📰📰📰📰📰 अखबार के टुकड़े ♠♠♠♠♠ .


कहानी के लिहाज़ से इससे बेकार और नीरस शीर्षक भला और क्या मिलेगा, रोज पढ़ते हैं भई, पहले अख़बारों में कहानी पढ़ लेते थे पर अब कहानी के नाम पर अखबार के टुकड़े? छी छी छी, 'रद्दी' सा नाम है, क्यों यही कहना चाहते हैं न आप? अजी रुकिए तो जनाब, यूँ इतनी जल्दी राय न बनाइए, हो सकता है अंत तक आते आते यही आपको भी जम जाए, और अगर न भी जमे तो क्या, कभी कभी खड़ूस बन कर सबकी प्रतिक्रिया को दरकिनार कर देने का भी एक्सपीरियंस लेने में भी हर्ज़ नहीं। ले ही लेने दीजिए हमको भी 😊

बहरहाल हमारी इस कहानी की नायिका है, जाह्नवी, जी हाँ जी हाँ कभी कभी वुमन ओरिएंटेड भी लिखना चाहिए, इससे आपके भीतर के पुरुष को कितनी तुष्टि मिली इस पर ध्यान न भी दें तब भी कम से कम इस बहाने नारीवादियों को तो इनडायरेक्टली पुचकारा ही जा सकता है। हँस लीजिए, सिर्फ हँसने के लिए ही लिखा है। हँसना छोड़ कहानी पर लौटिए, वरना जाह्नवी बुरा मान जाएगी। जाह्नवी , २७  वर्षीय, दिल्ली की लड़की । अब कुछ लोगों को इसमें भी बुरा लगा होगा, मानता हूँ नाम से जो कमसिन छवि आपकी कल्पना में उपजी थी, ये उससे मेल नहीं खा रही। लेकिन आज मैं कुछ भी परम्परागत कहने, सुनाने या लिखने के मूड में बिल्कुल नहीं हूँ, इसलिए लड़की की उम्र इतनी ही रहेगी, कम नहीं होगी मतलब नहीं ही होगी। बेचारी जाह्नवी परेशान है और आपको अपनी एक्सपेक्टेशन की पड़ी है? क्या कहा, क्यूँ परेशान है? अमा कुछ कहने का मौका तो दीजिए हुजूर। कहानी सुनिए । तो हमारी जाह्नवी परेशान है, वाकई। माना बड़े शहर में रहती है, पर बड़े शहर में क्या मक्खियाँ नहीं होती? चली आई थी घर से खुद को प्रूव करने , वो घर जो हम जैसे बहुतेरे निम्नमध्यमवर्गीय परिवारों की तरह ही है। छोटे शहर में है। थोड़ी आमदनी वाला है। आगे बढ़ना था। इसलिए उन सारे बन्धनों को तोड़ ताड़ के निकल आई, ढेर सारे सपनों के गठ्ठर उठाए। मैंने थोड़ी देर पहले आपसे कहा था न कि जाह्नवी परेशान है, यूँ समझ लीजिए कि ये गठ्ठर ही उसे परेशान कर रहा है। सोच कर आई थी कि बड़े शहर में जाते ही बड़ी सी नौकरी होगी, लम्बा चौड़ा पैकेज, लेटेस्ट मोबाइल और तो और रहने को डुप्लेक्स और चलने को गाड़ी भी कम्पनी देगी। पर हकीकत में रोज जब डीटीसी की बस पकड़ के छोटे से अखबार के छोटे से ऑफिस में जाती है, और जब वहाँ बैठकर कम्प्यूटर टाइपराइटर की कीज तड़तड़ाती है तो लगता है काले अक्षर उसके सपनों पर क्रमशः कालिख पोतते जा रहे। अबकी बार का इंक्रीमेंट मिला कर 15k  महीने के मिलेंगे, एक बार के लिए खुद को लगा कि जैसे अब ये तनख्वाह से बढ़ रही समस्याएं खत्म हो जाएंगी। पर आजकल समस्याएं तनख्वाह से जल्दी बड़ी होती हैं।

वैसे तो आज के दौर में लड़की होना ही अपने आप मे खुद एक समस्या है। सबकी कॉमन समस्याएं भी लड़की के पास आते ही अधिक विकराल हो उठती हैं और लड़की अगर अकेली हो तो क्या कहने। 3 साल से द्वारका में है, पुरानी दिल्ली के दड़बों से निकल यहाँ आई थी तो लगा था शायद अब कोई उसे वैसे नहीं घूरेगा, कोई उसे ओपोर्चुनिटी नहीं समझ लेगा, साले जाहिल लोग किसी से हँस कर बोल भी लो तो क्या क्या बातें बनाने लगते हैं। जाने क्यों उन्हें हर लड़की में रात के जुगाड़ की जुगत दिखाई पड़ती है। और उस रात तो, उस अशरफ़ ने उसका हाथ ही पकड़ लिया था, जब वो अपने दड़बेनुमा कमरे कमरानुमा दड़बे में जाने के लिए सीढियां चढ़ रही थी। हर लड़की की तरह एक सपना ये भी तो था कि कोई उसे बहुत प्यार करने वाला हो, जिसके छूने से दिल की कलियाँ खिलखिलाने लगे। पर जिस तरह से उसका हाथ जबरदस्ती और वाहियात ढंग से पकड़ा गया था, लगा जैसे कलियाँ खिल नहीं रही मसल दी गई हैं, कुचल दी गई हैं, एक गहरी वितृष्णा भरी चीत्कार भी बस मुँह से फूटने की कोशिश ही कर पाई, झटके से अपना हाथ छुड़ा कर दड़बे का गेट भीतर से बंद कर लिया।

यहाँ वहाँ जैसा माहौल नहीं,  घूरने क्या किसी के पास किसी को देखने की भी फुर्सत नहीं है। वहाँ से अलग यहाँ ये एक समस्या है। दूसरी समस्या ये भी है कि १००० की जगह ३००० देने पड़ेंगे कमरे के किराए के लिए। अपने कमरे में घुस कर चारों और नजर घुमाई। कुछ अखबार के फ़टे टुकड़े जिस पर उसी ने खाना रख कर खाया होगा, अब उठा लेने वाले हाथों की बाट जोह रहे हैं। डस्टबीन में समेटने को हाथ उठे, पर कोई विज्ञापन देख कर ठिठक गई। "वधु चाहिए, २५ वर्षीय खूबसूरत, अपना बिजनेस, आय ५ अंकों में, अग्रवाल लड़के के लिए, कोई जाति बंधन नहीं, सम्पर्क **********" एक दर्द सा फिर उठने लगा, सोच रही है कि मैं ये विज्ञापन क्यों देख रही हूँ? फिर सोचा कि क्यों न देखूँ? आखिर शादी की उम्र तो हो ही रही उसकी भी। और हो नहीं रही निकल रही है। पिता की मौत के बाद से हर महीने घर पर भी कुछ पैसे भिजवाने होते हैं, कभी कभी लगता है जैसे घरवालों ने शायद उसे उतने भर के लिए ही समझ लिया है। पर और करें भी तो क्या? और फिर शादी ब्याह के लिए क्या नहीं चाहिए। ख़ैर जो जब होना हो हो जाएगा।

सारी परेशानी झटक कर सो जाना चाहती है, पर मन के किसी कोने में , कोई है जो, २५ वर्षीय खूबसूरत, अपना बिजनेस, आय ५ अंकों में, दोहरा रहा है। उसे लगता है जैसे ये उसी लड़के के बारे में है, कौनसा लड़का ? अरे कहानी नायक प्रधान हो या नायिका प्रधान, लड़का लड़की तो एक दूसरे के पूरक ही हैं न। लड़का वही है, जिसका घर उसके ऑफिस के रास्ते मे पड़ता है, 'घर से निकलते ही कुछ दूर चलते ही' टाइप, वही जिस के घर के अहाते में कई गाड़ियाँ खड़ी हैं। वही जो कभी कभी अपने कुत्ते को घुमाने निकलता है, जाने कितने रंगों की टी शर्ट और कितने सारे लोअर हैं उसके पास, हर बार बदल जाते हैं। वो भी उतना ही होगा, मेरा मतलब लगभग २५ वर्षीय, खूबसूरत है, आय का पता नहीं पर उतने अंकों में तो होगी, वरना इतना तामझाम मेंटेन कैसे करेगा कोई। आते जाते चलते चलते चुपके कनखियों से देख लिया करती है वो, क्या वो भी उसे देखता होगा ? नोटिस किया होगा उसे ? क्यों नहीं देखेगा, आखिर क्या कमी है उसमें ? पता नहीं क्यों उसी पल उठ कर खुद को आईने में निहारने लगी, अच्छी भली तो हूँ। पर क्या वाकई ? आँखें बिना काजल के फीकी सी लग रही। अभी लगा लूँ, विचार किया पर इतनी रात को देखेगा भी कौन? चेहरे पर झुर्रियों ने जगह तलाशनी शुरू कर दी है, बाल भी कुछ पके पके लग रहे। खाक देखता होगा वो मुझे। नींद उड़ गई। जिंदगी की सारी परेशानियाँ अपने ही चेहरे पर केंद्रित हो गई, लगने लगा कि इसके सुधार में ही सब समस्याओं का भी समाधान छुपा है।

4 बजे ही तक जब नींद न आई तो उठकर बाल रंग डाले, नाखून खुरचे, ब्यूटी पार्लर गए भी तो मुद्दत हो चुकी। अब जो भी करना था खुद ही करना था हमेशा की तरह, जो भी मिला उसी से खूबसूरत बनने/ दिखने की कवायद की। क्या वो अब मुझे देखेगा? दर्पण में देखा, क्या वो आकर्षक है ? क्यों नहीं है, है न, तभी तो उस अशरफ़ ने उसका हाथ पकड़ा था। सहसा उस घटना पर, जिससे हमेशा उसे घिन्न आया करती थी, उसी पर उसे अजीब सी गर्वानुभूति होने लगी। वो सुंदर है, हाँ बहुत सुंदर। वो उसकी और वो उसकी तरफ जरूर देखेगा। कैसे नहीं देखेगा? देखना ही पड़ेगा। कैसी अजीब सी बातें कर रही हो, खुद से कहा। फिर पूछा क्या तुम उससे प्यार करने लगी हो? पता नहीं। वो क्यों तुमसे प्यार करेगा, तुमसे उम्र में भी कुछ छोटा ही होगा। तो, तो क्या हुआ? एक आध साल का ही फर्क होगा ज्यादा से ज्यादा, इतना कौन देखता होगा। और हो सकता है वो भी मुझसे प्यार....। न जाने क्यों एक लाज की लाली क्रीम पोते चेहरे की दमक में घुल गई।

ऑफिस 9 बजे से है और अभी तो सिर्फ 6:30 हुए हैं, डीटीसी बस से आधा घण्टा लगेगा, इस लिहाज से अभी पूरे 2 घण्टे एक्स्ट्रा बिताने शेष हैं। इंतज़ार हमेशा सबसे मुश्किल काम होता है। समय रबड़ की तरह लंबा होता सा प्रतीत होता है। समय बिताने के लिए जाह्नवी ने फोन निकाला। जी आप सही सोच रहे हैं, बहुत साधारण सा फोन। हैंग हो जाता है बार बार, इसलिए एहतियात के तौर पर उसने किसी से चैटियाने की आदत ही नहीं डाली। देखा है लड़कियों को कान से फोन चिपकाए इधर उधर आते जाते, ऑफिस में काम करते, किसी से बतियाते हुए। पता नहीं क्यों उसे इन सबके लिए वक़्त नहीं मिला, या शायद उसके किसी डर ने ही उसे इन सब से दूर रखा हो। जब उसका 'प्यार' शुरू होगा तो वो भी ऐसे ही बात करेगी ? हाँ पर क्या, उसके पास क्या है ऐसा जिसे बता कर उसे और सुन कर सुनने वाले को खुशी होगी ? जो ये लड़के लड़कियाँ बतियाते हैं सबके पास कितनी बातें हैं। अपने बारे में, घर के बारे में, हॉबीज वगैरह का कोटा तो पहली बार में खत्म हो जाता होगा। बाद में तो यहाँ वहाँ की होती होगी। हाँ कर लेगी वो भी इधर उधर की कुछ भी।

घड़ी कह रही है कि कुछ ही देर में 8 बज जाएंगे, आज समय रोज से ज्यादा धीमा है। बैठे रहना मुश्किल हो गया तो बाहर आ गई, सड़क पर, अब वो भी आएगा सामने से, उसे देखेगा, देखता रहेगा, शायद कुछ कह दे, कह क्या दे पूछ ले ,'कि क्या आप भी मुझसे प्यार करती हैं?' धत्त ऐसे कौन कहेगा पहली बार बात करने पर किसी से। शायद बात नाम पूछने से शुरू होगी और.....। वो जो सामने आ रहा है वही तो नहीं? हाँ वही लग रहा है, पर उसका कुत्ता कहाँ गया? लेकिन मैं कुत्ते के बारे में सोचूँ भी क्यों? उसकी मर्जी, नहीं लाया न सही, क्या आज वो मुझे नोटिस करेगा ? करेगा जरूर करेगा आज तो कुत्ता भी नहीं है ध्यान बंटाने को। पर अगर नहीं किया तो, तो मैं ही बात कर लूँ? पर मैं क्या बात करूँगी? वही , नाम ही पूछ लूंगी, पर अगर उसने बोल दिया कि क्यों पूछ रही हो या आपसे मतलब , तो क्या कहूंगी? नहीं ये तो बैड मैनर्स हैं इतना बदतमीज तो कोई भी नहीं होता किसी लड़की से बात करते , फिर ये तो किसी भी एंगल से ऐसा वैसा नहीं लगता। वो नजदीक आ रहा था, नज़र न जाने कैसे खुद बा खुद झुक गई, मन मे यही उधेड़बुन चल रही थी कि कैसे बात करूँ, धड़कने तेज हो गई फिर एक जोर से धक्क हुई और सब नॉर्मल हो गया। ये वो था ही नहीं। पर वो मुझे उसके जैसा क्यों लगा? वो ही क्यों जो भी आ रहा था लग रहा था जैसे वही ही तो आ रहा है। क्या मैं पागल हो रही हूँ या सचमुच उससे प्यार...। चलते चलते उसका घर करीब आ रहा, आज गाड़ियाँ बाहर भी खड़ी हैं, कभी कभार वो जब बाहर नजर नहीं आता तो घर में नजर आ जाता है, शायद आज भी नजर आ जाए। घर पर विशेष सजावट है। एक फूलों से सजी गाड़ी अंदर से निकल करीब से गुजर गई, वो भीतर था, किसी दूल्हे जैसा दिख रहा था।  एक अनजान आँसू गाल से ढुलक कर नीचे जा गिरा।

ऑफिस से लौट आई, जाह्नवी वाकई परेशान है, बहुत परेशान। पर खाना पीना तो नहीं छोड़ सकती न, साथ लाई है हमेशा की तरह, अखबार बिछाया, न चाहते हुए भी एक जगह नजर चली गई, "२७ वर्षीय, राजकीय कर्मी, संस्कारी परिवार, गोरी वधू चाहिए, सम्पर्क करें **********" , "हाँ गोरी ही तो हूँ मैं भी................।"

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

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🏡🏡🏡🏡🏡 ओ शोना ओ शोना ♠♠♠♠♠

"अच्छा सुनो, गोरखपुर स्टेशन से उतरते ही सीधे टेम्पू कर लेना, बोलना चावला पकौड़े वाले के पास जाना है। अरे बोले तो फेमस है रे इदर ये चावला।  टेम्पू वाला तुमको एक तिराहे पे छोड़ेगा। ओहो तुम कन्फ्यूज मत हो रे शोना। मैं हूँ ना। सामने देखो सफेद घर दिखा न तुमको? वोई चावला का घर है। देखो अब शक्लें ना बनाओ, भूल गए चावला पकौड़े वाला ? अरे इसी का नाम ले के तो यहाँ आए हो, यही घर है , यकीन न हो तो कन्फर्म कर लो। बाहर पकौड़े जैसी नाक वाले जो अंकल बैठे हैं वही तो हैं चावला जी, खैर! तुम भी ना, खामखाँ कहाँ के कहाँ घुसे जा रहे। तुम सीधी गली पकड़ लो, हाँ हाँ फ़टाफ़ट, आगे तीन रोड़ क्रॉस करके बाजार दिखेगा। हाँ तो क्या खाली हाथ आओगे हमसे मिलने ? शर्म कल्लो बेटा जी, लड़की से मिलने जा रहे। देखो जेब ढीली करो और अच्छा सा गिफ्ट खरीद लेना हमाए लाने। हम तो कहते हैं कोई टेड्डी ही खरीद लो। अरे जब तक हमारे पास पहुंचोगे तब तक टाइम पास करने को तुम्हारे पास हमारा टेड्डी होगा न बतिया लेना हमारा नाम ले के।

देखो अभी से शुरू मत हो जाओ टेड्डी उठाओ और चलो महाशय जी। किधर ? अरे हाँ तो बता रहे न हम, सीधे ही चलना है, जब तक पार्क न आए, नाम पढो इसका, आँखें बड़ी मत करो नाम पढो हमारे साथ। 'केशव उद्यान' । वाह ! सही जा रहे बिल्कुल, बगल में देखो, दाहिने नहीं बायीं तरफ , हाँ घूम जाओ उसी ओर, 4था घर छोड़ के 5 वें घर के दरवाजे पर जाओ, भीतर नहीं जाने का रे, और हाँ अपना ये हाथ जेब में रखो खाना खाने के काम आएगा घँटी काहे बजाने की सोच रहे, टॉमी है घर में, और तुम तो हो ही टेस्टी हम नहीं चाहते कि कोई और तुम्हारा नाश्ता कर ले हमारे सिवा। 😍😍😍 हाय दैया हमको हमारी ही बात पर लाज आने लगी। ये शर्म भी कमाल की चीज़ है ना शोना? वैसे एक बात बताएं हम शर्माते हुए बहुत सुन्नर लगते हैं, मम्मी ने बोला था, जब हम शर्माए थे पिछली गर्मियों में , काहे शर्माए थे ? अरे तुम भी न ढक्कनों वाले सवाल पूछते हो बिल्कुल, कोई लड़की काहे शर्माएगी, कुछ लाज आने की बात हुई होगी न, अच्छा बता देते हैं बाबूलाल, वो क्या है न कि माँ बोली थी दीदी के साथ चीनू को भी निपटा देते हैं, हमको तो इतनी लाज आई कि हम तो वहीं गड़ने को हो गए। क्या? समझ नहीं आया ? अरे पागल निपटा देना माने सादी की बात हो रही थी पगलेट, अपनी सादी का सुनकर तो शर्माना बनता ही है, है कि नहीं?

