👥👥👥👥👥 डर्टी पीपल ♠♠♠♠♠


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'हे भगवान आज का सफर तो बोरिंग होने से बचा देना।' स्लीपर क्लास रिजर्वेशन चार्ट को देखते हुए मयंक मन ही मन बुदबुदाया।
'एस 8- एस 8 कहाँ गया ये एस 8 !?, हाँ ये रहा, मेरा सीट नम्बर कितना था, रुको यार देखना पड़ेगा' टिकट निकाला देखा, 'हाँ सीट नम्बर 16, ऊपर की बर्थ है, अगर पँखा नही चला तो पूरे सफर की वाट लग जाएगी यार, हाँ ये रहा मेरा नाम मयंक , वाह मेरे शेर, जियो मयंक राजा, किसी दिन ये चार्ट तेरे आर्डर से छपा करेगा तू देखना भगवान' मयंक मन ही मन अपने आप से बात कर रहा था।
मयंक रेलवे का एग्जाम कई बार दे चुका था, कई बार के अनुभव से अभी सेलेक्ट भले ही न हो पाया हो पर एग्जाम के लिए फ्री रेलवे पास मंगवाने का नुस्खा अब उसे भी पता था। 'रेलवे वालो एस सी/एस टी को ही फ्री पास देते हो न , देखो तुम्हारे इस जमाई राजा की खोपड़ी, दो फार्म डाल दिए, एक एस सी वाले के फ्री पास से फ्री में यात्रा करेंगे, दूसरे ओरिजिनल वाले से एग्जाम देंगे। है न कमाल का आईडिया 😊 खीखीखी।'
'प्रियंका अरोरा, फीमेल , बर्थ नम्बर 15, साइड लोअर बर्थ, बोर्डिंग फ्रॉम आगरा, वाह भगवान देर से ही सही सुनी तो सही, थैंक्यू भगवान जी। अब सुनो इसके साथ किसी खड़ूस को न भेज देना, पता चले साला देखने पे भी काट खाने को आए। वैसे भी हमको कौनसा डब्बे में उससे शादी कर के घर जाना है, बस थोड़ी नज़रें ठण्डी हो जाती हैं और क्या।'
कितने एग्जाम हो गए पास फ़ैल तो लगा रहता है, बस उर्दू वाले 'सफ़र' से अंग्रेजी वाला 'सफ्फर' नही बनना चाहिए, घड़ी में देखा तो गाड़ी छूटने में अभी भी 15 मिनट और पड़े थे , क्या करूँ क्या करूँ सोचते सोचते कोई और उपाय न देख फिर से रिजर्वेशन चार्ट चाटने लगा।
'हम्म एस 8 में 9, 10,11,12,13,14 सबका सेम टू सेम पी एन आर, मतलब एक ही बाड़े के डंगर हैं (खुद ही अपने जोक पर हंसने की नाकाम कोशिश की, फिर आगे पढ़ने लगा) सबके सब अंकल आंटी है हुँह, ये भी आगरा से ही चढ़ेंगे? अरे बाप रे, भगवान मेरी प्रियंका को बचाना इन दरिंदो से, हाहाहा, पर दरिंदा तो तू है बे, वाह भगवान मुझे पता था तुम आज मेरी ही साइड में हो, प्रियंका का पी एन आर और इन डंगरों का पी एन आर अलग अलग है, मतलब ये इनके साथ तो नही ही है, क्यूँ साथ क्यों नही हो सकती, एक टिकट पर 6 लोग ही तो ट्रेवल कर पाते हैं (मन ने प्रतिवाद में तर्क दिया), नहीं नहीं ये लोग तो इनके साथ पक्का नहीं हैं ( मंयक ने अपने ही मन को झुठलाने की कोशिश की)। चल छोड़ ट्रेन में बैठते हैं। 5 मिनट ही तो पड़े हैं अब।'
ट्रेन में सवार होकर बाहर देखा, 'हम्म दिल्ली का स्टेशन देखा जाए तो उतना बुरा भी नही पर राजधानी के नजरिये से थोडा और सुधार की गुंजाइश तो है ही। जब मैं यहाँ का स्टेशन इंचार्ज बनूँगा तब देखना जितने भी साले कामचोर हैं यहाँ के , उनकी वाट लगने वाली है।' मन की मुस्कान मयंक के होंठो तक दौड़ गई।
"भाई तू भी एग्जाम देण जा रया है", सहसा उस ने पास की सीट से किसी की भारी आवाज सुनी।
देखा तो एक दुबला पतला मरियल टी बी के मरीज टाइप का लौंडा बोल रहा था।
'अबे ये क्या, साले ने इतनी हैवी आवाज़ निकाली कहाँ से ? 😂😂😂' अपने आप से बात करता मयंक ठहाका लगा जोर से हँसना चाहता था, पर फिर न जाने क्या सोच चुप ही रहा, बोला ,'हाँ, पर तुम कौनसे एग्जाम की बात कर रहे हो ?'
