डिस्क्लेमर : ये विशुद्ध अराजनीतिक पोस्ट है अगर राजनीतिक बातों के शौक़ीन है तो कृपया आगे न पढ़ें। ये भी हो सकता है इस पोस्ट में वर्णित कुछ घटनाएं आपको अतिरंजित प्रतीत हों पर फिर भी ये सत्यता से परिपूर्ण हैं, शेष जिसे जो सोचना है वो उसके लिए स्वतन्त्र है ही।
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बचपन में मैंने एक कहानी पढ़ी थी जिसका कलेवर कुछ यूँ था कि एक छोटा लड़का स्वर्ग का कल्पित वृत्तान्त सुन कर स्वर्ग जाने की जिद्द करने लगता है, माता पिता समझाते है की ये मृत्यु से पूर्व सम्भव नही। बालक खाना पीना त्याग देता है, बोलता है मैं तो मर गया हूँ जी , घरवाले हैरान परेशान, आखिर वो एक तरक़ीब लगाते हैं। एक सुबह जब बालक सो कर उठता है तो घर बदला बदला सा लगता है, चारो और खूबसूरत सजावट, खुशबु, मिठाइयां रखी है, पीने को मीठा बादाम का शर्बत, टीवी पर सिर्फ कार्टून चैनल। वाह जी वाह! ये तो वाकई स्वर्ग में आ गया मैं तो, ऐश ही ऐश। बालक उस ऐश को खूब कैश भी करता है पर बार बार सिर्फ मीठा खाना और मीठा शर्बत पी पी कर उकता जाता है। मीठे और खुशबु के नाम से उलटी होने वाली हालत में फिर से अपने घरवालों को याद करता है, रोता है बिलखता है, रोते रोते सो जाता है, इस बार जब उठता है तो सब सामान्य हो चुका होता है। बच्चा खुश और माता पिता भी। बोले तो हैप्पी एंडिंग।
अब आप इस कहानी को भूमिका समझने की भूल बिलकुल मत करना, मैं जो आपको बताने जा रहा हूँ उसका ऊपर की बात से कुछ भी लेना देना नही है।
तो ये सब क्यूँ लिखा ? भई मेरी मर्जी 😁😂
मैंने अपनी अक्खी लाइफ में ऐसी कोई जगह नही देखी जहाँ स्वर्ग का बोर्ड लगा हो। हाँ ऐसी बहोत सारी जगहों पर जाने का अवसर जरूर मिला है जो वाकई खूबसूरत कही जा सकती हैं।
कश्मीर, एक ऐसी ही जगह थी। बी एड के दौरान लगभग 6 महीने वहां रहे थे हम लोग, हम लोग से मेरा मतलब मैं और मेरे 5 अन्य बन्धु। इससे पहले कॉलेज में कॉलेज जैसा कुछ मिला नही, मने की जैसा फिलिम में होता है। कोई लड़की नही थी साथ में पढ़ने वाली, मुस्टंडों को देख देख के मूड खराब करते आये थे। बड़ी खुन्नस थी मन में , सो संयोग से जब बी एड की योजना बनी , तो ठान लिया था कि चाहे जो हो अब मन की मन ही में नही रहने देना है। बहुत हुआ झंड जिंदगी का रोना धोना, ख़ुशी का एक भी पल छूटना नही चाहिए और हमने वही किया भी ।
हम लोगों ने कॉलेज के हॉस्टल में न रह कर बाहर किराये पर एक पूरा घर लिया, 3 रूम 1 किचन , मस्त कारपेट बिछा था पूरे घर में ( ये कारपेट वहाँ पड़ने वाली भयंकर सर्दी की वजह से उन लोगो की मजबूरी भी है ) जैसा मैंने पूर्व में बताया हम 6 लोग Rajesh Goswami, Rajesh, स्व. कंवरलाल कोहली, महेंदर, उसकी बीवी और उसकी मोसी जी। ( महेंदर ने वहां जा कर अपने आप को हम सब से अलग कर लिया, बड़ा परित्यक्त सा फील किया था साहेब इसलिए यहां उसकी बीवी और उसकी मौसी जी लिखा है) कंवरलाल जी पहले से ही 'न उधो का लेना न माधो का देना' सम्प्रदाय में दीक्षित थे, सो बचे मैं और Rajesh , कहाँ तो इतनी हसरतें लेकर आये थे की डीडीएलजे के शाहरुख़ बन जायेंगे , ये वो और पता नही क्या क्या लेकिन यहाँ अपनों के बीच बेगानों की फुल ऑन फीलिंग आ रही थी। फिर सोचा के यार कुछ भी हो हम इस तरह रोनी शक्लें बनाने तो यहां नही ही आये है, बाकी लोग जैसे चाहे रहे , जियें उनकी मर्जी, पर हम अपनी लाइफ अपनी तरह से बिताएंगे। निश्चय कर लिया और हो गए शुरू........