अरे देखो तो जनाब को 😠😠, तुम अभी यहीं खड़े हो ?  टॉमी का वेट कर रहे ? किस्सी चाहिए उससे? पोपलादास ही रहोगे तुम। टेड्डी सम्भालो और दरवाजे के पास जो लड़का खेल रहा उसे प्यार से देखो,😍😍😍😍 इतना भी नहीं, ओवर लगोगे, गे टाइप्स, एंड आई डोंट लाइक गेज , यू नो ये लड़का बहुत  इस्मार्ट है लपक लेगा तुम्हारे इरादे,और वैसे भी इतने प्यार से बस हमको देखोगे तुम, हमको नहीं पसन्द किसी और को ऐसे देखोगे तो, बोल दिया बस।  हाँ बस थोड़ा सा प्यार से देखो, सिंपल वाला, और बोलो गुल्लू बेटा, अरे हाँ रे गुल्लू नाम है लड़के का, यार ये तुमको प्रॉब्लम क्या है? कोई कुछ भी नाम रखें उनके घर का मामला है न, देख रहें हैं नाक बहुत लंबी हो रही तुम्हारी हर जगह घुसी जा रही, अरे अपने काम से मतलब रखोगे फायदे में रहोगे, बता रहे। समझा तो रहे न कि सीधे प्यार से पूछ लो,गुल्लू बेटा हरिलाल के घर जाना है, गुल्लू खुद तुम्हे हरिलाल के घर छोड़कर आएगा तुम देखना, कितना अच्छा बच्चा है न गुल्लू। जब हमारा बेटा होगा सब उसके लिए भी यही बोलेंगे, कितना अच्छा बेटा है न किट्टू, हाँ तो क्या हुआ अगर ये मेरा भी नाम था बचपन में? तुम ऐसे निकालोगे मैंने सोचा भी न था, पुरुषवादी सोच हुँह, मन तो करता है तुम्हें यही से लौटा दूँ, बट शोना आई रियली लव, टेड्डीज, हीहीहीही अरे मजाक भी न करें अब तुमसे, तुमसे नहीं तो किससे करें बताओ? नहीं नहीं बता दो, देखो वो फेसबुकिया मठ्ठा #विवेक भी हमारा नाम छाती के बालों में छुपाए घूम रहा, ऑप्शन बहुत हैं बाबूलाल पर ये दिल हाँ ये दिल क्या करे इस दिल का, तुम पर आ गया हम क्या करें, आ गया तो आ गया, दिल आया गधे पर तो परा क्या चीज है?
एक बात बताएं, यार यू आर वेरी स्लो, नहीं समझे ? अमा , धीमे बहुत हो यार। कायदे से अब तक हरिलाल के घर पहुंच जाना चाहिए था तुमको, गुल्लू को देखो कैसे  छलाँगे मारता चलता है, तुम नहीं मार सकते ? कम ऑन टेड्डी का बहाना तो सुनाना ही मत, इत्ता भी कोई भारी नहीं होता ओके, बड़े आए, एक बात और जो कहना हो मुझे कह लो , कोई मेरे टेड्डीज को कुछ बोले ये मुझे बिल्कुल नहीं पसन्द , हुँह रहेगा उसके लिए, हरिलाल के घर पहुंच गए न ? न न ये मेरा घर नहीं है बुद्धू 😊, सामने स्कूल दिखा न तुमको? अरे आँखे अपनी ही हैं या उल्लू से उधार मांग के लाए हो भरी दुपहरिया में इत्ता बड़ा स्कूल ना दिखाई दे रहा तुमको 😠 ,अच्छा ध्यान से सुनो अब, वहाँ एक मास्टर जी पढ़ाते हैं #प्रदीप जी नाम है उनका, बहुत अच्छे हैं, मने की बहुत ही अच्छे हैं, अरे रे यूँ कि हम पढ़ चुके हैं उनसे इसलिए जानते हैं अच्छे से और इसलिए कह सकते हैं, यार सच्ची में बहुत अच्छे हैं, एक बार और कह लें ? बहुत ही अच्छे हैं मने हद से जियादा वाले अच्छे हैं, हीहीहीही अरे गुस्सा न करो चिढ़ा रहे तुमको पगलु, चिढोगे तभी तो क्यूट लगोगे, हमको मास्टर में कोई इंटरस्ट थोड़े न है। हमको नहीं है पर तुमको थोड़ा इंटरेस्ट लेना पड़ेगा प्रदीप में, अरे अब शक की नजर से ना देखो यार हमको। बोल दिए न कि कोई इंटरेस्ट नहीं है तो समझिए कि नहीं ही है। जाकर बोलो उनसे पूछो तिबारी जी को जानते हो, स्पेलिंग सही लिखे हैं हम , तिबारी ही है, तिवारी कह भी मत देना, प्रदीपवा मारेगा ज्यादा गिनेगा कम। अरे कुछ खास वजह नहीं है, तिवारी जी की बेटी के साइंस में 4 नम्मर काटे थे, अब तिवारी जी ठहरे विद्वान आदमी, पूछे कि क्यों काटे? किस बात के काटे?आएं बाएं करने लगे तो मार खा लिए मास्टर जी कायदे से तिवारी जी से। पता है तिवारी जी कूटते बहुत तसल्लीबख्श हैं, तो फिर जे तिबारी कौन है? अरे तुम्हरे काम का बन्दा है ही ओही, मास्टर जी बता देंगे कि किधर मिलेगा तिबारी, तुम लपक के पहुंचो झट से, थक तो नहीं गए न शोना?

ये जो टॉवर हैं न जियो का है , तिबारी इसके जेनरेटर में तेल डालने आता है, पता है हम आज ही रिचार्ज कराए हैं अपना जियो का नम्मर 499/- रूपीज से सन्दीपवा को उल्लू बना के, तुम डरो मत, उसका नम्मर ब्लॉक ही कर दिहिस, अच्छा तुम थोड़ा इंतज़ार करो, जब तिबारी आए तो उसको पटा के टॉवर पर चढ़ो, अरे हम पट गए तो तिबारी क्या चीज है, काहे? अरे बाबू, हम भी छत पर आते हैं, हाथ हिला देंगे तुम्हारी ओर। और बस तुम अब हमारे रांझणा की तरह दौड़ते चले आना, इंतज़ार नहीं होता हमसे, अच्छा सुनो तो वैसे सॉरी रहेगा हैं, एक बात कहना भूल गए हम, जियो रिचार्ज करवा लिया पर वीडियो कॉल नहीं करेंगे हम, शर्म लगती है हमको, बुआ बोली थी कि वो फूफाजी को सादी के बाद ही देखी रही, हम भी क़सम खा लिए हैं कि सादी के बाद ही तुमको देखेंगे फेस टू फेस, सुनो
उतर जाओ नीचे टावर से, इरादा बदल लिया हमनें, हम नहीं बता रहे अभी कि किधर रहते हैं, थोड़ा इंतजार का मज़ा लीजिए, अच्छा चलते हैं मम्मी बुला रही, तुम मिस करना हमको, ओके, लभ जु तो बोलो, अच्छा मत बोलो, नौटंकी कहीं के, हम बोल रहे, आई लभ जु, पूरा 45 किलो, अरे इत्ते ही ही हैं रे, समझो कि पूरा का पूरा तुम्हारे लभ से ही भरे हैं, बाय, अब पुच्ची वुच्ची नहीं देंगे यार, शलम लगती हैं न समझा करो, वो सब सादी के बाद 😜😍😍😍😜😉"

(किसी से एड्रेस मांगा था, ऐसे कौन एड्रेस देता है यार)
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#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

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🎑🎑🎑🎑🎑 दीप ज्योति परम ज्योति ♠♠♠♠♠ .


आसमान में बादल हैं, दो छोटे छोटे बच्चे धीमे धीमे बरस रही हल्की बूंदों और बाहरी दुनिया से बेखबर अपनी ही धुन में न जाने किस लोक में खोए व्यस्त से नजर आते हैं। बारिश का पानी इकट्ठा होने से बने पानी के छोटे से गड्डे को तालाब की मौन अघोषित आकस्मिक उपाधि प्रदान कर दी गई है। उन बच्चों में से एक कागज की नाव बना कर उसी में बहाने में लगा है बारिश की आहट पाकर भाग रहे किसी मकौड़े को जबरदस्ती पकड़ 'सिन्धबाज़ जहाजी' का ख़िताब देकर अज्ञात की खोज में भेज दिया है। वहीं दूसरा तालाब के किनारे की गीली जमीन पर ऊँगली से कुछ उकेर रहा है, शायद कोई रंगोली बनाई जा रही है।

पहले ने दूसरे को अपने जहाज को निहारने का न्यौता देते हुए आवाज़ लगाई पर दूसरा दत्तचित्त और पूर्ण एकाग्र मन से रंगोली की गोलाइयों को साधने, संवारने  और उस पर नक्काशी में व्यस्त है। पहले को अपनी ये उपेक्षा अच्छी नहीं लगी शायद , हुँह ! भला उसके जहाज से बेहतर क्या होगा इस दुनिया में ? विचार आया कि जब 'उसका सिन्धबाज़' दूसरी दुनिया से ढेरों खजाने ले आएगा तो वो किसी को एक धेला भी न देगा, हुँह कह कर एक बारगी मुँह उधर किया भी पर दूसरा अब भी उसकी उपेक्षा और अपेक्षा दोनों से निरपेक्ष अपनी ही तन्द्रा में लीन था। उसने पुकारा भी नहीं पर शायद वो पुकार दूसरे की एकाग्रता को भेद नहीं पाई, सहज जिज्ञासा पहले को दूसरे की ओर खींच लाई। आकर देखने लगा कि आखिर वहाँ ऐसा है क्या जिसके लिए उसकी उपेक्षा की जा रही थी?

आड़ी तिरछी रेखाएं अधिक देर तक उसके कुतुहल का कारक बनने में सफल न हो सकी, जाने उसे क्या सूझी कि गीली गीली रंगोली पर दनादन लातें जमा कर सब तहस नहस कर दिया, जो रेखाएं बच भी गई उन पर भी कुछ छलांगे लगा कर रही सही कसर पूरी कर दी गई। चित्रकार अपनी कृति की दुर्दशा देख क्रोध में आपा खो बैठा, उठते ही जहाज के मालिक को जोर से धक्का दिया।  जिससे वो सीधा उसी गड्डे में जा गिरा। कीचड़ सने मित्र को देख चित्रकार के क्रोध का स्थान सहज हास्य ने ले लिया, पर हँसते हँसते हाथ आगे बढ़ा कर पहले को गड्डे से बाहर खींचने की भी चेष्टा की पर खुद भी फिसल कर उसी में जा गिरा। दोनों एक दूसरे पर पानी गिराते हुए कहकहे लगा रहे हैं। अचानक देखा कि उनसे कुछ कदम की दूरी पर एक पेड़ के नीचे से एक जोड़ी आँखें उन्हीं को निहार रही है, हास्य संकोच और संकोच झेंप में कब बदला और कब इस झेंप ने पलायन का रूप लिया , ये थोड़ी ही देर में तब स्पष्ट हो गया जब ये दोनों एक दूसरे के पीछे हाथों से स्कूटर बना कर हुर्रररर की आवाजें निकालते हुए दौड़ लगा गए।

मैं देख रही हूँ उन्हें दौड़ते, खिलखिलाते, मुस्कुराते हुए, हल्की सी अज्ञात मुस्कान मेरे चेहरे पर आते आते वापस अज्ञात ही में विलीन हो गई, जाने क्यूँ पर बरसों हुए 'सच में' मुस्कुराए हुए। मैं भी तो ऐसी ही थी शैतान, मासूम और निश्छल, वो सब बचपना बचपन खत्म होने से पहले ही खत्म हो गया। पर क्या कहूँ? किसे कहूँ? किस मुँह से कहूँ ? सब मुझे ही दोषी कहेंगे। उस दोष की दोषी जो मैंने नहीं किसी और ने किया। बारिश फिर टपकने लगी है। भगवान कभी कभी तो सहायता करते ही हैं। बारिश की बूँदों में बरसती आँख के आँसू अब नजर नहीं आ रहे। पर आप तब कहाँ थे भगवान जी, जब रोज आपसे प्रार्थना करती थी कि प्लीज मुझे अपने मम्मी पापा के पास भिजवा दो? दीदी ने बताया था कि 'मेरी मम्मी' मम्मी नहीं है,'हमारी बुआ जी' हैं, बस तब से मैं अपनी माँ अपने पापा तलाश ही तो करती आई हूँ। किसकी बेटी हूँ जन्म देने वालों की या पालने वालों की, उनकी जो मुझे जन्म से पहले ही मार डालना चाहते थे या उनकी जो इस बात का रोज अहसास दिला कर तंज कसते हैं कि मेरी जान बचाने वाले वे ही हैं, समझ नहीं आता कि मुझे 'जिंदा' होने के लिए आखिर किस किस का अहसानमंद होना चाहिए। पता नहीं क्यूँ मेरे इन माता-पिता को लगता है कि मेरी निष्ठा इनके प्रति नहीं 'अपने मम्मी पापा' के प्रति ही है।

बारिश बढ़ गई थोड़ी, मैं यहीं पेड़ के नीचे थोड़ा और सिकुड़ गई हूँ। वो बच्चे हुर्ररर करते लौट आए हैं। कीचड़ में लोट पोट हो रहे, खुशी से। उछल रहे। मुझे देखा फिर से, मुस्कुरा दिए, फिर ध्यान अपने खेल में लगा दिया। कीचड़ के गोले बना कर थपाक से एक दूसरे पर निशाना लगाया जा रहा। मुझे लग रहा जैसे मैं भी कीचड़ से सन गई हूँ, हाँ सच में सन गई हूँ बाहर से ही नहीं भीतर से भी, शायद मेरे आँसू उसी कीचड़ से मुक्त होने की मेरी कोशिशों के हिस्सा है। बच्चे कीचड़ में खेल कर भी खुश हैं, मैं खुश क्यों नहीं रह पाती? इस प्रश्न का उत्तर पूछूँ भी तो किससे? खुद से प्रश्न किया तो मन से खामोश चीत्कार सी निकलती है। बच्चे खुश हैं, मैं भी होती थी पहले पहल जब अपने मम्मी पापा के यहाँ जाती थी। भरा-पूरा परिवार, 2 बहने 1 भाई, सबसे छोटी मैं। सब बहुत प्यार करते। मम्मी लाड़ लडाती, पापा मेरे लिए खिलौने लाते, दोनों बहनें मेरा कितना ध्यान रखती, पर भैया तुम....😢 माँ कहती ये भी बहन है तुम्हारी, आशीष खिलखिला कर हँसने लगा था, कितनी अजीब थी वो हँसी। मैं 5 साल की थी और वो 9 साल का , उस हँसी की गूँज अब भी जब रह रह कर गूँज उठती है तो सिहर जाती हूँ। नहीं .....क्यों याद कर रही हूँ मैं वो सब, एक बच्चा फिसल कर गिर गया है। अरे रे, कितनी चोट लग गई खेल खेल में, पूरा घुटना छिल गया, खून बह रहा है, अब आँसू बह रहे बच्चे के भी, दूसरा स्तब्ध होकर टुकुर टुकुर ताक रहा। अपने रुमाल को उसके घुटने पर बांध दूँ शायद खून बहना रुक जाए। थेंक्यू दीदी, बच्चे ने बोला, उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा, जाने क्यों बेवजह आँखे बही जा रही, दूसरा पहले को साथ ले कर जा रहा है। कितने अच्छे हैं दोनों, एकदम सच्चे, बच्चे सच्चे ही तो होते हैं, पर तुम्हे क्या हुआ था आशीष, बच्चे ही तो थे तुम भी, मैं भी, कमीने भाई थे तुम मेरे, मेरे अपने सगे भाई, सहोदर, पर कभी बहन मान भी पाए? तुम्हारा यूँ अजीब तरह से छुना अजीब लगता था, मन करता है जीभर कर गालियाँ दूँ तुमको, पर क्या उससे वो सब लौट आएगा जो तुमने छीन लिया मुझसे राक्षस? उस रात के बाद से तो इतना डर गई हूँ कि रह रह कर चौंक जाती हूँ। किसी पर भी पागलों की तरह चिल्लाती हूँ। सहम गई थी माँ से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं थी। 5 साल की बच्ची कैसे कह दे। दीदी को कहा तो वो भी कुछ नहीं बोली। बस उसके बाद से अपने पास रखती , सबसे बचाकर, मेरा सब कुछ खा गए तुम। सच भाई नाम से नफरत हो गई है मुझे।

अरे ये बाइक पर कौन चले आ रहे? ओह पापा हैं, मेरे पालक पिता, वही जो सुबह बिना वजह मुझे डांट रहे थे, वही डांट सुन कर ही तो चली आई हूँ घर से यहाँ चुपचाप, आगे कहाँ जाऊं कुछ समझ नहीं आया, पापा आते ही शुरू हो गए।

'अरे बेटा, तू यहाँ क्यों आई अकेले? मैं कब से ढूंढ रहा था तुम्हें, तुम्हारी माँ ने रो रो कर आसमान सर पर उठा रखा है। चलो, ऐसा नहीं करते कभी, पता भी है सुबह से कुछ नहीं खाया किसी ने। सब तुझे ढूंढने में लगे थे।'

चुपचाप पापा के साथ घर आ गई, माँ ने गले से लगा लिया, बोली 'अब से ऐसा कभी न करना बेटा, जान सूख गई थी मेरी तो।' सोच रही हूँ ,क्या ये मेरी वही माँ रोज वाली? नहीं ये वो है जो सचमुच मेरी माँ है, सुबह से किश्तों में रोए जा रही, आखिर रुलाई फूट ही पड़ी। माँ, आई एम सॉरी माँ, अब मैं हर बात मानूंगी आपकी, आई एम सॉरी मेरी वजह से आपको भूखा रहना पड़ा, देखना एक दिन कुछ बन कर दिखाउंगी तुम्हे अपनी बेटी पर, आई प्रॉमिस आपको अपनी ज्योति पर गर्व होगा। और माँ अब कभी मुझे 'मम्मी' के पास मत ले जाना।

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

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😇🍪🍩🍋👳 जिसके सिर ऊपर, तुम स्वामी ♠♠♠♠♠

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नागपुर, संतरों की नगर। धीरे धीरे ओर नजदीक आ रहा रहा था। और आते जा रहे थे संतरे बेचने वाले। हर स्टेशन पर। ढेरों संतरे के टोकरे के साथ अनेकों लोग घुस आते ट्रेन के डिब्बे में। 10 के 10 - 10 के 10। सुन लिया था मैंन भी, सोचा अरे वाह! इतने सस्ते। फिर सोचा कम से कम तस्दीक तो करूँ, एक से पूछा कैसे दिए भाई? उसने झट से 10 संतरे कागज की पन्नी में अटका कर पकड़ा दिए। अरे ये क्या बात हुई, बस रेट ही तो पूछा था। पर सोचा 10 रुपए में सौदा बुरा भी नहीं , जेब में हाथ डाला कुल 160 रुपए में से 10 का नोट निकाल धीरे से पकड़ा दिया। संतरे वाला आगे बढ़ गया। मैं संतरों को निहार रहा हूँ, क्या करूँ? अभी खा लूँ ? नहीं नहीं रात में खाऊंगा जब दोबारा भूख लगेगी जोर से। कमबख्त ये भूख भी ना , कुछ भी हो जाए अपने टाइम पर लगती ही है, आरआरबी मुम्बई का एग्जाम है मेरा, शायद इस बार बात बन जाए इस आशा से चला आया हूँ मुँह उठाए। पास का जुगाड़ हमेशा की तरह फर्जीवाड़ा करके कर लिया, फ्री आना जाना तो हो जाएगा एससी वाले पास से, पर भूख ? उसका क्या करूँ माँ ने पूड़ी और चटनी बना कर दी थी, रस्ते के लिए। पर 8 पूड़ी कितने टाइम चलेगी? 2 दिन हो गए हैं । नागपुर की ओर बढ़ा जा रहा हूँ, दिन में एक टाइम भूखे रह कर 8 पूड़ी से 2 दिन तक काम चलाया, अब आज शाम का खाना ये संतरे बनेंगे। वाह गरीबी में भी गुलछर्रे हाँ, अपने मन की बात से मुस्कुरा लेने का मन हुआ पर चुपचाप बैग में संतरे रख कर बाहर के दृश्य निहारने लगा हूँ। बदलते प्राकृतिक दृश्यों के साथ इंसान भी बदले बदले से नजर आने लगे हैं। गांधी टोपी लगाकर खेतों में हल चलाते पुरुष, और विशुद्ध महाराष्ट्रीयन परिवेश में महिलाएँ, सोच रहा हूँ बाकी सब तो ठीक है पर ये नेता वाली टोपी ये लोग क्यों लगाते होंगे ? क्या पता इधर इसे पगड़ी की तरह सम्मान का सूचक मान लिया गया हो, या शायद गांधी जी ने ही ये टोपी राजनीति के लिए इन लोगों से उधार ली हो, पर गांधी जी तो टकले थे और वो तो कभी टोपी लगाते भी नहीं थे, कहाँ लगाते कुछ अटकाने का जुगाड़ भी तो होना चाहिए, हे हे हे, वैसे कायदे से इसे अगर नेहरू टोपी कहा जाना चाहिए, और मेरे ख्याल से उस पर किसी को ऑब्जेक्शन भी नहीं होगा। ह्म्म्म, पर मैं भी क्या क्या सोच रहा हूँ फिजूल में, ट्रेन बढ़ी जा रही, खपरैल वाले घर बहुत प्यार लग रहे हैं। जब मैं जॉब पर लग जाऊँगा छोटा ही सही एक अपना सुंदर सा घर जरूर बनाऊंगा। पर रेल एम्प्लॉयी को तो सरकारी क्वार्टर मिलता है, कोई ना, कुछ भी हो अपना घर आखिर अपना होता है। भूख लग रही , संतरे खा लूँ ? नहीं थोड़ा पानी ही पी लेता हूँ। दो घूँट पानी पीया, पानी थोड़ा सा ही है इसमें, अगले स्टेशन पर बोतल भर के रख लूँगा। मुझे लगा था कि अगला स्टेशन नागपुर ही है, पर ये तो कुछ और ही आ गया। खैर जो भी हो थोड़ा सुस्ता लूँ, रात भर भीड़ में सो भी नहीं पाया।

