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हर बन्दे का अपना टेस्ट होता है किसी को मीठा पसन्द आता है किसी को नमकीन तो कोई जिंदगी का मज़ा खट्टे में तलाश रहा होता है, पर जब बात किसी शुभ कार्य की हो तो मीठे के बिना बात नही बनती। हमारी भारतीय संस्कृति में मीठा मुँह करने कराने का लम्म्म्बा इतिहास रहा है, अब इतिहास को इतिहास ही रहने दे हम मुद्दे पर कंसेंट्रेट करते है।
मुझे मीठा खाना कभी पसन्द नही था यूँ की समझ लो बचपन से ही। इसीलिए शादी जैसे समारोहों में जाने से यथासम्भव बचने की कोशिश करता था क्योंकि हर भारतीय शादी अपने आप में मिष्टान्न ठूसने का ही तो बड़ा आयोजन होता है और जिस जाति वर्ग से मेरा सम्बन्ध है मने "राजपुरोहित' इस जाति ने तो ठूसना शब्द को वास्तविक अर्थ प्रदान किया है। अगर कभी इस जाति के किसी वैवाहिक समारोह में जाने का अवसर आपको मिला हो तो आपको पता होगा, वरना मैं आपको अवगत करा दूँ कि रीति रिवाज की भिन्नता से इतर खिलाने पिलाने के तरीके में ये वर्ग कुछ अतिरिक्त विशिष्टता रखता है। समवय रिश्ते के लोग एक साथ खाते है, जमीन पर बैठ कर, भोजन को जमीन से थोडा ऊपर उठाने के लिए लकड़ी के चौकोर छोटे से फट्टे, जिसे बाजोट कहा जाता है, पर रखते है। खाना शुरू होने पर सब खुद ही खाना शुरू नही करते बल्कि एक साथ बैठे सब लोग एक दूसरे को खिलाते है, इसे मनुहार कहते है। शायद इसके पीछे ये लॉजिक रहा हो कि कोई शर्मिला शर्म शर्म में भूखा न रह जाए, पर एक दूसरे की मनुहार के चक्कर में मेरे जैसों की आफत हो जाती है, जब पेट भरने तक नही पेट फटने तक ठूसा जाये तो हिसाब गड़बड़ हो ही जाएगा वैसे भी जबरदस्ती का वो भी मीठा कौन खाये भला।
अब शादी के बाद ससुराल भी मिला तो ऐसा जहाँ साले /ससुर/ साढ़ू सब के सब एक से बढ़कर एक, मनुहारिये। ठुसम ठासी में प्रवीण, बेचारा मैं ससुराल पक्ष में सबसे छोटा जवाई कुछ बोलूं भी तो कैसे , शादी के बाद पहली बार ससुराल से सुचना मिलManoj Singh Sodha की शादी है पधारो, अच्छा लगा था सुन के, सबसे फिर से मिलेंगे, पर मीठा सामने आयेगा उसका क्या ? खैर थोड़ी गुदगुदाहट थोड़ी चहक थोड़ी शर्म के साथ अज्ञात सा भय लिए ससुराल में पुनरागमन हुआ। अपनी समस्याRamesh Rajpurohit जी से साँझा की, बड़ी ख़ुशी हुई जब उन्होंने तसल्ली दी की घबराने जैसी कोई बात नही कुछ नही होगा। थोड़ी थोड़ी देर में कुछ न कुछ चटर पटर खाने को आये ही जा रहा था, फिर चुपके से शाम ढली खाने का वक़्त हुआ, और फिर वो हुआ जिससे मैं डर रहा था मतलब खाने का बुलावा आया। 😣😣
खाना खिलाने के लिए सालों की पूरी पलटन साथ बैठी उनके एक एक कौर खिलाने का मतलब मेरे लिए 11 कौर खा लेना था, ऊपर से तुर्रा ये की नए नए जीजा जी की मनुहार तो करना बनता है ( मनुहार की माँ की आँख 😋 ) रमेश जी , जिन्हें मैंने अपना हमदर्द समझ वो भी दुश्मनों से जा मिले, हाँ हाँ नए वाले की मनुहार तो होनी ही चाहिए (आपको पता नही रमेश जी मैंने आपको मन ही मन कितनी गालियां दी थी उस वक़्त )। कुल मिला कर पेट की बैंड बजा डाली।
इनो , हिंगोली , पुदीन हरा और पता नही क्या क्या लिया तब जा के पेट ठीक हुआ।
पहला अनुभव था अनुभवहीनता की वजह से कुछ ज्यादा ही अजीब लगा था, उसके बाद कई बार जाना हुआ है ससुराल, अब अगर साले साहेब साथ न बैठे जबरदस्ती कुछ न खिलाये तो लगता ही नही की ससुराल आये भी है, आदत हो गई है उनके मनुहार मिश्रित प्यार की, और हाँ अब मुझे मीठा पसन्द है। 😋😇😀😁😉
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ऊपर का प्रसङ्ग तो यूँ ही था मुद्दे की बात ये है कि व्यक्ति के सम्बन्धों पर उसकी वाणी, उसकी भाषा का विशेष प्रभाव पड़ता है। जो काम ढेर सारी ऊर्जायुक्त उत्तेजना से बिगड़ जाता है, एक हल्की सी मुस्कुराहट उसकी युक्ति निकाल देती है। एक छोटा सा दुधमुँहा बालक जो इस सांसारिकता से पूर्णतया अपरिचित होता है वो भी आपके नेत्रों में प्रेम और क्रोध के भाव पहचान लेता है और उसी के अनुरूप खिलखिलाहट या रो कर अपनी प्रतिक्रिया देता है।
मीठा मने मधुर शब्दों के प्रयोग को अपनी वाणी में स्थाई स्थान देकर देखिये इस जगत में भी आपको हृदय से प्रेम करने वाले असंख्य मन आपसे जुड़ जाएंगे।
#जयश्रीकृष्ण
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