💤💤💤💤💤💤 ठाले बैठे का सपना ♠♠♠♠♠


फेसबुक बड़ी मजेदार दुनिया है बाबू, इहाँ भांती भांती के पुसप खिलते है, रंग बिरंगे खुशबूदार से लेकर सड़े गले बदबूदार तक। जिसका जैसा टेस्ट वो वहां मुँह मार ले, कोई रोक टोक नही। भई अभिव्यक्ति की आज़ादी है, अपुन की चॉइस का मामला है जे भी।
जब से अधियापकगिरी में घुसे है माँ कसम सुधर गए है हम, हम पहले बाले पगलू नही रहे जी, नो नोटँकी नो लड़कीबाज़ी, नो मस्ती नो मजाक , अरे हमे अब जे सब सोभा थोड़े न देगा। जकीन नही होता तो हमारी लिस्ट खंगाल लेओ देखो कितरे डाडे सुठे बन्दे भर्ती किये हैं एक ते बढ़कर एक। पूरा भारत भरमन घर बैठे करा देते है बाये गोड। पहले की मेरी पगलू वाली id में सिर्फ कन्याएं थी लोगिन करते ही
' देखा जो तुझे यार, दिल में बजी गिटार'
टाइप गिटार हारमोनियम वीणा बांसुरी तानपुरा और न जाने क्या क्या जाने कहाँ कहाँ से बजने लगता था पर नाउ माहौल इज चेंज। वाल पर भक्ति रस से लेकर बीभत्स रस तक सब मिलेगा बट बिदाउट श्रृंगार। खैर ! कई दिनों से जेएनयू के कांड पर सभी देशभक्त थूक बिलोए रहे है इसकी माँ, उसकी बहन , ज़िंदाबाद मुर्दाबाद और न जाने क्या क्या। पर हमको क्या, हम तो सुधर चुके है ना। जब तक कोई डायरेक्टली आकर हमे झापड़ मार के न उकसाए तब तक हम तो शतुरमुर्ग की तरह रेगिस्तान में गर्दन घुसा के बैठे रहेंगे, ये मन में ठान के रख रखा है।
आज यहां तफरी मारते मारते कुछ राष्ट्रबादी (है या नही वो जाने) हस्तियों की कलम चाटने बैठ गया।
बोल रहे थे कि भैया गृहयुद्ध के हालात बन गए
अच्छा ? कब , कहाँ , कैसे ? (3 सवाल एक साथ हमारे मन में कौंधे)
तो साहेब ने एलेबोरेट कर दिया अगली लाइन में, की जेएनयू में नारे लगाने वाले इसी देश के वो लोग है जो इस सनातन संस्कृति में विश्वास नही करते, जिनकी देशबक्ति सरहदपार के देश के लिए है ऐसे लोग ही वो होंगे जिनसे हमको संघर्ष करना पड़ेगा। चाहे कोई चाहे न चाहे।
हम मन ही मन चिल्लाये (ऐसा भी कोई होता है क्या, अच्छाई भी कोई चीज होती है, गांधीवाद ज़िंदाबाद)
आगे कहीं और पढ़ा कि बंगाल भी इस दौड़ में शामिल हो चूका है, कोई जाधवपुर नाम की जगह है वहाँ, वहां की यूनिबर्सिटी में भी वही सब हुआ, रिपीट टेलीकास्ट जेएनयू एपिसोड। इस बार कश्मीर की जगह मणिपुर की आज़ादी मांग ली।
ओ तेरी, जे क्या हो रिया है।
एक जगह पढ़ा कोई चाहर साहेब थे, पढ़ के लग रहा था की बाबूजी रस्सी पर चलने की तरह बैलेंस बनाने की कोशिश कर रहे थे, हिन्दू मुस्लिम भाई भाई, सब अच्छे है कुछेक खराब है, उनको मारो टाइप, खैर।
एक मितर ने लिखा साले मुल्ले हर समस्या के मूल में है, बोले तो हर फसाद की जड़। इनको मारो जड़ खत्म करो बरना जे अमर बेल की तरह फैलते जाएंगे । isis, तालिबान जैसे न जाने कितने एक्जेम्पल भी दे दिए।