'यो देख भाई, कोई रेल का एग्जाम स, 3 साल हो लिए फार्म भरे न, बेरयां न इब जाके सूझया क कोई पेपर भी लेणा होया करे'
कॉल लैटर देखा, वही था, असिस्टेंट स्टेशन मास्टर आरआरबी सिकन्दराबाद, दिलसुखिया नगर में सेंटर था, मयंक बोला, 'हाँ भाई नेतराम' सामने का लड़का आश्चर्य से मुस्कुराया तो मयंक बोला, 'अरे यार तेरे कॉल लैटर में गलती से उन्होंने नाम भी लिख दिया था, मैंने पढ़ लिया तो पता लग गया 😊' कहकर हंसने लगा तो नेतराम भी उसके साथ हँस पड़ा। बातों बातों में पता ही न लगा ट्रेन न्यू डेल्ही को छोड़ निजामुद्दीन तक आ चुकी थी।
'मेरा सेंटर किसी कोट्टी नाम की जगह पर है'
'कोई ना भाई टोह ल्यांगे'
'कितने एग्जाम दिए हैं इससे पहले ?'
'बथेरे दिए भाई, पण साले रिजल्ट गा के करदे बेरा ई कोन्या पडदा'
'हाहाहा अरे यार बेरा पड़ जाता अगर तुम क्लियर करते तो नेक्स्ट स्टेज के लिए कॉल घर पर आ जाता न, रुकोगे कहाँ ?'
'बेरा कोनी, उठे जा के देखांगे'
'ये भी सही है'
इन दोनों को बातों बातों में कोई खबर ही न रही ट्रेन अब आगरा कैंट पहुँचने वाली थी।
'अच्छा सुन तेरा सीट नम्बर 8 है ? मेरा ये ऊपर वाली सीट है नम्बर 16, ओके ?'
'यो ओके फोके म ना जाणु भाई, और मेरी सीट कोई सी ना है, या खाली पड़ी थी तो यार तो गोमती धर के बैठ लिया'
'हाहा , अच्छा ठीक है, तू ऊपर आजा मेरी सीट पर हम एडजस्ट कर लेंगे। तुझे नौकरी लगाना तो मेरे बस में नहीं पर इतना तो कर ही सकता हूँ। 😄😄'
नेतराम मयंक की सीट पर बेफिक्री से पसर गया, मयंक नीचे की सीट पर ही बैठा रहा,सोचने लगा 'ये प्रियंका आई क्यूँ नही अब तक'
'एक्सक्यूज़ मी'
मीठी सी कानों में शहद घोलती आवाज़ कानो में गई तो मयंक ने पीछे मुड़ कर देखा। जीन्स टॉप पहने छरहरी काया वाली ये कन्या उससे अपनी तशरीफ़ कहीं और ले जा के पटकने का आग्रह कर रही थी।
'ये मेरी सीट है, आप हटिए यहाँ से' लड़की ने फिर से कहा।
'ओ तेरी, ये किधर से चढ़ी यार, परीयनका - प्रियंका, कसम से परी ही तो है। ' मयंक ने अपने आप से कहा। बाई गॉड झप्पी पाने का मन कर रिया था, पर कण्ट्रोल उदय कण्ट्रोल , करना पड़ा।
'आप हटेंगे अब ?' प्रियंका थोड़ी खीझ के साथ जोर से बोली।
'ज ज जी, जी हाँ, एक मिनट' कहकर मयंक उस सीट से खड़ा हो गया, प्रियंका ने अपना छोटा सा बैग सीट पर रखा और पैर इस तरह पसार के बैठ गई मानो उसे डर हो कि ये मयंक फिर से सीट पर न बैठ जाए।
'हमको तुम्हारी ये अदा बहुत पसन्द आई दिलबरा' मयंक मन ही मन बुदबुदाया।
'ओ हेल्लो, रास्ता क्यूँ रोक रखा है, डर्टी पीपल, अक्ल है के नही' अंदर आते एक मोटे थुलथुल ने कहा, मयंक ने ऊपर से नीचे तक उसे देखा, मन में बोला 'इसे इस जीन्स में किसने ठूसा होगा 😂😂 साला तोंदूमल। गहने तो देखो खुद को बप्पी लहरी समझ रहा होगा, हुँह। ' फिर उसके लिए रास्ता छोड़ दिया। एक के बाद एक 4 तोंदूमल और 2 तोंदूमलनियाँ अंदर प्रविष्ठ हुई।