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कॉलेज में ऐसा कोई नही था जो हमे जानता न हो, चपरासी से लेकर प्रिंसिपल तक सबको हम दोनों के चौखटे विद नेम याद थे (ये कैसे किया, ये भी एक किस्सा है, पर वो लिखा तो पोस्ट और लम्बी हो जाएगी) । कश्मीरी लड़के लड़कियां, हिमाचली सेब और हमारे राजस्थान के पूर्वी भाग से आये लोग सब के सब हमसे परिचित थे। और परिचित भी ऐसे वैसे नही बड़ी स्पेशल जगह हमने बड़ी मेहनत से बना ली थी। कॉलेज का कोई भी फंक्शन हो , खेल हो, पत्र पत्रिका के लिए कुछ लिखना हो या पढ़ाई लिखाई कुछ भी, हम दोनों के नाम हर जगह मौजूद थे। घर के आस पास हमारे इतने परिचित थे कि बाहर निकलते ही " कैसे हो राजेश ? कैसे हो अरुण ?" का सिलसिला शुरू हो जाता , कभी कभी तो ऐसा लगने लगता हम यहां प्रवासी न हो कर यहीं के कोई राजनीतिज्ञ है जो अपनी पहचान बना कर राजनीतिक जड़े तलाश रहा है। जिस घर में हम लोग किराये पर रहे थे वो युसूफ अंकल बड़े अच्छे लोग थे, उनके 5 बच्चे थे, 4 लड़कियाँ और 1 लड़का खुर्शीद, सबसे बड़ी लड़की शाइस्ता विवाहित थी सो वो अपने ससुराल में थी बाकी बचे 3 लड़कियां और 1 लड़का हम दोनों से इतने ज्यादा फ्रेंडली थे की क्या बताऊँ। विशेषकर तस्लीमा जो हमारे साथ बात करते वक़्त लड़की कम लड़का ज्यादा हो जाती। खिलंदड़ मस्तमौला स्वभाव, मन में कोई दुराग्रह नही। हम जो यहां किसी एक गर्ल सखी के तरसते थे बात करने को वहां एक साथ इतनी सखियों का साथ पा कर बाय गॉड कान्हा जी से कम नही समझ रहे थे हम खुद को। बड़ा गुडी गुडी सा टाइम चल रहा था। हमारे कॉलेज की सहेलियों के अलावा मकान मालिक की लड़कियाँ, उनकी सहेलियाँ और उन सहेलियों की भी सहेलियाँ हमसे मिलने हमारे धाम में पधारती थी। सच पूछो तो मज़मा लगा रहता था।
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एक दिन मोहल्ले के कुछ लड़कों में से किसी ने, जो हमारी लोकप्रियता के ग्राफ को देखकर हमसे चिढ़ते थे, ने आधी रात को जब हम पढ़ रहे थे तो , हमारी खिड़की पर पत्थर मारा। राजेश लट्ठ उठा के नीचे गया, मैं उसके पीछे पीछे दौड़ कर गया की भइये यहां आधी रात को बाहर निकलने का रिक्स नही लेते, सुबह देखते है। सुबह हुई तो हमने युसूफ अंकल को पूरी बात बताई और सस्पेक्ट भी। अंकल ने उन्ही सस्पेक्टेड फेल्लोज़ से जा कर पूछा की यार ये लोग बहुत अच्छे है, कल रात को किसी नामुराद ने बड़ी घटिया सी हरकत की, तुमको कुछ पता लगे तो बताना मैं उनको हलाल करूँगा। बेचारे नमूने सहम कर रह गए, फिर वैसा कभी रिपीट नही हुआ।
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मकान मालिक की दूसरी बेटी महमूदा की शादी थी, और सबसे वीवीवीआईपी मेहमान थे हम दोनों, सो इन्विटेशन एडवांस दे दिया गया, इस ताकीद के साथ कि पूरे कार्यक्रम में हमारी मौजूदगी अनिवार्य है।
इतनी ख़ुशी इतनी ख़ुशी इतनी ख़ुशी........
