🚋🚋🚋🚋🚋 रेल-मटेल ♠♠♠♠♠


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(कृपया ध्यान देवें : यह पोस्ट मेरी पूर्व पोस्ट 'डर्टी पीपल' का ही विस्तार है, इसे पढ़ने से पहले वो पढ़ लेंगे तो सन्दर्भ जानने में आसानी रहेगी, शेष जिसकी जैसी इच्छा)
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मूड बड़ा फिलोसॉफियाना सा होने लगा था, बुद्ध के दुःख को जीवन का पर्याय कहे जाने पर अचानक श्रद्धा हो आई फिर सोचा, 'अजी छोड़ो फिलिम वाले भी तो बता बता के थक गए कि लड़की बस और ट्रेन एक जाती है तो दूसरी आती है, वैसे भी जो परी हो उसका तो उड़ना तय ही मानो :), जा परी जा जी ले अपनी जिंदगी' मयंक के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैर गई।
फिर मुन्ना भाई बन 'आइला क्या सूरत थी वो क्या कहते हैं' गुनगुनाने लगा।
अब ट्रेन में तांक झांक करने का मन नहीं हो रहा था, टाइम पास के लिए मयंक बाहर के नजारे देखने लगा। मन में गाना बजने लगा 'एम पी गज़ब है, सबसे गज़ब है' वाकई खूबसूरत है, पर अकेले में ये नजारे भी खोखले से लगते हैं, काश रवि, तनय, अतुल, जीत आए होते तो कहता की सालो देखो इसे कहते है कुदरत के नज़ारे।
अचानक नेतराम का ख्याल आया देखा वो उसकी सीट पर पड़ा ऊँघ रहा था। साला पोस्ती, पता नहीं कितने जन्म की नींद पूरी करेगा ट्रेन में 18 घँटे से सो ही रहा है।
'ओये, आजा बाहर के नजारे देख, मस्त हैं भाई।'
'मन्ने ना देखणे भाई, तू देख ले।'
'अबे क्या आदमी है यार तू भी,आ ना'
'मन्ने ना देखणे भाई, तू देख आराम त'
कया अजीब आदमी है यार। देखा तो ट्रेन के अधिकतर चेहरे बदल चुके थे, मोटा फैमिली भी नही थी, चलो दफ़ा हुए अच्छा हुआ। परी वाली सीट अब भी खाली ही थी, वही बैठ खिड़की से सर टकरा कर बाहर ताकने लगा, विंध्याचल की पहाड़ियाँ, हरियाली, पहाड़ों को काट कर बनाए रस्तों से जा रही रेल उसे किसी खिलौना गाड़ी की याद दिल रही थी, ठंडी ठंडी हवाओं के साथ आती नन्ही नन्ही बूँदो के बीच न जाने कब पलकें मूँद गई पता ही न चला।
करीब 4 घँटे बाद किसी ने उसके कंधे को पकड़ हल्का सा हिलाया
'हेल्लो मिस्टर, टिकट दिखाओ अपना', देखा टीटीई था। बेमन से खड़ा होकर ऊपर रखे अपने बैग से टिकट और पास निकाल कर दिखाया, 16 नम्बर, ये बर्थ पर कौन लेटा है ?
'मेरे साथ है, उसके पास भी एग्जाम पास है, इसका रिजर्वेशन नहीं था, इसलिए एडजस्ट करके जा रहे हैं।'
'ओके ओके' टीटी इतना कह आगे बढ़ गया।
मयंक ने भीतर का नजर देखा, कुछ भी दिलचस्प न लगा तो बाहर देखने लगा, अजीब अजीब नामों वाले स्टेशन आने लगे थे पेदमपल्ली, ये पल्ली वो पल्ली, ये पेट वो पेट, तो आंध्रा शुरू हाँ ? 😊😊 तभी तो, चल अच्छा है। लग तो यूँ रहा था की ये सफर कभी खत्म ही नही होगा, मगर अब लगता है होगा तो सही। मयंक ने सोचा।
शाम को ठीक 7:45 बजे ट्रेन पुरे 28 घँटे की यात्रा पूरी करने की घोषणा कर रुकी तो जान में जान आई।
नेतराम को उठाया, 'अब तो उठ जा यार, सिकन्दराबाद आ गया अब तो'
'हैं हाँ' आलस मरोड़ अंगड़ाई लेकर उबासी की बरसात करता नेतराम उठ कर उसके साथ बाहर आ गया। फिर बोला, 'हाँ भाई इब बता कित जावांगे?'
'अरे तू तो बड़ा कॉन्फिडेंट था न यार, टोह लयां गए टिकाणा, मुझसे क्या पूछ रहे हो , चल टोह अब' मयंक हँसता हुआ बोला।
'अर वा तो यूँ ही लिकड़गी थी, बोल न कित जावांगे ?'
'जाना कहाँ हैं, कहीं नही, सुबह एग्जाम है यहीं से निकल लेंगे।'
स्टेशन के बाहर निकल कर थोडा इधर उधर घूमे फिर वापस आकर स्टेशन की पार्किंग के फुटपाथ पर बैठकर खाना खाया। समय देखा 10 बज रहे थे।
'यहाँ तो मच्छर उठा ले जाएंगे, अंदर वेटिंग हॉल में चलते हैं।' मयंक ने कहा।
वेटिंग हॉल उनके जैसे अभ्यर्थियों की भीड़ से अटा पड़ा था। वहीं थोड़ी जगह बना कर चद्दर बिछाई और दोनों सेट हो गए, थोड़ी देर में निंदिया रानी का आशीर्वाद मिल गया और दोनों सुंदर भविष्य के मीठे सपनों में खो गए।
मयंक के सपने में :
"प्रियंका अगेन, ,,,,,,,,,,,बातचीत, ,,,,,,,,,,इजहार, ,,,,,,,,,इंकार, ,,,,,,,,,,,,फिर इकरार, ,,,,,,,,,,,ढेर सारा प्यार, ,,,,,,,,,,,मीठी बाते, ,,,,,,,,,,गाने, ,,,,,,,,,,,,,ताने ,,,,,,,,,,तकरार, ,,,,,,,,,पुनर्मिलन, ,,,,,,,,,,,,खड़ूस बाप, ,,,,,,,,,,,,,पैसे वाला,,,,,,,,,,,, उसका इंकार, ,,,,,,,,,,,गुंडे, ,,,,,,,,,,,,,,,,,मारने आ रहे हैं,,,,,,,,,,ऐसी की तैसी इनकी,,,,,, ,,,,,,,,,"
अचानक लगा जैसे सपना नहीं हकीकत है, नींद में बाहर का शोर चीख़ पुकार सुनाई दे रही थी। एक तेज डंडा उसकी पीठ पर पड़ा, दर्द से बिलबिलाता वो फौरन जाग गया। गन्दे वाली गाली देना चाहता था पर देखा सामने आरपीएफ का जवान डंडे के साथ खड़ा था, वेटिंग हॉल को यात्रियों की सुविधा के लिए छात्रों के कब्ज़े से छुड़ाया जा रहा था, चुपचाप सो रहे छात्रों पर डंडे भांजे गए तो थोड़ी ही देर में वेटिंग हॉल बिलकुल खाली हो गया, बाहर आकर सोचा, 'अरे यार वो बेचारा नेतराम कहाँ गया, डंडा वंडा पड़ गया तो मर भी सकता है साला।' इधर उधर देखा तो वो कहीं नजर न आया पर थोड़ी देर बाद उसकी कंधे पर हाथ रखे वो मुस्कुरा रहा था, मयंक भी मुस्कुराया।
'अरे यार कहाँ थे, तेरे पड़ी तो नही '
'ना भाई , मन्ने तो नींद ई ना आ री थी, डंडा देखतां पाण हाम तो भाज लिए थे, तन आवाज़ मारी पर तू सुणी कोन्या, ना जाणे कुणसी के सपना म खो रया था'
'क्या यार जगा लेता तो मैं भी बच जाता न डंडे से' बोल कर अपनी पीठ पर हाथ लगाया , आआआआह दर्द से तड़प कर कहा, साले न जाने किस जन्म का बैर निकालने आए थे।'
टाइम देखा तो सुबह के 4 बज रहे थे, अब न तो सोने की जगह बची थी न वक़्त।
'आजा नहा धो के फ्रेश होकर आते हैं'
'तन्ने सुलभ कॉम्पलेक्स का पता है कठे ह'
'तू चल मेरे साथ'
रेलवे वाशिंग लाइन पर खड़ी गाड़ी के एक डिब्बे का सदुपयोग करने के बाद वाशिंग लाइन के पानी से स्नान क्रिया पूर्ण की। शर्ट पहनते महसूस हुआ की डंडे का निशान उभर आया था, कपड़ा साथ लगते ही उसमे जलन हो रही थी, दर्द पीकर बोला,
'देख भाई, भारतीय रेल दुनिया का सबसे बड़ा शौचालय मने सुलभ कॉम्पलेक्स है, कभी भूलना नही अब से।'
नेतराम मुस्कुराने लगा।
6 बज रहे थे, एक दूसरे से स्टेशन पर ही मिलने का कह कर विदा ली, एग्जाम देने निकल गए। चोर चोरी से जाए पर हेरा फेरी से न जाए, डंडे का दर्द तो था पर जानबूझ कर बार बार आंध्रा की अलग अलग स्कूल गर्ल्स से पता पूछ मजे लेता मयंक सेंटर पर पैदल ही पहुँच गया। एग्जाम ठीक ठाक हुआ, घूमते घूमते स्टेशन पर पहुँचा तो देखा नेतराम पहले से वही था।
बोला ,' वापसी की टिकट कुण सी ट्रेन की है'
'कोई सी भी नही, और सब की है'
'मतलब'
'अरे यार कोई भी ट्रेन पकड़ के निकल लेंगे, रिजर्वेशन नही है पर जाएंगे रिजर्वेशन बोगी में ही, पास है हमारे पास तो जुर्माना नहीं लगता कोई, समझे'
'ठीक ह भाई'
शाम को 4:30, छात्रों की खतरनाक भीड़ ने ट्रेन की जनरल बोगियों को घेर रखा था, वहाँ जगह न मिलते देख स्लीपर पर धावा हो गया, मकोड़ों की तरह जिधर देखो स्टूडेंट ही स्टूडेंट। मयंक नेतराम के साथ एक छात्र से समझौता कर बेफिक्र उसकी बर्थ पर आसीन था, शर्त के मुताबिक उन्हें रात में अपनी तशरीफ़ को नीचे जमीन पर रख लेना था, नो प्रॉब्लम यार। भीड़ इतनी ज्यादा थी की लगा ट्रेन शायद इतना भर एक साथ लेकर अपनी जगह से खिसक ही नही पाएगी। अपने निर्धारित समय से 30 मिनट की देरी से ही सही पर ट्रेन चली , बड़ी गर्मी हो रही थी, ट्रेन चलते ही हवा लगने लगी। पहले भीड़ बहुत ज्यादा लग रही थी पर अब धीरे धीरे सब न जाने कैसे सेट हो गए। 2 घण्टे बाद अचानक काजीपेट के पास ट्रेन रोक दी गई, मालूम हुआ मजिस्ट्रेट चैकिंग है ट्रेन के दोनों तरफ rpf के कुछ जवान नजर आ रहे थे, मयंक और नेतराम दोनों कुतूहल से ये सब देख रहे थे, प्रथम अनुभव था। सहसा देखा एक काले मोटे थंगबलि टाइप टीटीई और दो rpf जवानो ने उनकी बोगी में प्रवेश किया, एक लड़के से पूछा, 'टिकीट', उत्तर मिला, 'पास है जी' धम्म से झन्नाटेदार थप्पड़ से टीटीई ने उसका मुंह लाल कर दिया।
'अबे भाग नही तो अपनी भी ठुकाई पक्की है' बैग उठाया तो देखा नेतराम उसे बिना कुछ कहे पहले ही आगे दौड़ लगा चुका था। मयंक भी डिब्बों के बीच के पासेज से होता हुआ जनरल बोगी में आ गया पर जनरल बोगी में घुसने का रास्ता नहीं मिला, नेतराम नही दिखा शायद भीतर प्रविष्ठ हो गया था। बेचारे मयंक को वही दोनों बोगीयों के बीच बने अस्थाई पुल जैसी संरचना पर खड़े रहना पड़ा, कुछ ही देर में पैर दुखने लगे तो वही बैठ गया।
लड़कों की भीड़ स्लीपर से धकेले जाने के बाद लगातार वहाँ प्रेशर बढ़ा रही थी । मयंक को डर लग रहा था, दरअसल अस्थाई पास के चारो और बना रबड़ का आवरण मयंक की साइड में फटा हुआ था, ट्रेन चल चुकी थी और मयंक को वहाँ बैठे तेजी से पीछे की और जाती पटरियाँ साफ नज़र आ रही थी, बड़ी मजबूती से उसने अपने आप को थामा हुआ था, पर एक चुक और उसके घर में चित्रहार शुरू हो जाता।
थोड़ी थोड़ी देर बाद इन सब दुःखों से अनजान अपने भीतर के दबाव को मुक्त करने कोई न कोई आ जाता, पैर रखने को जगह न थी पर वो कंधो पे, सर पे पैर रख शौचालय में दाखिल हो ही जाता। हाथों से झरती पानी की बुँदे टपकाता वापस जाता, कभी कोई चाय वाला चाय की बूंदे गिरा त्रस्त मन को और उद्विग्न कर जाता।
'सुना था स्वर्ग यहाँ, नर्क यहाँ , आज देख भी लिया" मयंक बुदबुदाया। लगातार 14 घण्टे वहीं एक करवट बैठ यातना झेली, नींद , थकान और भूख से बुरा हाल था, शरीर का रोम रोम दर्द करने लगा था। खुद को गालियाँ निकालते पक्का निश्चय कर लिया, आइंदा बिना रिजर्वेशन के कभी नही आऊंगा, और इतनी दूर तो रिजर्वेशन हो तब भी नही आऊंगा।'
भोपाल स्टेशन आने वाला था, अपनी बची खुची ताकत और हिम्मत बटोर मयंक वहाँ से उठा और फिर से स्लीपर क्लास की और चल पड़ा, एक बूढे अंकल साइड लोअर बर्थ पर सो रहे थे उनके पैरो के पास थोड़ी सी जगह बना कर बैठ गया, जान में जान आई। बड़ी मुश्किल से 10 मिनट ही हुए होंगे एक टीटीई उसी बोगी में टिकट चेक करता दिखाई दिया, दिल धक्क से बैठ गया। अब क्या होगा, वापस उसी नर्क में जाना पड़ेगा ?
'ओ भगवान जी, हेल्लो, मैं ही मिलता हूँ क्या आपको ?' पर देखा तो टीटीई अकेला था, अब चाहे लड़ाई करनी पड़े इससे जनरल बोगी में तो नही जाऊँगा। पर टीटीई के पास आने के साथ उसकी धड़कने तेज और साँसे मन्द हो रही थी। टीटीई करीब आया तो बहुत से पैसेंजरों ने उसे घेर लिया सब के सब वेटिंग टिकट वाले थे सीट कन्फर्म हुई या नही जाना चाहते थे, टीटीई ने पता नही कैसे पर सबके टिकट कन्फर्म कर सीट नम्बर दे दिया, मयंक से टिकट मांगा, उसने पास दिया तो अपने चार्ट में पास का रोल नम्बर लिख पास के पीछे लिखा S3-24 ,और कहा इस सीट पर जाओ।
'वाह भगवान जी, बिना मांगे रिजर्वेशन आपने ही करवाया न ? थैंक्यू हाँ सच्चीमुची 😊' ऊपर देखकर मयंक बोला, और S3 में सीट नम्बर 24 के पास आया, वहाँ एक लड़का लेटा था उसे खड़ा किया , 'मेरा रिजर्वेशन है भाई' और फिर खुद वहीं लुढ़क गया, आँख मूँद गई जब नींद से जागा तो बाहर न्यू डेल्ही का बोर्ड दिखाई दे रहा था।
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‪#‎जयश्रीकृष्ण‬
©अरुणिम कथा

