प्रेम पथिक को हटा कर पहले हम और फिर उजबक खड़े हुए, हमको कुछ न हुआ था और उजबक भी मिट्टी में गिरे थे तो ज्यादा चोट नहीं लगी, पर उठते ही बजाय अपने वस्त्र झड़क कर साफ करने या अपने घुटनों पर लगी चोट की चिंता करने के वो तालियाँ बजा कर किलकारी मारने लगे, बोले, 'शुभ है, शुभ है, आहाहाहा आनन्द आ गया।'
यार ये आदमी पागल तो नहीं हो गया ? देखूं कहीं कोई चोट सर पर न लग गई हो। मन ही मन कहते हुए मैं उजबक की ओर लपका।
'अरे क्या कर रहे हैं आप, हमें कुछ न हुआ। इधर नहीं उधर देखिए।' कह कर उजबक ने उल्टी दिशा की मुँह करके देखने का संकेत किया। सामने कन्या गुरुकुल का प्रवेशद्वार था। बाहर कुछ छात्राएँ हमारे चेहरे की धूल से हास्य चुरा कर रक्तवृद्धि योग का अभ्यास कर रही थीं। 'सत्यानाश, बरसों से बनाई इज्जत पर धूल फेर दी। ऊपर से ये मूर्ख शुभ है शुभ है चिल्ला रहा है। मैं मन ही मन बोला।
' सत्य ही तो कह रहे हम अरुण भाई, कितना शुभ संकेत है, विद्या मन्दिर में शीश झुकाना तो 100 यज्ञ जितना फल देता है और हम तो साष्टांग नतमस्तक हो गए। ऐसा अद्भुत संयोग और सौभाग्य तो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। और तो और आप जानते हैं ? ये वही गुरुकुल है जिसमें देवी चमेली अध्ययनरत हैं, खैर आप कैसे न जानते होंगे, आप ही तो सूत्रधार बनेंगे हमारी परिणय गाथा के। अच्छा, छोड़िए वो सब, देवी चमेली से यहीं मिल लिया जाए ?
कहिए क्या कहते हैं आप ? ' कह कर उजबक ने उसी मासूमियत से हमें देखा। मन तो किया कि कस्स के लपड़ मार दें, पर फिर सोचा अगर विमी का हाथ उठ गया तो क्या होगा?
आईडिया ड्राप कर उद्विग्न मन को शांत करते हुए मैंने कहा कि 'नहीं यह सही नहीं होगा, गुरुमाता को इसके बारे में भनक नहीं लगनी चाहिए, अन्यथा तुम्हारा और हमारा गुरुकुल से निष्काषित होना निश्चित है।'
'हूँ, आप सत्य कहते हैं। मैं ही भावावेग में मूर्खता करने जा रहा था। तो अब क्या करें?'
'अब आप वो करेंगे जो मैं कहूंगा, एक मिनट रुकिए मैं इस प्रेम पथिक को उसकी सही जगह पर छोड़ दूँ' कह कर मैं उजबक के दादा जी की साईकल के साथ कन्या गुरुकुल में प्रवेश कर गया। और कुछ ही क्षणों में वापस खाली हाथ लौट आया। उजबक के चेहरे पर मिश्रित भाव थे। इससे पहले वो कुछ पूछते मैंने खुद ही कहना प्रारंभ कर दिया, ' देखो प्यारे बुरा न मानना पर इतना अद्भुत वाहन चलाने में मैं स्वयं को असमर्थ पा रहा था, मैं नहीं चाहता कि पुष्पक विमान सरीखे प्रेम पथिक की गरिमा से किसी प्रकार का कोई खिलवाड़ हो, इसलिए उसे चमेली के लिए उपहार है कहकर कन्या गुरुकुल में दे आया हूँ।' मैं सब एक ही श्वांस में कह गया।
उजबक बहुत सम्मान से मेरी ओर निहार रहे थे, बोले , 'बाह अरुण भाई, कई बार अपनी शपथ भुला कर आपके गाल पर चुम्बन अंकित करने को मन हो जाता है, अगर देवी चमेली के प्रति एकनिष्ठ प्रेम का मन में विचार न आया होता तो हमनें अभी ये कर भी दिया होता।'
'अबे हुर्रर हुर्रर, बदतमीज आदमी, खबरदार जो ऐसा सोचा भी। ' सुनते ही उजबक जोर से तीन बार हा हा हा बोले फिर कुछ क्षण उनका पेट हंसता रहा। थोड़ी देर में रुक कर बोले ' पर आपको द्वारपाल ने रोका क्यों नहीं?' मैंने कहा 'मुझे कभी नहीं रोकेंगे, हमनें बता रखा है कि गुरुमाता हमारी आंटी हैं। 😎😂' ये सुनकर उजबक का पेट बिना आवाज़ किए देर तक अकेला ही हँसता रहा।