'मे आई हैव योर अटेशन प्लीज गाड़ी संख्या 12622 तमिलनाडु एक्सप्रेस , नई दिल्ली से चल कर ग्वालियर, झांसी, भोपाल के रास्ते चेन्नई जाने वाली सुपरफास्ट सवारी गाड़ी प्लेटफॉर्म नम्बर 4 पर खड़ी है, नागपुर रेलवे...' नागपुर नाम सुनते ही हड़बड़ा कर उठ बैठा हूँ, बाहर देखा, नागपुर रेलवे स्टेशन का बोर्ड धूप से चमक रहा। दिन के लगभग 2 बजने को हैं, अपने छोटे पिठ्ठू बैग सहित स्टेशन पर पधार गए हम, पानी की खाली बोतल फिर से लबालब होकर बेग में अपना स्थान ग्रहण कर चुकी है। कम्प्यूटर वाली लड़की अब अंग्रेजी में अटेंशन करके हिंदी की वही उद्घोषणा अब अंग्रेजी में भी दोहरा रही। मुझे अब वो सुनने में कोई इंटरेस्ट नहीं, जिनको है वो कान लाउड स्पीकर पर टांगे अपनी अपनी गाड़ियों की और दौड़ लगा रहे। मैं चुपचाप टहल रहा हूँ, एग्जाम तो कल है, सुबह 9 बजे और अभी तो सिर्फ 2 बजे हैं पूरे 19 घण्टे बिताने हैं इस बीच। सोचा यहाँ क्या करूँगा कुछ देर रेलवे वेटिंग हॉल में ही गुजार लूँ , आँखें उनींदी है नींद ही मिल जाए तो क्या कहने।
 'हाँ भैया, एंट्री करवाइए पहले, अरे आपको तो नागपुर ही आना था, पहुंच गए न, अब किसका इंतज़ार कीजिएगा? कल का रिटर्न टिकट है न, कल आइए, अभी जाइए'
'सर थोड़ी देर ...'
'समझ में नहीं न आता है तुमको, क्या बोले हम? कल आना, टिकट है त क्या पूरा रेल्बे खरीद लिए हो? नियम कानून कुछ जनबे की ना?'
वो गुस्सा हो गया, मन ही मन उसे 'साला बिहारी' बोल कर अपनी खुन्नस निकाली और धीमे कदमों से स्टेशन से बाहर आ गया। कहाँ जाऊं? क्या करूँ? अगर वो वहाँ रुक जाने देता तो क्या बिगड़ जाता? इतने लोगों में एक और सही, क्या फर्क पड़ता? पर नहीं, पक्का लालू का चमचा होगा ये, नौकरी लग गया तो इंसान को इंसान समझना ही भूल गया है। कोई सिफारिश, कोई पैसा नहीं है मेरे पास किसी को देने को, पर देखना मैं भी लग जाऊँगा, पर मैं कभी इसकी तरह नहीं करूंगा। स्टेशन से बाहर जाने किस ओर बढ़ा जा रहा हूँ, बाहर कुछ रेहड़ियाँ टाइप दुकानें या दुकान टाइप रेहड़ियाँ लगी हुई हैं पाव भाजी, टिक्की, समोसा, दही भल्ले की खुशबू जबरन नथुनों में घुस रही। लोग देखो कैसे भुक्खड़ों की तरह खा रहे, कितना गन्दा लगता है न इस तरह से खाना, जानवर साले, जब देखो खाना खाना खाना, हाँ मुझे भी खाना है, पर उसके लिए पैसे नहीं है मेरे पास, 150 रुपए? उसका खाना नहीं खा सकता, बचा कर माँ को दूंगा तो कितनी खुश होंगी, आश्चर्य करेंगी इतने से पैसे में इतनी दूर जा आया? वैसे गुस्सा भी करेंगी शायद, कहेंगी भूखा क्यों रहा? पर पैसे काम आएंगे घर पर, मैं एक दो टाइम न खाऊं तो मर थोड़े न जाऊँगा😊। अरे हाँ, याद आया,अब क्यों मरूँगा, संतरे हैं न वो कब काम आएंगे?😊 नहीं नहीं अभी नहीं शाम को खाऊंगा। अरे लेकिन 10 संतरे हैं एक दो अब खा लूँ तो क्या हर्ज है बाकी शाम को खा लूंगा। वैसे देखा जाए तो आईडिया ये भी बुरा नहीं। सड़क के किनारे बैठ गया हूँ, बैग से संतरे बाहर निकाले। बदबू आ रही थी उनसे 😢, ये कैसे संतरे दिए यार, इतनी जल्दी खराब भी हो गए, एक एक को टटोला, पिलपिले से लगे, सूंघा तो उबकाई आने लगी। पास के कचरा पात्र में सब विसर्जित कर दिए। दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम, मेरा नाम इन पर नहीं लिखा होगा शायद😢।

बैग उठाकर कर अनजान गन्तव्य की ओर बढ़ा जा रहा हूँ, किसलिए ? शायद बस समय गुजारने के लिए, ये शहर की खूबसूरती, ऊंची ऊंची इमारतें, अज्ञात खोजने को दौड़ लगाती अनन्त गाडियाँ, बड़ा सा सर्किल आ गया रस्ते में, भीतर हरी हरी दूब लगी है। मैं बकरी की तरह लालसा से दूब निहारता हूँ, खाने के लिए नहीं पर पाँव दुखने लगे हैं सोचा काश यहाँ थोड़ा सा आराम ही करने को मिल जाए तो कितना अच्छा हो। लेकिन चारों ओर तेज गति से से भागते वाहनों ने जैसे इसकी सुरक्षा का जिम्मा ले रखा है। आखिर कोई जाए भी तो कैसे? फिर से चल पड़ा हूँ, रास्ते में कोई रेल म्युज़ियम था, बाहर से ही तांक झांक करके सन्तुष्ट हो गया, अंदर जाने के 30 रूप कौन दे, उससे अच्छा कुछ खा न ले। हाँ खा लूँगा, मर नहीं जाऊँगा एक दो टाइम न खाने से, ऐसा करूँगा कि कल एग्जाम के बाद खा लूँगा। फिर टेंशन फ्री। चलते चलते एक पार्क आ गया, वाह भगवान शुक्र है , कुछ तो अच्छा मिला इस कंक्रीट के जंगल में। समय शाम के 6 बजे हैं, 2-3 लम्बी लम्बी कुर्सियां लगी हैं। कुछ बच्चे खेल रहे हैं, थोड़ा अंधेरा हो रहा है, कुछ मोटी आंटीनुमा औरतें पजामे और टी शर्ट जैसे दिखने वाले कपड़ों में जबरदस्ती घुस कर फ़टाफ़ट लगभग हाँफती हुई पार्क की पगडंडी नाप रही हैं। अंधेरे से मुकाबला करने को बिजली के जुगनू टिमटिमाने लगे हैं। मैं ऐसे ही एक जुगनू के करीब की कुर्सी पर उसके पंख निहारने को बैठ गया हूँ, एक युगल पहले से वहाँ बैठा था, मादा ने मुँह दूसरी ओर घुमा लिया तो नर ने घृणा से मेरी ओर देखा। मानो कह रहा हो, हमारे प्रणय में व्यवधान डालने वाले धूर्त चल भाग यहाँ से। चुपचाप मैं दूसरी ओर देखने लगा हूँ, फिर मुड़ कर देखा पाया कुर्सी पर मैं अकेला ही हूँ। समय रात के 8 बज चुके हैं। पाँव फैला कर थोड़ा आरामजनक मुद्रा में आ गया, ऊँघने लगा। अचानक देखा 7-8 लोग मुझे घेर कर खड़े हैं।

उनमें से एक बोला,'कौन हो तुम?'

'जी जी मैं स्टूडेंट हूँ, एग्जाम देने आया हूँ'

'क्या सुबूत है तुम्हारे पास?'

'मेरा कॉल लेटर और आईडी देख लीजिए'

गहन निरीक्षण हुआ, फिर एक बोला, 'यहाँ क्या कर रहे हो, यहाँ कौनसा एग्जाम हो रहा? जाओ किसी होटल में जाओ'

'पर मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं सर'

'वो हम नहीं जानते, तुम्हारी हेडक है वो, इदर नहीं रुकने का मल्लब नहीं रुकने का, फूटो इदर से, सोसायटी का पार्क है ये'

'लेकिन सर, मैं किसी को क्या नुकसान पहुंचाऊंगा, बस सुबह होते ही चला जाऊंगा'

'नहीं, अम्मा का घर समझे क्या, बहुत चोरी होती इदर, पुलिस में दे दें तुमको? चल फूट'

कुछ और प्रतिवाद करने की हिम्मत न हुई, फिर से बैग उठाया, सच बहुत भारी भारी लग रहा है अब ये, ओर उससे भी भारी कदम। पांव इतना दर्द कर रहे मानो 10-10 किलो वजन पाँव में बांध दिया है। रोने जैसी हालत है, पैसे होते तो मैं भी अब तक किसी अच्छे से कमरे में आराम कर रहा होता। समय रात के 10 बजने को हैं, इतनी रात में कहाँ जाऊं , बस धीरे धीरे चला जा रहा हूँ, सामने एक कुत्तों का झुंड है, अगर ये मेरे पीछे पड़ जाएं तो मुझे यही फाड़ कर पार्टी कर लेंगे। पर कुत्ते शांत रहे, मैं चुपचाप आगे बढ़ गया। इंसानों ने कुत्तों की तरह व्यवहार किया, पर कोई बात नहीं अब कम से कम कुत्तों की ये इंसानियत भली लग रही। कुछ कहने को नहीं है मन अजीब सा हो रहा है। दूर लाइट्स जगमगाते देख सोचता हूँ ये सब आखिर किसलिए, सिर्फ दिखावे के लिए न, कोई इंसान भूख से, प्यास से, पीड़ा से मर भी जाए तो किसी को कुछ फर्क पड़ेगा ? बिल्कुल नहीं।

चलते चलते उस जगमगाती इमारत तक भी आ गया हूँ, अरे ये तो गुरुद्वारा है कोई, जाने कैसे कदम उस तरफ मुड़ चले, अंदर गुरु का लंगर वितरित हो रहा, देखा एक ओर मेरे जैसे बहुत से छात्र सो रहे, धीमे स्वरों में गुरुवाणी के मीठे बोलों की स्वरलहरियाँ गूंज रही , "जिसके सिर ऊपर तुम स्वामी, सो दुःख कैसा पावे।"

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

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👤👥👤👥👤 आप भला तो जग भला ♠♠♠♠♠ .


मेरे एक मित्र हुआ करते थे , जब देखो किसी न किसी की बुराई किया करते , जब भी उसके पास जाना होता या वो मेरे यहाँ आते तो उनके मुख से परनिंदा सुने बिना वार्ता ही पूर्ण न होती।
“अबे वो , वो तो महाघटिया बन्दा है ....”
“वो ? वो तो चोर है साला ...एक दिन तो .....”
“उसकी तो बात ही मत किया कर घिन्न आती है ...”
“छोड़ यार , मूड ही खराब हो गया , किस मनहूस का नाम ले लिया ...”
“उसका तो पूरा खानदान ही लुच्चों का है ....”
मैं शहर में रहता जरुर हूँ पर ज्यादातर समय घर पर बीतता है, बाज़ार में जाने से भी कोफ़्त होती है, यूँ की आप चाहें तो इसे भी मेरे संदर्भ में आलस्य का एक विशेष दशा की संज्ञा दे सकते है। अब जब घर से बाहर नहीं जाता तो जान पहचान का दायरा भी सीमित ही है, मित्र की बातें बड़ी विचित्र लगती कभी कभी सोचता भी कि क्या सब के सब बुरे या बेकार लोग ही हैं इस शहर में?
एक दिन एक अन्य मित्र ने डपटते हुए पूछा कि ,”अबे कोई और नहीं मिला दोस्ती के लिए ....? कोई उसके मुँह तक नही लगता, यहाँ तक कि पूरा परिवार बदनाम है इसका ? इसकी माँ को जानता है ? कभी सुना नहीं कि वो अपनी खुद की बेटियों को कितनी गन्दी गन्दी गालियाँ देती है , कोई दुश्मनों से भी ऐसे बात करता होगा? कभी देखा है जब बाज़ार में सामान लेने जाती है तो लोग लागत से भी कम पर सामान दे देते हैं उसको , जानते हो क्यूँ ? क्यूंकि अगर वो ज्यादा देर तक उनकी दुकान पर खड़ी रही तो कोई दूसरा ग्राहक उसकी दूकान में नहीं घुसेगा।”
ऐसा नहीं था कि ये सब मुझे बिल्कुल पता न था पर जाने क्यूँ इन सब बातों को कोई तवज्जो देना ठीक न लगा , वो या उसका परिवार आपस में या दूसरों से कैसा व्यवहार करता है इससे ज्यादा उनका मेरे साथ अच्छा व्यवहार महत्वपूर्ण लगा, शायद मुझे ऐसा अभी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।
कुछ समय गुजरा एक दिन मित्र के भाई बदहवास से दौड़ते हुए आए , पता लगा मित्र को मेरी सहायता चाहिए, मित्र किसी निजी संस्था में कम्प्यूटर अध्यापक था , दुनिया बहुत जालिम है वेतन स्थान पर कमरे में बंद कर के पिटाई की संस्था संचालकों ने, कितना गलत किया बेचारे के साथ। मित्र को देखा तो जाना सचमुच पिटाई तो हुई थी , पूछा तो फिर से वही ‘जालिम दुनिया गंदे लोग’ अध्याय शुरू हो गया. बोला वो उन सब से बदला जरुर लेगा ।
मैं वहाँ से वापस घर आया तो देखा एक सज्जन मेरी प्रतीक्षा में थे , पता लगा की ये उसी संचालक समिति के सदस्य है जिन्होंने मित्र को धोया था, क्रोध में जलती आँखों से मैंने उन्हें घूरा। पर घर आए अतिथि से अशिष्टता करना हमारी संस्कृति नहीं इसलिए शांत रहकर उनके आने का प्रयोजन पूछा तो वो कहने लगे की, ‘आपके मित्र ने एस सी / एस टी का केस किया है हम पर , आप को गवाह बनाया है , क्या आप ने हमे आपके मित्र को , उसे ही क्यूँ किसी को भी कोई गाली देते हुए देखा है ? ये भी छोडिए क्या आप आज से पहले मुझसे मिले भी हैं ?’
एक क्षण रुक कर विचार किया फिर मैंने कहा ,’ जी मानता हूँ कि मैं आज से पहले आप से कभी नहीं मिला , फिर कभी कुछ गलत कहते देखने का प्रश्न ही नहीं, यहाँ तक कि मुझे ये भी आप ही से पता लग रहा कि मैं कोई गवाही देने वाला हूँ , सरासर झूठी, पर जब आप किसी निरीह को इस प्रकार प्रताड़ित करेंगे तो वो बेचारा इससे अलग कुछ करेगा भी क्या , आपने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा पर मेरे मित्र का तो बिगाड़ा है, न्याय का तकाजा है कि आप भी अपनी करनी का दंड भुगतें।‘
वो सज्जन मुस्कुराए बोले , ‘आपके मित्र वेतन को लेकर जो आरोप गढ़ रहे हैं क्या आपको वो सत्य प्रतीत हो रहे हैं ? एकाउंट चेक कीजिए उनका कि हर महीने की पहली तारीख को वेतन जमा हुआ है या नहीं , आप कुछ नहीं जानते आपके मित्र की सज्जनता के विषय में , हम भी नहीं जानते थे वरना शायद सच में हम उसकी पिटाई करते ।’
‘मतलब आपने उसे नहीं मारा , तो वो निशान क्या उसने खुद बना लिए अपने चेहरे पर , पूरे शरीर पर घसीटने और लात घूसों के निशान हैं , कई जगह से शरीर नीला हो गया है , सब उसने खुद किया है ?’
‘अरे साहब, उसे हमने नहीं उन बच्चियों के परिजनों ने मारा जिनके साथ आपका मित्र अश्लील हरकतें करता था, कम्प्यूटर शिक्षण की आड़ लेकर बच्चियों को ‘नीला जहर’ परोस रहा था, शायद ४-५ साल की मासूम बच्चियां कुछ न भी कहती पर बड़ी बच्चियों पर भी हाथ आजमाना महंगा पड़ गया। आपसे पूछता हूँ आपके घर की कोई कन्या के साथ ऐसा होता तो आप क्या करते ? गुस्सा आता न , उनको भी आ गया। हर गलती कीमत मांगती है साहब , आपके मित्र ने वही चुकाई है, आपसे यही कहने आया हूँ कि गलत का साथ मत दीजिए. अगर आप को मेरी किसी बात पर अविश्वास हो तो मैं आपको उन बच्चियों से भी मिलवा दूंगा .’
***
कुछ समय बाद एक मित्र घर पधारे तो बातों बातों में ‘उस’ मित्र का जिक्र आया , वो हंसते हुए बोले कि , ‘सुना है कि आजकल वो ये कहते घूम रहे हैं कि तुम बिक गए हो , तुमने स्कूल वालों से पैसे ले लिए , धोखेबाज़ हो, उसका फायदा उठाया वगैरह वगैरह ‘ कहते कहते जोर का ठहाका लगा दिया. मैं सोचने लगा शायद मुझे अभी बहुत सीखने की जरूरत है .
***
जीवन ढेरों खट्टे मीठे अनुभव देने वाली अनूठी पाठशाला है , एक बार अजीत ने मुझसे कहा था कि इन्सान जैसा खुद होता है, दूसरों में भी वही सब नजर आता है, सब कहते हैं फेसबुक आभासी दुनिया हैं पर सौभाग्य से यहाँ वास्तविक दुनिया से अधिक वास्तविक लोग मिले हैं शायद इसलिए क्यूंकि यहाँ पर इन्सान की तलाश उसके स्वार्थ से जुडी होती है, शायद जिसे जो चाहिए वो उसी की और आकर्षित होता चला जाता है, एक बार कहा भी था कि ‘होगी ये आभासी दुनिया , पर कुछ लोग है जो अपनों से अधिक अपने लगते हैं।’ इसी आभासी दुनिया ने मुझे उस ‘गुरुकुल’ का अंग भी बनाया है जो अधिकांश के लिए कुतुहल की वस्तु है। सीखना तो आजीवन चलता ही रहेगा, पर ये आभासी अनुभव भी बहुत अद्भुत हैं, सच्ची ....
#जयश्रीकृष्ण
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अरुण

💓💔💕💞❣💤 पार्टी ऑल नाईट ♠♠♠♠♠ .


'सुण सरदार अब भी सोच ले यार, गुरुजी ने ठा लाग गयो तो आपां दोनुआँ ने धोवेला'

"अबे कित्ती बार बोला है कि अपनी मारवाड़ी मत झाड़ा कर फ़ोकट में , सब ऊपर से गई मेरे😣"

'यार मैं तो बस इतना कह रहा हूँ कि गुरुजी को पता लग गया तो....'

"कुछ नहीं होगा, हम हैं तो क्या गम हैं...." कह कर सरदार , मेरा मतलब हमारे शुक्ल ने हमको गुरुकुल की दीवार से बाहर की और धक्का दे दिया ....धम्म से मैं बाहर गिरा वो तो किस्मत अच्छी थी कि मिट्टी थी उधर, उठ कर कपड़े झाड़े, तभी एक बैग भी बाहर की और फेंक दिया। पता नहीं ये संयोग था या साजिश की बैग भी मुझसे ही आकर टकराया, मन ही मन मैंने सरदार को अच्छी अच्छी गालियाँ दी, जी मन ही मन क्योंकि अगले ही पल सरदार की खोपड़ी ने दीवार के ऊपर से झाँका फिर होल बॉडी तुपुक करके इस और टपक गई।

आते ही बोला , "देखा बे, कित्ता आसान है सब.."

'यार पर गुरुजी को....'