👥👥👥👥👥 डर्टी पीपल ♠♠♠♠♠


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'हे भगवान आज का सफर तो बोरिंग होने से बचा देना।' स्लीपर क्लास रिजर्वेशन चार्ट को देखते हुए मयंक मन ही मन बुदबुदाया।
'एस 8- एस 8 कहाँ गया ये एस 8 !?, हाँ ये रहा, मेरा सीट नम्बर कितना था, रुको यार देखना पड़ेगा' टिकट निकाला देखा, 'हाँ सीट नम्बर 16, ऊपर की बर्थ है, अगर पँखा नही चला तो पूरे सफर की वाट लग जाएगी यार, हाँ ये रहा मेरा नाम मयंक , वाह मेरे शेर, जियो मयंक राजा, किसी दिन ये चार्ट तेरे आर्डर से छपा करेगा तू देखना भगवान' मयंक मन ही मन अपने आप से बात कर रहा था।
मयंक रेलवे का एग्जाम कई बार दे चुका था, कई बार के अनुभव से अभी सेलेक्ट भले ही न हो पाया हो पर एग्जाम के लिए फ्री रेलवे पास मंगवाने का नुस्खा अब उसे भी पता था। 'रेलवे वालो एस सी/एस टी को ही फ्री पास देते हो न , देखो तुम्हारे इस जमाई राजा की खोपड़ी, दो फार्म डाल दिए, एक एस सी वाले के फ्री पास से फ्री में यात्रा करेंगे, दूसरे ओरिजिनल वाले से एग्जाम देंगे। है न कमाल का आईडिया 😊 खीखीखी।'
'प्रियंका अरोरा, फीमेल , बर्थ नम्बर 15, साइड लोअर बर्थ, बोर्डिंग फ्रॉम आगरा, वाह भगवान देर से ही सही सुनी तो सही, थैंक्यू भगवान जी। अब सुनो इसके साथ किसी खड़ूस को न भेज देना, पता चले साला देखने पे भी काट खाने को आए। वैसे भी हमको कौनसा डब्बे में उससे शादी कर के घर जाना है, बस थोड़ी नज़रें ठण्डी हो जाती हैं और क्या।'
कितने एग्जाम हो गए पास फ़ैल तो लगा रहता है, बस उर्दू वाले 'सफ़र' से अंग्रेजी वाला 'सफ्फर' नही बनना चाहिए, घड़ी में देखा तो गाड़ी छूटने में अभी भी 15 मिनट और पड़े थे , क्या करूँ क्या करूँ सोचते सोचते कोई और उपाय न देख फिर से रिजर्वेशन चार्ट चाटने लगा।
'हम्म एस 8 में 9, 10,11,12,13,14 सबका सेम टू सेम पी एन आर, मतलब एक ही बाड़े के डंगर हैं (खुद ही अपने जोक पर हंसने की नाकाम कोशिश की, फिर आगे पढ़ने लगा) सबके सब अंकल आंटी है हुँह, ये भी आगरा से ही चढ़ेंगे? अरे बाप रे, भगवान मेरी प्रियंका को बचाना इन दरिंदो से, हाहाहा, पर दरिंदा तो तू है बे, वाह भगवान मुझे पता था तुम आज मेरी ही साइड में हो, प्रियंका का पी एन आर और इन डंगरों का पी एन आर अलग अलग है, मतलब ये इनके साथ तो नही ही है, क्यूँ साथ क्यों नही हो सकती, एक टिकट पर 6 लोग ही तो ट्रेवल कर पाते हैं (मन ने प्रतिवाद में तर्क दिया), नहीं नहीं ये लोग तो इनके साथ पक्का नहीं हैं ( मंयक ने अपने ही मन को झुठलाने की कोशिश की)। चल छोड़ ट्रेन में बैठते हैं। 5 मिनट ही तो पड़े हैं अब।'
ट्रेन में सवार होकर बाहर देखा, 'हम्म दिल्ली का स्टेशन देखा जाए तो उतना बुरा भी नही पर राजधानी के नजरिये से थोडा और सुधार की गुंजाइश तो है ही। जब मैं यहाँ का स्टेशन इंचार्ज बनूँगा तब देखना जितने भी साले कामचोर हैं यहाँ के , उनकी वाट लगने वाली है।' मन की मुस्कान मयंक के होंठो तक दौड़ गई।
"भाई तू भी एग्जाम देण जा रया है", सहसा उस ने पास की सीट से किसी की भारी आवाज सुनी।
देखा तो एक दुबला पतला मरियल टी बी के मरीज टाइप का लौंडा बोल रहा था।
'अबे ये क्या, साले ने इतनी हैवी आवाज़ निकाली कहाँ से ? 😂😂😂' अपने आप से बात करता मयंक ठहाका लगा जोर से हँसना चाहता था, पर फिर न जाने क्या सोच चुप ही रहा, बोला ,'हाँ, पर तुम कौनसे एग्जाम की बात कर रहे हो ?'
'यो देख भाई, कोई रेल का एग्जाम स, 3 साल हो लिए फार्म भरे न, बेरयां न इब जाके सूझया क कोई पेपर भी लेणा होया करे'
कॉल लैटर देखा, वही था, असिस्टेंट स्टेशन मास्टर आरआरबी सिकन्दराबाद, दिलसुखिया नगर में सेंटर था, मयंक बोला, 'हाँ भाई नेतराम' सामने का लड़का आश्चर्य से मुस्कुराया तो मयंक बोला, 'अरे यार तेरे कॉल लैटर में गलती से उन्होंने नाम भी लिख दिया था, मैंने पढ़ लिया तो पता लग गया 😊' कहकर हंसने लगा तो नेतराम भी उसके साथ हँस पड़ा। बातों बातों में पता ही न लगा ट्रेन न्यू डेल्ही को छोड़ निजामुद्दीन तक आ चुकी थी।
'मेरा सेंटर किसी कोट्टी नाम की जगह पर है'
'कोई ना भाई टोह ल्यांगे'
'कितने एग्जाम दिए हैं इससे पहले ?'
'बथेरे दिए भाई, पण साले रिजल्ट गा के करदे बेरा ई कोन्या पडदा'
'हाहाहा अरे यार बेरा पड़ जाता अगर तुम क्लियर करते तो नेक्स्ट स्टेज के लिए कॉल घर पर आ जाता न, रुकोगे कहाँ ?'
'बेरा कोनी, उठे जा के देखांगे'
'ये भी सही है'
इन दोनों को बातों बातों में कोई खबर ही न रही ट्रेन अब आगरा कैंट पहुँचने वाली थी।
'अच्छा सुन तेरा सीट नम्बर 8 है ? मेरा ये ऊपर वाली सीट है नम्बर 16, ओके ?'
'यो ओके फोके म ना जाणु भाई, और मेरी सीट कोई सी ना है, या खाली पड़ी थी तो यार तो गोमती धर के बैठ लिया'
'हाहा , अच्छा ठीक है, तू ऊपर आजा मेरी सीट पर हम एडजस्ट कर लेंगे। तुझे नौकरी लगाना तो मेरे बस में नहीं पर इतना तो कर ही सकता हूँ। 😄😄'
नेतराम मयंक की सीट पर बेफिक्री से पसर गया, मयंक नीचे की सीट पर ही बैठा रहा,सोचने लगा 'ये प्रियंका आई क्यूँ नही अब तक'
'एक्सक्यूज़ मी'
मीठी सी कानों में शहद घोलती आवाज़ कानो में गई तो मयंक ने पीछे मुड़ कर देखा। जीन्स टॉप पहने छरहरी काया वाली ये कन्या उससे अपनी तशरीफ़ कहीं और ले जा के पटकने का आग्रह कर रही थी।
'ये मेरी सीट है, आप हटिए यहाँ से' लड़की ने फिर से कहा।
'ओ तेरी, ये किधर से चढ़ी यार, परीयनका - प्रियंका, कसम से परी ही तो है। ' मयंक ने अपने आप से कहा। बाई गॉड झप्पी पाने का मन कर रिया था, पर कण्ट्रोल उदय कण्ट्रोल , करना पड़ा।
'आप हटेंगे अब ?' प्रियंका थोड़ी खीझ के साथ जोर से बोली।
'ज ज जी, जी हाँ, एक मिनट' कहकर मयंक उस सीट से खड़ा हो गया, प्रियंका ने अपना छोटा सा बैग सीट पर रखा और पैर इस तरह पसार के बैठ गई मानो उसे डर हो कि ये मयंक फिर से सीट पर न बैठ जाए।
'हमको तुम्हारी ये अदा बहुत पसन्द आई दिलबरा' मयंक मन ही मन बुदबुदाया।
'ओ हेल्लो, रास्ता क्यूँ रोक रखा है, डर्टी पीपल, अक्ल है के नही' अंदर आते एक मोटे थुलथुल ने कहा, मयंक ने ऊपर से नीचे तक उसे देखा, मन में बोला 'इसे इस जीन्स में किसने ठूसा होगा 😂😂 साला तोंदूमल। गहने तो देखो खुद को बप्पी लहरी समझ रहा होगा, हुँह। ' फिर उसके लिए रास्ता छोड़ दिया। एक के बाद एक 4 तोंदूमल और 2 तोंदूमलनियाँ अंदर प्रविष्ठ हुई।
'सालों के पेट तो देखो, जैसे 10-10 लीटर गैस के सिलेंडर खाए घूम रहे हैं।' सोचते सोचते मयंक सीट नम्बर 8 पर बैठ गया।
'ओह गोश, मैंने बोला था तुमको, उफ़्फ़ आई कान्ट, यार तुमको बोला था फर्स्ट एसी का टिकट करवाना था, फर्स्ट टाइम इस सो कॉल्ड स्लीपर क्लास में जाना पड़ रहा है, जस्ट बीकॉज ऑफ़ यू रोमी।' 45 साल की अधेड़ औरत एक मोटू को कह रही थी।
दूसरी मोटी शायद अंग्रेजी में निपुणता नही रखती थी, इसलिए अलग अलग भाषाओं के शब्दों के साथ एस जोड़ कर अपने क्लास को मैंटेन किए हुए थी।
'ओ यस यस, आपको तो पता ही'ज है'ज, दिस टाइपस् की बोगियोंज मेंज चोर'ज टाइप्स लोग'ज ट्रैवेलज करतेज् हैं'ज।'
'व्हाट कैन आई डु, आल एसी क्लास वाज शोविंग नो रुम, जस्ट अरेंज्ड दिस एनीहाउ, एंड यू पीपल आर बलेमिंग मी फॉर देट ? डिसगस्टिंग'
'साले मोटे कहीं के, फालतू की नौटँकी करनी है इनको बस, इतना ही बुरा लग रहा है यहां तो सालो प्लेन से जाते, वहाँ भी टिकट न मिलता तो प्राइवेट जेट से जाते, हुँह बड़े आए अम्बानी साले' मयंक मन ही मन गालियाँ दे रहा था। फिर सोचा मरने दो इन्हें मेरी परी पर कॉन्सन्ट्रेट करने दो। प्रियंका अपने कानों में इअर फोन लगा गानों में मस्ती में आँखें मूंदे लेटी थी। मयंक उसे ही निहारने लगा, देखा लड़की ने खूब मेकअप पोत रखा है, 'क्या जरूरत है अच्छी खासी तो दिखती हो ' देखा टॉप पर अंग्रेजी में बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था "Don't stare, My face isn't here" , 'अरे बाप रे, क्या क्या लिखते हैं यार :)'।
ऊपर देखा तो नेतराम मयंक की सीट को खाला का बाड़ा समझ के आराम से लेटा हुआ था, रात के 10 बजने को थे, मयंक भी अपनी सीट पर लेट गया, नीचे देखा प्रियंका बेबी मीठे सपनों में खो चुकी थी, सामने मोटा फैमिली एक दूसरे को कोसते हुए बड़ी मुश्किल से मिडिल और अपर बर्थ पर एडजस्ट कर पाए, हाँफ गए थे मनो एवेरेस्ट चढ़ना पड़ गया बेचारों को, पता ही नही लगा कब आँख लग गई। सुबह जब जाग आई तो देखा, प्रियंका अपनी सीट पर नही थी फिर देखा तो बैग भी नही था उसका, ओ शिट, कहीं उतर तो नही गई, रिजर्वेशन चार्ट में भी उसने सिर्फ बोर्डिंग पर ही ध्यान दिया था कहाँ उतरेगी देखा ही नही, फटाफट नीचे उतर कर बोगी के गेट के पास चिपकाए चार्ट को देखा, चार्ट जगह जगह से फट चुका था, पर प्रियंका के नाम के आगे 'bho...' शब्दों से अनुमान लगा लिया वो इसी स्टेशन पर उतरी है, नेतराम नीचे भोपाल स्टेशन पर खड़ा चाय पी रहा था, 'चाय !?'
मयंक ने इंकार में सर हिला दिया। ऊपर शिकायत की मुद्रा में देखा, फिर बोला 'करवा दिया न कचरा, थोड़ी देर पहले ही उठा देते भगवान, क्या बिगड़ जाता तुम्हारा बोलो? अच्छा ठीक है सॉरी मत बोलना अब, बट लास्ट गलती है ओके'। पीछे से नेतराम ने पीठ पर हाथ मार कर उसकी तन्द्रा तोड़ी,
'र के होया भाई, न्यू ऊपर न मुं करके क्यूँ बड़बड़ कर रा ह'
'कुछ नही यार, ये मेरे और उस ऊपर वाले के बीच की बात है।'
'तू बड़ा रुस्तम स भाई, खड्यां खड्यां ऊपर फोन ला लिया, हाहाहा'
ट्रेन फिर से गन्तव्य की और बढ़ चली। कभी कोई कभी कोई आता और पैसे मांगता, एक मुस्टंडा अपने दो छोटे छोटे बच्चों के साथ जिम्नास्टिक का खेल दिखा कर पैसे मांगने लगा, बच्चे बमुश्किल 4-5 साल से अधिक उम्र के न रहे होंगे। मन किया की कुछ पैसे दे दूँ इन्हें पर फिर सोचा भइये जेब में ढाई सौ रुपल्ली है, और वहाँ जा के सही सलामत वापस भी आना है, मन को मार दिया, फिर एक बच्चा पत्थर की दो बट्टी आपस में टकरा कर 'तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे' गाने लगा। मयंक सोचने लगा, 'प्रियंका, ये गाना तुम्हे डेडिकेट किया, जा बेवफा जा, 'अब तेरे बिन जी लेंगे हम, क्या हुआ जो एक दिल टूट गया'' अपनी बेवकूफी भरी बातों पर खुद ही हंसने लगा। देखा तो सामने की मोटा फैमिली ने इन बच्चों में से किसी को एक दुअन्नी तक न दी। फिर एक मोटा लेक्चर झाड़ने लगा , यू नो दिज किड्स आर अ ह्यूज सोर्स ऑफ़ मनी, वन्स आई सॉ आल दिस इन अ मूवी आल्सो, गैंग ऑफ़ बेग्गर आर बिहाइंड आल दिस। वी शुड नॉट हेव टू गिव एनीकाइंड ऑफ़ मनी तो दैम।'
'सालो एक रुपया तो तुमसे ढीला होता नही और बात कर रहे हैं कि एसी के बिना इनकी तैसी नही होती, हुँह दोगले हैं साले' मयंक को बड़ा गुस्सा आ रहा था उन पर, अचानक कहीं से एक लँगड़ा लड़का प्रकट हुआ, मैले कुचैले कपड़े वैसा ही मैल से सना शरीर, नीचे बैठा अपनी गंदी फ़टी हुई शर्ट उतारी और उसी से बोगी साफ़ करते हुए आगे बढ़ा, बोगी के एक एक केबिन को साफ कर पैसेंजर्स के सामने चुपचाप हाथ फैलाता , जिसे जो देना हो दे दे न देना हो न सही, किसी ने भी एक रूपये से बढ़कर उसे पैसा नहीं दिया, लगभग पूरा डिब्बा साफ हो चुका था, मोटा फैमिली से भी माँगा तो फिर से वही मोटा लेक्चर झाड़ने लगा, यू डोन्ट नो दिज रास्कल्स, आई नो, एंड बेग्गींग इज अ क्राइम.....'
मयंक को गुस्सा आ गया, बोला 'अरे अंकल किसी को एक रुपया देने का कलेजा नही है, तो मत दो, किसी को रास्कल क्यों कहते हो, जितना ये बेचारा कर सकता था कर रहा, शरीर से विकलांग है हिम्मत से नहीं, खबरदार अब अगर इसे बेग्गर बोला तो' फिर नीचे उतरा बीस का नोट थमाया बोला 'भाई इससे ज्यादा की तो मेरी भी हैसियत नही', पैसे पाकर लेने वाला बिना कुछ कहे चला गया, शायद बोल भी न सकता था।
अपनी सीट पर बैठते बैठते मयंक मोटा फैमिली की और देख बुदबुदाया 'डर्टी पीपल' हुँह साले।
ट्रेन अब भी अपनी पूरी गति से आगे बढ़ती जा रही थी।
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‪#‎जयश्रीकृष्ण‬
©अरुणिम कथा

👫👬💏💑👼👪 लव आज़कल (पंजाबी से हिंदी में अनूदित पोस्ट) ♠♠♠♠♠ .

