🎵🎵🎵🎵🎵🎶 🎤अंताक्षरी🎤 ♠♠♠♠♠


बेले बैठे क्या करें, करना है कुछ काम।
शुरू करो अंताक्षरी, ले के प्रभु का नाम।।
इन शब्दों के साथ बचपन में शुरू होने वाले मुझिकल संग्राम की बहुत सी यादें जुडी है मुझसे, आपको याद हो, शायद, मैंने अपनी एक पोस्ट में लिखा था की मुझे कुछ आता जाता नही, इन दी सेंस ऑफ़ नॉलेज, बट लेकिन किन्तु परन्तु पर ये जो अंताक्षरी वाला कांसेप्ट है इसमें मास्टरी रही है अपनी,वो भी और इतने अव्वल दर्जे की कि बचपन में हमारी अन्ताक्षरियाँ कई दिन और कई बार तो हफ़्तों चला करती थी, मने बिना रिपीटिंग एनी सांग ट्वाइस, बच्चों के दो या कई बार ज्यादा दल, लेकिन दल शब्द पर तो खुद मुझे दलदल वाली फीलिंग आने लगती है, इसलिए समूह, हाँ तो कई समूह बन जाते जो किसी कीमत पर हार मानने को तैयार न होते, ये जुझारूपन जिंदगी में काम आता है नही आता है इस पर बकवाद करने में अपनी न कोई दिलचस्पी है न होगी, खैर ! मैं आपको अपनी अंताक्षरी का एक किस्सा बताता हूँ। मैं शायद 5-6 साल का रहा हूँगा हमारे पास घर के नाम पर एक कच्चा कमरा हुआ करता था आदमकद कच्ची चारदीवारी से घिरा हुआ, ज्यादातर मैं पप्पी राजू और मेरी दोनों बड़ी बहने सब एक साथ वही खेलते थे, गर्मियों की एक दुपहरी में जब बाहर निकलने की हिम्मत जवाब दे चुकी थी तो बाल समूह ने अंताक्षरी की पिलानिंग की, तुरन्त समूह विभाजन हुआ और हमे खुद भी पता नही चला की कब हम तत् प्लस लीन तल्लीन होकर संगीत में समाधिस्थ हो गए। दे गाने पे गाना दे गाने पे गाना। कोलाहल अपने उच्चतम स्तर को छूकर कब का लाँघ चूका था, पर उसकी किसे परवाह होती।
इसी बीच मेरे पापा जो उन दिनों चाय की स्टाल चलाया करते थे, न जाने किस काम से घर पर पधारे, दरवाजा खटखटाया, पर सुनता कौन, ओजी समाधिस्थ साधुजन छोटी मोटी आवाजो से अपनी तन्द्रा त्यागते हैं भला ? नही न , हमने भी नही त्यागी। बाहर पापा के सब्र का पैमाना गर्मी में घुटनो तक आते पसीने के साथ प्रतिपल बढ़ रहा था। न जाने कितनी देर आवाजे लगाने के बाद आखिरकार वो भी समझ गए ये दरवाजा यूँ ही तो खुलने से रहा। चोरों के दीवार लाँघने के कांसेप्ट को चुरा कर कर वो भीतर दाखिल हुए। उधर हम बच्चे संगम फिलिम के गाने ' तेरे मन की गंगा और मेरे मन की जमुना का' बेजोड़ संगम करवाते हुए सेम टू सेम बेग पाइप वाली धुन निकालने में मशगूल थे। पसीने से तरबतर , जैसे ही पापा ने अंदर एंट्री मारी, अचानक सबके फ्यूज उड़ गए........ बेग पाइप फट गया......राज कपूर पेड़ से उतर कर वीराने में भाग गया........वैजन्ती माला ने पानी में अपनी मुंडी छुपा ली... हमारे तोते फुर्ररर होने शुरू होते उससे पहले पापा रूद्र रूप धारण कर चुके थे सब बच्चों की ठुकाई होने लगी, हालाँकि इस बीच मैंने चारपाई के नीचे छुप कर अपनी एक्स्ट्रा प्रोटेक्शन वाला मोड एक्टिव करने की चेष्टा की पर उन्होंने मेरी इस चेष्टा को कुचेष्टा समझा , और मुझे एक्स्ट्रा ठुकाई का प्रतिसाद मिला ( हालाँकि ये पहला और अंतिम अवसर रहा है मेरे जीवन में जब मैंने पापा से मार खाई, वरना ये शुभ काम माँ ही करती आई है,सो माय पापा इज दी बेस्ट)।
वैसे अंताक्षरी आपने भी जरूर ट्राई किया होगा , नही किया तो करना जरूर, मस्त लगेगा। ये तो हुई बचपन की बात, एक अलग सी अंताक्षरी आज की दुनिया में भी चल रही है। जिंदाबाद तो मुर्दाबाद, देशभक्त तो देशद्रोही, राष्ट्रवादी तो राष्ट्रघाती , बिकाऊ मीडिया तो सवचेत मीडिया कुछ इसी तरह के समूह विभाजन हो गए लगते है। नए तरह के शब्द, नए प्रतिमान आस्तित्व में आ रहे है। सुना है की रैलियाँ भी निकल रही है, कन्हैया को छोडो, कन्हैया को फोड़ो टाइप, और तो और इधर , जी हाँ अपने इसी फेसबुकिया दुनिया में भी कुछ कुछ वैसा ही हो रहा है। काफी दिन से देशद्रोह के नारे के पक्ष विपक्ष में शोर हो ही रहा है की इसी बीच कोई ट्वीटवा गया कि मैं हूँ एंटी नेशनल,बोलो क्या उखाड़ लोगे, हाँ कोई 'सर'देसाई है बिना सर पैर की बकचोदी कर रहा है। तो भैये ज्यादा तो नही जानते बस इत्ता ही कहना है तुमसे कि सम्भल के रहना, इस देश के लोग माँ की गाली टॉलरेट नही करते। सरकार को गरियाना है ? गरियाओ जी भर के। काम न करे तो धरना करो प्रदर्शन करो। असहिष्णुता, अवार्ड वापसी या और भी कोनो प्रोपगंडा रचना है ? रचो, किसी को कोई दिक्कत नही। पर अगर इस मातृभूमि, इस देश को गाली दोगे अभिव्यक्ति के नाम पर तो , किसी दिन कोई तुम्हारी इस अभिव्यक्ति पर इतने पटाके बजायेगा की अभिबकती सूज जाएगी , बाये गॉड।
अभी मुझे गाना आ रहा है बड़े जोर से , हम तो चले......
इधर चला मैं उधर चला,
जाने कहाँ मैं किधर चला.....
‪#‎जयश्रीकृष्ण‬

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...