वाक्य पूरा करने से पहले टोक देना सरदार को सबसे ज्यादा पसंद है, टोक कर बोले , "यार तुम इतने फट्टू काहे हो बे, बताया तो है कि गुरुजी सोय रहे टनाटन,  सुबह तक उनके उठने से पहले लौट आएंगे दोनों, डिस्को फिस्को देख लो प्यारे , गुरुकुल में सब गियान मिलेगा पर हम जो गियान देंगे वो किसी के पास नहीं मिलेगा"

मैं बस श्रद्धा से सुकुल को निहार रहा था।

"अबे ऐसे काए देखते हो बे?"

'यार गुरु, फिर ये बैग..?'

"गुरुजी ठीक कहते हो गंवार ही रहोगे तुम, अबे ये लुँगी लपेट के डिस्को में जाओगे ? कपड़ा लाए है बे, दोनों के लिए, एकदम टिपटॉप, पता भी है ड्रेसकोड चलता है उधर ...इस लुँगी में तो डिस्को के पास से न गुजरने देंगे अंदर घुसने की तो भूल जाओ, चल जल्दी रेडी हो जाओ"

'रेडी ? क्या यार कपड़ा पहनने में कितना वक्त लगेगा'

"नहीं लगेगा, पर लाली लिपस्टिक में तो लगेगा न, अब देख आँखे बड़ी मत कर, वरना मुक्का मार देंगे बताय रहे, इतनी मुश्किल से बाहर आए, अब नखरे मत करना, उधर लड़की के बिना नहीं जाने देते, काश अपने गुरुकुल में भी कन्याएँ होतीं।" कहकर सरदार सपने से देखने लगा।

'तो तुम इसलिए मुझे साथ लाए, यार ये गलत है सच्ची....'😢

****

बड़ा ऑकवर्ड फील हो रहा था, अपनी ही लिपस्टिक की बास होंठो सेनथुनों में जा रही थी,पता नहीं लड़कियाँ रोज कैसे ये रगड़ती हैं होंठो पर,  मैं चुपचाप सकुचाई आई मीन सकुचाया सा एक टेबल पर बैठी अबे मेरा मतलब बैठा हूँ यार (कमबख्त वेश बदलते ही छोरियों वाली फीलिंग आने लगी है खुद से 😢)। चारों और जगमगाती लाइटिंग, दमकते चेहरे, धुआँ धुआँ जिंदगी, बहकते कदम, मचलती जवानी, उफनता शबाब और उठती गिरती स्वर लहरियों पर थिरकते बदन, सरदार मुझे छोड़ कर डिस्को कर रही कमसिन कन्याओं पर डोरे डाल रहा, हुँह सनम हरजाई... मुझ अबला को अकेला छोड़ कर जाते तनिक लाज भी न आई तुमको, न जाने क्यों एक अनजान हया चेहरे की लाली में घुल गई, हुरर्र हुर्रर ये मेरे अंदर महिला कैसे घुस गई, कंट्रोल अरुण कंट्रोल..... सहसा पीछे से एक हाथ कंधे पर रखा किसी ने, मैं घबरा कर मर ही जाती अगर पलटते ही वो न दिखाई दी होती। सामने एक 18-19 वर्षीय ज्ञातयौवना नशे में झूमते अपने समस्त उफान को थामे खड़ी थी। धीमे धीमे झपकती पलकों के बीच मुझे देख मुस्कुराई, बोली "हाई बेबी, अकेली क्यों बैठी हो हिच्च, कोई सआथ नहीं अआया"।

सच कहूँ आज पहली बार सुकुल को पीट देने का मन कर रहा था, कुछ बोला न गया बस डांस फ्लोर पर उछलते सुकुल की और देखा फिर बिना कुछ बोले नज़रें झुका ली।

"Awwwwwweee my babyyyy.." बोल कर वो मेरे पास आई aww के साथ गोल हुए होंठो की छाप मेरे गाल पर लगाते हुए बोली, "ये जओ बंदर की तरह कूद रहा वओ तुम-हारे सआथ है ?" मैंने बिना कुछ कहे यंत्रवत हाँ में सिर हिला दिया।

"कम ऑन लेट्स डांस डार्लिंग..." एक साथ कई भाव मेरे चेहरे पर आ-जा रहे थे, और विग के नीचे छुपे मारवाड़ी तरबूज से मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि आखिर माजरा क्या है? थोड़ा असहज हो रहा था, तब भी जब उसने पास आकर गले से लगा लिया, फिर अपनी बाहों की पकड़ मजबूत करते हुए बोली ,"प्लीज इट्स माय बर्थडे.." सोच रहा था कि लड़कियाँ गले लगती हैं तो कितनी मस्त वाली फीलिंग आती है न, सुकुल भगवान तेरा भला करे पर मैं तुझे छोडूंगा नहीं कमीने, ये न जाने क्या समझ के गले लग रही, अबे हाँ ये मेरे गले लग ही क्यों रही , लड़की लोग का आपस मे ये सब भी चलता है क्या ? सोच ही रहा था कि वो हाथ पकड़ कर मुझे भी डांस फ्लोर पर खींच लाई, बाय गॉड इतना कोई असली लड़की भी न शरमाई होगी जितना मैं शर्मा रहा था। लड़की के साथ लड़की डांस क्यों करे भला, अजीब लग रहा था, इधर उधर देखा, लगा सरदार को छोड़ हर कोई बस मुझे ही देख रहा, वाकई बंदर लग रहा था सरदार हाथ आगे पीछे कर कर के उछल रहा था। मुझे डिस्को में अंदर घुसने के टोकन की तरह यूज करके अब वो अपनी ही धुन में मग्न था। सबकी... बजाते रहो....सबकी ...बजाते रहो...

लड़की अपने हाथ मेरे कंधों पर टिकाए अपनी अलग मस्ती में थी, झूम रही थी,एक  बार टेंडर सरदारजी भी थे, जो न जाने क्यों इधर ही नजरें गड़ाए हुए थे, साले कभी खूबसूरत लड़की नहीं देखी क्या, गुस्सा आ रहा था, जलती आंखों से उसे देखा फिर मैंने सोचा अबे कुछ और दिख तो नहीं रहा, अपने कपड़े ठीक किए , फिर से सोचा कर क्या रहा हूँ मैं इधर, घण्टा नाचना आता है मुझे, ऊपर से बॉल उछलने का डर है सो अलग। वापस लौटने को हुआ तो लड़की ने पकड़ कर वापस खींच लिया अपनी तरफ। सोचा, यार ये किस तरह की लड़की है?

सोच ही रह था कि वो बोल पड़ी फिर से, "यू डओंथ लाआइक डआंस..ओके चअल उधर बैठते हैं" मैं संकुचाते हुए आवाज़ को यथासम्भव पतला करके बोला, 'वो मेरा दोस्त....'  पर ये भी सरदार जैसी ही निकली मेरी बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ी, " तुम्हआरा बंदर उछल्ल रहा आरआम से, अआओ हम्म्म तुम्म्म बैठते है यआर"

'इतना क्यों पीती हो, बोला भी नहीं जा रहा ढंग से' मैंने कहा। उसने अपनी नशीली आँखे मेरी आँखों मे गड़ा दी, हालांकि मैंने फिर से लड़की की आवाज़ में ही बोलने की भरपूर कोशिश की थी, तो क्या उसे शक हो गया था ? क्या इसे पता लग गया था कि जिसे ये बार बार हनी बोल कर चिपक रही वो हनी नहीं वास्तव में हनुमान है? अचानक वो मुस्कुरा दी फिर गाने लगी, ओ मउझे पपीने का शोंक नहीईं पी ती हूँ गम भुलाने को, कह कर वो मेरी बाहों में झूल गई। झूलते झूलते कहने लगी, "यआर तुम्म्म भी अकेली मैं भी अकेली , हम्म तुम्म्म संग हैं तो फिर क्यआ गम्म , रआजा को रआनी से प्यार, नहीं प्यार नहीं , कोई रआजा भी नहीं, ओनली रआनी, रानी को रआनी से प्यार हओ गयआ हिच्च।"

'सम्भालो अपने आप को, कहीं गिर न जाओ'

"अरे हम्म तओ हैं गिरे हुए यआर,हैं हम्म,  पर प्लीज कम से कम्म तुम्म्म तो मअत बोलो, सबकी तरह"

'आओ उधर ही बैठते हैं अकेले में'

"नाईं मुझे जाआना है अब"

'घर?'

"गाआड़ी तक छओड़ दोगी प्लीज"

'ओके चलो छोड़ देती हूं'

वो अपने शरीर लगभग पूरा भार मुझ पर डाले, मेरी बाहों में झूलती सी साथ चल रही थी, बदन से महकते इत्र की खुशबू में मुँह से भभकती शराब की दुर्गंध मिल कर एक नई अजीब सी तीखी गंध बना रही थी। उसकी गाड़ी में उसे बिठा कर लौटने लगा तो फिर से हाथ पकड़ लिया, "बैठो न पलिज्ज ,यहाँ तो कओई नहीं , बआत करओ न मुझअसे पलिज्ज, कओइ नहीं करता , वओ भी नहीं"

मैं गाड़ी की अगली सीट पर उसके पास बैठ गया। पूछा ,'ड्राइव कर लोगी इस हालत में ?'

"कर लूंगी यआर, नहीं तो क्याआ हओगा, हिच्च, मर ई तओ जाऊंगी न ज्यादा से ज्यादा"

'दुखी हो इसलिए पी है इतनी ?'

"वओ साआला कुत्ता, उसको लगता है, मेरा चक्कर है कओई और के सआथ, साआला खुद के जैएसे समअझ रखा है क्याआ, कओइ नहीं चाहिए, भाआड़ में जा कुत्र्या, नहींइं चैये कोई तू भी नाईं। मेरी दऔसत है सआथ मेरे, हो न तउम मेरे साथ ?" कह कर उसने मेरी और डबडबाई आंखों से देखा, कार के भीतर मद्धिम प्रकाश के बीच पहली बार ढंग से उसका चेहरा देखा। भोले से चेहरे पर काजल की रेखाएँ दिख रही थी, वो मेरे करीब आई और मुझे इतनी जोर से गले से लगा लिया कि अपनी ही 'कोस्को' बॉल सीने पर चुभने जैसी लगने लगी। "मुउझे छोड़ कर मअत जाना कभी"

'पर तुम मुझे गलत समझ रही हो, मैं वो नहीं हूँ जो तुम समझ रही हो' वो मुझे विस्मय से बस घूर रही थी, मैंने आगे कहा,' मैं लड़का हूँ ' कहते हुए अपना विग उतार दिया।

"सआले सअब एक जैसे, तू भी धोखेबाज़ निकली..."

'पर मेरी बात तो सुनो.....'

उसने कस के लात मारी धड़ाम से मैं कार से बाहर आ गिरा।

उठा, देखा तो कार नहीं थी, सब कुछ गायब, पास में मेरी चारपाई उल्टी पड़ी थी, अजीत चिल्ला रहा था, "सुनते नहीं हो इसलिए चारपाई उलट दिए हैं, गुरुजी बुलाय रहे"

अजीत यार आज अच्छा नहीं किया तुमने, कम से कम लड़की को पूरी बात तो बताने देते, उठ कर कपड़े झाड़े, सुकुल कुवें के पास खड़ा ज़ोर ज़ोर से दांतों पर नीम का दातुन रगड़ रहा था। मुझे देख कर मुस्कुराया तो मैं भी हँस दिया, फिर मन ही मन कहा,'बंदर कहीं के ' 😊😊😊



#जयश्रीकृष्ण

अरुण

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🙏🙏🙏🙏🙏 नमस्तस्ये गुरवे नमः ♠♠♠♠♠ .


राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय सादुलशहर, बोले तो बड़ा स्कूल, इसे बड़ा क्यों कहते हैं पता नहीं, शायद इसलिए क्योंकि ये वाकई काफी बड़ा ही है आकार में, इसे देख कर सहसा किसी के मुँह निकला होगा," हम्म ...बड़ा तो है " और किसी ने सुन लिया होगा और बस भेड़चाल शुरू हो गई होगी, बड़ा स्कूल-बड़ा स्कूल पुकारने की और यूँ ही यही नाम भी पड़ गया होगा। या शायद शहर के बाकी स्कूलों से उम्र में सबसे बड़ा होने के चलते इसे ये नाम मिला हो , हाँ जी शहर का सबसे पुराना स्कूल खोजने निकले तो यहीं आना पड़ेगा , अपने जमाने मे इलाके का इकलौता उच्च माध्यमिक विद्यातय यही था तब शायद यहाँ पढ़कर गए किसी बुढऊ ने ज्ञान पेला हो कि बेटा हम तो बड़े स्कूल में पढ़ते थे एंड यू नो फिर से किसी ने कुत्ते की बॉल की तरह लपक कर नामकरण कर डाला हो, या फिर शायद किसी महान ज्योतिषी ने कोई भविष्यवाणी कर दी होगी कि एक समय वो भी आएगा जब मेरे कदम इस विद्यालय के धरातल को पवित्र करेंगे , और मैं किसी छोटे मोटे स्कूल में तो पढ़ने से रहा ? तो बस उसी भय से स्कूल को बड़ा घोषित करवा दिया गया हो।

  बहरहाल, कारण चाहे जो हो पर जब मैंने इस विद्यालय के बारे में प्रथम बार सुना तो यही सुना कि कोई बड़ा स्कूल है जो मेरे आगमन की बेसब्री से बाट जोह रहा है और आखिर प्रभु कृपा हुई ,सृष्टि खिल उठी , कलियां मुस्कुराने लगी ,कोयल गाने लगी 8 वीं क्लास पार करके हम इस बड़े स्कूल में जो आ पहुंचे थे , अब चूंकि स्कूल बड़ा था चाहे जिस भी वजह से हो पर था और चाहे मैं खुद को वहम में डाल कर आपको भ्रमित करने के भी कितने ही प्रयास करूँ पर मुझ जैसे चूजे की कोई वैल्यू इच नहीं थी उधर , दाढ़ी मूंछ वाले मुस्टंडों की भरमार हो रखी थी जी , चूजा ही तो लगूँगा उनके सामने, हाँ नहीं तो , इतनी भीड़ कि 9 वीं के सेक्शन 'ए' से शुरू होकर कब 'ई' तक चले गए किसी को कोई पता न चला , मुझे मिला 'सी' हाँ जी 9 वीं सी, पता नहीं किस महान आत्मा ने इस क्लास में एडमिशन किए थे, पूरे शहर के लुच्चे ,बच्चे नहीं कहूँगा क्योंकि किसी भी एंगल से वो बच्चे तो नहीं ही काहे जा सकते, ठूस ठूस कर भर दिए (प्लीज मुझे लुच्चा समझने की भूल न करना, माता रानी पाप लगाएगी , बोल देता हूँ हाँ) धनिया, महेनदिया, प्रेमिया, देबीलाल, महाबलौ, कालिया और बाबू राम ढाई टांग वाला जैसी दिव्यात्माओं से प्रथम बार साक्षात होने का अवसर यहीं प्राप्त हुआ।

क्लास में अपने नाम को चरितार्थ करते हुए प्रायः  'सी' ग्रेड फिल्मों की तरह सी सी की आवाज़ें हुआ करती, इसी महान कक्षा में हमने ये जाना की अपने निजी अंगों का सावर्जनिक प्रदर्शन करने वाले आखिर कैसे दिखते हैं, कबहु न स्मरणीय नित्य दुत्कारणीय श्री कालिया जी अपनी इस सिद्धहस्तता का डेमो पब्लिक डिमांड के अनुसार दिया करते. श्री भोगीराम जी वर्मा हमारे कक्षाध्यापक नियुक्त हुए , अब इसे संयोग कहूँ या मेरा सौभाग्य कि ये भी अपने नामानुरूप गुणधारक थे, बच्चों से छाछ से लेकर कुछ भी मंगवाने या लेकर भोग करने में कोई संकोच करना उन्हें पाप प्रतीत होता । सामाजिक के अध्यापक थे और हमें सामाजिक नहीं पढ़ाते थे , अक्सर क्लास के मुच्छड़ छात्र हाजिरी की औपचारिकता होते ही क्लास की इकलौती खिड़की , जिस बेचारी अबला का सब लूट कर उसे सरिया विहीन, लज्जाहीन बना कर मुँह बाए पड़े रहने वाली बना दिया गया था, का सदुपयोग करते हुए क्लास से कल्टी मार लेते. प्रिंसिपल कभी कभी आते 11 बजे वाली ट्रेन से आकर 2 बजे लौट जाते , लेकिन स्टॉफ सदस्यों को विद्यालय में पूर्णतः शांति व्यवस्था बनाए रखने के 'गुड गुड' कह कर कॉम्प्लिमेंट देना न भूलते. अब स्कूल में कोई बच्चा हो तो ही तो शोर हो। बड़े स्कूल की बड़ी बड़ी बातें 😊

ज्यादातर अध्यापक स्टॉफ चैस और ताश  खेलने में प्रवीण थे , विद्यालय समय में होने वाले सम्बंधित खेलों के आईपीएल सरीखे मैचों में अपनी इस कला का मुजाहिरा भी किया करते । बेचारी अध्यापिकाएं जो न जाने किस अज्ञात शर्म से उन सब का साथ न दे पाती अक्सर क्रोशिए या  सलाई पर सलाई चढा कर दे दना दन टाइप अपना गुस्सा उतारती दिखाई पड़ती।

 कम ऑन अब आप कहीं ये तो नही सोच रहे न कि मैं बस सबकी बुराई ही किए जा रहा हूँ ? ना जी , बड़ाई किए देता हूँ, अबी के अबी, एक हमारे अंग्रेजी के अध्यापक थे एक्सप्रेस सर, एक्सप्रेस इसलिए क्योंकि चलने से लेकर पढ़ाने तक , सबकी गति में किसी एक्सप्रेस ट्रेन की सी तेज़ी थी,  वो चलते हुए आते हमे लगता दौड़ते हुए आ रहे हैं , आते ही बिना कुछ कहे ब्लैक बोर्ड पर एक साथ 3-4 प्रार्थना पत्र, 2-3 लेख, 5-6 कहानियाँ अंग्रेजी में छाप देते , अवाक से हम उनकी गति पर आश्चर्य करते हुए बोर्ड के पास जाकर कुछ समझ के साथ लिख लेने का प्रयास करते, गुरुजी जाने क्यों इससे चिढ़ जाते, अबे अंधे हो क्या कह कर ऐसा हाथ घुमाते उसके बाद अगले 10 मिनट चेतना शून्यता में गुजरते, फिर जब संवेदना लौटती तो आँखों को दूरदर्शी बनाकर पढ़ने की विद्या न जाने कहाँ से प्राप्त हो जाती . गुरुजी की जय हो।

 जाने कैसे सब कल्लू कल्लन कालिया को पीछे छोड़ 11 वीं कक्षा में पहुंच गए तो श्री संजय शर्मा जी से परिचय हुआ , हमारे हिंदी सेक्शन के कक्षा और विषयाध्यापक , सब पर स्नेह बरसाने वाला मुस्कुराता चेहरा और अलौकिक व्यक्तित्व, विषय पर पकड़ इतनी की अपनी पहली ही कक्षा में रट कर याद करने वाले हम जैसो को समझ कर समझना समझा दिया, कभी याद नहीं पड़ता कि कभी किसी को मारा होगा। काव्य हो या गद्य उसे पढ़ते समय वैसा ही रसमय हो जाना उनसे सीखा, हर पेज पर डेढ़ दर्जन गलतियों पर गोले देख मुँह उतर जाता पर जब वो गोले धीरे धीरे एक एक कर कम होते गए तो सब असंतोष जाता रहा। स्व. श्री वंशीधर जी जब इतिहास पढ़ाया करते तो लगता मानो समय रुक ही नहीं बल्कि पीछे चला गया है और हम इतिहास को प्रत्यक्ष अपनी आंखों के सामने घटता देख पा रहे हो,वेद, उपनिषद, ब्राह्मण, आरण्यक लिखे जाने लगते, बुद्ध जीवित हो उठते, कलिंग युद्ध में अशोक के मन की पीड़ा पीड़ितों का चीत्कार जो शब्दों से प्रत्यक्ष कर दे वो गुरु सच मे विलक्षण ही थे। इतिहास को मात्र घटनाओं के विवरण की तरह न पढ़कर उन से सीख लेकर पढ़ने की सीख उनसे मिली।  12 वीं का जब रिजल्ट आया तो हिंदी वर्ग में मैं तहसील टॉपर था , अपने इन्हीं महान गुरुजनों के कारण , जब अंक तालिका लेने गया तो बंशीधर सर ने प्यार से सर पर हाथ रखा था, उनकी वो आँखें आज भी याद है मुझे।

***

कहीं पढ़ा था ,थॉमस अल्वा एडिसन जब बल्ब बना रहा था तो निन्यानवे बार उसका प्रयोग असफल रहा, पर वो निराश नहीं हुआ, जब उससे पूछा गया तो उसने कहा कि मैंने 99 ऐसे तरीके खोज निकाले हैं जिनसे आप चाहो तब भी बल्ब नहीं बना सकते, आज बल्ब सहित अनेकों अविष्कार करने वाले एडिसन को सब सम्मान से याद करते हैं।

मित्रो, शिक्षण तो जीवन भर अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है, हम एक शिशु के रूप में जन्म से लेकर अब तक लगातार कुछ न कुछ सीखते ही आए हैं, माता पिता, मित्र, बन्धुजनों से लेकर जीवन के प्रत्येक अच्छे व बुरे अनुभव हमें कुछ न कुछ सिखाते हैं , ऊपर कुछ ऐसा विवरण लिखा है जो शायद मुझे किसी गुरु के लिए नहीं लिखना चाहिए (इसलिए सादर नाम परिवर्तित कर दिए हैं), पर जीवन में सिर्फ अच्छा ही नहीं होता, मैं किसी को सर्टिफिकेट देने वाला कोई नहीं पर बुराई को बुराई के रूप में स्वीकार करना हमें आना ही नहीं चाहिए, वरना अच्छाई मूल्यहीन हो जाएगी। मेरे जीवन में आकर अच्छा बुरा प्रत्येक, कुछ भी मुझे सिखाने वाले हर गुरुजन को हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। शिक्षक दिवस की अनेकानेक शुभकामनाएँ। नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नमः .......