केमियाणा फरीदकोट का समीपवर्ती छोटा सा गाँव , सुबह के छः बजे हैं, इतनी सुबह भी स्कूल और कॉलेज के बच्चों के कारण बस स्टेण्ड पर खासी भीड़भाड़ थी। अलग अलग कॉलेजों के लड़के लड़कियाँ अलग अलग टोलियां बना कर अपनी बस के इंतज़ार में खड़े थे।
तनु, तरनप्रीत कौर, मेडिकल स्टूडेंट गुरु गोविन्द सिंह मेडिकल कॉलेज में इंटर्नशिप होने के कारण, आज पहली बार इस बस अड्डे पर खड़ी थी। केमियाणा में उसकी बहन रहती है, सोचा जितने दिन इंटर्नशिप चलेगी उतने दिन बहन के साथ भी रहने को मिल जाएगा यही सोच के इस कॉलेज का नाम दिया था
था। बस स्टैंड पर उसे यूँ लग रहा था जैसे सब उसी को देख रहे हों, बहुत शर्म और संकोच के साथ वो लड़कियों के झुंड के नजदीक जाकर खड़ी हो गई। लड़कियो ने एक बार नजर उठा कर गांव में नए आए इस चेहरे की तरफ देखा पर फिरपर अगले ही क्षण अपनी बातों में पुनः मशगूल हो गई।
तनु बेहद खूबसूरत नही तो बुरी भी नही थी देखने में, साँवला और गोल चेहरा, तीखे नयन नक्श, बड़ी बड़ी काली आँखे, कुल मिला कर लड़की का लुक अच्छा ही था। थोड़ी देर में बस आई, भीड़ थी पर पंजाबी सभ्याचार देखिये , 'अरे भई महिला सवारियों को सीट दीजिये' एक साथ कई आवाज़ें बस में गूँजी, एक लड़का खड़ा हो गया और तनु को भी सीट मिल गई उसके लिए सीट छोड़ने वाला लड़का वही उसी सीट के पास सट कर खड़ा हो गया। तनु चुपचाप बाहर देख कर सफ़र की समाप्ति की प्रतीक्षा करने लगी। 30 मिनट के बाद वो अपने स्टॉप पर उतरी, उसके साथ कुछ लोग और भी उतरे पर तनु बिना किसी पर ध्यान दिए अपने कॉलेज की और चल पड़ी।
कॉलेज के गेट के पास ही उसे फ्रेंड खुशदीप मिल गई , अच्छा कॉलेज था उसकी शिफ्ट कब बीती पता ही न लगा, दोपहर 2:30 बजे वापसी का रुख किया बस में फिर से भीड़ ही थी ज्यादातर स्टूडेंट ही थे सुबह की तरह, फिर से उसके लिए एक सीट खाली हो गई। बैठते वक़्त उसने कपड़ो से नोटिस किया जिसने उसे सीट दी वो वही सुबह वाला लड़का ही था। बैठते बैठते उसने धीरे से थैंक यू बोला, लड़के से नजरें टकराई तो वो मुस्कुरा भर दिया। तनु चुपचाप बाहर देखने लगी। रोज आना होने लगा, तनु अकेली आती अकेली जाती, लड़का उसे हर दिन बस स्टैंड पर तैयार मिलता , बिन मांगे उसे सीट मिल जाती, अब जब लड़का मुस्कुराता तो वो भी हल्का सा मुस्कुरा देती। एक दिन तनु को कॉलेज से लौटते लौटते 5 बज गए बस स्टैंड पर लड़का बेचैन इधर उधर टहल रहा था। तनु को देख मानो उसे संजीवनी मिल गई खुश हो गया। बस में ज्यादा भीड़ नही थी तनु चुपचाप एक सीट पर बैठ गई, नजर उठा कर देखा तो लड़का ड्राईवर सीट के पास बैठा उसे ही निहार रहा था, तनु ने नजरें झुका ली। सोचने लगी कैसा भोंदु लड़का है रोज साथ आता जाता है पर कुछ भी बोल नही सकता। एक दिन यात्रा के दौरान एक और लड़का जो उसके पास बैठा था, ने उसे सत श्री अकाल बोल उसका नाम पूछा तो उसने निःसंकोच बता दिया।
लड़का कहने लगा 'तरन जी, मेरे उस दोस्त से तो बोला भी नही जाएगा इसलिए मैं ही बोल देता ये आपसे दोस्ती करना चाहता है, अगर आपको ऐतराज़ न हो तो।'
तनु को हँसी आने लगी, सोचा 'अजीब नमूने टाइप के लोग हैं दोस्ती के लिए भी मीडिएटर की जरूरत पड़ रही है और इसे देखो 'आपको ऐतराज़ न हो तो' 😊😊
बोली, ' अरे दोस्त तो कोई भी किसी का भी हो सकता है, इसमें इतना शरमाने वाली क्या बात है ?
लड़का बोला, 'अरे वो सिम्पल वाली नही जी, स्पेशल मेरा मतलब खास वाली दोस्ती करनी है उसको आपसे'
'आपको नही लगता आपका दोस्त कुछ ज्यादा ही अजीब है, अरे जिसका नाम तक नही जानती, उसे खास फ्रेंडशिप चाहिए ? हद है सच में'
'ये भी सही है, चलो आप सिम्पल फ्रेंडशिप ही कर लो'
😊😊😊
***
'नहीं मुझे कुछ नही पता, मैं कुछ नही जानता, आना है मतलब आना है'
'अरे यार बच्चों की तरह जिद मत किया करो तुम, कैसे आउंगी मैं , समझा करो ना'
'ओके ठीक है, अब से कभी मुझसे बात मत करना'
'ये क्या बात हुई यार !? ठीक मैं कोशिश करती हूँ पर कोई प्रॉमिस नही है ओके'
(फोन पर हुई लम्बी कन्वर्सेशन के बाद के कुछ आखिरी संवाद।)
पटियाला सूट में तनु बहुत अच्छी दिख रही थी, उसके कॉफी शॉप में आते ही जशनदीप ने उसकी अगवानी करते हुए कहा, 'आओ जी मालको, पता भी इंतज़ार करते करते 3 कॉफी पी चुका हूँ'
'ठीक है ठीक है कोई बात नही, अब फटाफट एक और पीयो मेरे साथ, मुझे वापस जल्दी जाना है'
'तुम एक काम करो, तुम निकलो यहां से कॉफी भिजवा देता हूँ पार्सल'
'हर समय गुस्सा क्यों होते रहते हो खड़ूस, अच्छा ठीक है 15 मिनट रुकूँगी पर प्लीज़ प्लीज प्लीज़ और रुकने की जिद मत करना'
जशनदीप हँसने लगा, तनु उसके मुस्कुराते चेहरे में खो गई। वो जिसे उससे कुछ भी कहने में शर्म आती थी आज उस पर हक जमाने लगा था, वो जो उसका दोस्त बन कर जिंदगी में आया था आज जिंदगी से बढ़कर मालूम होता था। ये दोस्ती, दोस्ती से बढ़कर वाले रिश्ते में बदलते बदलते बहुत सी सिम्पल मुलाक़ातें, गिफ्ट्स, टेलिकॉम कम्पनियों का रेवेन्यू बढ़ाऊ लम्बी लम्बी बातों का सफर तय कर चुकी थी। तनु ने कभी नही सोचा था की कोई उसके लिए इतना खास हो सकता है, एक डॉक्टर को तो वैसे भी कठोर दिल वाला होना चाहिए न जाने उसके दिल में इतना प्यार कैसे बचा रह गया और तो और कम्प्यूटर इंजीनियर से ? वाकई जोड़ियां रब्ब बना के भेजता है।
'अरे कहाँ खो गई यार, कॉफी खत्म करो अपनी' जशन ने कहा तो वो अपने सर पर हल्की चपत लगा कर मुस्कुरा दी। जशन फिर से मुस्कुराने लगा, तनु ने थोडा ऊपर देखा फिर सोचने लगी 'जिंदगी वाकई खूबसूरत है, थैंक्यू थैंक्यू थैंक्यू बाबा जी'
***
तनु गुस्से से हाथ इधर उधर पटक रही थी।
'क्या हुआ यार ?'
'यार फोन ही नहीं लग रहा, आउट ऑफ़ कवरेज आ रहा है'
'कहीं बाहर गया होगा यार'
'5 दिन हो गए लगातार यही टोन बज रही है' 😢
'किसी काम में बिजी होगा ना, खामखाँ टेंशन ना ले'
'अगर मैं एक बार फोन न उठाऊं तो वो आसमान सर पे उठा लेता है, और खुद का 5 दिन से कोई अता पता नही है'
'अच्छा तूने उसके दोस्त राजवीर से पता किया?'
'अभी उसके पास से ही आ रही हूँ, उसने बोला उसे भी नही पता।' 😢
'ओह, तब तो वाकई टेंशन की बात है, उसके घर चले ?'
'हाँ यार, लगता है जाना ही पड़ेगा'
थोड़ी ही देर में बड़े से महलनुमा घर के दरवाजे पर दस्तक दी, चौकीदार बाहर आया 'हाँ जी मेमशाब'
'वो जशन......'
'उ तो गोया मेमशाब, पोंच रोज हुई गोया।' उसकी बात पूरी होने से पहले ही चौकीदार बोला।
'पर कहाँ गया ?'
'बहार का मुलुक गोया मेमशाब, बोला उदर ई रेगा, उसका शादी भी है।'
'कौनसा मुल्क ? कोई नम्बर वम्बर तो होगा ही'
'उ शब हम नाइ जानता मेमशाब, हमको कोण नम्बर देगा'
'ओह शिट' तनु गिरते गिरते बची।
'संभाल अपने को यार' खुशदीप ने कहा।
तनु अब भी चकरा रही थी, बोली 'सब कुछ, सब कुछ गलत हो गया यार, सब कुछ गलत हो गया'😢
'कुछ नही होगा, तू घबरा मत'
'सब गलत हो गया यार, जस्ट गिव मी ए फेवर प्लीज़'
'हाँ बोल ना'
'यार मुझे एबॉर्शन करवाना है, आई ऍम हैविंग 3 मन्थ प्रेग्नेंसी, सब गलत हो गया यार, सब गलत हो गया, शिट शिट शिट, हुँह लव माय फुट'
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬
© अरुण

👬💏💑👼👪 लव आज्ज़कल ♠♠♠♠♠ .

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केमियाणा फरीदकोट दे कोल बसैया निक्का जा पिंड , सवेरे छी वजे, एन्ने सवेरे वी स्कूल ते कालज दे जवाका करके बस अड्डे ते चंगी भीड़भाड़ हो जांदी ए। वख वख कालजां दे कुडियां ते मुंडे अड अड टोलियां बनाके अपणी बस दी उडीक च खलोते सी।
तनु, तरनप्रीत कौर, मेडिकल दी स्टूडंट गुरु गोविन्द सिंह मेडिकल कालज च इंटर्नशिप होण करके, आज पैली वारी इस बस अड्डे ते खड़ी सी। केमियाणा च उसदी भेण रेंदी आ, जिने देन इंटर्नशिप चलु उने देन भेण कोल ला लूँ सोच के एस कालज दा ना दिता सी। अड्डे ते उसनु एदां लगदा पया सी जीवें सारे ओसी नु वेखी जांदे होण, संगदी सङ्गोंदी कुड़िया दे ग्रुप कोल जी जाके खड़ गई। कुडियां ने इक नज़र उठा के एस पिंड दे नवें चेहरे वल वेख्या पर फेर आवदी गला च मशगूल हो गियाँ।
तनु हदो वद सोणी नइं ते माड़ी वी नइँ सी वेखण च, साँवला ते गोल चेहरा, तिखा नक, वड्डी वड्डी कालीयां अखां , कुल मिला के चंगा लुक सी कुड़ी दा। थोड़ी देर च बस आई, भीड़ सी पर पंजाबी सभ्याचार वेखो 'ओ बाई जनानिया सवारियाँ नूं बैण देओ बई' भीड़ च इक्कोनाल कई अवाजां आइयाँ, एक मुंडा खड़ा हो गया ते तनु नु वी सीट मिलगी, उसनु सीट देण आळा मुंडा उसे दी सीट कोळ खड़ा रया। तनु चुपचाप बाहर वल वेख के सफर दे खत्म होण दा इंतेज़ार करण लग गई। 30 मिनटां बाद ओ अपणे स्टॉप ते उतरी उस दे नाळ होर वी कई सवारियाँ उतरियां तनु कोई ध्यान दिते बग़ैर अपने कालज वल तुरपई।
कॉलेज दे गेट कोळ ई ओसनु उसदी फ्रेंड खुशदीप मिळ गई , चंगा कालज सी उसदी शिफ्ट कदों खतम होइ कुश पता ही ना लगा, दुपेरे 2:30 व्जे वापसी दा रुख किता बस च एस वारी फेर भीड़ ही सी ज्यादातर स्टूडंट ही सी सवेरे वांगु, पर ओस लेई फेर तो इक सीट खाली हो गई। बैठदे वेले उसने कपड़ेयाँ तों नोटिस किता जिसने उसनु सीट दिती ओ ओही सवेरे आळा मुंडा इ सी वो। बैठदे बैठदे उसने हौली जी थैंक्यू बोल्या, मुंडे नाळ नजरां टकराईयां तां ओ वी मुस्कुरोण लग पया । तनु चुपचाप बार वेखण लगी। रोज आण जान होण लगा, तनु कली औंदी कली जांदी, ओ मुंडा उसनु हर दिन बस स्टैंड ते तैयार लब्दा , बिना मंगे ओनु सीट मिळ जांदी, होण जदो कदे मुंडा ओसनु वेख के मुस्कुरान्दा तां ओ वी स्माइल कर देंदी। एक देन तनु नु कालज चों आंदे आंदे पंज वजह गए बस अड्डे ते वेख्या याँ मुंडा हले वी बेचैन हो के ओथे ही गेडियां लाई जांदा सी। तनु नु वेख्या तां लग्या जीवें मरदे नु संजीवनी बूटी लब गई होवे खुश हो गिया। बस च ज्यादा भीड़ नही सी तनु चुपचाप इक सीट ते बै गई, नजर चुकी तां वेख्या देखा मुंडा ड्राईवर सीट कोळ बैठा उसे नु ही निहारी जा रिहा सी , तनु ने नजरां झुका लितियां। सोचण लगी कैहोजा पागल है रोज नाळ औंदा जांदा है पर कुज भी बोल नही सकदा 😊 । इक दिन सफर दे दौरान इक होर मुंडा जेड़ा उसी दे नाळ बैठ्या सी, ने उसनु सत श्री अकाल बोलके उसदा ना पुछ्या तां उसने बेझिझक दस ता।
मुंडा आखण लगा 'तरन जी, मेरे ओस दोस्त तों तां बोल्या वी नई जाणा एसलई मैं ही आख दिना, ओ थोडे नाळ फ्रेंडशिप करना चउन्दा है, जे थोनु कोई ऐतराज़ ना होवे तां।'
तनु नु हासा ओण लग पया, सोच्या 'अजीब नमूने टैप लोग ने दोस्ती लई वी मीडिएटर दी लोड़ पई जांदी वा ते एसनु वेखो 'जे थोनु ऐतराज ना होवे तां' 😊😊
बोली, ' दोस्त तां कोई वी किसे दा वी हो सकदा, इस च ऐना संगण आळी केड़ी गल है?'
मुंडा कहन लगा, 'ओजी ओ वो सिम्पल आळी नही जी, स्पेशल मेरा मतलब खास आळी गुड़ी दोस्ती करणी जे ओने थोडे नाळ'
'थोनु नई लगदा तुहाडा दोस्त कुज ज्यादा ओ अजीब है ? मेरा मतलब जिसदा ना वी मेनु नहीं पता ओसनु खास चाहिदी ए ? हद है सच्ची'
'आ वी सई है, चलो तुसी सिम्पल फ्रेंडशिप इ कर लवो'
😊😊😊
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'नइँ नइँ मेनु कुश नी पता, मैं कुज नइँ जाणदा, औणा मतलब औणा है'
'ओये यार जवाकां वांगु जैद ना करया कर तू, किवें आउंगी मैं, समझया कर ना'
'चंगा फेर ठीक है, हुण तो बाद कदे मेरे नाळ गल ना करीं'
'ल आ की गल होइ यार !? चल ठीक आ मैं कोशिश करांगी पर कोई प्रॉमिस नइँ है ओके'
(फोन ते होइ लम्बी कन्वर्सेशन तों बाद दे कुश आखिरी डाइलोग)
पटियाला सूट च तनु बहोत चंगी लग रही सी, उसदे कॉफी शॉप ते औंदे ही जश्न ने उसदी अगवानी करदे किहा, 'आओ जी मालको, पता वी है इंतज़ार करदे करदे 3 कॉफी पी चुका हाँ'
'ठीक है ठीक है कोई गल नइँ, हुण फटाफट एक होर पी मेरे नाळ, मेनू वापस छेती जाणा'
'तुम एक कम कर, तू जा एत्थो, तेरी कॉफी मैं मगरों घल दऊँ पार्सल'
'हर वेळे गुस्सा क्यों हुना ए खड़ूस जा, चंगा ठीक है 15 मिनट रुकांगी पर हुण प्लीज़ प्लीज प्लीज़ होर रोकण लई जिद ना करीं'
जशनदीप हसण लगा, तनु उसदे मुस्कुरोंदे चेहरे नु वेखदे वेखदे खो गई। ओ जिनु ओसनु कुज वी केंदे नु सङ्ग लगदी सी अज उसते हक जमौन लग पिया सी,ओ जेड़ा दोस्त बण के उसदी जिंदगी च आया सी अज जिंदगी तो वध लग रिहा सी। ओ दोस्ती, दोस्ती तो वध आळे रिश्ते च बदलदे बदलदे बहोत सारियां सिम्पल मुलाक़ातां, गिफ्ट्स, टेलिकॉम कम्पनियों दा रेवेन्यू वधोण आळी लमिया लमिया गलां च गुजरदियां रातां दा सफर तय कर चुकी सी। तनु ने कदे नइँ सोच्या सी के कोई उस लई वी इन्ना खास हो सकदा है, इक डॉक्टर नु तां वैसे वी पक्के दिल आळा होणा चाहिदा पता नइँ किवें उसदे दिल च इन्ना प्यार बच्या रह गि होर ते होर ओ वी कम्प्यूटर इंजीनियर नाळ ? वाकई जोड़ियां रब्ब बना के घलदा है।
'ओये कित्थे खो गी यार, कॉफी खत्म कर अपणी' जशन ने किहा तां ओ अपणे सिर ते हल्की चपत लगा के स्माइल करण लग पई। जशन वी मुस्कुराण लग पया, तनु ने थोडा उते वेख्या फेर सोचण लग पई 'जिंदगी वाकई बहोत सोणी चीज हुंदी आ , थैंक्यू थैंक्यू थैंक्यू बाबा जी'
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तनु गुस्से नाळ हाथ एदर ओदर सुट रही सी।
'की होया यार ?'
'यार फोन ई नइँ लगी जांदा, आउट ऑफ़ कवरेज आई जांदा ए'
'किते बार गया होणा यार'
'5 दिन हो गए लगातार एहो ट्यून वजी जांदी आ' 😢
'किसी कम च बिजी होणा ना, खामखाँ टेंशन ना ल'
' जे मैं इक वारी फोन ना चुका तां ओ असमान सिर ते चुक लेंदा अ, ते खुद डा 5 दिन तो कोई अता पता नइँ'
'अच्छा तू उसदे दोस्त राजवीर तो पता किता ?'
' हुणे उसदे कोळ तो ई आई हाँ केंदा उसनु वी कुश नी पता।' 😢
'ओह, फेर तां वाकई टेंशन आळी गल अ यार, उसदे घर चलिए ?'
'हाँ यार, लगदा जाणा ई पेणा'
थोड़ी देर च वडे जेहे महलनुमा घर दे मेन दरवाजे ते दस्तक दिती,
चौकीदार बाहर आया 'हाँ जी मेमशाब'
'ओ जशन......'
'उ तो गोया मेमशाब, पोंच रोज हुई गोया।' उसदी गल पूरी होण तो पेला ई चौकीदार बोल पया।
'पर कित्थे गया ?'
'बहार का मुलुक गोया मेमशाब, बोला उदर ई रेगा, उदर व्याह है उसका'
'केड़ा मुल्क ? कोई नम्बर वम्बर तां होणा ओथो दा'
'उ शब हम नाइ जानता मेमशाब, हमको कोण नम्बर देगा'
'ओह शिट' तनु डिगदे डिगदे बची।
'संभाल अपणे नु यार' खुशदीप ने किहा।
तनु हले वी चकरा रही सी, बोली 'सारा कुश, सारा कुश गल्त हो गया यार, सारा कुश गल्त हो गया'😢
'कुज नइँ होणा, तू घबरा ना'
'सारा गल्त हो गया यार, जस्ट गिव मी ए फेवर प्लीज़'
'हाँ बोल ना'
'यार मैं एबॉर्शन करोणा, आई ऍम हैविंग 3 मन्थ प्रेग्नेंसी,सारा कुश गल्त हो गया यार, सारा गल्त हो गया, शिट शिट शिट , हुँह लव माय फुट'
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© अरुण