'सालों के पेट तो देखो, जैसे 10-10 लीटर गैस के सिलेंडर खाए घूम रहे हैं।' सोचते सोचते मयंक सीट नम्बर 8 पर बैठ गया।
'ओह गोश, मैंने बोला था तुमको, उफ़्फ़ आई कान्ट, यार तुमको बोला था फर्स्ट एसी का टिकट करवाना था, फर्स्ट टाइम इस सो कॉल्ड स्लीपर क्लास में जाना पड़ रहा है, जस्ट बीकॉज ऑफ़ यू रोमी।' 45 साल की अधेड़ औरत एक मोटू को कह रही थी।
दूसरी मोटी शायद अंग्रेजी में निपुणता नही रखती थी, इसलिए अलग अलग भाषाओं के शब्दों के साथ एस जोड़ कर अपने क्लास को मैंटेन किए हुए थी।
'ओ यस यस, आपको तो पता ही'ज है'ज, दिस टाइपस् की बोगियोंज मेंज चोर'ज टाइप्स लोग'ज ट्रैवेलज करतेज् हैं'ज।'
'व्हाट कैन आई डु, आल एसी क्लास वाज शोविंग नो रुम, जस्ट अरेंज्ड दिस एनीहाउ, एंड यू पीपल आर बलेमिंग मी फॉर देट ? डिसगस्टिंग'
'साले मोटे कहीं के, फालतू की नौटँकी करनी है इनको बस, इतना ही बुरा लग रहा है यहां तो सालो प्लेन से जाते, वहाँ भी टिकट न मिलता तो प्राइवेट जेट से जाते, हुँह बड़े आए अम्बानी साले' मयंक मन ही मन गालियाँ दे रहा था। फिर सोचा मरने दो इन्हें मेरी परी पर कॉन्सन्ट्रेट करने दो। प्रियंका अपने कानों में इअर फोन लगा गानों में मस्ती में आँखें मूंदे लेटी थी। मयंक उसे ही निहारने लगा, देखा लड़की ने खूब मेकअप पोत रखा है, 'क्या जरूरत है अच्छी खासी तो दिखती हो ' देखा टॉप पर अंग्रेजी में बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था "Don't stare, My face isn't here" , 'अरे बाप रे, क्या क्या लिखते हैं यार :)'।
ऊपर देखा तो नेतराम मयंक की सीट को खाला का बाड़ा समझ के आराम से लेटा हुआ था, रात के 10 बजने को थे, मयंक भी अपनी सीट पर लेट गया, नीचे देखा प्रियंका बेबी मीठे सपनों में खो चुकी थी, सामने मोटा फैमिली एक दूसरे को कोसते हुए बड़ी मुश्किल से मिडिल और अपर बर्थ पर एडजस्ट कर पाए, हाँफ गए थे मनो एवेरेस्ट चढ़ना पड़ गया बेचारों को, पता ही नही लगा कब आँख लग गई। सुबह जब जाग आई तो देखा, प्रियंका अपनी सीट पर नही थी फिर देखा तो बैग भी नही था उसका, ओ शिट, कहीं उतर तो नही गई, रिजर्वेशन चार्ट में भी उसने सिर्फ बोर्डिंग पर ही ध्यान दिया था कहाँ उतरेगी देखा ही नही, फटाफट नीचे उतर कर बोगी के गेट के पास चिपकाए चार्ट को देखा, चार्ट जगह जगह से फट चुका था, पर प्रियंका के नाम के आगे 'bho...' शब्दों से अनुमान लगा लिया वो इसी स्टेशन पर उतरी है, नेतराम नीचे भोपाल स्टेशन पर खड़ा चाय पी रहा था, 'चाय !?'
