'अच्छा अरुण भाई , जानते हैं हमको क्या लगता है ? हमको लगता है साहित्य में स्तरीय या लुगदी साहित्य जैसे भेद नहीं होने चाहिए। विधा चाहे जो हो हर साहित्यकार अपने अनुभव और ज्ञान के कोष से शब्द चुन कर अपनी कृति को अलंकृत करता है, किसी की अभिव्यक्ति के लिए 'लुगदी' जैसे विशेषणों का प्रयोग मुझे नितांत अनुचित प्रतीत होता है।'
अरे , अरुण भाई, कहाँ गए, अभी तो यहीं थे।? ' कहकर उजबक इधर उधर देखने लगे।
'अरे भाई, नीचे देखो तनिक, गर्मी लग रही थी, आप ही की छाया में बैठे हैं। खीखीखी
उजबक ने जोर से हंसने का उपक्रम करके बड़ी गम्भीर आवाज़ में तीन बार हा हा हा बोला। फिर बोले, 'आप बाज नहीं आएंगे कभी, उठिए देखिए न कितना गम्भीर विषय है। '
'हम्म गम्भीर तो मुझे भी लगता है। एक बात बोलें, यूँ तो आप काफी छायादार हैं हमारे लिए पर हम गारण्टी के साथ कह सकते हैं कि आप मोटे नहीं हो। आई थिंक आपको गैस हुई है, अमा कभी खुल कर भी हंस लो यार। 😜'
जवाब में उजबक ने चेहरे पर क्वेश्चन मार्क उकेरा, मुझे सहसा याद आया कि जो इंसान जब गले लगाता है तो हड्डियाँ अचानक तड़तड़ा कर बेडरेस्ट मांगने लगती हैं, अगर वही हमको मुक्का मार देगा तो शायद पीठ का हाल वैसा ही होगा जैसा बड़ा सा उल्कापिंड गिरने से पृथ्वी का होता है। इससे पहले की उस क्वेश्चन मार्क की जगह क्रोध ले मैंने तुरंत उनका ध्यान किसी दूसरी और आकर्षित किया, ये कहकर कि ,'गुरु आपने कभी प्रेम किया है?'
क्वेश्चन मार्क की जगह अब गर्व साफ दिखाई पड़ता था, अपने भाल को उन्नत कर उजबक बोले ,' हाँ बिल्कुल किया है, मैं अपनी जननी इस मातृभूमि से, इसके कण कण से, समस्त चराचर जगत से, अपने गुरुजनों, परिजनों यहाँ तक कि तुमसे भी प्रेम.....'
'ओ हेलो, रुको महाराज, ये सब ठीक है, पर आपने सादुलशहर की जगह सादुलपुर की बस पकड़ ली। ये नहीं वो दूजे टाइप के प्रेम का बताइए हमको, किए हैं कभी ?' हमने बीच में रोक कर कहा। उनके चेहरे पर एक भोला, मासूम और क्यूट सा क्वेश्चन मार्क फिर से उभर आया। तो हमने सीधे कहा, 'अरे गुरु, कोनो लड़की से प्रेम नहीं हुआ? और हाँ खबरदार जो माँ या बहन को इस प्रश्न के उत्तर में आसपास भी फटकने दिया तो, लड़की बोले तो लड़की , अब क्या बोले यार, एक तो आपसे सवाल पूछना ही महाभारत हो जाता है। यूँ कि ये बताइए, किसी कन्या को देखकर आपके मन का 'घनानन्द' जागा हो? कोई ऐसी कन्या जिसके लिए पूर्ण तन्मयता से ढेर सारा शृंगार लिखने या सुनाने का मन हो ? कोई ऐसी कन्या जिसके पदार्पण से आपका मनमयूर स्वतः नर्तन कर उठता हो? कोई है ऐसी ?'