#जयश्रीकृष्ण

अरुण

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🛀🚽🎭👙💦 शरीफ ♠♠♠♠♠ .


वक़्त दिन के 1 बजे , शास्त्री बॉयज होस्टल के एक कमरे में जीन्स को खुद ही काट कर बनाई गई स्पेशल कैप्री और भूरे रंग की टी शर्ट पहने एक लड़का अपनी चारपाई पर औंधे मुँह लेट कर ऊंघ रहा है ,नींद आंखों से कोसों दूर है, ऊपर भूरे रंग का खेतान पंखा अपनी ब्रांड वेल्यू बचाने की जुगत में तेज चलने की कोशिश में हांफ रहा है, लगता है सालों से ग्रीस दिखाया भी नहीं बेचारे को, हर चक्कर के साथ बेयरिंग से छोटी पर तीखी 'कीं' की दर्दभरी ध्वनि निकलती है जो मोटर के दबाव में 'कीं कीं कीं कीं' का कर्णकटु शोर बन चुका है, पर इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा। जूठे बर्तन अब भी किसी धोने वाले की राह मुँह फाड़े ताक रहे हैं की जाने उन्हें धोने वाला उनका उद्धारक भागीरथ कब आएगा। चारपाई के पास बनी आलमारी में कुछ किताबें बेतरतीब बिखरी पड़ी है, वहीं पास पड़े रेडियो पर सूरतगढ़ के कॉटन सिटी चैनल से 'फौजी भाइयों के किसी फरमाइशी गीतों का कार्यक्रम' का प्रसारण हो रहा है, उद्घोषक गाने से पहले कई फौजियों के नाम गिना रहा है पर लड़के को वो सब जानने या सुनने में कोई इंटरस्ट नहीं , गर्मी बहुत है न, गाना शुरू हुआ 'धक धक करने लगा' गाने की उठती गिरती स्वर लहरियों के साथ ऊंघते ऊंघते लड़के के मन में कुछ काल्पनिक चित्र उभर रहे हैं, एकाग्रता बढ़ाने के लिए लड़के ने अपने ध्यान में आ रहे चित्रों को अपने मन से रंग देना शुरू कर दिया, अब ये चित्र उसे कुछ सहपाठी लड़कियों का आभास करवा रहे , धकधक गाने के साथ चित्रों के विशिष्ट उभार एक थिरकन पर नाच रहे लगते हैं, यहाँ तक कि लड़के के स्नायु में रक्त का प्रवाह भी उसी आरोह अवरोह से बह रहा है, लड़के की आंखे बंद है, कल्पनाएँ और जवां होने को है पर चित्रों का चीर हरण होने से बच गया , दरवाजा जो बस यूं ही दिखावटी बन्द था उसे खोल एक अन्य लड़का भीतर दाखिल हुआ।

दूसरा लड़का भी पहले लड़के की ही आयु वर्ग का है मने यही कोई 17-18 साल, कपड़ो के नाम पर सिर्फ बनियान और तौलिया लपेटे, सांस धौंकनी की तरह तेज़ चल रही है तो पसीने से चेहरा गीला और बनियान तर नजर आती है , आते ही बेफिक्री से अपनी अलग चारपाई पर पसर गया, उसके लेटते ही चारपाई के मुँह से चर्ररर वाली गाली निकली फिर उसने भी चद्दर के साथ खामोश गुफ्तगू शुरू कर दी,दूसरे लड़के के  हाथ मे पंजाब केसरी का रविवारीय चिकना रंगीन बॉलीवुड पृष्ठ है , उसी से कुछ पसीना सुखाने की कोशिश करने लगा, कुछ आराम की लंबी साँसे भीतर खींची, फूं-फूं, फूं-फूं, पहला लड़का अपनी कल्पनाओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर ही रहा था कि दूसरा बोला,'यार पिंटू ये माधुरी भी मस्त थी अपने टाइम में , हैं ना? पता है ये मेरा पहला प्यार थी 9 th क्लास वाला, धिक ताना धिक ताना धिक ताना' फिर पिंटू के जवाब की प्रतीक्षा किए बिना फिर कहने लगा,'पर उफ़्फ़ ये आयशा टाकिया, ये तो कयामत है कयामत, कलेजा निकाल लिया इसने तो'

पिंटू ने नजरें उठा कर देखा, और गुस्से से बोला,'साले शक्ति कपूर, कब से अखबार ढूंढ रहा था तो ये तू ले कर 1 घण्टे से  गुसलखाने में घुसा बैठा था न?  पढ़ तो लेने देता , किसी दिन वहीं हांफते हांफते मर जाएगा कुत्ते और मैं तुझे वहीं जला आऊंगा उस अखबार के साथ'

शक्ति कपूर आई मीन शरद ने पिंटू यानी पुलकित के गुस्से को बहुत कैजुअल सी हंसी में उड़ा दिया, हँसते हँसते ही बोला,'तुझे पता है आयशा आज फिर से किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रही खीखीखी राम तेरी गंगा मैली कर डाली' फिर अखबार में छपी एक सिने तारिका के चित्र को चूम लिया। फिर बोला,' यार सच में ये तो गार्डर है गार्डर, ओये आयशा ऐसे ना देखा करो यार , आई लव यू सच्ची मुची, तुम्हारे पापा की कसम'

अचानक किसी की फरमाइश से रेडियो पर कोई देशभक्ति गीत बज उठा है,'ए वतन वतन हमको तेरी कसम...' शरद ने मुँह फेर लिया और अपनी आयशा के बगल में लेट गया, चारपाई की एक और आह चरर्रर करके निकली , इधर गीत का मुखड़ा खत्म होने से पहले ही पुलकित ने रेडियो के जरिए मो. रफी का गला घोंट दिया, रफी साहब की आवाज बिना किसी तड़प के खामोश हो गई. बिखरी किताबों के ढेर के ठीक नीचे से एक विदेशी अंग्रेजी पत्रिका निकाल ली पुलकित ने ,जिस पर उकेरी विभिन्न मुद्राओं और भाव भंगिमाओं वाली विवस्त्र नायिकाओं के अंगों को निहारते हुए स्वयं को उनके नायक पद पर प्रतिष्ठित कर काल्पनिक रति के असीम सागर में गोते लगाने लगा.

****

'अबे तुझे पता है तेरी टेंशन क्या है ? साले दिमाग में लड़कियाँ घूमती है तेरे भले ही तू किताबें उठा के बैठा रह, घण्टा सेलेक्शन होगा, ये पकड़ मेरा....., 2 साल हो गए पीएमटी के नाम पर झक मारते हुए क्या मिला बता......'

'यार तेरा दिमाग खराब है, बहुत लोगों का सेलेक्शन नहीं हुआ इसका मतलब सबके फेलियर की वजह लड़कियां है ?'

'सबका कौन कह रहा बे लो$, पर ज्यादातर की वजह यही है, भेंचो दिमाग में गर्मी चढ़ी है सबके, तो दिमाग ठिकाने पे कैसे होगा , पता है अंग्रेज लोग इत्ती तरक्की क्यों कर रहे ? क्योंकि साले वो गर्मी निकाल देते है तरीके से, फिर फुल्ल कन्सन्ट्रेशन से करते हैं हर काम , और रिजल्ट देख ले, हम लोग सोने की चिड़िया का झुनझुना बजाते रह गए और वो साले पता नहीं क्या क्या बना कर बैठे है, दुनिया भर के अविष्कार कर डाले, और हम लोग भेंचो बस लौ@ पकड़ के बैठे रहेंगे '

'यार दिमाग मत खा प्लीज, मुझे पढ़ने दे ....'

'अबे मेरी मान कोई लड़की मिले तो लड़की वो न मिले तो न सही तो फिर कोई आंटी ही पटा ले, अपणे को क्या है अपणे को तो बस पाणी निकालना है'

'तू जा न मेरे बाप'

'अच्छा जा रहा हूँ भाई, पढ़ पढ़ तू तो पढ़ जी भर के'  शरद ये कह कर हँसते हुए अनिकेत यानी अनु के कमरे से बाहर आ गया. जैसा इन दोनों की बातचीत से भी पता लग रहा है अनु मेधावी मेडिकल स्टूडेंट था पर साथ ही साथ जो प्री मेडिकल टेस्ट में दो साल से फैल भी हो रहा था , शरद इसे उसकी एकाग्रता में कमी का परिणाम मानते हुए उसे एकाग्रता प्राप्त करने का गुरु मन्त्र दे रहा था. और जिसे अनिकेत अस्वीकार कर रहा था.

शरद अपने कमरे में आया तो देखा तो खेतान की किलकारी चालू थी और पुलकित बत्ती वाला स्टोव जला कर दाल को तड़का लगाने के लिए घी गर्म कर रहा था, उसे देखते ही चिल्लाया ,'भोपडी के ,प्याज काट फटाफट,और लहसुन भी छील जल्दी से, मुझे तेरा टकला बाप तनख़्वाह नहीं देता तुझे बना बना के खिलाने की, कहाँ मुँह मार के आ रहा है ?'

'कहीं नहीं बे, अनु के पास ही तो था, समझा रहा था उसे , सेलेक्शन प्रॉसिजर स्टेप बाय स्टेप'

'तू रहने दे बे क्यों बेचारे शरीफ लौंडे को बिगाड़ रहा है, बेचारे पर तरस आता है मुझे तो, उस दिन का याद हैं ना ये रोज किताब हाथ में ले के सो जाता था, जब भी बोलो तो कहता मन मन में पढ़ रहा था उस दिन मानना ही पड़ा इसे'

'हाँ तो , उससे क्या हुआ..?'

'ओहो, घण्टा, साले सब्र कर लिया कर ....बता तो रहा हूँ, तो उस दिन इसी ने बोला की अब अगर मैं सो जाऊं तो एक मुक्का मार देना, तब से इसे दस मुक्के मार चुका हूँ ,आज भी ये सो गया था, क्या कस्स के मुक्का मारा मैंने,  मजा ही आ गया, पर बाद में अफसोस भी हुआ फिर से'

'चल चल तू दाल को तड़का लगा, ज्यादा चगल मत मार'

*****

'अबे इसका पहली बार है, शरीफ लौंडा है, कोई ढंग का माल हो तो ही बता'

'अरे आप चलो तो सही , ए वन पीस मिलेगा, धंधे की कसम मजा न आए तो एक पैसा मत देना आप'

'देख कोई देख ना ले, साला पुलिस का टँटा नहीं होना चाहिए, ये सब झंझट से बहुत डर लगता है हम लोग को,भेंचो इज्जत का फालूदा हुआ तो साले मार मार के भुर्ता बना दूंगा मैं तेरा'

'अरे आप चिंता न करो, आप को मरवा के कहाँ जाएंगे, धंधा थोड़े न चौपट करना है'

शरद किसी कुर्ते पायजामे वाले मरियल से दढ़ियल से बात कर रहा था, अनिकेत चुपचाप दूर खड़ा उन्हें देख रहा था. बात करने के बाद दढ़ियल ने एक बार अनिकेत की तरफ देखा थोड़ा सा मुस्कुराया,फिर सर को थोड़ा से झुका कर दूर से ही उसका अभिवादन किया, अनिकेत ने इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, दढ़ियल ने इसका बिल्कुल बुरा नहीं माना, चुपचाप उसने  अपनी साईकिल की सीट को शान से हाथ की थपकी  मार साफ किया और आगे चल दिया ,शरद ने बाइक स्टार्ट कर उसके पीछे लगा दी, अनिकेत ने टोपी लगाकर मुँह रुमाल से ढांप रखा था आंखों पर गहरे काले रंग का चश्मा था, अजीब सी संकरी तंग गलियों से होते होते एक अच्छे खासे मध्यमवर्गीय से दिखने वाले घर के सामने दढ़ियल की खटारा रुकी ,शरद उससे कुछ पहले बाइक रोक कर खड़ा हो गया,दढ़ियल भीतर गया फिर बाहर मुंडी निकाल के शरद को लाइन क्लीयर का इशारा किया, शरद ने बाइक को वहीं स्टैंड पर लगाया, और उस घर में दाखिल हो गया, अनिकेत के मन में उथल पुथल मची थी,'ये क्या कर रहा है? क्यों कर रहा है? गलत है , गलत है?किसी ने देख लिया तो क्या होगा ? क्या मैं ये सब करने ही आया हूँ? नहीं, इतना भी बुरा कुछ नहीं होता, आज देख ही लेते हैं....'

भीतर एक लगभग पचास वर्षीय खूसट बैठी थी, उसे देखते ही अनिकेत के तोते उड़ गए,

"ये है?"

'अबे नहीं रे, तू जा उस रूम में बैठ'

"देख अगर मुझे सही नहीं लगी तो मैं कुछ नहीं करूँगा , पहले ही बता रहा हूँ"

'हाँ हाँ हाँ, मेरे बाप फकीरचंद, सुन सुन के कान पक गए मेरे, तू बैठ उस रूम में..' कह कर अनिकेत को सामने एक रूम में भिजवा दिया, वहां एक बेड लगा था, शायद किसी को शादी में मिला होगा, किसी की सेज सजी होगी, सुहागरात भी मनी होगी, और आज.....सुहागदिन...... अजीब से लगने लगा सोच कर ही अनिकेत को, थोड़ी देर हुई होगी की शरद किसी महिला के साथ भीतर प्रविष्ट हुआ, महिला लगभग 30-35 वर्ष की रही होगी, आँखे भूरी जिन्हें काजल मल कर कजरारी बनाने की नाकाम कोशिश की गई थी, उसे देखते ही शरद अपनी जगह से खड़ा हो गया. सिर्फ इतना ही बोला , 'मैने तुझे क्या कहा था? मैं जा रहा हूँ...'

'अबे तेरे कौनसे पैसे लग रहे, पैसे तो मैं दे रहा हूँ ना, एक्सपीरियंसड है बेटा कोई दिक्कत नहीं होगी'

'मैं जा रहा हूँ' कहते कहते अनिकेत बाहर आ गया...पीछे पीछे शरद ..उसके पीछे दढ़ियल और सबसे पीछे खड़ूस बुढ़िया, शरद दढ़ियल को गालियाँ दे रहा था, भो@ड़ी के म@रचो@, जब तुझे पहले ही सब कंडीशन बताई थी मैने तो यहाँ क्या अपनी ## चु@@@ लाया था..? बुढ़िया पंजाबी में अपना अलग ही पुराण बांच रही थी, कुछेक शब्द अनिकेत के भी कानों में पड़े जिसका अभिप्राय ये था की अगर वो लोग ऐसे करेंगे तो उन पर भरोसा कौन करेगा.. अनिकेत ने उस ओर से अपनी नजरें व कान हटा लिए....

****

आज शरद और पुलकित का बीकानेर में एसएससी का एग्जाम था इसलिए  मेडिकल कॉलेज भी चले आए हैं, अनिकेत से मिलने, इसमे कुछ भी अजीब नहीं है, पर अजीब ये है कि अचानक ये लोग शरीफों वाली भाषा सीख गए हैं, अनिकेत अपने रैगिंग के किस्से सुनाते सुनाते अब धीरे धीरे 'शिकार' की खबरें भी सुना रहा है. रेडियो पर एफएम के गाने बजने लगे हैं.

#जयश्रीकृष्ण

अरुण

🗿🗿🗿🗿🗿 आई हेट यू ♠♠♠♠♠ .


वो रोज मुझे मिल जाया करती थी कहीं न कहीं, कभी तब जब माँ मुझे बाजार से कुछ समान लिवाने भिजवाती तो कभी स्कूल से आते जाते, मुझसे 4-5 साल बड़ी ही होगी,पर जाने क्यों मुझे वो बहुत आकर्षक लगा करती, बहुत भोली बड़ी प्यारी मासूम सी, तब भी जबकि वो हमेशा एक ही फ्रॉक पहने रहती , मैली कुचैली सी , घने काले बिखरे बाल, मुझे देख कर मुस्कुरा देती मेरा मन होता की उसके पास चला जाऊँ पूछूँ कि वो अपने घर क्यों नहीं जाती? नहाती क्यों नहीं? अच्छे कपड़े क्यों नहीं पहनती ? क्यों अकेले में घूमती है ? क्या उसके घरवाले गुस्सा नहीं होते ?  पर जब भी कोशिश सी करता तो कोई न कोई रोक देता,'अरे वो पगली है, काट लेगी, पत्थर मार देगी' . और वो ऐसा करती भी तो थी जब भी कोई उसे चिढ़ाता, उसके पीछे दौड़ पड़ती मारने को, पर मैं उसे चिढ़ाता थोड़े न हूँ जो मुझे मारेगी ..

एक रोज जब स्कूल से लौट रहा था तो देखा वो शिव पार्क के पास लंगड़ाती सी चली जा रही थी पैर पर जख्म हो रखे थे, चेहरे पर रोने क वजह से आंसुओं की गहरी स्याह लकीरें जमी थी,  एक मेज पर बैठ फिर से रोने लगी, रोक नहीं पाया में खुद को उसके पास चले जाने से, मुझे डबडबाई आंखों से देखा फिर हाथ के इशारे से अपने पास बुलाया , पूछा तुम्हारे पास खाना है ? मैंने कहा नहीं तो रुआंसी हो गई , उसे भूख लगी थी घर से दौड़ कर उसके लिए खाने को चार रोटी और अचार चुरा लाया चुपके से, वो टूट पड़ी खाने पर फटाफट रोटियां निगल गई बोली और नहीं है ? मैंने कहा नहीं इतनी ही थी बाद में और ला दूंगा. उसने प्यार से मेरे सर पर हाथ रख दिया, बोली..... भैया... सहसा उसकी आंखों के आंसुओं के कुछ कतरे मेरी आंखों में भी उतर आये थे.

माँ मुझसे बहुत खुश थी, राजा बेटा रोज टिफ़िन खत्म कर के लाता है, और अब तो ज्यादा खाना ले जाता है, मैं रोज उसे खिला आता, वो मुझसे बात करती बताती की उसका भी घर है ....बहुत दूर दूर........., माँ है....... पापा है .....बहुत सारी बहने हैं.....सब काम करते हैं...... पापा भी...., माँ भी....., बहने भी......., सब बहुत अच्छे हैं...... बस कभी कभी मारते थे, वो तो मैं थोड़ी भोली हूँ ना ........तो पापा डॉ के पास गए हैं दवाई लेने .......वो आएंगे .......आते ही होंगे .....आने वाले हैं.....वो बोलती चली जाती रोजाना...पर कभी कोई लेने नहीं आया ,उसके पैर पर चोट कैसे लगी पूछा तो बोली...वो टकला है ना ...मैं उसे मार दूंगी तुम देखना .... डबल रोटी उठाई थी.....मुझे मारा........तुम भी मारना....भैया...और मेरा मन सच में उस टकले का खून करने का हो जाता....पर वो बहुत बड़ा है...मेरे पापा जितना बड़ा......तो क्या हुआ...किसी दिन पत्थर से सर फोड़ दूंगा मैं भी.

