बिलकुल ठीक समझे भैये, ये वो जेएनयू वाले वाक् आतंकी ही है।
अब कौन सी नई नस्ल पैदा हो गई ?
अरे नस्ल वही है बट फ्लेवर थोडा चेंज है। नही समझे ? सुन भइये सिंपल सा फंडा है, वो आतंकी जो बन्दूक उठा के आते है दनादन लोगों को टपकाते है। वो है कौन , देश के दुश्मन हमारी स्थिरता और अखण्डता के लिए बड़ा खतरा यही न ? और ये जो बूढ़े दढ़ियल जो खुद को छातर बोले है, अभिव्यक्ति के नाम पे इस देश को गाली देवे है, जिनके आदर्श याकूब और अफज़ल जैसे न्यायालय द्वारा घोषित आंतकी है, जिनको इस देश से ज्यादा वो मुलुक प्यारा लगे है जिसने सिवाय जख्म के हमे कुछ नही दिया, तो ऐसे नमूनों को क्या बोलोगे ? ये वाक् आतंकी है। इस देश की मिट्टी से निकले वो जीवाणु जो तकरीबन तकरीबन वायरस बन चुके है, और इनका शिघर इलाज़ बहुते जरूरी है।
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हम्म जे तो है, पर गोरमेन्ट कुछ क्यों नही करती ?
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सब कामो के लिए गोरमेन्ट का मुँह क्यों तकते हो? तेरी शादी के बाद कब क्या कैसे करना है जे भी गोरमेन्ट ने ही बताया था तुझे या कोई गोरमेन्ट खुद आई थी इसके लिए। अघोषित अपराधियों के लिए हम जैसों को ही कुछ करना पड़ेगा। और चिंता मत कर ये जो पब्लिक है उत्ती तुचिया नही है जितना ये शेखुलर समझ रहे है, वैसे भी सेलेक्टिव प्रतिरोध और समर्थन अंधे को भी दिख जाता है। सुन, किसी फिलिम में एक डाइलोग था, 'इत्ता भी मत डराओ की डर ही खत्म हो जाये' मने की हर चीज की हद होती है। जितना ये साले असहिष्णुता, अवार्ड वापसी, और अभिव्यक्ति के नाम पर आतंक फैला रहे है, सबको सब दिखता है। थोडा सब्र और रख, कुछ टेम और लग सकता है फिर तू और मैं दोनों देखेंगे कि इन साले तुचियों को दौड़ा दौड़ा कर बम्बू किया जायेगा।
पक्का भाई ?
अबे झूठ तो नेता बोलते है अपन नही, चल आजा कुछ प्राइवेट बात करनी है.............................
👋👋👋👋
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