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काले कोट को हमेशा से अपने रूप पर बड़ा अभिमान था, होता भी क्यों ना 'काला करमा आला' जिस भी रंग के साथ पहनो वो जँच ही जाता, वो टाइम गया जब लोग कमीज और धोती पहन मूँछो पर ताव दिया करते थे आज सभ्य दिखने की पहली शर्त जैसा ही बन गया है पाश्चात्य परिधान पहनना उनमे भी अगर कोट पहना हो तो क्या कहने, सब सलाम करेंगे। ये जितने भी राजनयिक हैं , वकील हैं, सब क्या पहनते हैं, क्या उसे नही मालूम ? उसके बिना किसी को कोई पहचानेगा भी नही। कोई पार्टी हो या उत्सव काले कोट की शान ही निराली होती है।
कपास के फाहों से महीन सूत के लच्छे बनने के दौरान बड़ी गुदगुदी हुआ करती थी, अचानक जब उस पर काला रंग डाला गया तो बड़ा गुस्सा आया था, ये क्या कर दिया बे कलुवे को तो हमेशा गालियाँ ही मिलती है लेकिन जब वो कपड़ा और कपड़े से इस रूप में आया तो सब उसे बड़ी श्रद्धा से निहार रहे थे। थोडा छू लेना चाहते थे, पर कोट फैक्ट्री वाले ने घुड़क दिया, मैला हो जाएगा भई, घण्टा मिलेगा फिर इसका कुछ ? वो सोचने लगा शायद ये 'घण्टा' भी मुद्रा या विनिमय का कोई प्रकार ही होगा।
आज वातानुकूलित दुकान में हैंगर से लटक कर खुद के भाग्य पर इतरा रहा था, उसके पीछे उसी की बिरादरी के कोटों की लम्म्म्म्बी कतार थी,
'थोडा थोडा आगे सरक जाओ ना यार साँस तो ले लेने दो 'मटमैले भूरे रंग के रेक्सिन के कोट ने कहा तो कल्लन मियां ने डपट दिया, फिर अपने गले की दाम पट्टी लहराते हुए बोला 'अरे यार बोलने से पहले देख तो लिया करो किससे बात कर रहे हो '। बेचारा भूरा चुप हो गया। बाकी कपड़ों को भी ये सब अच्छा नही लगा पर सब सहिष्णुता का परिचय देते हुए चुप ही रहे।
फिर एक वकील साहब आये और काले ख़ाँ को दाम चुका कर साथ ले चले, जाते जाते वो हाथ बाहर निकाल कर टाटा करते हुए सबको चिढ़ाना चाहता था पर दुकानदार ने बेदर्दी से उसे कोट कवर में ठूस दिया। वकील साहब का घर बड़ा आलिशान था, हर तरह की शान ओ शौक़त और आराम का इंतेज़ाम किया था पट्ठे ने,
पति के हाथ में कोट देखा तो बीवी चिल्लाई, 'ये क्या एक और कोट? क्यों फालतू चीजों से घर भरते रहते हो ?'
'फालतू नही डार्लिंग, ये तो मेरे पेशे की पहचान है'
'हुँह तुम्हारी इस पहचान से अंदर दो अलमारियाँ अटी पड़ी है, एक और कहाँ रखोगे?'
'इसे छोडो, ये तो जहाँ तहाँ रख देंगे, पहले तुम ये बताओ तुमने वो देखा क्या ?'