गिनती के कपड़े थे हमारे पास सो नए कपड़ो का जुगाड़ किया, उपहार हम राजस्थान से लेकर गए थे बस हो गई तैयारी और क्या। आखिर शादी के दिन आ गए, शादी से एक दिन पहले हमारे रातिजोगे/ रतजगे की तरह उनके भी कोई रस्म होती है। हमने सोचा की घण्टा कुछ समझ आएगा गाना कश्मीरी भाषा में, और वहां सिर्फ उनके रिश्तेदार होंगे, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनके क्या फायदा, नही जाते, पर शाम होते होते खुर्शीद के साथ बुलावा आ गया, बड़े प्यार से, की अबे चलते हो की नही 😀😁 ? या घसीट के ले जाऊँ ? 😂😁
अब किसी का मन करे या न करे चलना ही था, सो चल पड़े। मकान मालिक अच्छा खासा रईस था, उनका निवास झक्कास था ही शादी की सजावट के बाद चकाचक चमक रहा था। मोहल्ले के लौंडे बाहर खड़े खड़े हमे भीतर दाखिल होते देख रहे थे। सच पूछो तो हमे भी बड़ी झिझक हो रही थी, उनके कंप्यूटर में खुद को अननोन डिवाइस की तरह मान कर हम परिसर में ही खड़े एक बाइक पर टँग के बैठ गए।
खुर्शीद ने ऊपर के माले से आवाज़ लगाई की अंदर आओ न यार, हम बोले अंदर ही तो है और कितना घुसाओगे बे। हम लोगों को देख कर मोहल्ले के लौंडे भी धीरे धीरे एक एक करके अंदर आ गए और हमारी बाइक के पास खड़े हो गए, महमूदा पास के घर में गई थी शायद तैयार होने अचानक तभी उसका भी आना हुआ, उसके साथ 3-4 कश्मीरी सेब और भी थे, दरवाजे के अंदर प्रवेश करते ही उसने Hi कहते हुए हाथ हिलाया, दुल्हन के लिबास में राजस्थानी गहनों से लदी वो किसी परी से कम नही लग रही थी, इधर हमारी ये सोच के फट्टी जा रही थी के बेटे आज ये पक्का मरवाएगी, खाया पीया कुछ नही गिलास तोड़ा बारह आना, महमूदा , हमारी बाइक मने की जिसपर हम बैठे थे, के करीब आई और हम दोनों से हाथ मिलाया, सबके सामने, बोली कैसे हो? अंदर आओ न। और फिर खुद अंदर चली गई, हमारी घिघ्घी बंधी हुई थी। लेकिन कुछ जलने की बदबू आई देखा मोहल्ले के लौंडो की सुलग रही थी ज़ोरो से, युसूफ अंकल ने जब उन्हें खड़े देखा तो डाँट डपट के भगा दिया। लौंडे बाहर हम भीतर बड़ी मजेदार विजेता जैसी गुदगुदाहट हो रही थी।
कुछ देर में नाच गाने का सिलसिला शुरू हुआ, परिसर में ही बड़ा सा शामियाना लगा था उसी में सब मजे कर रहे थे। मुस्लिम लोक नर्तक नर्तकी बुलाये हुए थे जो नाच गा रहे थे, कुछ समझ नही आया की कौनसा गाना है क्या मतलब है पर अच्छा था। थोड़ी सी देर हुई की दुल्हन शामियाने में आई उसके लिए कुर्सी लगी थी, जिसके सामने बड़ा सा चॉकलेट केक रखा था।
अबे शादी है या हैप्पी बर्डे।
फिर एक एक कर रिश्तेदार दुल्हन को, दुल्हन उनको केक खिला के मुँह मीठा करवाने लगे। अचानक दुल्हन ने राजेश का नाम पुकारा, एक साथ कई जोड़ी आँखे हमे तलाशने लगी, और हम दोनों शामियाने के आखरी कोने में छुप के बैठे थे कि अपना यहाँ क्या काम? खैर हमारी एक न सुनते हुए हमे महमूदा जी के सामने हाज़िर होना पड़ा, और उनके साथ वही रिश्तेदारों वाली रस्म निभानी भी पड़ी। हम दोनों उनके प्यार से अभिभूत होकर मर न जाये हम बस यही सोच ही रहे थे कि उसी पल महमूदा का प्रस्थान हुआ इस आदेश के साथ की घर में आओ अंदर। डरते डरते हम भीतर दाखिल हुए। सीढियां चढ़ कर ऊपर के तल्ले पर आये, बाएं एक कमरे में औरते गा रही थी, खुर्शीद ने हमे सामने के कमरे में जाने का इशारा किया। हम उसी और चल पड़े, सामने वाला कमरा खोला तो आँखे चुँधिया गईं। मानो कश्मीर की सारी खूबसूरती उस कमरे में कैद हो गई थी, करीब 7-8 बेहद से भी ज्यादा खूबसूरत लड़कियां जिनमे महमूदा, तस्लीमा, रुबीना, शीमा आदि शामिल थी उस कमरे में तैयार हो रही थी। अबे स्वर्ग तो ये है यार, हमे लगा हम गलती से इस कमरे में आ गए ज्यो ही वापस मुड़ कर जाने को हुए की सुमेरा ने मेरा हाथ पकड़ कर