✍✍✍✍✍ लिखते लिखते कुछ हो जाए ♠♠♠♠♠ .


मैं जब 6 वीं क्लास में था तो मेरे साथ एक लड़का पढ़ा करता था 'विक्रम सहगल', मोटा ताजा लम्बा हट्टा कट्टा जम्बो जेट लड़का। पढ़ने में डब्बा पर शरारत में अव्वल।
मैं अपनी क्लास में सबसे ज्यादा छुटकू मरियल दुबला पतला कागजी पहलवान टाइप लौंडा था। लगभग पूरी क्लास उसके हाथों पिट चुकी थी किसी न किसी बहाने , इन्क्लूडिंग मी आल्सो।
आप में से अगर किसी ने डोरेमोन कार्टून देखा हो तो नोबिता की बार बार बिना बात के ठुकाई करने वाला 'जियान' जरूर याद होगा, तो यूँ समझ लीजिये की विक्रम जीता जागता जियान था जिसे अपने हाथ हल्के करने को कोई न कोई चाहिए होता था।
जमींदार अपने जुल्म बदस्तूर किये जा रहा था, और जनता बेचारी असहाय त्रस्त लाचार भगवान भरोसे जी रही थी।
तभी एक और 'राकेश बेनीवाल' फ्रॉम कुलार का उदय हुआ, मने की हमारी क्लास में एंट्री। धेन टेन नेन, शर्ट को बाजु तक चढ़ाये बेतरतीब बिखरे बाल उसके अक्खड़ स्वभाव का पूर्व परिचय दे रहे थे। खाते पीते घर का मुस्टंडा था, वो भी 'बिश्नोई' , वो बिश्नोई जो अपनी लड़ाकू प्रवृति के लिए पुरे इलाके में प्रसिद्ध हैं गन्दी तरह से। क्लास के सब चूजे और सहम गए। मन ही मन बुदबुदाये " पहले वाला क्या कम था जो एक और भेज दिया , भगवान ये जो भी हो रहा है ठीक नही हो रहा , बता रहे हैं। तुम क्यों अपना प्रसाद कैन्सल करवाना चाहते हो ?"
लेकिन आश्चर्य , सब आशंकाएँ निर्मूल साबित हुई । राकेश जिसे हम सहगल पार्ट 2 समझ रहे थे वो बड़े सौम्य स्वभाव वाला निकला। फुल ऑन मस्तीखोर।
एक दिन जियान ने अपनी आदतानुसार राकेश से भी पंगे लिए, परिणाम जियान को भरी पूरी क्लास में जियान को उठा उठा के पटका गया। जियान जिसने न जाने कितनी बार कितनो को धोया था खुद एक ही धुलाई में अच्छा बच्चा बन गया। ( लातों के भुत यू नो) अल्ला कसम सब बच्चे भर भर दुआएँ दे रहे थे राकेश मियां को।
हैप्पी एंडिंग
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आप सोच रहे होंगे की इस बाललीला का वर्णन करने का क्या तुक है ?
जी बिलकुल सही समझा आपने वाकई कोई तुक नही है 😂😂😂😂 खीखीखी
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आज फेसबुक पर किसी मलंग को अजीत दद्दा के नाम से नूरा कुश्ती करते देखा। अपनी आदत है की अपन वहीं बोलते है जहाँ बहुते जरूरी हो और वहां जहाँ अपनी कोई सुने भी। मलंग साहेब तो अपनी पोस्ट में ही एलान कर के बैठे थे की वो किसी को कुछ नही समझते। सो अपन ने कोनो कमेंट नई किया उदर, अजीत दद्दा को हड़काया जा रहा था की रिक्वेस्ट मत भेजियो एक्सेप्ट नही करेंगा टाइप। मने की आप जे समझ लेओ की मलंग बाबू अहम् ब्रह्मास्मि कर चुके। उनके चेले (चमचा शब्द कुछ अतिवादी सा लगेगा) उनकी हाँ में हाँ मिला कर खीखीखी करते तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे।
मलंग अंकल और दद्दा दोनों हमारी लिस्ट में है, हम दोनों को बाँचते है, दोनों के लेखन के एक एक शब्द का यथाशक्ति आनंद लेते है। दोनों से ही कबहुँ नही चेटियाये, तो व्यक्तिगत लेबल पर दोनों से नो जान पहचान। पहले सोचा उन लोगो का अपना मैटर अपने को क्या, फिर सोचा अभिव्यक्ति की आज़ादी तो हमे भी है भई।
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मलंग साहेब शायद फेसबुक में इतना रम गए हैं की आभासी जय जय कार को वास्तविक समझ उसकी होड़ लगा रहे है। (मेरे जितनी पोस्ट लिखने में पहलवान 7 साल और लगाएगा, इस टिप्पणी से मुझे तो ऐसा ही प्रतीत हुआ) घोर दर्प में डूबी उनकी टिप्पणियाँ उनकी अपनी कीर्ति को कलुषित कर रही थी। जिस पहलवान के नाम को वो अपनी वाल से हटा देने का यत्न कर रहे थे, अनजाने में उसी का नाम न जाने कितनी बार और लिख बैठे।चच चच चच। बेचारे। जैसा मैंने पहले लिखा की आप दोनों की पोस्ट मैंने पढ़ी है , भाषा और ह्यूमर दोनों में आप उनसे कहीं आगे हैं, लेकिन अपने ठेठ देसी गाली वाले चुटीले भाषाई अंदाज़ में विषय पर अपनी पकड़ दद्दा को आपसे अनोखा बना देती है। भले ही आपको मेरी बातों से कोई फर्क न पड़े पर आपकी ऐसी टुच्ची पोस्ट से मेरे और मुझ जैसे अन्य कइयों के मन में आपके प्रति सम्मान कम हुआ । पहलवान जी में होंगी लाखों बुराई पर किसी को व्यक्तिशः रूप से ओछा दीखाने के लिए ऐसी तुचियापन्ति करते कम से कम मैंने तो कभी नही देखा।
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬

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