😇😇😇😇😇 निंदक नियरे राखिये ♠♠♠♠♠


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हमारे गाँव से एक परिचित हैं, मुनीम है टाइमपास कमा लेते हैं, 3 बेटे है , सबसे बड़े वाला मुझसे बहुत ही बड़ा है, दूसरा मुझसे 6 साल बड़ा है और सबसे छोटा मुझसे 2 साल छोटा है। बड़भैया स्कूल भेजे जाते पर पहुंचते नहीं, विद्यार्जन के प्रति ये विरक्ति उन्हें कब मिष्ठान्न भण्डार ले गई, कब वे हलवाई बने उन्हें खुद पता नही चला। मंझले भईया धक्का स्टार्ट थे सो धक्के लगा लगा कर ही सही पर ग्रेजुएट बन गए। कुल मिला कर उन्हें देखने से हैप्पी फैमिली टाइप की फीलिंग आती थी।
पापा धान मण्डी में चाय की स्टॉल लगाते थे , जब मण्डी में किसान अपनी उपज लाते मने कुछ रौनक होती तो अपना भी कुछ काम चल जाता। संयोग से मुनीम जी जिस आढ़ती के पास नौकरी कर रहे थे वो भी धान मण्डी में ही थी, सो सफेदपोश मुनीम जी लगभग रोज पापा के पास आते, देश सुधार, ग्राम चर्चा करते करते परिवार में भी किसको , क्या , कब , क्यों और कैसे करना है सब पर व्याख्यान देते।
मेरे परिवार ने 2 बहनों की शादी की थी सो जमा पूंजी के नाम पर निल्ल बटे सन्नाटा बचा था, कुछेक ऑप्शन्स थे मेरे पास , या तो कोई अपना काम शुरू करूँ, या मैं भी कहीं नौकरी कर लूँ (मुनीम जी की तरह), या फिर पापा के काम में हाथ बटाउं। जब तीसरी बहन की शादी की तो अकाउंट जबरदस्त तरीके से गड़बड़ा गया, कर्ज हो गया, ऊपर से उन्हीं दिनों फसले चौपट होने से किसान भी फटेहाल जैसे थे। मण्डी सूनी पड़ी थी सो सारा दिन एक एक पैसे के इंतज़ार में बीत जाता। मुनीम जी रोज आते हमेशा की तरह, चर्चा करते करते कुरेदते, क्या चल रहा है? फिर आखिर उनहोंने अपने गहन चिंतन से समस्या का समाधान खोज ही निकाला, बोले 'आप यहाँ अकेले तकलीफ पा रहे हो अरुण को साथ लगा लो, गिलास विलास धो दिया करेगा, कुछ तो सहारा हो जाएगा।'
'पर वो तो पढ़ रहा है, तैयारी कर रहा है नौकरी के लिए'
'अरे भई क्या रखा है पढ़ाई में, पढ़ के बड़ा कलेक्टर बन जाएगा, चपरासी बनना भी आसान नही है क्या समझे, आरक्षण भी तो नही मिलता आप लोगो को'
बात कुछ हद तक सही भी थी, पापा ने घर पर माँ से कहा तो माँ ने रौद्र रूप धारण कर लिया।
'मेरा बेटा ये सब नही करेगा।'
'पर मैंने भी तो किया है उम्र भर'
'क्या ये जरूरी है की हर पीढ़ी को वही तकलीफे उठानी ही पड़ेगी जो पिछली पीढ़ियों ने उठाई।'
'पर क्या करेगा, नौकरी तो मिलने से रही। चपरासी बनना भी आसान नही है आज के टाइम में'
'ये कहाँ लिखा है'
'लिखा नही है पर है ऐसा ही, आरक्षण नाम सुना है?'
'मतलब'
'कुछ नही, मतलब ये है की हमारे बच्चों का नौकरी लगना नामुमकिन है।'
'वो सब मुझे नही पता, मेरा बेटा झूठे गिलास नही धोएगा बस।'
पापा मन मसोस कर रह गए।
उसके बाद भी मुनीम जी का पापा के पास आना और सलाह की डोज देना बदस्तूर ज़ारी रहा। पापा को भी लगता की उनके भले के लिए ही तो कहते हैं।
इस बीच मैंने एक निजी फर्म में काम करना शुरू किया, घर खर्च में हाथ बंटाने लगा, साथ ही राजकीय सेवा के लिए भी हाथ पैर मारने लगा।
मुनीम जी को अब भी लगता था, इनमे कुछ नही रखा प्राइवेट वाले तो कभी भी GPL मार देंगे, फिर क्या करेगा, अपना काम अपना काम ही होता है।
इसलिए एक्स्ट्रा काम किया, कुछ पैसे इकट्ठे कर कोचिंग के लिए जयपुर गया, पैसे खत्म हो गए तो दो महीने में वापस आना पड़ा, रेल सेवा के लिए कई परीक्षाएँ दी , कई बार कुछ बिंदु से चूका तो कई बार चयनित होने पर भी भर्ती कोर्ट में लटक गई।
मुनीम जी आते, कहते क्यों टाइम खराब कर रहे हो। अरे बिना पैसे, बिना सिफारिश कुछ नही होता।
फिर कुछ पैसे इकट्ठे किये बी एड किया और फाइनली गिरते पड़ते लटकते संभलते द्वितीय श्रेणी अध्यापक पद पर चयन हो गया। टेंशन खत्म।
***
मुनीम जी के बड़े सुपुत्र हलवाई बन गए थे फिर मुनीम जी से 'अपना हिस्सा' लेकर 'अपनी फैमिली' को लेकर अलग हो गए। छोटे साहब का कुछ अता पता नही की कहाँ है, सुना है किसी कन्या ने कोई केस भी कर रखा है पर मंझले भैया समझ गए सब काम सिफारिश या पैसे से नही होता। देर से ही सही अब वो भी ऐसी कोशिशें करने लगे है। मुनीम जी का अब घर आना कभी कभार ही होता है, पर जब भी आते है लम्म्म्बा-सा जरूर आशीर्वाद देते है । माँ बहुत खुश है और हाँ पापा भी। 😋 😇😇😇
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬

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