बेड पर बिठा दिया की कहाँ भाग रहे हो? राजेश भी मेरे पास ही बैठ गया। लड़कियों को वाकई हमारे वहां होने से कोई दिक्कत नही थी, लेकिन हमारी हालत ये सोच के खस्ता हो रही थी की अब यहां कोई आ जाये तो क्या होगा। लेकिन लड़कियां तो बातों के मजे ले रही थी उन्हें किसी की फटने की क्या परवाह। कहते है की कभी कभी जो सोचो वो सच हो जाता है, युसूफ अंकल के दामाद (उनकी बड़ी बेटी का पति) , उसका नाम भी खुर्शीद ही था, ने अचानक मुंडी घुसा के लड़कियों के कमरे में झाँका, इतनी सारी बतखों में हम दो शतुरमुर्ग अलग ही दिख रहे थे। बड़ी शर्म सी आई यार की वो न जाने क्या सोचेंगे तभी आर्डर हुआ राजेश डांस करेगा। हमे उस रूम में भेज दिया गया जहाँ ढेर सारी औरते बैठी थी, यहां तो हालत और भी खराब है यार। राजेश को ये सब अच्छा लग रहा था वो सीडी प्लेयर पर अपना डांस नम्बर सेट कर ही था कि खुर्शीद मियां ने इधर भी मुंडी घुस के झाँक लिया इस बार भी फिर से वो चला गया पर 2 मिनट बाद ही वापस आया और बड़े प्यार से हमे बाहर बुलाया। फिर बड़े सलीके से दूसरे कोने के एक कमरे में जहाँ कुछ खूसट बूढ़े खर्राटे मार रहे थे बिस्तर ला कर दिए और कहा आप यहां आराम कीजिये।
अबे राजेश, तुझे नींद आ रही है ?
नही यार।
यार एक बात बोलूँ, खुर्शीद मियां बिना कुछ बोले प्यार से कचरा कर गए भाई।
हाँ और अगर हम यहाँ निकम्मों की तरह सोये रहे तो हमारे से गया गुजर कोई न होगा। चल रूम पर चलते है। इस लिए रात को ही वापस अपने मकान में आ गए , बात करते करते कब आँख लग गई पता ही नही चला।
शादी अगले दिन थी ही। सुबह युसूफ अंकल आये, बोले की कल रात को क्या हुआ?
कुछ भी तो नही अंकल
अरे वो खुर्शीद आप लोगों के बारे में नही जानता यार, कल लड़कियों ने भी उसको डाँटा। तुम बुरा मत मानना उसकी बात का और चलो वहां शादी में।
अंकल चले गए, हम दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा, चले, फिर दोनों ने ही ना में सर हिला दिया।
फिर अंकल का बेटा खुर्शिद बुलाने आया, फिर शीमा और फाइनली तस्लीमा भी आई, बोली , हाँ बोलो क्या तकलीफ है अब तुम लोगों को ? चल नही सकते हो ? नही आओगे ठीक है मत आओ, और आइन्दा कभी बात मत करना हमसे।
इतना कहा और वो चली गई
पहली बार उसका चेहरा रुआँसा देखा, राजेश ने मेरी और देखा, क्या करें चले ?
देख भाई , अगर अब हम लोग नही जाएंगे तो हमसे रद्दी कोई न होगा। चल यार इतना प्यार से बुलाने पे तो भगवान भी चल दे दौड़ के, हम तो फिर भी इंसान ही है।
जब हम फिर से वहां गए तो चुपचाप जा कर उसी खूसट बूढ़ो वाले रूम में बैठ गए, खुर्शीद मियां आये और बहुत भावुक होकर मुआफ़ी मांगने लगे, पता नही क्या क्या बोला, कुछेक शब्द जो हिंदी में थे उनसे पता लगा की वो अपने किये पर शर्मिंदा हो रहे थे, अपनी दाढ़ी को छूकर माफ़ी मांगे जा रहे थे। हमने भी बड़ी इज्जत से उन्हें कहा की आपने कुछ गलत नही किया अगर हम भी आपकी जगह होते तो शायद वही करते (हकीकत में उससे कहीं ज्यादा करते) । फिर तस्लीमा का भाई आया बोला दीदी ने बुलाया है हम उसके साथ हो लिए, कश्मीर की मुरझाई कलियाँ फिर से खिल कर महकने लगी। एक कमरे में जहाँ फोटो ग्राफी हो रही थी हमे हाथ पकड़ कर ले गई जहाँ न जाने किस किस ने फोटो क्लिक करवाई। खुर्शीद मियां से शायद रहा नही गया, यहां भी मुंडी घुसा के झाँका पर इस बार उससे ज्यादा कुछ करने की हिम्मत नही हुई।
हमारे चेहरों पर बड़ी कुटिल विजयी मुस्कान तैर रही थी, अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है यहीं है यहीं है। 😀😁😂😉😍😇😂
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यहाँ तक मेरे साथ बने रहने के लिए आभार
#जयश्रीकृष्ण
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