मयंक ने इंकार में सर हिला दिया। ऊपर शिकायत की मुद्रा में देखा, फिर बोला 'करवा दिया न कचरा, थोड़ी देर पहले ही उठा देते भगवान, क्या बिगड़ जाता तुम्हारा बोलो? अच्छा ठीक है सॉरी मत बोलना अब, बट लास्ट गलती है ओके'। पीछे से नेतराम ने पीठ पर हाथ मार कर उसकी तन्द्रा तोड़ी,
'र के होया भाई, न्यू ऊपर न मुं करके क्यूँ बड़बड़ कर रा ह'
'कुछ नही यार, ये मेरे और उस ऊपर वाले के बीच की बात है।'
'तू बड़ा रुस्तम स भाई, खड्यां खड्यां ऊपर फोन ला लिया, हाहाहा'
ट्रेन फिर से गन्तव्य की और बढ़ चली। कभी कोई कभी कोई आता और पैसे मांगता, एक मुस्टंडा अपने दो छोटे छोटे बच्चों के साथ जिम्नास्टिक का खेल दिखा कर पैसे मांगने लगा, बच्चे बमुश्किल 4-5 साल से अधिक उम्र के न रहे होंगे। मन किया की कुछ पैसे दे दूँ इन्हें पर फिर सोचा भइये जेब में ढाई सौ रुपल्ली है, और वहाँ जा के सही सलामत वापस भी आना है, मन को मार दिया, फिर एक बच्चा पत्थर की दो बट्टी आपस में टकरा कर 'तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे' गाने लगा। मयंक सोचने लगा, 'प्रियंका, ये गाना तुम्हे डेडिकेट किया, जा बेवफा जा, 'अब तेरे बिन जी लेंगे हम, क्या हुआ जो एक दिल टूट गया'' अपनी बेवकूफी भरी बातों पर खुद ही हंसने लगा। देखा तो सामने की मोटा फैमिली ने इन बच्चों में से किसी को एक दुअन्नी तक न दी। फिर एक मोटा लेक्चर झाड़ने लगा , यू नो दिज किड्स आर अ ह्यूज सोर्स ऑफ़ मनी, वन्स आई सॉ आल दिस इन अ मूवी आल्सो, गैंग ऑफ़ बेग्गर आर बिहाइंड आल दिस। वी शुड नॉट हेव टू गिव एनीकाइंड ऑफ़ मनी तो दैम।'
'सालो एक रुपया तो तुमसे ढीला होता नही और बात कर रहे हैं कि एसी के बिना इनकी तैसी नही होती, हुँह दोगले हैं साले' मयंक को बड़ा गुस्सा आ रहा था उन पर, अचानक कहीं से एक लँगड़ा लड़का प्रकट हुआ, मैले कुचैले कपड़े वैसा ही मैल से सना शरीर, नीचे बैठा अपनी गंदी फ़टी हुई शर्ट उतारी और उसी से बोगी साफ़ करते हुए आगे बढ़ा, बोगी के एक एक केबिन को साफ कर पैसेंजर्स के सामने चुपचाप हाथ फैलाता , जिसे जो देना हो दे दे न देना हो न सही, किसी ने भी एक रूपये से बढ़कर उसे पैसा नहीं दिया, लगभग पूरा डिब्बा साफ हो चुका था, मोटा फैमिली से भी माँगा तो फिर से वही मोटा लेक्चर झाड़ने लगा, यू डोन्ट नो दिज रास्कल्स, आई नो, एंड बेग्गींग इज अ क्राइम.....'
मयंक को गुस्सा आ गया, बोला 'अरे अंकल किसी को एक रुपया देने का कलेजा नही है, तो मत दो, किसी को रास्कल क्यों कहते हो, जितना ये बेचारा कर सकता था कर रहा, शरीर से विकलांग है हिम्मत से नहीं, खबरदार अब अगर इसे बेग्गर बोला तो' फिर नीचे उतरा बीस का नोट थमाया बोला 'भाई इससे ज्यादा की तो मेरी भी हैसियत नही', पैसे पाकर लेने वाला बिना कुछ कहे चला गया, शायद बोल भी न सकता था।
अपनी सीट पर बैठते बैठते मयंक मोटा फैमिली की और देख बुदबुदाया 'डर्टी पीपल' हुँह साले।
ट्रेन अब भी अपनी पूरी गति से आगे बढ़ती जा रही थी।
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‪#‎जयश्रीकृष्ण‬
©अरुणिम कथा

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🎪🎪🎪🎪 तिरुशनार्थी ♠️♠️♠️♠️

एक बार एग्जाम के लिए तिरुपति गया था। घरवाले बोले जा ही रहे हो तो लगे हाथ बालाजी से भी मिल आना। मुझे भी लगा कि विचार बुरा नहीं है। रास्ते म...