🅱➕ बी पॉजीटिव यार... ♠♠♠♠

ओ हैलो !! कुछ और समझने की कोई जरुरत नहीं है, मैं आपको अपना ब्लड ग्रुप नहीं बता रहा हूँ ओके..कभी तो मुझे सीरियसली लिया करो यार.. मैं सकारात्मक सोच की बात कर रहा हूँ.. ये भी सचमुच बड़े कमाल की चीज है. अहम अहम 😊😊😊 थोड़ा टिपिकल होकर बात करें.? हमारे कार्यों की सफलता हमारी मानसिक स्थिति पर आधारित होती है, स्वयं महामना विवेकानंद जी का भी यह कथन है कि ' निराशाजन्य सोच सर्वदा असफलताओं का ही पोषण करती है..!!'
डोज कुछ ज्यादा तो नहीं हो गई न..? नहीं ? तो लीजिए आगे सुनिए मेरे एक मित्र है घसीटाराम.. अब भगवान ने नाम की तरह ही सोच भी दे दी बेचारे को घिसी हुई।
एक दिन मेरे पास आकर कहने लगे कि यार ये दुनिया बड़ी ज़ालिम है, हमऩे पूछा 'अरे भई ! अब क्या हो गया?'
बोला 'क्या बताए, क्या छुपाएं अरुण भाई'
हमने कहा कि 'अबे कुछ बोलोगे भी कॉकरॉच की दुम' 😬
तो बोला , 'सब के सब मतलबी लोग है, पड़ोस का छद्मीलाल वैसे तो बड़ा हिमायती बनता है आज उससे उसकी गर्लफ्रेंड का नम्बर मांगा था कमबख्त साफ मुकर गया, कहता है ये भी कोई बाँटने की चीज है, बड़ा आया फिलॉसोफर मेरा समोसा खाया तब तो याद नहीं आया तब तो फोकट में बड़े चटखारे ले ले कर खींसे निपोर रहा था..आज हम जान गये है भईया ये दुनिया मुझ जैसे अच्छे लोगों के लिए बनी ही नहीं है.ये सोच के आपके पास आया हूँ कि आपसे कह दूँगा तो दुख थोड़ा हल्का हो जाएगा 😢😢
मुझे उसकी रोनी सुरत देख कर तरस नहीं हंसी आ रही थी. 😊😊 मैंनें कहा 'पोपट प्यारे सुन,पहले तो थोबड़े की घड़ी का टाइम ठीक कर, और ये बता चिलगोजे के छिलके के तू छद्मी के पटोले को ५ रुपये का माल समझता है क्या? जो वो तुझे तेरे बासी समोसे के बदले में गिफ्ट कर दे? अबे बासी कढ़ी के फफूंद लगे पकोड़े ,तू कोई और जुगाड़ तलाश ले ना' 😤
मेरी बात सुनकर उसकी आँखों में थोड़ी चमक आई पर फिर से मायूस होकर बोला, पर भईया मुझे कोई लड़की भाव ही नहीं देती।
तो मैंनें कहा 'पोपट प्यारे, तेरे ये चमेली चुपड़े बालों को देखकर तो मैं भी तुझे भाव न दूँ, कोई लड़की क्यूँ देगी? '
बेचारे का मुँह और ज्यादा लटक गया 😢😢😢😢😖😖😖 अब तो मुझे भी उस पर तरस आ गया।
मैंनें कहा 'फिक्र नॉट प्यारे अब जब गलती से तुझे दोस्त
बोल ही दिया है तो दोस्त के लिए कुछ न कुछ करना तो पड़ेगा ही । तो बंधु पहले अपना हुलिया थोड़ा सुधार, आजकल जो दिखता है वही बिकता है, अरे जब शोरुम तबेले जैसा बनाओगे तो गोबर ही तो मिलेगा ना'
घसीटा मुझे बड़े ध्यान से सुन रहा था।
अचानक बोला तो अब मैं करुँ क्या?
मैं बोले जा रहा था, 'प्यारे थोड़े मॉर्डन बन जाओ थोड़े मॉर्डन दिखो, खुबसुरत लग, किसी लड़की को टार्गेट बऩा, वेलेंटाईन डे का वेट भूल के भी मत करना,वो तो वैसे भी तुझ जैसे छिछोरों की हजामत का दिन है। '
वो बोला "हाँ पिछली बार भी इस दिन मुझे लेडी पुलिस ने खूब धोया था।"
हमने कहा कि 'पार्टनर , अपुन कभी गलत सलाह नहीं देते किसी को, फिर तू तो अपऩा इच् पंटर है, तो बेटा लड़की के सामने छिछोरापन मत देखाईयो, खुबसुरत लड़की को खुबसुरत फूल दे, मीठी लड़की को चॉकलेट दे..पर प्यार से, और ......अकेले में!!'
उसने मुझे टोका 'अकेले में क्यूँ?'
मैंनें कहा के 'अबे गधे कभी तो इस तरबूज का इस्तेमाल किया कर जो भगवान ने तेरे कंधों के बीच रख छोड़ा है 😬😬😬😬 अबे प्राइवेसी भी तो कोई चीज है यार और मान लो अगर वो लड़की तेरी धुनाई भी कर दे तो किसी को पता भी नहीं लगेगा कि तू पिट के आया हैं, कुछ फिल्में विल्में देख, ईस्टाइल विस्टाइल सीख..ओके..??
ओके!!!
घसीटा भी इतने आत्मविश्वास से बोला तो लगा
कि पट्ठे को बात जम गई।
कई दिन बाद छद्मी मिला रोनी सुरत लिए
😢😢😢😢
हमनें पूछा कि 'प्यारे क्या हुआ?'
वो बोला 'न जाने घसीटा को अचानक क्या हुआ है, एकदम बदल गया है, बिलकुल हीरो लगता है।'
हम बोले ,"बोले तो एकदम रजनीकांत की तरह?"
वो बोला , "इग्जेक्टली,आपको कैसे पता?" उसने शकी ऩजर से मुझे देखा
😎😎😎😎
मैंनें कहा ' अरे तुम्हारी बातें सुनकर तुक्का मारा था'
वो बोला 'भईया पता नहीं कहाँ से पट्टी पढ़ कर आया है, नालायक नें मेरी इकलौती 'आईटम' पर ही हाथ साफ कर दिया, सुना है ४-५ और भी पटा रखी है '
😥😥😩😟😨😞
बोला कि 'घसीटा में इतनी हिम्मत नहीं हो सकती जरुर ये किसी और की खुराफात है, मुझे पता चल गया न तो मैं उसकी हड्डी पसली एक कर कर दूंगा'
कहकर उसने मुझे ..घूरा.।
मैंनें झेंप कर कहा, 'अरे छद्मी यार मुझे काम याद आ गया मुझे जाऩा है'
जाते जाते मैंने मुड़कर देखा तब भी वो मुझे घूर रहा था। घर आकर सोचा कि घसीटा को फोन कर के पूछूँ के छद्भी की आईटम क्यों उड़ाई? फोन किया तो आवाज आई
"हैलो हू'ज दिस?"
हमने कहा हम तुम्हारे अरुण भइया बोल रहे है, उसने कहा आई डोंट नो एनी पर्सन ऑफ़ दिस नेम,और फ़ोन काट दिया 😭😭😭😭😭
अब तो हमने माथा पकड़ लिया। लगता है घसीटा कुछ ज्यादा ही सकारात्मक हो गया था।😱😱😱😱😱
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬
‪#‎पुरानीपोस्ट‬

(राजस्थानी से हिंदी में) अनूदित पोस्ट

एकबार मेरी साली ने 👸 मुझे फोन किया कि , जीजाजी अब की बार खेत में खरपतवार बहुत है ...आप दो चार दिन काम करवा देना न पिलीज और ककड़ी तरबूज 🍉भी खा लेना !
तरबूज 🍉 का नाम आते ही मेरे मन में उमंगे धिनचक धिनचक डांस करने लगी 😋! पर फिर भी खरपतवार कौन उखड़ेगा भला?? मेरा तो पानी का लोटा भरने का भी कभी मन नही करता !
👶 टोरू की माँ बोली कि जाना तो पड़ेगा ....मेरी बहन कौनसा रोज काम के लिए कहती है ?.....चुपचाप जा कर काम करवा कर आ जाइए !
अब कोई चारा भी तो नही बचा .... मैं दूसरे दिन तैयार हो गया !
टोरू की माँ बोली कि ,
"वहाँ इंसानों की तरह रहना .... यहाँ की तरह आठ आठ रोटी।मत ठूसना और सुबह उठ कर ढंग से नहा धो लेना ओके... अगर मेरी बहन की कोई भी कम्प्लेन आई ना तो खोपड़ी से बचे खुचे बाल भी उखाड़ लूंगी."😳
मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और ऊँट 🐪पर बैठ गया !
शाम के वक़्त साढू के घर जा पहुंचा....वहां मेरी खूब खातिरदारी हुई ... चूरमा और टिंडे की सब्ज़ी ...साथ ही मस्त मलाईदार दही मने बढ़िया भोजन करवाया !!
फिर मैंने थोड़ी देर अल्ला जिल्ला बाई की मांड गायकी 🎵 का लुत्फ़ उठाया और सो गया !!
सुबह जल्दी ही हम सब नहा धो कर खेत पहुँच गए और खरपतवार उखाडूं मिशन में जुट गए !!
अब भाइयो मेरा हाल तो ऐसा हो गया मानो....किसी ने नई नवेली गधी पर बीस मन बाजरी लाद दी हो !!😩😫😱
हे मोरे कन्हैया, हे दया निधान, कब यूँ दिन ढलेगा और कब मेरा पीछा छूटेगा !!
दोपहर हुई तो मेरी साली बोली कि....जीजाजी रोटी 🍪खा लो !!
मुझे भूख तो इत्ती जबरदस्त लग रही थी की कच्ची बाजरी का फाल चबा जाऊँ ....पर रिश्तेदारी थी और इज्जत का कचरा थोड़े न करवाना था !!
खैर , मैं और मेरा साढू खाने पर बैठे !
खाने में बाजरे की मस्त रोटियाँ, बिलकुल घी से तर और मटकाचर की चटनी !!
मेरी साली ने मुझे चार रोटियाँ दी और बोली -
"दीदी का मैसेज आया है कि ... तुम्हारे जीजाजी बस चार रोटी ही खाते हैं, उन्होंने नियम बना रखा है "
'अरे तेरा भला हो, शैतान औरत....और ये मोबाइल धोबाईल 📱और कुछ नही हैं बस मेरे जैसे बेचारों की मौत का सामान हैं !!
दस रोटी की भूख है और चार से संतोष करना पड़ रहा है 😢😢....ये चार तो बेचारी मेरे दांतो में ही चिपक कर रह जाएंगी ?? पेट में क्या घन्टा जाएगा !!
पर कोई उपाय नही था भाई लोग ...मैं चार रोटी ठुसी और ऊपर एक लोटा पानी पी लिया !!
जैसे ही मैंने लोटा खाली किया ...मेरी साली रोने लगी !
मैं बोला- अरे आप क्यों रोने लगे?
मेरी साली बोली कि, अब तो आप मरने वाले हो ?
- क्यों ??
- क्योंकि आपने जहर पी लिया !
मैंने कहा- क्यों ...पानी में जहर डाल रखा था ?
मेरी साली बोली -
"पानी में जहर नहीं था , पर टीवी पर बाबा रामदेव कह रहे थे ...खाने से पहले पानी पीयो तो अमृत और... खाने के बीच में पीयो तो दवा ...और खाने के तुरन्त बाद पानी पीयो तो जहर ...और आपने तो रोटी खाते ही पानी पीया है "
अब भाइयो मेरा दिमाग चल गया....मैंने कहा-
"अच्छा.... अगर पानी को बीच में ले आया जाए तो, तब तो नही मरूँगा ना ?"
मेरी साली बोली - अब भला बीच में कैसे लाओगे ?
मैंने कहा - आप चार रोटी और पकड़ाइये !😎
मेरी साली ने मुझे चार रोटी और दे दी...
मैंने वो चार रोटी भी फटाफट ठूस ली ,मेरा पेट ऑलमोस्ट भर गया, पर बाय गॉड आत्मा तृप्त हो गई !
मेरी साली भी खुश हो गई और बोली -
"जीजाजी का दिमाग बहुत तेज चलता है 😎...दीदी बड़े भाग्यवाली है तभी तो ऐसा👌 वर मिला है !! 😂😂😂😂

