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'हाँ भई, क्या चाहिए ?' बहुत रूखे स्वर में मैंने कहा। कमरे के बाहर एक उजड़ अधपके खिचड़ी बालों वाला लगभग 50 वर्षीय नाटा सा गौर वर्णी इंसान अजीब सी मुस्कान के साथ दरवाजे की जाली में से अंदर झाँकने की कोशिश कर रहा था।
मेरे प्रश्न का उत्तर उसने उसी तरह मुस्कुराते हुए भीतर झांक कर दिया तो सहसा मुझे गुस्सा आ गया।
'बड़े बेहूदा इंसान हो यार, इस तरह बेशर्मी से खुले आम तांक-झांक कर रहे हो, और दांत भी दिखा रहे हो ? तू रुक अभी वही' ये कह कर दरवाजा खोला और उस इंसान को कॉलर से पकड़ कर झिंझोड़ा और कहा, 'अब बोल कौन है बे तू, और क्या देख रहा था यहां ?'
वो डर गया, रोने लगा। डबडबाई आँखों से झरते आंसुओं के बीच मुंह से कुछ अस्फुट से शब्द फूट पड़े, 'घणसा राम'
'घणसा राम!!?'
'घणसाराम कित्थे अ?'
'कौन घणसा राम बे',मैं उसे चमाट मारने वाला ही था कि, घनश्याम जी लगभग दौड़कर आए, बोले छोडो इसे, ये मुझे ढूंढ रहा है।
"आपको!!!!!!????"
घनश्याम जी मेरे करीबी रिश्तेदार है और उससे भी पहले मेरे मित्र भी है। कॉन्ट्रैक्टर थे, और हॉस्पिटल की सफाई का ठेका उनके पास होने की वजह से हॉस्पिटल के पास बनी एक धर्मशाला में रहा करते थे। उन्ही के कमरे, कमर नम्बर 13 के बाहर ये तांक झांक हो रही थी।
'ये नमूना है कौन? आपको क्यों ढूंढ रहा था?'
'अरे यार ये बेचारा भोला है (मानसिक रूप से अल्पविकसित व्यक्तियों के लिए राजस्थान में कई जगह ये शब्द काम में लिया जाता है), यही भटकता रहता है, तो मेरे पास भी आ जाता है कभी कभार'
'खाना मांगने आता है ?'
'अरे नहीं, मैं कौन हूँ इसे खाना खिलाने वाला, इसे तो कोई न कोई खिला ही देगा, कैसे नही खिलाएगा झक मार के खिलाना पड़ेगा।' घनश्याम जी हँसते हुए बोले।
घनश्याम जी की बात कुछ पल्ले नही पड़ी, फिर पूछा 'आप जानते हो इसको ? मने ये है कौन'
'जानता हूँ, गंगानगर की जेसीटी मिल है न, उसमे इसके पिता बहुत अच्छी पोस्ट पर काम करते थे, उनके जाने के बाद इसकी माँ और इसके सब भाई बहनों को, हाँ इसके भाई बहन भी है अफ़सोस वो सब भी ऐसे ही हैं, बेचारों को इन्ही के रिश्तेदारों की वजह से बेघर होना पड़ा।'
'ओह, भगवान भी क्या क्या दिखाते है'
भोला अब भी वही खड़ा था, घनश्याम जी ने उसे अंदर बुला लिया, बोले 'भाटिया ये भी तेरा बेली है'
भोला खुश हो गया
घनश्याम जी ने कहा, 'अपने बेली को नाम नही बताओगे ?'
