🍥🍥🍥🍥🍥 दाग अच्छे हैं ♠♠♠♠♠


'अधिकार काहे का है यार, हमारे जी का जंजाल हो गया है। कोई डॉक्यूमेंट हो न हो एडमिशन के लिए मना नही करना, पढ़े या न पढ़े फ़ैल नही करना और तो और बच्चा आये न आये नाम नहीं काटना। अजीब झंझट है।' देवीलाल जी ने कहा तो मैंने भी सहमति में सर हिला दिया।
'अब जब ओखली में सर दे ही दिया तो मुसल से क्या डरना? सरकार के नौकर है भई जो हुक्म हो बज़ा तो फरमाना ही पड़ेगा।' मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
'अरे नही यार, नीतियां बनाने वाले ग्राउंड रियलिटी कहाँ जानते है ? उससे तो हमे दो चार होना पड़ता है ना' देवीलाल जी ने फिर कहा।
'अरे छोडो न यार, हमारे यहाँ बैठ कर थूक बिलोने से भी क्या होने वाला है ?' मैंने कहा।
न तो हमने ये "शिक्षा का अधिकार" बनाया है और न इसको संशोधित करने या हटाने जैसी कोई सामर्थ्य हममे से किसी के पास है, जो जैसा है उसी से काम चलाना पड़ेगा न भाई, सिस्टम हमे चलाता है, हम सिस्टम को चलाने लायक नही हुए अभी।
***
क्लास स्टैंड, जय हिन्द।
बैठ जाओ सब।
थैंक यु सर जी।
हर कक्षा में जाने पर होने वाले विद्यार्थी अभिवादन का राजस्थानी पारम्परिक तरीका जो मुझे किसी भी तरह से अटपटा नही लगा, भई जिस स्कूलिंग से मैं पढ़ा हूँ उसमे भी तो यही सब होता था। खैर, ये कक्षा 6 थी। मैं प्राथमिक कक्षाओं में अध्यापन नही करता, क्यूँ ? अरे क्योंकि प्राथमिक कक्षाओ में वरिष्ठ अध्यापकों को कालांश देने की प्रथा नही है शायद। नई कक्षा में नए चेहरे, थोडा इंट्रो तो बनता है बॉस।
छोटे छोटे बच्चे एक एक कर अपना परिचय देने लगे, सब कुछ सामान्य था, ऐसा कुछ भी नही जिसे विशेष ध्यानाकर्षण का कारक समझा जाए। मैंने पूछा की क्या मुझे भी मेरा परिचय आपको देने की आवश्यकता है ? बच्चे मुस्कुराये बोले हम आपको जानते है सर 😊
थोडा शिक्षण की और बढ़े ही थे की अचानक ऑफिस से प्रिंसिपल जी का बुलावा आ गया, जाना पड़ा। मेरे ऑफिस पहुंचने की ही देर थी कि छठी क्लास का मॉनिटर सुरेन्द्र एक लड़के को लगभग घसीट कर ऑफिस ले आया।
बोला 'गुरजी ओ काणियो टिक कोनी जी' (गुरूजी ये काना मान नही रहा है जी)
सरकारी विद्यालयों में स्थानीय भाषा का उन्मुक्त प्रयोग बड़ी साधारण सी बात है, भाषा पर ध्यान न देते हुए हमने मुद्दे पर आना ठीक समझा। पता लगा की वो लड़का, जिसे सुरेन्द्र 'काणिया' की संज्ञा से अभिहित कर रहा था और वाकई जिसकी एक आँख नही थी, कक्षा में कोई शरारत कर रहा था। पहली गलती थी सो बस चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। ये "प्रमोद" से मेरा प्रथम परिचय था। प्रमोद, लगभग 10 साल का सांवला सा लड़का, इतने छोटे बाल जो हाथ में न आ सकते थे, एक आँख न जाने किस दुर्घटना में शहीद हो गई थी, चेहरे पर मासूमियत के साथ एक चिरस्थाई मुस्कान थी जो पिटाई होने पर भी साथ न छोड़ती थी।
बाद में पता लगा प्रमोद वही लड़का है जिसका नामांकन करवाने मैं और देवीलाल जी उसके घर गए थे।
प्रमोद की शरारतें दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी, कोई दिन ऐसा गुजरता जब उसकी कोई शिकायत सुनने को न मिले। एक दिन विनोद जी (अध्यापक) ने मुझे किसी कक्षा में अध्यापन के बीच बुलवाया, जाने पर पता लगा की विनोद जी ने प्रमोद की कुछ अन्य विशेषताओं पर भी दृष्टिपात किया है, उन्होंने बताया की यार जब मैं क्लास में आया तो ये हाथों के सहारे उल्टा चल रहा था। हमने उसे डाँटा की कक्षा में इस प्रकार व्यवहार नही करते, उसे डाँट पड़ते देख क्लास के कुछ लड़के बोले ' सर जब क्लास में कोई अध्यापक न हो तो ये गाने भी गाता है।' विनोद जी को गुस्सा आ गया शायद उसकी पिटाई करते पर मैंने रोक दिया, मैंने कहा की रोज अध्यापकों के न होने पर गाते हो न ? आज अध्यापकों के सामने गाओगे। डरते डरते उसने तान छेड़ी, बोल याद नही है पर उस भजन को सुन कर विनोद जी भी दाद दिए बिना न रह सके। बोले यार ये लड़का बहुत टैलेंटेड है, यहां इसका टैलेंट वेस्ट हो रहा है। कुछ और फरमाइशें हुई इस बार प्रमोद ने बिना भय के गाया, और जैसा की था, अच्छा ही गाया।