एक दिन रोजाना की तरह पार्क में आया तो देखा सोनी, हाँ यही तो नाम बताया था उसने अपना, सोनी वहां कहीं नहीं थी, किसी ने बताया की सोसाइटी वालों ने भगा दिया उसे, उनके बच्चे डर जाते हैं उससे, बहुत दिन तक बहुत जगह ढूंढा आखिर बस स्टैंड के पास सोनी मिली...मुझे देख कर रोने लगी...मुझसे लिपट गई....कुछ लोग आए दौड़ कर...अरे रे बच्चे को मार देगी ये....... सहसा चिल्ला उठा मैं... हट जाओ.......दूर हो जाइए आप लोग....वो मेरी बहन है.

 "अच्छा तेरी बहन है तो तेरे बाप को बोल की घर ले के जाए इसको, कहाँ कहाँ मुं मारती फिरती है ...हुँह..'

'कल तेरी बहन को कुछ दारूखोर उठा कर ले गए थे, घर पर रखो इसे'

कई आवाजे आई भीड़ में से, पर फिर सब चले गए , पीछे बस रोते हुए सोनी और मैं बचे थे

*****

मुझे पापा से बहुत डर लगता है, वो बहुत गुस्सैल हैं, आज पक्का पापा को बोल दूंगा कि पापा मैं कभी और कुछ भी नहीं मांगूगा,पॉकेट मनी भी नहीं, कभी घूमने ले जाने को नहीं कहूँगा, आपकी सब बाते मानूँगा, खूब मन लगा कर पढूंगा कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा बस आप मेरी बहन को ले आओ , रोज सोचता हूँ की आज कह दूंगा पर कैसे कहूँ, उधर सोनी की तबियत भी खराब है जब देखो तब उल्टियां करती रहती है, उसे इलाज की जरूरत है,आखिर मां को बोल ही दिया....माँ मुझे मेरी बहन ला दो प्लीज....और रोने लगा....माँ ने चुप कराया... पापा के पास ले कर गई....बोली सुन लो अपने लाडले की बातें, रो रहा है, पता है क्यों, क्योंकि इसे इसकी बहन चाहिए, आप ला दो....पापा हंसने लगे...बोले '.हाँ बेटा ला देंगे बहुत जल्द ला देंगे, तुम रोओ मत, मेरा अच्छा बेटा......' मेरे पापा कितने अच्छे हैं ना , अब मेरी बहन यहां आ जाएगी फिर कोई चिंता नहीं हम खुशी खुशी साथ रहेंगे, खाना चुरा कर ले जाने की कोई जरूरत न रहेगी, कोई मेरी बहन को नहीं पिटेगा, कोई दारूबाज उसे हाथ नहीं लगाएगा, उसका इलाज अच्छे से हॉस्पिटल में होगा.

पर कितने दिन हो गए पापा उसे नहीं ले कर क्यों नहीं आते, सोनी की तबियत खराब होती जा रही है, उसका पेट भी खराब है फूलता जा रहा है,मैन  बोला था उसे भी कि पापा तुम्हे हमारे घर ले चलेंगे, वो कितना खुश हो गई थी , वैसे पापा ले जाएं या में एक ही तो बात है ना, पापा भी खुश ही होंगे मुझे शाबासी देंगे, राजा बेटा अच्छा किया जो अपनी बहन को ले आया, फिर हम सब खुशी से रहेंगे. डोरबेल बजाई पर माँ दरवाजा खोलते ही चौंक गई, ये कौन है और तुम इसके साथ क्या कर रहे हो? 'यही तो मेरी बहन है माँ, पापा इसे ही तो लाने वाले थे देखो मैं ले आया, इसकी तबियत खराब है इसका इलाज करवाना है माँ' पर ये क्या माँ ने मुझे भीतर खींच सोनी को जोर से धक्का दे दिया बाहर, कई तमाचे मारे मुझको, 'किस कुलच्छनी को उठा लाया है, घर गंगाजल से धोकर साफ करना पड़ेगा,  बेवकूफ, जाने किसका पाप उठाए घूम रही है,' सोनी बाहर खड़ी मुझे पिटता देख रही थी, उसकी आंखों में आँसू देख मैं भी रो पड़ा. शाम को पापा से शिकायत करूँगा सोचा था, पर मुझसे पहले मेरी ही शिकायत हो चुकी थी , पापा ने भी मारा मुझे, बोले आइंदा उस पागल के आसपास भी दिखे तो हड्डियाँ तोड़ दूंगा.

****

आज मौका मिला है सोनी से मिलने का, ना जाने वो कैसी होगी, कितने महीनों गुजर गए पापा ने रोज स्कूल आने जाने के लिए वैन लगवा दी है  उसी से आता जाता हूँ, खड़ूस है वो वैन वाला भी स्कूल पर ही उतारता है, आज मौका मिला तो निकल आया हूँ चुपके से , पर पार्क बस स्टैंड सब घूम लिया सोनी कहीं नहीं मिली, पता नहीं कहाँ चली गई, बेचारी उसकी तो तबियत भी खराब है , खाना भी कौन देता होगा, क्या पता वो टकले ने उसे फिर मारा हो, अगर मारा होगा तो इस बार मैं सर फोड़ दूंगा उसका चाहे कुछ भी हो जाए, उसी से पूछता हूँ जाकर.....हाँ.... लेक़िन ये कौन चला जा रहा...अरे ये तो वही है जो मुझे कह रहा था की अपनी बहन को घर ले जाओ, कहाँ कहाँ मुं मारती फिरती है..........अरे अंकल जी...सुनिए....सुनिए तो....हाँ आप...आपने मेरी बहन को कहीं देखा क्या ?

"कौन बहन? अच्छा तुम तो उस पगली के भाई हो न....अब आए हो बहन को ढूंढने, घर क्यों नहीं लेकर गए. वो वहाँ बस स्टैंड के पीछे की झाड़ियों में बच्चा जना था उसने, बच्चे को कुत्ते खा गए ,ले गए घसीट कर, छीन कर, वो भागती रही उसके पीछे फिर गिर गई और मर गई....खून बहुत बह गया था ना...."

'क्या....कहा....मर गई...? मुझसे बोला भी नहीं जा रहा...आँखों पर जोर नही चल रहा...अपने गाल भीगने से गीले गीले लग रहे हैं.'

अंकल बोले, 'अब क्यों रोते हो, दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं हैं, हमने उसका संस्कार करवा दिया था'

कुछ समझ नहीं आ रहा, किसे क्या कहूँ, लौट पड़ा उल्टे कदमों से, मन कर रहा है जोर से चिल्ला कर रो दूँ, कहूँ की "आई हेट यू माँ, आई हेट यू पापा"

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

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🍬🍷🔪💅 कुमार साहब का पान ♠♠♠♠♠ .


'अबे बस कर यार, अब कितना और चूसेगा ? देखो तो पूरी जान निकाल दी बेचारी की।' प्रदीप से मैंने कहा।

'ओहो तू मारवाड़ी है न पर सुन तू डफर भी है, सच्ची कुछ नहीं जानता, इस बात पर एक लुच्ची सी कहावत सुनाता तुझे ठेठ मारवाड़ी में, पर क्या करूँ एन्टी सोशल नहीं हो सकता, सब ऑनलाइन है क्या पता कब कौन कमबख्त जा के सब हमारी लुगाई को सब बोल दे' इतना कह कर शूकुल ने बीड़ी का छोटा सा अंगारा नीचे फेंक दिया।

हाँ जी यही वो जबरदस्त चीज थी जिसे शुक्ला जी लगातार चूसे जा रहे थे। जब तक बीड़ी नाख़ून से भी न पकड़ी जाए तब तक नीचे फेंकने की बात प्रदीप्त माइंड सोचता भी नहीं, करें भी क्या मजबूरी थी घनघोर मुफलिसी के दौर से गुजर रहे थे हम दोनों , मेरा तो चलो फिर भी जैसे तैसे फाकाकशी से गुजारा हो भी जाता था पर शुकुल को बीड़ी के बिना सवेरे प्रेशर भी नही आता था, यूँ की ये समझ लो की मशीन ही चोक हो जाती थी.

मरता क्या न करता मजबूरी में डॉ आलोक के यहाँ कम्पाउंडर हो गये . डॉ साहब बड़े सज्जन आदमी है , इंसान तो छोडो जानवर का भी घाव देखे तो रो दें झट से.....ऐसा हम सोचते थे, एक गोधे के घाव को बिटाडीन लगाने के चक्कर में पूरी पोस्ट पेल दी थी , पोस्ट पढ़ के पूरा डेढ़ गिलास आँसू बहाए थे हमने...... हम तो इधर इस चक्कर में आए थे क्योंकी डॉ साहब ने हमसे फिलिम में गाना गवाने का प्रॉमिस किया है , और शुकुल अपनी मशीन का चोक खुलवाने की फ़िराक में थे , लेकिन डॉ साहब को इसकी क्या परवाह सवेरे झाड़ू लगाने से लेकर दिनभर काम में लगाए रहते , अजीब अजीब नमूने आते और डॉ साहब घावों के चक्कर में हमसे उनका क्या क्या साफ करवाते और तो और रात को क्लीनिक में ही सोने के आदेश थे, अब हम तो ठहरे ढीठ मारवाड़ी , थोड़ा सख्त जान है मजबूरी को झेल रहे थे पर शुकुल जल्दी ही उकता गए. बोले यार ये सब हमसे न होगा, कल रात सपने में हमारी अभियांत्रिकी वाली डिग्री ऐसी ऐसी गालियाँ देकर गई कि का बताएं. हम तो जा रहे, हमने बोला की यार कल डॉ साहब तुम्हारी कोलोनोस्कोपी करने वाले हैं न, चेकअप तो करवा लेते और मैं अकेला यहां क्या करूँगा अकेले तो बोर हो जाऊंगा, ज्यादा ही है तो शाम को क्लिनिक बन्द होने पर हम दोनों ही निकल लेंगे. ई. साहब को भी बात जम गई, शाम को क्लीनिक बन्द होते ही हम दोनों निकल लिए, जवाहर चौराहे पे जब हम दोनों बनारसी पान चाप रहे थे, तो देखा अपने कुमार साहब ड्यूटी से फ्री होकर अधा जेब में अटकाए क्वार्टर पर जा रहे थे, हमको देखते ही खुश हो गए, बोले ,'का रे इधर किधर? कोनो काम धाम पकड़े की अभी भी उ मटरगश्ती चालू है ?'

हम बोले, ' साहब आप बचपन से ही जहीन थे , आप जैसा राजयोग तो हमारे नसीब में कहाँ, हाँ हम बहुते बढ़िया कम्पाउंडर बन गए हैं, आप पान खाइएगा ?'
साहब सम्बोधन सुन कर कुमार साहब इतराए, अपनी बायीं कॉलर ठीक की, पान की मीठी खुशबु से मुँह में भर आई लार निगली, फिर आँखे तरेरते हुए बोले, 'अमा छोड़ो, ये टुच्चा पान वान नहीं खाता मैं, मैदे पर जोर पड़ता है '

शुकुल करीब आए, इसरार करते हुए कहा, ' अजी आप तो तक्कलुफ करने लगे, हमारे पान से मैदा मजबूत हो जाएगा कसम से,मैं तो केता हूँ पान खा  लो आप' कहते हुए पान कुमार साहब के मुंह में खोंस दिया. पनियाए मुँह को जैसे मुँह मांगी मुराद मिल गई , कुछ मिनट तक भाव विभोर होकर पान चबाने के बाद ठुड्डी पर आई लाली साफ करते हुए कुमार बोले, ' वैसे शुकुल आदमी तुम बुरे नहीं , सच बताएं तो हम बचपन में हमारा बलूचिस्तान लूटने के बाद तुमसे खार खाए बैठे थे , पर आज दिल जीत लिया तुमने , बेहतरीन इंसान हो तुम और उससे भी बेहतरीन तुम्हारा ये पान, यूँ की मजा आ गया.'

शुकुल मुस्कुराए, बोले , 'ये तो आप साहब लोगों की ज़र्रानवाज़ी है, वरना हम किस लायक हैं हुजूर .'

'अब से तुम दोनों हमारे खास पंटर, चलो हम बताते हैं कि ऐश किसे कहते हैं' कह कर उन्होंने शुकुल के कंधे पर हाथ रखा और साथ ले चले, और हम दोनों के पीछे पीछे , क्वार्टर में हमे बिठा कर कुमार साहब बोले मैं अभी आया. उनके जाते ही शुकुल मेरी और आँख मार कर बोले,' आज बिना लिपिस्टिक लगाए इसका सारा डिस्ट्रिक्ट हिलने वाला है, हमने इसके पान में जुलाब की गोली चेपी है'😂😂😂😜

थोड़ी देर बाद जब कुमार साहब आए तो बोले 'अरे तुम लोगों ने ग्लास नहीं लगाए।'

'हम गरीब हैं साहब, अमीरों वाले तो शौंक ही नहीं पाले कभी, दारू नहीं पीते हम लोग', मैंने कहा।

'अबे तुम लोग क्या जानो जिनगी कैसे जी जाती है, मजा इसे कहते है बेवकूफो' कहते कहते कुमार साहब सटासट आधा अधा गटक गए।

शुकुल बोले,' हुजूर पानी शौंक नहीं फरमाते ? मेरा मतलब पानी नहीं मिलाइएगा ?'

'अबे छिलकों, तुम क्या जानो जिनगी कैसे जी जाती है, पानी तुम जैसे छुछुंदर लोग मिलाते हैं, हम सीधा जन्नत में पहुँचते हैं इससे, टाइम नहीं है अपने पास, फटाफट एक्शन चाहिए अपने को.....' वो बोलते जा रहे थे।

'पर हुजूर, अपनी फटाफट को ब्रेक लगाएं थोड़ा सा, आप लीक हो रहे हो...' कहते हुए मैंने उनकी गीली जंघा की और इशारा किया ।

हुजूर सकपकाए बोले , एं य्ये क् क्  क्य्या हो रहा है...' उनकी जबान लड़खड़ाने लगी थी और उठ कर भागने की कोशिश की पर फटाफट वाले नशे में धड़ाम से नीचे गिर कर बेहोश हो गए।

Er शुकुल ने उन्हें उठाया, नीचे गिरने से माथे पर चोट लगी थी, ढिमड़ा बन गया था. हमसे बोले अरुणवा हाथ लगाओ तनिक ऋषि कुमार को इलाज की सख्त जरूरत है. हमने भी फटाफट सहारा दिया और कुमार साहब को क्लिनिक ले आए , बेहोशी में भी कुमार साहब लगातार लीक होते जा रहे थे ऊपर से माथे पर चोट, ओटी में ला कर बेड पर उल्टा पटक दिया थोड़ी ड्रेसिंग शुकुल ने की थोड़ी हमने , सुबह के 4 बज रहे थे शुकुल बोले यार इसे देख कर तो उल्टी आ रही , मैं हाथ मुंह धो कर फ्रेश होकर आता हूँ ' मैंने कहा ठीक है तभी डोरबेल बजी, मैंने दरवाजा खोला तो सामने डॉ साहब खड़े थे. बिना कुछ बोले वो सीधे भीतर चले आए, अंदर मामला बदबूदार हो रखा था, मुझे डांटते हुए बोले, 'ये क्या हाल बना रखा है क्लीनिक का'

'जी..... वो......उसने......जुलाब.......लीक हो गया.....' हड़बड़ाते हुए मैंने अस्फुट से शब्दों में कहते हुए ओटी की और संकेत किया, डॉ साहब बोले,' यार ये तो शुकुल की हालत बहुत खराब है, तुम इधर आओ, अभी के अभी कोलोनोस्कोपी करते हैं'

'जी....पर...वो ....शुकुल तो.....'

'ये क्या जी जी लगा रखा है.....शुकुल का मुँह ढक दो, और इसकी पेंट नीचे खिसकाओ, उसे शर्म आएगी.......'

'ज ज जी...पर क्यूँ...'

'मारवाड़ी हो न, अक्ल तो होती नहीं .....अरे कैमरा डालना है ना'

'हैं...!!!?'

'अब तुम मुंह मत खोलो, तुम्हारे मुँह में नहीं उसके वहाँ अंदर कैमरा डालना है तभी तो बीमारी पकड़ में आएगी'

मैं अवाक् था, डॉ. साहब समझ गए की इससे कुछ न होगा, झट से एक तौलिया से मरीज का सर ढंक कर फट से एक पाइप जैसे दिखने वाले कैमरा के मुँह पर थोड़ी जेली डाली और मुझे कहा की इसके हाथ पकड़ लो , यंत्रवत आज्ञा पालन करते हुए मैंने कुमार साहब को काबू में कर लिया ,उधर डॉ साहब अपनी कार्यवाही को अंजाम देने में जुट चुके थे, थोड़ी ही देर में 'भीतर' का वीभत्स दृश्य कम्प्यूटर की स्क्रीन पर जीवन्त हो उठा जिसे देख देख कर डॉ. साहब कुछ एनालाइज कर रहे थे....तभी बाथरूम से निकल कर शुकुल डॉ. साहब के सामने आ खड़े हुए......अब अवाक् होने की बारी डॉ साहब की थी....कैमरा हाथों से छूट गया, हड़बड़ा गए, जैसे जीवित इंसान नहीं किसी भूत को देख लिया हो.....

*****

कुमार साहब हमारे बहुत आभारी हैं , क्योंकि हमने उन पर संकट आने पर भी उनका साथ न छोड़ा, और डॉ. साहब की तरफ से हम दोनों को एक निश्चित वेतन हर माह दिया जा रहा है, दरअसल शुकुल ने बंडल मारा था कि उनकी उस सज्जनता को उन्होंने अपने कैमरा में कैद कर लिया है, जिसे सार्वजनिक करने पर ये पुलिसिया न जाने क्या क्या करेगा.

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

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🌹🌹🌹🌹🌹 अनुपम प्रेम ♠♠♠♠♠


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एक सुबह अनुप मेरे पास आया, बिखरे बाल , गालों पर आँसुओ के जमने से बनी रेखाएँ, सूज कर लाल हुई आँखे, कुछ न बोला आकर चुपचाप बैठ गया।

इतना क्लांत उसे इससे पहले न देखा था, पूछा हमने कि,'प्यारे ये क्या हाल बना रखा है, कुछ लेते क्यों नहीं?' इतना सुनना था कि अनुप की आँखों से नोबिता के समान दोनों और दो झरने झर झर बहने लगे, हम भी बह ही जाते अगर अनुप को ही कस के पकड़ न लिया होता पर सहम गए कि यार ऐसा तो कुछ बोला भी नहीं तो फिर ये हो का रिया है। झट से दो बाल्टी उसके दोनों और रखी, रुमाल के काम करने का सवाल ही पैदा नहीं होता था इसलिए बैडशीट से उसका चेहरा पोंछा, फिर दोबारा प्यार से पूछा ,'प्यारे हुआ क्या है ?' इतना सुनते ही अनुप ने मुँह उठाया और बुक्का फाड़ के शुरू हो गया, बहुत करुण दृश्य था पर मारवाड़ी लोग पकाना जानते है पकना नहीं इसलिए बेडशीट उसके खुले मुँह में ठूस दी, और कहा , 'अबे ओये, प्यार से पूछ रहे तो बताते काहे नहीं हो, वो डंडा देख लो, अब अगर एक भी आँसू गिरा तो खोपड़ी फोड़ देंगे, सवेरे सवेरे माथा खराब कर रखा है। अब बोलो ढंग से बताते हो कि सेवा करवाओगे पहले ?' अनूप के आँसू झरना झट से बंद हो गया जैसे किसी ने मोटर बन्द कर दी हो पीछे से, बेडशीट का आख़िरी कतरा मुँह से बाहर आते ही उसने कातर नज़रों से मुझे देखा और मैंने गुस्से के साथ डंडे को, थूक निगल कर अनूप तोते की तरह शुरू हो गया, 'का बताई अरुण भैया, ई दुनिया भोत जालिम है, यूँ की ये मेरे जैसे अच्छे लोगों के लिए तो बनी ही नहीं है।'

मैंने उसे टोका,' अबे सुन, ये 'अच्छे लोगों वाला' डायलॉग नहीं बोलने का, साला पहले भी ये चिपका के पोपट बना गया था हमको ',फिर दो गहरे सांस छोड़ें बी पॉज़िटिव यार बी पॉजिटिव मन्त्र उच्चारा और अनूप को कण्टीन्यू करने को कहा। वो शुरू हो गया,' भैया आपको पता है आज बीस साल के हो रहे हैं हम,कोनो गर्लफ्रैंड नहीं, इस्कूल में भी लड़कियाँ हमसे ऐसे दूर रहती थी जैसे हम साले टीबी के मरीज है, दिल दुखता था हमारा पर सह लिए हम , की कभी तो कोई कन्या होगी जो हमसे मुहब्बत का इजहार करेगी, साला घण्टा नहीं किया किसी ने भी , फिर एक दिन गौरव बोला कि  'आजकल फेसबुक का जमाना है, तुम साले उस माल से उम्मीद लगाए रहते हो जिसकी बिल्टी किसी और ने पहले ही कटवा रखी होती है', तो हमने भी प्रोफाइल बना लिया, पर क्या करें इधर देखा तो इधर भी वही हाल है , इतनी रोमांटिक शायरी चेपते है पोस्टवा में, की कोई पढ़ ले तो करेजा मुँह को आ जाए, पर कोई कम्बख्त आना तो दूर देखती तक नहीं. जैसे हमने पोस्ट पर लेंडमाइन्स बिछा रखी है 😢'

इतना बोल कर वो मेरा मुंह ताकने लगा, हम बोले ' हो गया तुम्हारा? अच्छा तो फिर सुनो अब आराम से , ' देखो प्यारे प्यासे को कुएँ के पास चल के जाना पड़ता है, कुआँ कभी चल के नहीं आता'

'मतलब'

'मतलब ई बिरादर, की पहले प्रोफाइल की प्राइवेसी हटाओ लड़की लोगन को ऐड करो और उसके बाद भी जिसे तुम पसंद करते हो उसके पास तुम्हे खुद जाना पड़ेगा.'

