🕐🕜🕑🕝🕒🕞🕓🕟🕔🕠🕕 दिल ने फिर याद किया ♠♠♠♠♠♠♠♠♠♠


आज मन बहुत उद्विग्न सा है। बोले तो चिरण पिरण सी होरी है। मने आज कोई बहुत जोर से याद आ रहा है।
कोनो लड़की वड़की !?
अबे नही रे।
लड़की वड़की के भरम में कछु नही रखा, समझ गए है कब के। हमे तो हमार मितर जादो के झरोखे से पुकार रहा है।
ओये खबरदार, जिन्दा है वो और भगवान करे तुम्हारी भी उम्र उसे और मुझे आधी आधी लग जाये। 😊😊
तो फिर ?
फिर क्या याद आ रहा है बस, वजह होनी जरूरी है ??
उसे मैं तब से जानता हूँ जब मैं छोटा बच्चा था और बड़ी शरारत करता था मने जब हम इस्कूल में थे मने हमार चड्डी बड्डी मने उ जो ढाणी में रहता था, अरे रे वहीं जहाँ पहले लाइट भी नही न थी, अरे वही जो दरी वाला झोला लटका के स्कूल में आता था, याद आया ? नही ? अरे यार नाम बड़ा यूनिक सा था, पुरे स्कूल में अपने नाम वाला इकलौता, मेरा दोस्त यार बेली जिगरी, मेरा रामधन। 😊😢
रामधन असाधारण रूप से साधारण था, पता है जब पहली बार हमारे घर आया तो कहने लगा यार टीवी चलता हुआ कितना अच्छा लगता है (केबल वाले चैनल तब आस्तित्व में नही आये थे, टीवी का चलना मतलब दूरदर्शन, बस) तू टीवी चला दे, अगर इसमें सुसुँ की आवाज़ के झिरमिर आये मने की बिदाआउट एनी फोटो, तब भी मुझे अच्छा लगेगा। हद है गधेपन की भई 😁
स्कूल टाइम में एक बार मेरा उससे झगड़ा भी हुआ, लौंडे ने नाख़ून से खरोच डाला था, लेकिन फिर से बेल्ली बन गया बिदाआउट इंफोर्मिंग मी, कक्षा 9 में लटक गया पर सीधा स्वयंपाठी हो गया 10 वीं में , पास हो गया और फिर से मेरे बराबर 😉 । मने की तू जहाँ जहाँ चलेगा ये जिन्दा भुत मेरे साथ साथ होगा ? हे भगवान!
यहां तक तो फिर भी ठीक था, कमाल तो तब होना शुरू हुआ जब बन्दे ने 11 वीं के बाद जौहर दिखाने शुरू किये, महाशय जी ने पढ़ना इस तरह से शुरू किया की हम , जो तुठे तुठे फिरते थे झूठे विरद कहाई, को पसीनों छूटने लगे। एकदम कॉम्पिटीशन बोले तो नेक टू नेक। जिनके पास होने के लाले पड़ते थे वो स्नातक में हमसे बस एक नम्बर पीछे आकर रुके। इस दौरान पठ्ठे को लवेरिया हुआ बनसाइड वाला,उसको कुछ बकने की हिम्मत तो हुई नही कभी।
बहुत बहुत बहुत सारी बाते हुई है उससे, गम्भीरतम से लेकर टुच्चेपन की हद तक की । समझ में आने लगा था की गधा वो नही मैं था जो उसे अंडरएस्टीमेट करने की भूल कर रहा था। उसमे गजब का फिलॉसफर , एक उच्चकोटि का कवि, बहुत मननशील, विचारवान व्यक्ति न जाने कहाँ छुपा बैठा था, जो धीरे धीरे सामने आने लगा था।
2 महीने के जयपुर प्रवास में क्या क्या क्रांतिकारी योजनाएं बनी, मैं तो सोच कर ही चकरा जाता हूँ।
मेरा मित्र रामधन, आज समय के साथ चलकर अजय हो गया, दिल्ली जैसे मेट्रो शहर पर सवार, पर जब भी उससे मिला हूँ हमेशा उतनी ही आत्मीयता और स्नेह अपने लिए पाया। कहते है बड़े शहर की हवा इंसान को स्वार्थी बना देती है, अगर ऐसा कुछ होता भी हो तो मेरा रामधन अपवाद है। आज यहां मेरे आसपास ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें मैं मित्र कहता हूँ पर जितनी घनिष्ठता तुम्हारी वाणी में मिली है, अन्यत्र कहीं नही पायी।
एक बार चुहलबाज़ी करते हुए विनोद में तुमने कहा था कि ये दिन नही रहेंगे, सच कहा था यार। 😢
मिच्छ यु भाई
दिल से 😔😕😖😞😩

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