'क्या वो'
'अरे वही यार'
'ये क्या ये वो वही लगा रखा है, क्या चाहिए साफ साफ कहो न'
'अरे वो बताओ न कहाँ रख दिया'
'जाओ मुझे नही बात करनी आपसे'
'अच्छा अच्छा मत बताओ मैं खुद ढूंढ लेता हूँ, अरे हाँ ये ही तो है, मैं कब से ढूंढ रहा था, बताती भी नही चोर, क्यों चुराया मेरा दिल बोलो'
'हटो भी' मेमसाब ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
कोट ने कवर की खिड़की में से झांक कर देखा, वकील साहब उसे सोफे पर पटक बीवी के साथ प्रणय में लीन थे। 'राम राम क्या जमाना आ गया है, लोग टाइम बे टाइम कुछ नही देखते'।
थोड़ी देर बाद कल्लू को उसी के जैसे और कलुआ बिरादर की टोली में जबरदस्ती घुसेड़ दिया गया। 'अबे ओ हीरो ज्याच्ती मच मच नही कने का ' उसके जैसे दिखने वाले दूसरे कोट उसे धमका रहे थे, कसम से जीभ बाहर लटक गई थी, दम घुटना किसे कहते हैं पहली बार अनुभव हो रहा था।
फिर कई बार वकील साहब के साथ न्याय के मन्दिर जाने का मौका मिला, देखा एक न्याय की देवी है वहाँ जिसके सामने लोग बड़ी बड़ी कसमें खा कर पेट भर झूठ भी उड़ेलते है, देवी कुछ नही देखती पर उसे सब दिखता है। कई बार जज के लिए खुद वकील साहब 'माल' लेते कई बार दिन में कमाए उस माल से रात के 'माल' का जुगाड़ करते। बहुत सारे बेगुनाह इस माल के चक्कर में हलाल हो गए। कल्लू को भी ये सब देखना अच्छा नही लगा, दिल जलता था ये सब देख कर, एक दिन रेनॉल्ड के पेन से इस सब के बारे में बतिया रहा था कि रेनॉल्ड रोने लगा उसके स्याही के आंसुओं से कल्लू खुद ही भीग गया। नतीजा भारी हुआ, अगले ही दिन वकील से उसका तलाक हो गया, बीवी तो पहले ही उस जैसो से खार खाती थी, उसे निपटा कर फटाफट स्टील का पतीला ले गई।
बेचारा कल्लू थोड़ी साफ सफाई होने के बाद फिर से बाजार में आ गया, पर अब सन्डे सेल से फख्त 200 रुपल्ली में बिका, इस बार का खरीददार कोई सब्ज़ी वाला था, घर जाने से पहले 2 देसी शराब की थैली ली कोट की जेब में थैली डाल बेतरतीब उसे इकट्ठा कर अपने झोले में डाल लिया। दुर्गन्ध से कल्लू का सर फटा जा रहा था, घर पहुंच कर पड़ोसियों पर इम्प्रेशन जमाने के चक्कर में उसने कोट पहना,और प्याज के चखने के साथ बड़े इस्टाइल से शराब गटकी, फिर बीवी की ठुकाई कर उसे मर्द होने का अहसास दिलाया और वही पड़ा रहा। पर बीवी ने अपना धर्म निभाया और उसे आराम से लेटा कर कल्लू को उसके बदबूदार बदन से अलग किया, अंदर खूंटी पर टँगा कल्लू सोचने लगा। 'औरत वाकई महान होती है ?'
सुबह सब्ज़ी वाले के 14 साल के बेटे की नज़र कल्लू पर पड़ी तो उसे खूंटी से उतारने की कोशिश करने लगा, कद छोटा होने की वजह से खींचतान में खूंटी से अड़ कर कॉलर के पास से थोडा सिलाई फट गई, कल्लू को अब अपनी शक्ल देख कर रोना आ रहा था। क्या से क्या हो गया यार। शाम को जब सब्जीवाला आया तो उसने बेटे की खूब मरम्मत की पर कल्लू की मरम्मत करवाने का जिक्र भी नही किया। अब रेहड़ी पर सब्ज़ियाँ बेचते बेचते उसकी हालत सब्ज़ी वाले से भी खस्ता हो गई थी, जगह जगह से चिन्दियाँ निकल आई थी। सब्ज़ी वाले के बेटे को कमाने की जिम्मेदारी मिली तो वो किसी दुकान पर सफाई का काम करने लगा, एक सुबह कल्लू की आँख खुली तो लड़का उसके बिखर चुके टुकड़े अलग कर रहा था, दुकान पर पानी से निचोड़े जाते जाते कल्लू ने देखा ये वही दुकान थी, और आज सब उसे तिरस्कार से देख रहे थे।
#जयश्रीकृष्ण
©अरुण®™
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