एक दिन देखा तो प्रिंसिपल सर ने प्रमोद को उसके बस्ते के साथ ऑफिस में ही बिठा रखा था, ये सोचकर कि ये यहां रहेगा तो कम से कम बाकी कक्षा तो पढ़ पाएगी। मैंने देखा वो कुछ चित्र जैसा बना रहा था, पूछा तो मासूमियत से बोला 'कोचरी कोरुं जी'। जिस अदा से उसने कहा मुझे हंसी तो बहुत आई पर डपट कर कहा हिंदी का होम वर्क पूरा है तुम्हारा ? उत्तर अपेक्षा के विपरीत हाँ में मिला। बहुत खराब लिखावट थी पर गृहकार्य कर रखा था पट्ठे ने, बोला 'गुरजी म बी क्लास म जाऊ जी ?'(गुरूजी मैं भी कक्षा में चला जाऊँ जी ?) मैंने उसे कक्षा में भिजवा दिया।
प्रमोद चाहे जितनी शरारत करता हो पर जिस दिन वो स्कूल नही आता था उस दिन उसकी क्लास में पढाने में मज़ा नही आता था, वजह पता नही।
अर्द्ध वार्षिक परीक्षा से थोडा पहले ही प्रमोद ने स्कूल आना पूरी तरह बन्द कर दिया। चिंता सी होने लगी, वजह किसी को पता नही थी, उसके नजदीक से आने वाले कुछ बच्चों को उसके घर भेजा कारण जानने (नाम कट जाएगा की झूठी और थोथी सरकारी धमकी के साथ), बच्चे खाली हाथ वापस आये , प्रमोद घर पर नही था। घर पर सिर्फ ताला मिला। लगातार कई रोज तक मैं रोज बच्चों को उसके घर भिजवाता वो जाते और ताला देख कर लौट आते।
इसी बीच विद्यालय में रिकॉर्ड ऑनलाइन करने की शाला दर्पण नाम से नई कवायद शुरू हुई, स्कूल में बहुत से अध्यापक कंप्यूटर के ज्ञाता हैं पर न जाने क्यों ये सब करना मेरे हिस्से में आया। व्यस्तता का एक नया दौर शुरू हुआ , कक्षा में जाना तक दूभर हो गया। स्कूल में समय कंप्यूटर की बोर्ड पर उँगलियाँ घिसते न जाने कब चला जाता कुछ पता न चलता। समय पंख लगाये उड़ता जा रहा था। वार्षिक परीक्षाएं भी सम्पन्न हो गई, प्रमोद के बारे में पता किया तो पता लगा वो अब भी स्कूल नही आता। 😢
30 अप्रेल 2016 को परिणाम घोषित किया गया,बहुत सारे बच्चे बहुत खुश थे, शिक्षा के अधिकार की महिमा अपरम्पार है, जो पढ़ते थे वो तो खुश थे ही जो कभी नही पढ़ते थे वो भी प्रफुल्लित जान पड़े, 1 से 8 तक सब उत्तीर्ण/प्रोन्नत हो गए। किसी को शायद याद भी न रहा होगा प्रमोद तब भी नही आया था। पास होने वाले और कुछेक जो 9th में आते ही गाड़ी में ब्रेक लगवा बैठे इन सब की चहल पहल के बीच किसी के पास इत्ती मामूली सी बात के बारे में सोचने तक का वक़्त कहाँ होता भला।
10 मई 2016, इस सत्र का अंतिम कार्य दिवस, मुझे बाजार में थोडा काम था सो प्रिंसिपल जी से आज्ञा लेकर मैं शाला समय से थोडा पहले विद्यालय से निकल गया। सहारा इंडिया में कुछ पैसे अटके है, उनके ऑफिस से निकल कर जैसे ही मैं बाइक पर स्वर होने वाला था तभी "गुरजी नमस्ते", जानी पहचानी आवाज़ ने मुझे पीछे देखने पर विवश कर दिया। देखा प्रमोद था , फटा पुराना कुरता पहने, कन्धे पर एक बोरी लटकाये एक हाथ में अनाज साफ़ करने वाली बड़ी सी छलनी लिए वो अपनी चिरपरिचित मुस्कान लिए खड़ा था। बहुत सारे सवाल एक साथ मन में कौंधने लगे, इतने छोटे लड़के को इतनी भरी दुपहरी में काम करना पड़ रहा है? जब मैं 11 वीं में था मैंने भी विषम आर्थिक परिस्थिति के चलते 400 रूपये महीना में अख़बार बांटे थे, पर प्रमोद तो बहुत छोटा है यार। उसकी उम्र अभी काम करने की है ? मेरे कुछ पूछने से पहले ही उसने कहना शुरू कर दिया, मानो वो मेरी मनः स्थिति को समझ गया था, बोला गुरजी म अब काम करण लाग गयो, भापा बीमार रेव नी। (गुरूजी अब मैंने काम करना शुरू कर दिया है, पापा बीमार रहते है ना) मैं अवाक् खड़ा था, प्रमोद जाने लगा तो उससे रुंधे गले से बस यही कह पाया की तुम पास हो गए हो 6 ठी क्लास में, समय मिले तो स्कूल आना। 😢😢😢😢😢
पास होने की बात सुन प्रमोद खुश था, फिर बिना कुछ और कहे वो धान मण्डी की भीड़भाड़ में गुम हो गया
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मित्रो , निश्चय ही इस कहानी से किसी अधिनियम के औचित्य/अनौचित्य को तो परखा नही जा सकता, मैं खुद शिक्षा के अधिकार के त्रुटिपूर्ण प्रावधानों पर कई बार प्रवचन दे चुका हूँ पर इसी त्रुटिपूर्ण अधिनियम ने एक हालात से परेशान एक बालक को खुश होने की वजह दी। बस इतना ही 😢😢😢😢
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬

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