक्स्ट्रा झूले मिलेंगे सो अलग, सब हमारे कंट्रोल में है, ग्रेट। बस में बिल्कुल वैसा ही माहौल था जैसा बाकी बसों में होता है, फर्क बस इतना था कि यहाँ जालीदार टोपियाँ ज्यादा नजर आ रही थी। सब अपने आप मे 'मशगूल' थे तो हम भी खाने-पीने में व्यस्त होने का उपक्रम करने लगे।
जब भी जम्मू का नाम सुना कश्मीर के साथ ही सुना, इसलिए ये वहम था कि उसका ये जुड़वां भाई उसी के आसपास ही होगा। पर हमारे सारे अनुमान मुँह में कचड़ कचड़ करती चिप्स से भी कमजोर निकले, सब बिना आवाज़ किए ध्वस्त हो गए जब एक सहयात्री से पूछने पर उसने बताया कि कम से कम 10-12 घण्टे लेगी ये बस😱😱। अबे मरवा दिया बे, 12 घण्टे लगेंगे 😱😱😱😣😣😣 मित्र की और देखा वो भी परेशान नजर आया पर उसकी परेशानी का कारण अलग था, बोला यार मुझे नम्बर वन वाला प्रेशर फिर से आ रहा। देखा जाए तो इस सिचुएशन में मुझे उससे ये डायलॉग खम चाहिए था कि अभी थोड़ी देर पहले ही तो फ्रेश हो कर आए हो पर नहीं बोला। क्यों? क्योंकि भविष्य के अकाल की कल्पना करते हम दोनों ने इतना पानी उदरस्थ कर लिया था कि अब ब्लेडर "एक बार से दिल नहीं भरता, मुड़ के देख मुझे दोबारा" गा रहा था। मित्र से थोड़ा कम ही सही पर मुझे भी अपना ब्लैडर फिर से भरता सा मालूम हुआ। पर सोचा बस ही है, रुक रुक कर जाएगी, जैसे ही ड्राइवर ब्रेक लगाएगा हम उतर कर ब्रेक हटा देंगे, हां नहीं तो 😂।
थोड़ी देर मुस्कुराने की कोशिश जरूर की, पर ऐसे तनाव में मुस्कुराते रहना सबके बस का नहीं होता, हमारे भी नहीं था। बाहर के दृश्य लुभावने तो छोड़ो डरावने भी नहीं लग रहे थे। बाहर सड़क के एक और पहाड़ थे, और दूसरी और गहरी घाटी, ड्राइवर लगातार बस को किसी रॉलर कोस्टर की तरह भगा रहा था। आसपास दूर दूर तक कोई गाँव या शहर नजर न आता था। चिप्स अच्छी लगनी बन्द हो गई। मन में आ रहा था बस एक बार बस रुक जाए तो घाटी में सैलाब ला दूंगा। आखिरी सीट वाले झूले भी सुहाने न लग रहे थे, हर हिलोर के साथ लगता जैसे थोड़ा भी ध्यान हटा तो बस ही में प्रलय आ सकती है। आखिर कंडक्टर को बोला गया कि बस 2 मिनट ही के लिए पर प्लीज बस रोक दो। उसने हमें ऐसे देखा जैसे हम एलियंस हैं, फिर आगे देखने लगा। उसकी ये उदासीनता देख हमारी टेंशन हमारे सर चढ़ कर बोलने लगी, मर्यादा वर्यादा भूल सीधे जोर से कह दिया, अबे बस रोक नहीं तो बस ही में निकल जाएगा। बस की बाकी सवारियों ने पीछे सर घुमाया , एक ज़ोरदर सम्मिलित ठहाका बस में बड़ी देर तक प्रतिध्वनित होता रहा। कंडक्टर शायद बुद्धत्व प्राप्त मनई था, चेहरे पर स्थायी विषाद की छाया लिए उसके चेहरे पर कोई भाव न था, सिर्फ इतना बोला बारिश हुई थी रात में लैंडस्लाइड में फंस गए तो मुश्किल हो जाएगी। थोड़ी देर में खाने के लिए रुकेंगे तब कर लेना। 'खाना? खाने से ज्यादा निकालना जरूरी है। और अभी तो 9 बजे हैं , इतनी जल्दी कौन खाना खाता है? यार अंकल, प्लीज रोक दो।' हमने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा। कंडक्टर बस इतना बोला कि 'अभी नहीं 12 बजे तक रुकेंगे खाने के लिए' और फिर मुँह फेर लिया। मन तो किया कि सब तमीज साइड में रख के घुमा के दे दूँ अंकल के थोबड़े पर, मुँह घुमाना भूल जाएगा। जाहिल, गधा, उल्लू, पाज़ी। पर आईडिया ड्राप कर दिया। एक तो अंकल मस्क्युलर थे और ऊपर से हम दोनों डेढ़ पसली, क्योंकि अगर दोनों पंगा ले भी ले लेते और एक भी चांटा लग जाता तो तुरन्त गर्म झरनों का बहना भी तय था।
अपनी किस्मत और मूढ़मति को कोसते वापस वहीं अपनी सीट पर आकर बैठ गए। टाइम पास करने और ध्यान भटकाने को मोबाईल निकाला तो देखा इसमें भी नेटवर्क नहीं, किसी ने बताया कि शेष भारत के प्रीपेड कश्मीर में बंद हो जाते हैं, नोकिया 1110 था और सांप वाला गेम कितनी देर तक खेलेगा कोई, हाय री किस्मत, ऊपर देखा, मन से आवाज़ आई भगवान तुझे एक्सपेरिमेंट करने को या परीक्षा लेने को मैं ही मिलता हूँ? और ये भी कोई परीक्षा है भला? चीटिंग करते हो, चीटिंग चीटिंग चीटिंग 😣😢। मोबाईल में भले ही नेटवर्क नहीं था, पर अचानक लगा जैसे भगवान ने सुन ली हो, अचानक हल्की हल्की बारिश होने लगी। पहाड़ से पत्थर गिरने लगे, तो ट्रैफिक जाम सा होने लगा। बस के ब्रेक लगे तो हम दोनों तुरन्त बिना कुछ भी किसी से कहे सीधे झटपट बस से उतर गए। पत्थर हम पर गिर सकते थे, हम मर सकते थे, बस चली जाती तो वही पहाड़ों में फंस भी सकते थे, पर हु केयर्स , दौड़ कर गए, स्वच्छता अभियान से मुँह घुमा कर घाटी की और कर लिया,अचानक ब्रह्मज्ञान हो गया, अहा परमोसुखम् , बस यही सत्य है शेष समस्त जगत मिथ्या है।
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✍️ अरुण
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