स्कूल में दो छोटी-छोटी क्यूट सी बच्चियाँ आई थी, ऑफिस के सामने से गुजरते उन्हें वहाँ बैठे देखने के बाद छठी क्लास के दो बच्चे मने मैं और मेरा दोस्त 'फूल और कांटे' के अजय देवगन हुए जा रहे थे। कौन है ? क्यों आई है? न्यू एडमिशन है ? किस क्लास में है ? छोटे छोटे दिलों में बड़े बड़े सवालों के ज्वालामुखी उठ रहे थे। भगवान से प्रे भी शुरू हो चुकी थी, 'हे भगवान ये न्यू एडमिशन ही हो और हमारी ही क्लास में हों'। और तो और बंटवारा भी हो गया, ' वो जो छोटे बालो वाली है वो मेरी, लम्बे बालो वाली तेरी'।
क्लास में जा बैठे पर मन अब भी कहीं और था। बैक ग्राउंड में हम दोनों के कानों में गाना गूंज रहा था "ओ जिसे देख मेरा दिल धड़का, मेरी जान तरसती है", गाना अचानक से रुक गया जब देखा वही दोनों हमारी ही क्लास के बाहर से टीचर से अंदर आने की अनुमति मांग रही थी। सच्ची बताउँ भगवान पर विश्वास उसी पल अटूट हो गया, तू है भगवान तू है।
'क्या नाम है तुम दोनों का' टीचर ने उन्हें अंदर बुला कर पूछा ।
'जी मैं ट ट टिया और य य ये मेरी बहन श्श्श्रीया।'
मेरे वाली, मने छोटे बालों वाली बोली, थोडा हकला के बोलती थी, पर पता नही क्यों उसकी हकलाहट भी अदा लग रही थी, उसके हर ट ट टिया पर द द दिल दिया बोलने को मन कर रहा था।
टिया थोड़ी शर्मीली हंसमुख थी तो श्रीया थोड़ी गुस्सेल। अब हमें तो वो कुछ भी कहें, कैसे भी कहें पसन्द ही आने वाला था, सो मेरे दोस्त , अरे मैंने उसका नाम नही बताया अभी, विपिन मने विक्की, तो विक्की को श्रीया के गुस्से पर लुट जाने का मन होता।
छोटे बच्चों की बड़ी प्लानिंग, सोच रहे थे अब जब छुटपन में ही सही प्यार हो गया तो हो गया, इजहार कैसे हो, इजहार न हो कम से कम उन्हें कैसे भी पता तो लगना चाहिए के ये दो लट्टू उनके लिए ही घूम रहे हैं।
क्लास के दब्बू लड़के धर्मवीर को मोहरा बनाया, हाफ टाइम में जब भी सब खेलते तो हम भी चोर-सिपाही मने पकड़म पकड़ाई खेलते, हर बार धर्मवीर हमको पकड़ने की कोशिश करता, और हम दौड़ते दौड़ते उनकी रस्सी कूदने में शामिल हो जाते, कभी टकरा भी जाते, 'अरे तुमको लगी तो नही, सॉरी यार', उनको ये हरकते सिर्फ बेवकुफ़ियाँ लगती, क्लास में हम हमेशा उनके ठीक पीछे वाले डेस्क पर विराजमान रहते, पजेसिवनेस इतनी की अपने वाली के ही पीछे बैठना है, अगर गलती से भी आगे की सीट्स बदली हो जाती, तो हम दोनों भी उसी क्रम में पीछे बैठ जाते,ऑटोमॅटिकली।
पता नही कैसे पर धीरे धीरे टिया-श्रीया को थोडा थोडा हमारी नमुनागिरी का पता लगने लगा, 7th में टिया ने 15 अगस्त पर एक गाने को गाकर उस पर डांस किया, "मेरी छतरी के नीचे आजा, क्यूँ भीगे सलमा खड़ी खड़ी", तब पहली बार सुना था ये गाना, ये क्या बात हुई खड़ी खड़ी, बोल कुछ जँचे नही, पर फिर भी टिया ने गाए है तो ना जंचने का सवाल ही नही पैदा होता, यूँ की जँच गए जी। कुछ भी बोल कर कहने की हिम्मत तब भी नही जुटा पाए थे, फट्टू साले, बस दीवानगी बढ़ती रही, उनके जैसा पेन, उनके जैसा स्कूल बैग, उसी कलर के कपड़े, उनके जैसी घड़ी, अगर कुछ भी लेना है तो उसको खरीदे या नही बस कसौटी टिया-श्रीया ही थी, स्कूल 8th तक ही था, 8वीं की विदाई पर टिया व्हाइट कलर का फ्रॉक सूट पहन कर आई थी, मुझे गाने को कहा तो सडेला पुराण गाना गाया,
"दर्पण को देखा तूने जब जब किया श्रृंगार......
.फूलो को देखा तूने जब जब आई बहार,
एक बदनसीब हूँ मैं,
एक बदनसीब हूँ मैं
एक बदनसीब हूँ मैं मुझे नही देखा एक बार...
दर्पण को देखा...."
अब खुद ऐसे गाने गाओगे जिसमे तीन बार खुद को 'एक बदनसीब हूँ मैं' बोल के पनौती डिक्लेर किया था तो मनहूसियत तो आनी ही थी। गाना खत्म लव स्टोरी भी खत्म, टिया श्रीया बीकानेर चली गई और उसके बाद उनके कभी दर्शन नही हुए।
😉😊😋😀😁😂
#जयश्रीकृष्ण
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