कल मैंने जो पोस्ट की उसके बाद कई मित्रों ने मुझसे पूछा, भई पहले तो बड़े गुणगान होते थे कश्मीर के तुम्हारी पोस्टों में, अब क्या हुआ।
मेरे उन्ही बन्धुओ को सादर समर्पित होकर अर्ज किया है की पोस्ट पढ़ते समय सन्दर्भ पर भी ध्यान देते तो शायद कुछ पूछने की जरूरत न पड़ती।
एक किस्सा सुनो, एक बनिए की मौत हो गई, यमदूत पकड़ के धर्मराज के पास ले गए , धर्मराज बोले अर बणिये तेरा हिसाब तो बराबर सा है, बोल कित जग्या ? बनिया बोला महाराज जित चार पिसे आवंते रेव मन्ने तो उठे सिरका देओ। 😊
बात व्यंग्य की है पर काम की है, व्यक्ति अपने लाभ अनुसार अच्छे और बुरे की परिभाषा गढ़ता है। बनिया नर्क में अपनी सुविधा से सुख की परिकल्पना कर रहा था, और कश्मीर की कलियों के साथ ऐसे ही किसी क्षणिक दिवास्वप्न में मैं भी था समझने की जरूरत है की पूर्व पोस्ट विशिष्ट परिस्थितियों में व्यक्ति विशेष की भावाभिव्यक्ति थी। उसे सार्वभौमिक सत्य मानने का आग्रह तो मैंने कहीं नही किया।
खैर, पिछली बातो को छोड़ वर्तमान पर पधारें, चारो और जिसका शोर चल रहा है आज उसी पर कुछ गुटर गुँ करते है फिर से। नही समझे ? अरे वही अपना NIT KASHMIR वाला पंगा भाई।
इस मुद्दे पर राष्ट्रवादी भी दो धड़ों में बंटे नज़र आ रहे है (अलगाववादी चाहे तो इसके लिए खुद अपनी पीठ थपथपा सकते है)। इनमे से एक पक्ष थोडा अतिवादी नज़र आता है , कश्मीर को भारत के अन्य प्रान्तों के समान मान कर वहां वो उसी तर्ज पर स्वछंद व्यवहार करना चाहते है, मांग न्यायोचित है पर मुझे लगता है कम से कम वर्तमान परिस्थितियों में तो ऐसा सम्भव नही दीखता। क्यों? इसके कारण इतिहास में हैं , हमारे संविधान में है, जो कश्मीर को भारत में भारत से पृथक अन्य देश के समान धृष्टता करने की स्वतन्त्रता प्रदान करते हैं।
संविधानिक व्यवस्था के अनुसार यहाँ इस इकलौते राज्य में भारत देश से पृथक संविधान है, अपना अलग झंडा है, विधान सभा 5 के बजाय 6 वर्षों के लिए चुनी जाती है, देश के संविधान के अधिकतर प्रावधान यहाँ लागू नही होते, आप यहाँ अचल सम्पत्ति अपने नाम से नही खरीद सकते, जितने भी वर्ष यहां रह ले आपको यहां की नागरिकता कभी नही मिल सकती किसी कश्मीरी लड़की से विवाह करने पर भी नही (पाक अधिकृत कश्मीर का कोई नागरिक अगर इस कश्मीर में विवाह करे तो उसे यहाँ और भारतीय नागरिकता दोनों मिल जाएंगी)। है ना कमाल की बात ?