साळी घरां जीमण

ऐकर मेरी साळी 👸 मनै फोन करयो कै , जीजोजी अबकै नींनाण भोत तकड़ो है ...थे दो च्यार दिन काम भी करवा देया और काचर मतीरा 🍉भी खा लेया !
मतीरां 🍉गो नाम आँता पाण मेरै काळज्यैमें खरखरी माच गी 😋! फेर कुण नीनाण काढै ?? मेरो तो लोटो छलतै गो भी जीधोरो हुवै !
👶 टोरू गी माँ बोली कै जाणो तो पड़सी ....मेरी बहन के रोजगो काम उढ़ावै ?.....चुपचाप जा गे नीनाण कढा गे आ ज्यावो !
अबै कोई चारो कोनी हो .... मैं दूसरै दिन तैयार हुग्यो !
टोरू गी माँ बोली कै ,
"बठै मिनखां दायीं रहणो है ....अठै खावो ज्यूँ आठ -आठ रोट कोनी खाणा और सुबह उठ गे स्नान कर लेया चोखी तरियां .....जे मेरी बहन गी कोई कंप्लेन आ गी तो ,भांपण बाळ दयुं ली "😳
मैं नस हला दी और ऊँट 🐪पर बैठ ग्यो !
शाम गै टेम मैं साढू गै घरै पुग्यो ....बठै मेरी आछी मनुवार हुई ... चूरमो और टिंडसी गो साग ...सागै चोखो मळाईदार दही गो जीमण जीमायो !!
फेर थोड़सी देर मैं इललाजिल्लाबाई गी राग🎵 मांढ सुणी और सो ग्यो !!
दिनुगै नहा गे म्है सगळा खेत ऊठग्या और नीनाण में लाग ग्या !!
अबै भायड़ो मेरो तो हाल इस्यो हुग्यो जाणै ....कणी कमरी सांढ पर बीस मण बाजरी लाद दी है !!😩😫😱
हे सांवरा, कद दिन छिपै और कद लारो छुटै !!
दोफार हुग्या जणा मेरी साळी बोली कै ....जीजोजी रोटी 🍪खा ल्यो !!
मनै भूख तो इसी लाग री ही कै खड्यो ही सीटी चाब ज्याऊं ....पण सगा परसंग्या में इज्जत गी तूड़ी भी तो कोनी कुटाणी !!
खैर , मैं और मेरो साढू जीमण बैठ ग्या !
जीमण में काँगरीया रोटिया घी में गलगच और मटकाचर गी चटणी !!
मेरी साळी मनै च्यार काँगरीया रोटिया दिया और बोली -
"बाई गो मैसेज आयो कै... तेरा जीजोजी सिरफ़ च्यार ही रोटी खावै ओ बांगो नेम है "
तेरा भला हुवै तेरा ....ओ मोबाइल धोबाईल 📱कोनी ....आ है मिनखां गी मौत !!
दस रोटी गी भूख है और च्यार स्युं संतोष करणो पड़सी .....ऐ च्यार रोटिया तो मेरै जाड़ गै चिपजी ?? पेट में के तंबूरो जासी !!
कोई उपाय कोनी हो भायड़ो ...मैं च्यार रोट खाया और ऊपर एक लोटो पाणी पी लियो !!
जियांहि मैं लोटो खाली करयो ...मेरी साळी रोवण लाग गी !
मैं बोल्यो - अरै थे क्यूँ रोवो ?
मेरी साळी बोली कै , थे अब मरस्यो ?
- क्यों ??
- क्यूंकै थे जहर पी लियो !
मैं बोल्यो - क्यों ...पाणी में जहर हो गे ?
मेरी साळी बोली -
"पाणी में जहर कोनी हो , पर टीवी पर बाबो रामदेव कवै कै ...खाणै स्युं पैली पाणी पीवै तो अमृत और... खाणै गै बीच में पीवै तो दुवाई ...और खाणै गै तुरंत बाद पाणी पीवै तो जहर ...और थे तो रोटी खांता पाण पाणी पीयो है "
अबै भायड़ो मेरो दिमाग चालग्यो ....मैं बोल्यो -
"आछ्या .... पाणी नै जे बीच में ल्या दियो जावै ,जद तो कोनी मरुँ ?"
मेरी साळी बोली - बीच में कियां ल्यासो ?
मैं बोल्यो - थे च्यार रोट और झलाओ !😎
मेरी साळी मनै च्यार रोट और दे दिया ...
मैं च्यार रोट और उगाळ लिया ,मेरो पेट तिरपत हुग्यो !

मेरी साळी भी खुश हगी और बोली -
"जीजोजी गो दिमाग भोत तेज चालै 😎...बाई भजगे आयेड़ी है जणा इस्यो👌बर मिल्यो है !!
वाया व्हाट्सएप्प

👫👬💏💑👼👪 अनूदित कथा (प्रेम कहानी) ♠♠♠♠♠


 .
'क्या नाम है तुम्हारा' सभी लड़को से परिचय प्राप्त करते गुरूजी ने एक लड़के से पूछा।
'धनिया'
नाम सुनकर क्लास के सभी लड़के एक साथ हंसने लगे।
गुरुजी भी मुस्कुराए और बोले, ' तुम धनिया हो वो तो ठीक है, पर यहाँ जरा ध्यान से रहना, यहाँ के लड़के बहुत शरारती हैं, कहीं तड़का न लगवा लेना'
लड़को ने फिर से खीखी करना शुरू किया तो गुरूजी ने डपट दिया, फिर पढ़ाने लगे।
धनिया आधुनिक मोगली था मने बस कपड़े पहन कर बोल सकने वाला जानवर, खेत में एक ढाणी में रहता था जहां बिजली भी नही पहुंची थी, ढाणी के पास के प्राइमरी स्कूल में पढ़ा पर अब आगे पढ़ने के लिए मेरे शहर आना पड़ा, मुझे याद भी नही कब वो मेरा दोस्त भी बन गया, जब भी घर आता तो बिजली से चलने वाले उपकरणों को बड़ी अजीब तरह से निहारता खुश होता। टीवी उसके लिए किसी अजूबे से कम न रहा होगा, टीवी चलता देख विचार करता कि 'इतने चलते फिरते इंसान छोटे से बक्से में क्यों घुसे'।
कहते हैं संगति का असर जरूर होता है, धीरे धीरे अब धनिया भी सब सीख रहा था, खैर अब तक ढाणी से स्कूल किसी तरह साईकिल घसीटते आ जाया करता पर जब कॉलेज का समय आया तो मुझे और उसे दोनों को बाहर निकलना पड़ा, बड़े शहर में पहुँच हॉस्टल में कमरा किराये पर लिया और हम सब कुछ इस तरह पढ़ाई में जुटे मानो अब तो आई ए एस से कम कुछ भी स्वीकार न करेंगे। होस्टल के कमरे के ठीक सामने एक ब्यूटी पार्लर था, सुंदर सुंदर महिलाएँ और कमसिन लड़कियों का दिनभर वहाँ आवागमन लगा रहता। और हॉस्टल के लड़के तो यूँ भी अपनी शराफत के लिए पुरे शहर में वर्ल्ड फेमस होते हैं, सुबह हो या शाम दीदार ए यार के चक्कर में दरवज़े पर ही खड़े मिलते। हॉस्टल वार्डन खूब शोर मचाता, कुछ देर शोर का असर भी रहता पर थोड़ी ही देर में, वही घोड़े और वही मैदान।
बेचारा धनिया सबसे अलग और सबसे शरीफ था, लड़कीबाज़ी से कोसों दूर, या तो पढ़ाई करता या नींद में टुन्न हो पड़ा रहता। एक दिन हॉस्टल के लड़के हमेशा की तरह गेट पर खड़े किसी रूह आफ़ज़ा का दर्शनलाभ ले रहे थे कि अचानक धनिया भी बाहर आया, बस बनियान और टॉवल में, लड़कों ने घुड़क दिया अबे ये क्या कर रहा है, कम से कम कपड़े तो पहन लेता। धनिया कुछ न बोला, अंदर गया और मैला कुचैला सा कमीज पायजामा अटका कर बाहर आ गया। लड़कों ने सोचा, अब कौन समझाये, क्यों माथा पच्ची करें, भाड़ में जाने दो हमे क्या। उस दिन के बाद कभी कभार धनिया भी बाहर गेट पर खड़ा हो जाता।
एक दिन दोपहर को मुझसे कहने लगा, 'यार एक बात बोलूँ अगर तू किसी को बोले नही तो।'
मैंने कहा, 'बोल भाई'
वो बोला,'सामने जो ब्यूटी पार्लर वाले हैं न, उनके यहाँ एक लड़की है'
'तो, उसने तुम्हारा क्या खाया'
'अरे खाया वाया कुछ नही, पर मुझे वो बहुत...... बहुत अच्छी लगती है।'
'भाई तेरा दिमाग तो ठिकाने पर है ना? शक्ल भी देखी है उसकी? तुझे कोई और नही बस वही मिली? भईये पढ़ले वही ठीक रहेगा तेरे लिए, घर वालों को पता लग गया न तो ये अच्छा लगना एक मिनट में गन्दा लगने में बदल जाएगा, और मार पड़ेगी सो अलग।'
'क्या यार, तू कैसा दोस्त है, मेरी हिम्मत बढाने की जगह डरा रहा है। :( '
'यार मैं तो सिर्फ सच कह रहा हूँ, बाकी तू बता दे क्या चाहता है'
'मुझे बस उसे अपनी फ्रेंड बनाना है।'
'हाँ बस इसी की कसर बाक़ी थी, सुना था कि दिल आया गधी पर तो परी क्या चीज है, आज देख भी लिया, चल तू कहता है तो फिर देखते हैं'
ब्यूटी पार्लर वालों के घर में एक छोटा लड़का था, नाम था साहिल, हमने उसे अपना दोस्त बनाया, थोड़ी इधर उधर की बाते करने के बाद कुरेदा तो पता लगा, वो उसके ताऊ जी की लड़की है और नाम है शिल्पा।
धनिया को बताया तो नाम सुनकर ही इतना खुश हुआ मानो उसका लग्न ही पक्का हो गया हो। शिल्पा के पूरे दिन का शेड्यूल उसके सामने रख दिया, कब आती है कब जाती है, कहाँ जाती है किसके साथ जाती है इत्यादि इत्यादि, सब कुछ। ले भइये कर ले जो तीन तेरह करना है।
धनिया रोज अपनी रूखी बेजान जुल्फे संवार चुपड़ मने खूबसूरत बनने की फुल ऑन टीराई कर शिल्पा के पीछे पीछे जाता, और वैसे ही मुँह उठा के वापस भी आ जाता। कई बार कहा भाई यूँ टाइम वेस्ट करने का कोई मतलब नहीं बनता, जो कुछ दिल में है, जो कहना है उससे बोल दे जा कर, तुझसे नही कहा जाता तो मैं बोल देता हूँ, या तो गाडी इस पार या उस पार। बोलता नही यार मैं खुद ही बोलूँगा, रोज उसके पीछे जाते वक़्त कह कर जाता,' आज तो पक्का फाइनल बात कर ही लूंगा' पर ढ़ाक के वही तीन पात। उससे कुछ कहा न गया, पता नही शिल्पा के सामने जबान तालु से क्यों चिपक जाया करती थी। रोज उसी के गीत गाता, वो ऐसी है वो वैसी है, हमने बहुत कोशिश की पर धनिया उसे घर से स्कूल, स्कूल से घर पहुंचाने से आगे बढ़ ही नही पाया, शिल्पा जब फर्स्ट इयर में हुई तो उसके घरवालो ने उसकी शादी कर दी, धनिया बहुत रोया पर अब रोने बिलखने और पछताने से क्या होता,आखिर रोते रोते आँसू सुख गए, और बैचैन मन ने भी कटु यथार्थ स्वीकार कर लिया , समय गुजरा और धनिया स्नातक हो गया।
3 साल शहर में रहने से धनिया पूरा शहरी हो गया, उसे देख कर अब कोई अनुमान भी न लगा सकता था कि ये भी कभी गवारों की गिनती में आता था। किस्मत ने और भी साथ दिया और धनिया दिल्ली मेट्रो में श्री धनुष श्रीवास्तव बन स्टेशन कंट्रोलर के पद पर नियुक्त हुआ। वो धनिया जिसे ठीक से हिंदी लिखना, पढ़ना भी न आता था, अब वो फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता, सब कहते यार अब तो तेरी लाइफ सेट है शादी वादी कब करवा रहा है। वो सुनता मुस्कुराभर देता फिर इधर उधर की बाते कर अपनी शादी की बात गोल कर जाता, 3 साल और गुजरे एक दिन फोन आया, धनिया ही था, अंग्रेजी में बात की, बोला तुझे वो शिल्पा याद है ?
'कौन शिल्पा!? अरे हाँ यार, पर आज अचानक फिर से ये शिल्पा...........,? '
'यार फिर से कहाँ, मैंने तो उसके अलावा कभी किसी के बारे में सोचा ही नही, तुझे पता है उसके बारे में कुछ ?'
'नहीं यार, क्यूँ?, अब उसके बारे में जान कर करना ही क्या है?'
'यार एक साल हो गया उसके पति का एक दुर्घटना में देहांत हो गया'
'ओह सैड यार, ये तो........, अभी उम्र ही क्या है बेचारी की, वैसे तुझे ये सब किसने बताया'
'साहिल ने, वो दिल्ली में ही छोटा मोटा काम करता है अब'
''ओह अच्छा''
''यार एक बात और भी बतानी थी तुझे, परसों तुझे दिल्ली आना है विद फ़ेमिली, वो क्या है ना कि मेरी शादी है"
"हैं?"
"हाँ, मेरी शिल्पा के साथ"
"अबे ये सब कब किया यार😊" मेरा मुँह आश्चर्य और हर्ष से खुल गया। 😱😀😂
"लम्बी कहानी है, शार्ट में बस ये समझ की मैंने उसके घरवालों को कन्विंस कर लिया, शिल्पा भी मुझे पसन्द करती है, हमेशा से,सब ठीक हो गया यार, भगवान के घर देर है अंधेर नहीं, चल बाद में बात करते हैं" कह कर उसने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
मेरी आँखों में धनिये की पूरी कहानी एक पल में फिर से दौड़ गई, मैं सोचने लगा पट्ठा देर से आया पर दुरस्त आया, आज अचानक मेरी नजरों में धनिया सभी प्रेम कहानियों के नायकों से ऊँचा उठ गया था।
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬
©अरुणिम कथा