'पर अरुण भाई हमें तो सब की सब पसंद है'

'बस यही गधापन कंट्रोल करना है प्यारे, अबे हर किसी से हो जाए वो दीवानापन नहीं कमीनापन होता है.'

'अच्छा और आप जो हर लड़की के कमेन्ट पर लार चुआते हो उसका क्या...?"

'अबे वो तो हठयोग है हमारा, और वैसे भी सब कन्याओं को एक ही नजर से देखते हैं हम 😉 सब को पता रहता है की मजे ले रए फोकट में बकैती कर के '

'तो मैं भी वही करूँ ?'

'वैसे ऐसी बातें बच्चों को 'शोभा' नहीं देती पर ...तुम कर सकते हो तो जरूर करो, अगर नहीं तो वो कन्या चुनो जिसे देख के जिगर का तानपुरा अपने आप बज उठे'

'अच्छा, फिर..'

'फिर क्या, बतियाओ उससे , हँसी और फंसी का डायलॉग नही सुने हो ? खुश रखो उसे , कुछ भी मांगना नहीं उससे, वो खुद बा खुद दे देगी'

'क्या...?'

'अबे ठरकशिरोमणि , उसके नम्बर की बात कर रहा हूँ मैं '

'अच्छा अगर कोई बात ही न करे तो....?'

'ओहो दुःखी आत्मा , तो कौनसा भूचाल आ जाएगा, वो नहीं तो उसकी कोई और बहन करेगी...टीराइ टीराइ अगेन सुने हो की नहीं  :), और सुनो चौखटा जरूर सुधार लो पहले, आजकल जो दिखता है वही बिकता है, पुराना डायलॉग है पर मौके की नजाकत देख के फिर चिपका रहे हैं कि 'थोबड़ा तबेले जैसा बनाए रखोगे तो गोबर ही मिलेगा' थोड़ा पिच्चर विच्चर देख के हीरोगिरी सीखो मियाँ'

'ओके.....' इतने आत्मविश्वास से अनूप ने कहा की लगा कि बात समझ गया पठ्ठा, तुरन्त उठा और लपक के निकल गया.

****

विवेक मिश्र की अंग्रेजी क्लास चल रेई, इं. शुकुल बाबू आज के आज चौथी बार पिटे हैं अपनी भेरी स्टाइलिश अंग्रेजी उवाचने के चक्कर में, पर इन्हें मार से कोई दिक्कत नहीं , ढीठपन का गुण यूँ भी इन्हीं से बाकी दुनिया को प्रसाद रूप में वितरित हुआ है , पिटने के बाद वापस दरी पर बैठते बैठते ही खुन्नस में अजीत के मुक्का धर देने से बाज़ नही आते , हमारे पास भी नहीं बैठे आज तो ....जाकर अफ़जलवा से गलबहियाँ डाल रहे हैं, सिचुएशन के हिसाब से ' दोस्त दोस्त ना रहा' गाने का मन हुआ था पर सोचा पहले 'उदास' बोला था अब ना जाने किस मरियल की उपमा चेप दे, इसलिए चुप हो रहे। अचानक अजीत खड़ा हुआ.....शायद कुछ पूछना होगा।

'विमी गुरु, एक ठो बात बताइए....'

गुरु जी ने धर देई कंटाप फट से, बोले 'इस्पीक इन इंग्लिश ओनली..'

कान सहलाते अजीत बोला कि, 'गुरु अंग्रेजी नहीं आती एही लाने तो यहाँ आए रये, आप तो जे बताओ बच्ची की पोट्टी  को इंग्लिश में कैसन साफ़ करें'

'व्हाट रिडिक्यूल्स, आई एम् हियर टू टीच यू इंग्लिश लैंगुएज, नॉट टू टेल अबाउट द् प्रॉसेस हाऊ टू क्लीन द शिट ' गुस्से में तमतमाए विमी गुरु बोले।

हमने ज़बरन अजीत का हाथ पकड़ के बैठाय लियो, 'अबे देख नहीं रए गुरु गुस्सा हो रो, अब जे एक कंटाप और धर देइहें तो का इज्जत रह जाई ससुर।'

'बात तो तुम भी ठीक ई के रे, पन वो पोट्टी...?'

'अबे वो शुकुल से सीख के साफ कर लेइयो, वो ख़ुशी ख़ुशी सीखा देगो '

'घण्टा वो देखो शुकुल तो अफ़जलवा की गांव में घुसरो, बात करन की तो फुरसत ना मिलरी'

'हाँ दया मेरो मतलब, कुछ तो गड़बड़ है अजीत'

क्लास से छूटे तो शुकुल जी अफ़जलवा को अपनी खटारा के इकलौते डंडे पे बैठाए झट से निकल लिए, अजीत और हम भी फट से अपनी फटफटी दौड़ाये , पूछे, 'शुकुल प्यारे बोलते थे की मौसम नहीं है जो बदल जाएंगे आज साले इस फ़टे ट्यूब के लिए दोस्तों को छोड़ आए।'

शुकुल अपना गुस्सा पैडल पर चलाते चलाते ही बोले,' अबे तुम दोनों को कुछ ना पता, उ जो अफ़जलवा की बहिन सलमा है ना, (सलमा का नाम एक्स्ट्रा मक्खन मार के बोले थे)  सबेरे से गायब हैं, उसी को ढूंढने जा रहे, ना जाने कहाँ होगी बेचारी ' शुकुल का एक आंसू तुपुक कर के अफ़जलवा के टकले पर गिरा।

'ओह अच्छा अच्छा, मिल जाए तो बताना हमें भी', कहने के साथ हम फटफटी दौड़ा के निकल गए, अजीत बोला , शुकुल तो अच्छा आदमी है यार पर तुम भी टुच्चे निकले बे, अफ़जलवा की मदद हम लोग भी करते, रुके काहे नहीं ?

'अबे, इसलिए क्योंकि हम जानते हैं की सलमा कहाँ है.."

'कहाँ?'

'वो ससुर अनुपवा के साथ बसंत मेंगो बार में कुल्फी चूस रही है बे.......'

©अरुण

#जयश्रीकृष्ण

💏💏💏💏💏 उधार ♠♠♠♠♠


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दोपहर के 3 बजे हैं, और गर्मी के बाकी दिनों की तरह आज भी बहुत गर्मी है। तपन को देखते हुए भीड़ कम नही है बाजार में, गांधी चौक के पास की एक दुकान पर लगे टिन शेड की छाया में आसरा तो मिल गया है, पर चैन नहीं, न न वजह गर्मी बिल्कुल नहीं है। किताबों की दुकानों की कतार लगी है पास ही, आती जाती पदाति, स्कूटी सवार और कार धारी भिन्न भिन्न प्रजाति की कन्याएँ ताड़ रहा हूँ , जी हाँ जी हाँ बिल्कुल, ओनली कन्याओं को, कसम लगे जो किसी लड़के को देखा हो तो, सब अपने काम मे लगे हैं, सामने पान वाला अपनी गर्मी पान के पत्तो पर दना दन कत्था रगड़ के निकाल रहा है, मुँह में कुछ ठूँस भी रखा है, जिसकी तस्दीक सामान्य से थोड़ा अधिक उठा उसका नीचे का होंठ कर रहा है, माथे पर पसीने की कुछ बूंदे चमक उठी है , पसीना पोंछते वक़्त एक उपेक्षित सी नज़र उसने मुझ पर डाली, मुँह बिचकाया जो मुँह में है वो बिलोया फिर एक सधी हुई पिचकारी दुकान के बाहर की तरफ दे मारी, पहले से आधा लाल हुआ खम्बा और लाल नजर आने लगा। ओहो तो ये भी पान पराग के शौकीन हैं ? एक छोटी सी मुस्कान ने मेरे चेहरे पर आने की गुस्ताखी की, पान वाले ने भौंहे ऊपर हिला कर कुछ प्रश्नवाचक मुद्रा में मुझ पर आक्रामक दृष्टिपात किया तो मैंने झट से इनकार की मुद्रा में सर हिला दिया। पता नही इस तरह भौंहे नचाकर ये बाबू मोशाय मुस्कान की वजह पूछ रहे थे या मेरे वहाँ खड़े होने का प्रयोजन,  खैर ! नजरें फिर से किताबो की दुकानों पर किताबे टटोलती कन्याओं पर है , दूर हूँ आवाज़ नहीं सुनाई पड़ रही , लेट मी इमेजिन वट दे आर टॉकिंग अबाउट , अरे वा लगता है गर्मी से इंग्लिश दिमाग मे चढ़ गई है मेरे 😜  लेट कम टू लड़कियों की बातें, अरे अरे अब वो जो मर्जी बात करें मुझे क्या, आपको बड़ा चस्का है लड़कियों की बातें सुनने का हाँ, मैं तो उधर देखता हूँ तो बेचैनी और बढ़ जाती है, याद आ रही है ओ तेरी याद आ रही है, कब से इंतज़ार कर रहा हूँ जाने मेरे वाली कब आएगी, जानेमन लिख के रख लो कोई पूछे तो बता देना , न भी पूछे तो भी याद रखना लाइफ टाइम काम आने वाली बात है, दुनिया का सबसे मुश्किल काम 'इंतज़ार' है डेढ़ घण्टे से खड़ा हूँ। दिन , समय , जगह सब उसी ने तय किया पर ......।

कर भी क्या सकते हैं जैसे घर के बुजुर्ग सब पर गुस्सा हो सकते हैं उन पर गुस्सा करने का हक किसी को नहीं वैसे ही छोरियाँ कुछ भी करे उनको कुछ बोल नही सकते क्या समझे,उनका बस एक आँसू और बाज़ी पलटनी तय मानो, कमबख्त फ़िल्म वालों ने ज्यादातर जितने भी गाने बनाए हैं सबमे लड़की इंतज़ार कर रही होती है, आजा वे माही तेरा रस्ता उडीक दियाँ, हुँह कब से उडीक तो मैं कर रहा हूँ, मैं पिक्चर बनाऊंगा तो सारे स्थापित कांसेप्ट चेंज करूँगा हाँ नहीं तो। आजा रे छोरी तेरा रस्ता उडीक दां हाँ, हाँ ये वाला सही है, खीखीखीखी ।

अचानक आँखे बंद कर दी किसी ने पीछे से, उफ्फ ये छोरियों की नौटंकी, देखो तो आँखे बंद तो ऐसे की है जैसे मैं पहचान ही नहीं पाउँगा की कौन हो, अरे मेरे प्यारे से,  खुबसूरत, कुची पुची , गुगली बूगली मैं ही नहीं बच्चा बच्चा समझ गया है कि तुम ही हो, बस तुम ही हो, ये नोटंकी, बस तुम ही हो। बन्द आँखों पर हाथों से टटोल कर  अनु... अश्मी...श्वेता... रूही....शीतल....परी.... आरोही....एक एक कर नाम पुकारने लगा अचानक मुक्का मार दिया पीछे से उसने।

बोली ," हाँ हाँ इन्ही सब का इंतज़ार हो रहा था, मैं ही पागल हूँ जो भाग के चली आई हूँ तुमसे मिलने के लिए....."

मन किया की कहूँ, भगवान से डर छोरी भगवान से डर, पर खिसियाई हंसी ला कर जीभ को थोड़ा दांतो तले दबाया, दोनों कानों को पकड़ते हुए, सॉरी सॉरी सॉरी का उद्घोष करते हुए दांत चियारते हुए कहा, 'अरे मैं तो बस मजाक कर रहा यार, अच्छे बच्चे गुच्छा नहीं करते, कान पकड़ लिए ना, माफ कर दो न प्लीज प्लीज प्लीज प्लीज प्लीज'

लड़की हँसी समझो पक्का फँसी..... वो भी मुस्कुरा दी। मैंने नजर घुमाई पानवाला मुँह में नया माल ठूस कर अपनी व्यस्त चर्या से समय निकाल हम दोनों को निहारने का उपक्रम कर रहा है। एक उपेक्षित सी नजर उस पर डाली, हमारे नयन आपस मे टकराते ही उसके चक्षु अपूर्व दिव्य भाव से हृदय की प्रसन्नता की उद्घोषणा करते विस्तारित होते चले गए, उसकी तोंद थिरकी जैसे हल्का हंसी का भूकंप आया हो बस उसी के लिए, इस थिरकन से उसका पूरा शरीर कुछ सेकण्ड्स तक ऊपर नीचे होता रहा, उसने फिर से भौंहे ऊपर की और नचाकर मुझे घूरा, उसे उसके सभी अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर प्राप्त हो चुका था। अब मेरी बारी थी, गर्दन को उपेक्षा से झटक फोकस अपने वाली पर किया। उसके साथ उसकी स्कूटी पर सवार हो लिए। कंधे के पास से पकड़ रखा है हाथों को, गर्दन आगे ले जाकर उसके कानों के पास मुँह ले जाकर कहता हूँ, ढुर्रर्रर ढुर्रर्रर ढुर्रर्रर ......बिल्कुल वैसे जैसे छोटे बच्चे अपने मुँह से आवाज निकालते हुए अपनी काल्पनिक 'पीं' चलाते हुए निकाला करते हैं, वो हंस दी फिर से। बोली,"ये क्या है, सीधे हो कर बैठो न।"

'बाजार है, इसलिए शराफत का तकाजा है, वरना तो चिपक के बैठने का मन था हमरा, क्या समझी'

"ए हेहे, बड़े आए" वो मुँह बना कर बनावटी हँसी हंसी और स्कूटी आगे बढ़ा दी, सिर्फ चार कदम जितनी ही दूरी पर बसंत मेंगो बार पर रोक कर मुझे उतरने को कहा।

कमाल है इत्ती सी दूर ले जाने के लिए स्कूटी पर बिठाया था ? पर आप इस 'मैंगो बार"  के नाम से धोखा मत खाना, ये सोचने की गलती बिल्कुल मत करना कि हम किसी आम रस या मैंगो शेक बेचने वाले की रेहड़ी पर आए हैं, लड़की कोई भी हो कहीं की भी हो कैसी भी हो ऐसे मामलों में घोर अनुदारवादी हो जाया करती हैं, बोले तो मारवाड़ी की तरह, नो रिक्स लेने का। अच्छा खासा रेस्टोरेंट है ये मैंगो बार भी, बहुमंजिला इमारत, वर्दी वाला साफ सुथरा स्टाफ, भीतर बैठने की शानदार व्यवस्था है, प्राइवेट चैम्बर भी बने हैं, पर सब के सब बुक्ड नजर आते हैं, नीचे भीड़ काफी है, दूसरी मंजिल पर आ गए हम, 8-10 टेबल लगे हैं यहाँ भी, सरसरी नजर दौड़ाई , सब भरे हुए नहीं है 3-4 फैमिलीज बैठी है, एक टेबल पर 3 लड़के बैठे है, एक कॉर्नर की टेबल पर 2 टीन कन्याएँ बैठी हैं उनके ग्लैमर से खिंच कर हम और हमारी 'बलिए' उन्हीं के बगल के एक टेबल पर तशरीफ़ रख चुके हैं। न जाने म्युज़िक सिस्टम कहाँ लगा है पर हल्के हल्के संगीत की ध्वनि सुनाई दे रही, शायद ....शायद क्या पक्का कोई अंग्रेजी गाना है, सम्भ्रांत दिखाने का ये भी कोई चोंचला होगा (शायद), सुनने कम समझने की थोड़ी सी कोशिश हुई मेरी तरफ से पर कुछ ही पल में हार मान कर ध्यान वापस बलिए पर कंसन्ट्रेट कर लिया। वो टेबल पर बैठते ही सीधे पॉइंट पर आ गई, व्हाट ए स्ट्रेट गर्ल मैन, सीधा मेन्यू कार्ड उठा लिया 😂😂😂 । सोचा एक नज़र मैं भी डाल के देखूँ क्या क्या मिलता है इधर, 25-30 तरह के सैंडविच के नाम लिखे थे, फिर कुछ चायनीज, इटेलियन के सैक्शन बने हैं, नाम समझ ही नहीं आए तो दाम की तरफ देखा, थूक निगला, अबे ऐसा क्या डालोगे इसमे, मुझे तो दाम पढ़ कर शर्म आने लगी थी, तुमको लिखते हुए भी नहीं आई। मेन्यू कार्ड पटक दिया, देखा सब फैमिलीज वाले अपने में मस्त हैं लड़को ने नींबू पानी विद पनीर पकौड़ा आर्डर किया है, 2 पकौड़ो को 6 टुकड़ों में काट कर प्राउडली खाया जा रहा है, कोई इधर उधर नही देख रहा, जैसे बस फटाफट खा पीकर निकल जाना चाह रहे, लड़कियों ने रंग बिरंगी आइसक्रीम ले रखी है, एक लड़की उस पर रखी चैरी को ही आधे घण्टे से चूस रही है। 'तेरी फीलिंग मैं समझ रहा हूँ छोटी..."।

पता ही नहीं लगा पास में वेटर जैसा दिखने वाला बंदा कब आ के खड़ा हुआ, हमारी टेबल का आर्डर सर्व करने आया था। पर आर्डर दिया कब, कुछ पता न लगा। मेरी ओर उसने देखा तक नहीं, ' दिस इज योर चायनीज प्लेटर, योर पनीर मन्चूरियन ड्राई, बेबी कॉर्न चिल्ली ड्राई, स्पेनिश मशरूम रॉल, योर चीज़ चायना टाउन,.....'

'अबे इत्ता कौन खाएगा" वेटर प्लेट्स रख ही रहा था कि मैंने बोला।

"मैं खाऊँगी, एनी प्रॉब्लम" उसने थोड़े गुस्से से मेरी तरफ देखा।

यार पता नहीं मिलने के लिए बुलाया है या पुराना कोई बदला लेने, वेटर फिर शुरू हो गया,"योर मिजो सूप मैम, एन दिस वन इज योर कैपेचीनो, ....एनीथिंग एल्स मैम ? एनीथिंग इन स्वीट डिश ओर इन आइसक्रीम ?"

"नो नो, इनफ फ़ॉर नाउ,आई विल कॉल यू इफ नीडेड..."