"किसनलाल भाटिया साहब जी" वो चहकते हुए बोला, तो मैं और घनश्याम जी दोनों हँस पड़े।
'ओ बेली एक उपियो तो दे दे' भाटिया ने मुझसे कहा तो उसकी मासूमियत पर मैं जो अभी थोड़ी देर पहले उसे पीटने वाला था मैं भी उसे इंकार न कर सका। '
उसे पैसे देने लगा तो घनश्याम जी ने रोक कर कहा ये बस सिक्का लेता है नोट नही। मैंने उसे 5 का सिक्का दिया तो भाटिया और खुश हो गया।
घनश्याम जी बोले, 'देखा इसे तो सबको देना ही पड़ेगा झक मार के'
😊😊😊😊
हम फिर हंस पड़े।
घनश्याम जी के पास बहुत बार जाना होता है सो गाहे बेगाहे भाटिये से भी मुलाकात हो जाती। कभी वो पैसे मांगता, कभी अपनी ही कोई अजीब सी राम कहानी सुनाने लगता, कभी मुझसे उस भाभी का हाल चाल पूछता जो थी ही नही, उसकी किसी बात का अब बुरा नही लगता था।
कई बार कुछ बुद्धिजीवियों को कहते सुना, यार बोर्डर एरिया है क्या पता कोई जासूस ही हो। भाटिये को जासूस कहने या समझने के पीछे क्या लॉजिक था कभी समझ नही आया बस इतना पता है कि हर एक को बेवजह शक की नजर से देखना भी ठीक नही होता।
एक के बाद एक भाटिये के 2 भाई और एक बहन चल बसे, भाटिये की सेहत पर कुछ फर्क न पड़ा। न कोई दुःख न ख़ुशी। मैं सोचता ये जीवन का कौनसा रंग है ? भाटिया भर पेट खाता, गर्मी में भी 3-4 स्वेटर और कोट पहने रहता, जिसने दे दिया ख़ुशी से पहन लिया उतारने का तो सवाल ही पैदा नही होता। कभी कभार बहुत मनाने पर नहाता, तो कभी खुद ही हैंडपम्प के नीचे पानी के साथ अठखेलियाँ करता। धेले की टेंशन नही, बिलकुल बच्चों की तरह। एक दोपहर सुना उसकी माँ भी स्वर्ग सिधार गई, हम लोगो के अलावा उसका था कौन, कल्याण भूमि की गाड़ी आई तो उस पर पार्थिव देह को चढ़ाते वक़्त अचानक कहीं से भाटिया भी प्रकट हुआ, अपनी माँ की अर्थी को कंधा लगाया और चीत्कार भरे स्वर में बोला 'बलि रामचन्द्र की जय' 'बलि रामचन्द्र की जय' फिर फूट फूट कर रोने लगा। पहली और शायद आखिरी बार उसे रोते देखा, उसकी माँ के देहांत को मुक्ति की संज्ञा देने वाले भी भाटिये के आँसू देख भावुक नज़र आये, सबकी आँखें नम थी। 😢😢
पर जीवन कभी रुकता कहाँ है, घनश्याम जी की शादी में वो स्पेशल गेस्ट था, घणसा राम का खास आदमी जो था। भाटिये ने खूब मजे किये , दूल्हे की घोड़ी के साथ साथ रहते उसको भी अच्छी खासी बख्शीश मिल गई। उसके बहुत बाद तक शादी की बाते भाटिये से सुनने को मिलती, कई बार पूछता 'अब शादी कब है?' 😊😊
घनश्याम जी मेरी और इशारा कर देते , 'अब इस बेली की शादी होगी' , और फिर उसके अजीब अजीब सवालो से पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता। घनश्याम जी मजे लेते, कहते ये शर्ट जो इन्होंने पहन रखा है, वो तेरे लिए लाये है 😁। वो ललचाई नजरों से देखता तो लगता मुझे नंगे बदन किये बिन न मानेगा पर फिर वही एक 'उपिया' मांगता, पाकर सब भूल जाता मानो सृष्टि का आदि अंत इस एक रूपये से ही तय होने वाला हो। न भी होता हो तो उसे क्या।
उसके बाद कई बार घनश्याम जी के पास मेरा कई बार जाना हुआ पर भाटिये से मुलाकात न हुई, सोचा यही कहीं टहल रहा होगा। फिर ऐसे ही एक रोज घनश्याम जी से उसके बारे में पूछा तो पता लगा, भाटिया बीमार है, बहुत बीमार। शुगर हो गई है और तो और दोनों किड़नियाँ भी डैमेज है। जाकर देखा तो भाटिया हैण्डपम्प के नीचे नहा रहा था, चेहरा सूज गया था पर मुस्कान अब भी बादस्तूर कायम थी, मुझे देखा तो दूर से ही चिल्लाया,
"ओये बेली,की हाल है, तू आयो कोनी, मैं घणसा राम न पूछ्यो"
बहुत दुःख हो रहा था, आँसू जी कड़ा कर के रोक लिए, घनश्याम जी से पूछा क्या कुछ इलाज नही हो सकता ?
घनश्याम जी बोले, "नही , दिखाया बहुत सारे डॉक्टर्स को , सब कहते है अब कुछ नही हो सकता।"
हॉस्पिटल में ही घूमते इस भ्रमर से सब डॉक्टर, नर्सेस भी परिचित थे, पर किसी के पास उसके लिए करने को कुछ बचा नही था।
कुछ दिन बाद फिर जाना हुआ, भाटिये को देखने की चाह जब पूरी न हुई तो घनश्याम जी से उसके बारे में पूछा, जवाब में उन्होंने एक अख़बार सामने रख दिया, बड़े बड़े शब्दों में छपा था,
"उसके पास कुछ नही था पर वो मानव जाति को अपना ऋणी बना गया"
भाटिये की देह मेडिकल कॉलेज में दान कर दी गई थी। जो स्वयं चलता फिरता जीवन था, हर परिस्थिति को समभाव से स्वीकारने वाले इस 'भगवान के बंदे' ने मरणोपरांत भी लोगों के लिए शायद उस एक रुपये के बदले अपनी अंतिम पूँजी भी लगा दी।
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#जयश्रीकृष्ण
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