और जानते हो ये कमाल किसने किया था ? श्री श्री पण्डित जवाहरलाल और शेख अब्दुल्ला की कुटिल जोड़ी ने। कबायली आक्रमण के बाद जब महाराज हरी सिंह ने कश्मीर की रक्षा की प्रार्थना भारत सरकार से की तो शेख अब्दुल्ला की कश्मीर के मुस्लिम बहुल होने की टुच्ची सी दलील पर उसके लिए विशिष्ट प्रावधान कर दिए गए। मने सिम्पल सा फंडा समझने वाली बात ये है की कश्मीर टेक्निकली भारत में है , पर भारत का नही है। आधा कश्मीर जवाहर मियां संयुक्त राष्ट्र में जाने की मूर्खता कर दे आये और बाकी का आधा आर्टिकल 370 लागू कर के दे दिया। अब तो pok वाले कश्मीर में चीन भी थर्ड पार्टी बन गया है। तो सारे बोलो जवाहर बाबा की जय।
किसी भी राष्ट्र की तरक्की का रास्ता बन्दूक नही वहां की जनता तय करती है, और उस जनता को कैसी शिक्षा दी जानी चाहिए ये हमारी सरकारों का काम है, अफ़सोस ये है की 60 सालो से लगातार वहां की शिक्षा का आलम ये है कि कश्मीरी बच्चों को घुट्टी में ये रोज घोट घोट कर मिला कर पिलाया जाता है कश्मीर गुलाम है, जिस पर भारत की आतताई फौज ने बलात् कब्ज़ा कर रखा है। वास्तविकता भी यही है की अगर फौज न हो तो भारत इस पर एक दिन भी अधिकार नही बनाये रख सकता। कश्मीर के चप्पे चप्पे पर फ़ोर्स तैनात है, बाजार में जाइये बीसियों बंकर दिख जाएंगे आपको, सड़क किनारे, छतो पर, और जगह जगह, पर इतना सब होते हुए भी वहां आये दिन विस्फोट होते रहते है, न जाने कितने देशभक्त सैनिक अपनी आहुति इस आग में दे चुके है।
जब से मोदी प्रधानमंत्री बने, कुछेक राष्ट्रवादी अति उत्साही हो रहे है। लेकिन 60 सालों से जो जहर कश्मीर की नसों में दौड़ रहा है, उसका इलाज राष्ट्रवाद की बातों वाली गोली से तो होने से रहा, समय लगेगा ही। ये जहर धीमे धीमे समय के साथ ही उतरेगा। NIT कश्मीर में छात्रों ने तिरंगा लहराया, कुछ गलत नही किया, पर गलत टाइम पर गलत लोगों के सामने किया, बिना सोचे समझे भावातिरेक में किया। निहत्था सैनिक शहीद बन सकता है विजेता नही। जिन लोगों से उनका मुकाबला है वो लोग वैल ट्रेंड है इस सब के लिए, यही कारण है की आज इतनी सुरक्षा दिए जाने के बाद भी उन्हें सुरक्षित अनुभव नही हो रहा। छात्रों ने नादानी से अलगाववादियों को घर बैठे अवसर थमा दिया है, आज खुद छात्र NIT को श्रीनगर से बाहर स्थानांतरित करने की मांग कर रहे है। दो कंडीशन है छात्र अगर वही रहेंगे तो उनकी जान का खतरा है, कुछ भी बुरा हुआ तो शेष भारत में उसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया होना तय है, कश्मीरियों को दौड़ा दौड़ा के मारा जाएगा, भगाया जाएगा पर अगर NIT को स्थानांतरित किया गया तो और भी बुरा होगा, कश्मीरी पंडितो की तर्ज पर कश्मीर सिर्फ कश्मीरियों के लिए का नारा बुलन्द हो उठेगा, और गैर कश्मीरी जो वहां अन्य कार्यों में लगे है उन पर भी आफत बन आने की सम्भावना हो जाएगी। मने दोनों ही स्थितियों में अलगाववादियों का ही फायदा होगा, थोड़ी सी बेवकूफी से कश्मीर और कश्मीरियों को भारत से अलग दिखाने का उनका स्वप्न हम बिना कुछ किये पूरा कर देंगे।
तो फिर किया क्या जाए ? कुछ मित्रों ने कहा जब कुछ नही हो सकता तो कश्मीर पाकिस्तान के हाथों में जाने दे दिया जाये, पर इसके बाद क्या वैश्विक पटल पर भारत वर्ष मुँह दिखाने के लायक भी बचेगा ? कुछ ने रूस की तरह क्रीमिया जैसी कार्यवाही की अपेक्षा मोदी जी से की, मने की धो डालो बिना साबुन के, हम्म अच्छा है बहुत अच्छा है पर क्या हम रूस की तरह सामर्थ्यवान बन चुके है ? करने को तो अमरीका ने पाकिस्तान के एबटाबाद में घुस के ओसामा को , इराक में घुस के सद्दाम को ठोका है पर भारत उतना साहस कर सकने की हालत में है ? कम से कम मुझे तो हाल फ़िलहाल में उसके कोई आसार नज़र नही आते। अभी हमारा देश ढंग से इंडिया से भारत बनने के प्रॉसेस में है सो गाल बजाने का कोई तुक नही बनता।
हम्म तो फिर ? फिर ये की सरकार को काम करने दिया जाए, साम दाम दण्ड भेद सब लगाना पड़ेगा, करने को मोदी जी राष्ट्रपति शासन लगा कर सत्ता अपने हाथों में पूरी तरह केंद्रित कर सकते है पर इससे विश्व में कश्मीरियों की आवाज़ दबाने जैसे पाकिस्तानी आरोपों को बल ही मिलेगा। पहली बार है की कश्मीर जैसी अलगाववादी सोच वाले राज्य की नकेल आंशिक ही सही पर राष्ट्रवादी सरकार के हाथ में है। इसलिए उत्तेजित होना छोड़िये और सरकार को अपना काम करने दीजिये। जोश अच्छी चीज है पर होश भी बनाये रखें।
सभी भारतियों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
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#जयश्रीकृष्णा
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