'फाइन थैंक्स मैम'

वो चला गया, पूरा टेबल सजा पड़ा है, पर इत्ता सच मे खाएगा कौन, कितने जन्म से भूखी हो यार। उसकी और देखा वो एक प्लेट उठा कर शुरू भी हो चुकी, मुझसे नजर मिली तो ठूसते ठूसते ही बोली, "फुम फी फो फ़ा..." जानता हूँ सीधा समझ आना थोड़ा मुश्किल है कि उसने क्या कहा, पर एक्सप्रेशन से आईडिया लगा लिया कि ये मुझे भी खाने को कह रही है (तुम भी लो ना),एक हाथ का पंजा दिखाया दूसरा पेट पर लगाया, बोला पेट गड़बड़ है यार तुम खाओ। फिर सोचा ये इतना खाती है तो वो जाता कहाँ है? इल्ली है इल्ली आई मीन घुन्न है घुन्न जितना मर्जी आटा खा ले रहेगी सुकड़ी की सुकड़ी ही। टेबल का कोई कोना खाली नहीं था, पर वो मुँह का माल निगल कर बोली तुम अपने लिए पाइन एप्पल जूस आर्डर कर लो, मैं कुछ न बोला फिर से मेन्यू कार्ड उठा कर देखने लगा, चायनीज प्लेटर= 350/- ?? हाए तेरा सत्यानाश जाए, पनीर मन्चूरियन ड्राई = 575/- ओ तेरा बेड़ा गर्क, बेबी कॉर्न चिल्ली ड्राई = 660/- ओ तेरी भेण...., स्पेनिश मशरूम रॉल= 256/- 😣😣😣  चीज़ चायना टाउन = √£¢¥ कमबख्त मारो ने खुद का दाम साथ मे जोड़ के लिख रखा था। बलिए खाने में फुल ऑन कंसन्ट्रेट किए हुए थी, धीरे से जेब से पर्स निकाल कर चैक किया , चिल्लर समेत 146/- रुपए थे। हाए ओ रब्बा हुण की होसें।

कई फिल्मों में देखा है पैसे न देने पर होटल वाले बर्तन धुलवाया करते हैं, इनका बर्तन धोने का डिपार्टमेंट किधर है पता नही, और क्या पता ये बर्तन धुलवाएँगे या मुझे ही धोएंगे। मारे गए गुलफ़ाम अजी हाँ मारे गए गुलफ़ाम, इसने तो बैठे बैठे 2500-3000 की माता धोक दी, अब भरेगा कौन? इसी को बोल देता हूँ कि तू ही भर तूने ही खाया है, पर तब इज्जत का फालूदा हो जाएगा, ऐसा कौन करता है यार, इससे तो अच्छा चाँद तारे तुड़वा लेती, सहम गया हूँ, डरते डरते फिर नजर घुमाई किशोरियाँ अभी भी आइसक्रीम टूँग रही थी, अब क्या इज्जत रह जाएगी मेरी इनके सामने 😢, फैमिली वाले वैसे ही गुलछर्रे उड़ा रहे, लड़के उठ कर चल दिए है, उनका नींबू पानी सीक्रेट अब रिवील हो चुका है, समझदार थे बेइज्जती के पिज़्ज़ा से इज्जत का नींबू पानी भला। एक किशोरी ने आइसक्रीम खाते खाते मेरी और देखा, मुस्कुराई, देखना ये खूब ज़ोर से हंसेगी जब ये वर्दीधारी वेटर मुझे उठा उठा के पटकेंगे। बलिए का ठूसना अनवरत जारी है, ये जरूर बदहज़मी से मरेगी कभी न कभी, लिख के रख लो। पर ये तो जब मरेगी तब मरेगी मेरा तो बेमौत मरना तय समझो, उस मनहूस घड़ी को कोस रहा हूँ जब इससे मिलने का विचार मन में आया था। किसी ने म्यूजिक चेंज कर दिया, हिंदी गाना चल रहा है, धीमे धीमे,

" ज़िंदा रहने के लिए, तेरी कसम,
इक मुलाकात जरूरी है सनम"

गलत है जी, गाना ही गलत है, बिल्कुल गलत है, एक्चुअली इसे तो यूँ होना चाहिए

"ज़िंदा मरने के लिए, तेरी कसम,
इक मुलाकात ही काफ़ी है सनम।"😢😢😢

खाना हो चुका उसका, अब मेरा जनाज़ा निकलेगा 😢, डर लग रहा है बुहु बुहु, पर रोने से भी क्या फायदा, वो खड़ूस मैनेजर आँसू देख के नही पैसे ले के मानेगा, जो मुझ गरीब के पास है ही नहीं। बलिए हाथ धो रही है, इसके बाद मेरे धुलने की कार्यवाही होने वाली है 😢 भगवान बचा लो, 11/- रुपए का प्रसाद चढ़ाऊँगा, लेकिन यहाँ कौनसी महाभारत चल रही जो भगवान श्री कृष्ण द्रौपदी की तरह मेरी इज्जत बचाने आ जाएंगे, मेरी ही गलती है, खुद ओखली में सर दिया है अब धमीड़ तो पड़ेंगे ही। पीछे पीछे हो लेता हूँ क्या पता ये खुद ही काउंटर पर पे कर दे, पे करते ही बोल दूंगा की यार तुमने क्यों पे किया मैं दे देता न ऐसा थोड़े न होता है, हाँ यही सही रहेगा। इज्ज़त भी बच जाएगी और धुलाई भी नहीं होगी।

"चलें" उसने पूछा तो मैंने सहमे सहमे ही हाँ में सर हिला दिया, उसने अपना छोटा सा पर्स उठाया। मैं उठ कर मुँह धोने का उपक्रम करने लगा हूँ, ताकि ये थोड़ी आगे चली जाए, पैसे दे दे। पर ये क्या वो तो सीधे निकल गई स्कूटी के पास जाकर खड़ी हो गई। ओ तेरा भला हो, अब क्या होगा, मैं काउंटर के पास आकर मुजरिमों की तरह खड़ा हो गया, वो बाहर से ही चिल्लाई, आई हेव टू गो अरुण, ममा वेट कर रहे होंगे, हम शाम को बात करते हैं, स्कूटी का सेल्फ हुर्ररर किया और फुर्ररर हो गई, चलो अब बेज्जती कम से कम इसके सामने तो नही ही होगी, मैंने मैनेजर की तरफ कातर दृष्टि से देखा। उसने बिल मेरी और बढ़ा दिया , 2868.89 Rs. ओनली... वैट मार के।

' पर मेरे पास अभी पैसे नहीं है सर....'

"कोई बात नहीं, हमें वसूलने आते हैं" मैनेजर बोला।

दो पहलवान टाइप पट्ठे मेरी और आ रहे हैं, देख के ही मुक्कों के डर से चक्कर आ रहे है, गिर पड़ा मैं धम्म से जैसे किसी ने लात मार कर गिराया हो। पलट कर देखा अजीत चिल्ला रहा है मुझ पर , " कब से आवाज लगा रहे हैं उठते ही नहीं हो, बहरे हो का।"

इधर उधर देखा, न गांधी चौक नजर आ रहा था न बसन्त मैंगो बार या उसके वो मोटे बाउंसर, यूँ की मजा आ गया ज़िन्दगी का। उठ कर कपड़े झाड़े, अजीत को गले से लगा लिया, भाई तुझे 7 खून माफ़, तेरी ये लात मुझ पर उधार रही, कभी तेरा ये अहसान ऐसे ही जरूर उतार दूंगा। ऊपर देखा , भगवान मसखरी में कम तो तुम भी नहीं हाँ, बच्चे की जान ले लेते आज तो। 😂😂😂😂😂😂😂

#जयश्रीकृष्ण

©अरुण

Rajpurohit-arun.blogspot.com

👦👦👦👦👦 फिल्मी चक्कर ♠♠♠♠♠ .


वन्स देयर वाज क्यूट सा मैं, वन डे माँ बोली कि जाओ बहन का एग्जाम फॉर्म सबमिट कर के आओ,बड़ी खुशी खुशी तैयार हो गया, गर्ल्स कॉलेज में जाने का बहाना जो मिल गया, कॉलेज गंगानगर में था, बस पकड़ी और पहुँच गए, गेट पर देखा बड़े बड़े अक्षरों वाला साइन बोर्ड लगा था

"चौधरी बल्लू राम गोदारा राजकीय कन्या महाविद्यालय श्रीगंगानगर"

हम्म तो यही है कॉलेज ? खुद से पूछा 'क्या ख्याल है भीतर चलें' जवाब मिला 'नेकी और पूछ पूछ', तो यूँ की भीतर दाखिल भी हो लिए , पर पहले ही कदम से घिग्गी बंध गई हमरी, एक साथ इत्ती सारी छोरिया 😍😍😍😍😍 टीवी के अलावा पहली बार देख रहे थे, साक्षात आमने सामने, मन किया कि छू के देखूं कहीं असली है भी के नहीं, पर थप्पड़ खाने का भी मन नहीं था सो चुपचाप चल पड़े अंदर की ओर, अचानक एक करंट फ्राइड मिश्री जैसी आवाज़ कानो में पड़ी,

 'ओ हेल्लो, हाँ ! किधर चल दिए, मुँह उठा के'

नजर इधर उधर घुमाई , दिमाग फटाफट केलकुलेशन में जुटा था कि इन ढेर सारे खूबसूरत चेहरों में मेरे वाला, आई मीन वो आवाज़ से मैचिंग फेस कौनसा है? तभी फिर से आकाशवाणी हुई, दिल पर बिजली सी गिराती आवाज़ फिर से गूंज उठी, 'लगता है दिखता भी कम ही है तुमको', अब की बार आंखों ने टारगेट तलाशने में कोई भूल नहीं की, लेकिन टारगेट ने पहली ही नजर में मुझे टारगेट बना लिया।

बैकग्राउंड म्यूजिक स्टार्ट, "नजरें मिली.... दिल धड़का मेरी....धड़कन में समा.... किस मी... आजा"।

पर अचानक से म्युझिक स्टॉप हो गया जब वो गुस्से से बोली.

 "ओ हेल्लो, लड़की नहीं देखी क्या कभी,और कहाँ घुसे जा रहे हो मुँह उठा के, पता नहीं गर्ल्स कॉलेज है ?"

मन तो किया कि उसके हर क्वेश्चन का जवाब डिटेल में दूँ, कि" हे मृग नयनी, हे रम्भे , हे उन सभी अप्सराओं के, प्यारे से कॉकटेल, जिनका नाम भी मैं नहीं जानता, लड़कियाँ देखी हैं खूब देखी है पर तुम तो तुम ही हो", म्यूजिक फिर से स्टार्ट, " तुमसा कोई प्यारा, कोई मासूम नहीं हैं, क्या चीज हो तुम खुद तुम्हे मालूम नहीं है, टिडिंग टिडिंग तड़ाड़ा टिन टीडीडिंग" दोबारा से टिडिंग टिडिंग बजने से पहले ही वो बोल पड़ी," अरे इसे तो सुनाई भी कम देता है शायद हाहाहा" एक साथ कई छोरियों के हँसने का सम्मिलित स्वर, हमारी अघोषित तन्द्रा टूटी, मेरे वाली के चेहरे से नजर हटी, तो देखा वो किसी व्हीकल स्टैंड जैसी जगह पर एक स्कूटी जैसे दिखने वाले दोपहिया वाहन के स्टैंड की ताकत आजमाने के लिए उस पर चढ़ी बैठी थी, मैंने पहली बार उसे अब गौर से देखा, उसका एक पैर स्कूटी पर तो दूसरा जमीं पर था ,'उफ्फ ये कदम जमीं पे न रखो, मैले हो जाएंगे', बोलने का मन किया पर देखा छोरी ने जूते पहन रखे थे विदाउट जुराब, हाए रे फैशन, गुलाबी रंग की कैप्री और काले रंग की टी शर्ट, जिस पर सामने की और बड़ी सी दो आँखे बनी थी, पता नही गुस्से से या प्यार से मेरी और देख भी रही थी,

 बहुत रोका पर म्यूजिक फिर से स्लो स्लो बजने लगा,"काले लिबास में बदन, गोरा यूँ लगे ईमान से,जैसे हीरा निकल रहा हो, कोयले की खान से",

म्यूजिक अपने आप बन्द हो गया जब देखा छोरी अब भी मुझ पर हँस ही रही थी, नजर इधर उधर घुमाई तो देखा उसके पास खड़ी कन्याएँ भी सौंदर्य की प्रतिमूर्ति बनी अपने अलौकिक हास्य से स्वयं की रूपाभा को द्विगुणित करते हुए मुझ पर दामिनी गिराने का अवसर नहीं चूक रही थी। अचानक मुझे बुद्धत्व प्राप्त हुआ, आइला अबे ये तो बेज्जती हो रेली रे बावा, सोचा पहली बार किसी कन्या से बतियाने का अवसर है, कुछ स्टाइल मार के बात करते हैं पर न जाने क्या हुआ कमबख्त आवाज़ ही नहीं निकली 😢, जैसे गले की पाइप आपस मे चिपक गई हो, बोलने के नाम पर बस थूक निगलना भर हो पाया।

सामने स्कूटी पर बैठी कम लटकी षोडसी फट पड़ी, "अबे बोलते हो कि पकड़ के बाहर निकाल दे कॉलेज से?"

 साथी अप्सराएँ उसके द्वारा की जा रही मेरी इस वाक धुलाई से पुनः बहुत प्रफुल्लित जान पड़ी। पर इस बार हमने भी हिम्मत की खूब जोर से सांस भीतर खींचा और ज़ोर लगा कर बोलने की चेष्टा की, पर भर्राए गले से " मममममममममम" ही निःसृत हुआ, सब अप्सराएँ हंसी से दोहरी हुई जा रही थी, ढेर सारी बेज्जती का दुःख झेलते हुए फिर से कोशिश की और फाइनली कह दिया," ममममैडम एड एड एडमिन ब ब ब ब्लॉक का रा रा रास्ता किधर ह ह है, फ़ फ़ फ़ फॉर्म जज्ज्मा कराना है।"

 हाहाहाहा ठहाके के साथ उसने मेरी एक और कमी पर से भी पर्दा उठा दिया,"लो, कल्लो बात, ये तो हकले भी हैं"।

ढेरो ठहाकों की बिजलियाँ एक साथ मुझ पर गिरी, अब तो यूँ की हद ही हो गई, ऐसे भी कोई बेज्जती खराब करता है भला, रोने जैसी शक्ल हो गई मेरी, आँसू उछल के गिरने ही वाला था कि मुग्धा नायिका को तरस आ गया, अपनी सखियों को झिड़क के बोली,"अरे चुप चुप, देखो बेचारा रोने वाला है।" कन्याओं ने एक साथ गर्दनें झुका कर मेरी आँखों मे झाँका, फिर मुँह बंद कर हंसी रोकने का यत्न कर खीखी करती हुई इधर उधर हो गई, मेरे वाली बोली, "हाँ तो जानेमन, किस फार्म की बात कर रहे थे तुम?"

जानेमन सुनते ही धीमे पड़ चुका म्यूजिक फिर से लाउड बजने लगा,
'जानेमन, जानेमन, तेरे दो नयन, ले के गए,
चोरी चोरी देखो हमारा मन, जानेमन , जानेमन , जानेमन।'

"ओ हेल्लो , कहाँ गुम हो जाते हो बार बार, आदत है मेरी, जानेमन"

'एग्जाम फ़ फॉर्म है, बहन का, यही जमा करवाना है'

 जानेमन सुन के काफी जोश आ गया था, पहले से काफी सही सुर में बोला अपुन ने।

"आजा जानेमन, चल मैं ले के चलती हूँ तुमको"

वो आगे आगे, मैं पीछे पीछे, मानो फेरों की रिहर्सल चल रही हो, ट्रैक चेंज गाना शुरू

"तारे हैं बाराती, चांदनी है ये बारात,
सातों फेरे, होंगे, अब हाथो में ले के हाथ,
सातों फेरे, होंगे, अब हाथो में ले के हाथ,
जीवन साथी हम, दिया और बाती हम"

अचानक वो घूमी , गाने को ब्रेक लग गया, बोली,"जानेमन ये लाइन देख रहे हो (ना जी मैं तो लाइन मार रहा हूँ चुपचाप), इधर ही जमा होगा फॉर्म, अच्छा मैं चलती हूँ, अरे हाँ....... अच्छा सुनो...... अच्छे बच्चे रोते नहीं हैं, इसलिए अब रोना नहीं ओके" 😊😊😊

वो पलट कर जाने लगी, सोचा कि कहूँ,
'रुक जा ओ जाने वाली रुक जा, मैं तो राही तेरी मंजिल का,
नजरों में तेरी मैं बुरा सही, आदमी बुरा नहीं मैं दिल का।'

वो बिना रुके चलती रही, मैं मन ही मन उसे पुकारता रहा, मत जाओ, ऐसे अकेला छोड़ के, अच्छा कम से कम नाम, पता फोन नम्बर कुछ तो बता के जाओ, सुनो ना, हद है, सुनो न प्लीज। वो चली जा रही थी, अचानक मेरे दिल का शाहरुख जाग गया, ना जाने क्यों पर ये विश्वास हो गया कि अगर ये तुमसे प्यार करती है तो पलट के जरूर देखेगी। वो सीधे चलती जा रही थी, मैं मन ही मन पलट मन्त्र का लगातार उच्चारण कर रहा था, अरे वा ये देखो वो सचमुच रुकी, जैसे कुछ याद आया हो, हाँ हाँ पीछे पीछे देखो मैंने ही तुम्हे पुकारा है, उसने अपनी साइड पॉकेट से फोन निकाला कोई नम्बर डायल किया फोन कान पर लगाया और मुड़ गई, ओये पीछे नहीं रे, अपने रस्ते पे ही, कोई मोड़ आया था न। मन किया जोर से चीखूं, ऐसे थोड़े न होता है, सारी स्टोरी का सत्यानाश हो गया ये तो, सैड सांग बनता है इस सिचुएशन में तो, इसलिए शुरू, " दिल मेरा तोड़ दिया उसने, बुरा क्यों मानूं, उसको हक है वो मुझे प्यार करे या न करे"😢

अपनी रोंदू शक्ल ले कर उधर रवाना हो लिए जिधर उसने कहा था कि लाइन लगी है, पन आइला, इत्ती बड़ी लाइन, यहाँ तो 3-4 हफ़्ते भी नम्बर नहीं आएगा, खुद से कहा मैंने, जवाब मिला, कोई और इलाज है तेरे पास ? नहीं न , तो चुपचाप लाइन में लग जा के, पता नहीं कहाँ से आ जाते हैं मुँह उठा के, हुंह। मुँह उठा के तो उसका डायलॉग है यार, सेम गाना फिर से "दिल मेरा तोड़ दिया उसने, बुरा क्यों मानूं, उसको हक है वो मुझे प्यार करे या न करे"😢

लाइन में जा कर खड़ा हुआ, तो एक सलवार कमीज वाली सांवली सलोनी भली सी लड़की बोली , आप लाइन में मत लगो, सीधे खिड़की में फॉर्म जमा कर दो।
'अरे वा, अभी समझा, इधर तो मेको रिजर्वेशन है, अल्पसंख्यक हूँ ना, एक इकलौता अबला नर, सबल कन्याओं की लाइन में दब कर, कुचल कर , पिस कर मर नहीं जाएगा? वैरी गुड वेरी गुड, सीधे खिड़की पर जा के फॉर्म पकड़ाया, भीतर से लेडी क्लर्क ने कजरारे कजरारे अपने कारे कारे नैना से पलक भर देखा, फिर ठप्पा लगा के चालान की मेरी प्रति बाहर खिसका दी। 'हो भी गया ?' उसने मुस्कुरा हाँ कहा।

वाह भई वाह, 'नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में, पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में ।'

लाइन के पास से गुजरते हुए देखा वो सांवली सलोनी अब भी खड़ी थी लाइन में, उसके पास जा के उसका फॉर्म लिया, खिड़की पर दिया, रसीद ले कर उसे दी, सारा काम ओनली 5 मिनट में, लगा अब वो आई लव यू नहीं तो कम से कम थैंक्यू जरूर बोलेगी। रसीद ले कर वो मुस्कुराई, आंखों में चमक आ गई, फिर पलट कर चुपचाप पतली गली से खिसक गई। नामुराद अहसानफरामोश छोरी, जा तेरी सेटिंग मेरे जैसे किसी पागल से ही हो।😉

वापसी में आते वक्त व्हीकल स्टैंड की तरफ देखा, स्कूटी थी पर उस पर बैठने वाली वो गायब थी। हम्म मालूम है, दिल मेरा तोड़ दिया उसने, बुरा क्यों मानूं, उसको हक है वो मुझे प्यार करे या न करे"😢 गाना बजाते हम वापस घर आ गए

#ज्यश्रीकृष्ण

©अरुण

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🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...