👫👬💏💑👼👪 परेम काहणी ♠♠♠♠

'कईं नाउँ है रे थारो' सगळा छोरा ऊँ इंट्रोडक्शन करतां गुरजी नुएं आयोड़े छोरे न पूछ्यो।
'धनियों'
नाँव सुण क्लास मायंला टींगर दांत काडण लाग्या।
गुरजी बी मुळक्या अर बोल्या, ' धनियों ह जकी तो चोखी बात ह, सावळ रेई लाडी, अठ रा टींगर अळबादी घणा ह, कठे छमको लगवा ल्यलो'
टिंगरा री खिड़ खिड़ पाछी सुरु हुगी तो गुरजी झिड़क र पछ पडाण लागग्या।
धनियों रोई रो जिनावर हो, खेत म ढाणी हुंती ना लाइट ना बात, ढाणी सारे प्राइमरी स्कूल म पढ़तो पण अब सहर आवणो पड्यो, मन याद नई पड़े कद म्हार साग बेलिचारो घाल लिओ, घरां आवंतो लाइट ऊँ चालण आळी चीजां देख देख र राजी होंतो। टीवी कानी अणसेंदो ऊंट झांके ज्यूँ झाँकतो, टीवी म चालता फिरता मिनख देख 'ई डबिये म माया कियां' ओ बिचार करतो।
केया करह् संगती रो फळ जरूर मिले, धीरह् धीरह् धनियो आदमी बणन लाग गयो, अब तक ढाणी उ स्कूल साईकिलड़ी ठलड़तो आ ज्यावन्तो पण कॉलेज रो टेम आयो तो बारे जाणो पड्यो, बडे सहर पूग्या कमरो किराये लिओ हैंर म्हे सारा पडेसरि बणग्या जाणे लाई अब तो ए कलेक्टर बण्या बिन सार ई कोनी। होस्टल र कमरे र सामो साम एक बुटी पार्लर हो, फूठरी फूठरी लुगायां र काची छोरलड्यां और फूठरी हूण न बठे आंवती। होस्टल रा टिंगरा न तो थे जाणो किस्साक भलामानस हुव, दीनग आथण बारणै मायाँ खड्या लाधता। होस्टल वार्डन रोळा करतौ पण बांदर कोम सुधरया करे के, बेइ घोड़ा बेइ मदान।
धनियों बापड़ो सगळा उ न्यारो र सुधो हो, का तो पढ़तो का नींदा म घूक पड्यो रेंवतो। एक दिन होस्टल रा टींगर गेट सामी खड्या आँख्या ताती करा हा क ओ बीन बी बारे आयो, बनियान पेरयोड़ी र तोलीयो लपेटयाँ, टिंगरा झिड़कयो अर बेटी रा बाप, इयां के करह् , सावळ पूर पेर लिया कर लाडी। धनियों की कोनी बोल्यो, पाछो मा गयो र चोळो पजामो अड़ा र बारे आ गयो। टिंगरा सोच्यो कुण इन अकल देव घरुं खा र, बळण दयो नी। बी दिन बाद धनियो भी कदे कदे बारे खड्यो हो जांवतो।
एक दिन दोफारे मन केण लाग्यो 'यार एक बात केउँ किनी केइ ना।'
म किओ, 'बोल भाई'
बोल्यो,'सामले बुटी पार्लर आळा र छोरी है'
'जको, थारो कईं खाव'
'अर खाव तो कीं कोनी, पर मन बा चोखी घणी लाग'
'भाया थारो राम निकळग्यो के? राफा तो दो बिगा म पड़ी ह बीरी, और कोई लादी कोनी तन, भाया पढ़ले सावळ रेसी, घर आळा न ठा पड़ गयो नी, तो चोखो लागणो हो जासी भेळो, अर जूत पड़सी जका न्यारा।'
'के यार, तू तो क्यांरो दोस्त है, इयां तो कोनी क कोई जी न सुआवंती बात केवां, उल्टो डरावे और है'
'यार म तो साचली केउँ,बाकी तू बता द के चावे'
'मन फ्रेंड बनावणी ह बिन'
'फुटग्या रे कर्मडा, सुणी ही दिल आयो गदी पर तो परी कईं चीज है, आज देख भी लिओ, चल देखां दिखाण'
बुटी पार्लर आळा र एक छोरो हो साइल (साहिल) नाँव रो, म्हे बिन भायलो बणायो, थोड़ो इन्ने उन्ने री बातां कर कुचरयो तो ठा पड्यो क टिंगरी रो नाँव शिल्पा ह।
धनिये न बतायो तो नाँव सुण इयां राजी हुयो जाण लाइ रो ब्याव मांड दियो। शिल्पा रो पुरे दिन रो शेड्यूल ला अर झला दियो , कद आव कद जाव, कठ जाव किरे सागे जाव, सो कीं। ल भाया कर ले अब कीं खाँगी करह् तो।
धनियो रोज झींटिया सुळजा बुगी बा शिल्पा र लारे जावंतो, अर बियां ई बाको बा अर पाछो आ जांतो। कई बार कियो, भाया इयां टाइम तो खोटी कर ना, जको कीं केणो ह केर बात सलटा। का तो इन र का बिन। रोज जावंता केर जांतो क,' आज तो पक्का बात फाइनल कर आस्युं' पण ढ़ाक रा बेइ तीन पत्ता। बिउँ कीं कोनी केइजतो। रोजीने सिलपा रा गीत गावन्तो, बा इयां बा बियां, म्हे घणो ई ताण मारयो पण धनियो तो बिन स्कूल उ घर, घर उ स्कूल पुगावण म ई रियो, शिल्पा न फर्स्ट इयर म ही परणा दी, धनियो अरडायो घणो पण अब पछताया कईं हुव, रोवन्ता बिलखता जी धपा लियो टाइम गुजरयो अर धनियो खुद कॉलेज पार करग्यो।
3 साल सहर ने रेवता धनियों रेण सेण सो कीं सीख गयो, अब बिन देख र कोई कोनी के सकतो के ओ छोरो बी कदे गाँव री बूच हो। भाग जोर मारयो तो दिल्ली मेट्रो म स्टेशन कंट्रोलर लाग गयो,धनियो जके न सावळ हिंदी कोणी आंती बो फर्राटे ऊँ अंग्रेजी बोलतो, सगळा केंता यार अब तो सेट हुग्यो ब्यावड़ो मंडा ल, बो आडी बाता कर बात आई गई कर देंतो, 3 साल और हुग्या एक दिन फोन आयो, धनियो ही हो, अंग्रेजी म बोल्यो, यार शिल्पा याद ह के?
'किसी सिलपा? अर हाँ रे, कियां आज बीरी याद कियां आई'
'यार तन ठा ह साल हुग्यो बीरो घरआलो चल गयो'
'ओहो, माड़ी बात हुई यार, आ तो, लाण र ब्याव न कितोक तो टेम हुयो, तन कण कियो'
'साइलिये बतायो, बो भी अब दिल्ली म काम कर नी'
''आछ्या''
''यार एक बात और है, परस्यूं मेरो ब्याव है"
"हैं?"
"हाँ, शिल्पा साग"
"अरे बेटी रा बाप, आ कद करी तू 😊"
"लम्बी काहणी है, शार्ट में आ समझ के म बीरे घरगां ऊँ बात कर ली, सब सेट हुग्यो, भगवान घरे देर है अंधेर कोनी, चल बाद म बात करस्या" केर बण फोन रखदियो।
मेरे सामी धनिये री पूरी काहणी पाछी दौड़ गई, देर आयो पर दुरस्त आयो, आज अचानक मेरी नजरां म धनियों सगळी प्रेम काहणियां र पात्रा ऊँ ऊँचो उठग्यो।
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬
©अरुणिम कथा

👔👔👔👔👔 काला कोट ♠♠♠♠♠


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काले कोट को हमेशा से अपने रूप पर बड़ा अभिमान था, होता भी क्यों ना 'काला करमा आला' जिस भी रंग के साथ पहनो वो जँच ही जाता, वो टाइम गया जब लोग कमीज और धोती पहन मूँछो पर ताव दिया करते थे आज सभ्य दिखने की पहली शर्त जैसा ही बन गया है पाश्चात्य परिधान पहनना उनमे भी अगर कोट पहना हो तो क्या कहने, सब सलाम करेंगे। ये जितने भी राजनयिक हैं , वकील हैं, सब क्या पहनते हैं, क्या उसे नही मालूम ? उसके बिना किसी को कोई पहचानेगा भी नही। कोई पार्टी हो या उत्सव काले कोट की शान ही निराली होती है।
कपास के फाहों से महीन सूत के लच्छे बनने के दौरान बड़ी गुदगुदी हुआ करती थी, अचानक जब उस पर काला रंग डाला गया तो बड़ा गुस्सा आया था, ये क्या कर दिया बे कलुवे को तो हमेशा गालियाँ ही मिलती है लेकिन जब वो कपड़ा और कपड़े से इस रूप में आया तो सब उसे बड़ी श्रद्धा से निहार रहे थे। थोडा छू लेना चाहते थे, पर कोट फैक्ट्री वाले ने घुड़क दिया, मैला हो जाएगा भई, घण्टा मिलेगा फिर इसका कुछ ? वो सोचने लगा शायद ये 'घण्टा' भी मुद्रा या विनिमय का कोई प्रकार ही होगा।
आज वातानुकूलित दुकान में हैंगर से लटक कर खुद के भाग्य पर इतरा रहा था, उसके पीछे उसी की बिरादरी के कोटों की लम्म्म्म्बी कतार थी,
'थोडा थोडा आगे सरक जाओ ना यार साँस तो ले लेने दो 'मटमैले भूरे रंग के रेक्सिन के कोट ने कहा तो कल्लन मियां ने डपट दिया, फिर अपने गले की दाम पट्टी लहराते हुए बोला 'अरे यार बोलने से पहले देख तो लिया करो किससे बात कर रहे हो '। बेचारा भूरा चुप हो गया। बाकी कपड़ों को भी ये सब अच्छा नही लगा पर सब सहिष्णुता का परिचय देते हुए चुप ही रहे।
फिर एक वकील साहब आये और काले ख़ाँ को दाम चुका कर साथ ले चले, जाते जाते वो हाथ बाहर निकाल कर टाटा करते हुए सबको चिढ़ाना चाहता था पर दुकानदार ने बेदर्दी से उसे कोट कवर में ठूस दिया। वकील साहब का घर बड़ा आलिशान था, हर तरह की शान ओ शौक़त और आराम का इंतेज़ाम किया था पट्ठे ने,
पति के हाथ में कोट देखा तो बीवी चिल्लाई, 'ये क्या एक और कोट? क्यों फालतू चीजों से घर भरते रहते हो ?'
'फालतू नही डार्लिंग, ये तो मेरे पेशे की पहचान है'
'हुँह तुम्हारी इस पहचान से अंदर दो अलमारियाँ अटी पड़ी है, एक और कहाँ रखोगे?'
'इसे छोडो, ये तो जहाँ तहाँ रख देंगे, पहले तुम ये बताओ तुमने वो देखा क्या ?'
'क्या वो'
'अरे वही यार'
'ये क्या ये वो वही लगा रखा है, क्या चाहिए साफ साफ कहो न'
'अरे वो बताओ न कहाँ रख दिया'
'जाओ मुझे नही बात करनी आपसे'
'अच्छा अच्छा मत बताओ मैं खुद ढूंढ लेता हूँ, अरे हाँ ये ही तो है, मैं कब से ढूंढ रहा था, बताती भी नही चोर, क्यों चुराया मेरा दिल बोलो'
'हटो भी' मेमसाब ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
कोट ने कवर की खिड़की में से झांक कर देखा, वकील साहब उसे सोफे पर पटक बीवी के साथ प्रणय में लीन थे। 'राम राम क्या जमाना आ गया है, लोग टाइम बे टाइम कुछ नही देखते'।
थोड़ी देर बाद कल्लू को उसी के जैसे और कलुआ बिरादर की टोली में जबरदस्ती घुसेड़ दिया गया। 'अबे ओ हीरो ज्याच्ती मच मच नही कने का ' उसके जैसे दिखने वाले दूसरे कोट उसे धमका रहे थे, कसम से जीभ बाहर लटक गई थी, दम घुटना किसे कहते हैं पहली बार अनुभव हो रहा था।
फिर कई बार वकील साहब के साथ न्याय के मन्दिर जाने का मौका मिला, देखा एक न्याय की देवी है वहाँ जिसके सामने लोग बड़ी बड़ी कसमें खा कर पेट भर झूठ भी उड़ेलते है, देवी कुछ नही देखती पर उसे सब दिखता है। कई बार जज के लिए खुद वकील साहब 'माल' लेते कई बार दिन में कमाए उस माल से रात के 'माल' का जुगाड़ करते। बहुत सारे बेगुनाह इस माल के चक्कर में हलाल हो गए। कल्लू को भी ये सब देखना अच्छा नही लगा, दिल जलता था ये सब देख कर, एक दिन रेनॉल्ड के पेन से इस सब के बारे में बतिया रहा था कि रेनॉल्ड रोने लगा उसके स्याही के आंसुओं से कल्लू खुद ही भीग गया। नतीजा भारी हुआ, अगले ही दिन वकील से उसका तलाक हो गया, बीवी तो पहले ही उस जैसो से खार खाती थी, उसे निपटा कर फटाफट स्टील का पतीला ले गई।
बेचारा कल्लू थोड़ी साफ सफाई होने के बाद फिर से बाजार में आ गया, पर अब सन्डे सेल से फख्त 200 रुपल्ली में बिका, इस बार का खरीददार कोई सब्ज़ी वाला था, घर जाने से पहले 2 देसी शराब की थैली ली कोट की जेब में थैली डाल बेतरतीब उसे इकट्ठा कर अपने झोले में डाल लिया। दुर्गन्ध से कल्लू का सर फटा जा रहा था, घर पहुंच कर पड़ोसियों पर इम्प्रेशन जमाने के चक्कर में उसने कोट पहना,और प्याज के चखने के साथ बड़े इस्टाइल से शराब गटकी, फिर बीवी की ठुकाई कर उसे मर्द होने का अहसास दिलाया और वही पड़ा रहा। पर बीवी ने अपना धर्म निभाया और उसे आराम से लेटा कर कल्लू को उसके बदबूदार बदन से अलग किया, अंदर खूंटी पर टँगा कल्लू सोचने लगा। 'औरत वाकई महान होती है ?'
सुबह सब्ज़ी वाले के 14 साल के बेटे की नज़र कल्लू पर पड़ी तो उसे खूंटी से उतारने की कोशिश करने लगा, कद छोटा होने की वजह से खींचतान में खूंटी से अड़ कर कॉलर के पास से थोडा सिलाई फट गई, कल्लू को अब अपनी शक्ल देख कर रोना आ रहा था। क्या से क्या हो गया यार। शाम को जब सब्जीवाला आया तो उसने बेटे की खूब मरम्मत की पर कल्लू की मरम्मत करवाने का जिक्र भी नही किया। अब रेहड़ी पर सब्ज़ियाँ बेचते बेचते उसकी हालत सब्ज़ी वाले से भी खस्ता हो गई थी, जगह जगह से चिन्दियाँ निकल आई थी। सब्ज़ी वाले के बेटे को कमाने की जिम्मेदारी मिली तो वो किसी दुकान पर सफाई का काम करने लगा, एक सुबह कल्लू की आँख खुली तो लड़का उसके बिखर चुके टुकड़े अलग कर रहा था, दुकान पर पानी से निचोड़े जाते जाते कल्लू ने देखा ये वही दुकान थी, और आज सब उसे तिरस्कार से देख रहे थे।
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬
©अरुण®