***
गार्गी उद्यान की आभा अनुपम है, अनेकों विलक्षण पुष्प प्रजातियाँ यहाँ सहज उपलब्ध हैं। बहुत से युगल समस्त जगत से परे, सभी चिंताओं से विमुक्ति पाकर अपने पर्सनल लोक में विचरण कर रहे हैं। आलिंगनबद्ध, चुम्बनरत या प्रेम वार्ताओं में लीन जोड़ों को देख उजबक के ही नहीं मेरे भी स्नायुओं में रक्त प्रवाह की गति तीव्रतर हो रही है। तिस पर प्रकृति भी आज प्रेमानुकूल प्रतीत होती है। चारों ओर पसरी हुई हरी हरी दूर्वा नन्हीं नन्हीं बरसती बूंदों की गुदगुदी से प्रफुल्लित जान पड़ती है। वातावरण इतना मनोहर है कि पर्यावरण में घुली सुगंध पुष्पों की मीठी मीठी भीनी बातें मालूम होती है जिसे हर कोई चुपचाप धीरे से बस सुन लेना चाह रहा है।
उद्यान के एक ओर बने डेस्क पर हम दोनों बैठे हैं। उजबक थोड़ी थोड़ी देर में व्यग्रता से कसमसा रहे हैं। हाथ में पीला गुलाब है। आश्चर्य मत कीजिए, उजबक तो श्वेत गुलाब ले रहे थे, बोले , 'श्वेत रंग शांति का परिचायक है बंधु। प्रेम में कोलाहल नहीं शांति हो तो जीवन उत्सव बन जाता है।' पर मैंने समझाया कि , ' तुम्हारा भाभी से (उजबक ने भी आप ही तरह ये शब्द सुनकर गुदगुदी वाले एक्सप्रेशन दिए थे) युद्ध थोड़े न हुआ जो सफेद फूल देकर संधि प्रस्ताव दोगे। लाल गुलाब दो। प्रेम का रंग है, सौभाग्य का प्रतीक, तभी तो सुहागिनें भी अपने अधिकांश वस्त्र रक्तिम ही पहनती हैं।'
उजबक मेरे तर्क से प्रसन्न हुए पर फिर मुस्कुराते हुए गम्भीर वाणी में कहने लगे, 'आप सत्य कह रहे हैं मित्र, किंतु अभी हमारे प्रेम का विधिवत प्रारंभ होना भी तो शेष है। अच्छा आप कहते हैं तो मैं ये पीतवर्णी गुलाब लिए लेता हूँ। मैत्री सूचक है। अगर देवी चमेली ने हमें अपने मित्ररूप में भी अपना लिया तब भी हम विश्वास दिलाते हैं कि उनके अंतर में अपने लिए प्रेमांकुर अवश्य बो देंगे।'
'अजीब प्राणी है यार, कोई भी विषय हो इसे उसमें अपनी टांग अड़ानी ही है, हुँह मुझे क्या।' मन ही मन मैंने विचार किया।
उजबक बोले, 'देखिए हमारा प्रेम है उसमें उजबक प्रभाव न रहे तो भी ठीक न रहेगा न।' मैंने थूक निगला, यार इसे सब कैसे पता लग जाता है, और ये लड़कियाँ भी नहीं आईं अब तक।' मैंने सोचा।
उजबक बोले, 'प्रतीक्षा तो हम भी कर ही रहे हैं, किंतु ऐसा भान हो रहा कि कदाचित हम ही समय से पूर्व आ गए हैं। ये प्रतीक्षा भी अद्भुत होती हैं न अरुण भाई ? हम ये चाह तो रहे हैं कि वो अभी इसी क्षण हमारे पास आ जाएं पर साथ ही साथ इस प्रतीक्षा के दर्द का भी भरपूर आस्वादन कर लेना चाहते हैं। यद्यपि हमारे लिए प्रत्येक क्षण कल्प के समान है, पर साथ ही मन यह भी कहता है कि अगर हमें अनन्त कोटि वर्षों तक देवी चमेली की इसी प्रकार प्रतीक्षा करनी पड़े तब भी हम अवश्य करेंगे। यह प्रेम का कैसा अनूठा रूप है मित्र ?
मैं बोर हो रहा था, पर उजबक प्रेम की ये बातें आज मुझे भी मोहित कर रही थी। जाने कैसे एक अज्ञात ग्लानि से मन भर आया। लगा कि मैं रो दूँगा। कुछ कहना ही चाहता था कि उजबक उछलते हुए से बोल पड़े, 'वो देखो वो ही है, वही हैं न मित्र, मैंने उन्हें कभी नहीं देखा किंतु मेरा मन मुझे पुकार पुकार कर कहता है कि ये वही हैं। कहिए तो वही हैं न मित्र ?'
मैंने गर्दन घुमा कर देखा, दो श्वेत वस्त्रधारिणी ऋषि कन्याएँ हमारी ही दिशा में बढ़ रही थी।
To be continued
#गुरुकुल_पार्ट4
#जयश्रीकृष्ण
✍️ अरुण
Rajpurohit-arun.blogspot.com
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