उजबक गुरुकुल में सबसे अच्छे विद्यार्थी माने जाते हैं, और माने क्या जाते हैं वो हर क्षेत्र में सबसे अच्छे हैं भी। आज पहली बार उनसे किसी ने ऐसा प्रश्न पूछा था। मैं उनके चेहरे पर विभिन्न भावों का प्रवाह देख रहा था। उनकी आँखें उनकी मुस्कान के साथ विस्तारित होती चली गई, गाल भी सुर्ख होकर किसी षोडसी से समता करने का आग्रह करने लगे। सुना था लज्जा नारी का आभूषण है, ये आभूषण उजबक ने कब खरीदा मालूम नहीं पर आज पहने हुए मैं देख पा रहा था। गर्दन झुका कर सर नीचे किया, फिर धीरे से आँखे ऊपर की और मेरी ओर देखा। 'हाय मेरी जान, काश तुम ललकी होते' लगा कि जैसे मेरे ही मन में किसी ने पुकारा।
'अब नखरे ही करोगे या कुछ बताओगे भी', मैंने कहा।
उजबक ने सलज्ज होकर धीमे स्वर में कहना शुरू किया,' यद्यपि मेरे विचार में प्रेम नितांत निजी अनुभूति है तथापि आपसे मैत्री की सघनता मुझे आपके लिए अंतर के इस रहस्य को अनावृत्त करने का आग्रह कर रही है।'
अचानक मेरे मुँह से निकला 'हैं??' , मुझे खुले मुँह और अवाक देखकर उजबक बोले, 'मेरा आशय है कि मैं आपके इस प्रश्न का उत्तर अवश्य दूँगा मित्र।'
'प्रेम तो पारस है मित्र, कौन इसका स्पर्श पाकर कंचन न हो जाना चाहेगा? किंतु शैशवकाल से लेकर वर्तमान तक हमनें अपने लक्ष्य ही से प्रेम किया है। आपको याद है न विवेकानंद जी ने क्या कहा था,'उठो , जागो और तब तक न रुको जब तक.....'
'देवता जी , विवेकानंद ने चाहे जो कहा हो, पर आप अभी अपनी जीभ को ब्रेक लगाओ, और हाँ ये लो तुम्हारे नाम से पास वाले कन्या गुरुकुल की चमेली ने ये लैटर आई मीन पत्र आपके लिए भेजा है। यूँ की आप चाहो न चाहो पर छोरी आपसे पट गई है, जबरदस्ती। एक बार और, ना कहने का सवाल ही नहीं क्योंकि आपकी और से हाँ वाला लेटर हम खुद अपने पर्सनल कर कमलों से लिख कर दे चुके हैं, तुम्हारे बैग से १००० रुपए निकाले थे शाम को पार्टी है, मन हो तो आ जाना।
अब उजबक के चेहरे पर जो भाव थे उन्हें वर्णित करना मेरे लिए सम्भव न था।
#जयश्रीकृष्ण
✍️ अरुण
Rajpurohit-arun.blogspot.com
अरे , अरुण भाई, कहाँ गए, अभी तो यहीं थे।? ' कहकर उजबक इधर उधर देखने लगे।
'अरे भाई, नीचे देखो तनिक, गर्मी लग रही थी, आप ही की छाया में बैठे हैं। खीखीखी
उजबक ने जोर से हंसने का उपक्रम करके बड़ी गम्भीर आवाज़ में तीन बार हा हा हा बोला। फिर बोले, 'आप बाज नहीं आएंगे कभी, उठिए देखिए न कितना गम्भीर विषय है। '
'हम्म गम्भीर तो मुझे भी लगता है। एक बात बोलें, यूँ तो आप काफी छायादार हैं हमारे लिए पर हम गारण्टी के साथ कह सकते हैं कि आप मोटे नहीं हो। आई थिंक आपको गैस हुई है, अमा कभी खुल कर भी हंस लो यार। 😜'
जवाब में उजबक ने चेहरे पर क्वेश्चन मार्क उकेरा, मुझे सहसा याद आया कि जो इंसान जब गले लगाता है तो हड्डियाँ अचानक तड़तड़ा कर बेडरेस्ट मांगने लगती हैं, अगर वही हमको मुक्का मार देगा तो शायद पीठ का हाल वैसा ही होगा जैसा बड़ा सा उल्कापिंड गिरने से पृथ्वी का होता है। इससे पहले की उस क्वेश्चन मार्क की जगह क्रोध ले मैंने तुरंत उनका ध्यान किसी दूसरी और आकर्षित किया, ये कहकर कि ,'गुरु आपने कभी प्रेम किया है?'
क्वेश्चन मार्क की जगह अब गर्व साफ दिखाई पड़ता था, अपने भाल को उन्नत कर उजबक बोले ,' हाँ बिल्कुल किया है, मैं अपनी जननी इस मातृभूमि से, इसके कण कण से, समस्त चराचर जगत से, अपने गुरुजनों, परिजनों यहाँ तक कि तुमसे भी प्रेम.....'