1⃣ ₹ एक रुपए में जिंदगी ♠♠♠♠♠


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'हाँ भई, क्या चाहिए ?' बहुत रूखे स्वर में मैंने कहा। कमरे के बाहर एक उजड़ अधपके खिचड़ी बालों वाला लगभग 50 वर्षीय नाटा सा गौर वर्णी इंसान अजीब सी मुस्कान के साथ दरवाजे की जाली में से अंदर झाँकने की कोशिश कर रहा था।
मेरे प्रश्न का उत्तर उसने उसी तरह मुस्कुराते हुए भीतर झांक कर दिया तो सहसा मुझे गुस्सा आ गया।
'बड़े बेहूदा इंसान हो यार, इस तरह बेशर्मी से खुले आम तांक-झांक कर रहे हो, और दांत भी दिखा रहे हो ? तू रुक अभी वही' ये कह कर दरवाजा खोला और उस इंसान को कॉलर से पकड़ कर झिंझोड़ा और कहा, 'अब बोल कौन है बे तू, और क्या देख रहा था यहां ?'
वो डर गया, रोने लगा। डबडबाई आँखों से झरते आंसुओं के बीच मुंह से कुछ अस्फुट से शब्द फूट पड़े, 'घणसा राम'
'घणसा राम!!?'
'घणसाराम कित्थे अ?'
'कौन घणसा राम बे',मैं उसे चमाट मारने वाला ही था कि, घनश्याम जी लगभग दौड़कर आए, बोले छोडो इसे, ये मुझे ढूंढ रहा है।
"आपको!!!!!!????"
घनश्याम जी मेरे करीबी रिश्तेदार है और उससे भी पहले मेरे मित्र भी है। कॉन्ट्रैक्टर थे, और हॉस्पिटल की सफाई का ठेका उनके पास होने की वजह से हॉस्पिटल के पास बनी एक धर्मशाला में रहा करते थे। उन्ही के कमरे, कमर नम्बर 13 के बाहर ये तांक झांक हो रही थी।
'ये नमूना है कौन? आपको क्यों ढूंढ रहा था?'
'अरे यार ये बेचारा भोला है (मानसिक रूप से अल्पविकसित व्यक्तियों के लिए राजस्थान में कई जगह ये शब्द काम में लिया जाता है), यही भटकता रहता है, तो मेरे पास भी आ जाता है कभी कभार'
'खाना मांगने आता है ?'
'अरे नहीं, मैं कौन हूँ इसे खाना खिलाने वाला, इसे तो कोई न कोई खिला ही देगा, कैसे नही खिलाएगा झक मार के खिलाना पड़ेगा।' घनश्याम जी हँसते हुए बोले।
घनश्याम जी की बात कुछ पल्ले नही पड़ी, फिर पूछा 'आप जानते हो इसको ? मने ये है कौन'
'जानता हूँ, गंगानगर की जेसीटी मिल है न, उसमे इसके पिता बहुत अच्छी पोस्ट पर काम करते थे, उनके जाने के बाद इसकी माँ और इसके सब भाई बहनों को, हाँ इसके भाई बहन भी है अफ़सोस वो सब भी ऐसे ही हैं, बेचारों को इन्ही के रिश्तेदारों की वजह से बेघर होना पड़ा।'
'ओह, भगवान भी क्या क्या दिखाते है'
भोला अब भी वही खड़ा था, घनश्याम जी ने उसे अंदर बुला लिया, बोले 'भाटिया ये भी तेरा बेली है'
भोला खुश हो गया
घनश्याम जी ने कहा, 'अपने बेली को नाम नही बताओगे ?'
"किसनलाल भाटिया साहब जी" वो चहकते हुए बोला, तो मैं और घनश्याम जी दोनों हँस पड़े।
'ओ बेली एक उपियो तो दे दे' भाटिया ने मुझसे कहा तो उसकी मासूमियत पर मैं जो अभी थोड़ी देर पहले उसे पीटने वाला था मैं भी उसे इंकार न कर सका। '
उसे पैसे देने लगा तो घनश्याम जी ने रोक कर कहा ये बस सिक्का लेता है नोट नही। मैंने उसे 5 का सिक्का दिया तो भाटिया और खुश हो गया।
घनश्याम जी बोले, 'देखा इसे तो सबको देना ही पड़ेगा झक मार के'
😊😊😊😊
हम फिर हंस पड़े।
घनश्याम जी के पास बहुत बार जाना होता है सो गाहे बेगाहे भाटिये से भी मुलाकात हो जाती। कभी वो पैसे मांगता, कभी अपनी ही कोई अजीब सी राम कहानी सुनाने लगता, कभी मुझसे उस भाभी का हाल चाल पूछता जो थी ही नही, उसकी किसी बात का अब बुरा नही लगता था।
कई बार कुछ बुद्धिजीवियों को कहते सुना, यार बोर्डर एरिया है क्या पता कोई जासूस ही हो। भाटिये को जासूस कहने या समझने के पीछे क्या लॉजिक था कभी समझ नही आया बस इतना पता है कि हर एक को बेवजह शक की नजर से देखना भी ठीक नही होता।
एक के बाद एक भाटिये के 2 भाई और एक बहन चल बसे, भाटिये की सेहत पर कुछ फर्क न पड़ा। न कोई दुःख न ख़ुशी। मैं सोचता ये जीवन का कौनसा रंग है ? भाटिया भर पेट खाता, गर्मी में भी 3-4 स्वेटर और कोट पहने रहता, जिसने दे दिया ख़ुशी से पहन लिया उतारने का तो सवाल ही पैदा नही होता। कभी कभार बहुत मनाने पर नहाता, तो कभी खुद ही हैंडपम्प के नीचे पानी के साथ अठखेलियाँ करता। धेले की टेंशन नही, बिलकुल बच्चों की तरह। एक दोपहर सुना उसकी माँ भी स्वर्ग सिधार गई, हम लोगो के अलावा उसका था कौन, कल्याण भूमि की गाड़ी आई तो उस पर पार्थिव देह को चढ़ाते वक़्त अचानक कहीं से भाटिया भी प्रकट हुआ, अपनी माँ की अर्थी को कंधा लगाया और चीत्कार भरे स्वर में बोला 'बलि रामचन्द्र की जय' 'बलि रामचन्द्र की जय' फिर फूट फूट कर रोने लगा। पहली और शायद आखिरी बार उसे रोते देखा, उसकी माँ के देहांत को मुक्ति की संज्ञा देने वाले भी भाटिये के आँसू देख भावुक नज़र आये, सबकी आँखें नम थी। 😢😢
पर जीवन कभी रुकता कहाँ है, घनश्याम जी की शादी में वो स्पेशल गेस्ट था, घणसा राम का खास आदमी जो था। भाटिये ने खूब मजे किये , दूल्हे की घोड़ी के साथ साथ रहते उसको भी अच्छी खासी बख्शीश मिल गई। उसके बहुत बाद तक शादी की बाते भाटिये से सुनने को मिलती, कई बार पूछता 'अब शादी कब है?' 😊😊
घनश्याम जी मेरी और इशारा कर देते , 'अब इस बेली की शादी होगी' , और फिर उसके अजीब अजीब सवालो से पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता। घनश्याम जी मजे लेते, कहते ये शर्ट जो इन्होंने पहन रखा है, वो तेरे लिए लाये है 😁। वो ललचाई नजरों से देखता तो लगता मुझे नंगे बदन किये बिन न मानेगा पर फिर वही एक 'उपिया' मांगता, पाकर सब भूल जाता मानो सृष्टि का आदि अंत इस एक रूपये से ही तय होने वाला हो। न भी होता हो तो उसे क्या।
उसके बाद कई बार घनश्याम जी के पास मेरा कई बार जाना हुआ पर भाटिये से मुलाकात न हुई, सोचा यही कहीं टहल रहा होगा। फिर ऐसे ही एक रोज घनश्याम जी से उसके बारे में पूछा तो पता लगा, भाटिया बीमार है, बहुत बीमार। शुगर हो गई है और तो और दोनों किड़नियाँ भी डैमेज है। जाकर देखा तो भाटिया हैण्डपम्प के नीचे नहा रहा था, चेहरा सूज गया था पर मुस्कान अब भी बादस्तूर कायम थी, मुझे देखा तो दूर से ही चिल्लाया,
"ओये बेली,की हाल है, तू आयो कोनी, मैं घणसा राम न पूछ्यो"
बहुत दुःख हो रहा था, आँसू जी कड़ा कर के रोक लिए, घनश्याम जी से पूछा क्या कुछ इलाज नही हो सकता ?
घनश्याम जी बोले, "नही , दिखाया बहुत सारे डॉक्टर्स को , सब कहते है अब कुछ नही हो सकता।"
हॉस्पिटल में ही घूमते इस भ्रमर से सब डॉक्टर, नर्सेस भी परिचित थे, पर किसी के पास उसके लिए करने को कुछ बचा नही था।
कुछ दिन बाद फिर जाना हुआ, भाटिये को देखने की चाह जब पूरी न हुई तो घनश्याम जी से उसके बारे में पूछा, जवाब में उन्होंने एक अख़बार सामने रख दिया, बड़े बड़े शब्दों में छपा था,
"उसके पास कुछ नही था पर वो मानव जाति को अपना ऋणी बना गया"
भाटिये की देह मेडिकल कॉलेज में दान कर दी गई थी। जो स्वयं चलता फिरता जीवन था, हर परिस्थिति को समभाव से स्वीकारने वाले इस 'भगवान के बंदे' ने मरणोपरांत भी लोगों के लिए शायद उस एक रुपये के बदले अपनी अंतिम पूँजी भी लगा दी।
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‪#‎जयश्रीकृष्ण‬

💞💓💗💖💘💝 छोटी सी लव स्टोरी ♠♠♠♠♠ .


स्कूल में दो छोटी-छोटी क्यूट सी बच्चियाँ आई थी, ऑफिस के सामने से गुजरते उन्हें वहाँ बैठे देखने के बाद छठी क्लास के दो बच्चे मने मैं और मेरा दोस्त 'फूल और कांटे' के अजय देवगन हुए जा रहे थे। कौन है ? क्यों आई है? न्यू एडमिशन है ? किस क्लास में है ? छोटे छोटे दिलों में बड़े बड़े सवालों के ज्वालामुखी उठ रहे थे। भगवान से प्रे भी शुरू हो चुकी थी, 'हे भगवान ये न्यू एडमिशन ही हो और हमारी ही क्लास में हों'। और तो और बंटवारा भी हो गया, ' वो जो छोटे बालो वाली है वो मेरी, लम्बे बालो वाली तेरी'।
क्लास में जा बैठे पर मन अब भी कहीं और था। बैक ग्राउंड में हम दोनों के कानों में गाना गूंज रहा था "ओ जिसे देख मेरा दिल धड़का, मेरी जान तरसती है", गाना अचानक से रुक गया जब देखा वही दोनों हमारी ही क्लास के बाहर से टीचर से अंदर आने की अनुमति मांग रही थी। सच्ची बताउँ भगवान पर विश्वास उसी पल अटूट हो गया, तू है भगवान तू है।
'क्या नाम है तुम दोनों का' टीचर ने उन्हें अंदर बुला कर पूछा ।
'जी मैं ट ट टिया और य य ये मेरी बहन श्श्श्रीया।'
मेरे वाली, मने छोटे बालों वाली बोली, थोडा हकला के बोलती थी, पर पता नही क्यों उसकी हकलाहट भी अदा लग रही थी, उसके हर ट ट टिया पर द द दिल दिया बोलने को मन कर रहा था।
टिया थोड़ी शर्मीली हंसमुख थी तो श्रीया थोड़ी गुस्सेल। अब हमें तो वो कुछ भी कहें, कैसे भी कहें पसन्द ही आने वाला था, सो मेरे दोस्त , अरे मैंने उसका नाम नही बताया अभी, विपिन मने विक्की, तो विक्की को श्रीया के गुस्से पर लुट जाने का मन होता।
छोटे बच्चों की बड़ी प्लानिंग, सोच रहे थे अब जब छुटपन में ही सही प्यार हो गया तो हो गया, इजहार कैसे हो, इजहार न हो कम से कम उन्हें कैसे भी पता तो लगना चाहिए के ये दो लट्टू उनके लिए ही घूम रहे हैं।
क्लास के दब्बू लड़के धर्मवीर को मोहरा बनाया, हाफ टाइम में जब भी सब खेलते तो हम भी चोर-सिपाही मने पकड़म पकड़ाई खेलते, हर बार धर्मवीर हमको पकड़ने की कोशिश करता, और हम दौड़ते दौड़ते उनकी रस्सी कूदने में शामिल हो जाते, कभी टकरा भी जाते, 'अरे तुमको लगी तो नही, सॉरी यार', उनको ये हरकते सिर्फ बेवकुफ़ियाँ लगती, क्लास में हम हमेशा उनके ठीक पीछे वाले डेस्क पर विराजमान रहते, पजेसिवनेस इतनी की अपने वाली के ही पीछे बैठना है, अगर गलती से भी आगे की सीट्स बदली हो जाती, तो हम दोनों भी उसी क्रम में पीछे बैठ जाते,ऑटोमॅटिकली।
पता नही कैसे पर धीरे धीरे टिया-श्रीया को थोडा थोडा हमारी नमुनागिरी का पता लगने लगा, 7th में टिया ने 15 अगस्त पर एक गाने को गाकर उस पर डांस किया, "मेरी छतरी के नीचे आजा, क्यूँ भीगे सलमा खड़ी खड़ी", तब पहली बार सुना था ये गाना, ये क्या बात हुई खड़ी खड़ी, बोल कुछ जँचे नही, पर फिर भी टिया ने गाए है तो ना जंचने का सवाल ही नही पैदा होता, यूँ की जँच गए जी। कुछ भी बोल कर कहने की हिम्मत तब भी नही जुटा पाए थे, फट्टू साले, बस दीवानगी बढ़ती रही, उनके जैसा पेन, उनके जैसा स्कूल बैग, उसी कलर के कपड़े, उनके जैसी घड़ी, अगर कुछ भी लेना है तो उसको खरीदे या नही बस कसौटी टिया-श्रीया ही थी, स्कूल 8th तक ही था, 8वीं की विदाई पर टिया व्हाइट कलर का फ्रॉक सूट पहन कर आई थी, मुझे गाने को कहा तो सडेला पुराण गाना गाया,
"दर्पण को देखा तूने जब जब किया श्रृंगार......
.फूलो को देखा तूने जब जब आई बहार,
एक बदनसीब हूँ मैं,
एक बदनसीब हूँ मैं
एक बदनसीब हूँ मैं मुझे नही देखा एक बार...
दर्पण को देखा...."
अब खुद ऐसे गाने गाओगे जिसमे तीन बार खुद को 'एक बदनसीब हूँ मैं' बोल के पनौती डिक्लेर किया था तो मनहूसियत तो आनी ही थी। गाना खत्म लव स्टोरी भी खत्म, टिया श्रीया बीकानेर चली गई और उसके बाद उनके कभी दर्शन नही हुए।
😉😊😋😀😁😂
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬

😇😇😇😇😇 निंदक नियरे राखिये ♠♠♠♠♠


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हमारे गाँव से एक परिचित हैं, मुनीम है टाइमपास कमा लेते हैं, 3 बेटे है , सबसे बड़े वाला मुझसे बहुत ही बड़ा है, दूसरा मुझसे 6 साल बड़ा है और सबसे छोटा मुझसे 2 साल छोटा है। बड़भैया स्कूल भेजे जाते पर पहुंचते नहीं, विद्यार्जन के प्रति ये विरक्ति उन्हें कब मिष्ठान्न भण्डार ले गई, कब वे हलवाई बने उन्हें खुद पता नही चला। मंझले भईया धक्का स्टार्ट थे सो धक्के लगा लगा कर ही सही पर ग्रेजुएट बन गए। कुल मिला कर उन्हें देखने से हैप्पी फैमिली टाइप की फीलिंग आती थी।
पापा धान मण्डी में चाय की स्टॉल लगाते थे , जब मण्डी में किसान अपनी उपज लाते मने कुछ रौनक होती तो अपना भी कुछ काम चल जाता। संयोग से मुनीम जी जिस आढ़ती के पास नौकरी कर रहे थे वो भी धान मण्डी में ही थी, सो सफेदपोश मुनीम जी लगभग रोज पापा के पास आते, देश सुधार, ग्राम चर्चा करते करते परिवार में भी किसको , क्या , कब , क्यों और कैसे करना है सब पर व्याख्यान देते।
मेरे परिवार ने 2 बहनों की शादी की थी सो जमा पूंजी के नाम पर निल्ल बटे सन्नाटा बचा था, कुछेक ऑप्शन्स थे मेरे पास , या तो कोई अपना काम शुरू करूँ, या मैं भी कहीं नौकरी कर लूँ (मुनीम जी की तरह), या फिर पापा के काम में हाथ बटाउं। जब तीसरी बहन की शादी की तो अकाउंट जबरदस्त तरीके से गड़बड़ा गया, कर्ज हो गया, ऊपर से उन्हीं दिनों फसले चौपट होने से किसान भी फटेहाल जैसे थे। मण्डी सूनी पड़ी थी सो सारा दिन एक एक पैसे के इंतज़ार में बीत जाता। मुनीम जी रोज आते हमेशा की तरह, चर्चा करते करते कुरेदते, क्या चल रहा है? फिर आखिर उनहोंने अपने गहन चिंतन से समस्या का समाधान खोज ही निकाला, बोले 'आप यहाँ अकेले तकलीफ पा रहे हो अरुण को साथ लगा लो, गिलास विलास धो दिया करेगा, कुछ तो सहारा हो जाएगा।'
'पर वो तो पढ़ रहा है, तैयारी कर रहा है नौकरी के लिए'
'अरे भई क्या रखा है पढ़ाई में, पढ़ के बड़ा कलेक्टर बन जाएगा, चपरासी बनना भी आसान नही है क्या समझे, आरक्षण भी तो नही मिलता आप लोगो को'
बात कुछ हद तक सही भी थी, पापा ने घर पर माँ से कहा तो माँ ने रौद्र रूप धारण कर लिया।
'मेरा बेटा ये सब नही करेगा।'
'पर मैंने भी तो किया है उम्र भर'
'क्या ये जरूरी है की हर पीढ़ी को वही तकलीफे उठानी ही पड़ेगी जो पिछली पीढ़ियों ने उठाई।'
'पर क्या करेगा, नौकरी तो मिलने से रही। चपरासी बनना भी आसान नही है आज के टाइम में'
'ये कहाँ लिखा है'
'लिखा नही है पर है ऐसा ही, आरक्षण नाम सुना है?'
'मतलब'
'कुछ नही, मतलब ये है की हमारे बच्चों का नौकरी लगना नामुमकिन है।'
'वो सब मुझे नही पता, मेरा बेटा झूठे गिलास नही धोएगा बस।'
पापा मन मसोस कर रह गए।
उसके बाद भी मुनीम जी का पापा के पास आना और सलाह की डोज देना बदस्तूर ज़ारी रहा। पापा को भी लगता की उनके भले के लिए ही तो कहते हैं।
इस बीच मैंने एक निजी फर्म में काम करना शुरू किया, घर खर्च में हाथ बंटाने लगा, साथ ही राजकीय सेवा के लिए भी हाथ पैर मारने लगा।
मुनीम जी को अब भी लगता था, इनमे कुछ नही रखा प्राइवेट वाले तो कभी भी GPL मार देंगे, फिर क्या करेगा, अपना काम अपना काम ही होता है।
इसलिए एक्स्ट्रा काम किया, कुछ पैसे इकट्ठे कर कोचिंग के लिए जयपुर गया, पैसे खत्म हो गए तो दो महीने में वापस आना पड़ा, रेल सेवा के लिए कई परीक्षाएँ दी , कई बार कुछ बिंदु से चूका तो कई बार चयनित होने पर भी भर्ती कोर्ट में लटक गई।
मुनीम जी आते, कहते क्यों टाइम खराब कर रहे हो। अरे बिना पैसे, बिना सिफारिश कुछ नही होता।
फिर कुछ पैसे इकट्ठे किये बी एड किया और फाइनली गिरते पड़ते लटकते संभलते द्वितीय श्रेणी अध्यापक पद पर चयन हो गया। टेंशन खत्म।
***
मुनीम जी के बड़े सुपुत्र हलवाई बन गए थे फिर मुनीम जी से 'अपना हिस्सा' लेकर 'अपनी फैमिली' को लेकर अलग हो गए। छोटे साहब का कुछ अता पता नही की कहाँ है, सुना है किसी कन्या ने कोई केस भी कर रखा है पर मंझले भैया समझ गए सब काम सिफारिश या पैसे से नही होता। देर से ही सही अब वो भी ऐसी कोशिशें करने लगे है। मुनीम जी का अब घर आना कभी कभार ही होता है, पर जब भी आते है लम्म्म्बा-सा जरूर आशीर्वाद देते है । माँ बहुत खुश है और हाँ पापा भी। 😋 😇😇😇
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬

👧👩👯💇👰 कजरी ♠♠♠♠♠


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'सुनिए',
'अरे भई आप ही से कह रहा हूँ'
अमित कुछ पढ़ रहा था, अचानक इस तरह पुकारे जाने पर चौंक गया, फिर अपनी प्रश्नवाचक आँखें दौड़ाई तो देखा , सामने की बर्थ पर एक अधेड़ सज्जन, उम्र लगभग 45-50 साल, एक घूंघट वाली महिला के साथ बैठे अजीब सी मुस्कान लिए उसी को देख रहे थे।
'आप का नाम अमित है ?'
'जी, पर आप कैसे जानते हैं? माफ़ कीजियेगा मैंने आपको पहचाना नही'
'अरे भई माफ़ी वाफी छोडो, उसकी कोई जरूरत नही। और मैं तो ये भी जानता हूँ की आप सरदारशहर के पास छोटी सवाई के रहने वाले हो, बोलो है के नई ?'
'जी आप सही है साहेब, पर मैंने अब भी आपको पहचाना नहीं'
खुद के लिए साहेब का सम्बोधन सुना तो वो सज्जन हँस पड़े उनकी तोंद थिरकी, फिर बोले, 'ज्यादा दिमाग पर जोर मत दीजिये, हम वाकई इससे पहले कभी नही मिले हैं, और एक दूसरे को जानते भी नही।'
'तो फिर ......कैसे?'
'अरे भई हमारी श्रीमती जी आपको जानती हैं, कजरी नाम है इनका'
'कजरी!?' नाम सुन कर अमित चौंक गया। उसे यकीन ही नही हुआ की ये कजरी है। ये जो लम्बा सा घूँघट ओढ़े चुपचाप बैठी है, वो कजरी कैसे हो सकती है? जिस कजरी को वो जानता है वो तो ऐसी बिलकुल नही थी हो ही नही सकती थी।
***
5 साल हुए, अमित बीएससी प्रथम वर्ष में था तो मौसी जी के लड़के की शादी में गाँव जाना हुआ। राजस्थानी शादियों में उमंग, उत्साह और आनंद, वर्णन नही अनुभव की विषयवस्तु है। तिलक लगाकर अमित को घर में प्रवेश करते ही भीतर चल रहे वैवाहिक अनुष्ठान की भीनी महक आनी शुरू हो गई। सबसे मुलाकात कर वो चुपके से बाहर के कमरे में बैठ गया, तभी अमित की मौसी जी की बेटी उसे वापस अंदर ले गई।
'क्या भाई, इतने सालों बाद आये हो और यहां चुपचाप छुप के बैठे हो ?'
'अरे नही ऐसी तो कोई बात नहीं' कह कर अमित ने नजरें झुका ली। दरअसल वहां और भी बहुत सी लड़कियाँ थी। अनजान लड़कियों को देख कर बेचारा अमित थोडा असहज हो रहा था। तभी एक लड़की का स्वर सुनाई दिया।
'तो फिर कैसी बात है जी?'
अमित ने नजरें उठाई तो देखा, दो गहरी नीली मुस्कुराती आँखे उसे निहार रही थी।
'ज ज जी' अमित बोला तो मुस्कुराहट खिलखिलाहट में बदल गई। बाकि लड़कियां भी उस नीले नयनों वाली के साथ हँसने लगी।
'ए कजरी, मेरे भाई को छेड़ मत' नेहा ने डाँटते हुए कहा तो नीली आंखों वाली लड़की हंसते हुए बोली, 'अरे अब तक तो सुना था लड़के छेड़ते है लड़कियों को, तेरा भाई पहला है जिसे कोई लड़की छेड़ रही है, तुझे तो खुश होना चाहिए यार।'
'और आप यहां भोंदु की तरह मुँह बना के क्यों खड़े हैं , अरे भाई की शादी है कुछ नाच गाना करना है के नहीं?'
'पर मुझे नाचना नही आता'
'टेंशन मत लो थोड़ी देर में सब आ जाएगा'
डी जे पर कजरी अमित को किसी कठपुतली की तरह नचा रही थी, मानो वो कोई रबर का गुड्डा है जिसे जिधर चाहो मोड़ दो। अमित को अजीब लग रहा था पर कुछ कुछ अच्छा भी लग रहा था, जो हो रहा था होने दिया। अमित उस अज्ञातयौवना की शरारतों से मुग्ध न जाने किस लोक में खोया हुआ था।
हमेशा यही होता था की कोई भी फंक्शन खत्म होने से पहले अमित वहाँ से भागने का जुगाड़ लगाने लगता था पर इस बार शादी के 4 दिन बाद तक वो वही रुक रहा। कजरी के बारे में कुछ और जो जानना था। कजरी नेहा की सहेली थी, बिंदास खिलंदड़ और मस्तमौला। गाँव की लड़कियाँ के बीच वो बिलकुल अलग लगती थी, इन 4 अतिरिक्त दिनों में अमित को उंसके बारे में और जानने का मौका मिल गया, वो सरदारशहर से थी। गाँव के लाइफ स्टाइल के विपरीत बिलकुल मॉर्डन कपड़े पहनती थी, छोटी सी उम्र में बड़े बड़े सपने उसकी नीली आँखों में बसते थे। अमित जब भी उसे देखता उसकी धड़कने तेज़ होने लगती, बाली उमर में विपरीत लिंगी आकषर्ण वाकई बड़ा प्रभावी होता है। अमित भी कजरी की और खिंचा चला जा रहा था की कजरी को उसके भैया लेने आ गए और वो चली गई, बहुत कुछ कहना था पर अमित कुछ कह न पाया।
इसके 2 साल बाद फिर से अमित गाँव आया , बातों बातों में नेहा से कजरी की थाह लेनी चाही पता लगा उसका रिश्ता हो गया है कहीं। 'एक हाथ दे दूसरे हाथ ले' फार्मूला आधारित। बिगड़ते लिंगानुपात ने आज लोगों को मजबूर कर दिया है की अगर उन्हें अपने बेटे की शादी के लिए बहु चाहिए तो बदले में अपनी किसी बेटी को किसी की बहु बनाना ही होगा। जल्द ही कजरी भी किसी की बहु बन जाएगी।
"कहाँ खो गए अमित बाबू" सामने बैठे सज्जन ने पुकार तो अमित की तन्द्रा टूटी।
'जी कहीं नही' फिर इधर उधर की बातें हुई। कजरी उसी तरह घूँघट निकाले बैठी रही। अमित सोच रहा था की इतनी बातूनी लड़की इतनी चुप कैसे है?
***
3 साल बाद गाँव फिर से जाना हुआ , नेहा की शादी में, अमित की भी शादी हो गई थी, नेहा दुल्हन के लिबास में बहुत सुंदर लग रही थी, सब बहुत खुश थे। नाच गाना हो रहा था, अमित ने पूछ ही लिया आखिर कजरी क्यों नही आई?
नेहा भर्राये स्वर में बोली, " उसके पति का स्वर्गवास हो गया, और आपको तो पता ही है हमारे यहाँ विधवाओं को शुभ और मंगल कार्यों में प्रवेश नही देते। इसलिए उसे बुलाया ही नही।"
😢😢😢😢
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬

😢😢😢😢😢 मासी ♠♠♠♠♠ .


ईश्वर के सम्बन्ध में मेरी बड़ी अटूट मान्यता रही है कि वो कभी कुछ गलत नही करते, हो सकता है हमारी स्थूल दृष्टि तत्कालिक सकारात्मकता अनुभव न कर पाएं पर जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है। जीवन में ऐसे कई अवसर भी आए जब परिस्थितियों ने मुझसे अपने उक्त विचार पर पुनर्विचार का आग्रह किया पर 'मेरो मन जहाज को पंछी' घूम फिर कर वापस वहीं लौट आता हूँ। मेरा बचपन बहुत विपरीत आर्थिक परिस्थितियों को देखते/झेलते बीता , बार बार ईश्वर को उस दशा के लिए कोसते जिज्ञासु मन ने एक दिन गीता का कर्म सिद्धान्त पढ़ा, 'जो प्राप्त है वही पर्याप्त है' की धारणा को हृदय से स्वीकार पुरुषार्थ की और उन्मुख हुआ और सचमुच ईश्वर की कृपा से सब बदल गया।
***
सुमित्रा मासी, छोटा कद थोड़ी थुलथुल काक वर्णी चेहरे में चमचमाते सफेद दांत और प्यार बरसाती आँखे, उनका नाम लेते ही यही स्मरण आता है। पता नही रिश्तों के नामकरण के पीछे क्या सिद्धांत रहे होंगे पर सुमित्रा मासी वाकई माँ सी ही थी। ओड राजपूत परिवार की यह ममतामयी स्त्री और इसके पतिदेव जब हमारे पड़ोस में रहने आए तो मासी ने बिना किसी आग्रह माँ को बहन बना लिया। मासी दिन में कई बार बाबे की दुकान से आते जाते हमारे घर आ जाती, बाबे की दूकान से उनकी खरीददारी 1-2 रूपये से ज्यादा की न होती जिसे वो बड़े गर्व से बताती। दरअसल मासी के पतिदेव सिंचाई विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे, तनख्वाह में से पतिदेव की शराब का भारी भरकम खर्च निकलने के बाद जो चिल्लर बचता मासी उस से भी पुरे घर का खर्च चलाने में सिद्धहस्त थी। रात का बचा भोजन ले जाती (सभी के घर से नही) कहती 'आवदे घर दी रोटी ह सिट्टीए क्यों, जवाकां दे ढ़ेड च पवे ता चंगा नई (अपने घर की रोटी है तो फिर फेंके क्यों, बच्चों के पेट में जाएं वो अच्छा नहीं)।
मासी के दो लड़के पप्पी (विनोद) और राजू मेरे हमउम्र थे, बहुत शरारती भी, हम तीनों की गैंग ने मोहल्ले के सब लड़को को वजह बेवजह धोया जरूर था, प्रसाद स्वरूप माँ और मासी दोनों ने समान रूप से हमारी आरती भी उतारी। साथ मिल कर मिट्टी में लोटना, अंताक्षरी खेलना , नहर में नहाना, लकड़ी काट लाना, बिना बताये सिंचाई विभाग की कॉलोनी में चले जाना जैसे अनेक मनोरम पल हम लोगों ने साथ बिताए।
समय बदला समय के साथ मासी के परिवार की माली हालत भी अच्छी हो गई , पर मासी के लिए कुछ न बदला क्योंकि वो अच्छा बदलाव उनके पतिदेव की दारू की मात्रा और क्वालिटी में ही हुआ। मासी के पतिदेव लगभग रोज पेटभर शराब छकने के बाद मासी को ढेर सारी गन्दी गन्दी गालियों से विभूषित करते , कभी कभार ठुकाई भी हो जाती पर मासी के चेहरे पर कोई शिकन न दिखाई दी कभी किसी से कोई शिकायत नही मशीन की तरह हाड तोड़ मेहनत करती, कपास चुगने जाती, घर चलने का जुगाड़ करती और उसी मुस्कुराते चेहरे के साथ हमारे घर आती रही (हमारा मासी के घर जाना कम ही होता था, कारण मासी के पतिदेव थे), मासी की अपने पति के प्रति उनकी श्रद्धा न जाने किस कारण से अटूट बनी हुई थी। गालियां और पिटाई को अपनी नियति मान उसी में जीने का तरीका मासी ने निकाल लिया था हालाँकि अकारण कष्ट सहने की उनकी प्रवृत्ति हमारे सम्मान नही क्षोभ का हेतु ही रही, पर मासी कहती 'बन्दा जिना मर्ज़ी माड़ा होवे बूड़ी नु ओनु कदे नी छड़ना चाहिदा, परछावें वांगु'(आदमी चाहे जितना भी बुरा हो औरत को कभी उसका त्याग नही करना चाहिए, परछाई की तरह) । बेचारी भोली औरत नही जानती थी की परछाई भी प्रकाश में ही साथ देती है। 😑
पप्पी राजू की शादी हुई तो लगा की शायद अब मासी को मेहनत नही करनी पड़ेगी आखिर दो बहुएँ आई थी, पर उन्होंने अलग अलग कमरों में अपनी अलग अलग दुनिया बसा ली, मासी की दिनचर्या में विशेष फर्क न पड़ा, फर्क पड़ा तो ये की पतिदेव के अलावा उनको सुनाने वालों की सूची में कुछ नाम और जुड़ गए।
बड़ा आश्चर्य होता था आखिर ये औरत न जाने क्या क्या अपने भाग्य में लिखवा लाई है।
उन दिनों मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटा रहता था, लगातार असफल मन को मासी की सांत्वना से बड़ा आराम मिलता, कहती ' कुछ नी लग जेंगा बेटा, रब सब वेखदा ए' (कोई बात नही लग जाओगे बेटा, भगवान सब देखते हैं)। मन में विचार आता सबके कल्याण की कामना करने वाली तुम्हारी और ईश्वर की दृष्टि क्यों नही पड़ती ?
पर मासी को अभी बहुत कुछ सहन करना बाकी था, अचानक अधरंग हो गया आधा शरीर सुन्न पड़ गया, दवा दिलाने के नाम पर औपचारिकता भर हुई, पैसे अगर थे भी तो बेचारी मासी के लिए नहीं थे किसी के भी पास, बेचारी अभावों में भी मुस्कुराने वाली जिन्दादिल अब बिना सहारे के उठ भी न पाती, बोलने के नाम पर आआअ ऊऊ जैसी समझ न आने वाली आवाज़ें निकलती, बहुत दुःख होता ये सब देख कर, बड़ी बहु भी उनकी हालत से पसीज गई, उसने ही उनकी देखभाल की, उनको खिलाती पिलाती कपड़े साफ़ करती। लघुशंका के लिए स्थाई तौर पर थैली वाली नलकी लगा दी गई थी, उसे भी खाली करती। माँ जब भी मिलने जाती तो आआ की आवाज़ करते हुए खूब रोती। शायद कह रही थी मुझे ये किस कर्म की सज़ा दी भगवान ने, एक दिन जब माँ फिर से मिलने गई तो बड़ी बहु ने बड़े संकोच के साथ जो बताया उसने मानवता का सर तक झुक दिया, मासी के पतिदेव ने कामांध होकर उस बेचारी बीमार अपाहिच जो बोल भी नही सकती थी, को खूब पीटा, नलकी हटा दी और जो मन में आया वो किया। सुबह मासी की अस्त व्यस्त हालत और अनवरत बहते आँसुओ ने रात की कहानी कह दी। माँ से मिल कर आँसू फिर से बहने लगे, चुप होने को कहा, तो इशारों में कहने लगी अब तो भगवान उठा ले तो ही अच्छा है।
एक दिन सुबह सुबह चिल्ल पों सुनी, पता लगा भगवान ने मासी की सुन ली थी, फाइनली।
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ईश्वर की ये कैसी लीला है मैं अब तक नही समझा, शायद कुछ और भी बुरा होता जो मासी को झेलने से ईश्वर ने बचा लिया हो। मैं कयास भर लगाता हूँ, पर ईश्वर से इतनी प्रार्थना जरूर करता हूँ कि हे ईश्वर दुनिया में मासी जरूर बनाना पर उनको इस मासी जैसा जीवन न देना।
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬

🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...