मैं सोच रहा हूँ बस।
एक कोई सत्या है सत्य बचन बांचते है, लम्बी चौड़ी पोस्ट में किसी संजय रिश्ते वाले का पोस्ट मॉर्टम कर रखा था, जीते जी। अगर बो उसकी पोस्ट पढ़ ले गलती से भी, तो बिना कुछ खाये पिए फाँसी ले ले कि मैं तो जिंदगीभर भाड़ झोंकता रहा।
पढ़ते पढ़ते नींद आने लगी।
मैं सो रहा हूँ।
मैं सो गया हूँ।
सपना देख रहा हूँ।
(लड़की नही है कोई)
सच्ची मुची वाला सपना
बिलकुल वैसे जैसे कोई पिच्चर होती है, HD प्रिंट विद डॉल्बी डिज़िटल साउंड।
ऊपर से फिल्मांकन हो रहा है, ड्रोन कैमरा यूजिंग शायद
पूरा शहर जल रहा है, हर तरफ आग, तबाही, खून, लाशें
कुछ दूर लोगों के झुण्ड, सेम टू सेम गदर एक प्रेम कथा वाली भीड़ की कॉपी पकड़ लेओ।
भीड़ मारो मारो चिल्ला रही है, दौड़ रही है एक मुहल्ले की और।
अबे जे तो कुछ जाना पहचाना सा लग रहा है।
ओये मेरा शहर है ये तो !
मेरा सादुल शहर, मेरी मटीली यार!
और ये साले तो मेरे ही मुहल्ले की और ही जा रहे हैं।
यहां भी आग है, निहत्थे लोगों का प्रतिकार, कटना, चीखें, गिरना, खून। भीड़ आगे बढ़ रही है, जिंदाबाद मुर्दाबाद जिंदाबाद मुर्दाबाद।
भीड़ मेरे घर तक जा पहुंची है, मैं उन्हें रोकना चाहता हूँ, पर मेरी आवाज म्यूटेड है मानो गला बैठ गया है। आवाज़ नही निकलती।
भीड़ ने दरवाजा तोड़ दिया, अंदर प्रवेश।
मैं चिल्ला रहा हूँ, आवाज़ मनो कभी थी ही नही।
भीड़ ने मेरे पापा पर तलवार चलाई, वो गिरे।
मेरी आँखों में पानी है।
मेरी माँ, सालो उन लोगों ने किसी का क्या बिगाड़ा है, भीड़ मेरी नही सुन रही, खून का एक और फव्वारा। मेरी पत्नी , मेरा बच्चा। ओह ये लोग बोल क्यों नही रहे।
भगवान ये सब क्या हो गया, भगवान मेरे साथ ऐसा क्यों किया।
चारो और लूटपाट , वहशीपन का नंगानाच जारी है।
मैं अपने चेहरे के आँसू महसूस कर पा रहा हूँ।
हड़बड़ाहट, अरे ये तो सपना है।
उफ़्फ़ मैं भी क्या क्या देख आया जगती आँखों से।
भगवान तेरा लाख लाख शुक्र है, की ये सिर्फ एक सपना था।
पर क्या ये हकीकत हो सकता है ? शायद हाँ शायद ना। भगवान न करे की कभी ऐसा हो पर अगर हो तो , तो क्या ? तो क्या मैं उसके लिए तैयार हूँ ?
हो सकता है फेसबुक या इस जैसी सोशल साइट्स पर जताई जा रही चिंताओं को मैं मात्र मुर्खप्रवंचना बोल कर टाल दूँ, पर अगर उनकी चिंताए सच हुई, तब भी क्या मैं अपने को इतना निःस्पृह रख सकूँगा ? क्या मैं अपने परिवार अपने अपनों को सुरक्षित रख सकूँगा?
प्रश्न ढेर सारे हैं, उत्तर मेरे साथ आप भी खोजिए।
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬

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