'ओ हेलो, रुको महाराज, ये सब ठीक है, पर आपने सादुलशहर की जगह सादुलपुर की बस पकड़ ली। ये नहीं वो दूजे टाइप के प्रेम का बताइए हमको, किए हैं कभी ?' हमने बीच में रोक कर कहा। उनके चेहरे पर एक भोला, मासूम और क्यूट सा क्वेश्चन मार्क फिर से उभर आया। तो हमने सीधे कहा, 'अरे गुरु, कोनो लड़की से प्रेम नहीं हुआ? और हाँ खबरदार जो माँ या बहन को इस प्रश्न के उत्तर में आसपास भी फटकने दिया तो, लड़की बोले तो लड़की , अब क्या बोले यार, एक तो आपसे सवाल पूछना ही महाभारत हो जाता है। यूँ कि ये बताइए, किसी कन्या को देखकर आपके मन का 'घनानन्द' जागा हो? कोई ऐसी कन्या जिसके लिए पूर्ण तन्मयता से ढेर सारा शृंगार लिखने या सुनाने का मन हो ? कोई ऐसी कन्या जिसके पदार्पण से आपका मनमयूर स्वतः नर्तन कर उठता हो? कोई है ऐसी ?'
उजबक गुरुकुल में सबसे अच्छे विद्यार्थी माने जाते हैं, और माने क्या जाते हैं वो हर क्षेत्र में सबसे अच्छे हैं भी। आज पहली बार उनसे किसी ने ऐसा प्रश्न पूछा था। मैं उनके चेहरे पर विभिन्न भावों का प्रवाह देख रहा था। उनकी आँखें उनकी मुस्कान के साथ विस्तारित होती चली गई, गाल भी सुर्ख होकर किसी षोडसी से समता करने का आग्रह करने लगे। सुना था लज्जा नारी का आभूषण है, ये आभूषण उजबक ने कब खरीदा मालूम नहीं पर आज पहने हुए मैं देख पा रहा था। गर्दन झुका कर सर नीचे किया, फिर धीरे से आँखे ऊपर की और मेरी ओर देखा। 'हाय मेरी जान, काश तुम ललकी होते' लगा कि जैसे मेरे ही मन में किसी ने पुकारा।
'अब नखरे ही करोगे या कुछ बताओगे भी', मैंने कहा।
उजबक ने सलज्ज होकर धीमे स्वर में कहना शुरू किया,' यद्यपि मेरे विचार में प्रेम नितांत निजी अनुभूति है तथापि आपसे मैत्री की सघनता मुझे आपके लिए अंतर के इस रहस्य को अनावृत्त करने का आग्रह कर रही है।'
अचानक मेरे मुँह से निकला 'हैं??' , मुझे खुले मुँह और अवाक देखकर उजबक बोले, 'मेरा आशय है कि मैं आपके इस प्रश्न का उत्तर अवश्य दूँगा मित्र।'
'प्रेम तो पारस है मित्र, कौन इसका स्पर्श पाकर कंचन न हो जाना चाहेगा? किंतु शैशवकाल से लेकर वर्तमान तक हमनें अपने लक्ष्य ही से प्रेम किया है। आपको याद है न विवेकानंद जी ने क्या कहा था,'उठो , जागो और तब तक न रुको जब तक.....'
'देवता जी , विवेकानंद ने चाहे जो कहा हो, पर आप अभी अपनी जीभ को ब्रेक लगाओ, और हाँ ये लो तुम्हारे नाम से पास वाले कन्या गुरुकुल की चमेली ने ये लैटर आई मीन पत्र आपके लिए भेजा है। यूँ की आप चाहो न चाहो पर छोरी आपसे पट गई है, जबरदस्ती। एक बार और, ना कहने का सवाल ही नहीं क्योंकि आपकी और से हाँ वाला लेटर हम खुद अपने पर्सनल कर कमलों से लिख कर दे चुके हैं, तुम्हारे बैग से १००० रुपए निकाले थे शाम को पार्टी है, मन हो तो आ जाना।
अब उजबक के चेहरे पर जो भाव थे उन्हें वर्णित करना मेरे लिए सम्भव न था।
#जयश्रीकृष्ण
✍️ अरुण
Rajpurohit-arun.blogspot.com
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